Saturday, October 5, 2019

04-10-2019 प्रात:मुरली

04-10-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - याद की यात्रा पर पूरा अटेन्शन दो, इससे ही तुम सतोप्रधान बनेंगे''
प्रश्नः-
बाप अपने बच्चों पर कौन-सी मेहर करते हैं?
उत्तर:-
बाप बच्चों के कल्याण के लिए जो डायरेक्शन देते हैं, यह डायरेक्शन देना ही उनकी मेहर (कृपा) है। बाप का पहला डायरेक्शन है - मीठे बच्चे, देही-अभिमानी बनो। देही-अभिमानी बहुत शान्त रहते हैं उनके ख्यालात कभी उल्टे नहीं चल सकते।
प्रश्नः-
बच्चों को आपस में कौन-सा सेमीनार करना चाहिए?
उत्तर:-
जब भी चक्र लगाने जाते हो तो याद की रेस करो और फिर बैठकर आपस में सेमीनार करो कि किसने कितना समय बाप को याद किया। यहाँ याद के लिए एकान्त भी बहुत अच्छा है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं तुम क्या कर रहे हो? रूहानी बच्चे कहेंगे - बाबा, हम जो सतोप्रधान थे सो तमोप्रधान बने हैं फिर बाबा आपकी श्रीमत अनुसार हमको सतोप्रधान जरूर बनना है। अभी बाबा आपने रास्ता बताया है। यह कोई नई बात नहीं। पुराने ते पुरानी बात है। सबसे पुरानी है याद की यात्रा, इसमें शो करने की बात नहीं। हर एक अपने अन्दर से पूछे हम कहाँ तक बाप को याद करते हैं? कहाँ तक सतोप्रधान बने हैं? क्या पुरूषार्थ कर रहे हैं? सतोप्रधान तब बनेंगे जब पिछाड़ी में अन्त आयेगा। उसका भी साक्षात्कार होता रहेगा। कोई जो कुछ करता है सो अपने लिए ही करता है। बाप भी कोई मेहर नहीं करते हैं। बाबा मेहर करते हैं जो बच्चों को डायरेक्शन देते हैं, उनके ही कल्याण अर्थ। बाप तो है ही कल्याण-कारी। कई बच्चे उल्टे ज्ञान में आ जाते हैं। बाबा फील करते हैं - देह-अभिमानी मगरूर होते हैं। देही-अभि-मानी बड़े शान्त रहेंगे। उनको कभी उल्टे-सुल्टे ख्याल नहीं आते हैं। बाप तो हर प्रकार से पुरूषार्थ कराते रहते हैं। माया भी बड़ी जबरदस्त है अच्छे-अच्छे बच्चों पर भी वार कर लेती है, इसलिए ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती। आज बहुत अच्छी रीति याद करते हैं, कल देह अहंकार में ऐसे आ जाते हैं जैसे सांड़े (गिरगिट)। सांड़े को अहंकार बहुत होता है। इसमें एक कहावत भी है - सुरमण्डल के साज़ से देह-अभिमानी सांड़े क्या जाने.......। देह-अभिमान बहुत खोटा है। बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। शिवबाबा तो कहते हैं आई एम मोस्ट ओबीडियन्ट सर्वेन्ट। ऐसे नहीं, अपने को कहना सर्वेन्ट और नवाबी चलाते रहें। बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, सतोप्रधान जरूर बनना है। यह तो बहुत सहज है, इसमें कोई चूँ-चाँ नहीं। मुख से कुछ बोलना नहीं है। कहाँ भी जाओ, अन्दर में याद करना है। ऐसे नहीं, यहाँ बैठते हैं तो बाबा मदद करते हैं। बाप तो आये ही हैं मदद करने। बाप को तो यह ख्याल रहता है - बच्चे, कहाँ कोई ग़फलत न करें। माया यहाँ ही घूसा मार देती है। देह-अभिमान बहुत-बहुत खराब है। देह-अभिमान में आने से बिल्कुल ही पट में आकर पड़े हैं। बाबा कहते हैं यहाँ आकर बैठते हो तो भी मोस्ट बिलवेड बाप को याद करो। बाप कहते हैं मैं ही पतित-पावन हूँ, मेरे को याद करने से, इस योग अग्नि से तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म होंगे। बच्चों की अभी वह अवस्था आई नहीं है, जो कोई को भी अच्छी रीति समझा सकें। ज्ञान तलवार में भी योग