Friday, January 5, 2018

06/01/18 प्रात:मुरली

06/01/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अभी तुम्हारी काया बिल्कुल पुरानी हो गई है, बाप आये हैं तुम्हारी काया कल्प वृक्ष समान बनाने, तुम आधाकल्प के लिए अमर बनते हो"
प्रश्न:
इस वन्डरफुल नाटक में कौन सी बात बहुत ही समझने की है?
उत्तर:
इस नाटक में जो भी एक्टर्स (पार्टधारी) हैं उनका चित्र केवल एक बार ही देख सकते फिर वही चित्र 5 हजार वर्ष के बाद देखेंगे। 84 जन्मों के 84 चित्र बनेंगे और सभी भिन्न-भिन्न होंगे। कर्म भी किसके साथ मिल नहीं सकते। जिसने जो कर्म किये वह फिर 5 हजार वर्ष बाद वही कर्म करेंगे, यह बहुत ही समझने की बातें हैं। तुम बच्चों की बुद्धि का ताला अभी खुला है। तुम यह राज़ सबको समझा सकते हो।
गीत:-
भोलेनाथ से निराला....  
ओम् शान्ति।
भोलानाथ सदैव शिवबाबा को कहा जाता है। शंकर को नहीं कहा जाता। वह तो विनाश करता है और शिवबाबा स्थापना करते हैं। यह तो जरूर है स्थापना स्वर्ग की और विनाश नर्क का करेंगे। तो ज्ञान सागर भोलानाथ शिव को ही कहेंगे। अब तुम बच्चे तो अनुभवी हो। जरूर कल्प पहले भी शिवबाबा आया होगा और अब आया है जरूर। उनको आना जरूर है क्योंकि नई मनुष्य सृष्टि को रचना है। इस ड्रामा के आदि मध्य अन्त का राज़ बताना है इसलिए जरूर यहाँ आना है। सूक्ष्मवतन में तो नहीं बतायेंगे। सूक्ष्मवतन की भाषा अलग है, मूलवतन में तो भाषा है नहीं। यहाँ है टाकी। शिवबाबा ही बिगड़ी को बनाने वाला है। जब सृष्टि तमोप्रधान हो जाती है तो सबको सद्गति देने वाला भगवान कहते हैं कि मुझे आना पड़ता है। यादगार भी यहाँ हैं। इस नाटक में जो-जो मनुष्य के चित्र हैं वह एक ही बार देख सकते हैं। ऐसे नहीं कि लक्ष्मी-नारायण के चित्र (चेहरे) सतयुग के सिवाए कभी भी कहाँ देख सकते हैं। वह पुनर्जन्म लेंगे तो नाम रूप भिन्न हो जायेगा। वही लक्ष्मी-नारायण का रूप एक बार देखा फिर 5 हजार वर्ष के बाद ही देखेंगे। जैसे गांधी का हूबहू चित्र फिर 5 हजार वर्ष के बाद देखेंगे। अथाह मनुष्य हैं जो भी मनुष्यों के चित्र अब देखे हैं वह फिर 5 हजार वर्ष के बाद देखेंगे। 84 जन्मों के लिए 84 चित्र बनेंगे। और सभी भिन्न-भिन्न होंगे। कर्म भी किसके साथ नहीं मिल सकते। जिसने जो कर्म किया, वही कर्म 5 हजार वर्ष के बाद फिर करेंगे। यह बहुत समझने की बातें हैं। बाबा का भी चित्र है। हम समझते हैं जरूर पहले-पहले सृष्टि रचने वह आया होगा। तुम्हारी बुद्धि का ताला अब खुला है तब तुम समझते हो। अब फिर औरों का भी ऐसे ताला खोलना है। निराकार बाप जरूर परमधाम में रहते होंगे। जैसे तुम भी सब मेरे साथ रहते हो। पहले जब मैं आता हूँ तो मेरे साथ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर होते हैं। मनुष्य सृष्टि तो पहले से ही है फिर वह कैसे पलटा खाती है, रिपीट कैसे होती है। पहले-पहले जरूर सूक्ष्मवतन रचना पड़े फिर स्थूलवतन में आना पड़े क्योंकि मनुष्य जो देवता थे, वह अब शूद्र बने हैं। उन्हों को फिर ब्राह्मण से देवता बनाना पड़े। तो जो कल्प पहले मैंने ज्ञान दिया था फिर वही रिपीट करूंगा। इस समय बैठ राजयोग सिखाता हूँ। फिर आधाकल्प के बाद भक्ति आरम्भ होती है। बाप खुद बैठ समझाते हैं कि पुरानी सृष्टि फिर नई कैसे बनती है। अन्त से फिर आदि कैसे होती है। मनुष्य समझते हैं परमात्मा आया था परन्तु कब, कैसे आया। आदि-मध्य-अन्त का राज़ कैसे खोला, यह नहीं जानते।

