Sunday, December 16, 2018

16-12-2018 प्रात:मुरली

16-12-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 09-03-84 मधुबन

परिवर्तन को अविनाशी बनाओ
बापदादा सभी चात्रक बच्चों को देख रहे हैं। सभी को सुनना, मिलना और बनना यही लगन है। सुनना, इसमें नम्बरवन चात्रक हैं। मिलना इसमें नम्बर हैं और बनना - इसमें यथा शक्ति तथा समान बनना। लेकिन सभी श्रेष्ठ आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें तीनों के चात्रक जरूर हैं। नम्बरवन चात्रक मास्टर मुरलीधर, मास्टर सर्वशक्तिवान बाप समान सदा और सहज बन जाते हैं। सुनना अर्थात् मुरलीधर बनना। मिलना अर्थात् संग के रंग में उसी समान शक्तियों और गुणों में रंग जाना। बनना अर्थात् संकल्प के कदम पर, बोल के कदम पर, कर्म के कदम पर कदम रखते हुए साक्षात बाप समान बनना। बच्चे के संकल्प में बाप का संकल्प समान अनुभव हो। बोल में, कर्म में जैसा बाप वैसा बच्चा सर्व को अनुभव हो। इसको कहा जाता है समान बनना वा नम्बरवन चात्रक। तीनों में से चेक करो मैं कौन हूँ! सभी बच्चों के उमंग-उत्साह भरे संकल्प बापदादा के पास पहुँचते हैं। संकल्प बहुत अच्छे हिम्मत और दृढ़ता से करते हैं। संकल्प रूपी बीज शक्तिशाली है लेकिन धारणा की धरनी, ज्ञान का गंगाजल और याद की धूप कहो वा गर्मी कहो, बार-बार स्व अटेन्शन की रेख-देख इसमें कहाँ-कहाँ अलबेले बन जाते हैं। एक भी बात में कमी होने से संकल्प रूपी बीज सदा फल नहीं देता है। थोड़े समय के लिए एक सीजन, दो सीजन फल देगा। सदा का फल नहीं देगा। फिर सोचते हैं बीज तो शक्तिशाली था, प्रतिज्ञा तो पक्की की थी। स्पष्ट भी हो गया था। फिर पता नहीं क्या हो गया। 6 मास तो बहुत उमंग रहा फिर चलते-चलते पता नहीं क्या हुआ। इसके लिए जो पहले बातें सुनाई उस पर सदा अटेन्शन रहे।

दूसरी बात - छोटी-सी बात में घबराते जल्दी हो। घबराने के कारण छोटी-सी बात को भी बड़ा बना देते हो। होती चींटी है उसको बना देते हो हाथी, इसलिए बैलेन्स नहीं रहता। बैलेन्स न होने के कारण जीवन से भारी हो जाते हो। या तो नशे में बिल्कुल ऊंचे चढ़ जाते वा छोटी-सी कंकडी भी नीचे बिठा देती। नॉलेजफुल बन सेकण्ड में उसको हटाने के बजाए कंकड़ी आ गई, रूक गये, नीचे आ गये, यह हो गया, इसको सोचने लग जाते हो। बीमार हो गया, बुखार वा दर्द आ गया। अगर यही सोचते और कहते रहे तो क्या हाल होगा! ऐसे जो छोटी-छोटी बातें आती हैं उनको मिटाओ, हटाओ और उड़ो। हो गया, आ गया, इसी संकल्प में कमजोर नहीं बनो। दवाई लो और तन्दरूस्त बनो। कभी-कभी बापदादा बच्चों के चेहरे को देख सोचते हैं अभी-अभी क्या थे, अभी-अभी क्या हो गये! यह वो ही हैं या दूसरे बन गये! जल्दी में नीचे ऊपर होने से क्या होता? माथा भारी हो जाता। वैसे भी स्थूल में अभी ऊपर अभी नीचे आओ तो चक्र महसूस करेंगे ना। तो यह संस्कार परिवर्तन करो। ऐसे नहीं सोचो कि हम लोगों की आदत ही ऐसी है। देश के कारण वा वायुमण्डल के कारण वा जन्म के संस्कार, नेचर के कारण ऐसा होता ही है, ऐसी-ऐसी मान्यतायें कमजोर बना देती हैं। जन्म बदला तो संस्कार भी बदलो। जब विश्व परिवर्तक हो तो स्व परिवर्तक तो पहले ही हो ना। अपने आदि अनादि स्वभाव-संस्कार को जानो। असली संस्कार वह हैं। यह तो नकली हैं। मेरे संस्कार, मेरी नेचर यह माया के वशीभूत होने की नेचर है। आप श्रेष्ठ आत्माओं की आदि अनादि नेचर नहीं है, इसलिए इन बातों पर फिर से अटेन्शन दिला रहे हैं। रिवाइज करा रहे हैं। इस परिवर्तन को अविनाशी बनाओ।

