Saturday, December 1, 2018

01-12-2018 प्रात:मुरली

01-12-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - तुम सबको जीवनमुक्ति का मंत्र देने वाले सतगुरू के बच्चे गुरू हो, तुम ईश्वर के बारे में कभी भी झूठ नहीं बोल सकते''
प्रश्नः-
सेकेण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करने की विधि और उसका गायन क्या है?
उत्तर:-
सेकेण्ड में जीवनमुक्ति प्राप्त करने के लिए प्रवृत्ति में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो। सिर्फ इस अन्तिम जन्म में पवित्रता की प्रतिज्ञा करो तो जीवनमुक्ति मिल जायेगी। इस पर ही राजा जनक का मिसाल गाया हुआ है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते एक सेकेण्ड में प्रतिज्ञा के आधार पर जीवनमुक्ति प्राप्त की।
गीत:-
यह वक्त जा रहा है........  
ओम् शान्ति।
बाप आते हैं सबको सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देने। गायन भी है सबका सद्गति दाता, जीवन-मुक्ति दाता एक है। एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति क्यों कहते हैं? जैसे राजा जनक का मिसाल है। उनका नाम जनक था परन्तु भविष्य में वही अनुजनक बनता है। जनक के लिए कहते हैं कि उन्हें एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली, लेकिन जीवनमुक्ति तो सतयुग-त्रेता में कहेंगे। गुरू लोग कान में मंत्र देते हैं, उसे वशीकरण मंत्र भी कहते हैं। वे तो सब मंत्र देते हैं लेकिन तुम्हें मिलता है महामंत्र, जीवनमुक्ति का मंत्र। यह मंत्र कौन देते हैं? ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारियां। उन्हें यह मंत्र कहाँ से मिला? उस सतगुरू से। सर्वोत्तम तो एक ही बाप है। फिर तुम बच्चे सर्वोत्तम बनते हो। उनमें सर्वोत्तम गुरू होते हैं। तुम भी सतगुरू के बच्चे गुरू हो। गीता सुनाने वाले को भी गुरू कहा जाता है। नम्बरवार तो होते ही हैं। तुम भी सत बोलने वाले गुरू हो। तुम कभी ईश्वर के बारे में झूठ नहीं बोलते हो। पहले-पहले तो तुम पवित्रता के ऊपर ही समझाते हो कि बाप से प्रतिज्ञा करो हम कभी भी विकार में नहीं जायेंगे। झूठ आदि न बोलना यह तो कॉमन बात है। झूठ तो बहुतों से निकलती रहती है। पर यहाँ वह बात नहीं है। यहाँ है पवित्रता की बात। गृहस्थ व्यवहार में रहते इस अन्तिम जन्म में हम बाप से प्रतिज्ञा करते हैं कि हम कमल पुष्प समान पवित्र रहेंगे। तो यहाँ पवित्र रहने की बात है। कहेंगे यह तो बहुत ऊंच मंज़िल है। यह तो हो नहीं सकता। तुम कहेंगे वाह, क्यों नहीं हो सकता। यह तो गाया हुआ है कमल फूल समान...... यह दृष्टान्त शास्त्रों में लिखा हुआ है। जरूर बाप ने ही ऐसी शिक्षा दी है। है भी भगवानुवाच या ब्राह्मणों वाच। भगवान् सबको नहीं सुनाते हैं। ब्राह्मण बच्चे ही सुनते हैं। यह बात तुम्हें सबको समझानी है। मूल बात है पवित्रता की। कमल फूल समान पवित्र बनना है, जनक मिसल। वही जनक फिर अनुजनक बना। जैसे राधे अनुराधे बनती है। कोई का नाम नारायण है तो भविष्य में अनु नारायण बनता है। यह एक्यूरेट बात है। तो जो भी आते हैं उनको समझाना पड़े। सुना तो है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। गृहस्थ व्यवहार में रहते ऊंच पद पाया जा सकता है। हम अनुभव से कहते हैं, गपोड़ा नहीं मारते हैं। भगवानुवाच - मुख्य बात समझानी है - भगवान् सबका बाप है। जरूर जीवनमुक्ति दाता भी वही है। यह है प्रवृत्ति मार्ग। सन्यासियों का तो है ही निवृति मार्ग। वह कभी राजयोग सिखला नहीं सकते। वह तो घरबार छोड़ भागने वाले हैं। वो यह ज्ञान दे नहीं सकते, यह है राजयोग। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है। सतयुग में भारत पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, वाइसलेस दुनिया थी। राजाई में स्त्री-पुरुष दोनों चाहिए। तो समझाना पड़ता है - हम अनुभवी हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रह सकते हैं। हम जानते हैं कि पवित्र बन बाप द्वारा पवित्र दुनिया के मालिक बनते हैं। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था, अब तो अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग है। यह दुनिया ही भ्रष्टाचारी है। वह श्रेष्ठाचारी दुनिया थी। रावण भ्रष्टाचारी बनाते हैं, राम श्रेष्ठाचारी बनाते हैं। आधाकल्प रावण राज्य चलता है। भ्रष्टाचारी दुनिया में भक्ति मार्ग है। दान-पुण्य आदि करते रहते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार है। समझते हैं मनुष्य जितना भक्ति, दान-पुण्य करेंगे तो फिर भगवान् मिलेगा। भगवान् की भक्ति करते हैं। कहते हैं कि आकर हमको श्रेष्ठ बनाओ। भारत श्रेष्ठाचारी था। अभी नहीं है।

