Sunday, January 6, 2019

06-01-2019 प्रात:मुरली

06-01-19 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 08-04-84 मधुबन

संगमयुग पर प्राप्त अधिकारों से विश्व राज्य अधिकारी
बापदादा आज स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं की दिव्य दरबार देख रहे हैं। विश्व राज्य दरबार और स्वराज्य दोनों ही दरबार अधिकारी आप श्रेष्ठ आत्मायें बनती हो। स्वराज्य अधिकारी ही विश्व राज्य अधिकारी बनते हैं। यह डबल नशा सदा रहता है? बाप का बनना अर्थात् अनेक अधिकार प्राप्त करना। कितने प्रकार के अधिकार प्राप्त किये हैं, जानते हो? अधिकार माला को याद करो। पहला अधिकार - परमात्म बच्चे बने अर्थात् सर्वश्रेष्ठ माननीय पूज्यनीय आत्मा बनने का अधिकार पाया। बाप के बच्चे बनने के सिवाए पूज्यनीय आत्मा बनने का अधिकार प्राप्त हो नहीं सकता। तो पहला अधिकार - पूज्यनीय आत्मा बने। दूसरा अधिकार - ज्ञान के खजानों के मालिक बने अर्थात् अधिकारी बने। तीसरा अधिकार - सर्व शक्तियों के प्राप्ति के अधिकारी बने। चौथा अधिकार - सर्व कर्मेन्द्रियों जीत स्वराज्य अधिकारी बने। इस सर्व अधिकारों द्वारा मायाजीत सो जगत जीत विश्व राज्य अधिकारी बनते। तो अपने इन सर्व अधिकारों को सदा स्मृति में रखते हुए समर्थ आत्मा बन जाते। ऐसे समर्थ बने हो ना।

स्वराज्य वा विश्व का राज्य प्राप्त करने के लिए विशेष 3 बातों की धारणा द्वारा ही सफलता प्राप्त की है। कोई भी श्रेष्ठ कार्य की सफलता का आधार त्याग, तपस्या और सेवा है। इन तीनों बातों के आधार पर सफलता होगी वा नहीं होगी, यह क्वेश्चन नहीं उठ सकता। जहाँ तीनों बातों की धारणा है वहाँ सेकण्ड में सफलता है ही है। हुई पड़ी है। त्याग किस बात का? सिर्फ एक बात का त्याग सर्व त्याग सहज और स्वत: कराता है। वह एक त्याग है - देह भान का त्याग, जो हद के मैं-पन का त्याग सहज करा देता है। यह हद का मैं पन तपस्या और सेवा से वंचित करा देता है। जहाँ हद का मै-पन हैं वहाँ त्याग, तपस्या और सेवा हो नहीं सकती। हद का मैं-पन, मेरा-पन, इस एक बात का त्याग चाहिए। मैं और मेरा समाप्त हो गया तो बाकी क्या रहा? बेहद का। मैं एक शुद्ध आत्मा हँ और मेरा तो एक बाप दूसरा न कोई। तो जहाँ बेहद का बाप सर्वशक्तिमान है, वहाँ सफलता सदा साथ है। इसी त्याग द्वारा तपस्या भी सिद्ध हो गई ना। तपस्या क्या है? मैं एक का हूँ। एक की श्रेष्ठ मत पर चलने वाला हूँ। इसी से एकरस स्थिति स्वत: हो जाती है। सदा एक परमात्म स्मृति, यही तपस्या है। एकरस स्थिति यही श्रेष्ठ आसन है। कमल पुष्प समान स्थिति यही तपस्या का आसन है। त्याग से तपस्या भी स्वत: ही सिद्ध हो जाती है। जब त्याग और तपस्या स्वरुप बन गये तो क्या करेंगे? अपने पन का त्याग अथवा मैं-पन समाप्त हो गया। एक की लगन में मगन तपस्वी बन गये तो सेवा के सिवाए रह नहीं सकते। यह हद का मैं और मेरा सच्ची सेवा करने नहीं देता। त्यागी और तपस्वी मूर्त सच्चे सेवाधारी हैं। मैंने यह किया, मैं ऐसा हूँ, यह देह का भान जरा भी आया तो सेवाधारी के बदले क्या बन जाते? सिर्फ नामधारी सेवाधारी बन जाते। सच्चे सेवाधारी नहीं बनते। सच्ची सेवा का फाउन्डेशन है त्याग और तपस्या। ऐसे त्यागी तपस्वी सेवाधारी सदा सफलता स्वरुप हैं। विजय, सफलता उनके गले की माला बन जाती है। जन्म सिद्ध अधिकारी बन जाते। तो बापदादा विश्व के सर्व बच्चों को यही श्रेष्ठ शिक्षा देते हैं कि त्यागी बनो, तपस्वी बनो, सच्चे सेवाधारी बनो।

