Monday, October 21, 2019

21-10-19 प्रात:मुरली

21-10-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - याद में रहकर हर कर्म करो तो अनेकों को तुम्हारा साक्षात्कार होता रहेगा''
प्रश्नः-
संगमयुग पर किस विधि से अपने हृदय को शुद्ध (पवित्र) बना सकते हो?
उत्तर:-
याद में रहकर भोजन बनाओ और याद में खाओ तो हृदय शुद्ध हो जायेगा। संगमयुग पर तुम ब्राह्मणों द्वारा बनाया हुआ पवित्र ब्रह्मा भोजन देवताओं को भी बहुत पसन्द है। जिनको ब्रह्मा भोजन का कदर रहता वह थाली धोकर भी पी लेते हैं। महिमा भी बहुत है। याद में बनाया हुआ भोजन खाने से ताकत मिलती है, हृदय शुद्ध हो जाता है।
ओम् शान्ति।
संगम पर ही बाप आते हैं। रोज़ बच्चों को कहना पड़ता है कि रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझा रहे हैं। ऐसा क्यों कहते हैं कि बच्चे अपने को आत्मा समझो? बच्चों को यह याद पड़े बरोबर बेहद का बाप है, आत्माओं को पढ़ाते हैं। सर्विस के लिए भिन्न-भिन्न प्वाइंट्स पर समझाते हैं। बच्चे कहते हैं सर्विस नहीं है, हम बाहर में सर्विस कैसे करें? बाप सर्विस की युक्तियां तो बहुत ही सहज बतलाते हैं। चित्र हाथ में हो। रघुनाथ का काला चित्र भी हो, गोरा भी हो। कृष्ण का वा नारायण का चित्र गोरा भी हो, काला भी हो। भल छोटे चित्र ही हों। कृष्ण का इतना छोटा चित्र भी बनाते हैं। तुम मन्दिर के पुजारी से पूछ सकते हो - इनको काला क्यों बनाया है जबकि असुल गोरा था? वास्तव में तो शरीर काला नहीं होता है ना। तुम्हारे पास बहुत अच्छे गोरे-गोरे भी रहते हैं, परन्तु इनको काला क्यों बनाया है? यह तो तुम बच्चों को समझाया गया है आत्मा कैसे भिन्न-भिन्न नाम रूप धारण करते नीचे उतरती है। जबसे काम चिता पर चढ़ती है तब से काला बनती है। जगत नाथ वा श्रीनाथ द्वारे में ढेर यात्री होते हैं, तुमको निमंत्रण भी मिलते हैं। बोलो हम श्रीनाथ के 84 जन्मों की जीवन कहानी सुनाते हैं। भाइयों और बहनों आकर सुनो। ऐसा भाषण और कोई तो कर न सके। तुम समझा सकते हो यह काला क्यों बने हैं? हर एक को पावन से पतित जरूर बनना है। देवतायें जब वाम मार्ग में गये हैं तब उन्हें काला बनाया है। काम चिता पर बैठने से आइरन एजड बन जाते हैं। आइरन का कलर काला होता है, सोने का गोल्डन, उनको कहेंगे गोरे। वही फिर 84 जन्मों के बाद काले बनते हैं। सीढ़ी का चित्र भी जरूर हाथ में हो। सीढ़ी भी बड़ी हो तो कोई भी दूर से देख सकेंगे अच्छी रीति। और तुम सम-झायेंगे कि भारत की यह गति है। लिखा हुआ भी है उत्थान और पतन। बच्चों को सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए। समझाना है यह दुनिया का चक्र कैसे फिरता है, गोल्डन एज, सिलवर एज, कॉपर एज... फिर यह पुरूषोत्तम संगमयुग भी दिखाना है। भल बहुत चित्र नहीं उठाओ। सीढ़ी का चित्र तो मुख्य है भारत के लिए। तुम समझा सकते हो अब फिर से पतित से पावन तुम कैसे बन सकते हो। पतित-पावन तो एक ही बाप है। उनको याद करने से सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है। तुम बच्चों में यह सारा ज्ञान है। बाकी तो सब अज्ञान नींद में सोये हुए हैं। भारत ज्ञान में था तो बहुत धनवान था। अभी भारत अज्ञान में है तो कितना कंगाल है। ज्ञानी मनुष्य और अज्ञानी मनुष्य होते हैं ना। देवी-देवता और मनुष्य तो नामीग्रामी हैं। देवतायें सतयुग-त्रेता में, मनुष्य द्वापर-कलियुग में। बच्चों की बुद्धि में सदैव रहना चाहिए सर्विस कैसे करें? वह भी बाप समझाते रहते हैं। सीढ़ी का चित्र समझाने के लिए बहुत अच्छा है। