Saturday, June 1, 2019

30-05-19 प्रात:मुरली

30-05-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप समान रहमदिल बनो, रहमदिल बच्चे सबको दु:खों से छुड़ाकर पतित से पावन बनाने की सेवा करेंगे”
प्रश्नः-
सारी दुनिया की मांग क्या है? जो बाप के सिवाए कोई पूरी नहीं कर सकता?
उत्तर:-
सारी दुनिया की मांग है शान्ति और सुख मिले। सभी बच्चों की पुकार सुनकर बाप आते हैं। बाबा बेहद का है इसलिए उसे बहुत फुरना है कि मेरे बच्चे कैसे दु:खी से सुखी बनें। बाबा कहते - बच्चे, पुरानी दुनिया भी मेरी है, मेरे ही सब बच्चे हैं, मैं आया हूँ सबको दु:खों से छुड़ाने। मैं सारी दुनिया का मालिक हूँ, इसे मुझे ही पतित से पावन बनाना है।
ओम् शान्ति।
बाप पावन बना रहे हैं बच्चों को। तो जरूर बाप से प्यार चाहिए। भल भाइयों-भाइयों का आपस में प्यार तो ठीक है। एक बाप के सब बच्चे आपस में भाई-भाई हैं। परन्तु पावन बनाने वाला एक बाप ही है इसलिए सब बच्चों का लॅव एक बाप में ही चला जाता है। बाप कहते हैं - बच्चों, मामेकम् याद करो। यह तो ठीक है तुम भाई-भाई हो तो जरूर क्षीरखण्ड ही होंगे। एक बाप के बच्चे हो। आत्मा में ही इतना प्यार है। जबकि देवताई पद प्राप्त करते हो तो आपस में बहुत ही प्यार होना चाहिए। हम भाई-भाई बनते हैं। बाप से वर्सा लेते हैं। बाप आकर सिखलाते हैं। जो समझने वाले होते हैं वह समझते हैं यह स्कूल वा बड़ी युनिवर्सिटी है। बाप सबको दृष्टि देते हैं वा याद करते हैं। बेहद के बाप को सारी दुनिया के मनुष्य मात्र सभी आत्मायें याद करती हैं। बाप की ही सारी दुनिया है - नई वा पुरानी। नई दुनिया बाप की है तो पुरानी नहीं है क्या? बाप ही सभी को पावन बनाते हैं। पुरानी दुनिया भी मेरी है। सारी दुनिया का मालिक मैं ही हूँ। भल मैं नई दुनिया में राज्य नहीं करता हूँ परन्तु है तो मेरी ना। मेरे बच्चे मेरे इस बड़े घर में भी बहुत सुखी रहते हैं और फिर दु:ख भी पाते हैं। यह खेल है। यह सारी बेहद की दुनिया हमारा घर है। यह बड़ा माण्डवा है ना। बाप जानते हैं सारे घर में हमारे बच्चे हैं। सारी दुनिया को देखते हैं। सब चैतन्य हैं। सभी बच्चे इस समय दु:खी हैं इसलिए पुकारते हैं बाबा हमको छी छी, दु:खी दुनिया से शान्ति की दुनिया में ले चलो, शान्ति देवा। बाप को ही पुकारते हैं। देवताओं को तो कह न सकें। सबका वह एक बाप है। उनको सारे सृष्टि का फुरना रहता है। बेहद का घर है। बाप जानते हैं इस बेहद घर में इस समय सब दु:खी हैं इसलिए कहते हैं शान्ति देवा, सुख देवा। दो चीज़ें मांगते हैं ना। अभी तो जानते हो हम बेहद के बाप से सुख का वर्सा ले रहे हैं। बाप आकर हमको सुख भी देते हैं, शान्ति भी देते हैं। और कोई सुख-शान्ति तो देने वाला है नहीं। बाप को ही तरस पड़ेगा। वह है बेहद का बाप। तुम समझते हो हम बाबा के बच्चे बहुत सुखी थे जबकि पवित्र थे। अब अपवित्र बनने से दु:खी हो जाते हैं। काम चिता पर बैठ काले पतित बन जाते हैं। मूल बात है कि बाप को भूल जाते हैं। जिस बाप ने इतना ऊंच पद दिया। गाते भी हैं ना तुम मात पिता.... सुख घनेरे थे। सो फिर तुम अभी ले रहे हो क्योंकि अब दु:ख घनेरे हैं। यह है तमोप्रधान दुनिया। विषय सागर में गोते खाते रहते हैं। समझते कुछ नहीं है। तुमको अब समझ आई है। तुम समझते हो कि यह रौरव नर्क है।

