Monday, January 21, 2019

19-01-2019 Murli

19-01-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - मुख्य है याद की यात्रा, याद से ही आयु बढ़ेगी, विकर्म विनाश होंगे, याद में रहने वालों की अवस्था बोल-चाल बहुत फर्स्टक्लास होगा''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को देवताओं से भी जास्ती खुशी होनी चाहिए - क्यों?
उत्तर:-
क्योंकि तुमको अभी बहुत बड़ी लाटरी मिली है। भगवान तुम्हें पढ़ाते हैं। सतयुग में देवता, देवताओं को पढ़ायेंगे। यहाँ मनुष्य, मनुष्यों को पढ़ाते हैं लेकिन तुम आत्माओं को स्वयं परमात्मा पढ़ा रहे हैं। तुम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बन रहे हो। तुम्हारे में सारी नॉलेज है। देवताओं में यह नॉलेज भी नहीं।
गीत:-
जाग सजनियाँ जाग....  
ओम् शान्ति।
नये युग में होते हैं देवी देवतायें। हैं वह भी मनुष्य परन्तु उन्हों के गुण देवताओं जैसे होते हैं। वह हैं वैष्णव डबल अहिंसक। अभी मनुष्य डबल हिंसक हैं, मारामारी भी करते, काम कटारी भी चलाते। इसको कहा जाता है मृत्युलोक, जिसमें विकारी मनुष्य रहते हैं। उसको कहा जाता है देव लोक जिसमें देवी-देवता रहते हैं। वह डबल अहिंसक थे। उन्हों का भी राज्य था। कल्प की आयु लाखों वर्ष की होती तो कोई बात का ख्याल भी नहीं आता। आजकल कल्प की आयु कम करते जाते हैं। कोई 7 हज़ार वर्ष कहते, कोई 10 हज़ार कहते। यह भी बच्चे जानते हैं कि बाप है ऊंचे ते ऊंचा भगवान और हम उनके बच्चे रहते हैं शान्तिधाम में। हम पण्डे हैं रास्ता बताने वाले। इस यात्रा का कोई वर्णन है नहीं। भल गीता में अक्षर है मनमनाभव। परन्तु उनका अर्थ क्या है? अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, यह किसकी बुद्धि में नहीं आता। जब बाप आकर समझाये तब किसकी बुद्धि में आये। इस समय तुम मनुष्य से देवता बनते हो। मनुष्य यहाँ हैं, देवता सतयुग में होते हैं। बरोबर तुम अभी मनुष्य से देवता बनते हो। तुम्हारी यह ईश्वरीय मिशन है। निराकारी परमात्मा को कोई मनुष्य तो समझ न सके। निराकार को हाथ पांव कहाँ से आया। कृष्ण को हाथ पाँव सब कुछ है। भक्ति मार्ग के कितने शास्त्र बनाये हैं। अब तुम बच्चों के पास चित्र आदि तो बहुत हैं। चित्र से याद आती है कि इस चित्र पर यह समझायें, और भी बहुत चित्र बनते जायेंगे। एकदम ऊपर आत्माओं का भी दिखाना है। आत्मायें ही आत्मायें दिखाई देंगी। फिर सूक्ष्मवतन, उनके नीचे मनुष्य लोक भी बनायेंगे। मनुष्य कैसे पिछाड़ी में आकर फिर ऊपर चढ़ते हैं, यह दिखायेंगे। दिन प्रतिदिन नई इन्वेनशन निकलती जायेगी। अब जितने चित्र हैं, उतनी सर्विस भी करनी है। फिर ऐसे-ऐसे चित्र बनेंगे जिससे मनुष्य जल्दी समझ जायेंगे। झाड़ बहुत जल्दी बढ़ता जायेगा। कल्प पहले जिसने जो पद पाया होगा, जो रिजल्ट निकली होगी वही निकलेगी। ऐसे नहीं कि पिछाड़ी में आने वाले माला के दाने नहीं बन सकते हैं। वह भी बनेंगे। नौधा भक्ति वाले रात दिन भक्ति में लगे रहते हैं, तब उन्हों को साक्षात्कार होता है। यहाँ भी ऐसे निकलेंगे। रात दिन मेहनत कर पतित से पावन बनेंगे। चांस सबको है। ऐसे नहीं पिछाड़ी में कोई रह जाये। ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है, जो कोई रह नहीं सकता। सब तरफ पैगाम देना है। शास्त्रों में है एक रह गया तो उल्हना दिया। यह चित्र अखबार आदि में भी पड़ेंगे। तुमको भी निमंत्रण मिलते रहेंगे। सबको मालूम पड़ेगा कि बाप आया हुआ है। जब पूरा निश्चय होगा तब दौड़ेंगे। नामाचार निकलता ही रहेगा। नवयुग सतयुग को ही कहा जाता है। नवयुग अखबार भी निकलती है। कहते हैं न्यु देहली परन्तु न्यु देहली में यह पुराना किला, किचड़ा आदि हो न सके। अभी तो हर चीज़ टेढ़ी बाँकी हो गई है। सतयुग में सब तत्व भी आर्डर में रहते हैं। यहाँ तो 5 तत्व भी तमोप्रधान हैं। वहाँ सब सतोप्रधान होते हैं तो हर एक तत्व से सुख मिलता है। दु:ख का नाम भी नहीं। उसका नाम है स्वर्ग।

यह सब बातें अब तुम समझते हो कि बरोबर अभी हम तमोप्रधान बन गये हैं। सतोप्रधान बनने के लिए पुरुषार्थ कर मंजिल पर चढ़ रहे हैं और सब अन्धियारे में हैं। हम रोशनी में हैं। हम ऊपर जा रहे हैं और सब नीचे गिर रहे हैं। यह सब विचार सागर मंथन तुम बच्चों को करना है। शिवबाबा है सिखलाने वाला। वह तो मंथन नहीं करेंगे। ब्रह्मा को मंथन करना होता है। तुम सब विचार सागर मंथन कर समझाते हो। कोई का तो मंथन बिल्कुल नहीं चलता। पुरानी दुनिया ही याद पड़ती है। बाबा कहते हैं पुरानी दुनिया को एकदम भूल जाओ। परन्तु बाबा जानते हैं - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार राजधानी स्थापन हो रही है। बाप कहते हैं मैं आकर राजधानी स्थापन कर बाकी सबको वापस ले जाता हूँ। वह लोग तो सिर्फ अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं। उनके पिछाड़ी उनके धर्म के आते रहते हैं। उनकी क्या महिमा करेंगे। महिमा तो तुम्हारी है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म को ही हीरो हीरोइन कहा जाता है। हीरे जैसा जन्म और कौड़ी जैसा जन्म तुम्हारे लिए गाया हुआ है। फिर तुम एकदम चोटी से गिरकर एकदम नीचे आकर पड़ते हो। तो इस समय तुम बच्चों को देवताओं से भी ज्यादा खुशी होनी चाहिए क्योंकि तुमको लॉटरी मिली है। तुम्हें अब भगवान पढ़ाते हैं। वहाँ तो देवता, देवताओं को पढ़ायेंगे। यहाँ मनुष्य, मनुष्यों को पढ़ाते हैं और तुम आत्माओं को परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। फ़र्क हो गया ना।

तुम ब्राह्मणों ने राम राज्य और रावण राज्य को भी समझा है। अब तुम जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। अज्ञान काल में जो करते हैं वह उल्टा ही होता है। छोटे पन में सगीर बुद्धि होती है फिर बालिग बुद्धि होती है। 16-17 वर्ष के बाद सगाई होती है। आजकल तो गन्द बहुत है। गोद वाले बच्चे की भी सगाई करा लेते हैं। फिर लेना देना शुरू कर लेते हैं। वहाँ शादियाँ कितनी रायॅल होती हैं। तुमने सब साक्षात्कार किया है। जितना आगे बढ़ते जायेंगे तो तुम सब साक्षात्कार करेंगे। अच्छे फर्स्टक्लास योगी बच्चों की आयु बढ़ती जायेगी। बाप कहते हैं योग से अपनी आयु बढ़ाओ। बच्चे समझते हैं योग में हम ढीले हैं। याद में रहने लिए माथा मारते हैं परन्तु रह नहीं सकते। