Saturday, November 11, 2017

12/11/17 प्रात:मुरली

12/11/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 01-03-83

"विश्व के हर स्थान पर आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल पहुंचाओ"
आज बापदादा वतन में रूहरिहान कर रहे थे। साथ-साथ बच्चों की रिमझिम भी देख रहे थे। वर्तमान समय मधुबन वरदान भूमि पर कैसे बच्चों की रिमझिम लगी हुई है, वह देख-देख हर्षा रहे थे। बापदादा देख रहे थे कि मधुबन पावर हाउस से चारों ओर कितने कनेक्शन्स गये हुए हैं। जैसे स्थूल पावर हाउस से अनेक तरफ लाइट के कनेक्शन जाते हैं। ऐसे इस पावर हाउस से कितने तरफ कनेक्शन गये हैं। विश्व के कितने कोनों में लाइट के कनेक्शन गये हैं और कितने कोनों में अभी कनेक्शन नहीं हुआ है। जैसे आजकल की गवर्मेन्ट भी यही कोशिश करती है कि अपने राज्य में सभी कोनों में, सभी गाँवों में चारों तरफ लाइट और पानी का प्रबन्ध जरूर हो। तो पाण्डव गवर्मेन्ट क्या कर रही है? ज्ञान गंगायें चारों ओर जा रही हैं, पावर हाउस से चारों ओर लाइट का कनेक्शन जा रहा है। जैसे ऊपर से किसी भी शहर को या गाँव को देखो तो कहाँ-कहाँ रोशनी है, नजदीक की रोशनी है या दूर-दूर है, वह दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। बापदादा भी वतन से दृश्य देख रहे थे कि कितने तरफ लाइट है और कितने तरफ अभी तक लाइट नहीं पहुँची है। रिजल्ट को तो आप लोग भी जानते हो कि देश विदेश में अभी तक कई स्थान रहे हुए हैं जहाँ अभी कनेक्शन्स देने हैं। जैसे लाइट और पानी बिगर उस स्थान की वैल्यु नहीं होती। ऐसे जहाँ आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल की पूर्ति नहीं हुई है, वहाँ की चैतन्य आत्मायें किस स्थिति में हैं। अंधकार में, प्यास में भटक रहीं हैं, तड़प रहीं हैं। ऐसी आत्माओं की वैल्यु क्या बताते हो? चित्र बनाते हो ना - कौड़ी तुल्य और हीरे तुल्य। लाइट और ज्ञान जल मिलने से कौड़ी से हीरा बन जाते हैं। तो वैल्यु बढ़ जाती है ना। बापदादा देख रहे थे कि देश विदेश से आये हुए बच्चे पावर हाउस से विशेष पावर लेकर अपने-अपने स्थान पर जा रहे हैं।
एक तरफ तो बच्चों के स्नेह में बापदादा समझते हैं कि मधुबन अर्थात् बापदादा के घर का श्रृंगार जा रहे हैं। जब भी बच्चे मधुबन में आते हैं तो मधुबन की रौनक या स्वीट होम की झलक क्या हो जाती है। बच्चे भी महसूस करते हैं कि मधुबन की रौनक बढ़ाने वाले हमारे स्नेही साथी आये हैं। जैसे आप लोग वहाँ याद करते हो, चलते फिरते, उठते बैठते मधुबन की स्मृति सदा ताजी रहती है वैसे बापदादा और मधुबन निवासी भी आप सबको याद करते हैं। स्नेह के साथ-साथ सेवा भी विशेष सबजेक्ट है - इसलिए स्नेह से तो समझते हैं यहाँ ही बैठ जाऍ। लेकिन सेवा के हिसाब से चारों ओर जाना ही पड़े। हाँ ऐसा भी समय आयेगा जो जाना नहीं पड़ेगा लेकिन एक ही स्थान पर बैठे-बैठे चारों ओर के परवाने स्वत: शमा पर आयेंगे। यह तो छोटा सा सैम्पुल देखा कि आबू हमारा ही है। अभी तो किराये पर मकान लेने पड़े ना। फिर भी थोड़ी सी रौनक देखी। ऐसा समय आयेगा जो चारों ओर फरिश्ते नज़र आयेंगे। अभी मुख द्वारा सेवा का पार्ट चल रहा है और अभी कुछ रहा हुआ है इसलिए दूर-दूर जाना पड़ता है। अभी श्रेष्ठ संकल्प की शक्तिशाली सेवा जो पहले भी सुनाई है, अन्त में उसी सेवा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देगा। हमें कोई बुला रहा है कोई दिव्य बुद्धि द्वारा, शुभ संकल्प का बुलावा हो रहा है, ऐसे अनुभव करेंगे। कोई दिव्य दृष्टि द्वारा बाप और स्थान को देखेंगे। दोनों प्रकार के अनुभवों द्वारा बहुत तीव्रगति से अपने श्रेष्ठ ठिकाने पर पहुँच जायेंगे। इस वर्ष क्या करेंगे?