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहो। शरीर निर्वाह के लिए धन्धा आदि तो करना ही है। जिस्मानी विद्या भी पढ़नी है। बाकी जो टाइम मिले तो सर्विस के लिए ख्याल करना चाहिए - हम औरों का कल्याण कैसे करें? यहाँ तो तुम बहुतों का कल्याण नहीं कर सकते हो। यहाँ तो आते ही हो बाप की मुरली सुनने। इसमें ही जादू है। बाप को जादूगर कहते हैं ना। गाते भी हैं मुरली तेरी में है जादू..... तुम्हारे मुख से जो मुरली बजती है उसमें जादू है। मनुष्य से देवता बन जाते हैं। ऐसा कोई जादूगर होता नहीं सिवाए बाप के। गायन भी है मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार। पुरानी दुनिया से नई दुनिया होनी जरूर है। पुरानी का विनाश भी जरूर होना है। इस समय तुम राजयोग सीखते हो तो जरूर राजा भी बनना है। अभी तुम बच्चे समझते हो 84 जन्मों के बाद फिर पहला नम्बर जन्म चाहिए क्योंकि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। सतयुग-त्रेता जो भी होकर गया है सो फिर रिपीट होना है जरूर।

तुम यहाँ बैठे हो तो भी बुद्धि में यह याद करना है कि हम वापिस जाते हैं फिर सतोप्रधान देवी-देवता बनते हैं। उनको देवता कहा जाता है। अभी मनुष्यों में दैवीगुण नहीं हैं। तो सर्विस तुम कहाँ भी कर सकते हो। कितना भी धन्धा आदि हो, गृहस्थ व्यवहार में रहते भी कमाई करते रहना है। इसमें मुख्य बात है पवित्रता की। प्योरिटी है तो पीस-प्रासपर्टी है। कम्पलीट प्योर बन गये तो फिर यहाँ नहीं रह सकते क्योंकि हमको शान्ति-धाम जरूर जाना है। आत्मा प्योर बन गई तो फिर आत्मा को इस पुराने शरीर के साथ नहीं रहना है। यह तो इमप्योर है ना। 5 तत्व ही इमप्योर हैं। शरीर भी इनसे ही बनता है। इनको मिट्टी का पुतला कहा जाता है। 5 तत्व का शरीर एक खत्म होता है, दूसरा बनता है। आत्मा तो है ही। आत्मा कोई बनने की चीज़ नहीं। शरीर पहले कितना छोटा फिर कितना बड़ा होता है। कितने आरगन्स मिलते हैं जिससे आत्मा सारा पार्ट बजाती है। यह दुनिया ही वन्डरफुल है। सबसे वन्डरफुल है बाप, जो आत्माओं का परिचय देते हैं। हम आत्मा कितनी छोटी हैं। आत्मा प्रवेश करती है। हर एक चीज वन्डरफुल है। जानवरों के शरीर आदि कैसे बनते हैं, वन्डर है ना। आत्मा तो सबमें वही छोटी है। हाथी कितना बड़ा है, उनमें इतनी छोटी आत्मा जाकर बैठती है। बाप तो मनुष्य जन्म की बात समझाते हैं। मनुष्य कितने जन्म लेते हैं? 84 लाख जन्म तो हैं नहीं। समझाया है जितने धर्म हैं उतनी वैराइटी बनती है। हर एक आत्मा कितने फीचर्स का शरीर लेती है, वन्डर है ना। फिर जब चक्र रिपीट होता है, हर जन्म में फीचर्स, नाम, रूप आदि बदल जाते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे कृष्ण काला, कृष्ण गोरा। नहीं, उनकी आत्मा पहले गोरी थी फिर 84 जन्म लेते-लेते काली बनती है। तुम्हारी भी आत्मा भिन्न-भिन्न फीचर्स, भिन्न-भिन्न शरीर लेकर पार्ट बजाती है। यह भी ड्रामा है।

