Thursday, December 7, 2017

8/12/17 प्रात:मुरली

08/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - शिवबाबा इस समय तुम्हारे सामने हाज़िर-नाज़िर है, तुम्हें पहले यह निश्चय चाहिए कि हमको पढ़ाने वाला स्वयं शिवबाबा है, कोई देहधारी नहीं''
प्रश्न:
बाप से कौन सा प्रश्न पूछना भी जैसे बाप की इन्सल्ट है?
उत्तर:
बच्चे बाप से पूछते हैं - बाबा आपकी इस तन में पधरामणी कब तक है वा विनाश कब होगा? बाबा कहते - यह जैसे तुम मेरी इन्सल्ट करते हो। मेहमान से पूछना कि आप बाकी कितने दिन रहेंगे? यह तो इन्सल्ट हुई ना! कहेंगे क्या मैं तुम्हारे लिए बोझ हो पड़ा हूँ। शिवबाबा तो जब तक यहाँ है - तब तक तुम बच्चे खुश हो ना इसलिए ऐसे प्रश्न बाप से नहीं पूछने चाहिए।
ओम् शान्ति।
बाप बैठकर ब्रह्मा द्वारा अपने बच्चों, ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियों को समझाते हैं। ब्रह्माकुमार कुमारियाँ भी समझते हैं कि निराकार बाप ब्रह्मा द्वारा समझा रहे हैं। बाप तो है निराकार। किसको साक्षात्कार भी कराना होगा तो ब्रह्मा का शरीर ही सामने करूँगा। अगर खुद का साक्षात्कार कराये तो कोई समझ न सके। वह तो एक बिन्दी है। अब जैसे आत्मा स्टार है, वैसे परमात्मा भी बिन्दी है। यह बुद्धि से समझा जाता है। भल साक्षात्कार हो भी, चीज़ तो वही देखेंगे और क्या चीज़ हो सकती है। अक्सर करके बहुतों को ब्रह्मा का साक्षात्कार कराते हैं कि इनके पास जाओ। छोटी चीज़ को कोई समझ न सकें। ब्रह्मा द्वारा बाप बैठ समझाते हैं, नॉलेज देते हैं। कहते हैं - बच्चों मैं इस साधारण मनुष्य तन का आधार लेता हूँ। ब्रह्मा तो नामी-ग्रामी है। समझेंगे बाबा इसमें है। यह बाबा का रथ है। बाबा नहीं होता तो यह ब्रह्मा भी काहे का। तो यह बी.के. भी काहे के। बच्चों को नॉलेज मिलती है। तुम समझते हो यह नॉलेज सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई दे नहीं सकते। नॉलेजफुल वह निराकार है। सिवाए आरगन्स के ज्ञान दे कैसे सकते? बच्चों को यह निश्चय हो जाना चाहिए कि इस समय बाबा हाज़िर नाज़िर है। बुद्धि कहती है बाबा इसमें प्रवेश है, जो बैठ नॉलेज देते हैं। उस परमपिता परमात्मा के सिवाए स्वर्ग का वर्सा मिल न सके।
तुम बच्चे जानते हो भक्ति मार्ग में जो भी त्योहार आदि मनाये जाते हैं वो सब इस समय के ही यादगार हैं। शिव जयन्ति भी इस समय का ही त्योहार है। त्रिमूर्ति शिव, परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं। कृष्ण थोड़ेही नई दुनिया की स्थापना करेंगे। ब्राह्मण कुल चला आता है। उनको यह पता नहीं कि ब्राह्मण सो देवता बन जाते। ब्रह्मा की औलाद तुम ब्राह्मण हो। जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब धर्म वाले उन्हों को समझ में आता है कि हमारा ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर ब्रह्मा है, जिसको आदम-बीबी अथवा आदि देव, आदि देवी कहते हैं। वह भी शिवबाबा की रचना है। बाबा ने रचना कैसे रची? एडाप्ट किया। यह है पहले नम्बर की बात। अल्फ के बाद फिर बे। इन बातों को जो अच्छी रीति समझते हैं वही ऊंच पद पाते हैं।
अभी तुम बच्चे समझते हो मनुष्य कितना घोर अन्धियारे में हैं। कल्प पहले भी जब आग लगी थी तब जगे थे। वह सीन फिर होगी। होना भी जरूर है। दूसरे धर्म वाले इन बातों को समझेंगे नहीं, न पुरुषार्थ करेंगे। सतयुग में तो इतने मनुष्य आ न सकें। वहाँ बहुत थोड़े होंगे, जो सूर्यवंशी घराने में राज्य करेंगे। सब ड्रामा के बंधन में बांधे हुए हैं। बाप खुद कहते हैं मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। कोई बात का रेस्पान्ड ड्रामा में होगा तो बताऊंगा। ड्रामा का सारा राज़ अभी थोड़ेही बताऊंगा। मेरे में भी पार्ट नूँधा हुआ है। जैसे इमर्ज होता जाता है, तुमको समझाता जाता हूँ। सब कुछ ड्रामा अनुसार ही चलता है, उसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता। ड्रामा में नहीं होता तो रेसपान्ड करेंगे नहीं। ऐसे नहीं कि अभी बता दूँगा कि बाकी इतने वर्ष हैं। बाबा से पूछते हैं - बाबा कब तक इस