Friday, July 7, 2017

मुरली 7 जुलाई 2017

07-07-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– बाप समान पतितों को पावन बनाने का धन्धा करो, तब ही बाप की दिल पर चढ़ेंगे”
प्रश्न:
किन बच्चों में गुणों की धारणा सहज होती है, उनकी निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:
जो बच्चे पुराने मित्र सम्बन्धियों से, पुरानी दुनिया से बुद्धियोग निकाल नष्टोमोहा बनते हैं उनमें सर्व गुणों की धारणा सहज होती है। वह कभी किसी की निंदा करके एक दो की दिल खराब नहीं करते। बाप को पूरा-पूरा फालो करते हैं। सांवरे को गोरा, खारे को मीठा और पतितों को पावन बनाने की सेवा का सबूत देते हैं। सदा हर्षित रहते हैं।
गीत:
किसने यह सब खेल रचाया....   
ओम् शान्ति।
तुम बच्चे जानते हो कि हम अभी ईश्वरीय सन्तान वा सम्प्रदाय हैं, उसके पहले हम आसुरी सम्प्रदाय थे। अभी हमको ईश्वरीय मत मिलती है। ईश्वरीय मत क्या सिखाती है? पतितों को पावन बनाना। अब हर एक अपनी दिल से पूछते रहें, जबकि हम पतित-पावन की सन्तान हैं तो अभी हम बाप का धन्धा करते हैं या नहीं! दुनिया में तो बाप का धन्धा अलग तो बच्चों का धन्धा अलग-अलग होता है। अनेक प्रकार के धन्धे हैं। अनेक प्रकार की मतें हैं। बाप की मत अलग तो बच्चे की मत अलग। यह फिर है ईश्वरीय मत। तुम बाप को जानते हो। दुनिया सिर्फ गाती है, जानती नहीं है कि कैसे पतित-पावन बाप आकर पावन बनाते हैं। तुम जानते हो पतित-पावन बाप हमको पावन बनाए, पावन स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं। यहाँ तुम्हारी है ही एक मत। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत बाप ही आकर देते हैं। जो अपने को ईश्वरीय औलाद निश्चय करते हैं, उनको अपनी दिल से पूछना है। जो निश्चय ही नहीं करते उनसे यह धन्धा हो भी नहीं सकेगा। जो बाप के बने ही नहीं, वह यह धन्धा कर न सकें। बच्चे समझते हैं हमारी एम आबजेक्ट ही है पावन बनना। चित्र भी सामने रखे हैं। नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनना। लक्ष्मी-नारायण की डिनॉयस्टी के हम बनें। बाप आया है– हमको पावन बनाने, तो अपने को देखना है कि हम बाप का कर्तव्य कर रहे हैं या नहीं? बाप ने क्या किया? यह हॉस्पिटल वा युनिवर्सिटी खोली। बच्चों का भी यही काम है। शुरू-शुरू में जब बाप आया तो मकान तो छोटा ही था। मम्मा के कमरे से भी छोटा था। उसमें ही आकर परमपिता परमात्मा ने हॉस्पिटल अथवा युनिवर्सिटी खोली फिर धीरे-धीरे मकान आदि बनते गये। पहले तो एक छोटी सी गली में मकान था। धीरे-धीरे बढ़ता गया। तो बच्चों का भी यही कर्तव्य है। फिर शिक्षा भी देनी पड़े। पढ़ा लिखा ही युनिवर्सिटी खोलेगा ना। हाँ अनाड़ी भी खोल सकते हैं। खोलकर जो पढ़ने पढ़ाने जाते हैं उनको देंगे। आप प्रिन्सीपल बन चलाओ, जिससे बहुतों का कल्याण हो। बाप भी कहते हैं तुम ब्राह्मणों का धन्धा ही है पतितों को पावन बनाना, कोई पतित कार्य नहीं करना। कभी विकार में नहीं जाना। किसको कहना कि पवित्र बनो तो बहुत अच्छा है। समझाया जाता है पवित्र के आगे अपवित्र लोग माथा तो टेकते ही हैं। पहले-पहले जब भक्ति मार्ग शुरू हुआ तब सन्यासी नहीं थे। वह तो बाद में आये हैं, उस समय सन्यासी कोई ज्ञान नहीं देते थे। यह तो पीछे सर्वव्यापी का ज्ञान निकला है। पहले तो कहते थे– हम ईश्वर और ईश्वर की रचना को नहीं जानते हैं। ना ही समझते थे कि वह बाप है। बाप फिर सर्वव्यापी कैसे हो सकता। अब बाप तुम बच्चों को समझाते रहते हैं। सर्वव्यापी के ज्ञान ने ही भारत को कंगाल, बेमुख, नास्तिक, निधनका बना दिया है। अब तुम धनके बने हो, फिर और निधनको को धणका बनाने का पुरूषार्थ करो। जो पण्डा बन आते हैं तो धनका बनाकर धनी के पास ले जाते हैं ना। उनको भी कशिश होती है कि बरोबर धनी बेहद के बाप से हमको बेहद का वर्सा मिलता है। बेहद का वर्सा है– बेहद स्वर्ग की बादशाही। हद का वर्सा है नर्क। नर्क में दु:ख है इसलिए इसको बादशाही नहीं कहेंगे, गदाई कहेंगे। अब बच्चों को बाप की सेवा करनी चाहिए। पतितों को पावन बनाना है। सारा दिन यही धन्धा करना चाहिए– पतितों को पावन कैसे बनायें। पहले तो प्रश्न है कि हम खुद पावन बनें हैं? हमारे में कोई विकार तो नहीं हैं? हमारा परमपिता परमात्मा के साथ इतना लव है, अगर लव है तो लव का सबूत कहाँ? सबूत है पतितों को पावन बनाने के धन्धे में रहना। यह धन्धा नहीं करते हैं तो गोया न खुद पावन बने हैं, न बना सकते हैं। यह धन्धा नहीं करते हैं तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। कल्प-कल्पान्तर की बाजी हो जायेगी। समझेंगे कि इनकी तकदीर में नहीं है। ईश्वर को पाया भी फिर भी यह धन्धा न सीखे। बाप के दिल पर वह चढ़ेंगे जो पावन बनाने का धन्धा करेंगे। मनुष्यों को कौड़ी से हीरे जैसा देवता बनाने का पुरूषार्थ करना होता है। बाबा मम्मा भी वही पुरूषार्थ करते हैं। बाबा भी सर्विस पर जाते हैं, बच्चों के तन में विराजमान हो पतितों को पावन बनाने का रास्ता बताते हैं, तो अपने को देखना चाहिए कि हम उन जैसी सर्विस करते हैं। अगर नहीं करते तो दिल पर चढ़ नहीं सकते। कई तो मोह वश फँसे हुए रहते हैं। बाप से तो एकरस लव होना चाहिए ना और सबसे नष्टोमोहा होकर दिखाना है। पुराने मित्र सम्बन्धियों, पुरानी दुनिया से मोह निकल जाना चाहिए। जब वह निकले तब गुण धारण हों। कई बच्चे तो सारा दिन क्या करते रहते हैं। एक दो के दिल को खराब करते, निंदा करते रहते हैं। फलाने ऐसे हैं– यह ऐसा है। पहले तो अपने को देखना है, हम क्या करते हैं? बाप को हम फालो करते रहते हैं? फालो करें तब खुशी का पारा चढ़े। सर्विस करने वाले खुशी में सदैव हर्षित रहते हैं। नाम तो निकलता है ना। बाप कहते हैं तुमको तो वनवाह में रहना है। 8 चत्तियों वाला कपड़ा पहनना है। ऐसा समय भी आना है। ऐसे तकलीफ होगी जो टूटा फूटा कपड़ा भी मुश्किल मिलेगा– पहनने के लिए इसलिए इन सबसे ममत्व मिटा देना चाहिए। जो भी आसुरी मित्र सम्बन्धी आदि हैं उनसे बुद्धियोग हटाना है। अपनी चढ़ती कला है, उसका भी सबूत चाहिए ना। जो पण्डे बन आते हैं, वह सबूत देते हैं। सर्विस लायक बनना है। ऐसे नहीं डिससर्विस करे, लून पानी हो आपस में ही झगड़ते रहें। डिससर्विस करने वाले का पद भ्रष्ट हो जाता है। मनुष्य-मनुष्य में कितने लून पानी हो रहते हैं। बात मत पूछो। तुम्हारा धन्धा है उनको