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। वास्तव में यहाँ वालों का चार्ट बहुत अच्छा होना चाहिए। बाहर तो गोरखधन्धे में रहते हैं। बाप को याद करते-करते यहाँ ही तुमको सतोप्रधान बनना है। कम से कम भोजन बनाते, काम करते 8 घण्टा मुझे याद करो तब कर्मातीत अवस्था अन्त में होगी। कोई कहे मैं 6-8 घण्टा योग में रहता हूँ तो बाबा मानेगा नहीं। बहुतों को लज्जा आती है, चार्ट नहीं लिखते हैं। आधा घण्टा भी याद में नहीं रह सकते। मुरली सुनना कोई याद नहीं है, यह तो धन कमाते हो। याद में तो सुनना बन्द हो जाता है। कई बच्चे लिख देते हैं याद में मुरली सुनी, परन्तु यह याद थोड़ेही है। बाबा खुद कहते हैं मैं घड़ी-घड़ी भूल जाता हूँ। याद में भोजन करने बैठता हूँ, बाबा आप तो अभोक्ता हो, यह कैसे कहूँ बाबा आप भी खाते हो, हम भी खाते हैं। कोई-कोई बात में कहेंगे कि बाबा भी साथ है। मुख्य है याद की यात्रा। मुरली की सबजेक्ट बिल्कुल अलग है। याद से पवित्र बनते हैं। आयु बढ़ती है। बाकी ऐसे नहीं कि मुरली सुनी तो बाबा इसमें था ना। मुरली सुनने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। मेहनत है। बाबा जानते हैं बहुत बच्चे बिल्कुल याद नहीं कर सकते हैं। याद में रहने वाले की अवस्था, बोल चाल बिल्कुल अलग रहेगा। याद से ही सतोप्रधान बनेंगे। परन्तु माया ऐसी है जो एकदम बुद्धू बना देती है। बहुतों की बीमारी उथल पड़ती है। मोह जो नहीं था वह उथल पड़ता है। फँस मरते हैं। बड़ी मेहनत का काम है। मुरली सुनना यह सबजेक्ट अलग है। यह है धन कमाने की बात, इसमें आयु नहीं बढ़ेगी, पावन नहीं बनेंगे, विकर्म विनाश नहीं होंगे। मुरली तो बहुत सुनते हैं। फिर विकार में गिरते रहते हैं। सच नहीं बताते। बाप कहते हैं पवित्र नहीं रह सकते तो यहाँ क्यों आते हो? कहते हैं बाबा मैं अजामिल हूँ। यहाँ आऊंगा तब तो पावन बनूँगा। यहाँ आने से कुछ सुधार होगा, नहीं तो कहाँ जायें। रास्ता तो यही है। ऐसे-ऐसे भी आते हैं। कोई न कोई समय तीर लग जायेगा। बाबा यहाँ के लिए भी कहते हैं - यहाँ कोई अपवित्र को नहीं आना चाहिए। यह तो इन्द्र सभा है। अभी तक तो आ जाते हैं। एक दिन यह भी आर्डीनेन्स निकलेगा, जब पक्की गैरन्टी करे तब एलाऊ करें। तो समझेंगे यह तो ऐसी संस्था है, कोई अपवित्र अन्दर जा नहीं सकता। तुम बच्चे समझते हो यह किसकी सभा है। हम भगवान, ईश्वर, सोमनाथ, बबुलनाथ के पास बैठे हैं। वही पावन बनाने वाला है। अभी आखरीन में बहुत आ जायेंगे तो फिर कोई हंगामा आदि कर न सके। इस धर्म के जो होंगे वह निकल आयेंगे। आर्य समाजी भी हैं हिन्दू। सिर्फ मठ पंथ अलग कर दिया है। देवतायें होते हैं सतयुग में। यहाँ सब हिन्दू हैं। वास्तव में हिन्दू धर्म है नहीं, यह हिन्दुस्तान तो देश का नाम है।

