Monday, January 1, 2018

02/01/18 प्रात:मुरली

02/01/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हारा यह मरजीवा जन्म है, तुम ईश्वर बाप से वर्सा ले रहे हो, तुम्हें बहुत बड़ी लाटरी मिली है, इसलिए अपार खुशी में रहना है"
प्रश्न:
अपने आपको कौन सी समझानी दो तो चिन्ता समाप्त हो जायेगी? गुस्सा चला जायेगा?
उत्तर:
हम ईश्वर की सन्तान हैं, हमें तो बाप समान मीठा बनना है। जैसे बाबा मीठे रूप से समझानी देते, गुस्सा नहीं करते। ऐसे हमें भी आपस में मीठा रहना है। लूनपानी नहीं होना है क्योंकि जानते हैं जो सेकेण्ड पास हुआ, वह ड्रामा में पार्ट था। चिन्ता किस बात की करें। ऐसे-ऐसे अपने आपको समझाओ तो चिन्ता खत्म हो जायेगी। गुस्सा भाग जायेगा।
गीत:-
यही बहार है...  
ओम् शान्ति।
यह है ईश्वरीय सन्तान की खुशियों का गायन। तुम इतना खुशी का गायन सतयुग में नहीं कर सकेंगे। अभी तुमको खजाना मिल रहा है। यह है बड़े से बड़ी लाटरी। जब लाटरी मिलती है तो खुशी होती है। तुम फिर इस लाटरी से जन्म-जन्मान्तर स्वर्ग में सुख भोगते रहते हो। यह है तुम्हारा मरजीवा जन्म। जो जीते जी मरते नहीं, उनका मरजीवा जन्म नहीं कहेंगे। उन्हों को तो खुशी का पारा भी चढ़ नहीं सकता। जब तक मरजीवा नहीं बने हैं अर्थात् बाप को अपना नहीं बनाया है, तब तक पूरा वर्सा भी मिल नहीं सकता। जो बाप के बनते हैं, जो बाप को याद करते हैं उनको बाप भी याद करते हैं। तुम हो ईश्वरीय सन्तान। तुम्हें नशा है कि हम ईश्वर बाप से वर्सा अथवा वर ले रहे हैं, जिसके लिए भक्त लोग भक्ति मार्ग में धक्का खाते रहते हैं। बाप से मिलने के लिए अनेकानेक उपाय करते हैं। कितने वेद, शास्त्र, मैगज़ीन आदि अथाह पढ़ते रहते हैं। परन्तु दुनिया तो दिन प्रतिदिन दु:खी ही होती जाती है, इनको तमोप्रधान होना ही है। यह बबुल ट्री है ना। बबुलनाथ फिर आकर काँटों से फूल बनाते हैं। कॉटे बहुत बड़े-बड़े हो गये हैं। बड़े जोर से लगते हैं। उसको अनेक प्रकार के नाम दिये हुए हैं। सतयुग में तो होते नहीं। बाप समझाते हैं - यह है कॉटों की दुनिया। एक दो को दु:ख देते रहते हैं। घर में बच्चे भी ऐसे कपूत निकल पड़ते हैं जो बात मत पूछो। माँ-बाप को बहुत दु:खी करते हैं। सभी कोई एक समान भी नहीं होते। सबसे जास्ती दु:ख देने वाला कौन है? मनुष्य यह नहीं जानते। बाप कहते हैं इन गुरूओं ने परमात्मा की महिमा गुम कर दी है। हम तो उनकी बहुत महिमा करते हैं। वह परम पूज्य परमपिता परमात्मा है। शिव का चित्र भी बहुत अच्छा है। परन्तु बहुत लोग ऐसे हैं जो मानेंगे नहीं कि शिव कोई ऐसा ज्योर्तिबिन्दु है क्योंकि वह तो आत्मा सो परमात्मा कह देते हैं। आत्मा अति सूक्ष्म है जो भ्रकुटी के बीच में बैठी है, फिर परमात्मा इतना बड़ा आकार वाला कैसे हो सकता है? बहुत विद्वान, आचार्य लोग बी.के. पर हँसी उड़ाते हैं कि परमात्मा का ऐसा रूप तो हो नहीं सकता। वह तो अखण्ड ज्योतिर्मय तत्व हजारों सूर्यों से भी तेजोमय है। वास्तव में यह रॉग है। इनकी राइट महिमा तो बाप खुद ही बताते हैं। वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। यह सृष्टि एक उल्टा झाड़ है। सतयुग, त्रेता में उनको कोई याद नहीं करते। मनुष्य को जब दु:ख होता है तब उनको याद करते हैं - हे भगवान, हे परमपिता परमात्मा रहम करो। सतयुग, त्रेता में तो कोई रहम माँगने वाला होता नहीं। वह है बाप रचयिता की नई रचना। इस बाप की महिमा ही अपरमअपार है। ज्ञान का सागर, पतित-पावन है। ज्ञान का सागर है तो जरूर ज्ञान दिया होगा। वह सत, चित्, आनन्द स्वरूप है। चैतन्य है। ज्ञान तो चैतन्य आत्मा ही धारण करती है। समझो हम शरीर छोड़ जाते हैं तो आत्मा में ज्ञान के संस्कार तो हैं ही हैं। बच्चा बनेंगे तो भी वह संस्कार होंगे, परन्तु आरगन्स छोटे हैं तो बोल नहीं सकते। आरगन्स बड़े होते हैं तो याद कराया जाता है, तो स्मृति में आ जाता है। छोटे बच्चे भी शास्त्र आदि कण्ठ कर लेते हैं। यह सभी अगले जन्म के संस्कार हैं। अब बाप हमको अपना ज्ञान का वर्सा देते हैं। सारे सृष्टि का ज्ञान इनके पास है क्योंकि बीजरूप है। हम अपने को बीजरूप नहीं कहेंगे। बीज में जरूर झाड़ के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान होगा ना। तो बाप खुद कहते हैं मैं हूँ सृष्टि का बीजरूप। इस झाड़ का बीज ऊपर है। वह बाप सत् चित आनन्द स्वरूप, ज्ञान का सागर है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ही उसमें ज्ञान होगा। नहीं तो क्या होगा! क्या शास्त्रों का ज्ञान होगा? वह तो बहुतों में है। परमात्मा की तो जरूर कोई नई बात होगी ना। जो कोई भी विद्वान आदि नहीं जानते। कोई से भी पूछो - इस सृष्टि रूपी झाड़ की उत्पत्ति, पालना, संघार कैसे होता है, इनकी आयु कितनी है, यह कैसे वृद्धि को पाता है... बिल्कुल कोई नहीं समझा सकता है।

