Thursday, August 30, 2018

31-08-2018 प्रात:मुरली

31-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अपनी स्थिति साक्षी तथा हर्षित रखने के लिए स्मृति में रहे कि हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है, बनी बनाई बन रही"
प्रश्नः-
तुम बच्चे किस एक पुरुषार्थ द्वारा अपनी अवस्था जमा सकते हो?
उत्तर:-
माया के तूफानों को डोन्टकेयर करो और बाप जो श्रीमत देते हैं उसे कभी भी डोन्टकेयर न करो, इससे तुम्हारी अवस्था अचल-अडोल हो जायेगी, स्थिति सदा साक्षी और हर्षित रहेगी। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कभी भी रोना न आये। अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना.....।
गीत:-
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो.....  
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। अक्सर करके भक्ति मार्ग वाले मन्दिरों में जाते हैं, चाहे शिव के, चाहे लक्ष्मी-नारायण के, चाहे राधे-कृष्ण के या अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों में जायेंगे। सबके आगे यही महिमा करेंगे - त्वमेव माता-च-पिता..... फिर कहते हैं - त्वमेव विद्या द्रविणम्...... माना तुम मात-पिता भी हो, पढ़ाने वाले भी हो। वास्तव में लक्ष्मी-नारायण वा राम-सीता को त्वमेव माता-च-पिता नहीं कहेंगे क्योंकि उन्हों को तो अपने ही बच्चे होंगे। वह ऐसी महिमा नहीं गायेंगे। वास्तव में महिमा एक शिव की है। वह महिमा गाते हैं देव-देव महादेव। माना तुम ब्रह्मा, विष्णु, शंकर से भी ऊंच हो। भक्ति मार्ग में तो कोई अर्थ समझ न सके। अब बाप कहते हैं तुमने भक्ति बहुत की है, अब तुम मेरे से समझो और इस पर गौर करो कि सच क्या है, झूठ क्या है? तुम बच्चे अब समझते हो - बाप के बारे में और देवताओं के बारे में जो भी महिमा करते हैं वह सारी रांग है। अभी जो तुमको मैं समझाता हूँ वही राइट है।

बच्चों को समझाते हैं यह उल्टा वृक्ष है, इसका बीज है परमपिता परमात्मा। वह ऊपर में रहते हैं। वह तो चैतन्य बीज है ना। तुम ठहरे बच्चे। कई कहते हैं कि सब बीज आदि में भी आत्मा है। लेकिन वह तो जड़ है ना। बाप को कहा ही जाता है मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीजरूप। अब मनुष्य गाते हैं - ओ गॉड फादर। अच्छा, झाड़ को तुम चैतन्य ज्ञान सागर नहीं कहेंगे। मनुष्य में यह ज्ञान है कि यह बीज है। बीज में जरूर झाड़ का ज्ञान होना चाहिए। परन्तु जड़ होने के कारण बता नहीं सकते। मनुष्य तो समझ जाते हैं कि बीज नीचे है, उनसे झाड़ निकला हुआ है। कल्प वृक्ष और बनेन ट्री की भेंट करते हैं। वह जड़ है, यह चैतन्य है। कलकत्ते में बड़ का बहुत बड़ा झाड़ है। उनका थुर सारा निकल गया है, सिर्फ झाड़ खड़ा है। फाउण्डेशन है नहीं, वन्डर है ना। बाप समझाते हैं इस झाड़ का भी फाउण्डेशन है नहीं। देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है, बाकी सारा झाड़ खड़ा है। कितने मठ-पंथ हैं! यह है बेहद का झाड़। बेहद का बाप बैठ समझाते हैं। बाबा लिखते भी हैं शिवबाबा का बर्थ डे हीरे जैसा है क्योंकि शिवबाबा ही कौड़ी से हीरे जैसा बनाते हैं, स्वर्ग बनाते हैं। अभी तो भारत कितना कंगाल बन गया है। मनुष्य हम सो, सो हम कहते हैं परन्तु समझते तो कुछ नहीं। हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा - यह ढिंढोरा सन्यासियों ने पिटवाया है। तुम अर्थ सहित जानते हो। हम सो ब्राह्मण बने हैं फिर हम सो देवता बनेंगे फिर हम सो क्षत्रिय..... वर्ण में आयेंगे। आत्मा कहती है हम इन वर्णों में जायेंगे। हम शूद्र थे, अभी हम ब्राह्मण कुल में आये हैं। परमपिता परमात्मा ही सबको रचने वाला है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देवताओं को भी रचने वाला वह है। अभी बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। तुम कहते हो त्वमेव माता-च-पिता.... तो माता भी यह बरोबर है। बाप बैठ बच्चों को बहलाते हैं। भक्ति मार्ग में मीरा भक्तिन थी। वह है भक्त माला। ज्ञान माला भी है। ज्ञान माला का नाम है रुद्र माला। रावण माला नहीं कहेंगे। रावण की भक्ति तो नहीं करते। राम माला है। भल अभी रावण राज्य है परन्तु रावण की माला नहीं होती। भक्त माला होती है, असुरों की माला तो नहीं होती। भक्त शिरोमणी में एक तो मीरा है उनको कृष्ण का साक्षात्कार होता था। लोक लाज सारी खोई थी। सेकेण्ड नम्बर में शिरोमणी भक्त कौन है? नारद। हाँ, उनका गायन है, दृष्टान्त दिया जाता है। यह तो सब बातें बैठ बनाई हैं। रीयल नहीं है।

