Saturday, November 18, 2017

18/11/17 प्रात:मुरली

18/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - अपनी बुद्धि किसी भी देहधारी में नहीं लटकानी है, एक विदेही बाप को याद करना है और दूसरों को भी बाप की ही याद दिलाना है
प्रश्न:
अपना जीवन हीरे जैसा श्रेष्ठ बनाने के लिए मुख्य किन बातों का अटेन्शन चाहिए?
उत्तर:
1- भोजन बहुत योगयुक्त होकर बनाना और खाना है। 2- एक दो को बाप की याद दिलाकर जीयदान देना है। 3- कोई भी विकर्म नहीं करना है। 4- फालतू बात करने वालों के संग से अपनी सम्भाल करनी है, झरमुई-झगमुई नहीं करना है। 5- किसी भी देहधारी में अपनी बुद्धि की आसक्ति नहीं रखनी है, देहधारी में लटकना नहीं है। 6- कदम-कदम पर अविनाशी सर्जन से राय लेते रहना है। अपनी बीमारी सर्जन से नहीं छिपानी है।
ओम् शान्ति।
बच्चे किसकी याद में बैठे हैं? (शिवबाबा की) शिवबाबा को ही याद करना है और कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है। तुम्हारे सामने यह देहधारी बैठा हुआ है, इनको भी याद नहीं करना है। तुमको याद सिर्फ एक विदेही को करना है, जिसको अपनी देह नहीं है। यह मम्मा बाबा अथवा अनन्य सर्विसएबुल जो बच्चे हैं, वह सब सीखते हैं शिवबाबा द्वारा। तो याद भी शिवबाबा को ही करना है। भल कोई बच्चे जाकर किसको समझाते हैं तो भी बुद्धि में समझना है कि शिवबाबा ने इनको पढ़ाया है। बुद्धि में शिवबाबा की याद रहनी चाहिए न कि देहधारी की। अगर इस देहधारी को तुम याद करते हो, तो यह कॉमन हो जाता है। बाप कहते हैं कभी भी देहधारी में लटकना नहीं है। तुमको याद एक को करना है - जो सभी को सद्गति देने वाला है। अगर इस साकार को याद किया तो वह याद निष्फल है। जैसे लौकिक बाप को बच्चे याद करते हैं, उनसे कोई फ़ायदा नहीं होता। कोई ब्राह्मणी को याद किया कि हमको फलानी ब्राह्मणी पढ़ावे, तो निष्फल हुआ। कोई की भी याद नहीं रहनी चाहिए। हमको शिवबाबा पढ़ा रहे हैं, कल्याणकारी शिवबाबा है। देहधारी पर कभी बलिहार नहीं जाना होता है। यह बाबा भी तुमको कहते हैं मनमनाभव। देहधारी को याद किया तो दुर्गति को पायेंगे। बाप जानते हैं कोई-कोई की ब्राह्मणी के साथ बुद्धि जुट जाती है, यह राँग है। देहधारी में आसक्ति नहीं होनी चाहिए। बाबा का फरमान है मामेकम् याद करो। सुबह को उठकर मुझे याद करो। देहधारी को लौकिक कहा जायेगा। उनको याद नहीं करना है। एक मुझ निराकार को ही याद करो। गायन भी एक का ही है। शिवाए नम:, शिव है विदेही। वर्सा तुमको बाप से लेना है। यह देह भी उनकी नहीं है।
बाप कहते हैं इस शरीर द्वारा मैं सिर्फ तुमको पढ़ाता हूँ, क्योंकि मुझे अपना शरीर नहीं है इसलिए इनका आधार लेता हूँ। कल्प पहले इन द्वारा मैंने तुम बच्चों को सहज राजयोग सिखाया था, जिससे तुम पावन बने थे। मेरी सेवा ही यह है - पतितों को पावन बनाना। बाकी कृपा या आशीर्वाद मांगना फालतू है। यह बातें भक्तिमार्ग में चलती हैं, यहाँ नहीं हैं। ऐसे भी नहीं कोई बीमार हो जाए, मैं ठीक कर दूँ, यह मेरा धन्धा नहीं है। पुकारते हैं हम पतितों को आकर पावन बनाए दुर्गति से सद्गति में ले चलो। गाते हैं परन्तु अर्थ नहीं जानते। भगत तो सारी दुनिया में हैं, वह सब किसको याद करते हैं? एक