प्रयत्न अच्छा किया है। इस वर्ष रहे हुए स्थानों को लाइट तो देंगे ही। लेकिन हर स्थान की विशेषता इस वर्ष यही दिखाओ कि हर सेवाकेन्द्र उसमें भी विशेष बड़े-बड़े केन्द्र जो हैं उसमें यह लक्ष्य रखो जैसे कभी धर्म सम्मेलन करते हो तो सभी धर्म वाले इक्ट्ठे करते हो या राजनीतिक को बुलाते हो, साइंस वालों को विशेष बुलाते हो, अलग-अलग प्रकार के स्नेह मिलन करते हो, तो इस वर्ष हर स्थान पर सर्व प्रकार के विशेष आक्यूपेशन वाले, सम्बन्ध में आने वाले तैयार करो। तो जैसे अभी ऐसे कहते हैं कि यहाँ काले गोरे सब प्रकार की वैरायटी है। एक स्थान पर सर्व रंग, देश, धर्म वाले हैं, ऐसे यह कहें कि यहाँ सर्व आक्युपेशन वाले हैं। विशेष आत्मायें एक ही गुलदस्ते में वैरायटी फूलों के मिसल दिखाई दें। हर सेन्टर पर हर आक्युपेशन वाली विशेष आत्माओं का संगठन हो। जो दुनिया में यह आवाज बुलन्द हो कि यह एक बाप एक ही सत्य ज्ञान सर्व आक्युपेशन वालों के लिए कितना सहज और सरल है अर्थात् हर सेवास्थान की स्टेज पर सर्व आक्यूपेशन वाले इकट्ठे दिखाई दें। कोई भी आक्यूपेशन वाला रह न जाए। गरीब से लेकर साहूकार तक, गाँव वालों से लेकर बड़े शहर वाले तक, मजदूर से लेकर बड़े से बड़े उद्योगपति तक सर्व प्रकार की विशेष आत्माओं की अलौकिक रौनक दिखाई दे, जिससे कोई भी यह नहीं कह सके कि क्या यह ईश्वरीय ज्ञान सिर्फ इन्हीं के लिए है। सर्व का बाप सर्व के लिए है - बच्चे से लेकर परदादे तक सभी ऐसा अनुभव करें कि विशेष हमारे लिए यह ज्ञान है। जैसे आप सभी ब्राह्मणों के मन से, दिल से एक ही आवाज निकलती है कि हमारा बाबा है, ऐसे विश्व के कोने-कोने से, विश्व के हर आक्यूपेशन वाली आत्मा दिल से कहे कि हमारे लिए बाप आये हैं, हमारे लिए ही यह ज्ञान सहारा है। ज्ञान दाता और ज्ञान दोनों के लिए सब तरफ से सब प्रकार की आत्माओं से यही आवाज निकले। वैसे सर्व आक्यूपेशन वालों की सेवा करते भी रहते हो लेकिन हर स्थान पर सब वैरायटी हो। और फिर ऐसे वैरायटी आक्यूपेशन वालों का गुलदस्ता बापदादा के पास ले आओ। तो हर सेवाकेन्द्र विश्व की सर्व आत्माओं के संगठन का एक विशेष चैतन्य म्युज़ियम हो जायेगा। समझा। जो भी सम्पर्क में हैं, उन्हों को सम्बन्ध में लाते हुए सेवा की स्टेज पर लाओ। समय प्रति समय जो भी वी. आई. पीज. वा पेपर्स वाले आये हैं उन्हों को सेवा की स्टेज पर लाते रहो तो मुख से बोलने से भी वह मुख का बोल उन आत्माओं के लिए ईश्वरीय बन्धन में बन्धने का साधन बन जाता है। एक बार बोला कि बहुत अच्छा है और फिर सम्बन्ध से दूर हो गये तो भूल जाते हैं। लेकिन बार-बार बहुत अच्छा, बहुत अच्छा अनेकों के सामने कहते रहें, तो वह बोल भी उन्हों को अच्छा बनने का उत्साह बढ़ाता है, और साथ-साथ सूक्ष्म नियम भी है कि जितनों पर प्रभाव पड़ता है, उन आत्माओं का शेयर उनको मिल जाता है अर्थात् उन्हों के खाते में पुण्य की पूंजी जमा हो जाती है। और वही पुण्य की पूंजी अर्थात् पुण्य का श्रेष्ठ कर्म श्रेष्ठ बनने के लिए उन्हों को खींचता रहेगा इसलिए जो अभी डायरेक्ट बाप की भूमि से कुछ न कुछ ले गये हैं चाहे थोड़ा, चाहे बहुत लेकिन उन्हों से दान कराओ अर्थात् सेवा कराओ। तो जैसे स्थूल धन का फल सकामी अल्पकाल का राज्य मिलता है वैसे इस ज्ञान धन वा अनुभव के धन दान करने से भी नये राज्य में आने का पात्र बना देगा। बहुत अच्छे प्रभावित हुए, अब उन प्रभावित हुई आत्माओं द्वारा सेवा कराए उन आत्माओं को भी सेवा के बल द्वारा आगे बढ़ाओ और अनेकों के प्रति निमित्त बनाओ। समझा क्या करना है! सर्विस वृद्धि को तो पा ही रही है और पाती रहेगी लेकिन अब क्लास स्टूडेन्टस में वैरायटी बनाओ।
