Friday, November 10, 2017

11/11/17 प्रात:मुरली

11/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - बाप समान खुदाई खिदमतगार बन आसुरी सोसायटी को दैवी सोसायटी बनाने की सेवा करो, सर्विस का शौक रखो''
प्रश्न:
कई बच्चे पुरानी दुनिया को भुलाते भी नहीं भूल पाते हैं, उसका कारण क्या है?
उत्तर:
उनका कर्मबन्धन बहुत कड़ा है। अगर नई दुनिया में बुद्धियोग नहीं लगता है। बुद्धि बार-बार पुरानी दुनिया तरफ भागती रहती है, तो कहा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है अर्थात् कर्म ही इनके खोटे हैं।
प्रश्न:
कौन सा स्वाद आ जाए तो तुम सर्विस के बिगर रह नहीं सकते?
उत्तर:
रहमदिल बनने का स्वाद। जिसे ज्ञान का स्वाद आया है, वही रहमदिल बनना जानते हैं। रहमदिल बच्चे सर्विस के बिगर रह नहीं सकते।
गीत:-
तू प्यार का सागर है......  
ओम् शान्ति।
यह जो अक्षर सुने तू प्यार का सागर है। तुम बच्चे जानते हो कि यह बाप सबसे प्यारा है। बाप को जब याद करते हो तो वर्सा याद आ जाता है। जिसको बाप याद आयेगा, निश्चय हो जायेगा तो जरूर खुशी होगी। यूँ तो शिव के मन्दिर में भी जाते हैं तो शिवलिंग को शिवबाबा ही कहते हैं। परन्तु उन्हों को इतनी खुशी क्यों नहीं होती है? वह तो शिवलिंग पर दूध, फल, फूल आदि चढ़ाते हैं। तुमको तो दूध आदि चढ़ाने की दरकार ही नहीं। निराकार भगवान, वह तो पिता हुआ ना। भक्तों का भगवान वह रचयिता भी है। उन्होंने इस मनुष्य सृष्टि को रचा है। यह भी गाया जाता है। उनकी भक्ति करते हुए भी जितना तुम बच्चों को खुशी का पारा चढ़ता है उतना और कोई को नहीं चढ़ता। भगवान का नाम सुनने से ही तुम्हारे रोमांच खड़े हो जाते हैं। बुद्धि में आता है कि बाप से हमको बाप के घर का भी वर्सा मिलता है और बाप की मिलकियत का भी वर्सा मिलता है। बच्चा तो बाप के घर में ही जन्म लेता है, इसमें कोई अदली-बदली नहीं हो सकती। जायदाद का कारखाना, जमीनें आदि बाहर में इधर उधर रहती हैं। भल घर भी जायदाद है परन्तु प्रापर्टी की फिरती-घिरती (अदली-बदली) होती है। घर को अचल सम्पत्ति कहा जाता है। प्रापर्टी को चल सम्पत्ति कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो कि हम बाप के घर के मालिक बनते हैं, जो कभी बदल-सदल नहीं हो सकता। स्वीट होम की बदल सदल नहीं होगी। बाकी राजाई तो कितना बदल-सदल होती है। वह चल है, वह अचल है। मुक्तिधाम अचल है। यहाँ तो अदली-बदली होती है। सूर्यवंशी से चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी में आते हैं। मुक्ति और जीवनमुक्ति। तुम बच्चे बाप की प्रापर्टी के मालिक बनते हो। जानते हो बाप की जो अचल सम्पत्ति है उनके तो सब मालिक बनते हैं। बाकी जो चल सम्पत्ति है वह बच्चों को नम्बरवार मिलती है। तुमको सबसे जास्ती अच्छी प्रापर्टी मिलती है। स्वर्ग में तुम राज्य करते हो। चार युग जो हैं उसमें तो भारतवासी ब्राह्मण कुल ही मुख्य है। जो देवी-देवता धर्म वाले हैं, सब तो सारा चक्र लगाते नहीं। तो इस धर्म वाला कोई और धर्म में कनवर्ट हो गया तो निकल आयेगा। क्रिश्चियन धर्म में, बुद्ध धर्म में बहुत कनवर्ट हो गये हैं वह सब निकल आयेंगे। ऐसे बहुत कनवर्ट हो गये हैं। देखने में आता है, कोई समय ऐसा भी आयेगा। यह जो नॉलेज है उसे कोई भी समझ सकते हैं। इस सृष्टि चक्र को जानना तो कॉमन बात