Saturday, July 29, 2017

मुरली 30 जुलाई 2017

30-07-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 30-04-82 मधुबन

"विस्तार को बिन्दी में समाओ"
बापदादा इस साकारी देह और दुनिया में आते हैं सभी को इस देह और दुनिया से दूर ले जाने के लिए। दूर-देश वासी सभी को दूर-देश निवासी बनाने के लिए आते हैं। दूर-देश में यह देह नहीं चलेगी। पावन आत्मा अपने देश में बाप के साथ-साथ चलेगी। तो चलने के लिए तैयार हो गये हो वा अभी तक कुछ समेटने के लिए रह गया है? जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हो तो विस्तार को समेट परिवर्तन करते हो। तो दूर-देश वा अपने स्वीट होम में जाने के लिए क्या तैयारी करनी पड़ेगी? सर्व विस्तार को बिन्दी में समाना पड़े। इतनी समाने की शक्ति, समेटने की शक्ति धारण कर ली है? समय प्रमाण बापदादा का डायरेक्शन मिले कि सेकण्ड में अब साथ चलो तो सेकण्ड में विस्तार को समा सकेंगे? शरीर की प्रवृत्ति, लौकिक प्रवृत्ति, सेवा की प्रवृत्ति, अपने रहे हुए कमजोरी के संकल्प की और संस्कार की प्रवृत्ति, सर्व प्रकार की प्रवृत्तियों से न्यारे और बाप के साथ चलने वाले प्यारे बन सकते हो? वा कोई प्रवृत्ति अपने तरफ आकर्षित करेगी? सब तरफ से सर्व प्रवृत्तियों का किनारा छोड़ चुके हो वा कोई भी किनारा अल्पकाल का सहारा बन बाप के सहारे वा साथ से दूर कर देंगे? संकल्प किया कि जाना है, डायरेक्शन मिला अब चलना है तो डबल लाइट के उड़न आसन पर स्थित हो उड़ जायेंगे? ऐसी तैयारी है? वा सोचेंगे कि अभी यह करना है, वह करना है? समेटने की शक्ति अभी कार्य में ला सकते हो वा मेरी सेवा, मेरा सेन्टर, मेरा जिज्ञासु, मेरा लौकिक परिवार या लौकिक कार्य - यह विस्तार तो याद नहीं आयेगा? यह संकल्प तो नहीं आयेगा? जैसे आप लोग एक ड्रामा दिखाते हो, ऐसे प्रकार के संकल्प अभी यह करना है, फिर वापस जायेंगे... ऐसे ड्रामा के मुआफिक साथ चलने की सीट को पाने के अधिकार से वंचित तो नहीं रह जायेंगे - अभी तो खूब विस्तार में जा रहे हो, लेकिन विस्तार की निशानी क्या होती है? वृक्ष भी जब अति विस्तार को पा लेता तो विस्तार के बाद बीज में समा जाता है। तो अभी सेवा का विस्तार बहुत तेजी से बढ़ रहा है और बढ़ना ही है लेकिन जितना विस्तार वृद्धि को पा रहा है, उतना विस्तार से न्यारे और साथ चलने वाले प्यारे, यह बात नहीं भूल जाना। कोई भी किनारे में लगाव की रस्सी न रह जाए। किनारे की रस्सियाँ सदा छूटी हुई हों अर्थात् सबसे छुट्टी लेकर रखो। जैसे आजकल यहाँ पहले से ही मरण मना लेते हैं ना - तो छुट्टी ले ली ना। ऐसे सब प्रवृत्तियों के बन्धनों से पहले से ही विदाई ले लो। समाप्ति-समारोह मना लो। उड़ती कला का उड़न आसन सदा तैयार हो। जैसे आजकल के संसार में भी जब लड़ाई शुरू हो जाती है तो वहाँ के राजा हो वा प्रेजीडेन्ट हो, उन्हों के लिए पहले से ही देश से निकलने के साधन तैयार होते हैं। उस समय यह तैयार करो, इसी आर्डर करने की भी मार्जिन नहीं होती। लड़ाई का इशारा मिला और भागा। नहीं तो क्या हो जाए? प्रेजीडेन्ट वा राजा के बदले जेल बर्ड बन जायेगा। आजकल की निमित्त बनी हुई अल्पकाल की अधिकारी आत्मायें भी पहले से अपनी तैयारी रखती हैं। तो आप कौन हो? इस संगमयुग के हीरो पार्टधारी अर्थात् विशेष आत्मायें। तो आप सबकी भी पहले से तैयारी चाहिए ना कि उस समय करेंगे? मार्जिन ही सेकण्ड की मिलनी है फिर क्या करेंगे? सोचने की भी मार्जिन नहीं मिलनी है। करूँ न करूँ, यह करूँ, वह करूँ, ऐसे सोचने वाले साथी के बजाए बराती बन जायेंगे इसलिए अन्त:वाहक स्थिति अर्थात् कर्मबन्धन मुक्त, कर्मातीत - ऐसी कर्मातीत स्थिति का वाहन अर्थात् अन्तिम वाहन, जिस द्वारा ही सेकण्ड में साथ में उड़ेंगे। वाहन तैयार है? वा समय को गिनती कर रहे हो? अभी यह होना है, यह होना है, उसके बाद होगा, ऐसे तो नहीं सोचते हो? तैयारी सब करो। सेवा के साधन भी भल अपनाओ। नये-नये प्लैन भी भले बनाओ। लेकिन किनारों में रस्सी बांधकर छोड़ नहीं देना। प्रवृत्ति में आते कमल बनना भूल न जाना। वापिस जाने की तैयारी नहीं भूल जाना। सदा अपनी अन्तिम स्थिति का वाहन - न्यारे और प्यारे बनने का श्रेष्ठ साधन सेवा के साधनों में भूल नहीं जाना। खूब सेवा करो लेकिन न्यारेपन की खूबी को नहीं छोड़ना। अभी इसी अभ्यास की आवश्यकता है। या तो बिल्कुल न्यारे हो जाते या तो बिल्कुल प्यारे हो जाते, इसलिए न्यारे और प्यारेपन का बैलेन्स रखो। सेवा करो लेकिन मेरेपन से न्यारे होकर करो। समझा क्या करना है? अब नई-नई रस्सियाँ भी तैयार कर रहे हैं। पुरानी टूट रही हैं। समझते भी नई रस्सियाँ बांध रहे हैं क्योंकि चमकीली रस्सियाँ हैं। तो इस वर्ष क्या करना है? बापदादा साक्षी होकर के बच्चों का खेल देखते हैं। रस्सियों में बंधने की रेस में एक दो से बहुत आगे जा रहे हैं, इसलिए सदा विस्तार में जाते सार रूप में रहो।