तुम बच्चों को कभी भी कोई फिकरात नहीं होनी चाहिए। सब एक्टर्स हैं। एक शरीर छोड़ दूसरा लेकर फिर पार्ट बजाना ही है। हर जन्म में सम्बन्ध आदि बदल जाता है। तो बाप समझाते हैं यह बना-बनाया ड्रामा है। आत्मा ही 84 जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बनी है, अब फिर आत्मा को सतोप्रधान बनना है। पावन तो जरूर बनना है। पावन सृष्टि थी, अब पतित है फिर पावन होनी है। सतोप्रधान, तमोप्रधान अक्षर तो है ना। सतोप्रधान सृष्टि फिर सतो, रजो, तमो सृष्टि। अभी जो तमोप्रधान बने हैं वही फिर सतोप्रधान कैसे बनें? पतित से पावन कैसे बनें, बरसात के पानी से तो पावन नहीं बनेंगे। बरसात से तो मनुष्यों का मौत भी हो जाता है। फ्लड्स हो जाती हैं तो कितने डूब जाते हैं। अभी बाप समझाते रहते हैं यह सब खण्ड नहीं रहेंगे। नैचुरल कैलेमिटीज भी मदद देंगी, कितने ढेर मनुष्य, जानवर आदि बह जाते हैं। ऐसे नहीं कि पानी से पावन बन जाते हैं, वह तो शरीर चला जाता है। शरीरों को तो पतित से पावन नहीं बनना है। पावन बनना है आत्मा को। सो पतित-पावन तो एक बाप है। भल वह जगत गुरू कहलाते हैं परन्तु गुरू का तो काम है सद्गति देना, वह तो एक ही बाप सद्गति दाता है। बाप सतगुरू ही सद्गति देते हैं। बाप समझाते तो बहुत रहते हैं, यह भी सुनते हैं ना। गुरू लोग भी बाजू में शिष्य को बिठाते हैं सिखलाने के लिए। यह भी उनके बाजू में बैठता है। बाप समझाते हैं तो यह भी समझाते होंगे ना इसलिए गुरू ब्रह्मा नम्बरवन में जाता है। शंकर के लिए तो कहते हैं आंख खोलने से भस्म कर देते हैं फिर उनको तो गुरू नहीं कहा जाए। फिर भी बाप कहते हैं बच्चों मामेकम् याद करो। कई बच्चे कहते हैं - इतने धन्धेधोरी की फिकरात में रहते, हम अपने को आत्मा समझ बाप को कैसे याद करें? बाप समझाते हैं भक्ति मार्ग में भी तुम - हे ईश्वर, हे भगवान कह याद करते हो ना। याद तब करते हो जब कोई दु:ख होता है। मरने समय भी कहते हैं राम-राम बोलो। बहुत संस्थायें हैं जो राम नाम का दान देती हैं। जैसे तुम ज्ञान का दान देते हो वह फिर कहते राम बोलो, राम बोलो। तुम भी कहते हो शिवबाबा को याद करो। वह तो शिव को जानते ही नहीं। ऐसे राम-राम कह देते हैं। अब यह भी क्यों कहते हैं कि राम कहो, जबकि परमात्मा सबमें है? बाप बैठ समझाते हैं राम वा कृष्ण को परमात्मा नहीं कहा जाता। कृष्ण को भी देवता कहते। राम के लिए भी समझाया है - वह है सेमी देवता। दो कला कम हो जाती हैं। हर एक चीज की कला कम तो होती ही है। कपड़ा भी पहले नया, फिर पुराना होता है।

तो बाप इतनी बातें समझाते हैं फिर भी कहते हैं - मेरे मीठे-मीठे रूहानी बच्चों, अपने को आत्मा समझो। सिमर-सिमर सुख पाओ। यहाँ तो दु:खधाम है। बाप को और वर्से को याद करो। याद करते-करते अथाह सुख पायेंगे। कल-क्लेष, बीमारी आदि जो भी हैं सब छूट जायेंगे। तुम 21 जन्मों के लिए निरोगी बन जाते हो। कल-क्लेष मिटें सब तन के, जीवनमुक्ति पद पाओ। गाते हैं परन्तु एक्ट में नहीं आते हैं। तुमको बाप प्रैक्टिकल में समझाते हैं - बाप को सिमरो तो तुम्हारी सब मनोकामनायें पूरी हो जायेंगी, सुखी हो जायेंगे। मोचरा खाकर मानी टुकड़ खाना (सज़ा खाकर रोटी का टुकड़ा खाना) अच्छा नहीं है। सबको ताजी रोटी पसन्द आती है। आजकल तो तेल ही चलता है। वहाँ तो घी की नदियां बहती हैं। तो बच्चों को बाप का सिम-रण करना है। बाबा ऐसे भी नहीं कहते यहाँ बैठकर बाप को याद करो। नहीं, चलते, फिरते, घूमते शिवबाबा को याद करना है। नौकरी आदि भी करनी है। बाप की याद बुद्धि में रहनी चाहिए। लौकिक बाप के बच्चे नौकरी आदि करते हैं तो याद रहता ही है ना। कोई भी पूछेगा तो झट बतायेंगे हम किसके बच्चे हैं। बुद्धि में बाप की प्रापर्टी भी याद रहती है। तुम भी बाप के बच्चे बने हो तो प्रापर्टी भी याद है। बाप को भी याद करना है और