Sunday, March 24, 2019

23-03-2019 प्रात:मुरली

23-03-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - यह नॉलेज बिल्कुल शान्ति की है, इसमें कुछ भी बोलना नहीं है सिर्फ शान्ति के सागर बाप को याद करते रहो"
प्रश्नः-
उन्नति का आधार क्या है? बाप की शिक्षाओं को धारण कब कर सकेंगे?
उत्तर:-
उन्नति का आधार है लव (प्यार), एक बाप से सच्चा प्यार चाहिए। नज़दीक रहते भी यदि उन्नति नहीं होती तो जरूर लव की कमी है। लव हो तो बाप को याद करें। याद करने से सब शिक्षाओं को धारण कर सकते हैं। उन्नति के लिए अपना सच्चा-सच्चा चार्ट लिखो। बाबा से कोई भी बात छिपाओ नहीं। आत्म-अभिमानी बनते खुद को सुधारते रहो।
ओम् शान्ति।
बच्चे अपने को आत्मा समझकर बैठो और बाप को याद करो। बाबा पूछते हैं जब भी कहाँ सभा में भाषण करते हो, तो घड़ी-घड़ी यह पूछते हो कि तुम अपने को आत्मा समझते हो या देह? अपने को आत्मा समझकर यहाँ बैठो। आत्मा ही पुनर्जन्म में आती है। अपने को आत्मा समझ परमपिता परमात्मा को याद करो। बाप को याद करने से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे, इसको योग-अग्नि कहा जाता है। निराकार बाप निराकारी बच्चों को कहते हैं - मुझे याद करने से तुम्हारे पाप कट जायेंगे और तुम पावन बन जायेंगे। फिर तुम मुक्ति-जीवनमुक्ति को पायेंगे। सभी को मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति में आना है जरूर। तो घड़ी-घड़ी यह कहना पड़े कि अपने को आत्मा निश्चय करके बैठो। भाइयों और बहनों, अपने को आत्मा समझ बैठो और बाप को याद करो। यह फ़रमान बाप ने ही दिया है। यह है याद की यात्रा। बाप कहते हैं मेरे साथ बुद्वि का योग लगाओ तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे। यह घड़ी-घड़ी तुम याद करायेंगे, समझायेंगे, तब समझेंगे कि आत्मा अविनाशी है, देह विनाशी है। अविनाशी आत्मा ही विनाशी देह धारण कर पार्ट बजाय एक शरीर छोड़ फिर दूसरा लेती है। आत्मा का स्वधर्म तो शान्ति है। वह अपने स्वधर्म को भी नहीं जानते हैं। अब बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। मूल बात यह है। पहले-पहले तुम बच्चों को यही मेहनत करनी है। बेहद का बाप आत्माओं को कहते हैं, इसमें कोई शास्त्र उठाने की दरकार नहीं। तुम गीता का मिसाल देते हो तो भी कहते हैं तुम सिर्फ गीता उठाते हो, वेदों का नाम क्यों नहीं लेते हो। बाबा ने कहा - उनसे पूछो वेद किस धर्म का शास्त्र है?

(कहते हैं आर्य धर्म का) आर्य किसको कहते हैं? हिन्दू धर्म तो है नहीं। आदि सनातन तो है ही देवी-देवता धर्म। फिर आर्य कौन-सा धर्म है? आर्य तो आर्य समाजियों का धर्म होगा। आर्य धर्म तो नाम ही नहीं है। आर्य धर्म किसने स्थापन किया? तुमको वास्तव में गीता को भी नहीं उठाना है। पहली बात है - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। इस समय सब हैं तमोप्रधान। पहले-पहले तो बाप का ही परिचय देना है। महिमा भी बाप की करनी है। यह भी तुम तब कह सकेंगे जब तुम खुद बाप को याद करते होंगे। इस बात की बच्चों में कमजोरी है।