बाप कहते हैं कि मेल-फीमेल सब सीतायें हैं। सब रावण की शोकवाटिका में है। लंका की बात नहीं, भारत की ही बात है। एक ही बाप सर्व का सद्गति दाता है। वह एक न हो तो भारत कुछ काम का नहीं है। सबसे जास्ती पतित और सबसे जास्ती पावन भारत ही बनता है। भारत ही सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। भल अपने-अपने पैगम्बरों के तीर्थों पर जाते हैं परन्तु सबका सद्गति दाता एक बाप है। भारत ही अविनाशी खण्ड है। बाप कहते हैं मैं यहाँ आकर भारत को जीवनमुक्ति देता हूँ, बाकी सबको मुक्ति देता हूँ, सबका सद्गति दाता मैं हूँ। सचखण्ड स्थापन करने वाला बाप एक ही है। सचखण्ड में राज्य करने के लिए बच्चों को लायक बनाते हैं, खुद राज्य नहीं करते। बाप बैठ समझाते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ भारत को सद्गति देने। बाकी सबको गति में वापस ले जाता हूँ। हर एक मनुष्य मात्र की जो आत्मा है, हर एक में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है। इसको कहा जाता है बनी बनाई बन रही..... समझो, किसका बाप मर गया, उसने जाकर दूसरा जन्म लिया, अब रोने से क्या होगा? साक्षी होकर देखना है। यह ड्रामा है, इसमें रोने की दरकार नहीं है। गृहस्थ व्यवहार में तो रहना है। अम्मा मरे तो भी हलुआ खाओ, बीबी मरे तो भी हलुआ खाओ। यह उन्हों के लिए है जो गृहस्थ व्यवहार में रहते हैं। तुम्हारी अवस्था ऐसी होनी चाहिए जो कुछ भी दु:ख न हो। बेहद के बाप को याद करते रहना है। इतनी अडोल अवस्था होनी चाहिए जैसे अंगद को रावण हिला नहीं सका। माया है बड़ी जबरदस्त। तुम स्थेरियम रहते हो। माया के कितने भी तूफान लगे, डोंटकेयर, घबराना नहीं है, फंक नहीं होना है। पुरुषार्थ करके अवस्था को जमाना है। बातें तो बहुत अच्छी समझाते हैं। तुम समझते हो हम पार्वतियां हैं, शिवबाबा अमरकथा सुनाते हैं। अमरलोक में है आदि-मध्य-अन्त सुख। इस मृत्युलोक में तो आदि-मध्य-अन्त दु:ख ही दु:ख है। त्योहार आदि सब इस समय के हैं। लक्ष्मी-नारायण आदि का कोई त्योहार नहीं। वह क्या सर्विस करते हैं। तुम ब्राह्मण बहुत सर्विस करते हो। देवताओं की आत्मा को सोशल वर्कर नहीं कहेंगे - न जिस्मानी, न रूहानी। तुम हो रूहानी-जिस्मानी डबल सोशल वर्कर।