पतित-पावन बाप को। सारी दुनिया के मनुष्यमात्र का वह लिबरेटर है, गाईड भी है। दु:ख से लिबरेट कर परमधाम में ले जाने वाला बाप ही है। तो बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। कदम-कदम पर राय लेनी चाहिए कि इस हालत में क्या करें? सर्जन तो एक ही है। यह (ब्रह्मा) सर्जन के रहने और बोलने की जगह है। इस सर्जन जैसी मत कोई और दे न सके। बच्चों को टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। दिन प्रतिदिन आयु कमती होती जाती है। विनाश सामने खड़ा है - ग़फलत की तो बहुत पछताना पड़ेगा। झरमुई-झगमुई करने में टाइम गँवाने से तुम्हारा बहुत नुकसान होता है। तुमको औरों को बचाना है। मनुष्य तो एक दो को बाप से मिलाते नहीं और ही दूर करते हैं। इस समय सबकी उतरती कला है तो जरूर उल्टी मत देंगे। बच्चों को अब ज्ञान मिला है तो कोई भी विकर्म नहीं करना चाहिए। छिपाना नहीं चाहिए। यह तो तुम जानते हो हम जन्म-जन्मान्तर पाप करते ही आये हैं। बाप का बनकर अगर पाप करते होंगे तो और क्या कहेंगे। यह कहते हैं हमको परमात्मा पढ़ाते हैं और खुद पाप करते रहते हैं! पाप करके फिर न बताने से वह बोझा उतरता नहीं। आदत पक्की हो जाती है। समझते हैं हमको कोई देखता नहीं है। भगवान तो देखता है ना। नहीं तो सज़ा कैसे मिलती है - गर्भ में। दिल अन्दर खाता है कि हमसे यह पाप हुआ। समझो कोई विकार में जाकर फिर यहाँ आकर बैठते हैं। बाप को तो मालूम पड़ता है - बहुत ही तुच्छ बुद्धि हैं जो समझते नहीं, पाप करते रहते हैं, सुनाते नहीं। कई बातें साकार बाप भी जान लेते हैं, परन्तु बच्चे सुनाते नहीं हैं। बाप कहते हैं पाप करते रहेंगे तो वृद्धि होती रहेगी फिर सौगुणा दण्ड भोगना पड़ेगा। चोर चोरी करता रहता है, उनको चोरी बिगर कुछ सूझता ही नहीं है। उनको जेल बर्ड कहा जाता है। बाप बच्चों को समझाते हैं कि सिवाए बाप की याद दिलाने के और कोई झरमुई-झगमुई की फालतू बात करे तो समझो यह दुश्मन है। फालतू बातें न करनी है, न सुननी है। एक दो को सावधानी देते रहो कि शिवबाबा को याद करो। कोई को फिर गुस्सा भी लगता है कि फलाना मुझे क्यों कहता है? परन्तु तुम्हारा फ़र्ज है याद दिलाना। याद से विकर्म विनाश होंगे। जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं आई है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा कुछ न कुछ भूलें तो होती रहती हैं। कर्मातीत अवस्था पिछाड़ी में आयेगी। सो भी थोड़े पास विद ऑनर होंगे। जो सर्विस नहीं करते उनकी यह अवस्था आयेगी नहीं। सर्विस पर जो रहते हैं वह एक दो को याद कराते रहते हैं - परमपिता परमात्मा के साथ तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? बाबा अपना मिसाल बताते हैं कि मैं भी भोजन पर बैठता हूँ, स्नान करता हूँ, तो मुझे भी याद दिलाओ कि शिवबाबा को याद करो। भल खुद याद न भी करे, परन्तु बाबा का डायरेक्शन अमल में लाना चाहिए। अगर अपना कल्याण करना चाहते हो तो याद दिलाओ एक दो को। ब्रह्मा भोजन की बहुत महिमा है। भोजन बनाने वाले ब्राह्मणों का योग ठीक चाहिए तब तो भोजन में ताकत आयेगी। याद से ही तुमको जीयदान मिलता है। अपना हीरे जैसा जीवन बनाना है। सहज ते सहज बात है मुझे याद