विशेषतायें भी बहुत हैं। स्नेह में नम्बरवन हो, सेवा के उमंग में नम्बरवन हो। स्थूल में दूर होते भी समीप हो। कैचिंग पावर भी बहुत अच्छी है। महसूसता की शक्ति भी बहुत तीव्र है। खुशियों के झूले में भी झूलते हो। वाह बाबा, वाह परिवार, वाह ड्रामा के गीत भी अच्छे गाते हो। दृढ़ता की विशेषता भी अच्छी है। पहचानने की बुद्धि भी तीव्र है। बाप और परिवार के सिकीलधे लाडले भी बहुत हो। मधुबन के श्रृंगार हो और रौनक भी अच्छी हो। वैरायटी डालियां मिलकर एक चन्दन का वृक्ष बनने का एग्जैम्पल भी बहुत अच्छे हो। कितनी विशेषतायें हैं! विशेषतायें ज्यादा हैं और कमजोरी एक है। तो एक को मिटाना तो बहुत सहज है ना। समस्यायें समाप्त हो गई हैं ना! समझा!

जैसे सफाई से सुनाते हो, वैसे दिल से सफाई से निकालने में भी नम्बरवन हो। विशेषताओं की माला बनायेंगे तो लम्बी चौड़ी हो जायेगी। फिर भी बापदादा मुबारक देते हैं। यह परिवर्तन 99 प्रतिशत तो कर लिया, बाकी 1 प्रतिशत है। वह भी परिवर्तन हुआ ही पड़ा है। समझा। कितने अच्छे हैं जो अभी-अभी भी बदल करके ना से हाँ कर देते हैं। यह भी विशेषता है ना! उत्तर बहुत अच्छा देते हैं। इन्हों से पूछते हैं शक्तिशाली, विजयी हो? तो कहते हैं अभी से हैं! यह भी परिवर्तन की शक्ति तीव्र हुई ना। सिर्फ चींटी, चूहे से घबराने का संस्कार है। महावीर बन चींटी को पांव के नीचे कर दो और चूहे को सवारी बना दो, गणेश बन जाओ। अभी से विघ्न-विनाशक अर्थात् गणेश बनकर चूहे पर सवारी करने लग जाना। चूहे से डरना नहीं। चूहा शक्तियों को काट लेता है। सहन शक्ति खत्म कर लेता है। सरलता खत्म कर देता है, स्नेह खत्म कर देता है। काटता है ना और चींटी सीधे माथे में चली जाती है। टेन्शन में बेहोश कर देती है। उस समय परेशान कर लेती है ना। अच्छा!