अच्छा, मनुष्यों को नष्टोमोहा बनने में मेहनत लगती है क्योंकि उनके पास कोई एम ऑब्जेक्ट नहीं है। यहाँ तो तुमको प्राप्ति बहुत है तो बहुत नष्टोमोहा होना चाहिए ना। एक बाबा के साथ योग लगाना है - बाबा, ओ मीठे-मीठे बाबा, आपको हमने पूरा जान लिया है, आगे तो सिर्फ कहने मात्र गॉड फादर कहते थे, अभी तो आप आये हो फिर से स्वर्ग की राजाई देने, यह कलियुग तो कब्रिस्तान होने वाला है इसलिए हम इसको क्यों याद करें। बाप कहते हैं इस कब्रिस्तान में, गृहस्थ व्यवहार में रहते मुझे याद करो। यह तो बहुत सहज है। जैसे भक्ति मार्ग में मनुष्य कृष्ण की पूजा करते रहते हैं, बुद्धि धन्धे धोरी में भागती रहती है। मन का घोड़ा कहाँ न कहाँ भागता रहेगा, तवाई के मुआफिक। बाप कहते हैं कि शरीर निर्वाह करते बुद्धि का योग मेरे साथ लगाओ। मेरी याद से तुम्हें बहुत प्राप्ति होगी। और सबसे तो अल्पकाल की प्राप्ति होती है। कितनी नौधा भक्ति की, अच्छा, फिर क्या हुआ? साक्षात्कार किया, बस ना। मुक्ति-जीवन-मुक्ति तो नहीं मिली। अब बाप कहते हैं कि तुम 21 जन्मों के लिए विश्व के मालिक बनते हो। स्वर्ग में गर्भ भी महल होता है। यहाँ तो गर्भ जेल है। कृष्ण जन्माष्टमी आदि का तुमको कुछ भी मनाना करना नहीं है। तुमको सिर्फ समझाना है कि कृष्ण का जन्म कब हुआ? कृष्ण अभी कहाँ है? तुम जानते हो अभी हम कृष्णपुरी का मालिक बनने के लिए पढ़ रहे हैं। बाप के पास बैठे हैं। बाप को हाथ जोड़े जाते हैं क्या? टीचर पढ़ाते हैं तो क्या उनको हाथ जोड़ना होता है, महिमा करनी होती है? टीचर से तो पढ़ना है। बच्चे बाप को घड़ी-घड़ी हाथ जोड़ते हैं क्या? इस समय तो तुम घर में हो। तुमको भासना आती है यह बाप भी है, पतित-पावन भी है। इस समय 5 विकारों का ग्रहण लगने के कारण तुम बिल्कुल ही काले बन गये हो। 5 विकारों ने काला कर दिया है। सतयुग में तुम गोरे सुन्दर थे, अभी श्याम हो। श्रीकृष्ण सुन्दर था, अभी श्याम है। कितने बारी श्याम और सुन्दर बना होगा! कंसपुरी ही कृष्णपुरी बन जाती है। कृष्णपुरी फिर कंसपुरी बन जाती है।

तुम आत्मायें ही तो ब्रह्माण्ड की रहने वाली हो। ब्रह्म तत्व कहा जाता है। अहम् ब्रह्म कहना भी भ्रम है। तुम ब्रह्माण्ड के मालिक हो। तुम्हारा सिंहासन ब्रह्माण्ड है। बाप कहते हैं मैं तो ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ ही। तुम आत्मायें भी कहती हो - हमारा देश वास्तव में ब्रह्माण्ड है। वहाँ तुम्हारी आत्मायें पवित्र हैं। तुम ब्रह्माण्ड के मालिक हो तो फिर विश्व के भी मालिक हो। मैं तो सिर्फ ब्रह्माण्ड का ही मालिक हूँ। मुझे इस पुराने तन में आना पड़ता है, जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं। बच्चों को मुरली अच्छी तरह 5-6 बार पढ़ना वा सुनना चाहिए तब ही बुद्धि में बैठेगी और खुशी का पारा चढ़ेगा। माया घड़ी-घड़ी याद भुला देती है। इसमें कोई हठ आदि करने की बात नहीं। फुर्सत मिली, अच्छा, बाबा को याद करना है कछुए मिसल। सबसे अच्छा है - अमृतवेले का टाइम। उसका असर सारे दिन रहेगा। यह भी बच्चों को समझाया गया है कि पहले खिलाने वाले को खिलाकर फिर खाना है। शिवबाबा के यज्ञ से खाते हैं तो पहले उनको भोग लगाना पड़े। यह सब सूक्ष्मवतन में साक्षात्कार होते हैं। ड्रामा में नूंध है। तुमको भोग लगाना है शिवबाबा को। वह तो निराकार है। गाया भी जाता है देवताओं के लिए - उनको ब्रह्मा भोजन की आश थी क्योंकि तुम ब्रह्मा भोजन खाकर ब्राह्मण से देवता बनते हो। सूक्ष्मवतन में देवतायें आते हैं, महफिल लगती है, यह सब खेल-पाल है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि में पूरी एम ऑब्जेक्ट रख नष्टोमाहा बनना है। इस कब्रिस्तान को भूल बाप को याद करना है। रूहानी जिस्मानी सेवा करनी है।
2) खिलाने वाले को खिलाकर फिर खाना है। अमृतवेले का समय अच्छा है इसलिए उस समय उठकर बाप को याद करना है। मुरली 5-6 बार सुननी वा पढ़नी जरूर है।
वरदान:-
रूहानी नशे द्वारा दु:ख-अशान्ति के नाम निशान को समाप्त करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप भव
रूहानी नशे में रहना अर्थात् चलते-फिरते आत्मा को देखना वा आत्म-अभिमानी रहना। इस नशे में रहने से सर्व प्राप्तियों का अनुभव होता है। प्राप्ति स्वरूप रूहानी नशे में रहने वाली आत्मा के सब दुख दूर हो जाते हैं। दुख-अशान्ति का नाम निशान भी नहीं रहता क्योंकि दुख और अशान्ति की उत्पत्ति अपवित्रता से होती है। जहाँ अपवित्रता नहीं वहाँ दु:ख अशान्ति कहाँ से आई! जो पावन आत्मायें हैं उनके पास सुख और शान्ति स्वत: ही है।
स्लोगन:-
जो सदा एक की लगन में मगन हैं वही निर्विघ्न हैं।