Tuesday, August 21, 2018

21-08-18 प्रात:मुरली

21-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे लाडले बच्चे - बाप आये हैं तुम्हारे लिए स्वर्ग की नई दुनिया स्थापन करने, इसलिए इस नर्क से दिल न लगाओ, इनको भूलते जाओ"
प्रश्नः-
रहमदिल बाप तुम बच्चों पर किस रूप से कौन-सा रहम करते हैं?
उत्तर:-
बाबा कहते हैं - मैं बाप रूप से मीठी सैक्रीन बन तुम बच्चों को इतना प्यार देता हूँ जो दुनिया में दूसरा कोई भी दे न सके। मैं तुम्हें पवित्र प्यार की दुनिया का मालिक बना देता हूँ। टीचर बन तुम्हें ऐसी पढ़ाई पढ़ाता हूँ जो तुम बहिश्त की बीबी बन जाते हो। यह पढ़ाई है मनुष्य से देवता बनने की। यह ज्ञान रत्न तुम्हें विश्व का मालिक बना देते हैं।
गीत:-
कौन है माता, कौन है पिता. .....
ओम् शान्ति।
बच्चों को ओम् शान्ति का अर्थ समझाया जाता है। ओम् का अर्थ है - आई एम आत्मा, मैं आत्मा निराकार परमात्मा की सन्तान हूँ। शरीर का फादर वह है, जिसने जन्म दिया है। उनको कहा जाता है शरीर को जन्म देने वाला फादर और शिवबाबा है आत्माओं का बाप। वह तो है ही है। ढेर के ढेर करोड़ों आत्मायें अपनी निराकारी दुनिया में रहती हैं। वहाँ सदैव निर्विकारी ही हैं, विकारी तो परमधाम में रह न सकें। पहले तो यह बात पक्की करनी पड़ेगी - मैं आत्मा, मेरा बाप परमात्मा। आत्मा के सम्बन्धी सब भाई-भाई हैं। इस शरीर के बाप को कहा जाता है लौकिक बाप। आत्मा के बाप को कहा जाता है पारलौकिक बाप। जो सभी का एक ही है। पुकारते भी हैं ना - "ओ गॉड फादर, ओ पतित पावन, रहमदिल।" यह आत्मा ने पुकारा बाप को। आत्मा इस शरीर के साथ दु:खी है। फिर सतयुग में आत्मा को शरीर के साथ सुख है, इसलिए उसका नाम ही है सुखधाम, स्वर्ग। यह है नर्क। गाया भी जाता है ना दु:ख में सिमरण सब करें. . . . याद करते हैं पतित-पावन को। समझते हैं - पतित-पावन बाप ऊपर परमधाम में रहता है। गंगा को पतित-पावनी नहीं कहेंगे। गंगा को तो इन आंखों से देखा जाता है। निराकार बाप को अथवा आत्मा को नहीं देखा जा सकता। परमपिता परमात्मा प्राण दाता, जो दिव्य चक्षु विधाता है, उनको कहा जाता है ओ गॉड फादर, क्रियेटर। अच्छा, फिर मदर कहाँ से आई? मदर बिगर बाप सृष्टि की रचना कैसे रचें? मदर तो जरूर चाहिए ना। गॉड फादर मनुष्य सृष्टि का रचयिता, वह है सबका बाप। फादर है तो मदर भी जरूर होगी। बाप आकर समझाते हैं मैं हूँ ही निराकार। मैं जब आऊं, शादी करुँ तब बच्चे होंगे। परन्तु शादी तो करनी नहीं है। बच्चे पैदा करने हैं - शादी बिगर। बच्चों को मैं एडाप्ट करता हूँ। समझो कोई को स्त्री नहीं है, चाहते हैं कि अपनी मिलकियत किसको देकर जाऊं, फिर धर्म के बच्चे बनाते हैं, एडाप्ट करते हैं तो माँ-बाप दोनों ठहरे ना। तो बेहद का बाप कहते हैं कि मैं भी फादर हूँ। मैं कैसे रचूँ? समझ की बात है ना। बाप खुद आकर समझाते हैं मुझे शरीर तो चाहिए ना। तो इनका आधार लेता हूँ। तुम कहते हो हम ईश्वर की सन्तान हैं। ईश्वर की सन्तान तो सब हैं, परन्तु इस समय बाप सम्मुख आया हुआ है। तुम