आज का संसार मृत्यु के भय का संसार है। (आंधी तूफान आया) प्रकृति हलचल में आप तो अचल हो ना! तमो-गुणी प्रकृति का काम है हलचल करना और आप अचल आत्माओं का कार्य है प्रकृति को भी परिवर्तन करना। नथिंग न्यु। यह सब तो होना ही है। हलचल में ही तो अचल बनेंगे। तो स्वराज्य अधिकारी दरबार निवासी श्रेष्ठ आत्माओं ने समझा! यह भी राज्य दरबार है ना। राजयोगी अर्थात् स्व के राजे। राजयोगी दरबार अर्थात् स्वराज्य दरबार। आप सभी भी राजनेता बन गये ना। वह हैं देश के राजनेता और आप हो स्वराज्य नेता। नेता अर्थात् नीति प्रमाण चलने वाले। तो आप धर्मनीति, स्वराज्य नीति प्रमाण चलने वाले स्वराज्य नेता हो। यथार्थ श्रेष्ठ नीति अर्थात् श्रीमत। श्रीमत ही यथार्थ नीति है। इस नीति पर चलने वाले सफल नेता हैं।

बापदादा देश के नेताओं को मुबारक देते हैं क्योंकि फिर भी मेहनत तो करते हैं ना। भल वैराइटी हैं। फिर भी देश के प्रति लगन है। हमारा राज्य अमर रहे - इस लगन से मेहनत तो करते हैं ना। हमारा भारत ऊंचा रहे, यह लगन स्वत: ही मेहनत कराती है। अब समय आयेगा जब राज्य सत्ता और धर्म सत्ता दोनों साथ होंगी, तब विश्व में भारत की जय-जयकार होगी। भारत ही लाइट हाउस होगा। भारत की तरफ सबकी दृष्टि होगी। भारत को ही विश्व प्रेरणा पुंज अनुभव करेंगे। भारत अविनाशी खण्ड है। अविनाशी बाप की अवतरण भूमि है इसलिए भारत का महत्व सदा महान है। अच्छा!

सभी अपने स्वीट होम में पहुँच गये। बापदादा सभी बच्चों के आने की बधाई दे रहे हैं। भले पधारे। बाप के घर के श्रृंगार भले पधारे। अच्छा!

सभी सफलता के सितारों को सदा एकरस स्थिति के आसन पर स्थित रहने वाले तपस्वी बच्चों को, सदा एक परमात्म श्रेष्ठ याद में रहने वाली महान आत्माओं को श्रेष्ठ भावना श्रेष्ठ कामना करने वाले विश्व कल्याणकारी सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
अव्यक्त बापदादा से गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री की मुलाकात
बाप के घर में वा अपने घर में भले आये। बाप जानते हैं कि सेवा में लगन अच्छी है। कोटों में कोई ऐसे सेवाधारी हैं इसलिए सेवा के मेहनत की आन्तरिक खुशी प्रत्यक्षफल के रूप में सदा मिलती रहेगी। यह मेहनत सफलता का आधार है। अगर सभी निमित्त सेवाधारी मेहनत को अपनायें तो भारत का राज्य सदा ही सफलता को पाता रहेगा। सफलता तो मिलनी ही है। यह तो निश्चित है लेकिन जो निमित्त बनता है, निमित्त बनने वाले को सेवा का प्रत्यक्षफल और भविष्य फल प्राप्त होता है। तो सेवा के निमित्त हो। निमित्त भाव रख सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो। जहाँ निमित्त भाव है, मैं-पन का भाव नहीं है वहाँ सदा उन्नति को पाते रहेंगे। यह निमित्त भाव शुभ भावना, शुभ कामना स्वत: जागृत करता है। आज शुभ भावना, शुभ कामना नहीं है उसका कारण निमित्त भाव के बजाए मैं-पन आ गया है। अगर निमित्त समझें तो करावनहार बाप को समझें। करनकरावनहार स्वामी सदा ही श्रेष्ठ करायेंगे। ट्रस्टी-पन के बजाए राज्य की प्रवृत्ति के गृहस्थी बन गये हैं, गृहस्थी में बोझ होता है और ट्रस्टी पन में हल्कापन होता है। जब तक हल्के नहीं तो निर्णय शक्ति भी नहीं है। ट्रस्टी हैं तो हल्के हैं तो निर्णय शक्ति श्रेष्ठ है, इसलिए सदा ट्रस्टी हैं। निमित्त हैं, यह भावना फलदायक है। भावना का फल मिलता है। तो यह निमित्त पन की भावना सदा श्रेष्ठ फल देती रहेगी। तो सभी साथियों को यह स्मृति दिलाओ कि निमित्त भाव, ट्रस्टीपन का भाव रखो। तो यह राजनीति विश्व के लिए श्रेष्ठ नीति हो जायेगी। सारा विश्व इस भारत की राजनीति को कापी करेगा। लेकिन इसका आधार ट्रस्टीपन अर्थात् निमित्त भाव।