अभी तो विदेश वालों का मिलने का साकार रूप का इस वर्ष के लिए सीजन का पार्ट पूरा हो रहा है। लेकिन देश वालों का तो आह्वान हो रहा है, सुनाया ना साकार वतन में तो समय का नियम बनाना पड़ता है और आकारी वतन में इस बन्धन से मुक्त हैं। अच्छा।
चारों ओर के उमंग-उत्साह वाले सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप के साथ-साथ अनुभव करने वाले समीप आत्मायें बच्चों को, सदा एक ही याद में एकरस रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

12-11-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' रिवाइज:21-03-83 मधुबन

"गीता पाठशाला चलाने वाले भाई-बहनों के सम्मुख अव्यक्त महावाक्य"
आज परम आत्मा अपने महान आत्माओं से मिलने आये हैं। बापदादा सभी बच्चों को महान आत्मायें देखते हैं। दुनिया वाले जिन आत्माओं को महात्मा कहते, ऐसे महात्मायें भी आप महान आत्माओं के आगे क्या दिखाई देंगे? सबसे बड़े से बड़ी महानता जिससे महान बने हो, वह जानते हो?
जिन आत्माओं को, विशेष माताओं को हर बात में अयोग्य बना दिया है, ऐसी अयोग्य आत्माओं को योग्य अर्थात् बाप के भी अधिकारी आत्मायें बना दिया। जिनको चरणों की जूती समझा है, बाप ने नयनों का नूर बना दिया। जैसे कहावत है नूर नहीं तो जहान नहीं। ऐसे ही बापदादा भी दुनिया को दिखा रहे हैं - भारत माता शक्ति अवतार नहीं तो भारत का उद्वार नहीं। ऐसे अयोग्य आत्माओं से योग्य आत्मा बनाया। तो महान आत्मायें बन गये ना! जिन्होंने भी बाप को जाना और जानकर अपना बनाया वह महान हैं। पाण्डवों ने भी जाना है और अपना बनाया है वा सिर्फ जाना है? अपना बनाने वाले हो ना। जानने की लिस्ट में तो सभी हैं। अपना बना लेना इसमें नम्बरवान बन जाते हैं।
अपना बनाना अर्थात् अपना अधिकार अनुभव होना और अधिकार अनुभव होना अर्थात् सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त होना। अधीनता अनेक प्रकार की है। एक है स्व की स्व प्रति अधीनता। दूसरी है सर्व के सम्बन्ध में आने की। चाहे ज्ञानी आत्मायें, चाहे अज्ञानी आत्मायें दोनों के सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा अधीनता। तीसरी है - प्रकृति और परिस्थितियों द्वारा प्राप्त हुई अधीनता। तीनों में से किसी भी अधीनता के वश हैं तो सिद्ध है सर्व अधिकारी नहीं हैं।
अभी अपने को देखो कि अपना बनाना अर्थात् अधिकारी बनने का अनुभव सदा और सर्व में होता है! वा कभी-कभी और किस बात में होता है और किसमें नहीं होता है। बापदादा बच्चों के श्रेष्ठ तकदीर को देख हर्षित भी होते हैं क्योंकि दुनिया की अनेक प्रकार की आग से बच गये। आज का मानव अनेक प्रकार की आग में जल रहा है और आप बच्चे शीतल सागर के कण्ठे पर बैठे हो। जहाँ सागर की शीतल लहरों में, अतीन्द्रिय सुख की, शान्ति की प्राप्ति में समाये हुए हो। एटामिक बाम्बस या अनेक प्रकार के बाम्बस की अग्नि ज्वाला जिससे लोग इतना घबरा रहे हैं, वह तो सिर्फ सेकण्डों की, मिनटों की बात है। लेकिन आजकल के अनेक प्रकार के दु:ख, चिन्तायें समस्यायें यह भिन्न-भिन्न प्रकार की चोट जो आत्माओं को लगती है, यह अग्नि जीते हुए जलाने का अनुभव कराती है। न जिंदा हैं, न मरे हुए हैं। न छोड़ सकते, न बना सकते। ऐसे जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये हो - इसलिए सदा सर्व के प्रति रहम आता है ना, तब तो