Thursday, October 3, 2019

02-10-2019 प्रात:मुरली

02-10-2019        प्रात:मुरली        ओम् शान्ति       "बापदादा"      मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम सबकी आपस में एक मत है, तुम अपने को आत्मा समझ एक बाप को याद करते हो तो सब भूत भाग जाते हैं''
प्रश्नः- पद्मापद्म भाग्यशाली बनने का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर:- जो बाबा सुनाते हैं, उस एक-एक बात को धारण करने वाले ही पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हैं। जज करो बाबा क्या कहते हैं और रावण सम्प्रदाय वाले क्या कहते हैं! बाप जो नॉलेज देते हैं उसे बुद्धि में रखना, स्वदर्शन चक्रधारी बनना ही पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है। इस नॉलेज से ही तुम गुणवान बन जाते हो।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप, अंग्रेजी में कहा जाता है स्प्रीचुअल फादर। सतयुग में जब तुम चलेंगे तो वहाँ अंग्रेजी आदि दूसरी कोई भाषा तो होगी नहीं। तुम जानते हो सतयुग में हमारा राज्य होता है, उसमें हमारी जो भाषा होगी वही चलेगी। फिर बाद में वह भाषा बदलती जाती है। अभी तो अनेकानेक भाषायें हैं। जैसा-जैसा राजा वैसी-वैसी उनकी भाषा चलती है। अब यह तो सब बच्चे जानते हैं, सब सेन्टर्स पर भी जो बच्चे हैं उनकी है एक मत। अपने को आत्मा समझना है और एक बाप को याद करना है ताकि भूत सब भाग जाएं। बाप है पतित-पावन। 5 भूतों की तो सबमें प्रवेशता है। आत्मा में ही भूतों की प्रवेशता होती है फिर इन भूतों अथवा विकारों का नाम भी लगाया जाता है देह-अभिमान, काम, क्रोध आदि। ऐसे नहीं कि सर्वव्यापी कोई ईश्वर है। कभी भी कोई कहे कि ईश्वर सर्वव्यापी है तो कहो सर्वव्यापी आत्मायें हैं और इन आत्माओं में 5 विकार सर्वव्यापी हैं। बाकी ऐसे नहीं कि परमात्मा सर्व में विराजमान है। परमात्मा में फिर 5 भूतों की प्रवेशता कैसे होगी! एक-एक बात को अच्छी रीति धारण करने से तुम पद्मापद्म भाग्यशाली बनते हो। दुनिया वाले रावण सम्प्रदाय क्या कहते हैं और बाप क्या कहते है, अब जज करो। हरेक के शरीर में आत्मा है। उस आत्मा में 5 विकार प्रवेश हैं। शरीर में नहीं, आत्मा में 5 विकार अथवा भूत प्रवेश होते हैं। सतयुग में यह 5 भूत नहीं हैं। नाम ही है डीटी वर्ल्ड। यह है डेविल वर्ल्ड। डेविल कहा जाता है असुर को। कितना दिन और रात का फ़र्क है। अभी तुम चेन्ज होते हो। वहाँ तुम्हारे में कोई भी विकार, कोई अवगुण नहीं रहता। तुम्हारे में सम्पूर्ण गुण होते हैं। तुम 16 कला सम्पूर्ण बनते हो। पहले थे फिर नीचे उतरते हो। इस चक्र का अभी मालूम पड़ा है। 84 का चक्र कैसे फिरता है। हम आत्मा को स्व का दर्शन हुआ है अर्थात् इस चक्र का नॉलेज हुआ है। उठते, बैठते, चलते तुमको यह नॉलेज बुद्धि में रखना है। बाप नॉलेज पढ़ाते हैं। यह रूहानी नॉलेज बाप भारत में ही आकर देते हैं। कहते हैं ना - हमारा भारत। वास्तव में हिन्दुस्तान कहना तो रांग है। तुम जानते हो भारत जब स्वर्ग था तो सिर्फ हमारा ही राज्य था और कोई धर्म नहीं था। न्यु वर्ल्ड थी। नई देहली कहते हैं ना। देहली का नाम असल देहली नहीं था, परिस्तान कहते थे। अभी तो नई देहली और पुरानी देहली कहते हैं फिर न पुरानी, न नई देहली होगी। परिस्तान कहा जायेगा। दिल्ली को कैपीटल कहते हैं। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होगा, और कुछ भी नहीं होगा, हमारा ही राज्य होगा। अभी तो राज्य नहीं है इसलिए सिर्फ कहते हैं हमारा भारत देश है। राजायें तो हैं नहीं। तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान चक्र लगाता है। बरोबर पहले-पहले इस विश्व में देवी-देवताओं का राज्य था और कोई राज्य नहीं था। जमुना का किनारा था, उसको परिस्तान कहा जाता था। देवताओं की कैपीटल देहली ही रही है, तो सभी को कशिश होती है। सबसे बड़ी भी है। एकदम सेन्टर (बीच) है।

मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं पाप तो जरूर हुए हैं, पाप आत्मा बन गये हैं। सतयुग में होते हैं पुण्य आत्मायें। बाप ही आकर पावन बनाते हैं जिसकी तुम शिव जयन्ती भी मनाते हो। अब जयन्ती अक्षर तो सबसे लगता है इस-लिए इनको फिर शिव रात्रि कहते हैं। रात्रि का अर्थ तो तुम्हारे सिवाए और कोई समझ न सकें। अच्छे-अच्छे विद्वान आदि कोई भी नहीं जानते कि शिवरात्रि क्या है तो मनावें क्या! बाप ने समझाया है रात्रि का अर्थ क्या है? यह जो 5 हज़ार वर्ष का चक्र है उसमें सुख और दु:ख का खेल है, सुख को कहा जाता है दिन, दु:ख को कहा जाता है रात। तो दिन और रात के बीच में आता है संगम। आधाकल्प है सोझरा, आधाकल्प है अन्धियारा। भक्ति में तो बहुत तीक-तीक चलती है। यहाँ है सेकण्ड की बात। बिल्कुल इज़ी है, सहज योग। तुमको पहले जाना है मुक्तिधाम। फिर तुम जीवनमुक्ति और जीवनबन्ध में कितना समय रहे हो, यह तो तुम बच्चों को याद है फिर भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। बाप समझाते हैं योग अक्षर है ठीक परन्तु उन्हों का है जिस्मानी योग। यह है आत्माओं का परमात्मा के साथ योग। सन्यासी लोग अनेक प्रकार के हठयोग आदि सिखाते हैं तो मनुष्य मूँझते हैं। तुम बच्चों का बाप भी है तो टीचर भी है, तो उनसे योग लगाना पड़े ना। टीचर से पढ़ना होता है। बच्चा जन्म लेता है तो पहले बाप से योग होता है फिर 5 वर्ष के बाद टीचर से योग लगाना पड़ता है फिर वानप्रस्थ अवस्था में गुरू से योग लगाना पड़ता है। तीन मुख्य याद रहते हैं। वह तो अलग-अलग होते है। यहाँ यह एक ही बार बाप आकर बाप भी बनते हैं, टीचर भी बनते हैं। वन्डरफुल है ना। ऐसे बाप को तो जरूर याद करना चाहिए। जन्म-जन्मान्तर तीन को अलग-अलग याद करते आये हो। सतयुग में भी बाप से योग होता है फिर टीचर से होता है। पढ़ने तो जाते हैं ना। बाकी गुरू की वहाँ दरकार नहीं रहती क्योंकि सब सद्गति में हैं। यह सब बातें याद करने में क्या तकल़ीफ है! बिल्कुल सहज है। इनको कहा जाता है सहज योग। परन्तु यह है अनकॉमन। बाप कहते हैं मैं यह टैप्रेरी लोन लेता हूँ, सो भी कितना थोड़ा समय लेता हूँ। 60 वर्ष में वानप्रस्थ अवस्था होती है। कहते हैं साठ लगी लाठ। इस समय सबको लाठी लगी हुई है। सब वानप्रस्थ, निर्वाणधाम में जायेंगे। वह है स्वीट होम, स्वीटेस्ट होम। उनके लिए ही कितनी अथाह भक्ति की है। अभी चक्र फिरकर आये हो। मनुष्यों को यह कुछ भी पता नहीं, ऐसे ही गपोड़ा लगा दिया है कि लाखों वर्ष का चक्र है। लाखों वर्ष की बात हो तो फिर रेस्ट मिल न सके। रेस्ट मिलना ही मुश्किल हो जाए। तुमको रेस्ट मिलती है, उसको कहा जाता है साइलेन्स होम, इनकारपोरियल वर्ल्ड। यह है स्थूल स्वीट होम। वह है मूल स्वीट होम। आत्मा बिल्कुल छोटा रॉकेट है, इनसे तीखा भागने वाला कोई होता नहीं। यह तो सबसे तीखा है। एक सेकण्ड में शरीर छूटा और यह भागा, दूसरा शरीर तो तैयार रहता है। ड्रामा अनु-सार पूरे टाइम पर उनको जाना ही है। ड्रामा कितना एक्यूरेट है। इनमें कोई इनएक्यूरेसी है नहीं। यह तुम जानते हो। बाप भी ड्रामा अनुसार बिल्कुल एक्यूरेट टाइम पर आते हैं। एक सेकण्ड का भी फर्क नहीं पड़ सकता है। मालूम कैसे पड़ता है कि