Sunday, August 18, 2019

18-08-2019 प्रात:मुरली

18-08-19 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 16-01-85 मधुबन

भाग्यवान युग में भगवान द्वारा वर्से और वरदानों की प्राप्ति
आज सृष्टि वृक्ष के बीजरूप बाप अपने वृक्ष के फाउन्डेशन बच्चों को देख रहे हैं। जिस फाउन्डेशन द्वारा सारे वृक्ष का विस्तार होता है। विस्तार करने वाले सार स्वरूप विशेष आत्माओं को देख रहे हैं अर्थात् वृक्ष के आधार मूर्त आत्माओं को देख रहे हैं। डायरेक्ट बीजरूप द्वारा प्राप्त की हुई सर्व शक्तियों को धारण करने वाली विशेष आत्माओं को देख रहे हैं। सारे विश्व की सर्व आत्माओं में से सिर्फ थोड़ी-सी आत्माओं को यह विशेष पार्ट मिला हुआ है। कितनी थोड़ी आत्मायें हैं जिन्हों को बीज के साथ सम्बन्ध द्वारा श्रेष्ठ प्राप्ति का पार्ट मिला हुआ है।
आज बापदादा ऐसे श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों के भाग्य को देख रहे हैं। सिर्फ बच्चों को यह दो शब्द याद रहें "भगवान और भाग्य'। भाग्य अपने कर्मों के हिसाब से सभी को मिलता है। द्वापर से अब तक आप आत्माओं को भी कर्म और भाग्य इस हिसाब किताब में आना पड़ता है लेकिन वर्तमान भाग्यवान युग में भगवान भाग्य देता है। भाग्य के श्रेष्ठ लकीर खींचने की विधि "श्रेष्ठ कर्म रूपी कलम'' आप बच्चों को दे देते हैं, जिससे जितनी श्रेष्ठ, स्पष्ट, जन्म-जन्मान्तर के भाग्य की लकीर खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो। और कोई समय को यह वरदान नहीं है। इसी समय को यह वरदान है जो चाहो जितना चाहो उतना पा सकते हो। क्यों? भगवान भाग्य का भण्डारा बच्चों के लिए फराखदिली से, बिना मेहनत के दे रहा है। खुला भण्डार है, ताला चाबी नहीं है। और इतना भरपूर, अखुट है जो जितने चाहें, जितना चाहें ले सकते हैं। बेहद का भरपूर भण्डारा है। बापदादा सभी बच्चों को रोज़ यही स्मृति दिलाते रहते हैं कि जितना लेने चाहो उतना ले लो। यथाशक्ति नहीं, लो बड़ी दिल से लो। लेकिन खुले भण्डार से, भरपूर भण्डार से लो। अगर कोई यथाशक्ति लेते हैं तो बाप क्या कहेंगे? बाप भी साक्षी हो देख-देख हर्षाते रहते कि कैसे भोले-भाले बच्चे थोड़े में ही खुश हो जाते हैं। क्यों? 63 जन्म भक्तपन के संस्कार थोड़े में ही खुश होने के कारण अभी भी सम्पन्न प्राप्ति के बजाए थोड़े को ही बहुत समझ उसी में राज़ी हो जाते हैं।
इस समय अविनाशी बाप द्वारा सर्व प्राप्ति का समय है, यह भूल जाते हैं। बापदादा फिर भी बच्चों को स्मृति दिलाते, समर्थ बनो। अब भी टूलेट नहीं हुआ है। लेट आये हो लेकिन टूलेट का समय अभी नहीं है इसलिए अभी भी दोनों रूप से बाप रूप से वर्सा, सतगुरू के रूप से वरदान मिलने का समय है। तो वरदान और वर्से के रूप में सहज श्रेष्ठ भाग्य बना लो। फिर यह नहीं सोचना पड़े कि भाग्य विधाता ने भाग्य बाँटा लेकिन मैंने इतना ही लिया। सर्व शक्तिवान बाप के बच्चे यथाशक्ति नहीं हो सकता। अभी वरदान है जो चाहो वह बाप के खजाने से अधिकार के रूप से ले सकते हो। कमजोर हो तो भी बाप की मदद से, हिम्मते बच्चे मददे बाप, वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बना सकते हो। बाकी थोड़ा समय है, बाप के सहयोग और भाग्य के खुले भण्डार मिलने का।