एक गीता ही है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी, बाकी तो सब हैं उनके बाल बच्चे। जबकि गीता पढ़ने से भी कुछ नहीं समझते तो बाकी शास्त्र पढ़ने से फ़ायदा ही क्या? वर्सा तो फिर भी गीता से मिलना है। अब बाप सारे ड्रामा का राज़ समझाते हैं। बाप पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाए पारसनाथ बनाते हैं। अब तो सब पत्थरबुद्धि, पत्थरनाथ हैं। परन्तु वह अपने को बड़े-बड़े टाइटिल्स देकर अपने को पारसबुद्धि समझ बैठे हैं। बाप समझाते हैं मेरी महिमा सबसे न्यारी है। मैं ज्ञान का सागर, आनंद का सागर, सुख का सागर हूँ। ऐसी महिमा तुम देवताओं की नहीं कर सकते। भक्त लोग देवताओं के आगे जाकर कहेंगे आप सर्वगुण सम्पन्न... हैं। बाप की तो एक ही महिमा है। वह भी हम जानते हैं। अभी हम मन्दिर में जायेंगे तो बुद्धि में पूरा ज्ञान है कि इन्होंने तो पूरे 84 जन्म लिये होंगे। अभी अपने को कितनी खुशी है। आगे थोड़ेही यह ख्याल आता था। अभी समझते हैं हमको ऐसा बनना है। बुद्धि में बहुत परिवर्तन आ जाता है।