का जौहर चाहिए। नहीं तो तलवार कोई काम की नहीं रहती। मूल बात है ही याद की यात्रा। बहुत बच्चे उल्टे-सुल्टे धन्धे में लगे रहते हैं। याद की यात्रा और पढ़ाई करते नहीं इसलिए इसमें टाइम नहीं मिलता। बाप कहते हैं ऐसी मेहनत नहीं करो जो धन्धे धोरी के पिछाड़ी अपना पद गंवा दो। अपना भविष्य तो बनाना है ना। परन्तु सतोप्रधान बनना है। इसमें ही बहुत मेहनत है। बहुत बड़े-बड़े म्युज़ियम आदि सम्भालने वाले हैं परन्तु याद की यात्रा में नहीं रहते। बाबा ने समझाया है याद की यात्रा में गरीब, बांधेलियां ज्यादा रहती हैं। घड़ी-घड़ी शिवबाबा को याद करते रहते हैं। शिवबाबा हमारे यह बन्धन खलास करो। अबलाओं पर अत्याचार होते हैं, यह भी गायन है।
तुम बच्चों को बहुत मीठा बनना है। सच्चे-सच्चे स्टूडेन्ट बनो। अच्छे स्टूडेन्ट जो होते हैं वह एकान्त में बगीचे में जाकर पढ़ते हैं। तुमको भी बाप कहते हैं भल कहाँ भी चक्र लगाने जाओ अपने को आत्मा समझ बाबा को याद करो। याद की यात्रा का शौक रखो। उस धन कमाने की भेंट में यह अविनाशी धन तो बहुत-बहुत ऊंचा है। वह विनाशी धन तो फिर भी खाक हो जाना है। बाबा जानते हैं - बच्चे सर्विस पूरी नहीं करते, याद में मुश्किल रहते हैं। सच्ची सर्विस जो करनी चाहिए वह नहीं करते। बाकी स्थूल सर्विस में ध्यान चला जाता है। भल ड्रामा अनुसार होता है परन्तु बाप फिर भी पुरूषार्थ तो करायेंगे ना। बाप कहते हैं कोई भी काम करो - कपड़े सिलते हो, बाप को याद करो। याद में ही माया विघ्न डालती है। बाबा ने समझाया है रूसतम से माया भी रूसतम होकर लड़ती है। बाबा अपना भी बतलाते हैं। मैं रूसतम हूँ, जानता हूँ मैं बेगर टू प्रिन्स बनने वाला हूँ तो भी माया सामना करती है। माया किसको भी छोड़ती नहीं है। पहलवानों से तो और ही लड़ती है। कई बच्चे अपने देह के अहंकार में बहुत रहते हैं। बाप कितना निरहंकारी रहते हैं। कहते हैं मैं भी तुम बच्चों को नमस्ते करने वाला सर्वेन्ट हूँ। वह तो अपने को बहुत ऊंच समझते हैं। यह देह-अहंकार सब तोड़ना है। बहुतों में अहंकार का भूत बैठा हुआ है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो। यहाँ तो बहुत अच्छा चांस है। घूमने-फिरने का भी अच्छा है। फुर्सत भी है, भल चक्र लगाओ फिर एक-दो से पूछो कितना समय याद में रहे, और कोई तरफ बुद्धि तो नहीं गई? यह आपस में सेमीनार करना चाहिए। भल फीमेल अलग, मेल अलग हों। फीमेल आगे हों, मेल पिछाड़ी में हो क्योंकि माताओं की सम्भाल करनी है इसलिए माताओं को आगे रखना है। बहुत अच्छी एकान्त है। सन्यासी भी एकान्त में चले जाते हैं। सतोप्रधान सन्यासी जो थे वह बहुत निडर रहते थे। जानवर आदि कोई से डरते नहीं थे। उस नशे में रहते थे। अभी तमोप्रधान बन पड़े हैं। हर एक धर्म जो स्थापन होता है, पहले सतोप्रधान होता है फिर रजो तमो में आते हैं। सन्यासी जो सतोप्रधान थे वह ब्रह्म की मस्ती में मस्त रहते थे। उनमें बड़ी कशिश होती थी। जंगल में भोजन मिलता था। दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान होने से ताकत कम होती जाती है।
