Monday, August 27, 2018

27-08-18 Murli

27-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - श्रीमत पर ज्ञान का चन्दन घिसना वा पवित्र बनना ही स्वराज्य लेना है, तुम पवित्रता की प्रतिज्ञा करो तो सूर्यवंशी घराने का तिलक मिलेगा"
प्रश्न:
तुम बच्चों को राखी कौन बांधता है, तिलक कौन देता है और मुख मीठा कराने की रस्म क्यों है?
उत्तर:
तुम्हें बड़ी मम्मी (ब्रह्मा माँ) राखी बांधती है, पवित्र बनाती है, जब तुम पवित्र बनने की प्रतिज्ञा कर लेते हो तो बाप स्वराज्य का टीका देते हैं। मुख मीठा कराना अर्थात् सर्व वरदान दे देना। बाप ने स्वराज्य के तिलक के साथ-साथ सर्व वरदान भी दिये हैं, इसी की रस्म यादगार में चली आई है।
गीत:-
इधर मुहब्बत उधर जमाना........  
ओम् शान्ति।
भगवानुवाच। अच्छा, भगवान् का नाम चाहिये क्योंकि भगवान् का एक ही नाम होता है। मनुष्यों के तो अनेक नाम पड़ते हैं। जैसा शरीर धारण करते जाते, नाम बदलता जाता है। शरीर तो जरूर सबको है और जन्म-मरण में भी आते हैं। तो अनेक नाम पड़ते हैं। मुहब्बत भी बहुतों से होती है। चाचा, मामा, काका, गुरू-गोसाई आदि ढेर से मुहब्बत होती है। कितने सम्बन्धी हैं! अब यह सम्बन्ध तो है एक। वह अनेक सम्बन्ध तो नीचे ले जाते हैं, गिराते ही रहते हैं। यह एक ही सम्बन्ध ऊंच ते ऊंच है। यह ऊंच ही ले जाते हैं। अभी तुम जीव आत्माओं की मुहब्बत लगी है परमपिता परमात्मा से। वह तुमको बहुत ऊंच ले जाते हैं। वह है ही परमधाम में रहने वाला। यह तो निश्चय है ना? अगर कहें पता नहीं, तो तुम आये कहाँ से? ऊपर से ही यहाँ आये हो ना। तुम भी असल में ऊंच ते ऊंच परमधाम, मूलवतन में रहने वाले हो, बीच में है सूक्ष्मवतन और यह है स्थूल वतन। बरोबर तुम वहाँ से आये हो। भिन्न-भिन्न नाम-रूप लेते हो। अब 84 जन्म पूरे किये, अब फिर वापिस जाना है। अब तुम्हारी मुहब्बत बाप से है। जानते हो हम मात-पिता के सम्मुख बैठे हैं। यह भी जानते हो पहले-पहले हमको पवित्रता की राखी बांधते हैं। बाप कहते हैं - हे बच्चे, इस काम महाशत्रु को जीतो वा माया रावण पर जीत पाओ, इसके लिये पुरुषार्थ करना है। अन्धश्रद्धा की बात नहीं। जरूर बाप को ही याद करना पड़े। बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा तुमको राखी बांधता हूँ। इसको कहा जाता है राखी बांधने का उत्सव, पवित्रता की प्रतिज्ञा करने का उत्सव। फिर क्या होगा? मैं स्वराज्य पाने का टीका दूँगा। यह बाप तुम्हारे सम्मुख बैठे हैं। तुम जानते हो पवित्रता के लिये ही तकल़ीफ सहन करते हैं। तुम्हारे मित्र-सम्बन्धी आदि सब दुश्मन बन पड़ते हैं। बाप तुम्हें डायरेक्ट कहते हैं - बच्चे, पवित्र बनो। बेहद का बाप शिवबाबा आकर तुमको सच्चा स्वराज्य देते हैं। आत्माओं को राजाई मिलती है। अभी आत्माओं को गदाई है।