भ्रष्टाचारी ही श्रेष्ठाचारी बनते हैं। भारत की नई रचना की कहानी कोई जानते ही नहीं। चित्रों के द्वारा अच्छी तरह समझाया जा सकता है। ऐसे-ऐसे चित्र बनाने पड़ेंगे। हरेक सेन्टर पर प्रदर्शनी के चित्र होने चाहिए। बाबा डायरेक्शन देते हैं भल लिख दें कि चित्र हमारे पास नहीं हैं, तो बाबा डायरेक्शन देंगे यह बनाओ फिर सबको भेजो तो सबके पास प्रदर्शनी हो जायेगी। यह चित्र बहुत अर्थ सहित हैं। पहले-पहले यह बुद्धि में आना चाहिए कि हम बाप के बच्चे हैं। भगवान् है स्वर्ग रचने वाला। नर्क का रचयिता है रावण। गोले के ऊपर 10 सिर वाले रावण का चित्र बना दो। स्वर्ग के गोले पर चतुर्भुज। लिख भी सकते हैं - यह रामराज्य, यह रावण राज्य। इस समय रावण सर्वव्यापी है। वहाँ हम राम सर्वव्यापी तो नहीं कह सकेंगे। गाया भी जाता है - आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल फिर सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरू मिला दलाल। तो जरूर वह आयेगा ना। यह हिसाब कोई भी जानते नहीं हैं। पहले-पहले अलग हुई हैं देवी-देवताओं की आत्मायें। यह नॉलेज है, कोई को भी समझाना है। आत्माओं का बाप तो है ना। अब हे आत्मा, अपने परमपिता परमात्मा का आक्यूपेशन बताओ? क्या नहीं जानती हो? ऐसा बच्चा तो होता नहीं जो बाप के आक्यूपेशन को नहीं जानता हो। बाप बैठ समझाते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं समझाता हूँ। पहले-पहले जो देवी-देवता हैं वह इतने जन्म लेते हैं। तो हिसाब करो - दूसरे धर्म वाले कितने जन्म लेते होंगे? सिद्ध कर बताना पड़े - मैक्सीमम इतने हैं। झाड़ वृद्धि को पाता रहता है। पहले-पहले देवी-देवता थे। उन्हों के ही 84 जन्म कहे जाते हैं। भारत की नॉलेज है ना। प्राचीन भारत की नॉलेज किसने दी? कृष्ण को नहीं मानेंगे। यह भगवान् ने ही दी है। नॉलेजफुल गॉड फादर है ना। ब्रह्मा को भी नॉलेजफुल नहीं कहेंगे, कृष्ण को भी नहीं कहेंगे। कृष्ण की महिमा ही अलग है। यह समझने की बड़ी ही क्लीयर नॉलेज है। भगवान् तो सबका एक ही निराकार परमपिता परमात्मा है। वह है रचयिता। कृष्ण तो है रचना। ऊंच ते ऊंच भगवान् तो एक है ना। सर्वव्यापी उनको कह नहीं सकते। भारत में ऊंच ते ऊंच प्रेजीडेंट फिर नम्बरवार और हैं। सबका आक्यूपेशन बतायेंगे। ऐसे तो नहीं, सब एक ही हैं। हरेक आत्मा को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है - यह सिद्ध करना है। आपस में राय कर सर्विस के प्लैन बनाने हैं। परन्तु जिसकी लाइन क्लीयर नहीं होगी, कोई विकार होगा वा नाम-रूप में फंसा होगा तो यह काम हो नहीं सकेगा। इसमें लाइन बड़ी क्लीयर चाहिए। रिजल्ट तो अन्त में ही निकलेगी। अभी सभी नम्बरवार हैं। मनुष्य कहते हैं यह व्यास भगवान् ने शास्त्र बनाये, अब व्यास तो भगवान् हो नहीं सकता। वास्तव में धर्म के शास्त्र हैं ही 4 । भारत का धर्म शास्त्र तो है ही एक माई बाप गीता। वर्सा उनसे ही मिलता है। माँ द्वारा बाप से वर्सा मिलता है। गीता माता का बाप है रचता। तो गीता द्वारा ही बाप ने प्राचीन सहज राजयोग की नॉलेज दी है। गीता तो भारतखण्ड का शास्त्र है। फिर इस्लामी का धर्म शास्त्र अपना है, बुद्ध का अपना है, क्रिश्चियन का अपना है। गीता तो है सबका माई बाप, बाकी शास्त्र हैं बाल बच्चे। वह बाद में निकले हैं। बाकी इतने वेद-उपनिषद आदि यह सब किस धर्म के हैं? यह मालूम तो होना चाहिए कि यह किसने उच्चारे? उससे कौन-सा धर्म निकला? कोई धर्म तो है नहीं। पहले तो सिद्ध करना है कि गीता खण्डन की हुई है। बाप के बदले बच्चे का नाम दे दिया है। जीवन चरित्र तो सबका अलग-अलग है। बाप कहते हैं सर्व धर्मानि परित्यज........ मामेकम् याद करो। परमात्मा आत्माओं को कहते हैं - तुम अशरीरी बनो, मेरे को याद करो। अशरीरी बाप ही यह कह सकते हैं। सन्यासी तो कह नहीं सकते। यह गीता के अक्षर हैं। सब धर्म वालों को कहते हैं - अशरीरी भव। अभी नाटक पूरा होता है। सबको मंत्र मिलता है कि देह सहित देह के सब सम्बन्ध त्याग मामेकम् याद करो तो तुम मेरे पास आ जायेंगे। मुक्ति के बाद जीवनमुक्ति है जरूर। पद जीवनमुक्ति का है वाया मुक्ति। जो भी आते हैं सतो, रजो, तमो से पास करते हैं। समझानी कितनी अच्छी है। परन्तु बच्चे एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देते हैं। वैसे है बहुत सहज।