वर्तमान समय सेवा की रिजल्ट में क्वान्टिटी बहुत अच्छी है लेकिन अब उस क्वान्टिटी में क्वालिटीज़ भरो। क्वान्टिटी की भी स्थापना के कार्य में आवश्यकता है। लेकिन वृक्ष के पत्तों का विस्तार हो और फल न हो तो क्या पसन्द करेंगे? पत्ते भी हों और फल भी हों या सिर्फ पत्ते हों? पत्ते वृक्ष का श्रृंगार हैं और फल सदाकाल के जीवन का सोर्स हैं इसलिए हर आत्मा को प्रत्यक्षफल स्वरूप बनाओ अर्थात् विशेष गुणों के, शक्तियों के अनुभवी मूर्त बनाओ। वृद्धि अच्छी है लेकिन सदा विघ्न-विनाशक, शक्तिशाली आत्मा बनने की विधि सिखाने के लिए विशेष अटेन्शन दो। वृद्धि के साथ-साथ विधि सिखाने का, सिद्धि स्वरूप बनाने का भी विशेष अटेन्शन। स्नेही, सहयोगी तो यथाशक्ति बनने ही हैं लेकिन शक्तिशाली आत्मा, जो विघ्नों का, पुराने संस्कारों का सामना कर महावीर बन जाए, इस पर और विशेष अटेन्शन। स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी, ऐसे वारिस क्वालिटी को बढ़ाओ। सेवाधारी बहुत बने हो लेकिन सर्व शक्तियों धारी ऐसी विशेषता सम्पन्न आत्माओं को विश्व की स्टेज पर लाओ।

इस वर्ष हरेक आत्मा प्रति विशेष अनुभवी मूर्त बन विशेष अनुभवों की खान बन, अनुभवी मूर्त बनाने का महादान करो, जिससे हर आत्मा अनुभव के आधार पर अंगद समान बन जाए। चल रहे हैं, कर रहे हैं, सुन रहे हैं, सुना रहे हैं, नहीं। लेकिन अनुभवों का खजाना पा लिया - ऐसे गीत गाते खुशी के झूले में झूलते रहें।