राखी पर्व को राखी उत्सव नहीं कहेंगे। उत्सव में तो बहुत शादमाना करते हैं। इस पवित्रता की राखी बांधने में कोई खर्चे आदि की बात नहीं। बाप खुद कहते हैं - बच्चे, मेरे से प्रतिज्ञा करो फिर तुम स्वराज्य पायेंगे। स्वराज्य का टीका खुद बैठ देते हैं। बच्चों को बाबा ने साक्षात्कार भी कराया था - वहाँ कैसे बाप ही बच्चों को तिलक देकर अपने तख्त पर बिठाते हैं। तो जो सूर्यवंशी बनेंगे वही गद्दी पर बैठेंगे। माँ-बाप ही बच्चे को राज्य-भाग्य देते हैं। समझते हैं बच्चा ही गद्दी-नशीन होगा। यह बाप भी खुद आकर तुम आत्माओं को ज्ञान-अमृत से साफ करते हैं। ज्ञान-अमृत कोई जल नहीं है। बाप कहते हैं तुमने 63 जन्म विषय सागर में गोते खाये हैं। सिकीलधे बच्चे, अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए, अब यह अन्तिम जन्म तुम पवित्र बनो। मेरी मत पर चलो। तुम स्वराज्य पाने के लिये बाप के पास आये हो ना। राजा के पास बच्चा आता है, समझता है मैं राजाई पाऊंगा। परन्तु उसको कोई स्वराज्य नहीं कहा जाता। स्व माना आत्मा। तो आत्मा को राज्य मिलता है। परन्तु ज्ञान नहीं है कि हम आत्मा ने प्रिन्स का शरीर धारण किया है महाराजा-महारानी बनने के लिये। टीके का भी उत्सव गाया जाता है। बच्चे ज्ञान चन्दन घिसें, पवित्र बनें, श्रीमत पर चलें तो बाप टीका लगायेंगे। बाप खुद तो राज्य नहीं लेते हैं, खुद गद्दी पर नहीं बैठते हैं। ऐसा बाप कभी देखा, जो बच्चों को गद्दी पर बिठाते हैं, खुद नहीं बैठते?

यह ब्रह्मा भी पुरुषार्थी है। शिवबाबा है पुरुषार्थ कराने वाला। यह अपनी बड़ाई कुछ भी नहीं करते हैं। शिवबाबा आकर इनको भी हीरे जैसा बनाते हैं। तो मुख्य बात है पवित्र रहना। भल घर में इकट्ठे रहते हो लेकिन पवित्र रहो। बाप ने यह रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। यज्ञ हमेशा ब्राह्मणों द्वारा रचा जाता है। श्रीकृष्ण कहे कि मैं यज्ञ रचता हूँ, यह हो नहीं सकता। तुम हो ब्राह्मण, ब्रह्मा के मुख वंशावली। तुम श्रीमत पर चल रहे हो। ब्रह्मा को श्री नहीं कह सकते हैं। यहाँ तो आत्मा और शरीर दोनों पतित हैं। तुम श्री बन रहे हो। अभी तुमको श्री नहीं कहेंगे। अभी तुम श्रेष्ठ बन रहे हो। ऊंचे ते ऊंच बाप ही आकर तुमको श्रेष्ठ बनाते हैं, लक्ष्मी-नारायण जैसा। ऐसा श्रेष्ठ 16 कला सम्पूर्ण तुमको बनना है। बाप पूछते हैं तुमको लक्ष्मी-नारायण बनने का नशा है या राम-सीता का नशा है? कहेंगे लक्ष्मी-नारायण का नशा है। हम तो सूर्यवंशी बनेंगे। दो कला कम हम चन्द्रवंशी क्यों बनें? हम तो नारायण को अथवा लक्ष्मी को वरेंगे। तुम्हारे मम्मा और बाबा भी सूर्यवंशी बनेंगे। जगत अम्बा और जगत पिता दोनों सूर्यवंशी बनते हैं तो तुम उनके बच्चे जो बाबा-मम्मा कहते हो तुमको भी पुरुषार्थ करना चाहिये। बाबा टीका भी लगाते हैं और मुख भी मीठा कराते हैं अर्थात् तुमको वरदान देते हैं ना। विजय का टीका लगाकर वरदान देते हैं कि तुम सदा ऐसा स्वराज्य पायेंगे। यथा राजा-रानी तथा प्रजा राज्य-भाग्य भोगते हैं। परमपिता परमात्मा द्वारा एक ही बार राज्य स्थापन होता है। यह है ऑलमाइटी अथॉरिटी राज्य। वाइसलेस दुनिया भी गाई हुई है। सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम देवतायें कभी काम कटारी से हिंसा नहीं करते हैं। 63 जन्म तो तुम एक-दो पर काम कटारी चलाते आये हो। अमरलोक में काम कटारी नहीं होती। यहाँ काम कटारी से तुम पतित होते-होते तमोप्रधान बन पड़े हो।