तुम बच्चों को उठते बैठते, चलते स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। स्टूडेन्ट को पढ़ाई की याद रहनी चाहिए ना। सारा चक्र बुद्धि में है। देवताओं और तुम्हारे में थोड़ा फ़र्क रहा है। पक्के स्वदर्शन चक्रधारी बन जायेंगे तो फिर विष्णु के कुल के बन जायेंगे। तुम समझते हो हम यह बन रहे हैं। वह देवतायें फाइनल हैं। तुम फाइनल तब होंगे जब कर्मातीत अवस्था हो। शिवबाबा तुमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं। उनमें नॉलेज है ना। वह हैं तुमको बनाने वाले। तुम हो बनने वाले। ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे। अब यह अलंकार तुमको कैसे दें। अब तुम पुरुषार्थी हो। फिर तुम विष्णु के कुल के बनते हो। सतयुग वैष्णव कुल है ना। तो ऐसा बनना है। तुमको तो मीठा बनना है। ऐसा वैसा अक्षर बोलने से न बोलना अच्छा है। एक दृष्टांत है - दो लड़ते थे, सन्यासी ने कहा मुख में मुहलरा डाल लो। कभी निकालना नहीं। रेसपान्ड मिल न सके। 5 विकारों को जीतना कोई मासी का घर नहीं है। कोई तो अपना अनुभव भी बताते हैं - हमारे में बहुत क्रोध था, अब बहुत कम हो गया है। बहुत मीठा बनना है। कल तुम इन देवताओं के गुण गाते थे। आज तुम समझते हो हम यह बन रहे हैं। नम्बरवार ही बनेंगे। जो सर्विस करेंगे उनका नाम ज़रूर बाबा भी लेंगे। रास्ता बताना चाहिए। हम भी पहले कुछ नहीं जानते थे। अब कितनी नॉलेज मिली है। जो अच्छी रीति धारण नहीं करते तो उनकी रिपोर्ट आती है। बाबा इनमें तो बहुत क्रोध है। बाबा जानते हैं यह रूहानी सर्विस नहीं कर सकते तो फिर स्थूल सर्विस। बाबा की याद में रहकर सर्विस करें तो अहो भाग्य। एक दो को याद दिलाते रहो। याद से बहुत बल मिलेगा। याद करने वाले को फिर चार्ट रखना है। चार्ट से मालूम पड़ जाता है। हर एक को बाबा सावधान करते रहते हैं। विश्व में शान्ति बहुत माँगते हैं। ज़रूर कभी विश्व में शान्ति थी। सतयुग में अशान्ति की कोई बात भी नहीं। स्वीट बाप स्वीट बच्चे सारे विश्व को स्वीट बनाते हैं। अब स्वीट कहाँ हैं। मौत ही मौत लगा पड़ा है। यह खेल अनेक बार होता है और होता ही रहता है। इन्ड हो नहीं सकती। चक्र फिरता रहता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
ब्रह्मा बाप समान बनने के लिए विशेष पुरुषार्थ

जैसे ब्रह्मा बाप ने अपने सुख के साधनों का, आराम का, किसी भी बात का आधार नहीं रखा। वे सब प्रकार की देह की स्मृति से खोये हुए अर्थात् निरन्तर शमा के लव में लवलीन रहे, ऐसे फालो फादर करो। जैसे शमा ज्योति-स्वरुप, लाइट माइट रुप है, वैसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रुप बनो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विकर्म विनाश करने वा आयु को बढ़ाने के लिए याद की यात्रा में ज़रूर रहना है। याद से ही पावन बनेंगे इसलिए कम से कम 8 घण्टा याद का चार्ट बनाना है।
2) देवताओं समान मीठा बनना है। ऐसा वैसा कोई शब्द बोलने के बजाए न बोलना अच्छा है। रूहानी वा स्थूल सर्विस करते बाप की याद रहे तो अहो भाग्य।
वरदान:-
ईश्वरीय रस का अनुभव कर एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव
जो बच्चे ईश्वरीय रस का अनुभव कर लेते हैं उनको दुनिया के सब रस फीके लगते हैं। जब है ही एक रस मीठा तो एक ही तरफ अटेन्शन जायेगा ना। सहज ही एक तरफ मन लग जाता है, मेहनत नहीं लगती है। बाप का स्नेह, बाप की मदद, बाप का साथ, बाप द्वारा सर्व प्राप्तियां सहज एकरस स्थिति बना देती हैं। ऐसी एकरस स्थिति में स्थित रहने वाली आत्मायें ही श्रेष्ठ हैं।
स्लोगन:-
किचड़े को समाकर रत्न देना ही मास्टर सागर बनना है।