बाप कहते हैं फिर मैं सम्मुख आया हूँ - सभी को सद्गति देने। माया रावण ने सभी की किस्मत बिगाड़ दी है तो बिगड़ी को बनाने वाला जरूर कोई चाहिए। बाप कहते हैं 5 हजार वर्ष पहले भी ब्रह्मा तन में आया था। मनुष्य सृष्टि जरूर यहाँ ही रची है। यहाँ आकर सृष्टि को पलटाए काया कल्प वृक्ष समान बनाते हैं। अब तुम्हारी काया बिल्कुल पुरानी हो गयी है, इसको फिर ऐसा बनाते हैं जो आधाकल्प के लिए तुम अमर बन जाते हो। भल शरीर बदलते हो परन्तु खुशी से। जैसे पुराना चोला छोड़ नया लेते हैं। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे कि फलाना मर गया, उनको मरना नहीं कहा जाता है। जैसे तुम्हारा यह जीते जी मरना है तो तुम मरे थोड़ेही हो। तुम तो शिवबाबा के बने हो। बाबा कहते हैं तुम मेरे नूरे रत्न, सिकीलधे बच्चे हो। शिवबाबा भी कहते तो ब्रह्मा बाबा भी कहते हैं। वह निराकारी बाप, यह साकारी बाप। अभी तुम कहते हो बाबा आप भी वही हो ना। हम भी वही हैं, जो फिर आकर मिले हैं। बाप कहते हैं मैं आकर स्वर्ग स्थापन करता हूँ। राजाई तो जरूर चाहिए इसलिए राजयोग सिखाता हूँ। पीछे तो तुमको राजाई मिल जायेगी फिर इस ज्ञान की वहाँ दरकार नहीं रहती। फिर यह शास्त्र आदि सब भक्ति में काम आते हैं, पढ़ते रहते हैं। जैसे कोई बड़े आदमी हिस्ट्री-जॉग्राफी लिख जाते हैं, वह पीछे पढ़ते रहते हैं। अथाह किताब हैं। मनुष्य पढ़ते ही रहते हैं। स्वर्ग में तो कुछ भी नहीं होगा। वहाँ तो भाषा ही एक होगी। तो बाबा कहते हैं अब मैं आया हूँ सृष्टि को नया बनाने। पहले नई थी, अब पुरानी हो गई है। मेरे सब पुत्रों को (बच्चों को) माया ने जलाए राख कर दिया था। वह दिखाते हैं सगर के बच्चे... ज्ञान सागर तो बरोबर है, उनके तुम बच्चे हो। भल बच्चे तो वास्तव में सभी हैं परन्तु तुम बच्चे अब प्रैक्टिकल में गाये जाते हो। तुम्हारे कारण ही बाप आते हैं। कहते हैं मैं आया हूँ फिर से तुम बच्चों को सुरजीत करने। जो बिल्कुल काले, पत्थरबुद्धि हो गये हैं उनको फिर से आकर पारसबुद्धि बनाता हूँ। तुम जानते हो इस ज्ञान से हम पारसबुद्धि कैसे बनते हैं। जब तुम पारसबुद्धि बन जायेंगे तब यह दुनिया भी पत्थरपुरी से बदल पारसपुरी बन जायेगी, जिसके लिए बाबा पुरुषार्थ कराते रहते हैं। तो बाबा को जरूर मनुष्य सृष्टि रचने के लिए यहाँ ही आना पड़ेगा ना। जिसके तन में आते हैं, उन द्वारा मुख वंशावली बनाते हैं। तो यह हो गई माता। कितनी गुह्य बात है। है तो यह मेल, इनमें बाबा आते हैं तो यह माता कैसे हुई, इसमें मूंझेंगे जरूर।

