Saturday, July 22, 2017

मुरली 22 जुलाई 2017

22-07-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम्हें मास्टर प्यार का सागर बनना है, कभी भी किसी को दु:ख नहीं देना है, एक दो के साथ बहुत प्यार से रहना है"
प्रश्न:
माया चलते-चलते किन बच्चों का गला एकदम घोट देती है?
उत्तर:
जो थोड़ा भी किसी बात में संशय उठाते हैं, काम या क्रोध की ग्रहचारी बैठती तो माया उनका गला घोट देती है। उन पर फिर ऐसी ग्रहचारी बैठती है जो पढ़ाई ही छोड़ देते हैं। समझ में ही नहीं आता कि जो पढ़ते और पढ़ाते थे वह सब कैसे भूल गया। बुद्धि का ताला ही बन्द हो जाता है।
गीत:-
तू प्यार का सागर है...  
ओम् शान्ति।
यह बाप की महिमा है और बच्चे जानते हैं कि भगत लोग तो ऐसे ही गीत गाते हैं। तुम बच्चे जानते हो कि बाप कितना प्यार का सागर है। सब पतितों को पावन बनाते हैं। सब बच्चों को सुखधाम का वर्सा देते हैं। तुम समझते हो हम वर्सा ले रहे हैं। आधाकल्प जब माया का राज्य है तो ऐसा प्यारा बाप नहीं होता है। बेहद का बाप प्यार का सागर है। प्यार का, शान्ति का, सुख का सागर कैसे है, यह तुम अभी जानते हो। प्रैक्टिकल में तुम बच्चों को सब कुछ मिल रहा है। भक्ति मार्ग वालों को मिलता नहीं है। वह सिर्फ गाते हैं, याद करते हैं। अभी वह याद पूरी होती है। बच्चे सम्मुख बैठे हैं। समझते हैं, बेहद के बाप का ही गायन है। जरूर वह बाप इतना प्यार देकर गये हैं। सतयुग में भी हर एक, एक दो को बहुत प्यार करते हैं। जानवरों में भी एक दो में प्यार होता है। यहाँ तो वह है नहीं। वहाँ कोई ऐसे जानवर नहीं होते जो आपस में प्यार से न रहें। तुम बच्चों को भी सिखलाया जाता है, यहाँ प्यार के मास्टर सागर बनेंगे तो वह संस्कार तुम्हारा अविनाशी बन जायेगा। यहाँ सब एक दो के दुश्मन हैं क्योंकि रावण राज्य है। बाप कहते हैं कल्प पहले मिसल हुबहू तुमको अब बहुत प्यारा बनाते हैं। कभी किसका आवाज सुनते हैं कि यह गुस्सा करते हैं तो बाप शिक्षा देंगे कि बच्चे गुस्सा करना ठीक नहीं है, इससे तुम भी दु:खी होंगे दूसरों को भी दु:खी करेंगे। जैसे लौकिक बाप भी बच्चों को शिक्षा देते हैं, वह होते हैं हद का सुख देने वाले। यह बाप है बेहद का और सदाकाल का सुख देने वाला। तो तुम बच्चों को एक दो को दु:ख नहीं देना चाहिए। आधाकल्प बहुत दु:ख दिया है। रावण ने बहुत बिगाड़ा है। जो जिसके ऊपर चढ़ाई करते हैं उनको लूट लेते हैं। अभी तुमको रोशनी मिलती है। यह ड्रामा का चक्र फिरता रहता है। अगर तुम ज्ञान के विस्तार को नहीं समझ सकते हो तो दो अक्षर ही याद करो। बेहद के बाप से हमको यह वर्सा मिलता है। जितना जो बाप को याद कर कमल फूल समान पवित्र रहेंगे अर्थात् विकारों पर जीत पायेंगे उतना वर्से के अधिकारी बनेंगे। विकार भी अनेक प्रकार के हैं। श्रीमत पर न चलना, वह भी विकार है। श्रीमत पर चलने से तुम निर्विकारी बनते हो। मामेकम् याद करना है और कोई को याद नहीं करना है, बाप इन द्वारा कहते हैं हे बच्चों मैं आया हूँ, सबको ले जाने वाला हूँ। हर एक धर्म में नम्बरवार हैं। पोप का कितना मान है। इस समय तो सब अन्धश्रद्धा में हैं। तुम सिवाए एक बाप के और किसको मान दे नहीं सकते। सब