तो बाबा राय देते हैं - यहाँ बच्चों को अपनी उन्नति के चांस बहुत अच्छे हैं। यहाँ तुम आते ही हो कमाई करने के लिए। बाबा से सिर्फ मिलने से कमाई थोड़ेही होगी। बाप को याद करेंगे तो कमाई होगी। ऐसे मत समझो बाबा आशीर्वाद करेंगे, कुछ भी नहीं। वह साधू लोग आदि आशीर्वाद करते हैं, लेकिन तुमको नीचे गिरना ही है। अब बाप कहते हैं - जिन्न बनकर अपना बुद्धियोग ऊपर लगाओ। जिन्न की कहानी है ना। बोला हमको काम दो। बाप भी कहते हैं - तुमको डायरेक्शन देता हूँ, याद में रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। तुम्हें सतोप्रधान जरूर बनना है। माया कितना भी माथा मारे हम तो श्रेष्ठ बाप को जरूर याद करेंगे। ऐसे अन्दर में बाप की महिमा करते बाप को याद करते रहो। कोई भी मनुष्य को याद न करो। भक्ति मार्ग की जो रस्म है वह ज्ञान मार्ग में हो नहीं सकती। बाप शिक्षा देते हैं याद की यात्रा में तीखा जाना है। मूल बात यह है। सतोप्र-धान बनना है। बाप के डायरेक्शन मिलते हैं - घूमने फिरने जाते हो तो भी याद में रहो। तो घर भी याद रहेगा, राजाई भी याद रहेगी। ऐसे नहीं, याद में बैठे-बैठे गिर पड़ना है। वह तो फिर हठयोग हो जाता है। यह तो सीधी बात है - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। कई बच्चे बैठे-बैठे गिर पड़ते हैं इसलिए बाबा तो कहते हैं चलते-फिरते, खाते-पीते याद में रहो। ऐसे नहीं, बैठे-बैठे बेहोश हो जाओ। इनसे कोई तुम्हारे पाप नहीं कटेंगे। यह भी माया के बहुत विघ्न पड़ते हैं। यह भोग आदि की भी रस्म-रिवाज़ है, बाकी इनमें कुछ है नहीं। यह न ज्ञान है, न योग है। साक्षात्कार की कोई दरकार नहीं। बहुतों को साक्षात्कार हुए, वह आज हैं नहीं। माया बड़ी प्रबल है। साक्षात्कार की कभी आश भी नहीं रखनी चाहिए। इसमें तो बाप को याद करना है - सतोप्रधान बनने के लिए। ड्रामा को भी जानते हो, यह अनादि ड्रामा बना हुआ है जो रिपीट होता रहता है, इसे भी समझना है और बाप जो डायरेक्शन देते हैं उस पर भी चलना है। बच्चे जानते हैं - हम फिर से आये हैं राजयोग सीखने। भारत की ही बात है। यही तमोप्रधान बना है फिर इनको ही सतोप्रधान बनना है। बाप भी भारत में ही आकर सबकी सद्गति करते हैं। यह बड़ा वन्डरफुल खेल है। अब बाप कहते हैं - मीठे-मीठे रूहानी बच्चे, अपने को आत्मा समझो। तुमको 84 का चक्र लगाते पूरे 5 हज़ार वर्ष हुए हैं। अब फिर वापिस जाना है। यह बातें और कोई कह न सके। तुम बच्चों में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार निश्चयबुद्धि होते जाते हैं। यह बेहद की पाठशाला है। बच्चे जानते हैं - बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं, वह उस्ताद टीचर है, बहुत बड़ा उस्ताद है। बहुत प्रेम से समझाते हैं। कितने अच्छे-अच्छे बच्चे बड़ा आराम से 6 बजे तक सोये हुए रहते हैं। माया एकदम नाक से पकड़ लेती है। हुक्म चलाते रहते हैं। शुरू में तुम जब भट्ठी में थे तो मम्मा-बाबा भी सब सर्विस करते थे। जैसे कर्म हम करेंगे हमको देखकर और करेंगे। बाबा तो जानते हैं महारथी, घोड़ेसवार, प्यादे नम्बरवार हैं। कई बच्चे बड़ा आराम से रहते हैं। अन्दर सोये रहते हैं। बाहर में कोई पूछे फलाना कहाँ है? तो कहेंगे, है नहीं। परन्तु अन्दर सोये पड़े हैं। क्या-क्या होता रहता है, बाबा सम-झाते हैं। सम्पूर्ण तो कोई भी बना नहीं है, कितनी डिससर्विस कर लेते हैं। नहीं तो बाप के लिए गायन है - मारो चाहे प्यार करो, हम तेरा दरवाजा नहीं छोड़ेंगे। यहाँ तो थोड़ी बात पर रूठ पड़ते हैं। योग की बहुत कमी है। बाबा कितना बच्चों को समझाते रहते हैं, परन्तु कोई में ताकत नहीं जो लिखे। योग होगा तो लिखने में भी ताकत भरेगी। बाप कहते हैं यह अच्छी रीति सिद्ध करो - गीता का भगवान शिव है, न कि श्रीकृष्ण।
