Tuesday, January 29, 2019

30-01-2019 प्रात:मुरली

30-01-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम राजऋषि हो, तुम्हें राजाई प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना है, साथ-साथ दैवी गुण भी ज़रूर धारण करने हैं।''
प्रश्नः-
उत्तम पुरुष बनने का पुरुषार्थ क्या है? किस बात पर बहुत अटेन्शन चाहिए?
उत्तर:-
उत्तम पुरुष बनना है तो पढ़ाई से कभी रूठना नहीं। पढ़ाई से लड़ने झगड़ने का तैलुक नहीं। पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे नवाब..इसलिए सदा अपनी उन्नति का ख्याल रहे। चलन पर बहुत अटेन्शन चाहिए। देवताओं जैसा बनना है तो चलन बड़ी रॉयल चाहिए। बहुत-बहुत मीठा बनना है। मुख से ऐसे बोल निकलें जो सबको मीठे लगे। किसी को दु:ख न हो।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति बाप बैठ समझाते हैं और पूछते हैं कि आपकी बुद्धि का ठिकाना कहाँ है? मनुष्यों की बुद्धि तो भटकती है, कभी कहाँ, कभी कहाँ। बाप समझाते हैं तुम्हारी बुद्धि का भटकना बन्द। बुद्धि को एक ठिकाने लगाओ। बेहद के बाप को ही याद करो। यह तो रूहानी बच्चे जानते हैं अब सारी दुनिया तमोप्रधान है। आत्मायें ही सतोप्रधान थीं नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। अब तमोप्रधान बनी हैं फिर बाप कहते हैं सतोप्रधान बनना है इसलिए अपनी बुद्धि को बाप के साथ लगाओ। अब वापिस जाना है और कोई को भी पता नहीं कि हमको वापिस घर जाना है। और कोई भी नहीं होगा जिसको डायरेक्शन मिलते हों कि बच्चे मुझ बाप को याद करो। कितनी सहज बात समझाते हैं। सिर्फ बाप को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे और कोई ऐसे समझा न सके, बाप ही समझाते हैं। जिसमें प्रवेश किया वह भी सुनते हैं। पतित से पावन बनने की और उस पर चलने की सबसे अच्छी मत बाप देते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे तुम ही सतोप्रधान थे अब फिर बनना है। तुम ही आदि सनातन देवी देवता धर्म के थे फिर 84 जन्म भोग कौड़ी मिसल बन पड़े हो। तुम हीरे मिसल थे अब फिर बनना है। बाबा बहुत सिम्पुल बात सुनाते हैं कि अपने को आत्मा समझो। आत्माओं को ही वापिस जाना है, शरीर तो नहीं जायेगा। बाप के पास खुशी से जाना है। बाप जो श्रीमत देते हैं, उससे ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे। पवित्र आत्मायें मूलवतन में जाकर फिर आयेंगी तो नया शरीर लेंगी। यह तो निश्चय है ना, तो फिर वही तात लगी रहे। दैवी गुण भी धारण करने हैं तो बहुत फायदा होगा। स्टूडेन्ट जो अच्छी पढ़ाई पढ़ते हैं वही ऊंच पद पाते हैं। यह भी पढ़ाई है। तुम कल्प-कल्प ऐसे ही पढ़ते हो। बाप भी कल्प-कल्प ऐसे ही पढ़ाते हैं। जो टाइम पास हुआ वह ड्रामा। ड्रामा अनुसार ही बाप की और बच्चों की एक्ट चली। बाबा राय तो ठीक देते हैं ना। बच्चे कहते हैं बाबा हम आपको घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। यही तो माया के तूफान हैं। माया दीवा बुझा देती है। बाप को शमा भी कहते हैं, सर्वशक्तिमान् अथॉरिटी भी कहते हैं। जो भी वेद शास्त्र हैं सबका सार बतलाते हैं। वह नॉलेजफुल है सृष्टि के आदि मध्य अन्त का राज़ समझाते हैं। यह ब्रह्मा बाबा भी कहेंगे हम बच्चों को समझाते हैं। बाप कहेंगे तुम बच्चों को समझाता हूँ। उसमें यह ब्रह्मा भी आ जाता है। इसमें मूँझने की बात नहीं। यह है बहुत सहज राजयोग। तुम राजऋषि हो, ऋषि पवित्र आत्मा को कहा जाता है। तुम्हारे जैसा ऋषि तो कोई हो