बहुत मीठा बनाना। कोई ऐसे फिर लूनपानी बनने वाले मिल जाते हैं तो कहते हैं भावी। यह भी सहन करना है। हमको फिर भी प्यार से नमक को चेंज कर मीठा बनाना है। देखो सूर्य में कितनी ताकत है, जो खारे सागर से पानी खींचकर मीठा बना देते हैं। यह भी उन्हों की सर्विस है ना इसलिए इन्द्र देवता कहते हैं, वर्षा बरसाते हैं। तो बच्चों में भी इतनी ताकत होनी चाहिए। ऐसे नहीं कि और ही खारे बना दें। कोई-कोई तो खारा भी बना देते हैं। उनकी शक्ल ही प्रत्यक्ष हो जाती है। खारे की शक्ल सांवरी, मीठे की शक्ल गोरी। तुमको तो खुद गोरा बन और सांवरों को भी गोरा बनाना है। बाप कितनी दूर से आकर यह सर्विस सिखलाते हैं। बाप की सर्विस ही यही है, पतितों को पावन बनाना। बहुतों को पावन बनायेंगे तो बाबा इनाम भी देंगे। दिल से पूछना है हम कितनों को गोरा बनाते हैं। अगर नहीं बनाते हैं तो जरूर कोई कुकर्म करते हैं। बाप की मत पर न चलने से कुकर्म ही करते हैं। फिर पावन बनाने वालों के आगे भरी ढोनी पड़ेगी। जिनमें ताकत है वह कहेंगे बाबा भल हमें कहीं भेज दो। हॉस्पिटल तो बहुत खुल सकते हैं, परन्तु डॉक्टर्स भी अच्छे होने चाहिए ना। कोई ऐसे भी डॉक्टर होते हैं जो उल्टी सुल्टी दवाई दे मार भी देते हैं। यहाँ तो यह ईश्वरीय दरबार है। सबका खाता बाप के पास है। वह तो अन्तर्यामी है ना। सभी बच्चों के अन्दर को जानते हैं। यह तो बाहरयामी है। यह भी औरों को पावन बनाने का पुरूषार्थ करते रहते हैं। जो पावन नहीं बनते वह सजायें भोग अपने-अपने सेक्शन में चले जायेंगे। सबको अपना-अपना पार्ट बजाना है। नम्बरवार आना है। आगे वा पीछे आते हैं ना। बीच से तो नहीं निकल आयेंगे। जैसे झाड़ होगा वैसा ही फल लगेगा, उसमें फर्क नहीं पड़ सकता। अभी झाड़ बिखरा हुआ है। कोई-कोई किस-किस धर्म में कनवर्ट हो गये हैं। हर एक नेशनल्टी की संख्या कितनी है, समझ नहीं सकते। हर एक की रसम-रिवाज अपनी-अपनी है। तुम जानते हो जैसे मूलवतन में थे। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हिसाब-किताब चुक्तू कर वहाँ जाए सभी को रहना है। ऊपर में निराकार आत्माओं का झाड़ है। कितनी स्पेस लेते होंगे। बहुत थोड़ी होगी। जैसे पोलार आकाश तत्व तो बहुत लम्बा है। मनुष्य कितनी थोड़ी स्पेस में रहते हैं। समझ में आता है– इतने तक मनुष्य हैं। सागर में तो मनुष्य नहीं रहते होंगे। धरती पर ही मनुष्य हैं। सागर का तो अन्त ले नहीं सकेंगे। इम्पासिबुल है। ऊपर जाने की कोशिश करते हैं। परन्तु है तो बेअन्त ना। बाप को बुलाते हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ। ऐसे नहीं कि हम वहाँ जाकर आकाश तत्व का अन्त लेवें। हम आत्मायें ऊपर में रहती हैं। तो भी स्पेस थोड़ी लेते हैं। आकाश तत्व तो बड़ा है। ऐसे नहीं, ईश्वर वहाँ बैठ ट्रायल करेंगे कि देखें कि आकाश तत्व कितना लम्बा है। यह कब बुद्धि में ख्याल भी नहीं आ सकता। उनकी बुद्धि में है ही पार्ट बजाने का। ऐसे नहीं कि महतत्व का पता लगाना होगा। यहाँ से गया और अपनी जगह ठहरा। वहाँ कोशिश कुछ नहीं करता है। बाबा कहते हैं मैं थोड़ेही यह कोशिश करता हूँ। यह तो बेअन्त है। अच्छा अन्त पाने से फायदा ही क्या? कुछ भी