बच्चों को गोद में लेते हैं। तुम समझते हो हम बाबा के बच्चे बने हैं। बाप है स्वर्ग का रचयिता। स्वर्ग का मालिक बनाने के लिए राजयोग सिखलाते हैं। खुद बैठ बतलाते हैं - मैं निराकार गॉड फादर हूँ। निराकार को मनुष्य सृष्टि का रचयिता कैसे कह सकते? तो बच्चों को एडाप्ट कर उन्हों को ही बैठ समझाते हैं कि मैं शिव निराकार हूँ। तुम भी निराकार आत्मायें हो। तुम गर्भ जेल में आते हो, मैं गर्भ जेल में नहीं आता हूँ। तुम्हारे लिए है आधा कल्प गर्भ महल, आधा कल्प है गर्भ जेल क्योंकि आधाकल्प माया रावण पाप कराती है। सतयुग में माया होती नहीं जो पतित दु:खी बनाये। मैं 21 जन्मों के लिए तुमको स्वर्ग का वर्सा देता हूँ। नई दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है। मकान भी पुराना होता है तो पुराने को छोड़ नये में जाते हैं। यह भी पुरानी दुनिया है ना। वह है नई दुनिया गोल्डन एज, पावन दुनिया। तो बाप कहते हैं - लाडले बच्चे, मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग स्थापन कर रहा हूँ, तुम फिर नर्क से दिल क्यों लगाते हो? अब नर्क को भूल जाओ। मुझ बाप और स्वर्ग को याद करो, पुरानी दुनिया को भूलते जाओ। यह है बेहद का सन्यास। पुरानी देह सहित जो कुछ भी देखते हो, उनका भी ममत्व छोड़ो। समझो, हम सब कुछ ईश्वर को देते हैं। यह शरीर, धन, दौलत, बच्चे आदि सब ख़त्म हो जाने वाले हैं। यह वही महाभारी महाभारत लड़ाई है, जिसके द्वारा मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्स खुलने हैं। हरी का द्वार कहते हैं ना। हरी कहा जाता है कृष्ण को, उनका द्वार है बैकुण्ठ। बैकुण्ठ के गेट बाप आकर खोलते हैं। वहाँ कोई पतित जा नहीं सकता इसलिए पतित से पावन बनाते हैं, दु:ख से लिबरेट करते हैं। और कोई लिबरेट कर न सके। दु:ख हर्ता, सुख कर्ता बाप ही है। बाप कहते हैं - मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। सदा के लिए सुख देने आया हूँ। मैं तुम्हारे लिए बैकुण्ठ हथेली पर लाया हूँ। तुम राजयोग सीखकर मनुष्य से देवता बनते हो। बुद्धि भी कहती है कि बरोबर समझ की बातें हैं। समझो, यह पुरानी दुनिया है फिर यह नई बनेगी। सर्वशक्तिमान एक ही बाप है जो अपनी शक्ति से स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। चाहते भी हैं एक राज्य हो, ऑलमाइटी अथॉरिटी राज्य हो। सो तो सतयुग-त्रेता में अटल, अखण्ड, सुख-शान्तिमय देवी-देवताओं की राजधानी थी, कोई विघ्न नहीं था। उनको अद्वैत राज्य कहा जाता है। दूसरा धर्म ही नहीं, जो दु:खी बनें। अभी देखो भल क्रिश्चियन एक ही धर्म के हैं तो भी उन्हों की आपस में बहुत लड़ाई होती है क्योंकि माया का राज्य है। सतयुग में माया होती नहीं। अभी कहते हैं - ओ गॉड फादर रहम करो। बाप कहते हैं - रहम तो सब पर करुँगा। सब बच्चों को पापों से मुक्त करता हूँ अर्थात् पतित दुनिया से लिबरेट करता हूँ। तुम सब आत्माओं को ले जाता हूँ निराकारी दुनिया में। बाकी शरीर तो भस्म हो जायेंगे। नैचुरल कैलेमिटीज गाई हुई है। आसार भी देख रहे हो। फैमन पड़ना जरूर है।