अभी स्नेह के कारण बाप के रूप में हर समय, हर परिस्थिति में साथी है लेकिन इस थोड़े से समय के बाद साथी के बजाए साक्षी हो देखने का पार्ट चलेगा। चाहे सर्वशक्ति सम्पन्न बनो, चाहे यथाशक्ति बनो - दोनों को साक्षी हो देखेंगे इसलिए इस श्रेष्ठ समय में बापदादा द्वारा वर्सा, वरदान सहयोग, साथ इस भाग्य की जो प्राप्ति हो रही है उसको प्राप्त कर लो। प्राप्ति में कभी भी अलबेले नहीं बनना। अभी इतने वर्ष पड़े हैं, सृष्टि परिवर्तन के समय और प्राप्ति के समय दोनों को मिलाओ मत। इस अलबेले पन के संकल्प से सोचते नहीं रह जाना। सदा ब्राह्मण जीवन में सर्व प्राप्ति का, बहुतकाल की प्राप्ति का यही बोल याद रखो ‘अब नहीं तो कब नहीं' इसलिए कहा कि सिर्फ दो शब्द भी याद रखो "भगवान और भाग्य''। तो सदा पदमापदम भाग्यवान रहेंगे। बापदादा आपस में भी रूहरूहान करते हैं कि ऐसे पुरानी आदत से मजबूर क्यों हो जाते हैं। बाप मजबूत बनाते, फिर भी बच्चे मजबूर हो जाते हैं। हिम्मत की टाँगे भी देते हैं, पंख भी देते हैं, साथ-साथ भी उड़ाते फिर भी नीचे ऊपर नीचे ऊपर क्यों होते हैं। मौजों के युग में भी मूंझते रहते हैं, इसको कहते हैं पुरानी आदत से मजबूर। मजबूत हो या मजबूर हो? बाप डबल लाइट बनाते, सब बोझ स्वयं उठाने के लिए साथ देते फिर भी बोझ उठाने की आदत, बोझ उठा लेते हैं। फिर कौन सा गीत गाते हैं, जानते हो? क्या, क्यों, कैसे यह "के के'' का गीत गाते हैं। दूसरा भी गीत गाते हैं "गे गे'' का। यह तो भक्ति के गीत हैं। अधिकारीपन का गीत है "पा लिया''। तो कौन-सा गीत गाते हो? सारे दिन में चेक करो कि आज का गीत कौन सा था? बापदादा का बच्चों से स्नेह है इसलिए स्नेह के कारण सदा यही सोचते कि हर बच्चा सदा सम्पन्न हो, समर्थ हो। सदा पदमापदम भाग्यवान हो। समझा। अच्छा!
सदा समय प्रमाण वर्से और वरदान के अधिकारी, सदा भाग्य के खुले भण्डार से सम्पूर्ण भाग्य बनाने वाले, यथाशक्ति को सर्व शक्ति सम्पन्न में परिवर्तन करने वाले, श्रेष्ठ कर्मों की कलम द्वारा सम्पन्न तकदीर की लकीर खींचने वाले, समय के महत्व को जान सर्व प्राप्ति स्वरूप श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का सम्पन्न बनाने का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

1. सदा अपना अलौकिक जन्म, अलौकिक जीवन, अलौकिक बाप, अलौकिक वर्सा याद रहता है? जैसे बाप अलौकिक है तो वर्सा भी अलौकिक है। लौकिक बाप हद का वर्सा देता, अलौकिक बाप बेहद का वर्सा देता। तो सदा अलौकिक बाप और वर्से की स्मृति रहे। कभी लौकिक जीवन के स्मृति में तो नहीं चले जाते। मरजीवा बन गये ना। जैसे शरीर से मरने वाले कभी भी पिछले जन्म को याद नहीं करते, ऐसे अलौकिक जीवन वाले, जन्म वाले, लौकिक जन्म को याद नहीं कर सकते। अभी तो युग ही बदल गया। दुनिया कलियुगी है, आप संगमयुगी हो, सब बदल गया। कभी कलियुग में तो नहीं चले जाते? यह भी बार्डर है। बार्डर क्रास किया और दुश्मन के हवाले हो गये। तो बार्डर क्रास तो नहीं करते? सदा संगमयुगी अलौकिक जीवन वाली श्रेष्ठ आत्मा हैं, इसी स्मृति में रहो। अभी क्या करेंगे? बड़े से बड़ा बिजनेस मैन बनो। ऐसा बिजनेस मैन जो एक कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाले। सदा बेहद के बाप के हैं, तो बेहद की सेवा में, बेहद के उमंग-उत्साह से आगे बढ़ते रहो।