इनमें बाप भगवान है। जब नॉलेज देते हैं, बच्चों को बैठ समझाते हैं। शिवरात्रि भी मनाते हैं ना। मैं शिव कब कैसे आता हूँ, वह तुमको तो पता नहीं है। शिवरात्रि, कृष्णरात्रि मनाते हैं। राम की नहीं मनाते क्योंकि फर्क पड़ गया ना। शिवरात्रि के साथ कृष्ण की भी रात्रि मना लेते हैं। परन्तु जानते कुछ भी नहीं। यहाँ है ही आसुरी रावण राज्य। यह समझने की बातें हैं। यह तो है बाबा, बुढ़े को बाबा कहेंगे। छोटे बच्चे को बाबा थोड़ेही कहेंगे। कोई-कोई लव से भी बच्चे को बाबा कह देते हैं। तो उन्हों ने भी कृष्ण को लव से कह दिया है। बाबा तो तब कहा जाता है जब बड़े हो और फिर बच्चे पैदा करते हो। कृष्ण खुद ही प्रिन्स है, उनको बच्चे कहाँ से आये। बाप कहते ही हैं मै बुजुर्ग के तन में आता हूँ। शास्त्रों में भी है परन्तु शास्त्रों की सब बातें एक्यूरेट नहीं होती, कोई-कोई बात ठीक है। ब्रह्मा की आयु माना प्रजापिता ब्रह्मा की आयु कहेंगे। वह तो जरूर इस समय होगा। ब्रह्मा की आयु मृत्युलोक में खत्म होगी। यह कोई अमरलोक नहीं है। इनको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग। यह सिवाए तुम बच्चों के और कोई की बुद्धि में नहीं हो सकता।

बाप बैठ बताते हैं - मीठे-मीठे बच्चों, तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो हम बतलाते हैं कि तुम 84 जन्म लेते हो। कैसे? तो भी तुमको पता पड़ गया है। हरेक युग की आयु 1250 वर्ष है और इतने-इतने जन्म लिए हैं। 84 जन्मों का हिसाब है ना। 84 लाख का तो हिसाब हो न सके। इनको कहा जाता है 84 का पा, 84 लाख की तो बात ही याद न आये। यहाँ कितने अपरमअपार दु:ख हैं। कैसे दु:ख देने वाले बच्चे पैदा होते रहते हैं। इसको कहा जाता है घोर नर्क, बिल्कुल छी-छी दुनिया है। तुम बच्चे जानते हो अभी हम नई दुनिया में जाने के लिए तैयारी कर रहे हैं। पाप कट जाएं तो हम पुण्यात्मा बन जायें। अभी कोई पाप नहीं करना है। एक-दो पर काम कटारी चलाना - यह आदि-मध्य-अन्त दु:ख देना है। अभी यह रावण राज्य पूरा होता है। अभी है कलियुग का अन्त। यह महाभारी लड़ाई है अन्तिम। फिर कोई लड़ाई आदि होगी ही नहीं। वहाँ कोई भी यज्ञ रचे नहीं जाते। जब यज्ञ रचते हैं तो उसमें हवन करते हैं। बच्चे अपनी पुरानी सामग्री सब स्वाहा कर देते हैं। अब बाप ने समझाया है यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। रूद्र शिव को कहा जाता है। रूद्र माला कहते हैं ना। निवृत्तिमार्ग वालों को प्रवृत्ति मार्ग की रसम-रिवाज़ का कुछ भी पता नहीं है। वह तो घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं। नाम ही पड़ा है सन्यास। किसका सन्यास? घरबार का। खाली हाथ निकलते हैं। पहले तो गुरू लोग बहुत परीक्षा लेते हैं, काम कराते हैं। पहले भिक्षा में सिर्फ आटा लेते थे, रसोई नहीं लेते थे। उन्हों को जंगल में ही रहना है, वहाँ कंद-मूल-फल मिलते हैं। यह भी गायन है, जब सतोप्रधान सन्यासी होते हैं तब यह खाते हैं। अभी तो बात मत पूछो, क्या-क्या करते रहते हैं। इसका नाम ही है विशश वर्ल्ड। वह है वाइस-लेस वर्ल्ड। तो अपने को विशश समझना चाहिए ना। बाप कहते हैं सतयुग को कहा जाता है शिवालय, वाइ-सलेस वर्ल्ड। यहाँ तो सब हैं पतित मनुष्य इसलिए देवी-देवता के बदले नाम ही हिन्दू रख दिया है। बाप तो सब बातें समझाते रहते हैं। तुम असुल में हो ही बेहद बाप के बच्चे। वह तो तुम्हें 21 जन्मों का वर्सा देते हैं। तो बाप मीठे-मीठे बच्चों को समझाते हैं - जन्म-जन्मान्तर के पाप तुम्हारे सिर पर हैं। पापों से मुक्त होने के लिए ही तुम बुलाते