अब बाप कहते हैं इस छी-छी दुनिया से ममत्व तोड़ो। बेहद का बाप है पीन। कहते हैं मैं जो तुमको प्यार करता हूँ, सो कोई कर न सके। अभी तुमको पवित्र दुनिया का मालिक बनाता हूँ। राजाई के लिए तुम पढ़ रहे हो। एम ऑब्जेक्ट बुद्धि में है। नया तो कोई समझ न सके, जब तक कि कोई बैठ उनको समझावे। एक हफ्ता बैठ समझें कि मनुष्य से देवता बनना है इसलिए बाप को जादूगर कहा जाता है। ज्ञान रत्नों से मनुष्य को देवता बनाता हूँ। उनको रत्नागर, सौदागर, मुसाफिर भी कहते हैं। तुमको आकर स्वर्ग की महारानी-महाराजा बनाते हैं। मुसाफिर कितना हसीन है! तुम जो कोई काम के नहीं थे, अब तुमको पढ़ाकर बहिश्त की बीबी बनाता हूँ। तुम जानते हो हम सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनने के लिए पढ़ रहे हैं। परमात्मा पढ़ाते हैं। तुम यहाँ क्या पढ़ते हो? तुम कहेंगे मनुष्य से देवता बनने के लिए पढ़ रहे हैं क्योंकि यह आसुरी गुणों वाली मनुष्य सृष्टि विनाश होने वाली है। कहते भी हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। तो वही रहमदिल बाप बैठकर तुमको पढ़ाते हैं। सभी धर्मों वाले एक निराकार बाप को ही परमात्मा मानेंगे। मनुष्य भल गॉड फादर कहते हैं परन्तु जानते नहीं कि वह कौन है, कहाँ आते हैं? अभी तुम जानते हो वह पुरानी पतित दुनिया में आते हैं क्योंकि पावन दुनिया स्थापन करते हैं। पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाते हैं। नई दुनिया में तो सुख ही सुख है। बाबा कहते हैं नई दुनिया स्थापन करने कल्प-कल्प मुझे आना ही है। यह तो बुद्धि समझती है कि रात के बाद है दिन। फिर चक्र में कलियुग आता है। कलियुग के बाद फिर सतयुग जरूर होगा ना। तुम बच्चों को कहा ही जाता है स्वदर्शन चक्रधारी। आत्मा जानती है मैं 84 जन्म कैसे लेती हूँ। कोई मनुष्य, मनुष्य को सद्गति दे न सके। मैं ही आकर समझाता हूँ। हम तुमको पावन बनाते हैं, योगबल से तुम विश्व पर जीत पाते हो। बाप है सर्वशक्तिमान। बाप से तुमको बेहद का वर्सा मिलता है। आकाश, पृथ्वी, सागर आदि सब तुम्हारा हो जायेगा। यहाँ तो देखो आकाश पर भी हद, पानी पर भी हद लगी है ना। कहते हैं हमारे पानी के अन्दर तुम नहीं आओ। तुम तो वहाँ सारे विश्व पर राज्य करते हो ना। स्वर्ग तो फिर क्या! स्वर्ग को भूल नहीं सकते। मनुष्य जब मरते है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। परन्तु स्वर्ग है कहाँ? ज़रूर नर्क है ना। यह है ही हेल। सब मनुष्य दु:खी हैं, सब पतित हैं। यह राज्य ही रावण का है, जिसको जलाते रहते हैं परन्तु जलता ही नहीं है। रावण को एक सौ फुट लम्बा बनाते हैं और बढ़ाते रहते हैं। दिन-प्रतिदिन लम्बा करते रहते हैं परन्तु समझते नहीं हैं। यह समझ की बातें हैं।