न सके। आत्मा को ही ऋषि कहा जाता है। शरीर को नहीं कहेंगे। आत्मा है ऋषि। राजऋषि। राज्य कहाँ से लेते हैं? बाप से। तो तुम बच्चों को कितनी खुशी रहनी चाहिए। हम शिवबाबा से राज्य भाग्य ले रहे हैं। बाप ने स्मृति दिलाई है तुम विश्व के मालिक थे, फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे उतरते आये हो। देवताओं के चित्र भी हैं। मनुष्य समझते हैं यह ज्योति ज्योत समा गये। अब बाप ने समझाया है एक भी मनुष्य ज्योति ज्योत नहीं समाता। कोई भी मुक्ति जीवनमुक्ति पा नहीं सकते। तो सारा दिन अन्दर में बच्चों के विचार चलने चाहिए। जितना याद में रहेंगे उतना खुशी होगी। पढ़ाई पढ़ाने वाला देखो कौन है।

कृष्ण को लार्ड कृष्णा भी कहते हैं। भगवान को कभी लार्ड नहीं कहेंगे। उनको गाड फादर ही कहते हैं। वह है हेविनली गाड फादर। तुमको अब दिल से लगता है कि वही हेविनली गाड फादर हेविन अर्थात् दैवी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। सतयुग में दूसरा कोई धर्म था नहीं। चित्र भी इन देवताओं के हैं, उनको ही आदि सनातन देवी देवता कहा जाता है। यह विश्व के मालिक थे। उन्हों को कहेंगे सतयुगी, तुम हो संगमयुगी। तुम जानते हो बाबा हमको राइटियस बनाते हैं। तुम राइटियस बनते जाते हो। विकारी को अनराइटियस कहा जाता है। यह देवतायें पवित्र हैं। लाइट भी पवित्रता की दिखाई है। अनराइटियस माना एक भी कदम राइट नहीं। शिवालय से उतर वेश्यालय में आ जाते हैं। यह बातें नया कोई समझ न सके। जब तक तुम उनको बाप का परिचय अच्छी तरह न दो कि वह है हेविनली गाड फादर। हेविन और हेल दोनों अक्षर हैं। सुख और दु:ख, स्वर्ग और नर्क। तुम जानते हो भारत में सुख था, अभी दु:ख है, फिर बाप आकर सुख देते हैं। अब दु:ख का समय खत्म होना है। बाबा बच्चों के लिए सुख की सौगात ले आते हैं। सबको सुख देते हैं तब तो सब उनकी बन्दगी करते हैं। सन्यासी, उदासी भी तपस्या करते हैं, उनको भी कोई न कोई आश जरूर रहती है। सतयुग में ऐसी कोई बात नहीं। वहाँ और कोई धर्म वाले होते ही नहीं। तुम तो अब पुरुषार्थ कर रहे हो नई दुनिया में जाने के लिए। जानते हो वह है सुखधाम, वह है शान्तिधाम, यह है दु:खधाम। तुम अभी संगम पर हो, उत्तम पुरुष बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। पुरुषार्थ बहुत अच्छी रीति करना है। पढ़ाई से कभी रूठना नहीं है। कोई से अनबनी होती है तो पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए। पढ़ाई से लड़ने झगड़ने का तैलुक नहीं है। पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे नवाब.....लड़ेंगे झगड़ेंगे तो नवाब कैसे बनेंगे, फिर तमोप्रधान चलन हो जाती है। हर एक को अपनी उन्नति का ख्याल करना चाहिए। बाप कहते हैं हे आत्मायें बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और दैवीगुण भी धारण होंगे। अगर लक्ष्मी-नारायण जैसा बनना है तो बाप ने ही उन्हों को भी ऐसा बनाया। बाप कहते हैं तुम ही यह राज्य करते थे। अब फिर तुमको ही बनना है। राजयोग बाप संगम पर ही सिखाते हैं। तुम कल्प-कल्प यह बनते हो। ऐसे नहीं सदैव कलियुग ही चलता रहेगा। कलियुग के बाद सतयुग...यह चक्र फिरता है जरूर। सतयुग में मनुष्य कम थे, अब फिर जरूर कम होने चाहिए। यह तो सहज समझने की बातें हैं। बीती हुई कहानी सुनाते हैं। छोटी सी कहानी है। वास्तव में है बड़ी परन्तु समझने में छोटी है। 