हो। साधू-सन्त आदि सब पुकारते हैं - हे पतित-पावन..... अर्थ कुछ नहीं समझते, ऐसे ही गाते रहते हैं, ताली बजाते रहते हैं। उनसे कोई पूछे - परमात्मा से योग कैसे लगावें, उनसे कैसे मिलें तो कह देंगे वह तो सर्वव्यापी है। क्या यही रास्ता बताते हैं! कह देते वेद-शास्त्र पढ़ने से भगवान मिलेगा। परन्तु बाप कहते हैं - मैं हर 5 हजार वर्ष के बाद ड्रामा के प्लैन अनुसार आता हूँ। यह ड्रामा का राज़ सिवाए बाप के और कोई नहीं जानते। लाखों वर्ष का ड्रामा तो हो ही नहीं सकता। अब बाप समझाते हैं यह 5 हज़ार वर्ष की बात है। कल्प पहले भी बाबा ने कहा था कि मनमनाभव। यह है महामंत्र। माया पर जीत पाने का मंत्र है। बाप ही बैठ अर्थ समझाते हैं। दूसरा कोई अर्थ नहीं समझाते। गाया भी जाता है ना सर्व का सद्गति दाता एक। कोई मनुष्य तो हो नहीं सकता। देवताओं की भी बात नहीं है। वहाँ तो सुख ही सुख है, वहाँ कोई भक्ति नहीं करते। भक्ति की जाती है भगवान से मिलने के लिए। सतयुग में भक्ति होती नहीं क्योंकि 21 जन्मों का वर्सा मिला हुआ है। तब गाया भी जाता है दु:ख में सिमरण...... यहाँ तो अथाह दु:ख हैं। घड़ी-घड़ी कहते हैं भगवान रहम करो। यह कलियुगी दु:खी दुनिया सदैव नहीं रहती। सतयुग-त्रेता पास्ट हो गये हैं, फिर होंगे। लाखों वर्ष की तो बात भी याद नहीं रह सकती है। अब बाप तो सारी नॉलेज देते हैं, अपना परिचय भी देते हैं और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ भी समझाते हैं। 5 हज़ार वर्ष की बात है। तुम बच्चों को ध्यान में आ गया है। अभी तो पराये राज्य में हो। तुमको अपना राज्य था। यहाँ तो लड़ाई से अपना राज्य लेते हैं, हथियारों से, मारामारी से अपना राज्य लेते हैं। तुम बच्चे तो योगबल से अपना राज्य स्थापन कर रहे हो। तुम्हें सतोप्रधान दुनिया चाहिए। पुरानी दुनिया खत्म हो नई दुनिया बनती है, इसको कहा जाता है कलियुग पुरानी दुनिया। सतयुग है नई दुनिया। यह भी किसको पता नहीं है। सन्यासी कह देते यह आपकी कल्पना है। यहाँ ही सतयुग है, यहाँ ही कलियुग है। अब बाप बैठ समझाते हैं एक भी ऐसा नहीं है जो बाप को जानते हो। अगर कोई जानता होता तो परिचय देता। सतयुग-त्रेता क्या चीज है, किसको समझ में थोड़ेही आता है। तुम बच्चों को बाप अच्छी रीति समझाते रहते हैं। बाप ही सब कुछ जानते हैं, जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। ज्ञान का सागर, सुख का सागर है। उनसे ही हमको वर्सा मिलना है। बाप नॉलेज में आप समान बनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) यह पापों से मुक्त होने का समय है इसलिए अभी कोई पाप नहीं करना है। पुरानी सब सामग्री इस रूद्र यज्ञ में स्वाहा करनी है।

2) अभी वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए बाप, टीचर के साथ-साथ सतगुरू को भी याद करना है। स्वीट होम में जाने के लिए आत्मा को सतोप्रधान (पावन) बनाना है।

वरदान:- समय को शिक्षक बनाने के बजाए बाप को शिक्षक बनाने वाले मास्टर रचयिता भव
कई बच्चों को सेवा का उमंग है लेकिन वैराग्य वृत्ति का अटेन्शन नहीं है, इसमें अलबेलापन है। चलता है...होता है...हो जायेगा...समय आयेगा तो ठीक हो जायेगा...ऐसा सोचना अर्थात् समय को अपना शिक्षक बनाना। बच्चे बाप को भी दिलासा देते हैं - फिकर नहीं करो, समय पर ठीक हो जायेगा, कर लेंगे। आगे बढ़ जायेंगे। लेकिन आप मास्टर रचयिता हो, समय आपकी रचना है। रचना मास्टर रचयिता का शिक्षक बनें यह शोभा नहीं देता।
स्लोगन:- 
बाप की पालना का रिटर्न है - स्व को और सर्व को परिवर्तन करने में सहयोगी बनना।