सदा महावीर बन शक्तिशाली स्थिति में स्थित होने वाले, हर संकल्प, बोल और कर्म, हर कदम पर कदम रख बाप के साथ-साथ चलने वाले सच्चे जीवन के साथी, सदा अपनी विशेषताओं को सामने रख कमजोरी को सदा के लिए विदाई देने वाले, संकल्प रूपी बीज को सदा फलदायक बनाने वाले, हर समय बेहद का प्रत्यक्ष फल खाने वाले, सर्व प्राप्तियों के झूलों में झूलने वाले ऐसे सदा के समर्थ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
फ्रांस ग्रुप से

1. सभी बहुत बार मिले हो और अब फिर से मिल रहे हो - क्योंकि जब कल्प पहले मिले थे तब अब मिल रहे हो। कल्प पहले वाली आत्मायें फिर से अपना हक लेने के लिए पहुँच गई हैं? नया नहीं लगता है ना! पहचान याद आ रही है कि हम बहुत बारी मिले हैं! पहचाना हुआ घर लग रहा है। जब अपना कोई मिल जाता है तो अपने को देखकर खुशी होती है। अभी समझते हो कि वह जो सम्बन्ध था वह स्वार्थ का सम्बन्ध था, असली नहीं था। अपने परिवार में, अपने स्वीट होम में पहुँच गये। बापदादा भी भले पधारे कहकर स्वागत कर रहे हैं।

दृढ़ता सफलता को लाती है, जहाँ यह संकल्प होता है कि यह होगा या नहीं होगा वहाँ सफलता नहीं होती। जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता हुई पड़ी है। कभी भी सेवा में दिलशिकस्त नहीं होना क्योंकि अविनाशी बाप का अविनाशी कार्य है। सफलता भी अविनाशी होनी ही है। सेवा का फल न निकले, यह हो नहीं सकता। कोई उसी समय निकलता है कोई थोड़ा समय के बाद इसलिए कभी भी यह संकल्प भी नहीं करना। सदा ऐसे समझो कि सेवा होनी ही है।

जापान ग्रुप से:- बाप द्वारा सर्व खजाने प्राप्त हो रहे हैं? भरपूर आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? एक जन्म नहीं लेकिन 21 जन्म यह खजाने चलते रहेंगे। कितना भी आज की दुनिया में कोई धनवान हो लेकिन जो खजाना आपके पास है वह किसी के पास भी नहीं है। तो वास्तविक सच्चे वी.आई.पी. कौन हैं? आप हो ना। वह पोजीशन तो आज है कल नहीं लेकिन आपका यह ईश्वरीय पोजीशन कोई छीन नहीं सकता। बाप के घर के श्रृंगार बच्चे हो। जैसे फूलों से घर को सजाया जाता है ऐसे बाप के घर के श्रृंगार हो। तो सदा स्वयं को मैं बाप का श्रृंगार हूँ, ऐसा समझ श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहो। कभी भी कमजोरी की बातें याद नहीं करना। बीती बातों को याद करने से और ही कमजोरी आ जायेगी। पास्ट सोचेंगे तो रोना आयेगा इसलिए पास्ट अर्थात् फिनिश। बाप की याद शक्तिशाली आत्मा बना देती है। शक्तिशाली आत्मा के लिए मेहनत भी मुहब्बत में बदल जाती है। जितना ज्ञान का खजाना दूसरों को देते हैं उतना वृद्धि होती है। हिम्मत और उल्लास द्वारा सदा उन्नति को पाते आगे बढ़ते चलो। अच्छा!
अव्यक्त महावाक्य - ''इच्छा मात्रम् अविद्या बनो''

ब्राह्मणों का अन्तिम सम्पूर्ण स्वरूप वा स्थिति का वर्णन है - इच्छा मात्रम् अविद्या। जब ऐसी स्थिति बनेगी तब जयजयकार और हाहाकार होगी। इसके लिए तृप्त आत्मा बनो। जितना तृप्त बनेंगे उतना ही इच्छा मात्रम् अविद्या होंगे। जैसे बापदादा कोई भी कर्म के फल की इच्छा नहीं रखते हैं। हर वचन और कर्म में सदैव पिता की स्मृति होने कारण फल की इच्छा का संकल्प मात्र भी नहीं रहता ऐसे फालो फादर करो। कच्चे फल की इच्छा नहीं रखो। फल की इच्छा सूक्ष्म में भी रहती है तो जैसे किया और फल खाया, फिर फलस्वरूप कैसे दिखाई दे, इसलिए फल की इच्छा को छोड़ इच्छा मात्रम् अविद्या बनो।