तुम सिद्ध कर बताते हो कि यह मात-पिता, ब्रह्मा सरस्वती दोनों कल्प वृक्ष के नीचे बैठे हैं, राजयोग सीख रहे हैं तो जरूर उन्हों का गुरू चाहिए। ब्रह्मा सरस्वती और बच्चे सभी को राजऋषि कहते हैं। राजाई के लिए योग लगाते हैं। बाप आकर राजयोग और ज्ञान सिखाते हैं जो और कोई भी सिखा न सके। न कोई का राजयोग है। वह तो सिर्फ कहेंगे योग सीखो। हठयोग तो अनेक प्रकार के होते हैं। राजयोग कोई सन्यासी, उदासी सिखला न सके। भगवान ने आकर राजयोग सिखाया था। कहते हैं हमको कल्प-कल्प फिर आना पड़ता है जबकि मनुष्य सृष्टि नई रचनी है। प्रलय तो होती नहीं। अगर प्रलय हो जाए तो फिर हम आवें किसमें? निराकार क्या आकर करेंगे? बाप समझाते हैं सृष्टि तो पहले से ही है। भक्त भी हैं, भगवान को बुलाते भी हैं, इससे सिद्ध है कि भक्त हैं। भगवान को आना ही तब है जब भक्त बहुत दु:खी हैं, कलियुग का अन्त है। रावण राज्य खत्म होना है, तब ही मुझे आना पड़ता है। बरोबर इस समय सभी दु:खी हैं। महाभारी लड़ाई सामने खड़ी है।

यह पाठशाला है। यहाँ एम आबजेक्ट है। तुम जानते हो सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर सिंगल ताज वालों का राज्य हुआ फिर और-और धर्म वृद्धि को पाये हैं फिर राजाई आदि बढ़ाने के लिए युद्ध आदि हुए। तुम जानते हो जो पास्ट हो गया, वह फिर रिपीट होगा। फिर लक्ष्मी-नारायण का राज्य आरम्भ होगा। बाबा वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी का राज़ पूरा समझाते हैं। डिटेल में जाने की दरकार नहीं। जानते हैं कि हम सूर्यवंशी हैं तो जरूर पुनर्जन्म भी सूर्यवंशी में ही लेते होंगे। नाम रूप तो बदलते होंगे। माँ बाप भी दूसरे मिलेंगे, यह सारा ड्रामा बुद्धि में रखना है। बाप कैसे आता है वह भी समझ लिया। मनुष्यों की बुद्धि में वही गीता का ज्ञान है। आगे हमारी बुद्धि में भी वही पुराना गीता का ज्ञान था। अभी बाप गुह्य बातें सुनाते हैं जो सुनते-सुनते सारे राज़ समझ गये हैं। मनुष्य भी कहते हैं आगे आपका ज्ञान और था, अब बहुत अच्छा है। अब समझ गये हैं कि कैसे गृहस्थ व्यवहार में रह कमल फूल समान बनना है। यह सबका अन्तिम जन्म है। मरना भी सबको है। खुद बेहद का बाप कहते हैं तुम पवित्र बनने की प्रतिज्ञा करो तो 21 जन्म के लिए स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यहाँ तो कोई पदमपति हैं तो भी दु:खी हैं। काया कल्पतरू होती नहीं। तुम्हारी काया कल्पतरू होती है। तुम 21 जन्म मरते नहीं। बाप कहते हैं यहाँ आयेंगे भी वही जो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी काम चिता पर बैठ सांवरे हो गये हैं इसलिए राधे कृष्ण, नारायण सबको सांवरा दिखाते हैं। अभी तो सभी सांवरे हैं। काम चिता पर बैठने से सांवरे हो गये हैं। अब तुमको काम चिता से उतरकर ज्ञान चिता पर बैठना है। विष का हथियाला कैन्सिल कर ज्ञान अमृत का हथियाला बांधना है। समझाना ऐसे है जो वह कहे कि तुम तो शुभ कार्य कर रहे हो। जब तक कुमार कुमारी है तो उनको मूतपलीती नहीं कहेंगे। बाप कहते हैं तुमको गन्दा कभी नहीं बनना है। आगे चलकर ढेर आयेंगे, कहेंगे यह बहुत अच्छा है - ज्ञान चिता पर बैठने से तो हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अक्सर ब्राह्मण ही सगाई कराते हैं। राजाओं के पास भी ब्राह्मण रहते हैं, उन्हों को राजगुरू कहते हैं। आजकल तो सन्यासी भी हथियाला बांधते हैं। तुम जब यह ज्ञान की बातें सुनाते हो तो लोग बहुत खुश होते हैं। झट राखी भी बंधवा लेते हैं। फिर घर में झगड़ा भी होता है। कुछ सहन तो जरूर करना पड़े।