बाप बच्चों को समझाते हैं - आपस में बहुत मीठे बनो। लूनपानी मत बनो। बाबा कभी भी किससे गुस्सा करता है क्या? बड़े मीठे रूप से समझानी देते हैं। एक सेकण्ड पास हुआ कहेंगे यह भी ड्रामा में पार्ट था। इसकी चिंता क्या करनी है। ऐसे-ऐसे अपने को समझाना है। तुम ईश्वरीय सन्तान कम थोड़ेही हो। यह तो समझ सकते हो कि ईश्वरीय सन्तान जरूर ईश्वर के पास रहते होंगे। ईश्वर निराकार है तो उसकी सन्तान भी निराकार हैं। वही सन्तान यहाँ चोला लेकर पार्ट बजाती है। स्वर्ग में मनुष्य हैं देवी-देवता धर्म के। अगर सबका बैठ हिसाब निकालें तो कितना माथा मारना पड़े। परन्तु समझ सकते हैं कि नम्बरवार समय अनुसार थोड़े-थोड़े जन्म मिलते होंगे। आगे तो समझते थे मनुष्य कुत्ता बिल्ली बनते हैं। अभी तो बुद्धि में रात दिन का फ़र्क आ गया है। यह सब हैं धारणा करने की बातें। नटशेल में समझाते हैं कि अब 84 जन्म का चक्र पूरा हुआ। अभी इस छी-छी शरीर को छोड़ना है। यह सबका पुराना जड़जड़ीभूत, तमोप्रधान शरीर है, इससे ममत्व मिटा देना है। पुराने शरीर को याद क्या करें। अब तो अपने नये शरीर को याद करेंगे, जो मिलना है सतयुग में। वाया मुक्तिधाम होकर सतयुग में आयेंगे। हम जीवनमुक्ति में जाते हैं और सब मुक्तिधाम में चले जाते हैं। इसको जयजयकार कहा जाता है, हाहाकार के बाद जयजयकार होना है। इतने सब मरेंगे कोई तो निमित्त कारण बनेगा। नैचुरल कैलेमिटीज़ होंगी। सिर्फ सागर ही थोड़ेही सभी खण्डों को खलास करेगा। सब कुछ खलास तो होना ही है। बाकी भारत अविनाशी खण्ड रह जाता है क्योंकि यह है शिवबाबा का बर्थ प्लेस। तो यह हो गया सबसे बड़ा तीर्थ स्थान। बाप सबकी सद्गति करते हैं, यह कोई मनुष्य नहीं जानते हैं। उन्हों को न जानना ही ड्रामा में नूँध है। तब तो बाप कहते हैं कि हे बच्चे तुम कुछ नहीं जानते थे, मैं ही तुमको रचता और रचना अथवा मनुष्य सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का सारा भेद समझाता हूँ। जिसको ऋषि मुनि भी बेअन्त, बेअन्त कहकर गये हैं। यह थोड़ेही समझते हैं कि सारी दुनिया के 5 विकार बड़े भारी दुश्मन हैं। जिस रावण को भारतवासी वर्ष-वर्ष जलाते ही आते हैं। उसको जानते कोई नहीं क्योंकि वह न जिस्मानी है, न रूहानी है। विकारों का तो कोई रूप ही नहीं है। मनुष्य एक्ट में आता है तब पता पड़ता है कि इनमें काम का, क्रोध का भूत आया है। इस विकार की स्टेज में भी उत्तम, मध्यम, कनिष्ट होते हैं। कोई में काम का नशा एकदम तमोप्रधान हो जाता है, कोई को रजो नशा, कोई को सतो नशा रहता है। कोई तो बाल ब्रह्मचारी भी रहते हैं। समझते हैं यह भी एक झंझट है सम्भालना। सबसे अच्छा उनको कहेंगे। सन्यासियों में भी बाल ब्रह्मचारी अच्छे गिने जाते हैं। गवर्मेन्ट के लिए भी अच्छा है, बच्चों की वृद्धि नहीं होगी। पवित्रता की ताकत मिलती है। यह हुई गुप्त। सन्यासी भी पवित्र रहते हैं, छोटे बच्चे भी पवित्र रहते हैं, वानप्रस्थी भी पवित्र रहते हैं। तो पवित्रता का बल मिलता ही आता है। उन्हों का भी कायदा चला आता है कि बच्चे को इतनी आयु तक पवित्र रहना है। तो वह भी बल मिलता है। तुम हो सतोप्रधान पवित्र। यह अन्तिम जन्म तुम बाप से प्रतिज्ञा करते हो। तुम सतयुग की स्थापना करने वाले हो। जो करेगा सो पवित्र दुनिया का मालिक बनेगा, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।