बाप बच्चों से पूछते हैं - अभी तुम नर्कवासी हो या स्वर्गवासी हो? जब कोई मरता है तो झट कह देते हैं स्वर्गवासी हुआ अर्थात् सब दु:खों से दूर हुआ। फिर नर्क की चीज़ें उनको क्यों खिलाते हो? यह भी समझते नहीं। बाप आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं। तुम बच्चों को राजयोग सिखलाते हैं। बाप कहते हैं मीठे बच्चे, मैं तुमको यह नॉलेज सुनाता हूँ। मेरे में ही यह नॉलेज है। ज्ञान सागर मैं हूँ। कहते हैं यह शास्त्रों की अथॉरिटी है। लेकिन वह भी आत्मायें हैं ना, यह भी समझते नहीं। बाप का ही पता नहीं है। बाप जो विश्व का मालिक बनाते हैं उनके लिए कहते हैं ठिक्कर भित्तर सबमें है। व्यास भगवान् ने क्या-क्या बातें लिख दी हैं। मनुष्यों को कुछ भी पता नहीं है। बिल्कुल आऱफन बन आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। बाप रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को कोई नहीं जानते हैं। बाप अपना और रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं। और तो कोई बता न सके। तुम कोई से भी पूछो - जिसको ईश्वर, भगवान्, रचता कहते हो उनको तुम जानते हो? क्या ठिक्कर-भित्तर में ईश्वर कहना ही जानना है? पहले अपने को तो समझो। मनुष्य तमोप्रधान हैं तो जानवर आदि सब तमोप्रधान हैं। मनुष्य सतोप्रधान हैं तो सब सुखी बन जाते हैं। जैसा मनुष्य, वैसा उनका फर्नीचर भी होता है। साहूकार लोगों का फर्नीचर भी अच्छा होता है। तुम तो बिल्कुल सुखी विश्व के मालिक बनते हो तो तुम्हारे पास हर चीज़ सुखदाई है। वहाँ दु:खदाई कोई चीज़ होती नहीं। यह नर्क है ही गन्दी दुनिया।

बाप आकर समझाते हैं भगवान् तो एक ही है, वही पतित-पावन है। स्वर्ग की स्थापना करते हैं। देवताओं की महिमा भी गाते हैं सर्वगुण सम्पन्न.....। मन्दिरों में जाकर देवताओं की उपमा, अपनी निंदा करते हैं क्योंकि सभी भ्रष्टाचारी हैं। श्रेष्ठाचारी, स्वर्गवासी तो यह लक्ष्मी-नारायण हैं, जिनकी सब पूजा करते हैं। सन्यासी भी करते हैं। सतयुग में ऐसे नहीं होता। तुम्हारा सन्यास है बेहद का। बेहद का बाप आकर बेहद का सन्यास कराते हैं। वह है हठयोग, हद का सन्यास। वह धर्म ही दूसरा है। बाप कहते हैं तुम अपने धर्म को भूल कितने धर्मों में घुस पड़े हो। अपने भारत का नाम ही हिन्दुस्तान रख दिया है और फिर हिन्दू धर्म कह दिया है। वास्तव में हिन्दू धर्म तो कोई ने स्थापन ही नहीं किया है। मुख्य धर्म हैं ही चार - देवी-देवता, इस्लामी, बौद्धी और क्रिश्चियन। तुम जानते हो यह सारी दुनिया आइलैण्ड है, इसमें रावण का राज्य है। रावण देखा है? जिनको घड़ी-घड़ी जलाते हैं, यह सबसे पुराना दुश्मन है। यह भी समझते नहीं कि हम क्यों जलाते हैं? समझ चाहिए ना - यह कौन है? कब से जलाते आये हैं? समझते हैं परम्परा से। अरे, उनका भी कोई हिसाब तो चाहिए ना। तुमको कोई जानते ही नहीं। तुम हो ब्रह्मा के बच्चे। तुमसे कोई पूछे तुम किसके बच्चे हो? अरे, हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं तो उनके बच्चे ठहरे ना। ब्रह्मा किसका बच्चा? शिवबाबा का। हम उनके पौत्रे ठहरे। सभी आत्मायें उनके बच्चे हैं। फिर शरीर में पहले ब्राह्मण बनते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है ना। इतनी प्रजा कैसे रचते हैं, यह तुम जानते हो। यह एडाप्शन है। शिवबाबा एडाप्ट करते हैं ब्रह्मा द्वारा। मेला भी लगता है। वास्तव में मेला वहाँ लगना चाहिए जहाँ ब्रह्मपुत्रा बड़ी नदी सागर में जाकर मिलती है। उस संगम पर मेला लगना चाहिए। यह मेला यहाँ है। ब्रह्मा बैठा है, तुम जानते हो बाप भी है और बड़ी मम्मा भी तो यह है। परन्तु मेल है इसलिए मम्मा को मुकरर किया जाता है कि तुम इन माताओं को सम्भालो। बाप कहते हैं मैं तुमको सद्गति देता हूँ। तुम जानते हो यह देवतायें हैं डबल अहिंसक क्योंकि वहाँ रावण होता ही नहीं। भक्ति से होती है रात, ज्ञान से दिन। ज्ञान सागर एक बाप ही है, उनके लिए फिर कह देते हैं सर्वव्यापी। बाप ही आकर यह समझाते हैं और बच्चों को ही समझाते हैं। शिव भगवानुवाच है ना। शिव जयन्ती मनाते हैं तो जरूर कोई में आते हैं। कहते हैं मुझे प्रकृति का आधार लेना पड़ता है। मैं कोई छोटे बच्चे का आधार नहीं लेता हूँ। कृष्ण तो बच्चा है ना। मैं तो उनके बहुत जन्मों के अन्त में सो भी वानप्रस्थ अवस्था में प्रवेश करता हूँ। वानप्रस्थ अवस्था के बाद ही मनुष्य भगवान् को सिमरण करते हैं। परन्तु भगवान् को यथार्थ कोई भी जानते नहीं। तब बाप कहते हैं यदा यदाहि..... मैं भारत में ही आता हूँ। भारत की महिमा अपरम्पार है।