इस वर्ष - सेवा के उत्सवों के साथ उड़ती कला का उत्साह बढ़ता रहे। तो सेवा के उत्सव के साथ-साथ उत्साह अविनाशी रहे, ऐसे उत्सव भी मनाओ। समझा। सदा उड़ती कला के उत्साह में रहना है और सर्व का उत्साह बढ़ाना है।

इस वर्ष- हर एक को यह लक्ष्य रखना है कि हरेक को भिन्न-भिन्न वर्ग के आत्माओं की सेवा कर वैरायटी वर्गों की हर आत्मा को बाप का बनाकर वैरायटी वर्ग का गुलदस्ता तैयार कर बाप के आगे लाना है। लेकिन हों सभी रूहानी रूहे गुलाब। वृक्ष भल वैरायटी हो, वी.आई.पी. भी हों तो अलग-अलग आक्यूपेशन वाले भी हों, साधारण भी हों, गांव वाले भी हों लेकिन सबको अनुभवों की खान द्वारा अनुभवी मूर्त बनाकर प्राप्ति स्वरूप बनाकर सामने लाओ - इसको कहा जाता है रूहानी रूहे गुलाब। गुलदस्ता बनाना लेकिन मेरापन नहीं लाना। मेरा गुलदस्ता सबसे अच्छा है - तो रूहे गुलाब नहीं बन सकेंगे। "मेरापन लाया तो गुलदस्ता मुरझाया" इसलिए समझो - बाबा के बच्चे हैं, मेरे हैं इसको भूल जाओ। अगर मेरे बनायेंगे तो उन आत्माओं को भी बेहद के अधिकार से दूर कर देंगे। आत्मा चाहे कितनी भी महान् हो लेकिन सर्वज्ञ नहीं कहेंगे। सागर नहीं कहेंगे इसलिए किसी भी आत्मा को बेहद के वर्से से वंचित नहीं करना। नहीं तो वो ही आत्मायें आगे चल मेरे बनाने वालों को उल्हनें देंगी कि हमें वंचित क्यों बनाया! उन्हों के विलाप उस समय सहन नहीं कर सकेंगे। इतने दु:खमय दिल के विलाप होंगे इसलिए इस विशेष बात को विशेष ध्यान से समझना। विशेष सेवा भल करो। तन की शक्ति, मन की शक्ति, धन की शक्ति, सहयोग देने की शक्ति, जो भी शक्तियाँ हैं, समय की भी शक्ति है - इन सबको समर्थ कार्य में लगाओ। आगे का नहीं सोचो। जितना लगाया उतना जमा हुआ। तो समझा क्या करना है! सर्व शक्तियों को लगाओ। स्वयं को सदा उड़ती कला में उड़ाओ और औरों को भी उड़ती कला में ले जाओ। उत्साह का स्लोगन भी मिला ना!

इस वर्ष डबल उत्सव मनाने हैं और रूहानी रूहों का गुलदस्ता हरेक को तैयार करना है। आज आये हुए भी वैरायटी गुदलस्ता ही हैं। चारों ओर के आ गये हैं ना। देश-विदेश का वैरायटी गुलदस्ता हो गया ना! डबल विदेशियों ने भी लास्ट नहान में हिस्सा ले लिया है। बापदादा भी आने की बधाई देते हैं। बधाई भी सबको मिल गई तो मिलना हो गया ना! सबने मिल लिया! बधाई ले ली बाकी क्या रहा? टोली। तो लाइन लगाते आना और टोली लेते जाना। ऐसा ही समय आने वाला है। जब इतना बड़ा हाल बना रहे हो तो बताओ क्या हाल होगा? सदा एक रसम तो नहीं चलती है ना! इस बार तो विशेष भारतवासी बच्चों का उल्हना पूरा किया। हर सीज़न का अपना-अपना रसम-रिवाज होता है। अगले वर्ष क्या होता सो देखना। अभी ही बता दें तो फिर मजा नहीं आयेगा। सभी गुदलस्तों सहित आयेंगे ना। क्वालिटी बनाकर लाना - क्योंकि नम्बर तो क्वालिटी सहित क्वान्टिटी पर मिलेगा। ऐसे तो भीड़ इकट्ठी करने में तो नेतायें भी होशियार हैं। क्वान्टिटी हो लेकिन क्वालिटी सहित। ऐसा गुलदस्ता लाना। सिर्फ पत्तों का गुलदस्ता नहीं ले आना। अच्छा।