2. सदा डबल लाइट स्थिति का अनुभव करते हो? डबल लाइट स्थिति की निशानी है सदा उड़ती कला। उड़ती कला वाले कभी भी माया के आकर्षण में नहीं आ सकते। उड़ती कला वाले सदा विजयी? उड़ती कला वाले सदा निश्चय बुद्धि निश्चिन्त। उड़ती कला क्या है? उड़ती कला अर्थात् ऊंचे से ऊंची स्थिति। उड़ते हैं तो ऊंचा जाते हैं ना। ऊंचे ते ऊंची स्थिति में स्थित रहने वाली ऊंची आत्मायें समझ आगे बढ़ते चलो। उड़ती कला वाले अर्थात् बुद्धि रूपी पाँव धरनी पर नहीं। धरनी अर्थात् देह भान से ऊपर। जो देह भान की धरनी से ऊपर रहते वह सदा फरिश्ते हैं, जिसका धरनी से कोई रिश्ता नहीं। देह भान को भी जान लिया, देही-अभिमानी स्थिति को भी जान लिया। जब दोनों के अन्तर को जान गये तो देह-अभिमान में आ नहीं सकते। जो अच्छा लगता है वही किया जाता है ना। तो सदा इसी स्मृति में रहो कि मैं हूँ ही फरिश्ता। फरिश्ते की स्मृति से सदा उड़ते रहेंगे। उड़ती कला में चले गये तो नीचे की धरनी आकर्षित नहीं कर सकती है, जैसे स्पेस में जाते हैं तो धरनी आकर्षित नहीं करती, ऐसे फरिश्ता बन गये तो देह रूपी धरनी आकर्षित नहीं कर सकती।
3. सदा सहयोगी, कर्मयोगी, स्वत: योगी, निरन्तर योगी ऐसी स्थिति का अनुभव करते हो? जहाँ सहज है वहाँ निरंतर है। सहज नहीं तो निरन्तर नहीं। तो निरन्तर योगी हो या अन्तर पड़ जाता है? योगी अर्थात् सदा याद में मगन रहने वाले। जब सर्व सम्बन्ध बाप से हो गये तो जहाँ सर्व सम्बन्ध हैं वहाँ याद स्वत: होगी और सर्व सम्बन्ध हैं तो एक की ही याद होगी। है ही एक तो सदा याद रहेगी ना। तो सदा सर्व सम्बन्ध से एक बाप दूसरा न कोई। सर्व सम्बन्ध से एक बाप... यही सहज विधि है, निरन्तर योगी बनने की। जब दूसरा सम्बन्ध ही नहीं तो याद कहाँ जायेगी। सर्व सम्बन्धों से सहजयोगी आत्मायें यह सदा स्मृति रखो। सदा बाप समान हर कदम में स्नेह और शक्ति दोनों का बैलेंस रखने से सफलता स्वत: ही सामने आती है। सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है। बिजी रहने के लिए काम तो करना ही है लेकिन एक है मेहनत का काम, दूसरा है खेल के समान। जब बाप द्वारा शक्तियों का वरदान मिला है तो जहाँ शक्ति है वहाँ सब सहज है। सिर्फ परिवार और बाप का बैलेंस हो तो स्वत: ही ब्लैसिंग प्राप्त हो जाती है। जहाँ ब्लैसिंग है वहाँ उड़ती कला है। न चाहते हुए भी सहज सफलता है।
4. सदा बाप और वर्सा दोनों की स्मृति रहती है? बाप कौन और वर्सा क्या मिला है यह स्मृति स्वत: समर्थ बना देती है। ऐसा अविनाशी वर्सा जो एक जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध बनाने वाला है, ऐसा वर्सा कभी मिला है? अभी मिला है, सारे कल्प में नहीं। तो सदा बाप और वर्सा इसी स्मृति से आगे बढ़ते चलो। वर्से को याद करने से सदा खुशी रहेगी और बाप को याद करने से सदा शक्तिशाली रहेंगे। शक्तिशाली आत्मा सदा मायाजीत रहेगी और खुशी है तो जीवन है। अगर खुशी नहीं तो जीवन क्या? जीवन होते भी ना के बराबर है। जीते हुए भी मृत्यु के समान है। जितना वर्सा याद रहेगा उतनी खुशी रहेगी। तो सदा खुशी रहती है? ऐसा वर्सा कोटों में कोई को मिलता है और हमें मिला है। यह स्मृति कभी भी भूलना नहीं। जितनी याद उतनी प्राप्ति। सदा याद और सदा प्राप्ति की खुशी।