तुम जगह-जगह पर प्रदर्शनी करो, अखबारों में भी पड़ जाए। खर्चा कर सकते हो। भल सब सुनें। अखबार में तो जरूर डालना है। बच्चों को बड़ा नशा रहना चाहिए। बाकी टाइम बहुत थोड़ा बचा है। अतीन्द्रिय सुख की भासना गोप-गोपियों से पूछो। गाया हुआ है - यह गोपी वल्लभ के गोप-गोपियाँ हैं। गोप-गोपियाँ न सतयुग में, न कलियुग में होते हैं। वहाँ लक्ष्मी देवी, राधे देवी हैं। गोप-गोपियां अभी हैं, गोपी वल्लभ के बच्चे पोत्रे-पोत्रियां हैं। जरूर दादा भी होगा। दादा, बाबा और मम्मा - यह नई रचना हुई है संगम पर। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे आता हूँ नई दुनिया बनाने। आसुरी सन्तान से तुम ईश्वरीय सन्तान बने हो फिर बनेंगे दैवी सन्तान। फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सन्तान बनेंगे - 84 जन्मों में। फिर साथ-साथ वृद्धि भी होती रहती है। झाड़ भी पूरा कम्पलीट चाहिए। प्रलय भी नहीं होती है। भारत तो अविनाशी खण्ड है। भारत की बहुत महिमा करनी है। भारत सब खण्डों में श्रेष्ठ है। विनाश कभी नहीं होता। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

रात्रि-क्लास 16-4-68

तुम ब्राह्मण बच्चों बिगर किसको भी यह पता नहीं है कि संगम युग कब होता है। इस कल्प के संगम युग की महिमा बहुत है। बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं। सतयुग के लिये तो जरूर संगमयुग ही आयेगा। हैं भी मनुष्य। उनमें कोई कनिष्ट, कोई उत्तम हैं। उनके आगे महिमा गाते हैं आप पुरुषोत्तम हो, हम कनिष्ट हैं। आपेही बताते हैं - मैं ऐसे हूँ, ऐसे हूँ।