बाप आकर तुम बच्चों को सब बातों का अर्थ समझाते हैं। बच्चों को यहाँ नशा चढ़ता है फिर बाहर जाने से खत्म। टाइम वेस्ट बहुत करते हैं। हम कमाई कर यज्ञ को देवें, ऐसे ख्याल रख अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है। बाप कहते हैं हम तो तुम बच्चों का कल्याण करने के लिए आये हैं, तुम फिर अपना नुकसान कर रहे हो। यज्ञ में तो जिन्होंने कल्प पहले मदद की है वह करते रहते हैं, करते रहेंगे। तुम क्यों माथा मारते हो - यह करें, वह करें। ड्रामा में नूँध है - जिन्होंने बीज बोया है, वह अभी भी बोयेंगे। यज्ञ का तुम चिंतन नहीं करो। अपना कल्याण करो। अपने को मदद करो। भगवान को तुम मदद करते हो क्या? भगवान से तो तुम लेते हो या देते हो? यह ख्याल भी नहीं आना चाहिए। बाबा तो कहते हैं - लाडले बच्चों, अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों। अभी तुम संगमयुग पर खड़े हो। संगम पर ही तुम दोनों तरफ देख सकते हो। यहाँ कितने ढेर मनुष्य हैं। सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य होंगे। सारा दिन संगम पर खड़े रहना चाहिए। बाबा हमको क्या से क्या बनाते हैं! बाप का पार्ट कितना वन्डरफुल है। घूमों फिरो याद की यात्रा में रहो। बहुत बच्चे टाइम वेस्ट करते हैं। याद की यात्रा से ही बेड़ा पार होना है। कल्प पहले भी बच्चों को ऐसे समझाया था। ड्रामा रिपीट होता रहता है। उठते-बैठते सारा कल्प वृक्ष बुद्धि में याद रहे, यह है पढ़ाई। बाकी धन्धा आदि तो भल करो। पढ़ाई के लिए टाइम निकालना चाहिए। स्वीट बाप और स्वर्ग को याद करो। जितना याद करेंगे तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। बस बाबा, अब आपके पास आये कि आये। बाप की याद में फिर श्वांस भी सुखेला हो जायेगा। ब्रह्म ज्ञानियों के श्वास भी सुखाले (सुख वाले) हो जाते हैं। ब्रह्म की ही याद में रहते हैं, परन्तु ब्रह्म लोक में कोई जाता नहीं है। आपेही शरीर छोड़ दें - यह हो सकता है। कई फास्ट (उपवास) रखकर शरीर छोड़ देते हैं, वह दु:खी होकर मरते हैं। बाप तो कहते हैं खाओ पियो बाप को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। मरना तो है ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा याद रहे - जो कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे...... ऐसा आराम-पसन्द नहीं बनना है जो डिससर्विस हो। बहुत-बहुत निरहंकारी रहना है। अपने को आपेही मदद कर अपना कल्याण करना है।
2) धन्धे-धोरी में ऐसा बिजी नहीं होना है जो याद की यात्रा वा पढ़ाई के लिए टाइम ही न मिले। देह-अभिमान बहुत खोटा और खराब है, इसे छोड़ देही-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है।
वरदान:-
विल पावर द्वारा सेकण्ड में व्यर्थ को फुलस्टाप लगाने वाले अशरीरी भव
सेकण्ड में अशरीरी बनने का फाउन्डेशन - यह बेहद की वैराग्य वृत्ति है। यह वैराग्य ऐसी योग्य धरनी है उसमें जो भी डालो उसका फल फौरन निकलता है। तो अब ऐसी विल पावर हो जो संकल्प किया - व्यर्थ समाप्त, तो सेकण्ड में समाप्त हो जाए। जब चाहो, जहाँ चाहो, जिस स्थिति में चाहो सेकण्ड में सेट कर लो, सेवा खींचे नहीं। सेकण्ड में फुलस्टाप लग जाए तो सहज ही अशरीरी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
बाप समान बनना है तो बिगड़ी को बनाने वाले बनो।