बाबा हमेशा कहते हैं याद की यात्रा का चार्ट रखो। दिल से हर एक पूछे - हम कहाँ तक याद करते हैं? तुम बच्चों की दिल में अथाह खुशी रहनी चाहिए। तुमको अन्दरूनी खुशी होगी तो दूसरों को भी समझाने का असर होगा। पहली मूल बात यही कहना है कि भाईयों और बहनों, अपने को आत्मा समझो। ऐसे और कोई सतसंग में नहीं कहेंगे। वास्तव में सतसंग कोई है नहीं। सत का संग एक ही है। बाकी है कुसंग। यहाँ है बिल्कुल नई बात। वेदों से तो कोई धर्म स्थापन हुआ ही नहीं है। तो हम वेदों को क्यों उठायें। कोई में भी यह नॉलेज है नहीं। खुद ही कहते हैं नेती-नेती अर्थात् हम नहीं जानते हैं। तो नास्तिक हुए ना। अब बाप स्वयं कहते हैं आस्तिक बनो, अपने को आत्मा समझो। यह बातें गीता में कुछ हैं। वेदों में हैं नहीं। वेद, उपनिषद तो ढेर हैं। अब वह किस धर्म का शास्त्र है? मनुष्य तो अपनी बातें करते हैं। तुमको किसका भी सुनना नहीं है। बाप तो सहज समझाते हैं - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे इसलिए वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानना है। तुम्हारा यह त्रिमूर्ति गोला है मुख्य, इनमें सब धर्म आ जाते हैं। पहले-पहले है देवी-देवता धर्म। बाबा ने कहा है - त्रिमूर्ति गोला बड़ा-बड़ा बनाकर देहली के मुख्य स्थान पर, जहाँ आना-जाना बहुत हो, वहाँ लगा दो। टीन सीट पर हो। सीढ़ी में तो और धर्मों का नहीं आता है। मुख्य यह दो चित्र हैं। समझाना ही इस पर है। पहले है बाप का परिचय। बाप से ही वर्सा मिलता है। इस बात का निश्चय कराने बिगर तुम्हारा कुछ भी कोई समझ नहीं सकेगा। एक बाप को ही नहीं समझा है तो दूसरे चित्रों पर ले जाना ही फालतू है। अल़फ को समझने बिगर कुछ भी समझेंगे नहीं। बाप के परिचय बिगर और कोई भी बात न करो। बाप से ही बेहद का वर्सा मिलता है। बाबा ख्याल करता है, ऐसी सहज बात क्यों नहीं समझते हैं। तुम्हारी आत्मा का बाप वह शिव है, उनसे ही वर्सा मिलता है। तुम सब आपस में ब्रदर्स हो। जब इस बात को भूलते हो तब तमोप्रधान बन जाते हो। अब बाप को याद करो तो सतोप्रधान बन जायेंगे। मूल बात है ही रचयिता और रचना को जानना। कोई भी जानते नहीं। ऋषि-मुनि भी जानते नहीं थे। तो पहले बाप का परिचय दे सबको आस्तिक बनाना है। बाप कहते हैं मुझे जानने से तुम सब-कुछ जान जायेंगे। मुझे नहीं जाना तो कुछ भी तुम समझेंगे नहीं। मुफ्त तुम अपना समय वेस्ट करते हो। चित्र आदि भी जो ड्रामानुसार बने हैं, वही ठीक हैं। परन्तु तुम इतनी मेहनत करते हो फिर भी किसकी बुद्वि में बैठता नहीं है। बच्चे कहते हैं - बाबा, क्या हमारे समझाने में कोई भूल है? बाबा फट से कह देते - हाँ, भूल है। अल़फ को ही नहीं समझा है तो फट से रवाना कर दो। बोलो, जब तक बाप को नहीं जाना, तब तक तुम्हारी बुद्वि में कुछ भी बैठेगा नहीं। तुम भी जब देही-अभिमानी अवस्था में नहीं रहते हो तो आंखें क्रिमिनल रहती हैं। सिविल तब बनेंगी जब अपने को आत्मा समझेंगे। देही-अभिमानी होंगे तो फिर तुमको आंखें धोखा नहीं देंगी। देही-अभिमानी नहीं तो माया धोखा देती रहेगी इसलिए पहले तो आत्म-अभिमानी बनना है। बाबा कहते हैं अपना चार्ट दिखाओ तो मालूम पड़े। अगर अभी तक झूठ, पाप, गुस्सा है तो अपना ही सत्यानाश करते हो। बाबा चार्ट देखकर समझ जाते हैं कि यह सत्य लिखा है या अर्थ भी नहीं समझा है। सब बच्चों को बाबा कहते हैं - चार्ट लिखो। जो बच्चे योग में नहीं रहते वह इतनी सर्विस भी नहीं कर सकते। जौहर नहीं भरता है। भल बाबा कहते हैं कोटों में कोई निकलेगा, परन्तु जब तुम खुद ही योग में नहीं रहते तो दूसरों को फिर कैसे कहेंगे।

सन्यासी कहते हैं सुख काग विष्टा समान है। वह सुख का नाम ही नहीं लेते हैं। तुम जानते हो भक्ति अथाह है, उसमें कितनी आवाज़ है, तुम्हारी नॉलेज तो बहुत शान्ति की है। बोलो, शान्ति का सागर तो बाप ही है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। बाप कहते हैं मनमनाभव। यह अक्षर भी नहीं कहो। हिन्दुस्तान की है हिन्दी भाषा। फिर संस्कृत दूसरी भाषा क्यों? अब इन सब भाषाओं को छोड़ो। पहले तुम भाषण करो कि अपने को आत्मा समझो। बहुत हैं जो अपने को आत्मा भी नहीं समझ सकते, याद नहीं कर सकते। अपने घाटे को कोई समझ न सकें। कल्याण तो है ही बाप की याद में। और कोई सतसंग में ऐसे नहीं कहते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। बच्चे कभी बाप को एक जगह बैठ याद करते हैं क्या! उठते-बैठते बाप की याद है ही। आत्म-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है। तुम बहुत बोलते हो, इतना बोलना नहीं चाहिए। मूल बात है याद के यात्रा की। योग अग्नि से ही तुम पावन बनेंगे। इस समय सब दु:खी हैं। सुख मिलता ही है पावन बनने से। तुम आत्म-अभिमानी हो किसको समझायेंगे तो उनको तीर लगेगा। कोई खुद विकारी हैं और किसको कहें निर्विकारी बनो तो उनको तीर नहीं लगेगा। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम खुद याद की यात्रा पर नहीं रहते इसलिए तीर भी नहीं लगता।