मनुष्यों को देह का अहंकार देखो कितना है - मैं फलाना हूँ, यह हूँ! अब बाप आकर तुमको देही-अभिमानी बनाते हैं। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ ज्ञान के सब राज़ बताते हैं। यह है पुरानी दुनिया। सतयुग है नई दुनिया। सतयुग में आदि सनातन देवी-देवता धर्म ही था। 5 हज़ार वर्ष की बात है। शास्त्रों में फिर व्यास ने लिख दिया है, कल्प की आयु लाखों हज़ार वर्ष है। वास्तव में है 5 हजार वर्ष का कल्प। मनुष्य बिल्कुल अज्ञान की, कुम्भकरण की नींद में सोये पड़े हैं। अभी तुम्हारी यह बातें कोई नया सुनेगा तो समझ नहीं सकेगा इसलिए बाप कहते हैं मैं अपने बच्चों से ही बात करता हूँ। भक्ति भी तुम ही शुरू करते हो। अपने को ही चमाट मारी है। बाप ने तुमको पूज्य बनाया, तुम फिर पुजारी बन जाते हो। यह भी खेल है। कोई-कोई मनुष्य नर्म दिल होते हैं तो खेल देखकर भी रो पड़ते हैं। बाप तो कहते हैं जिन रोया तिन खोया। सतयुग में रोने की बात नहीं। यहाँ भी बाप कहते हैं रोना नहीं है। रोते हैं द्वापर-कलियुग में। सतयुगी कभी रोते नहीं हैं। पिछाड़ी में तो किसको रोने की फुर्सत ही नहीं रहेगी। अचानक मरते रहेंगे। हाय राम भी नहीं कह सकेंगे। विनाश ऐसा होगा जो जरा भी दु:ख नहीं होगा क्योंकि हॉस्पिटल आदि तो रहेंगी नहीं इसलिए चीज़ें ही ऐसी बनाते हैं। तो बाप समझाते हैं तुम बन्दरों की मैं सेना लेता हूँ, रावण पर जीत पाने के लिए। अब बाप तुमको युक्ति बताते हैं - रावण पर जीत कैसे पानी है? सब सीताओं को रावण की जंजीरों से छुड़ाना है। यह सब समझने की बातें हैं। भगवानुवाच, बच्चों को ही बाप कहते हैं हियर नो ईविल.... जिन बातों से तुम्हें कोई फायदा नहीं, उनसे तुम अपने कान बन्द कर लो। अब तुमको श्रीमत मिलती है। तुम ही श्रेष्ठ बनेंगे। यहाँ तो श्री श्री का टाइटिल सबको दे दिया है। अच्छा, फिर भी बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। कितना वन्डरफुल हार-जीत का यह बेहद का खेल है जो बाप ही समझाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप समान रहमदिल बनना है। सबको दु:खों से छुड़ा कर पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है। पावन बनने के लिए एक बाप से बहुत-बहुत लॅव रखना है।
2) बाप कहते हैं जिन रोया तिन खोया इसलिए कैसी भी परिस्थिति हो तुम्हें रोना नहीं है।
वरदान:-
परमपूज्य बन परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त करने वाले सम्पूर्ण स्वच्छ आत्मा भव
सदा ये स्मृति जीवन में लाओ कि मैं पूज्य आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में विराजमान हूँ। ऐसी पूज्य आत्मा ही सर्व की प्यारी है। उनकी जड़ मूर्ति भी सबको प्यारी लगती है। कोई आपस में भल झगड़ते हों लेकिन मूर्ति को प्यार करेंगे क्योंकि उनमें पवित्रता है। तो अपने आपसे पूछो मन-बुद्धि सम्पूर्ण स्वच्छ बनी है, जरा भी अस्वच्छता मिक्स तो नहीं है? जो ऐसे सम्पूर्ण स्वच्छ हैं वही परमात्म प्यार के अधिकारी हैं।
स्लोगन:-
ज्ञान के खजाने को स्वयं में धारण कर हर समय, हर कर्म समझ से करने वाले ही ज्ञानी-तू आत्मा हैं।