शरीर में मुसाफिरी करेंगे? बतायेंगे नहीं। ड्रामा में है नहीं तो क्या कर सकते। ड्रामा में होगा तो बतायेंगे। मैं आया ही हूँ तुम बच्चों को पढ़ाने। मैं तुम्हारा बाप भी हूँ। तुम गाते हो तुम मात-पिता... वही पार्ट बजा रहा हूँ। मेरा फ़र्ज है तुमको शिक्षा देना। मुझे कहते हैं ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। चैतन्य बीज तो सब कुछ बतायेगा ना। इस झाड़ पर बनेनट्री का मिसाल दिया जाता है। तुम देखते हो देवी-देवता धर्म अभी है नहीं। बाकी सब धर्म हैं। अभी यह सब खलास हो जायेंगे। फिर अपने समय पर आकर स्थापना करेंगे। मैं देवता धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। जब वह धर्म प्राय:लोप है, चित्र हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं कि देवी-देवता धर्म कब था। कहाँ गुम हो गया। सिर्फ कहेंगे लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। द्वापर में कृष्ण आया, गीता सुनाई बस। यह शास्त्र आदि सब भक्ति के लिए हैं। द्वापर में बैठ यह शास्त्र आदि बनायेंगे। सच खण्ड में सिर्फ देवता राज्य करते थे। यह है ही झूठ खण्ड। वहाँ तो कोई भी पाप नहीं होता। अभी बाप तुमको पुण्य आत्मा बना रहे हैं। ड्रामा में नूँध है। रावणराज्य में ही भक्ति, शास्त्र आदि शुरू होते हैं। यह अनादि ड्रामा शूट हुआ पड़ा है। यह है ही झूठी दुनिया। ईश्वर के लिए भी झूठ ही झूठ बोलते हैं। ईश्वर तो ऊंच ते ऊंच है, हम उनसे मिलने चाहते हैं तो जरूर उनसे कुछ मिलता है। बाप से क्या मिलेगा? वह है सर्व का सद्गति दाता। सर्व को दु:ख से छुड़ाते हैं। रावण भी बड़ा जबरदस्त है। आधाकल्प उनका राज्य चलता है। परन्तु वह दु:ख देते हैं इसलिए सब मनुष्य बाप को याद करते हैं। रावण तुम्हारी सारी राजधानी छीन लेता है, इतना जबरदस्त है। अब तुमको मालूम पड़ा है - बाप हमको वर्सा देते हैं, रावण श्राप देते हैं। मनुष्यों को यह पता नहीं है कि बाप कब वर्सा देते हैं। कृष्ण का नाम गीता में डालने से गीता को झूठा कर दिया है। बड़े ते बड़ी भूल यह है। यह बाबा भी तो नारायण का पक्का भगत था, गीता पढ़ता था। गीता पढ़ने बिगर कोई काम नहीं करता था। जब साक्षात्कार हुआ फिर समझने लगे यह झूठी गीता है, एकदम छोड़ दिया। बाप हमको यह (लक्ष्मी-नारायण का) वर्सा देते हैं। अभी तो बहुत कुछ समझ में आ गया है, शिवबाबा समझाते रहते हैं। कभी कोई शास्त्र नहीं उठाया। बाबा सुना रहा है। यह भी कहते हैं - मैं सुन रहा हूँ। कभी बाबा नहीं है तो यह भी सुनाते हैं। इसमें बाबा है, इसलिए ब्रह्मा का नाम इतना नहीं है। अजमेर में एक मन्दिर बनाया है, परन्तु कुछ समझते नहीं हैं। कृष्ण को मुरली दी और सरस्वती को सितार दी है। सरस्वती को गॉडेज आफ नॉलेज कहा जाता है। गॉड आफ नॉलेज ब्रह्मा के बदले कृष्ण को कह दिया है। मूँझ गये हैं।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं त्रिमूति में कृष्ण तो है नहीं। भल करके है परन्तु गुप्त। राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, यह भी किसको पता नहीं है कि परमपिता परमात्मा ने समझाया था। अब भी समझाते रहते हैं। साधू-सन्त आदि इस बात को समझ जायें तो यहाँ सबकी भीड़ मच जाये। परन्तु ड्रामा में ऐसे भी नहीं है। बाप कहते हैं - मैं संगम पर आकर राजयोग सिखाता हूँ, जो पास होते हैं वह सूर्यवंशी बनते हैं, जो फेल होते हैं वह चन्द्रवंशी बनते हैं। सूर्यवंशी की प्रजा सूर्यवंशी होगी, चन्द्रवंशी की प्रजा चन्द्रवंशी होगी। तुम बच्चों की बुद्धि में सारे चक्र का ज्ञान है। तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण। यह है सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल। तुम सेवाधारी हो। तुम गुप्त वेश में भारत को योगबल से स्वर्ग बनाते हो। तुम्हारे लिए स्वर्ग जरूर चाहिए। पुरानी दुनिया को खत्म करना पड़े। श्रीमत पर तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो। यादवों की राजाई खत्म होनी है। पाण्डव राजाई स्थापन कर रहे हैं - नई दुनिया के लिए। पुराने भंभोर को आग लगनी है। यह