Saturday, August 4, 2018

04-08-18 प्रात:मुरली

04-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हें मुख से कुछ भी बोलना नहीं है, सच्चे दिल से एक बाप को निरन्तर याद करना है, सच्चे दिल पर ही साहेब राज़ी है"
प्रश्नः-
सबसे अच्छा मैनर (चरित्र) कौन सा है? किस देवताई मैनर्स को तुम्हें धारण करना है?
उत्तर:-
सदा हर्षित रहना बहुत अच्छा मैनर है। देवतायें सदा हर्षित रहते हैं, खिलखिलाकर हंसते नहीं। आवाज से हंसना भी एक विकार है। तुम बच्चों को याद की गुप्त खुशी रहनी चाहिए। फैमिलियरटी का संस्कार भी बहुत नुकसानकारक है। सर्विस की सफलता के लिए अनासक्त वृत्ति चाहिए। नाम-रूप की बदबू जरा भी न हो। बुद्धि बहुत स्वच्छ चाहिए। इसी धारणा से जब सर्विस करते, दूसरों को आप समान बनाते तो चेहरा हर्षित रहता है।
गीत:-
न वह हमसे जुदा होंगे......  
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार क्योंकि कहा जाता हैं सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। दिल भी आत्मा में है ना। तो सच्चे साहेब को याद करो तो सुख मिलेगा। याद माना अन्दर में बाप को याद करना है। जप साहेब को। जप का अर्थ यह नहीं कि मुख से कुछ बोलते रहो। नहीं, याद करते रहो तो बहुत सुख मिलेगा। औरों को भी आप समान बनाना है। किसको समझाना भी बड़ा सहज है। जैसे सच्ची पतिव्रता स्त्री सिवाए पति के और किसको भी लॅव नहीं करती है, वैसे ही आत्मा को उस पारलौकिक बेहद के बाप को सच्ची दिल से याद करना है। जैसे आशिक-माशूक का प्यार होता है। वह नाम-रूप पर मरते हैं, विकार की कोई बात नहीं रहती। आशिक माशूक को, माशुक आशिक को याद करते हैं। बस, और कहाँ बुद्धि नहीं जाती। भल धन्धाधोरी भी करते हैं परन्तु दिल एक के साथ रहती है। वह पवित्र याद होती है। शरीर और बुद्धि अपवित्र नहीं रहती। उसका भी गायन है, परन्तु ऐसे बहुत थोड़े हैं। इस ज्ञान में भी सच्चे आशिक बहुत थोड़े हैं। माया ऐसी है जो नाक से पकड़ लेती है। दृष्टान्त दिया हुआ है अंगद का। रावण ने कहा - देखें, यह हिलता है वा नहीं? जो तीखे-तीखे महारथी हैं उनको ही माया पछाड़ती है। जैसे चूहा काटता है, फूँक ऐसी देता है जो पता भी नहीं पड़ता है। ऐसे माया भी बड़ी जबरदस्त है। जो कोई बेकायदे चलन चलते हैं तो अन्दर से ही बुद्धि को गुप्त ताला लगा देती है। इसमें समझने की बड़ी बुद्धि चाहिए। बाबा को याद करने का बड़ा अभ्यास चाहिए। बाप में पूरा-पूरा लॅव चाहिए।

तुमको सर्विस करनी है अनासक्त होकर। भल कोई कितना अच्छा बच्चा है परन्तु ऐसे नहीं कि उनके नाम-रूप में फँस पड़ना है, इससे बड़ा नुकसान कर देते हैं। बाप कहते हैं अपने को अशरीरी आत्मा समझकर मुझे याद करो। अपने को स्वच्छ रखो। तुम शिवबाबा के बनते हो, वह तुमको स्वच्छ बनाते हैं। विकारों को निकाल देना है। तुम्हारा नाम ही है शिव शक्तियां। तुमको सर्वशक्तिमान से शक्ति मिलती है, तो अच्छी तरह उनसे योग लगाना पड़े। बाप कहते हैं निरन्तर याद करना मासी का घर नहीं है। भोजन करते समय कितनी कोशिश करते हैं फिर भी भूल जाते हैं। बहुत कोशिश करते हैं - सारा समय बाप की याद में खायें क्योंकि वह हमारा बहुत प्यारा है, क्यों न हम उनको याद कर खायें तो साथ में रहेगा। फिर भी घड़ी-घड़ी याद भूल जाती है। भक्ति