करो, पवित्र बनो। पतित बनें तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। मुझ बाप को याद करते रहेंगे तो विकर्म भी विनाश होंगे और हम वर्सा भी देंगे। थोड़ा याद करेंगे तो वर्सा भी थोड़ा मिलेगा। गीता में भी आदि और अन्त में आता है मनमनाभव। कोई भी देहधारी की याद नहीं आनी चाहिए। शिवबाबा को याद करेंगे तो तुम्हारा कल्याण होगा। पाप दग्ध होंगे। गंगा में स्नान करने से कोई पाप विनाश नहीं होते हैं। भल कहते हैं भावना है परन्तु भावना ही राँग है। गंगा पतित-पावनी नहीं है। पतित-पावन एक बाप है। कोई भी स्थूल चीज़ को तुम्हें याद नहीं करना है। एक शिवबाबा को ही याद करना है।
आत्मा कहती है - हे गॉड फादर, हे परमपिता परमात्मा। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको बिल्कुल सहज उपाय बताता हूँ कि मुझे याद करो। अन्त में मेरी याद रहेगी तो तुम मेरे पास चले आयेंगे। जीव और आत्मा है ना। मनुष्य आत्मा को पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है। पुण्य परमात्मा नहीं कहा जाता है। आत्मा ही पतित बनती है तो फिर शरीर भी पतित मिलता है। बाप आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा अविनाशी है। बाप बच्चे दोनों अविनाशी हैं। बाप कहते हैं लाडले, सिकीलधे बच्चों, मैं एक ही बार आकर तुमको पावन बनाता हूँ। तुमको आत्म-अभिमानी बनाए कहता हूँ अशरीरी भव, मुझ बाप को याद करो। बस यह है आत्मा की यात्रा। वह होती है शारीरिक यात्रा। यहाँ तो तुम जानते हो कि आत्माओं को अब वापिस जाना है। योग अग्नि से ही तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे। तुम्हें ब्राह्मण बनना है। नहीं बनेंगे तो प्रजा में हल्का पद पायेंगे। कुछ न कुछ सुनते हैं तो उसका विनाश नहीं होगा। जो अच्छी तरह पढ़ेंगे पढ़ायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। सहज ते सहज बात है याद की। परमपिता परमात्मा को याद करना है। ऊंच ते ऊंच एक ही भगवान है - इसलिए गीत भी शिवबाबा का ही गाने से ठीक है। तुम्हारी बुद्धि वहाँ रहनी चाहिए कि शिवबाबा हमको सुनाते हैं। अभी नाटक पूरा होता है। हम सब एक्टर्स को अब शरीर का भान छोड़ वापिस घर जाना है। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे फिर जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। जैसे एक पिल्लर बनाते हैं ना, जहाँ दौड़ी लगाए हाथ लगाते हैं फिर जो पहले पहुँचें। तुम्हारा पिल्लर शिवबाबा है। याद के यात्रा की दौड़ी है। जितना याद करेंगे उतना जल्दी पिल्लर तक पहुँचेंगे फिर आना है स्वर्ग में। इस यात्रा में थकना नहीं है। अब तो दु:खधाम खत्म हुआ। हमको तो सुखधाम, शान्तिधाम में जाना है। आज दु:खधाम है, कल सुखधाम होगा। अब यही बाप की याद सबको दिलाओ। बाप ने हथेली पर बहिश्त लाया है। कहते हैं मामेकम् याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। टाइम वेस्ट मत करो। भक्ति में भी बहुत झरमुई-झगमुई की। भक्ति में कितनी रड़ियाँ मारते हैं कि भगवान हमारी सद्गति करने आओ। अब बाप आये हैं, समझाते हैं बच्चे पवित्र बनो। भल युगल इकट्ठे रहो, देखो आग तो नहीं लगती है? आग लगी तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। एक