अब बाप कहते हैं - बीती सो बीती। पहले अपने को सुधारो। दिल से पूछो - हम अपने को आत्मा समझ बाप को कितना याद करते हैं? जो बाप हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। हम शिवबाबा के बच्चे हैं, तो जरूर हमको विश्व का मालिक बनना है। वही एक माशूक आकर तुम्हारे सामने खड़ा हुआ है, तो उनके साथ बहुत लव होना चाहिए। लव माना याद। शादी होती है तो स्त्री का पति के साथ कितना लव होता है। तुम्हारी भी सगाई हुई है, शादी नहीं। वह तो जब विष्णुपुरी में जायेंगे। पहले शिवबाबा के पास जायेंगे फिर ससुर घर जायेंगे। सगाई की खुशी कम होती है क्या! सगाई हुई और याद पक्की हुई। सतयुग में भी सगाई होती है। परन्तु वहाँ सगाई कब टूटती नहीं है। अकाले मृत्यु नहीं होती। यह तो यहाँ होती है। तुम बच्चों को भी गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है। भल बहुत नज़दीक भी रहते हैं फिर भी उन्नति नहीं होती है। जो उस लव से आते हैं, उनकी बहुत उन्नति होती है। याद ही नहीं तो लव भी नहीं रहता। तो उनकी शिक्षाओं को भी धारण नहीं कर सकते।

भगवानुवाच - तुम बच्चे सबको यही पैगाम दो कि काम महाशत्रु है जो आदि-मध्य-अन्त दु:ख देता है। तुम तो पवित्र सतयुग के मालिक थे। अभी तुम गिरकर गन्दे बन पड़े हो। अब यह अन्तिम जन्म फिर से पवित्र बनो। काम चिता पर बैठने का हथियाला कैन्सिल करो। तुम बच्चे जब योग में बोलेंगे तब किसकी बुद्वि में बैठेगा। ज्ञान तलवार में योग का जौहर चाहिए। पहली मुख्य है एक बात। बच्चे कहते हैं - बाबा, हम बहुत मेहनत करते हैं तब मुश्किल कोई निकलता है। बाबा कहते हैं योग में रहकर समझाओ। याद की यात्रा की मेहनत करो। रावण से हारकर विकारी बने हो, अब निर्विकारी बनो। बाप की याद से तुम्हारी सब मनोकामनायें पूर्ण हो जायेंगी। बाबा स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। बाबा डायरेक्शन तो बहुत देते हैं परन्तु बच्चे अच्छी तरह कैच नहीं करते हैं, और-और बातों में चले जाते हैं। मुख्य तो बाप का पैगाम दो। परन्तु खुद ही याद नहीं करेंगे तो दूसरों को कैसे कहेंगे? ठगी नहीं चलेगी। दूसरों को कहे - विकार में नहीं जाओ, खुद जाये, तो जरूर दिल खायेगी। ऐसे भी ठग हैं इसलिए बाबा कहते हैं मूल बात है ही अल्फ। अल्फ को जानने से तुम सब-कुछ जान जायेंगे। अल्फ को न जानने से तुम कुछ भी समझ नहीं सकेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्दरूनी बाप के याद की खुशी में रहकर फिर दूसरों को बाप का परिचय देना है, सबको एक बाप की महिमा सुनानी है।
2) आत्म-अभिमानी बनने की बहुत प्रैक्टिस करनी है, बहुत बोलना नहीं है। बीती सो बीती कर पहले स्वयं को सुधारना है। याद की यात्रा का सच्चा चार्ट रखना है।
वरदान:-
अपने संकल्पों को शुद्ध, ज्ञान स्वरूप और शक्ति स्वरूप बनाने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
बाप समान बनने के लिए पवित्रता का फाउन्डेशन पक्का करो। फाउन्डेशन में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना ये तो कॉमन बात है, सिर्फ इसमें खुश नहीं हो जाओ। दृष्टि वृत्ति की पवित्रता को और भी अन्डरलाइन करो साथ-साथ अपने संकल्पों को शुद्ध, ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप बनाओ। संकल्प में अभी बहुत कमजोरी है। इस कमजोरी को भी समाप्त करो तब कहेंगे सम्पूर्ण पवित्र आत्मा।
स्लोगन:-
दृष्टि में सबके प्रति रहम और शुभ भावना हो तो अभिमान वा अपमान का अंश भी नहीं आ सकता।