जैसे अपार दु:खों की लिस्ट है, वैसे फल की इच्छाएं वा जो उसका रेसपान्स लेने का सूक्ष्म संकल्प रहता है वह भी भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। निष्काम वृत्ति नहीं रहती। पुरुषार्थ के प्रारब्ध की नॉलेज होते हुए भी उसमें अटैचमेंट रहती है। कोई महिमा करते हैं और उसकी तरफ आपका विशेष ध्यान जाता है तो यह भी सूक्ष्म फल को स्वीकार करना है। एक श्रेष्ठ कर्म करने का सौ गुणा सम्पन्न फल आपके सामने आयेगा लेकिन आप अल्प-काल के इच्छा मात्रम् अविद्या बनो। इच्छा - अच्छा कर्म समाप्त कर देती है, इच्छा स्वच्छता को खत्म कर देती है और स्वच्छता के बजाय सोचता बना देती है, इसलिए इस विद्या की अविद्या हो।

जैसे बाप को देखा - स्वयं का समय भी सेवा में दिया। स्वयं निर्मान बन बच्चों को मान दिया। पहले बच्चे - नाम बच्चे का, काम अपना। काम के नाम की प्राप्ति का त्याग किया। बच्चों को मालिक रखा और स्वयं को सेवाधारी। मालिकपन का मान भी दे दिया - शान भी दे दिया, नाम भी दे दिया। कभी अपना नाम नहीं किया - मेरे बच्चे। तो जैसे बाप ने नाम, मान, शान सबका त्याग किया ऐसे फालो फादर करो। आपने कोई सेवा अभी-अभी की और अभी-अभी उसका फल ले लिया तो जमा कुछ नहीं हुआ, कमाया और खाया। उसमें फिर विलपावर नहीं रहती। वह अन्दर से कमजोर रहते हैं, शक्तिशाली नहीं खाली-खाली रह जाते हैं। जब यह बात खत्म हो जायेगी तब निराकारी, निरहंकारी और निर्विकारी स्थिति स्वत: बन जायेगी। आप बच्चे जितना हर कामना से न्यारे रहेंगे उतना आपकी हर कामना सहज पूरी होती जायेगी। फैसल्टीज़ मांगो नहीं, दाता बनकर दो - कोई भी सेवा प्रति वा स्वयं प्रति सैलवेशन के आधार पर स्वयं की उन्नति वा सेवा की अल्पकाल की स़फलता प्राप्त हो जायेगी लेकिन आज महान होंगे कल महानता की प्यासी आत्मा बन जायेंगे, सदा प्राप्ति की इच्छा में रहेंगे।

कभी भी इन्साफ माँगने वाले नहीं बनो। किसी भी प्रकार के माँगने वाला स्वयं को तृप्त आत्मा अनुभव नहीं करेंगे। महादानी भिखारी से एक नया पैसा लेने की इच्छा नहीं रख सकते। यह बदले वा यह करे वा यह कुछ सहयोग दे, कदम आगे बढ़ावे, ऐसे संकल्प वा ऐसे सहयोग की भावना परवश, शक्तिहीन, भिखारी आत्मा से क्या रख सकते! अगर कोई आपके सहयोगी भाई वा बहन परिवार की आत्मायें, बेसमझी वा बालहठ से अल्पकाल की वस्तु को सदाकाल की प्राप्ति समझ, अल्पकाल का मान-शान-नाम वा अल्पकाल की प्राप्ति की इच्छा रखती हैं तो दूसरे को मान देकर के स्वयं निर्मान बनना, यह देना ही सदा के लिए लेना है। किसी से कोई सैलवेशन लेकर के फिर सैलवेशन देने का संकल्प में भी न हो। इस अल्पकाल की इच्छा से बेगर बनो। जब तक किसी में अंशमात्र भी कोई रस दिखाई देता है, असार संसार का अनुभव नहीं होता है बुद्धि में यह नहीं आता कि यह सब मरे पड़े हैं तब तक उनसे कोई प्राप्ति की इच्छा हो सकती है, लेकिन सदा एक के रस में रहने वाले, एकरस स्थिति वाले बन जाते हैं। उन्हें मुर्दो से किसी प्रकार की प्राप्ति की कामना नहीं रह सकती। कोई विनाशी रस अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकता।