घर-घर में सेवाकेन्द्र बनाया है। बहुत अच्छा सेवा का लक्ष्य रखा है। अब तो गाँव गाँव या मोहल्ले में हैं, लेकिन अब गली-गली में ज्ञान-स्थान हो। भक्ति में देव-स्थान बनाते हैं लेकिन यहाँ घर-घर में ब्राह्मण आत्मा हो। जैसे घर घर में और कुछ नहीं तो देवताओं के चित्र जरूर होंगे। ऐसे घर घर में चैतन्य ब्राह्मण आत्मा हो। गली गली में ज्ञान-स्थान हो तब हर गली में प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। अभी तो सेवा बहुत पड़ी है। फिर भी बच्चों ने हिम्मत रख जितनी भी सेवा की है, बापदादा हिम्मतवान बच्चों को मुबारक देते हैं और सदा मदद लेते हुए आगे बढ़ने की शुभ आर्शीवाद भी देते हैं। और फिर जब घर-घर में दीपक जागकर दीपावली मनाकर आयेंगे तो इनाम भी देंगे।
बापदादा को यह देख खुशी है कि महान आत्माओं को भी चैलेन्ज करने वाले पवित्र प्रवृत्ति का सबूत दिखाने वाले, हद के घर को बाप की सेवा का स्थान बनाने वाले, सपूत बच्चों का प्रत्यक्ष पार्ट बजा रहे हैं, इसलिए बापदादा ऐसे सेवाधारी बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं। इसमें भी संख्या ज्यादा माताओं की है। अगर पाण्डव किसी भी बात में आगे जाते हैं तो शक्तियों को सदा खुशी होती है। बापदादा भी पाण्डवों को आगे करते हैं। पाण्डव स्वयं भी शक्तियों को आगे रखना जरूरी समझते हैं। पहली कोशिश क्या करते हो? मुरली कौन सुनावे? इसमें भी ब्रह्मा बाप को फालो करते हो। शिव बाप ने ब्रह्मा माँ को आगे बढ़ाया और ब्रह्मा माँ ने सरस्वती माँ को आगे बढाया। तो फालो फादर मदर हो गया ना। सदैव यह स्मृति में रखो कि आगे बढ़ाने में आगे बढ़ना समाया हुआ है। जबसे बापदादा ने माताओं के ऊपर नज़र डाली तब से दुनिया वालों ने भी ‘लेडीज़ फर्स्ट' का नारा जरूर लगाया। नारा तो लगाते हैं ना। भारत की राजनीति में भी देखो तो सभी पुरूष भी नारी के लिए महिमा तो गाते हैं ना। ऐसे तो पाण्डव भी किसी हिसाब से नारियाँ ही हो। आत्मा नारी है और परमात्मा पुरूष है। तो क्या हुआ। आत्मा कहती है, आत्मा कहता है - ऐसे नहीं कहा जाता। कुछ भी बन जाओ लेकिन नारी तो हो। परमात्मा के आगे तो आत्मा नारी है। आशिक नहीं हो? सर्व सम्बन्ध एक बाप से निभाने वाले हो। यह तो वायदा है ना। यह तो बापदादा बच्चों से रूहरिहान कर रहे हैं। सभी सिकीलधे बच्चे सदा एक बाप दूसरा न कोई, इसी अनुभव में सदा रहने वाले हैं। ऐसे बच्चे ही बाप समान श्रेष्ठ आत्मायें बनते हैं। अच्छा -
ऐसे सदा सेवा के उमंग-उत्साह में रहने वाले, सदा सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ कल्याण की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ हिम्मत द्वारा बापदादा के मदद के पात्र आत्मायें - ऐसे सेवास्थान के निमित्त बने हुए महान आत्माओं को परम आत्मा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:
जिम्मेवारी की स्मृति द्वारा सदा अलर्ट रहने वाले शुभभावना, शुभ कामना सम्पन्न भव!
आप बच्चे प्रकृति और मनुष्यात्माओं की वृत्ति को परिवर्तन करने के जिम्मेवार हो। लेकिन यह जिम्मेवारी तब ही निभा सकेंगे जब आपकी वृत्ति शुभ भावना, शुभ कामना से सम्पन्न, सतोप्रधान और शक्तिशाली होगी। जिम्मेवारी की स्मृति सदा अलर्ट बना देगी। हर आत्मा को मुक्ति-जीवनमुक्ति दिलाना, वर्से के अधिकारी बनाना यह बहुत बड़ी जिम्मेवारी है इसलिए कभी अलबेलापन न आये, वृत्ति साधारण न हो।
स्लोगन:
अपने हर कर्म द्वारा सहारेदाता बाप को प्रत्यक्ष करो तो अनेक आत्माओं को किनारा मिल जायेगा।