मार्ग में भी बुद्धि और-और तरफ भटकती रहती है। यह तो है ज्ञान की बात। इन बातों को बच्चे भी पूरा नहीं समझते हैं। कई बच्चे अजुन रेगड़ी पहनते रहते हैं। अगर निरन्तर योग लग जाए तो समझा जाए कि अब कर्मातीत अवस्था आ रही है। परन्तु याद ठहरती नहीं है, बड़ी युद्ध चलती है। बाबा देखते हैं बहुतों का बुद्धियोग भटकता है, अशरीरी बनने में मेहनत लगती है। बहुत थोड़े हैं जो सच बोलते हैं। कहने में लज्जा आती है। माया बड़ी दुश्तर है। एकदम माथा मूड़ लेने में देरी नहीं करती है। ऐसे नहीं, हम तो बच्चे हैं ही। युक्तियाँ भी बतलाई जाती हैं। पहले तो कर्मातीत अवस्था में जाना है फिर है नम्बरवार पद। बाबा जानते हैं - बच्चों को माया बड़ा हैरान करती है, याद ठहरने नहीं देती है। बहुतों की अवस्था देखी जाती है। नाम-रूप में फँस पड़ते हैं। अपने को अशरीरी समझने का अभ्यास करना है क्योंकि बहुत समय से अपने को अशरीरी नहीं समझा है। सतयुग में यह ज्ञान पूरा रहता है कि मैं आत्मा हूँ, मुझे यह पुराना शरीर छोड़ नया लेना है। साक्षात्कार भी हो जाता है। परोक्ष, चाहे अपरोक्ष, समझते हैं - अभी शरीर की आयु पूरी आकर हुई है। जैसे कोई मरने पर होता है तो कहते हैं हमको ऐसा लगता है कि अब मरुँगा, रह नहीं सकूँगा। वहाँ फिर समझते हैं अब शरीर बड़ा हो गया है, इसको अब छोड़ना है। अपने टाइम पर खुशी से छोड़ देते हैं। आत्मा का ज्ञान पूरा है। बाप का ज्ञान बिल्कुल नहीं है। ड्रामा में है नहीं। वहाँ बाप को क्यों याद करें? दरकार ही नहीं। यहाँ तो दु:ख में मनुष्य याद करते हैं और तुमको फिर अपने को आत्मा समझ बाप से योग लगाना है। यह शरीर तो पुराना है। इससे तो बिल्कुल ऩफरत आनी चाहिए। भल कितना भी खूबसूरत, सुहाना (सुन्दर) शरीर हो, लेकिन लामुज़ीब तो सब काले हैं क्योंकि आत्मा काली है। यह बुद्धि से समझने की बात है। शरीर कोई सबके काले तो नहीं होते हैं। यह तो हवा पानी पर होता है। जहाँ ठण्ड जास्ती होती है वहाँ सफेद मनुष्य होते हैं। तो बाप समझाते हैं - बुद्धि का योग एक से लगाना है। जैसे लॅव-मैरेज करते हैं ना। यह भी तुम्हारी आत्मा की लॅव-मैरेज है। फिर इस देह के साथ भी लॅव नहीं रहता है। अपनी देह से ही लॅव नहीं तो फिर औरों की देह से क्या लॅव रखना है। दुनिया में तो काले और गोरे शक्ल पर भी चलता है। कोई-कोई बिगर देखे सगाई कर लेते हैं फिर जब शक्ल देखते हैं तो कहते हैं हमको ऐसी काली नहीं चाहिए। फिर झगड़ा हो जाता है - हम पैसे को क्या करें, हमें तो सुन्दर चाहिए।

अब तुम जानते हो - हम आत्मा हैं। इस पुराने शरीर से मोह नहीं रखना है। यह तो विकारी संबंध हैं ना। दुनियावी बातों से अपनी बात न्यारी है। अभी तुम्हारी काली आत्मा की सगाई हुई है गोरे मुसाफिर से। जानते हो इस दुनिया में सबकी आत्मा काली ही काली है। गोरे से संबंध जोड़ आत्मा को गोरा बनाना है। एक मुसाफिर सैकड़ों-हजारों को हसीन बनाते हैं। काली आत्मा को गोरा बनाना है। इसमें बड़ा अच्छा योग चाहिए। काला रह जाने से एक तो सज़ा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। यहाँ किसके नाम-रूप में नहीं लटकना है। बड़ी डिस-सर्विस हो पड़ती है इसलिए बाबा समझाते हैं - ख़बरदार रहो, तुम माया की चकरी में आ गये हो, परन्तु समझते नहीं। भावी छोड़ती नहीं। अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं। बाप कहते हैं - योग अग्नि से अपनी आत्मा को पवित्र बनाना है। यह है भट्ठी। बाप के साथ योग लगाना है। और तरफ बुद्धि जाती है तो व्यभिचारी ठहरा। सर्विस कर न सके। पद भी पा नहीं सकेंगे। योग अग्नि से ही खाद निकल सकेगी। योग है तो ज्ञान भी ठहरेगा।