अभी इस पुरुषोत्तम संगम युग को तुम ब्राह्मण बिगर कोई भी नहीं जानते। इनकी एडवरटाईज कैसे करें जो मनुष्यों को पता पड़े। संगमयुग पर भगवान ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। तुम जानते हो हम राजयोग सीख रहे हैं। अभी ऐसी क्या युक्ति रचें जो मनुष्यों को मालूम पड़े। परन्तु होगा धीरे। अभी समय पड़ा है। बहुत गई थोड़ी रही......। हम कहते हैं तो मनुष्य जल्दी पुरुषार्थ करें। नहीं तो ज्ञान सेकण्ड में मिलता है, जिससे तुम उसी समय सेकण्ड में जीवनमुक्ति पा लेंगे। परन्तु तुम्हारे सिर पर आधा कल्प के पाप हैं, वह थोड़ेही सेकण्ड में कटेंगे। इसमें तो टाइम लगता है। मनुष्य समझते हैं अभी तो समय पड़ा है, अभी हम ब्रह्माकुमारियों पास क्यों जायें। लिटरेचर से उल्टा भी उठा लेते हैं। तकदीर में नहीं है तो उल्टा उठा लेते हैं। तुम समझते हो यह पुरुषोत्तम बनने का युग है। हीरे जैसा गायन है ना। फिर कम हो जाता है। गोल्डन एज, सिल्वर एज। यह संगम युग है डायमण्ड एज। सतयुग है गोल्डन एज। यह तुम जानते हो स्वर्ग से भी यह संगम अच्छा है, हीरे जैसा जन्म है। अमरलोक का गायन है ना। फिर कम होता जाता है। तो यह भी लिख सकते हो पुरुषोत्तम संगम युग है डायमण्ड, सतयुग है गोल्ड, त्रेता है सिलवर.....। यह भी तुम समझा सकते हो - संगम पर ही हम मनुष्य से देवता बनते हैं। आठ रत्न बनाते हैं ना। तो डायमण्ड को बीच में रखा जाता है। संगम का शो होता है। संगम युग है ही हीरे जैसा। हीरे का मान संगम युग पर है। योग आदि सिखलाते हैं, जिसको प्रीचुअल योग कहते हैं। परन्तु प्रीचुअल तो फादर ही है। रूहानी फादर और रूहानी नॉलेज संगम पर ही मिलती है। मनुष्य जिनमें देह-अहंकार है, वह इतना जल्दी कैसे मानेंगे। गरीब आदि को समझाया जाता है। तो यह भी लिखना है संगमयुग इज़ डायमण्ड। उनकी आयु इतनी। सतयुग गोल्डन एज तो उनकी आयु इतनी। शास्त्रों में भी स्वास्तिका निकालते हैं। तो तुम बच्चों को भी यह याद रहे तो कितनी खुशी रहे! स्टूडेन्ट्स को खुशी होती है ना। स्टूडेन्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट लाइफ। यह तो सोर्स आफ इनकम है। यह है मनुष्य से देवता बनने की पाठशाला। देवतायें तो विश्व के मालिक थे। यह भी तुमको मालूम है। तो अथाह खुशी होनी चाहिए, इसलिये गायन है अतीन्द्रिय सुख गोपी वल्लभ के गोप गोपियों से पूछो। टीचर अन्त तक पढ़ाते हैं तो उनको अन्त तक याद करना चाहिए। भगवान पढ़ाते हैं और फिर भगवान साथ भी ले जायेंगे। पुकारते भी हैं लिबरेटर गाईड। दु:ख से छुड़ाओ। सतयुग में दु:ख होता ही नहीं। कहते हैं विश्व में शान्ति हो। बोलो आगे कब थी? वह कौन सा युग था? किसको पता नहीं है। राम राज्य सतयुग, रावण राज्य कलियुग। यह तो जानते हो ना। बच्चों को अनुभव सुनाना चाहिए। बस क्या सुनाऊं दिल की बात। बेहद का बाप बेहद की बादशाही देने वाला मिला और क्या अनुभव सुनाऊं। और कोई बात ही नहीं। इस जैसी खुशी और कोई होती ही नहीं। कोई को भी किसी से रूठकर वास्तव में घर में नहीं बैठना चहिए। यह जैसे अपनी तकदीर से रूठना है। पढ़ाई से रूठा तो क्या सीखेंगे। बाप को पढ़ाना ही है - ब्रह्मा द्वारा। तो एक दो से कभी रूठना नहीं चाहिए। यह है माया। यज्ञ में असुरों के विघ्न तो पड़ते हैं ना। अच्छा!

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का याद प्यार गुडनाईट। रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप जो सुनाते हैं वह एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है। ज्ञान के नशे में रह अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करना है।
2) सभी को सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति का अधिकार देने के लिए यही महामंत्र सुनाना है कि ''देह सहित देह के सब सम्बन्धों को त्याग बाप को याद करो।''
वरदान:-
ब्रह्मा बाप को फालो कर फर्स्ट ग्रेड में आने वाले समान भव
सभी बच्चों का ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है, प्यार की निशानी है समान बनना। इसमें सदा यही लक्ष्य रखो कि पहले मैं, ईर्ष्या वश पहले मैं नहीं, वह नुकसान करता है। लेकिन फालो फादर करने में पहले मैं कहा और किया तो फर्स्ट के साथ में आप भी फर्स्ट हो जायेंगे। जैसे ब्रह्मा बाप नम्बरवन बनें ऐसे फालो करने वाले भी नम्बरवन का लक्ष्य रखो। ओटे सो अव्वल अर्जुन, सबको फर्स्ट में आने का चांस है। फर्स्ट ग्रेड बेहद में है कम नहीं।
स्लोगन:-
सफलतामूर्त बनना है तो स्व सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ करो।