तुम हो गुप्त शिव शक्ति सेना। तुम्हारे पास कोई हथियार नहीं, देवियों को बहुत हथियार दिखाते हैं। यह सब हैं ज्ञान की बातें। यहाँ है ही योगबल की बातें। तुम योगबल से विश्व की बादशाही लेते हो। बाहुबल से हद की राजाई मिलती है। बेहद की राजाई तो बेहद का मालिक ही देंगे। लड़ाई की कोई बात नहीं। बाप कहते हैं मैं कैसे लड़ाऊंगा। मैं तो लड़ाई झगड़ा मिटाने के लिए आया हूँ फिर इनका नाम-निशान भी नहीं रहता, तब तो परमात्मा को सब याद करते हैं। कहते हैं मेरी लाज़ रखो फिर भी एक में निश्चय नहीं तो और-और को पकड़ते रहते हैं। कहते हैं हमारे में भी ईश्वर है फिर अपने में भी विश्वास नहीं रखते, गुरू करते हैं। जब तुम्हारे में भगवान है तो गुरू क्यों करते हो। यहाँ तो बात ही न्यारी है। बाप कहते हैं कल्प पहले भी मैं ऐसे ही आया था जैसे अब आया हूँ। अब तुम जानते हो कि रचता बाप कैसे बैठ रचना करते हैं, यह भी ड्रामा है। जब तक इस चक्र को नहीं जाना तब तक कैसे जानें कि आगे क्या होना है। कहते हैं यह कर्मक्षेत्र है। हम निराकारी दुनिया से पार्ट बजाने आये हैं। तो तुमको सारे ड्रामा के क्रियेटर, डायरेक्टर का मालूम होना चाहिए। हम सब एक्टर्स तो जान गये हैं कि यह ड्रामा कैसे बना हुआ है, यह सृष्टि कैसे वृद्धि को पाती है, जबकि अब कलियुग का अन्त है तो जरूर सतयुग स्थापन होना चाहिए। इस चक्र की समझानी बिल्कुल ठीक है जो ब्राह्मण कुल के होंगे वह समझ जायेंगे। फिर भी यह प्रजापिता है तो अपना कुल बढ़ता ही जायेगा। बढ़ना तो है ही। कल्प पहले मुआफिक सब पुरूषार्थ करते ही रहते हैं। हम साक्षी होकर देखते हैं। हर एक को अपना मुखड़ा आइने में देखते रहना है - कहाँ तक हम लायक बने हैं - सतयुग में राजधानी लेने के? यह कल्प-कल्प की बाज़ी है, जो जितनी सर्विस करेंगे, तुम हो बेहद के रूहानी सोशल वर्कर्स। तुम सुप्रीम रूह की मत पर चलते हो। ऐसे अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स धारण करनी हैं। बाप आकर काल के पंजे से छुड़ाते हैं। वहाँ मृत्यु का नाम नहीं, यह है मृत्युलोक, वह है अमरलोक। यहाँ आदि-मध्य-अन्त दु:ख है, वहाँ दु:ख का नाम-निशान नहीं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हम निराकारी और साकारी दोनों बाप के सिकीलधे नूरे रत्न हैं, हम शिवबाबा के जीते जी वारिस बने हैं, इसी नशे में रहना है।
2) योगबल से विश्व की राजाई लेनी है, पवित्रता की राखी बांधी है तो सहन भी करना है। पतित कभी नहीं बनना है।
वरदान:
एक ही संकल्प में स्थित हो महातीर्थ की प्रत्यक्षता करने वाले जिम्मेवार आत्मा भव!
यह आबू विश्व के लिए लाइट हाउस है। इस महातीर्थ की प्रत्यक्षता करने के लिए सर्व ब्राह्मण बच्चों का एक ही संकल्प हो कि हर आत्मा को यहाँ से ठिकाना मिले। सबका कल्याण हो। जब यह शुभ आशाओं का दीपक हर एक के अन्दर जगे, सबका सहयोग हो तब कार्य में सफलता हो। सबके मन से यह आवाज निकले कि यह मेरी जिम्मेवारी है। जब हर एक स्वयं को ऐसा जिम्मेवार समझेंगे तब प्रत्यक्षता की किरण अब्बा के घर से चारों ओर फैलेगी।
स्लोगन:
अन्तर्मुखता की विशेषता को धारण कर लो तो सर्व की दुआयें मिलती रहेंगी।