है। भल कितना भी डलहेड हो तो भी बुद्धि में तो यह आता है ना। ऐसे नहीं कि सृष्टि चक्र को जानने से सर्वगुण सम्पन्न बन जाते हैं। नहीं, यह तो पढ़ाई है। वह है हद की पढ़ाई, यह है बेहद की पढ़ाई। सिर्फ तुम जानते हो तुम्हारी बुद्धि में यह रहता है कि यह चक्र कैसे फिरता है और धर्म तो बाद में आते हैं। यह नॉलेज बहुत सहज है। कोई तो मुश्किल समझते हैं, परन्तु फिर इतना योगी बनना है। सब उनको याद करते हैं। सृष्टि चक्र को तो जाना है परन्तु वह अवस्था भी तो चाहिए ना। सर्वगुण सम्पन्न बनने में अच्छी ही मेहनत लगती है। कोई न कोई विघ्न निकल पड़ते हैं। खुद भी कहते हैं कि मेरे में मीठा बोलने का गुण नहीं है। पुरुषार्थ करना पड़ता है। एम आब्जेक्ट तो सीधी है। बाबा ने कल रात को भी समझाया कि यह तुम लिख सकते हो कि हम 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से यह राजयोग सीख रहे हैं। कहाँ भी प्रदर्शनी वा प्रोजेक्टर दिखाया जाए तो यह वन्डरफुल बात जरूर लिखनी चाहिए कि 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से तुमको हम इस प्रदर्शनी के द्वारा राजयोग सीखने के लिए युक्ति बतलाते हैं।
बाप कहते हैं कि 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक श्रीमत द्वारा यह पुरुषार्थ कर रहे हो। वह तो कहते हैं कि कल्प की आयु ही लाखों वर्ष की है। कलियुग तो अभी बच्चा है। तुम कहते हो हम 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक दैवी स्वराज्य पद पाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। तो मनुष्य वन्डर खायेंगे कि यह क्या लिखते हैं? अगर कहें कि सतयुग को लाखों वर्ष हुए हैं तो पूछो देवताओं की इतनी जनसंख्या (आदमशुमारी) कहाँ है! हिन्दुओं की आदमशुमारी कम निकलती है। हिन्दू और-और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं। हिन्दू ही कितने मुसलमान बने होंगे। उनको शेख कहते हैं। ऐसे भी बहुत हैं। कोई तो अपने को आदि सनातन देवी-देवता धर्म का मानते भी नहीं हैं। आदि सनातन हिन्दू धर्म कह देते हैं। परन्तु हिन्दू धर्म तो आदि सनातन था नहीं। तुम अखबार में भी डाल सकते हो, मैंगजीन की तो बात नहीं। अखबारें तो लाखों की अन्दाज में छपती हैं। हाँ वह पैसे तो बहुत लेते हैं। समझाने से वह डाल सकते हैं। चक्र भी डाल सकते हैं। बाबा ने जो प्रश्न लिखा था कि गीता का भगवान कृष्ण वा शिव? वह भी अखबार में डाल सकते हैं। कभी खर्चे पर डालते हैं, कभी लोन पर भी देते हैं। बड़ी अच्छी अखबार में डालो, परन्तु हमेशा पड़े तब मनुष्यों की ऑख खुले। एक बार डाला कोई ने पढ़ा, कोई ने नहीं भी पढ़ा। रोज़ डालने से मनुष्यों की ऑख खुलेगी। फिर आकर ज्ञान समझेंगे। पुरुषार्थ करने में भी कितनी मेहनत लगती है। बहुत माया के तूफान आते हैं। मेहनत तो है ना। अखबार में डालना, प्रदर्शनी करना। प्रदर्शनी तो एक गांव में होगी। अखबार तो चारों ही ओर जाती है। सारा ही दिन ख्यालात चलते रहते हैं। वर्णन करना पड़ता है कि क्या किया जाए? कैसे सर्विस को आगे बढ़ाया जाए? तुम हो सच्चे-सच्चे खुदाई खिदमतगार बच्चे। सोसायटी की सर्विस करना, यह खिदमत है ना। तुम बच्चे जानते हो कि वह सब आसुरी सोसायटी हैं, अब उनको दैवी सोसायटी बनाना है। सारी दुनिया की सोसायटी को स्वर्ग में पहुँचाना है। सारी दुनिया का बेड़ा गर्क है। दुनिया पहले स्वर्ग थी। अब नर्क बन गई है। यह चक्र कैसे फिरता रहता है। ड्रामा है ना। जब स्वर्ग है तब नर्क नहीं। कहाँ गया? नीचे। ड्रामा को फिर फिरना है। यह चैतन्य ड्रामा है। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो एक्ट करते हैं, यह तुम्हारी बुद्धि में है और तो कुछ भी नहीं समझ सकते। ड्रामा को समझ जाएं तो फिर यह बातें ठहर न सकें कि यह कल्प लाखों वर्ष का है। स्वास्तिका भी बिल्कुल ठीक निकाला हुआ है। स्वास्तिका की पूजा भी करते हैं। परन्तु उनको यह पता नहीं है कि क्या चीज़ है। अर्थ कुछ नहीं। तो यह चक्र समझाना पड़ता है। तुम्हारी बुद्धि में यह चक्र फिरता रहता है। तुम कहते हो कि हम मनुष्य से देवता, नर से नारायण बन रहे हैं। यह राजयोग है। त्रिमूर्ति का चित्र तो सारा दिन बुद्धि में रहता है। ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की राजाई मिलती है। शंकर द्वारा यह आसुरी सृष्टि खलास होती है। बस बुद्धि में यही ख्यालात चलते रहें। बहुत खुशी में रहना होता है। बाबा लाकेट भी बनवा रहे हैं, जिससे तुम बहुत सहज रीति समझा सकते हो। बैग्स में भी यह चित्र लगवा सकते हो। त्रिमूर्ति और पा। भल लक्ष्मी-नारायण के चित्र में और सब हैं। कृष्ण का भी है, सिर्फ चक्र में नहीं है। एक चित्र में सब चीज़ें कहाँ तक डाल सकते हैं इसलिए वह फिर समझाया जाता है। बाबा की बुद्धि सारा दिन चलती रहती है कि लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बहुत अच्छा बनाते हैं। कृष्ण के मन्दिर भी बहुत अच्छे बने हुए हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं कि यह लक्ष्मी-नारायण वा राधे-कृष्ण कौन हैं? तुमको अब कितनी नॉलेज मिली है। कितनी खुशी होनी चाहिए। कहाँ भी जाकर तुम सर्विस कर सकते हो। श्रीनाथ द्वारे पर भी जाकर समझा सकते हो। ट्रस्टी लोगों को समझाओ। कासकेट ले कोई भी बड़े आदमी को खोलकर समझाने से बहुत खुशी होगी। समझेंगे कि यह तो जैसे भगवान स्वयं रूप धारण कर समझा रहे हैं। कोई-कोई बच्चों में सर्विस का बहुत शौक है। परन्तु बड़ों-बड़ों के पास जाते नहीं हैं। कहाँ भी जाकर तुम मुलाकात कर सकते हो। खर्चे की बात नहीं है। पहले तो वह समझेंगे कि यह कुछ शायद लेने के लिए आये हैं। सर्विस के लिए अनेक प्रकार की युक्तियां रचनी चाहिए। नहीं तो टाइम वेस्ट जाता है। हर एक को अपनी दिल से पूछना चाहिए। बहुत रहमदिल बन बहुतों का कल्याण करना है। ज्ञान का स्वाद नहीं तो रहमदिली का स्वाद नहीं आता। नहीं तो तुम बच्चे बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हो। बाबा तो सर्विस की युक्तियां बहुत बतलाते हैं। सुना बस भागे। अगर फुर्सत हुई। सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए तब तो ऊंच पद पा सकेंगे। इस त्रिमूर्ति, चक्र पर बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हो। फारेनर्स भी कोई आये तो उनको समझाओ। कितनी अच्छी नॉलेज है। यह तो वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी की नॉलेज है। सन्यासी लोग बाहर जाते हैं भारत के प्राचीन राजयोग की नॉलेज देने, परन्तु वह दे नहीं सकते। तुम्हारे पास फैक्ट फिगर्स सब हैं परन्तु समझाने की हिम्मत चाहिए। प्रोजेक्टर पर भी तुम सब चित्र दिखाए नॉलेज दो तो है बहुत अच्छा। विलायत में भी