फायदा नहीं। फायदा है ही पतितों को पावन बनाने में। आत्मायें निर्वाणधाम से आकर यहाँ पार्ट बजाती हैं। बाप भी आकर पार्ट बजाते हैं। वह है शान्तिधाम। वहाँ यह कोई संकल्प नहीं आता कि यह देखें वो देखें। यहाँ मनुष्य क्या-क्या करते हैं। कितनी मेहनत से अन्त लेने जाते हैं। बच्चों को पता है समय बहुत थोड़ा है। लड़ाई लग जायेगी फिर उन्हों का आवाज आदि सब बन्द हो जायेगा। ऊपर में आना-जाना बंद हो जायेगा। यह सब तो पैसे बरबाद कर रहे हैं। फायदा कुछ भी नहीं। समझो कोई जाते हैं, क्या भी आकर बताते हैं, इसमें वेस्ट आफ टाइम, वेस्ट आफ मनी, वेस्ट आफ एनर्जी। सबका यही हाल है, सिवाए तुम बच्चों के। सो भी जो पुरूषार्थ करते रहते हैं कि हम जाकर बाप का परिचय देवें, तो बाप से वर्सा ले लेवे। बाप का ड्रामा में हाइएस्ट पार्ट है, नई दुनिया की स्थापना कर उसके लायक बनाना। अब तो सृष्टि का अन्त आ गया है। कितना भी लोग माथा मारते रहते हैं। टाइम वेस्ट करते हैं, एवरेस्ट पर मानों जाकर खड़े हो जाते हैं फिर भी फायदा क्या? मुक्ति जीवनमुक्ति तो मिलती नहीं। बाकी दुनिया में तो दु:ख ही दु:ख है। तुम्हारी बुद्धि अब सालवेन्ट बन गई है। तुम पुरूषार्थ करते हो औरों को आप समान बनाने का। स्कूल के टीचर्स प्रिन्सिपल्स को भी यही समझाओ। बेहद की हिस्ट्री जाग्रॉफी तो सिखलाते नहीं हैं। सतयुग से त्रेता, द्वापर कलियुग कैसे होता है? यह है बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी, इनको जानने से तुम चक्रवर्ती बनेंगे। हम यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाते हैं। सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है। आओ तो हम तुमको परमपिता परमात्मा का परिचय देवें, जिसको निराकार कहते हैं, उनकी हम बायोग्राफी सुनायें। ब्रह्म योगी तो ब्रह्म का ही ज्ञान देते हैं। फिर कहेंगे कि ब्रह्म सर्वव्यापी है। परमात्मा तो नॉलेजफुल है। ज्ञान का सागर है। तत्व को ज्ञान का सागर थोड़ेही कहेंगे। बाप तो बच्चों को भी आप समान ज्ञान का सागर बनाते हैं। वह तत्व कैसे आप समान बनायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) चढ़ती कला का सबूत देना है। सबसे मोह निकाल सर्विस लायक बनना है। अपने आपको देखना है। दूसरे की निंदा करके एक दो की दिल खराब नहीं करनी है। कोई भी कुकर्म नहीं करना है।
2) बाप समान रहमदिल बनना है। कौड़ी से हीरे जैसा बनने का पुरूषार्थ करना है। लूनपानी अर्थात् खारे को मीठा बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:
मास्टर दाता बन खुशियों का खजाना बांटने वाले सर्व की दुआओं के पात्र भव
वर्तमान समय सभी को अविनाशी खुशी की आवश्यकता है, सब खुशी के भिखारी हैं, आप दाता के बच्चे हो। दाता के बच्चों का काम है देना। जो भी संबंध-सम्पर्क में आये उसे खुशी देते जाओ। कोई खाली न जाये, इतना भरपूर रहो। हर समय देखो कि मास्टर दाता बनकर कुछ दे रहा हूँ या सिर्फ अपने में ही खुश हूँ! जितना दूसरों को देंगे उतना सबकी दुआओं के पात्र बनेंगे और यह दुआयें सहज पुरुषार्थी बना देंगी।
स्लोगन:
संगम की प्राप्तियों को याद रखो तो दुख व परेशानी की बातें याद नहीं आयेंगी।