Monday, July 10, 2017

मुरली 11 जुलाई 2017

11-07-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम रूहानी सेना हो, तुम्हारे बिगर रावण से सारे विश्व की रक्षा कोई कर नहीं सकता, इसी शुद्ध नशे में रहना है"
प्रश्न:
बापदादा किन बच्चों की बलिहारी का गायन करते हैं?
उत्तर:
बाबा कहते बलिहारी उन बांधेली बच्चियों (अबलाओं) की है जो मार खाते भी शिवबाबा को याद करती हैं। मार खाने से और ही नष्टोमोहा बनती जाती, जिस कारण उनका पद और ही ऊंचा हो जाता है। बाप ऐसे बच्चों को तसल्ली (धीरज) देते हैं। बच्चे तुम अपने को आत्मा समझो, यह देह तुम्हारी नहीं है। तुम बाप के बन चुके हो तो अवस्था पक्की होती जायेगी। सच्ची दिल पर साहेब राज़ी होगा।
गीत:-
तुम्हें पाके हमने जहान पा लिया है....  
ओम् शान्ति।
बच्चे सामने बैठे हैं। जानते भी हैं हम सेना हैं। किसकी सेना हैं? ईश्वर की। क्या कर रहे हो? हम रावण पर विजय पा रहे हैं। गोया इस सारी सृष्टि को रावण राज्य से छुड़ाए अपने राज्य की स्थापना कर रहे हैं। बैठे देखो कैसे साधारण रीति हो। कोई हाथ पांव नहीं चलाते हो परन्तु हो बड़ी जबरदस्त सेना। तुम मददगार हो ईश्वर के। ईश्वर भी गुप्त है, तुम भी गुप्त हो। उनको शाहनशाह भी कहते हैं। तुम्हारी युद्ध इतनी जबरदस्त और गुप्त है जो तुम विकारों पर जीत पाकर सारे विश्व पर जीत पा लेते हो। तुमको फील होगा - जैसे वह सेना है वैसे हम भी रूहानी सेना हैं। समझते हो भारत का सारा मदार है इस सेना पर। हम सेना न होती तो दूसरे जीत पा लेते। उस सेना में तो कभी-कभी राजाओं आदि को भी भगाए मिलेट्री का राज्य कर लेते हैं। मिलेट्री समझती है हमारे बिगर कोई देश की रक्षा कर नहीं सकता। तुमको भी शुद्ध अहंकार है। हम ईश्वरीय सेना के बिगर रावण से कोई रक्षा कर नहीं सकता। अब वह मिलेट्री भी देखो और यह भी देखो। तुम जैसे हो वैसे हो। तुम्हारे पास कोई भी ड्रेस वा हथियार-पंवार नहीं हैं। वह तो कितनी ड्रेस पहनते हैं। जैसे स्वांग बनाते हैं। होली में भी स्वांग बनाते हैं। राम की भी सेना दिखाते हैं। उनको मुंह बन्दर का दे दिया है। वह तो सिर्फ गुड़ियों का खेल करते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो हम रावण रूपी 5 विकारों की जेल से छुटकारा पा रहे हैं। एक तो रावण का जेल फिर रावण की मत पर चलने वालों का जेल। भक्ति की भी जंजीरें, गुरूओं की जंजीरें फिर पति की भी जंजीरें। रावण की मत पर तुम कितने दु:खी होते हो। कितना पुकारते हो। रावण हमको बहुत सताते हैं।

तुम जानते हो जितना-जितना हम योग में रहते हैं उतना हमारी आत्मा दु:ख से छूटती है। अबलाओं पर अत्याचार तो बहुत होते हैं। बहुत मार खाती हैं। अबलायें पुकारती हैं - अब हम क्या करें। बाप फिर तसल्ली (धीरज) देते हैं। यह तो समझाया है तुम अपने को आत्मा समझो। यह देह हमारी नहीं है। हम मर चुके हैं। बाप के बन चुके हैं और कोई उपाय नहीं है। हम तो शिवबाबा के हैं। जो सच्चे बच्चे होते हैं उनकी अवस्था पक्की रहती है। जरा भी विकार की तरफ ख्याल नहीं जाता है। ऐसे बच्चे पर अगर कोई जबरदस्ती जुलुम करते हैं तो उसका पाप नहीं चढ़ता है। पुकारती हैं बाबा हम तो आपके हैं। शरीर तो जैसे मुर्दा है। ऐसे निश्चयबुद्धि वाले जो हैं वह भी बड़ा ऊंच पद पा लेते हैं। अगर सच्ची दिल है तो। ऐसे सच्ची दिल पर जरूर साहेब राज़ी होगा। यहाँ भी बच्चियाँ इतना याद नहीं करती हैं, जितना जो मार खाती हैं वह याद करती हैं। बाप के पास पुकार आती है, बंधन है। बाबा बंधन से छुड़ाओ। जो छूटे हुए बंधन-मुक्त हैं, वह भी इतना याद नहीं करते हैं जितना बांधेलियाँ याद करती हैं। शिवबाबा की याद से ही बेड़ा पार होता है। कोई कहते हैं बाबा हमको मुरली भी पढ़ने नहीं देते हैं। अरे तुम बाप को याद करती रहो। मुरली में भी रोज़ यही समझाया जाता है। मूल बात है याद का चार्ट रखो। हम बाबा को कितना समय याद करते हैं। यह मेहनत बहुतों से होती नहीं है। घड़ी-घड़ी याद भूल जाती है, बांधेली बच्चियां तो मार खाते-खाते और ही जास्ती याद करती हैं। बलिहारी उन अबलाओं की है जो मार खाते भी याद करती हैं। बाबा कहते हैं तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करती रहो। जितना जास्ती मारेंगे तुम और ही नष्टोमोहा होती जायेंगी। मार भी अच्छा पद बना लेती है। बाबा को भी ऐसी-ऐसी बच्चियाँ याद पड़ती हैं। हाँ कोई बहुत अच्छे महारथी भी हैं जो बहुतों की सर्विस करते हैं, योगी बनाते हैं। योग की बहुत महिमा है। तुमको तो सब पर तरस खाना है।