ऐसे सदा अन्तिम वाहन के एवररेडी, सर्व आत्माओं को अनुभवी मूर्त बनाने के महादानी, सदा वरदाता, विधाता, बेहद के बाप से बेहद का वर्सा दिलाने के निमित्त बनने वाली आत्मायें, सदा सेवाधारी के साथ-साथ शक्तिशाली आत्मायें बनाने वाले, वृद्धि के साथ विधि द्वारा प्राप्तियों की सिद्धि प्राप्त करने वाले, ऐसे बाप समान सेवा करते, सेवा से न्यारे और बाप साथ चलने वाले प्यारे, ऐसे समीप और समान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

सेवाधारियों से:-

एक हैं आत्माओं को बाप का परिचय दे बाप के वर्से के अधिकारी बनाने के निमित्त सेवाधारी और दूसरे हैं यज्ञ सेवाधारी। तो इस समय आप सभी यज्ञ सेवा का पार्ट बजाने वाले हो। यज्ञ सेवा का महत्व कितना बड़ा है - उसको अच्छी तरह से जानते हो। यज्ञ के एक-एक कणे का कितना महत्व है? एक-एक कणा मुहरों के समान है। अगर कोई एक कणें जितना भी सेवा करते हैं तो मुहरों के समान कमाई जमा हो जाती है। तो सेवा नहीं की लेकिन कमाई जमा की। सेवाधारियों को वर्तमान समय एक तो मधुबन वरदान भूमि में रहने के चांस का भाग्य मिला और दूसरा सदा श्रेष्ठ वातावरण उसका भाग्य और तीसरा सदा कमाई जमा करने का भाग्य। तो कितने प्रकार के भाग्य सेवाधारियों को स्वत: प्राप्त हो जाते हैं। इतने भाग्यवान सेवाधारी आत्मायें समझकर सेवा करते हो? इतना रूहानी नशा स्मृति में रहता है या सेवा करते-करते भूल जाते हो? सेवाधारी अपने श्रेष्ठ भाग्य द्वारा औरों को भी उमंग-उल्लास दिलाने के निमित्त बन सकते हैं। सभी सेवाधारी जितना भी समय जिस भी सेवा में रहे - निर्विघ्न रहे! मन्सा में भी निर्विघ्न। किसी भी प्रकार का कभी भी विघ्न वा हलचल न आये इसको कहा जाता है सेवा में सफलतामूर्त। चाहे कितना भी संस्कार वा परिस्थितियाँ नीचे-ऊपर हों लेकिन जो सदा बाप के साथ हैं, साथ फालो फादर हैं, सदा सी फादर हैं, वह सदा निर्विघ्न रहेंगे और अगर कहाँ भी किसी आत्माओं को देखा, आत्माओं को फालो किया तो हलचल में आ जायेंगे। तो सेवाधारी के लिए सेवा में सफलता पाने का आधार - सी फादर वा फालो फादर। तो सभी ने सच्ची दिल से सेवा की ना? सेवा करते याद का चार्ट कैसे रहा! अच्छा अपना श्रेष्ठ भाग्य बना लिया। रिजल्ट अच्छी है। बड़ी भाग्यवान आत्मायें हो जो यज्ञ सेवा का चांस मिला है। तो ऐसा कर्तव्य करके जाओ - जो आपका यादगार बन जाये और फिर कभी आवश्यकता पड़े तो आपको ही बुलाया जाए। अथक होकर जो सेवा करते हैं उनका फल वर्तमान और भविष्य दोनों जमा हो जाता है। तो सभी ने अपना-अपना अच्छा पार्ट बजाया। अच्छा।
वरदान:
सदा विजय की स्मृति से हर्षित रहने और सर्व को खुशी दिलाने वाले आकर्षण मूर्त भव
हम कल्प-कल्प की विजयी आत्मा हैं, विजय का तिलक मस्तक पर सदा चमकता रहे तो यह विजय का तिलक औरों को भी खुशी दिलायेगा क्योंकि विजयी आत्मा का चेहरा सदा ही हर्षित रहता है। हर्षित चेहरे को देखकर खुशी के पीछे स्वत: ही सब आकर्षित होते हैं। जब अन्त में किसी के पास सुनने का समय नहीं होगा तब आपका आकर्षण मूर्त हर्षित चेहरा ही अनेक आत्माओं की सेवा करेगा।
स्लोगन:
अव्यक्त स्थिति की लाइट चारों ओर फैलाना ही लाइट हाउस बनना है।