बाबा रूप भी है, बसन्त भी है। तुम बच्चे भी जितना रूप बनते जायेंगे उतना ज्ञान की धारणा होगी। पहले आत्मा को पवित्र बनाना है। योग-योग कहते हैं परन्तु तुम्हारे में भी कई योग का अर्थ नहीं समझते। योग के बिना अपने को अथवा भारत को पवित्र बना नहीं सकेंगे। भल सर्विस भी करते हैं, सेन्टर खोलते हैं परन्तु माया नाक से एकदम पकड़ लेती है। अंहकार आ जाता है - हमने इतने सेन्टर खोले हैं। देह-अभिमान आ जाता है। बाप तो समझाते हैं अपने को आत्मा समझ योग लगाओ बाप से। कोई भी विकर्म न बन जाए। अगर बाबा को भूल कोई के नाम-रूप में फँसते हो तो बड़ा नुकसान हो जाता है। यह बड़ी मंज़िल है। विश्व का मालिक बनना कम बात है क्या! बाप की कितनी महिमा है! कितने मन्दिर बनाते हैं - उनके नाम पर! तुम जानते हो सोमनाथ का मन्दिर किसने और कब बनाया। मन्दिर भी नम्बरवार बनते हैं। सोमनाथ के बाद फिर है लक्ष्मी-नारायण का अथवा जगदम्बा का मन्दिर। मनुष्य थोड़ेही जानते हैं कि सोमनाथ का मन्दिर किसने बनाया? वह तो निराकार है। निराकार के पुजारी निराकार शिव को ही पूजेंगे। परन्तु जानते नहीं। तुम बच्चों में भी नम्बरवार हैं। रात-दिन सर्विस का ही ओना रहता है। ओना पूरा तब रहे जब देह-अभिमान टूटे। देही-अभिमानी बनना है। बाप के साथ पूरा योग लगाना है। उनका पूरा रिगॉर्ड रखना मासी का घर नहीं है। माया के भूत योग तुड़वा देते हैं। यह तो बाप ही जानते हैं। कितने तो ऐसे नाज़ुक हैं, जो कुछ कहो तो झट ट्रेटर बन बिगड़ पड़ते हैं। वह फिर अपना ही खाना खराब कर देते हैं। आश्चर्यवत् बाबा का बनन्ती, फिर भागन्ती हो जाते हैं। डिससर्विस करने लग जाते हैं। भागवत में भी मशहूर है - अमृत पीते-पीते ट्रेटर बन फिर सताते हैं। बाप को कितना ख्याल रहता है - यह फलाना कच्चा है, कोई भी समय ट्रेटर बन नुकसान कर सकता है। बरोबर देखते हैं ट्रेटर बन नुकसान करने लग पड़ते हैं फिर कितनी अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। और सतसंगों में अत्याचार होते हैं क्या? यहाँ पहली बात है विष (विकार) छोड़ने की। विष छोड़ते नहीं हैं।

कहते भी हैं फलाना स्वर्ग पधारा। परन्तु हेविन क्या है, कुछ जानते नहीं हैं। जैसे बिगर अर्थ कोई बोल दे ऐसे ही कह देते हैं। अब कितनी समझ आई है। बाप जानते हैं कौन अच्छे-अच्छे फूल हैं। कोई हैं जिनमें नाम-रूप में फँसने की बदबू नहीं है। ज्ञान के बिगर और कोई बात नहीं। योग भी पूरा चाहिए। कोई काले तो पहले से ही हैं फिर और ही काले होते जाते हैं। इस लश्कर में हाथियों का भी लश्कर है, शेर शेरनियों का भी लश्कर है, घोड़े-घोड़ियों का भी है, बकरे-बकरियों का भी है। सब हैं। चलन से झट मालूम पड़ जाता है - यह तो जैसे रिढ़ (भेड़) हैं। कुछ भी नहीं समझते, बुद्धि में बैठता ही नहीं। जैसे भैंस बुद्धि हैं। बाप कितना सहज करके बतलाते हैं - तुम आत्मा हो। तुम बेहद के बाप को याद नहीं कर सकते