कुमारों से - कुमार जीवन शक्तिशाली जीवन है। तो ब्रह्माकुमार अर्थात् रूहानी शक्तिशाली, जिस्मानी शक्तिशाली नहीं, रूहानी शक्तिशाली। कुमार जीवन में जो चाहे वह कर सकते हो। तो आप सब कुमारों ने अपने इस कुमार जीवन में अपना वर्तमान और भविष्य बना लिया, क्या बनाया? रूहानी बनाया। ईश्वरीय जीवन वाले ब्रह्माकुमार बने तो कितने श्रेष्ठ जीवन वाले हो गये। ऐसी श्रेष्ठ जीवन बन गई जो सदा के लिए दुख से और धोखे से, भटकने से किनारा हो गया। नहीं तो जिस्मानी शक्ति वाले कुमार भटकते रहते हैं। लड़ना, झगड़ना दु:ख देना, धोखा देना....यही करते हैं ना। तो कितनी बातों से बच गये। जैसे स्वयं बचे हो वैसे औरों को भी बचाने का उमंग आता है। सदा हमजिन्स को बचाने वाले। जो शक्तियाँ मिली हैं वह औरों को भी दो। अखुट शक्तियाँ मिली है ना। तो सबको शक्तिशाली बनाओ। निमित्त समझकर सेवा करो। मैं सेवाधारी हूँ, नहीं। बाबा कराता है मैं निमित्त हूँ। निमित्त समझकर सेवा करो। मैं सेवाधारी हूँ नहीं। बाबा कराता है मैं निमित्त हूँ। मैं पन वाले नहीं। जिसमें मैं पन नहीं है वह सच्चे सेवाधारी हैं।
युगलों से - सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हो? स्व का राज्य अर्थात् सदा अधिकारी। अधिकारी कभी अधीन नहीं हो सकते। अधीन हैं तो अधिकार नहीं। जैसे रात है तो दिन नहीं। दिन है तो रात नहीं। ऐसे अधिकारी आत्मायें किसी भी कर्मेन्द्रियों के, व्यक्ति के, वैभव के अधीन नहीं हो सकते। ऐसे अधिकारी हो? जब मास्टर सर्वशक्तिवान बन गये तो क्या हुए? अधिकारी। तो सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं, इस समर्थ स्मृति से सदा सहज विजयी बनते रहेंगे। स्वप्न में भी हार का संकल्प मात्र न हो। इसको कहा जाता है - सदा के विजयी। माया भाग गई कि भगा रहे हो? इतना भगाया है जो वापस न आये। किसको वापस नहीं लाना होता है तो उसको बहुत-बहुत दूर छोड़कर आते हैं। तो इतना दूर भगाया है। अच्छा
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में एक बाप को अपना संसार बनाने वाले स्वत: और सहजयोगी भव
ब्राह्मण जीवन में सभी बच्चों का वायदा है - "एक बाप दूसरा न कोई''। जब संसार ही बाप है, दूसरा कोई है ही नहीं तो स्वत: और सहजयोगी स्थिति सदा रहेगी। अगर दूसरा कोई है तो मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ बुद्धि न जाए, वहाँ जाए। लेकिन एक बाप ही सब कुछ है तो बुद्धि कहाँ जा नहीं सकती। ऐसे सहजयोगी, सहज स्वराज्य अधिकारी बन जाते हैं। उनके चेहरे पर रूहानियत की चमक एकरस एक जैसी रहती है।
स्लोगन:-
बाप समान अव्यक्त वा विदेही बनना - यही अव्यक्त पालना का प्रत्यक्ष सबूत है। सूचना:- आज मास का तीसरा रविवार है। सभी भाई बहिनें संगठित रूप में सायं 6.30 से 7.30 बजे तक प्रकृति सहित सर्व आत्माओं को शान्ति और शक्ति की सकाश देने की सेवा करें।