यह है ईश्वरीय कुटुम्ब। ईश्वर के साथ हम रहते हैं कल्प में एक बार। बस फिर दैवी घराने में तो बहुत जन्म रहेंगे। यह एक जन्म ही दुर्लभ है। यह ईश्वरीय कुल है उत्तम से उत्तम। ब्राह्मण कुल सबसे ऊंची चोटी है। नीच ते नीच कुल से हम ऊंच ब्राह्मण कुल के हो गये। शिवबाबा जब ब्रह्मा को रचे तब तो ब्राह्मण रचे। कितनी खुशी रहती है, जो बाबा की सर्विस में रहते हैं। हम ईश्वर की औलाद बने हैं और ईश्वर की श्रीमत पर चलते हैं। अपनी चलन से उनका नाम बाला करते हैं। बाबा कहते हैं वह तो हैं आसुरी गुणों वाले, तुम दैवीगुणों वाले बन रहे हो। जब तुम सम्पूर्ण बन जायेंगे तो तुम्हारी चलन बहुत अच्छी हो जायेगी। बाबा कहेंगे यह हैं दैवी गुणों वाले, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। आसुरी गुण वाले भी नम्बरवार हैं। बाल ब्रह्मचारी भी हैं। सन्यासी पवित्र रहते हैं सो तो बहुत अच्छा है। बाकी वह किसकी सद्गति तो कर नहीं सकते। अगर कोई गुरू लोग सद्गति करने वाले होते तो साथ ले जाते, परन्तु खुद ही छोड़कर चले जाते हैं। यहाँ यह बाप कहते हैं मैं तुमको साथ ले जाऊंगा। मैं आया ही हूँ तुमको साथ ले जाने के लिए। वह तो ले नहीं जाते। खुद ही गृहस्थियों के पास जन्म लेते रहते हैं। संस्कारों के कारण फिर सन्यासियों के झुण्ड में चले जाते हैं। नाम रूप तो हर जन्म में बदलता रहता है। यह अभी तुम बच्चे जानते हो कि सतयुग में यहाँ के पुरुषार्थ अनुसार पद होगा। वहाँ यह मालूम नहीं होगा कि हमने यह पद कैसे पाया। यह तो अभी पता है जिसने जैसे कल्प पहले पुरुषार्थ किया था, वैसा ही अब करेंगे। बच्चों को साक्षात्कार भी कराया हुआ है कि वहाँ शादी आदि कैसे होती है। बड़े-बड़े मैदान, बगीचे आदि होंगे। अब तो भारत में ही करोड़ों की आबादी है। वहाँ तो कुछ लाख ही रहते हैं। वहाँ थोड़ेही इतनी मंजिलों वाले मकान होंगे। यह अभी हैं क्योंकि जगह नहीं है। वहाँ इतनी सर्दी नहीं होगी। वहाँ दु:ख की निशानी भी नहीं है। न बहुत गर्मी होती, जो पहाड़ों पर जाना पड़े। नाम ही है स्वर्ग। इस समय मनुष्य कॉटों के जंगल में पड़े हैं। जितना सुख की चाहना करते हैं उतना दु:ख बढ़ता ही जाता है। अब बहुत दु:ख होगा। लड़ाई होगी तो खून की नदियाँ बहेंगी। अच्छा।

यह मुरली सब बच्चों के आगे सुनाई। सम्मुख सुनना नम्बरवन, टेप से सुनना नम्बर टू, मुरली से पढ़ना नम्बर थ्री। सतोप्रधान, सतो और रजो। तमो तो कहेंगे नहीं। टेप में हूबहू आती है। अच्छा!

बापदादा और मीठी माँ का सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी चलन वा दैवीगुणों से बाप का नाम बाला करना है। आसुरी अवगुण निकाल देने हैं।
2) इस पुराने जड़जड़ीभूत शरीर में ममत्व नहीं रखना है। नये सतयुगी शरीर को याद करना है। पवित्रता की गुप्त मदद करनी है।
वरदान:
बाप के हर डायरेक्शन वा कायदे से फ़ायदा लेने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भव!
कहा जाता - जितना कायदा उतना फायदा, इसलिए अमृतवेले से जो भी कायदे बने हैं उनसे कभी किनारा नहीं करो। पढ़ाई, अमृतवेला, सेवा जो भी दिनचर्या बनी हुई है, उसमें मन नहीं भी लगे तो भी दिनचर्या में कुछ मिस नहीं करो। जैसे भक्त लोग नियम का पालन जरूर करते हैं, मन्दिर में मन नहीं भी लगे तो भी जायेंगे जरूर। आप तो स्वयं ला-मेकर्स हो, इसी अनुभव से हर नियम का पालन करते चलो तो मर्यादा पुरुषोत्तम बन जायेंगे।
स्लोगन:
जिनके पास सन्तुष्टता का विशेष गुण है उनके पास सर्व गुण स्वत: आते जायेंगे।