प्रोजेक्टर पर बहुत अच्छी नॉलेज दे सकते हो। वह सुनकर बहुत खुश होंगे। क्राइस्ट अभी कहाँ है फिर कब आयेगा? उनको पता पड़ जायेगा। ड्रामा के चक्र का ज्ञान तो मिल जायेगा ना। साथ में प्रोजेक्टर है तो उस पर बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हैं। इसमें कोई मना नहीं कर सकते। कोई को भी समझा सकते हो, स्लाइडस सब ले जाओ। अंग्रेजी में हो तो अच्छा है। मेहनत भी करनी है। सबका बुद्धियोग शिवबाबा से लग जाये तो जल्दी-जल्दी स्थापना हो जाए। बाप भी ड्रामा प्लैन अनुसार समझाते रहते हैं। मत देते रहते हैं। चीज़ लेने वाला भी बड़ा समझू, सयाना, अक्लमंद चाहिए। स्लाइड्स में अक्षर बहुत क्लीयर चाहिए, जो मनुष्य पढ़ सकें, हिन्दी इंगलिश दोनों हों। उर्दू, मद्रासी भी बनाने पड़े। फिर प्रोजेक्टर पर कहाँ भी समझाना सहज हो जायेगा। आप समान बनाने की सर्विस करनी है तब अच्छा पद पाने की उम्मींद हो सकती है। नहीं तो क्या पद मिलेगा। मनुष्य बिचारे बहुत दु:खी हैं। बाप का परिचय देने से खुशी होती है ना। बाबा को कभी देखा नहीं है। पत्रों में लिखते हैं बाबा हम आपसे वर्सा जरूर लेंगे। कितनी बांधेलियां हैं। वह भी तब छूट सकती हैं जब तुम्हारा नाम निकले, प्रभाव निकले। अपनी हमजिन्स को जेल से छुड़ाना है। सर्विस नहीं तो क्या पद पायेंगे। अन्त में सब साक्षात्कार होंगे। फिर अपने किये हुए करतूत सब याद आयेंगे। बाप साक्षात्कार कराते रहेंगे। बाप का बनकर फिर क्या-क्या डिससर्विस की, फिर पछताना होता है इसलिए बाप समझाते रहते हैं कि सर्विस पर अच्छी रीति लगना है। बाबा को अच्छी-अच्छी बच्चियां चाहिए - सर्विस करने वाली। विचार करना चाहिए कि बाबा की सर्विस में क्या मदद करें जो हमारे स्वराज्य की जल्दी स्थापना हो जाए। सर्विस का शौक होना चाहिए। सर्विसएबुल बच्चों को पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाने में कितना माथा मारना पड़ता है। कम बात नहीं है फिर बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए कि हम स्वर्ग का वर्सा बाबा से ले रहे हैं। परन्तु है गुप्त। कर्मबन्धन का भी हिसाब-किताब कितना कड़ा है, जो पुरानी दुनिया को भूलते नहीं। धूलछांई में जाकर बुद्धियोग लटकता है। नई दुनिया में लगता नहीं, इसको कहा जाता है कर्म खोटे। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आप समान बनाने की सेवा करनी है। कोई ऐसी करतूत नहीं करनी है, जिसकी सज़ा खानी पड़े। बहुत-बहुत मीठा बनने का पुरुषार्थ करना है।
2) बाप हमें चल और अचल (मुक्ति और जीवनमुक्ति) प्रापर्टी का मालिक बनाते हैं - इसी खुशी और नशे में रहना है।
वरदान:
सर्व कर्मेन्द्रियों को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव!
मास्टर सर्वशक्तिमान् राजयोगी वह है जो राजा बनकर अपनी कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाये। जैसे राजा राज्य-दरबार लगाते हैं ऐसे आप अपने राज्य कारोबारी कर्मेन्द्रियों की रोज़ दरबार लगाओ और हालचाल पूछो कि कोई भी कर्मचारी आपोजीशन तो नहीं करते हैं, सब कन्ट्रोल में हैं। जो मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं, उन्हें एक भी कर्मेन्द्रिय कभी धोखा नहीं दे सकती। स्टॉप कहा तो स्टॉप।
स्लोगन:
समय पर सर्व शक्तियों को कार्य में लगाना ही मास्टर सर्वशक्तिमान् बनना है।