अभी तुम बच्चे समझते हो - बरोबर, बाप स्वर्ग की स्थापना करते हैं। भारत में ही जन्म लेते हैं। बाप ने वैकुण्ठ की सौगात लाई है। आधाकल्प रड़ियाँ मारी है - ओ गॉड फादर, रहम करो, मेहर करो। भक्ति मार्ग में गाते हैं ना। सतयुग में थोड़ेही रड़ियां मारेंगे। वहाँ तो सदैव सुख है। दु:ख में सिमरण सब करे, सुख में करे न कोई। अनेक प्रकार के दु:ख होते हैं ना। देवाला मारते हैं तो कितना दु:ख होता है। बीमारी आदि होती है तो दु:ख होता है ना। स्वर्ग में दु:ख का नाम-निशान नहीं। बाप आकर तुम बच्चों को राज्य-भाग्य का टीका देते हैं। यह है दु:खधाम, वह है सुखधाम। शान्तिधाम में तो आत्मा कुछ बोलती नहीं है। यहाँ फिर टॉकी बनती है। तुम्हारा स्वधर्म ही है शान्ति। अभी तुमको सुख-शान्ति का स्वराज्य मिलता है। तो बाप का बच्चा बनकर उनकी श्रीमत पर चलना चाहिये। पढ़ाई के समय सारा अटेन्शन पढ़ाई में देना होता है। पढ़ाई के समय और व्यर्थ बातों का वर्णन नहीं चलता। अगर कोई उल्टा-सुल्टा बोलते हैं तो कहेंगे - अटेन्शन प्लीज़। तो बाप बच्चों को कहते हैं तुम्हारी बुद्धि भटकनी नहीं चाहिए। बाहर धक्के खाने वालों के ख्यालात इधर-उधर दौड़ते रहेंगे। समझेंगे कहाँ छुट्टी हो तो घर जायें। अब तुम बच्चों को पढ़ना और पढ़ाना है। ब्राह्मणों का धन्धा ही है गीता सुनाना। वह ब्राह्मण भी गीता सुनाते हैं, शरीर निर्वाह भी करते हैं। तुमको भी ऐसे कहा जाता है गृहस्थ व्यवहार में कमल फूल समान पवित्र रहना है। प्रतिज्ञा करनी है - यह अन्तिम जन्म पवित्र रहेंगे। यह अपवित्र दुनिया विनाश होनी है। विनाश की तैयारी भी देख रहे हो। होलिका जलेगी। वास्तव में यह सब उत्सव इस समय के हैं। बाप तुमको तिलक देते हैं। तुम्हारी बुद्धि कहती है - बाबा हमको सतयुग का, विश्व का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं अथवा स्वराज्य का तुम तिलक पाते हो। बाप ही तिलक देते हैं। यहाँ तो तुम सम्मुख बैठे हो। राज्य-भाग्य वह लेंगे जो पवित्र रहेंगे। राखी का महत्व बड़ा भारी है। कहते हैं - बहन भाई को टीका लगाकर राखी बांधती हैं। तो बहनें तुम भाइयों को तिलक लगायेंगी, राखी बांधेंगी और मुख मीठा करायेंगी। यह उत्सव कहाँ से शुरू हुआ? संगमयुग से, जबकि परमपिता परमात्मा पवित्र रहने की प्रतिज्ञा कराते हैं। शिवरात्रि का भी उत्सव है, फिर राखी का उत्सव, फिर है दशहरा, फिर दीपावली का उत्सव, नवरात्रि का उत्सव - यह सब उत्सव चलते आये हैं। तुमको तो खुशी होती है। दशहरा अर्थात् विनाश के बाद फिर दीपावली आयेगी। घर-घर में स्वर्ग होगा।

तुम शिवबाबा की, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की, लक्ष्मी-नारायण की - सबकी जीवन कहानी बता सकते हो। सारे चक्र को तुम जानते हो। राम-सीता को भी तुम जानते हो, नापास हुए इसलिये मार्क्स कम मिली। बाकी 8-10 भुजायें कोई को हैं नहीं। कितने चित्र बैठकर बनाये हैं। इसको कहा जाता है वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी, वेस्ट ऑफ इनर्जी। अभी तुम जानते हो - हम आये हैं स्वराज्य का वर्सा लेने। हम श्रीमत पर क्यों नहीं चलेंगे, जैसे मात-पिता चल रहे हैं। यह तो समझने की बात है। बाप है मनुष्य सृष्टि का रचयिता। बेहद का बाप है ना। कितने बच्चे एडाप्ट करते हैं। प्रजापिता है ना। वह लौकिक बाप तो करके एक बच्चे को गोद में लेते हैं। उनको प्रजापिता तो नहीं कहेंगे ना। कई ऐसे भी होते हैं, एडाप्ट करते हैं फिर बच्चा हो जाता है तो उस बच्चे पर जास्ती प्यार हो जाता है। गोद में लिये हुए बच्चे को फिर कम प्यार करते हैं। अब तुम तो समझते हो हम ईश्वरीय गोद में जाते हैं। ईश्वर हमको टीका लगायेंगे - पवित्रता का। तुम दिल अन्दर प्रतिज्ञा करते हो - बाबा, आप आये हो, हम आपका सपूत बच्चा बन, पवित्र बन आपसे वर्सा लेंगे।