कोई से सम्बन्ध नहीं। आत्मा में ही सारा पार्ट नूँधा हुआ है जो इमर्ज होता है। इस ब्राह्मण कुल में तुम्हारा जो कल्प-कल्प पार्ट चला है वही इमर्ज होता रहता है। बाप समझाते हैं खाना बनाओ, मिठाई बनाओ, शिवबाबा को याद करते रहो। शिवबाबा को याद कर बनायेंगे तो मिठाई खाने वाले का भी कल्याण होगा। कहाँ साक्षात्कार भी हो सकता है। ब्रह्मा का भी साक्षात्कार हो सकता है। शुद्ध अन्न पड़ता है तो ब्रह्मा का, कृष्ण का, शिव का साक्षात्कार कर सकते हैं। ब्रह्मा है यहाँ। ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम तो होता है ना। बहुतों को साक्षात्कार होते रहेंगे क्योंकि बाप को याद करते हो ना। बाप युक्तियां तो बहुत ही बताते हैं। वह मुख से राम-राम बोलते हैं, तुमको मुख से कुछ बोलना नहीं है। जैसे वह लोग समझते हैं गुरूनानक को भोग लगा रहे हैं, तुम भी समझते हो हम शिवबाबा को भोग लगाने के लिए बनाते हैं। शिवबाबा को याद करते बनायेंगे तो बहुतों का कल्याण हो सकता है। उस भोजन में ताकत हो जाती है, इसलिए बाबा भोजन बनाने वालों को भी कहते हैं शिवबाबा को याद कर बनाते हो? लिखा हुआ भी है शिवबाबा याद है? याद में रहकर बनायेंगे तो खाने वालों को भी ताकत मिलेगी, हृदय शुद्ध होगा। ब्रह्मा भोजन का गायन भी है ना। ब्राह्मणों का बनाया हुआ भोजन देवतायें भी पसन्द करते हैं। यह भी शास्त्रों में है। ब्राह्मणों का भोजन बनाया हुआ खाने से बुद्धि शुद्ध हो जाती है, ताकत रहती है। ब्रह्मा भोजन की बहुत महिमा है। ब्रह्मा भोजन का जिनको कदर रहता है, थाली धोकर भी पी लेते हैं। बहुत ऊंच समझते हैं। भोजन बिगर तो रह न सके। फैमन में भोजन बिगर मर जाते हैं। आत्मा ही भोजन खाती है, इन आरगन्स द्वारा स्वाद वह लेती है, अच्छा-बुरा आत्मा ने कहा ना। यह बहुत स्वादिष्ट है, ताकत वाला है। आगे चल जैसे तुम उन्नति को पाते रहेंगे वैसे भोजन भी तुमको ऐसा मिलता रहेगा, इसलिए बच्चों को कहते हैं शिवबाबा को याद कर भोजन बनाओ। बाप जो समझाते हैं उसको अमल में लाना चाहिए ना।

तुम हो पियरघर वाले, जाते हो ससुरघर। सूक्ष्मवतन में भी आपस में मिलते हैं। भोग ले जाते हैं। देवताओं को भोग लगाते हैं ना। देवतायें आते हैं तुम ब्राह्मण वहाँ जाते हो। वहाँ महफिल लगती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी बात की फिकरात नहीं करनी है क्योंकि यह ड्रामा बिल्कुल एक्यूरेट बना हुआ है। सभी एक्टर्स इसमें अपना-अपना पार्ट बजा रहे हैं।
2) जीवनमुक्त पद पाने वा सदा सुखी बनने के लिए अन्दर में एक बाप का ही सिमरण करना है। मुख से कुछ भी बोलना नहीं है। भोजन बनाते वा खाते समय बाप की याद में जरूर रहना है।
वरदान:-
नि:स्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति से सेवा करने वाले सफलता मूर्त भव
सेवा में सफलता का आधार आपकी नि:स्वार्थ और निर्विकल्प स्थिति है। इस स्थिति में रहने वाले सेवा करते स्वयं भी सन्तुष्ट और हर्षित रहते और उनसे दूसरे भी सन्तुष्ट रहते। सेवा में संगठन होता है और संगठन में भिन्न-भिन्न बातें, भिन्न-भिन्न विचार होते हैं। लेकिन अनेकता में मूंझो नहीं। ऐसा नहीं सोचो किसका मानें, किसका नहीं मानें। नि:स्वार्थ और निर्विकल्प भाव से निर्णय लो तो किसी को भी व्यर्थ संकल्प नहीं आयेगा और सफलता मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:-
अब सकाश द्वारा बुद्धियों को परिवर्तन करने की सेवा प्रारम्भ करो।