आर्टीफिशल हैं। इस समय सब पुनर्जन्म लेते-लेते पतित बनते हैं। जो भी मनुष्य मात्र हैं उनको पिछाड़ी में पूरा पतित बनना ही है। पतित-पावन नाम कहते हैं परन्तु डिटेल में समझते नहीं हैं। यह पतितों की दुनिया है तो उनका क्या मान होगा। जैसे पोप हैं फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड में चलते आये हैं, उतरते आये हैं। उन्हों को नम्बरवार दिखाते हैं फिर भी वह नम्बरवार ही अपना पद लेंगे। इस चक्र को तुम अभी अच्छी रीति जानते हो। यहाँ आते ही हैं बेहद के बाप के पास, जिससे वर्सा लेना है। साकार बिगर तो वर्सा मिलता नहीं है।

बाप कहते हैं देहधारी को याद मत करो। ऊंच ते ऊंच एक बाप को ही याद करना है। कितना बड़ा फरमान है - बच्चे, मामेकम् याद करो। देहधारी को याद किया तो उनकी याद से पुनर्जन्म फिर लेने पड़ेंगे। तुम्हारी याद की यात्रा ठहर जायेगी। विकर्म विनाश नहीं होंगे। बहुत घाटा पड़ जायेगा। धन्धे में फायदा भी होता है, घाटा भी होता है। निराकार बाप को जादूगर, सौदागर भी कहते हैं। तुम जानते हो दिव्य दृष्टि की चाबी बाप के हाथ में है। अच्छा कुछ भी देखा, कृष्ण का दीदार किया, इससे फायदा क्या है? कुछ भी नहीं। यह तो ड्रामा चक्र को जानना पढ़ाई है ना। जितना बाप को याद करेंगे, चक्र को फिरायेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। अभी तुम हमारे बच्चे बने हो। याद आता है ना, हम आपके थे। हम आत्मायें परमधाम में रहती थी। वहाँ कहने की भी बात नहीं रहती है। ड्रामा अपने आप चलता रहता है। जैसे एक मछलियों का खिलौना दिखाते हैं ना। उसमें तार में मछलियां पिरोई रहती हैं। ऐसा करने से धीरे-धीरे नीचे उतरती हैं। वैसे जो भी आत्मायें हैं सब ड्रामा की तार में बंधी हुई हैं। चक्र लगाती रहती हैं। अब चढ़ती हैं फिर उतरने लग पड़ती हैं। तुम जानते हो अब हमारी चढ़ती कला है। ज्ञान सागर बाप आया हुआ है - चढ़ती कला फिर उतरती कला को तुम जान गये हो। कितना सहज है। उतरती कला कितना टाइम लेती है। फिर कैसे चढ़ती कला होती है। तुम जानते हो बाप आकर पलटा देते हैं। पहले-पहले है आदि सनातन देवी-देवता धर्म फिर दूसरे धर्म आते रहते हैं। तुम बच्चे जान चुके हो कि हमारी चढ़ती कला है। उतरती कला पूरी हुई। तमोप्रधान दुनिया में बहुत दु:ख है। यह तूफान आदि तो कुछ भी नहीं हैं। तूफान तो ऐसे लगेंगे जो बड़े-बड़े महल गिर जायेंगे। बहुत दु:ख का समय आने वाला है। यह विनाश का समय है। हाय-हाय, त्राहि-त्राहि करते रहेंगे। सबके मुख से हाय राम ही निकलेगा। भगवान को ही याद करेंगे। फाँसी पर चढ़ते हैं तो भी पादरी आदि कहते हैं गॉड फादर को याद करो। परन्तु जानते नहीं। अपनी आत्मा को भी यथार्थ रीति नहीं समझते। मैं आत्मा क्या चीज़ हूँ? क्या पार्ट बजाता हूँ? कुछ जानते नहीं हैं। आत्मा है कितनी छोटी। कहते हैं स्टॉर मिसल छोटी है। आत्मा का साक्षात्कार बहुतों को होता है। बहुत छोटी लाइट है। बिन्दी मिसल सफेद लाइट है। उनको दिव्य दृष्टि बिगर कोई देख न सके। अगर देखते भी हैं तो समझ में नहीं आता है। सिवाए ज्ञान के कुछ भी समझ में नहीं आता। साक्षात्कार तो ढेर होते हैं। यह कोई बड़ी बात नहीं है। यहाँ तो बुद्धि