भी समझते हो - बाकी कितने दिन होंगे? बहुत थोड़े। बाकी कितना समय है? यह हम पूछ नहीं सकते। मेहमान से पूछा नहीं जाता है, आप कितने दिन रहेंगे? कहेंगे मैं शायद बोझ हूँ। शिवबाबा कहते हैं - मैं यहाँ हूँ तो तुम खुश रहते हो ना। फिर पूछते क्यों हो कि कब तक पधरामनी है? यह पूछना भी जैसे इन्सल्ट है, इसमें भी लज्जा आनी चाहिए। यह पूछना तो ऐसे हुआ कि बाबा जल्दी जाये तो अच्छा इसलिए ऐसे-ऐसे सवाल बाबा से पूछ भी नहीं सकते। ऐसा बाप तो कोई हो न सके। बच्चे ही बाप को जान गये हैं। कृष्ण के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि इसमें परमात्मा है। कृष्ण ही याद आता रहेगा। परमात्मा तो याद आ न सके। कृष्ण को ही देखते रहेंगे। शिव को याद ही न करें इसलिए तुम बच्चों को समझाया गया है कि शिवबाबा को याद करो। देह-अभिमान में नहीं रहना है। श्रीकृष्ण की महिमा कोई कम नहीं है।
बाप कहते हैं मुझे आना ही है पराये देश, पुराने शरीर में। श्रीकृष्ण तो रावण के देश में आ न सके। अब तुम जानते हो कि श्रीकृष्ण की आत्मा पुनर्जन्म लेते-लेते अब इस शरीर में है। यह अन्तिम शरीर है। यही फिर नम्बरवन पावन शरीर बनता है। यह सब बातें और कोई की बुद्धि में आ न सकें। रावण का चित्र बनाते हैं परन्तु समझते नहीं हैं कि रावण की प्रवेशता कब से हुई है? जलाते ही आते हैं। मर जाये तो फिर जलाना बन्द कर दें, मरता नहीं। हर वर्ष जलाते हैं। यह सब है भक्ति मार्ग। बाप कहते हैं मैंने तुमको सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनाया। तुम फिर शूद्र वंशी बने कैसे? अब फिर तुमको सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बना रहा हूँ। अभी तुम जानते हो हम विश्व पर जीत पाते हैं फिर हार खाते हैं। जब देवी-देवता धर्म था तो और कोई धर्म नहीं था। अब फिर वह धर्म स्थापन होगा तो और सब धर्म खत्म हो जायेंगे। आसार भी तुमको देखने में आयेंगे। कितना साइन्स का काम चल रहा है। खुशी भी मनाते हैं। ऐसा एरोप्लेन निकलेगा जो 3-4 घण्टे में लन्दन पहुँचायेगा। आजकल एरोप्लेन में हाथी, बन्दर, मेढक सब जाते हैं। यह सुख के लिए भी हैं तो दु:ख के लिए भी हैं। वहाँ विमान में घूमते हैं। अभी तुम ऊंची तकदीर बनाने के लिए आये हो। तुम सो देवी-देवता बन रहे हो। स्वर्ग का नाम गाते हैं परन्तु जानते नहीं कि स्वर्ग कब था? कहते हैं स्वर्ग पधारा तो जरूर नर्क में था। परन्तु सीधा कहो तुम नर्कवासी हो तो गुस्सा लगेगा। अब तुम्हारे में ताकत है। तुम कह सकते हो तुम पतित-पावन को बुलाते हो तो जरूर पतित हो। बाप कहते हैं - अब झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है। महाभारी लड़ाई मशहूर है। तुम जानते हो हम आये हैं राजाई लेने। हम स्थापना के निमित्त हैं। आगे चल यह सन्यासी, महात्मायें भी तुम्हारी बात मानेंगे, यह सब ड्रामा में नूँध है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) गुप्त रूप में योगबल से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है, रूहानी सेवाधारी बनना है।
2) हमारा सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल है, हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। इस नशे में रहना है। किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है।
वरदान:
पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकण्ड में व्यक्त भाव से परे होने वाले अव्यक्त फरिश्ता व अशरीरी भव!
चारों ओर आवाज का वायुमण्डल हो लेकिन आप एक सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाकर व्यक्त भाव से परे हो जाओ, एकदम ब्रेक लग जाए तब कहेंगे अव्यक्त फरिश्ता वा अशरीरी। अभी इस अभ्यास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अचानक प्रकृति की आपदायें आनी हैं, उस समय बुद्धि और कहाँ भी नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाने चाहें वहाँ लग जाए। इसके लिए समाने और समेटने की शक्ति चाहिए, तब उड़ती कला में जा सकेंगे।
स्लोगन:
खुशी की खुराक खाते रहो तो मन और बुद्धि शक्तिशाली बन जायेगी।