अभी सबकी कयामत का समय है। पापों का हिसाब-किताब चुक्तू कर पुण्य का जमा करना है। बाप की याद से ही जमा होता है। जितना याद करते जायेंगे और अविनाशी ज्ञान-रत्नों का दान करते जायेंगे तो ख़ाता जमा होगा। जितना सर्विस करेंगे उतना जमा होगा। जमा होते-होते राजधानी बन जायेगी। 8 हैं मुख्य रत्न। 8 रत्न का जेवर भी बनाते हैं ना। देवियों के साथ देवतायें भी होंगे ना। परन्तु मैजारिटी माताओं की होने के कारण अधिकतर देवियों की पूजा होती है। अच्छा, राखी कौन बांधते हैं? शिवबाबा खुद तुम्हारे सम्मुख बैठे हैं। तो शिवबाबा राखी भी बांधेंगे, तिलक भी देंगे, मुख भी मीठा करायेंगे। इसका मतलब तुम भविष्य में सदा सुखी रहेंगे। तुम फिर बाबा को सौगात देते हो ना। क्या सौगात देते हो? अपना सब कुछ। तो बाबा कहते हैं - मैं फिर तुमको 21 जन्म का वर्सा देता हूँ, लेन-देन का हिसाब है ना। बाबा सौदागर है। लेते क्या हैं और देते क्या है? कहते हैं ईश्वर अर्थ दान दिया क्योंकि जानते हैं ईश्वर भाड़ा देगा। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में भी मैं तुमको भाड़ा देता हूँ। अभी फिर डायरेक्ट आया हूँ। तुमको कितना अविनाशी रत्नों का दान देता हूँ। तुम भी फिर औरों को दान करते हो। तुम तो सब भाई-भाई हो, तुमको फिर यह बड़ी मम्मी राखी बांधती है। बाप तिलक लगाते हैं। यह मात-पिता दोनों इकट्ठे हैं। माँ राखी बांधे, बाप तिलक दे तो तुम राजा-रानी बन जायेंगे। तुम्हारी मुहब्बत परमात्मा से है, जो भारतवासियों को तिलक देने आया है। भारत को स्वर्ग किसने बनाया? बाप आया है ना। श्रीकृष्ण तो है रचना नम्बरवन और शिवबाबा है रचयिता नम्बरवन। तो तुम बच्चों को खुशी का पारा नाखून से चोटी तक रहना चाहिये। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) दिल की मुहब्बत एक बाप से रखनी है, देहधारियों से नहीं क्योंकि सर्व सम्बन्धी एक बाप है।
2) पढ़ाई के समय अपना फुल अटेन्शन पढ़ाई में देना है, व्यर्थ बातों का वर्णन-चिन्तन नहीं करना है। बुद्धि को भटकाना नहीं है।
वरदान:
अपने शुभ चिंतन द्वारा वातावरण को शक्तिशाली बनाने वाले सदा सहयोगी सन्तुष्ट आत्मा भव!
कभी किसी बात के कारण वातावरण नीचे ऊपर होता है तो सहयोगी आत्माओं का काम है हलचल में आने के बजाए वातावरण को शक्तिशाली बनाने में सहयोगी बनना। सदा सहयोगी अर्थात् सदा सन्तुष्ट। एक बाप दूसरा न कोई। कोई भी संकल्प आये तो ऊपर देकर स्वयं नि:संकल्प हो जाओ। स्व-उन्नति और सेवा की उन्नति में बिजी रहो। शुभ भावना से जो शुभ सकंल्प रखेंगे वह पूरा अवश्य होगा लेकिन उसके लिए अवस्था एकरस हो और चिंतन शुभ हो।
स्लोगन:
सबसे बड़े धनवान वह हैं जिनके पास पवित्रता का सर्वश्रेष्ठ खजाना है।