बार आग लगी तो फिर लगती ही रहेगी, इसलिए अपने को सम्भालना भी है। योग में रहने की बड़ी प्रैक्टिस चाहिए। योग में भल कितना भी आवाज हो, अर्थक्वेक हो, बाम्ब गिरें, देखें क्या होता है। इन बातों से डरना नहीं है। यह तो जानते ही हैं कि रक्त की नदियाँ भारत में ही बहनी है। पार्टीशन में रक्त की नदियाँ बही ना। अजुन तो बहुत आफतें आनी हैं, तुमको देखना है, मिरूआ मौत मलूका शिकार। तुम फरिश्ते बन रहे हो। जो अच्छे सर्विसएबुल होंगे वही उस समय ठहर सकेंगे, इसमें बहुत मज़बूती चाहिए। शिवबाबा को याद करना है। शिवबाबा जैसा मीठा बाप फिर कभी नहीं मिल सकता। उनकी ही मत पर चलना है। मुख्य बात ही है पवित्र बनने की। पतित उनको कहा जाता, जो विकार में जाते हैं। देवतायें हैं ही सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ तो सब हैं विकारी। वह है - शिवालय। यह है वैश्यालय। अब विकारी से निर्विकारी बन स्वर्ग का राज्य भाग्य लेना है। बाप कहते हैं मैं पावन दुनिया स्थापन करने आया हूँ। तुमको मैं पावन दुनिया का मालिक बनाऊंगा। सिर्फ पवित्र बनने की मदद करो, सबको बाप का निमंत्रण दो। पांच हजार वर्ष पहले भी जब मैंने गीता सुनाई थी तो कहा था मामेकम् याद करो तो पावन बनेंगे। चक्र को फिरायेंगे तो चक्रवर्ती राजा रानी बनेंगे। हेल्थ वेल्थ और हैपीनेस मिलेगी। सतयुग में सब कुछ था ना। बाप कहते हैं मेरे को याद करो तो कभी 21 जन्म रोगी नहीं बनेंगे। स्वदर्शन चक्र फिराते रहेंगे तो तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ - भगवानुवाच, बाबा सिर्फ अल्फ और बे पढ़ाते हैं। मनमनाभव और मध्याजी भव, बस। पढ़ाई भी कितनी सहज है। बस दिल पर यह लिख दो। कोई विरले व्यापारी इस धन्धे की युक्ति उस्ताद से लेते हैं। वह धन्धे आदि भल करो, मना थोड़ेही है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे जो खुद भी अल्फ और बे को याद करते और दूसरों को भी याद दिलाते हैं वही प्यारे लगते हैं। ऐसे बच्चों को मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) याद की यात्रा में थकना नहीं है, एक दो को सावधान करते बाप की याद दिलानी है। अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है। झरमुई-झगमुई (परचिंतन) न करना है, न सुनना है।
2) पास विद ऑनर होने के लिए मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई भी भूल नहीं करनी है।
वरदान:
ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज कर नम्बरवन बनने वाले सर्वगुण सम्पन्न भव !
वर्तमान समय आपस में विशेष कर्म द्वारा गुण दाता बनने की आवश्यकता है, इसलिए ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज करो। यही संकल्प करो कि मुझे सदा गुण मूर्त बन सबको गुण मूर्त बनाने का विशेष कर्तव्य करना ही है तो व्यर्थ देखने, सुनने वा करने की फुर्सत ही नहीं रहेगी। दूसरों को देखने के बजाए ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए हर सेकण्ड गुणों का दान करते चलो तो सर्वगुण सम्पन्न बनने और बनाने का एक्जैम्पल बन नम्बरवन हो जायेंगे।
स्लोगन:
साइलेन्स की पावर द्वारा निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना ही मन्सा सेवा है।