अनेक प्रकार की कामनायें सामना करने में विघ्न डालती हैं। जब यह कामना रखते हो कि मेरा नाम हो, मैं ऐसा हूँ, मेरे से राय क्यों नहीं ली, मेरा मूल्य क्यों नहीं रखा? तब सेवा में विघ्न पड़ते हैं इसलिए मान की इच्छा को छोड़ स्वमान में टिक जाओ तो मान परछाई के समान आपके पिछाड़ी आयेगा।

कई बच्चे बहुत अच्छे पुरुषार्थी हैं लेकिन पुरुषार्थ करते-करते कहाँ-कहाँ पुरुषार्थ अच्छा करने के बाद प्रालब्ध यहाँ ही भोगने की इच्छा रखते हैं। यह भोगने की इच्छा जमा होने में कमी कर देती है इसलिए प्रालब्ध की इच्छा को खत्म कर सिर्फ अच्छा पुरुषार्थ करो। इच्छा के बजाए अच्छा शब्द याद रखो।

भक्तों को सर्व प्राप्ति कराने का आधार- 'इच्छा मात्रम् अविद्या' की स्थिति है। जब स्वयं 'इच्छा मात्रम् अविद्या' हो जाते हो, तब ही अन्य आत्माओं की सर्व इच्छाएं पूर्ण कर सकते हो। कोई भी इच्छाएं अपने प्रति नहीं रखो लेकिन अन्य आत्माओं की इच्छाएं पूर्ण करने का सोचो तो स्वयं स्वत: ही सम्पन्न बन जायेंगे। अब विश्व की आत्माओं की अनेक प्रकार की इच्छाऍ अर्थात् कामनायें पूर्ण करने का दृढ़ संकल्प धारण करो। औरों की इच्छायें पूर्ण करना अर्थात् स्वयं को इच्छा मात्रम् अविद्या बनाना। जैसे देना अर्थात् लेना है, ऐसे ही दूसरों की इच्छायें पूर्ण करना अर्थात् स्वयं को सम्पन्न बनाना है। सदा यही लक्ष्य रखो कि हमें सर्व की कामनायें पूर्ण करने वाली मूर्ति बनना है। अच्छा।
वरदान:-
परिस्थितियों को साइडसीन समझ पार करने वाले स्मृति स्वरूप समर्थ आत्मा भव
स्मृति स्वरूप आत्मा समर्थ होने के कारण परिस्थितियों को खेल समझती है। भल कितनी भी बड़ी परिस्थिति हो लेकिन समर्थ आत्मा के लिए मंजिल पर पहुंचने के लिए यह सब रास्ते के साइड सीन्स हैं। लोग तो खर्चा करके भी साइड सीन्स देखने जाते हैं। तो स्मृति स्वरूप समर्थ आत्मा के लिए परिस्थिति कहो, पेपर कहो, विघ्न कहो सब साइडसीन्स हैं और स्मृति में है कि यह मंजिल के साइडसीन्स अनगिनत बार पार की हैं, नथिंगन्यु।
स्लोगन:-
दूसरों की करेक्शन करने के बजाए बाप से कनेक्शन जोड़ लो तो वरदानों की अनुभूति होती रहेगी।