यहाँ देखो मुरली चलती है तो फिर टेप में भरी जाती है क्योंकि गोपिकायें मुरली बिगर रह न सकें। तो यह प्रबन्ध है। मुरली बिगर तो तड़फते हैं क्योंकि यह मुरली है जीवन हीरे जैसा बनाने वाली। यहाँ बाबा पढ़ाते हैं, जो मुरली फिर लण्डन-अमेरिका तक जाती है। बच्चे सुनकर बहुत खुश होते हैं। गाया हुआ है गोपिकायें मुरली बिगर रह नहीं सकती थी। यह नॉलेज गॉड फादर ही सुनाते हैं। मुख्य एक बात समझानी है कि यह हमारा बेहद का बाप है, इनसे स्वर्ग का वर्सा मिलता है। आत्मा कहती है मेरा बाप परमात्मा है, वह आत्माओं को पढ़ा रहे हैं। ऐसा और कोई कह न सके कि मैं परमात्मा तुम आत्माओं को पढ़ाता हूँ। ऐसे भी नहीं कहेंगे कि मैं परम आत्मा नॉलेजफुल हूँ। तुम बच्चों को बहुत अच्छी रीति समझाया जाता है, परन्तु सबकी बुद्धि एकरस तो नहीं होती है। कोई की सतोप्रधान बुद्धि है, कोई की सतो, रजो, तमो.... इसमें टीचर क्या करेंगे? टीचर कहेंगे पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन नहीं देते थे। गॉड फादर है नॉलेजफुल। जैसे टीचर नॉलेजफुल है, स्टूडेन्ट को पढ़ाते हैं, आप समान बनाते हैं, वैसे इस सृष्टि चक्र की नॉलेज गॉड फादर के पास ही है, और कोई नहीं जानते। बाप ही नॉलेज सिखलाए नॉलेजफुल बनाते हैं। बाप है नॉलेजफुल, सबसे ऊंच है। ऊंचा जिसका नाम है, ऊंचा ठांव है। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर है सूक्ष्मवतनवासी। थर्ड ग्रेट में हैं मनुष्य। मनुष्यों में भी ग्रेड है। सतयुग में मनुष्यों की ग्रेड बड़ी ऊंची रहती है। तुम गोल्डन एज में जाते हो। आइरन एज खत्म हो जायेगा। गोल्डन एज है तो सिल्वर एज नहीं, कॉपर एज है तो आइरन एज नहीं। यह सब बातें बुद्धि में रखनी है, इसलिए चित्र बनवाये हैं। सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। कलियुग में तो ढेर के ढेर मनुष्य हैं। पूछते हैं - बाबा, विनाश कब होगा? विनाश तब होगा जब नाटक पूरा होगा, सब चले जायेंगे। बाबा है मुक्ति जीवनमुक्ति का गाइड। वह रहते हैं परमधाम में। तुम भी वहाँ के रहने वाले हो, यहाँ आये हो पार्ट बजाने। बाप कहते हैं - बच्चे, तुम्हें माया पर जीत पानी है। इसमें हिंसा की कोई बात नहीं है। सतयुग में हिंसा होती नहीं। वहाँ हैं ही सम्पूर्ण निर्विकारी देवी-देवतायें। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बुद्धि से बेहद का सन्यास करना है। पुरानी देह सहित जो कुछ इन आंखों से दिखाई देता है उनसे ममत्व निकाल बाप और स्वर्ग को याद करना है।
2) पढ़ाई को अच्छी रीति धारण कर बुद्धि को सतोप्रधान बनाना है। मुरली ही पढ़ाई है। मुरली पर बहुत-बहुत ध्यान देना है।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन में सदा आनंद वा मनोरंजन का अनुभव करने वाले खुशनसीब भव
खुशनसीब बच्चे सदा खुशी के झूले में झूलते ब्राह्मण जीवन में आनंद वा मनोरंजन का अनुभव करते हैं। यह खुशी का झूला सदा एकरस तब रहेगा जब याद और सेवा की दोनों रस्सियां टाइट हों। एक भी रस्सी ढीली होगी तो झूला हिलेगा और झूलने वाला गिरेगा इसलिए दोनों रस्सियां मजबूत हो तो मनोरंजन का अनुभव करते रहेंगे। सर्वशक्तिमान का साथ हो और खुशियों का झूला हो तो इस जैसी खुशनसीबी और क्या होगी।
स्लोगन:-
सबके प्रति दया भाव और कृपा दृष्टि रखने वाले ही महान आत्मा हैं।