हो? हे आत्मा, तुम और सब तरफ से बुद्धियोग हटाकर मुझे याद करो। तुम याद नहीं कर सकते हो? और मित्र-सम्बन्धियों आदि को याद करते हो, मुझे याद करने में क्या मुसीबत है? कहते हैं - बाबा, माया बुद्धियोग तोड़ देती है! अरे, वर्सा गँवा बैठोगे। तुम बुद्धियोग पूरा लगाओ तो विश्व का मालिक बनोगे। बाप को थोड़ेही कभी भूलना होता है। देह-अभिमानी बनने से ही तुम भूलते हो। तुमको बार-बार कहा जाता है अपने को आत्मा समझो, बाप को निरन्तर याद करो। जपो नहीं, आवाज नहीं करो। तुमको तो वाणी से परे जाना है। राम-राम मुख से कहा तो देह-अभिमान आ गया। अन्दर सिमरण करना है। आरगन्स का सिर्फ आधार लेना है। मैं आत्मा हूँ, शान्ति में रहकर बाप को याद करना है। बाबा है ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल। उनमें सारी नॉलेज है। तुमको भी सिखलाते हैं। बाप को याद करने से तुम पवित्र बन जायेंगे, होली ताज मिलेगा और सृष्टि चक्र को जानने से रत्न जड़ित ताज़ मिलेगा। डबल सिरताज बन जायेंगे। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। नहीं तो धर्मराज के डन्डे खाने पड़ेंगे। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा इसलिए बाप को याद करना है। फिर खुशी भी चाहिए गुप्त। आवाज़ से हंसना नहीं है। लक्ष्मी-नारायण को हर्षित मुख कहा जाता है। हर्षितमुख रहना और हंसना अलग-अलग बात है। हर्षितमुख रहने से वह गुप्त खुशी रहती है। आवाज़ से हंसना बुरी बात है। हर्षित रहना सबसे अच्छा है। खिलखिला कर हंसना (आवाज से हंसना) भी एक विकार है। वह भी नहीं रहना चाहिए। खुशी चेहरे पर आनी चाहिए। वह आयेगी तब जब आप समान बनायेंगे। सर्विस और सर्विस। सर्विस मिली और यह भागा, दूसरी कोई बात नहीं। तुम बच्चे सर्विस करते हो, कांटों को कली बनाते हो। बाबा बच्चों को अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स बताते हैं। यह निश्चय रखना है कि बाबा ही सुनाते हैं। यह भी कहते हैं मेरी महिमा नहीं करना। महिमा सारी शिवबाबा की है, उनको याद करने से ही पूरा विकर्माजीत बनेंगे। बहुत सहज बात है। याद करना है और चक्र फिराना है। स्वदर्शन चक्रधारी पूरे अन्त में बनते हैं नम्बरवार। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1- बाप को साथ रखने की युक्ति रचनी है। भोजन पर याद में रहना है। अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। अपनी पुरानी देह से भी लॅव नहीं रखना है।
2- बाप का पूरा रिगॉर्ड रखना है। अंहकार में नहीं आना है। नाम-रूप की बीमारी से सदा दूर रहना है। ज्ञान-योग में मस्त रहना है।
वरदान:-
विशेषता देखने का चश्मा पहन सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाले विश्व परिवर्तक भव
एक दो के साथ सम्बन्ध वा सम्पर्क में आते हर एक की विशेषता को देखो। विशेषता देखने की ही दृष्टि धारण करो। जैसे आजकल का फैशन और मजबूरी चश्मे की है। तो विशेषता देखने वाला चश्मा पहनो। दूसरा कुछ दिखाई ही न दे। जैसे लाल चश्मा पहन लो तो हरा भी लाल दिखाई देता है। तो विशेषता के चश्में द्वारा कीचड़ को न देख कमल को देखने से विश्व परिवर्तन के विशेष कार्य के निमित्त बन जायेंगे।
स्लोगन:-
परचिंतन और परदर्शन की धूल से सदा दूर रहो तो बेदाग अमूल्य हीरा बन जायेंगे।