84 जन्मों का राज़ है। तुमको भी आगे मालूम नहीं था, अब तुम समझते हो हम पढ़ रहे हैं। यह है संगमयुग की पढ़ाई। अब ड्रामा का चक्र फिरकर आया है, फिर सतयुग से लेकर शुरू होगा। इस पुरानी सृष्टि को बदलना है। कलियुगी जंगल का विनाश होगा फिर सतयुगी फूलों का बगीचा होगा। फूल दैवी गुण वाले को कहा जाता है। काँटा आसुरी गुण वाले को कहा जाता है। अपने को देखना है मेरे में कोई अवगुण तो नहीं है। अभी हम देवता बनने लायक बन रहे हैं तो दैवी गुण जरूर धारण करना पड़े। बाप टीचर सतगुरू बनकर आते हैं तो कैरेक्टर जरूर सुधारना पड़े। मनुष्य कहते हैं सबके कैरेक्टर खराब हैं। लेकिन अच्छा कैरेक्टर किसको कहा जाता - यह भी नहीं जानते। तुम समझा सकते हो इन देवताओं के कैरेक्टर अच्छे थे ना। यह कभी किसको दु:ख नहीं देते थे। कोई की चलन अच्छी होती है तो कहते हैं यह तो जैसे देवी है, इनके बोल कितने मीठे हैं। बाप कहते हैं तुमको देवता बनाता हूँ तो तुमको बहुत मीठा बनना पड़े। दैवी गुण धारण करने हैं। जो जैसा है वैसा ही बनायेंगे। तुम सबको टीचर बनना है। टीचर के बच्चे टीचर। तुम पाण्डव सेना हो ना। पण्डों का काम है सबको रास्ता बताना। दैवी गुण धारण करने हैं। गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है। घर में भी सर्विस कर सकते हो। जो आयेंगे टीच करते रहेंगे (पढ़ाते रहेंगे), ऐसे बहुत हैं जो अपने पास गीता पाठशाला खोल बहुतों की सर्विस करते रहते हैं। ऐसे नहीं कि यहाँ आकर बैठना है। कन्याओं के लिए तो बहुत सहज है। मास दो चक्र लगाया फिर गये घर। घर का सन्यास तो नहीं करना है। तुमको घर से बुलावा आता है तो जाते हो, तुमको मना नहीं है। इसमें कोई घाटे की (कमी की) बात नहीं है और भी उमंग आयेगा। हम भी अभी होशियार हुए हैं। घर वालों को भी आप समान बनाकर साथ ले जायेंगे। ऐसे बहुत हैं जो घर में रहकर भी सर्विस करते हैं तो होशियार हो जाते हैं।

बाप मुख्य बात समझाते हैं कि अपने को आत्मा समझो और मुझ बाप को याद करो। अपनी उन्नति करनी है। घर में रहने वालों की यहाँ रहने वालों से भी अच्छी उन्नति हो सकती है। तुम को कभी मना नहीं की जाती है कि घर में नहीं जाओ। उन्हों का भी कल्याण करना है। जिनको कल्याण करने की आदत पड़ जाती है वह रह नहीं सकते। ज्ञान और योग पूरा है तो कोई भी बेइज्जती नहीं कर सकते। योग नहीं है तो माया भी थप्पड़ लगाती है। तो घर गृहस्थ में रह कमल फूल समान पवित्र जरूर बनना है। बाबा तो फ्रीडम देते हैं भल घर में भी रहो। सब यहाँ आकर कैसे रहेंगे। जितने आते हैं उन्हों के लिए उतने मकान आदि बनाने पड़ते हैं। कल्प पहले जो कुछ हुआ है वह रिपीट होता रहेगा। बच्चे भी वृद्धि को पाते रहेंगे। ड्रामा बिगर कुछ होने का नहीं है। यह जो लड़ाईयाँ आदि लगती हैं - इतने मनुष्य आदि मरते हैं, यह सब ड्रामा में नूँध है। जो पास्ट हुआ वह फिर रिपीट होगा। जो कल्प-कल्प समझाया है वही अब भी समझाऊंगा। मनुष्य भल क्या भी विचार करें, मैं तो वही पार्ट बजाऊंगा, जो मेरा नूँधा हुआ है। ड्रामा में कम जास्ती हो नहीं सकता। जो कल्प पहले पढ़े थे, वही पढ़ेंगे। हरेक की चलन से साक्षात्कार भी होता रहता है। यह क्या पढ़ते हैं, क्या पद पायेंगे। अच्छी सर्विस करते हैं, समझो अचानक एक्सीडेंट हो जाता है तो जाकर अच्छे कुल में जन्म लेंगे। बहुत सुखी रहेंगे। जितना सुख बहुतों को दिया है उतना उनको भी मिलेगा। यह कमाई कभी जाती नहीं है। सतयुग में तो जहाँ जीत वहाँ जन्म होगा। बहुतों को सुख दिया होगा तो गोल्डन स्पून इन दी माउथ मिलेगा। उससे कम तो सिलवर, उससे कम तो पीतल का मिलेगा। समझ में तो आता है ना। कितना हमारा योग है, राजा, रानी प्रजा सब बनने वाले हैं। अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे, दैवीगुण धारण नहीं करेंगे तो पद कम हो जायेगा। अच्छे वा बुरे कर्म जरूर सामने आते हैं। आत्मा को मालूम है हम कहाँ तक सर्विस कर रहे हैं। अगर अब शरीर छूट जाए तो क्या पद पायेंगे! अभी तुम पढ़कर सुधर रहे हो। कोई तो बिगड़ते भी हैं तो कहेंगे इनकी तकदीर में नहीं है। बाबा तो कितना ऊंच बनाते हैं। सांई के घर से कोई खाली न जाए। अभी सांई तुम्हारे सम्मुख है। कोई को तुम दो अक्षर भी सुनाओ, वह भी प्रजा में आयेंगे जरूर। देवी देवता धर्म वाले अब तक आते रहते हैं। परन्तु अब पतित होने कारण अपने को हिन्दू कहलाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह ज्ञान ऐसे है जैसे बाबा के पास है। बाप ज्ञान का सागर है। बतलाते हैं यह हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है। टीचर भी स्टूडेन्ट की पढ़ाई से जान जाते हैं कि यह कितने मार्क्स में पास होंगे। हर एक खुद भी जानते हैं। कोई दैवी गुणों में कच्चे हैं, कोई योग में कच्चे हैं, कोई ज्ञान में कच्चे हैं। कच्चे होने से नापास हो जायेंगे। ऐसे भी नहीं आज कच्चे हैं, कल पक्के नहीं हो सकते। गैलप करते रहेंगे। खुद भी फील करते हैं हम जहाँ तहाँ से फेल हो आते हैं। फलाने हमसे होशियार हैं। सीखकर होशियार भी हो सकते हैं। अगर देह-अभिमान होगा तो फिर क्या सीख सकेंगे। मैं आत्मा हूँ यह तो एकदम पक्का कर दो। बाप ने स्मृति दिलाई है। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे, फिर दैवीगुण धारण होंगे। अपनी नब्ज़ देखनी है कि मैं कहाँ तक लायक बना हूँ?

तुम अभी सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान ले रहे हो। यह राजयोग की नॉलेज सिवाए बाप के कोई सिखला न सके। बच्चे सीखते जाते हैं। बच्चे पूछते हैं हमारे कुल के ब्राह्मण कितने हैं? यह पूरा पता कैसे पड़े। आते जाते रहते हैं। अभी नये-नये भी निकलते रहते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना दैवी कैरेक्टर बनाना है, दैवी गुण धारण कर अपना और सर्व का कल्याण करना है। सबको सुख देना है।
2) सतोप्रधान बनने के लिए बुद्धि एक बाप से लगानी है। बुद्धि को भटकाना नहीं है। बाप समान टीचर बन सबको सही रास्ता बताना है।
वरदान:-
खुशियों के खजाने से सम्पन्न बन दु:खी आत्माओं को खुशी का दान देने वाले पुण्य आत्मा भव
इस समय दुनिया में हर समय का दु:ख है और आपके पास हर समय की खुशी है। तो दु:खी आत्माओं को खुशी देना - यह सबसे बड़े से बड़ा पुण्य है। दुनिया वाले खुशी के लिए कितना समय, सम्पत्ति खर्च करते हैं और आपको सहज अविनाशी खुशी का खजाना मिल गया। अब सिर्फ जो मिला है उसे बांटते जाओ। बांटना माना बढ़ना। जो भी सम्बन्ध में आये वह अनुभव करे कि इनको कोई श्रेष्ठ प्राप्ति हुई है जिसकी खुशी है।
स्लोगन:-
अनुभवी आत्मा कभी भी किसी बात से धोखा नहीं खा सकती, वह सदा विजयी रहती है।
ब्रह्मा बाप समान बनने के लिए विशेष पुरुषार्
ब्रह्मा बाप समान अपनी स्थिति को अचल अडोल बनाने के लिए किसी भी वातावरण में, वायुमण्डल में रहते हर एक की राय को रिगार्ड दो। कभी किसी की राय सुनते कनफ्यूज़ नहीं होना क्योंकि जो निमित्त बने हैं वह अनुभवी हो चुके हैं। अगर उनका कोई डायरेक्शन स्पष्ट नहीं भी है तो भी हलचल में नहीं आना। धैर्य से कहो इसको समझने की कोशिश करेंगे तब स्थिति एकरस अचल, अडोल रहेगी।