से समझ सकते हो। बाबा यथार्थ रीति ही समझाते हैं और कोई की बुद्धि में यह बात नहीं है कि हमारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूँधा हुआ है। जो ब्राह्मण बच्चे बनते हैं, उन्हों को ही बाप समझाते हैं और उन्हों के ही 84 जन्म होते हैं। दूसरे कोई की बुद्धि में बैठेगा नहीं। तुम एक्यूरेट समझते हो कि 84 जन्म का चक्र है। पहले गायन है ब्राह्मणों का, मुख वंशावली ब्राह्मण हैं ना। यह और कोई नहीं जानते। ब्रह्माकुमार कुमारियां आर्डनरी बात हो गई है। कोई भी समझते नहीं हैं - यह संस्था क्या है? यह नाम क्यों पड़ा है? प्रजापिता ब्रह्मा नाम डालने से फिर क्यों का प्रश्न निकल ही जायेगा। तुम कह सकते हो शिवबाबा के बच्चे सब भाई-भाई हैं। फिर प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्रदर्स, सिस्टर्स हैं। यह समझने से फिर प्रश्न नहीं आयेगा। समझेंगे नई दुनिया स्थापन होती है। बरोबर ब्रह्मा द्वारा तुम पतित से पावन बन रहे हो। यह जो रक्षा बन्धन आदि मनाया जाता है, यह पुरानी रसम चली आती है। अभी तुम अर्थ को समझते हो जो भी यादगार हैं, सबका तुमको इस समय ज्ञान मिलता है। सतयुग में थोड़ेही राम नवमी मनायेंगे। वहाँ मनाने की बात ही नहीं रहती। वहाँ तो ज्ञान रहता ही नहीं। यह भी पता नहीं पड़ेगा कि हमारी उतरती कला है। सुख में जन्म लेते रहेंगे। वहाँ है ही योगबल से पैदाइस। विकार का नाम ही नहीं होता है क्योंकि रावण का राज्य ही नहीं। वहाँ तो सम्पूर्ण निर्विकारी हैं। पहले से ही साक्षात्कार होता है। नहीं तो कैसे सिद्ध हो कि एक पुराना शरीर छोड़ दूसरा नया लेते हैं। यहाँ से तुम पहले जायेंगे शान्तिधाम। बच्चे समझते हैं वह हमारा घर है, उनको ही शान्तिधाम कहते हैं। वह तो हमारा अथवा बाप का घर है, जिस बाप को याद करते हैं। बाप से ही बिछुड़े हैं, इसलिए याद करते हैं। सुख में तो बाप भी याद नहीं आते। है ही सुख की दुनिया। बाबा अपने धाम में रहते हैं, जैसे कि वानप्रस्थ में चले जाते हैं। दुनिया में तो जब बूढ़े होते हैं तो वानप्रस्थ ले लेते हैं। लेकिन परमपिता परमात्मा को बूढ़ा थोड़ेही कहेंगे। बूढ़ा वा जवान शरीर होता है। आत्मा तो वही है। आत्मा में माया का परछाया पड़ता है। तुम सब कुछ जान गये हो, आगे नहीं जानते थे। रचयिता रचना का राज़ बाप ने समझाया है।

तुम बच्चे सामने बैठे हो। उनकी महिमा बहुत है। प्रेजीडेंट, प्रेजीडेंट है। प्राइम मिनिस्टर, प्राइम मिनिस्टर है। सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। बाप ऊंच ते ऊंच गाया जाता है। तो जरूर हमको ऊंच ते ऊच वर्सा मिलना चाहिए ना। कितनी समझ की बात है। जैसे बाप समझाते हैं बच्चों को भी समझाना है। पहले बाप का परिचय देना है, वर्सा भी बाप से मिलता है। तुम्हारा है प्रवृत्ति मार्ग तो बुद्धि में चक्र फिरना चाहिए। सर्विस जरूर करनी है। दिन-प्रतिदिन बहुत सहज होता जायेगा, तब तो प्रजा वृद्धि को पायेगी ना। सहज मिलने से सहज निश्चय हो जायेगा। नये-नये अच्छे उछलने लग पड़ते हैं, पूरा निश्चय बैठ जाता है। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सबका पार्ट चल रहा है। हर एक सच्ची कमाई करने का पुरूषार्थ कर रहे हैं। सच्ची और झूठी कमाई में फ़र्क तो रहता है ना। सच्चे रत्न दूर से ही चमकते हैं। आजकल मनुष्यों को पैसे रखने की कितनी मुसीबत है। कहाँ छिपावें, कहाँ रखें। धन पड़ा होगा, समय ऐसा आयेगा जो कुछ कर नहीं सकेंगे। तुम बच्चों का भी नम्बरवार बुद्धि का ताला खुलता जाता है। कहाँ न कहाँ ग्रहचारी बैठती है तो कोई न कोई संशय आ जाता है। पढ़ाई ही छोड़ देते हैं, समझ में ही नहीं आता। हम तो पढ़ते थे, पढ़ाते थे, अब क्या हो गया है। थोड़ा भी संशय आने से गला ही घुट जाता है। बाबा में संशय हुआ, विकार में गये तो एकदम से गिर पड़ते हैं। काम और क्रोध सबसे बड़े दुश्मन हैं। मोह भी कम नहीं है। ऐसे नहीं कि सन्यासियों को अपनी लाइफ की स्मृति नहीं रहती होगी। सब स्मृति रहती है। ज्ञानी तू आत्मा बच्चे इशारे से ही समझ जाते हैं। कैसे भोग लगाते हैं। कौन आते हैं, क्या होता है? सेकेण्ड बाई सेकेण्ड ड्रामा चलता रहता है। ड्रामा में नूँध है जो कल्प पहले हुआ था, वही करेंगे, इमर्ज होगा। ड्रामा का पार्ट सेकेण्ड बाई सेकेण्ड खुलता जाता है। मुख्य है बाप की याद जिससे विकर्म विनाश होंगे। जितना बाप की याद में लगे रहते उतना विकर्म विनाश होते रहते। नहीं तो बाप धर्मराज रूप में साक्षात्कार करायेंगे। अभी भी बहुत हैं जो चलते-चलते अनेक भूलें करते रहते हैं। बताते नहीं हैं। नाम बहुत अच्छा-अच्छा है, परन्तु बाप जानते हैं कि कितना कम पद हो पड़ता है। कितनी ग्रहचारी रहती है। उल्टे विकर्म करके बाप से छिपाते रहते हैं। सच्चे के आगे कोई बात छिप नहीं सकती। तुम्हारा सब ऊपर में नूँधा जाता है। अन्तर्यामी बाबा तो वह है ना। समझना चाहिए हम छिपाकर विकर्म करते हैं तो बहुत सजा खानी पड़ेगी। हम ब्राह्मण निमित्त बने हैं सम्भालने के लिए। हमारे में ही यह आदत है तो ठीक नहीं। स्कूल में टीचर की रिपोर्ट होती है, तो प्रिन्सीपल बड़ी सभा बीच उनको निकाल देते हैं। तो बहुत डर रखना चाहिए। तुमको याद एक शिवबाबा को करना है। बाबा कहते हैं मामेकम् याद करो। तुमको तो बाप के पास जाना है। उनको याद करना है और स्वदर्शन चक्र फिराना है और कोई को याद करेंगे तो तुम्हारी रूहानी यात्रा बन्द हो जायेगी। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) माया की ग्रहचारी से बचने के लिए सच्चे बाप से सदा सच्चे रहना है। कोई भी भूल कर छिपाना नहीं है। उल्टे कर्मों से बचकर रहना है।
2) श्रीमत पर न चलना भी विकार है इसलिए कभी भी श्रीमत का उल्लंघन नहीं करना है। सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है।
वरदान:
साधन वा सैलवेशन के प्रभाव में आने के बजाए प्रकृति को दासी बनाने वाले विजयी भव
कभी भी योगी पुरूष वा पुरूषोत्तम आत्मायें प्रकृति के प्रभाव में नहीं आ सकती। आप ब्राह्मण आत्मायें पुरूषोत्तम और योगी आत्मायें हो, प्रकृति आप मालिकों की दासी है इसलिए प्रकृति के कोई भी साधन वा सैलवेशन आपको अपने प्रभाव में प्रभावित न कर लें। साधन, साधना का आधार न हों लेकिन साधना, साधनों को आधार बनाये तब कहेंगे प्रकृतिजीत, विजयी आत्मा।
स्लोगन:
एवररेडी वह हैं जो हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझकर चलते हैं।