कुमारों से:- कुमार अर्थात् सर्व शक्तियों को, सर्व खजानों को जमा कर औरों को भी शक्तिवान बनाने की सेवा करने वाले। सदा इसी सेवा में बिजी रहते हो ना। बिजी रहेंगे तो उन्नति होती रहेगी। अगर थोड़ा भी फ्री होंगे तो व्यर्थ चलेगा। समर्थ रहने के लिए बिजी रहो। अपना टाइमटेबल बनाओ। जैसे शरीर का टाइमटेबल बनाते हैं ऐसे बुद्धि का भी टाइमटेबल बनाओ। बुद्धि से बिजी रहने का प्लैन बनाओ। तो बिजी रहने से सदा उन्नति को पाते रहेंगे। आजकल के समय प्रमाण कुमार जीवन में श्रेष्ठ बनना बहुत बड़ा भाग्य है। हम श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हैं, यही सदा सोचो। याद और सेवा का सदा बैलेन्स रहे। बैलेन्स रखने वालों को सदा ब्लैसिंग मिलती रहेगी। अच्छा!
चुने हुए विशेष अव्यक्त महावाक्य
परमात्म प्यार में सदा लवलीन रहो

परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में झूलते सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती। परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है। लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है-न्यारा बनना। जो जितना न्यारा है उतना वह परमात्म प्यार का अधिकारी है। परमात्म प्यार में समाई हुई आत्मायें कभी भी हद के प्रभाव में नहीं आ सकती, सदा बेहद की प्राप्तियों में मगन रहती हैं। उनसे सदा रूहानियत की खुशबू आती है। प्यार की निशानी है-जिससे प्यार होता है उस पर सब न्यौछावर कर देते हैं। बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो रोज़ प्यार का रेसपान्ड देने के लिए इतना बड़ा पत्र लिखते हैं। यादप्यार देते हैं और साथी बन सदा साथ निभाते हैं। तो इस प्यार में अपनी सब कमजोरियां कुर्बान कर दो। बच्चों से बाप का प्यार है इसलिए सदा कहते हैं बच्चे जो हो, जैसे हो-मेरे हो। ऐसे आप भी सदा प्यार में लवलीन रहो दिल से कहो बाबा जो हो वह सब आप ही हो। कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में नहीं आओ। जो प्यारा होता है उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है। सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा-तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। और नि:स्वार्थ प्यार सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता इसलिए कभी मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो। परमात्म-प्यार के अनुभवी बनो तो इसी अनुभव से सहजयोगी बन उड़ते रहेंगे। परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन है। उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते। माया का कितना भी आकर्षित रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती। यह परमात्म प्यार की डोर दूर-दूर से खींच कर ले आती है। यह ऐसा सुखदाई प्यार है जो इस प्यार में एक सेकण्ड भी खो जाते हैं उनके अनेक दु:ख भूल जाते हैं और सदा के लिए सुख के झूले में झूलने लगते हैं। जीवन में जो चाहिए अगर वह कोई दे देता है तो यही प्यार की निशानी होती है। तो बाप का आप बच्चों से इतना प्यार है जो जीवन के सुख-शान्ति की सब कामनायें पूर्ण कर देते हैं। बाप सुख ही नहीं देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं। साथ-साथ श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी देते हैं, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो - यही परमात्म प्यार है। जो बच्चे परमात्म प्यार में सदा लवलीन, खोये हुए रहते हैं उनकी झलक और फ़लक, अनुभूति की किरणें इतनी शक्तिशाली होती हैं जो कोई भी समस्या समीप आना तो दूर लेकिन आंख उठाकर भी नहीं देख सकती। उन्हें कभी भी किसी भी प्रकार की मेहनत हो नहीं सकती।

बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो अमृतवेले से ही बच्चों की पालना करते हैं। दिन का आरम्भ ही कितना श्रेष्ठ होता है! स्वयं भगवन मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रुहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! बाप की मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ.....। तो इस प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप है ‘सहज योगी जीवन'। जिससे प्यार होता है, उसको जो अच्छा लगता है वही किया जाता है। तो बाप को बच्चों का अपसेट होना अच्छा नहीं लगता इसलिए कभी भी यह नहीं कहो कि क्या करें, बात ही ऐसी थी इसलिए अपसेट हो गये... अगर बात अपसेट की आती भी है तो आप अपसेट स्थिति में नहीं आओ।

बापदादा का बच्चों से इतना प्यार है जो समझते हैं हर एक बच्चा मेरे से भी आगे हो। दुनिया में भी जिससे ज्यादा प्यार होता है उसे अपने से भी आगे बढ़ाते हैं। यही प्यार की निशानी है। तो बापदादा भी कहते हैं मेरे बच्चों में अब कोई भी कमी नहीं रहे, सब सम्पूर्ण, सम्पन्न और समान बन जायें। आदिकाल, अमृतवेले अपने दिल में परमात्म प्यार को सम्पूर्ण रूप से धारण कर लो। अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियाँ, परमात्म ज्ञान फुल होगा तो कभी और किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता।

ये परमात्म प्यार इस एक जन्म में ही प्राप्त होता है। 83 जन्म देव आत्मायें वा साधारण आत्माओं द्वारा प्यार मिला, अभी ही परमात्म प्यार मिलता है। वह आत्म प्यार राज्य-भाग्य गँवाता है और परमात्म प्यार राज्य-भाग्य दिलाता है। तो इस प्यार के अनुभूतियों में समाये रहो। बाप से सच्चा प्यार है तो प्यार की निशानी है-समान, कर्मातीत बनो। ‘करावनहार' होकर कर्म करो, कराओ। कर्मेन्द्रियां आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ। कभी भी मन-बुद्धि वा संस्कारों के वश होकर कोई भी कर्म नहीं करो।
ब्रह्मा बाप समान बनने के लिए विशेष पुरुषार्थ

जैसे ब्रह्मा बाप साधारण रूप में होते असाधारण वा अलौकिक स्थिति में रहे। ऐसे फालो फादर। जैसे सितारों के संगठन में जो विशेष सितारे होते हैं उनकी चमक, झलक दूर से ही न्यारी और प्यारी लगती है। ऐसे आप सितारे भी साधारण आत्माओं के बीच विशेष आत्मायें दिखाई दो।
वरदान:-
निर्बल से बलवान बन असम्भव को सम्भव करने वाली हिम्मतवान आत्मा भव
"हिम्मते बच्चे मददे बाप'' इस वरदान के आधार पर हिम्मत का पहला दृढ़ संकल्प किया कि हमें पवित्र बनना ही है और बाप ने पदमगुणा मदद दी कि आप आत्मायें अनादि-आदि पवित्र हो, अनेक बार पवित्र बनी हो और बनती रहेंगी। अनेक बार की स्मृति से समर्थ बन गये। निर्बल से इतने बलवान बन गये जो चैलेन्ज करते हो कि विश्व को भी पावन बनाकर ही दिखायेंगे, जिसको ऋषि मुनि महान आत्मायें समझती हैं कि प्रवृत्ति में रहते पवित्र रहना मुश्किल है, उसको आप अति सहज कहते हो।
स्लोगन:-
दृढ़ संकल्प करना ही व्रत लेना है, सच्चे भक्त कभी व्रत को तोड़ते नहीं है।