तुम बच्चे गीता को रेफर करते हो, उन्हों की बुद्धि में सिर्फ यह है कि कृष्ण भगवान ने राजयोग सिखाया। तुम कहते हो परमपिता परमात्मा ने राजयोग सिखाया। यह सिद्ध करने के लिए ही तुम पूछते हो। परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? पिता कहते हैं ना। पिता का ही फरमान है कि हमारे साथ योग लगाओ तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। कोई मनुष्य मात्र के साथ योग नहीं लगाना है। अगर सिखाने वाला ही मनुष्य होगा तो तुम्हारा कल्याण नहीं होगा। गीता में भी नाम देहधारी का रख दिया है। हम कहते हैं हमको निराकार परमपिता परमात्मा योग सिखाते हैं। तुम कोई की निंदा नहीं करते हो। तुम तो बाप की महिमा करते हो। परन्तु समझाने वाले बड़े तीखे और सयाने चाहिए क्योंकि वहाँ बड़े-बड़े विद्वान, पंडित भी बहुत आते हैं। सन्यासियों की भी सेना है ना। सबके हेड्स आते हैं। तुम बच्चे ऐसे चतुर होने चाहिए जो बात बिल्कुल थोड़ी करो और एकदम तीर लग जाए। जास्ती कुछ भी बोलने की दरकार ही नहीं है क्योंकि वे क्रोधी भी बहुत होते हैं। उनकी भी बड़ी सेना है। कहाँ से भी निमंत्रण आता है तो तुम जा सकते हो। तुम बच्चे भी समझ सकते हो - हमारे में कौन-कौन अच्छी ललकार कर सकते हैं। एक अल्फ का अर्थ ही समझाना है। दो चीजें हैं बस। बाप अल्फ कहते हैं मुझे याद करो तो तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे। यह तो अल्फ भगवान ही कह सकते हैं, जो ही रचयिता है। हेविनली गॉड फादर है। वह कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। श्रीकृष्ण को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। कृष्ण अब कहाँ है? उसने तो एक शरीर छोड़ दूसरा ले लिया। निराकार तो अविनाशी है। सारी समझानी इस बात पर देते हैं। कितनी भूल कर दी है। भगवानुवाच - मैं तुमको विश्व का वर्सा देता हूँ। कृष्ण कैसे सबको वर्सा देगा। कृष्ण तो भारत का है ना। पतित तो सारी दुनिया है। सबका पतित-पावन तो एक ही निराकार है। तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें हैं। भक्ति के पार्ट की भी नॉलेज है। पहले-पहले होती है शिव की पूजा। सोमनाथ का मन्दिर बना हुआ है। इतना बड़ा सोमनाथ का मन्दिर किसने बनाया? और कोई की ताकत नहीं। जरूर उस समय इतना साहूकार थे जो ऐसे मन्दिर बनाये। तुम बच्चों में अभी समझ है। बरोबर हम कितने साहूकार थे। इतना बड़ा सोमनाथ का मन्दिर बनाया है, जरूर महाराजा होगा। देवी-देवतायें खुद ही पूज्य थे, वही पुजारी बन पड़े। फिर वही पूजा के लिए मन्दिर बनायेंगे। ऐसे नहीं कोई एक सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं। एक ने शुरू किया फिर बहुतों ने बनाया। फिर बहुत मन्दिरों को लूटा होगा। एक मन्दिर से ही इतना सामान निकला जो ऊंट भरकर ले गये। जब चढ़ाई करते हैं तो कोशिश करते हैं कैपीटल को हाथ करें। फिर उनकी विजय हो गई। अब तुम्हारी बुद्धि में है बरोबर यह देहली परिस्तान थी। धर्मराज ने स्थापन किया था। देहली फिर से परिस्तान बनेंगी। उसके लिए हम राजयोग सीख रहे हैं। अब तुम सुनते हो तो बुद्धि में नशा चढ़ता है। समझते हो हमारा राज्य स्थापन हो रहा है। हमारा नाम बाला है। कहा भी जाता है गुप्त सेना, नान-वायोलेन्स। इतना बड़ा अर्थ कोई नहीं समझते हैं। तुम न स्थूल हथियार उठाते, न काम कटारी चलाते। तुम ही नान-वायोलेन्स शक्ति सेना हो, जिन्होंने योगबल से राज्य पाया है। विश्व का मालिक बनने के लिए श्रीमत पर हम एक बाप को ही याद करते हैं। जानते हैं अभी यह नाटक पूरा होता है। फिर नये सिर शुरू होगा। यह अविनाशी नाटक है। यह कब विनाश नहीं होता है। बाकी इतना जरूर है, जब नई दुनिया होती तो पुरानी दुनिया खलास हो जाती है। चक्र तो फिरता ही रहता है। यह अनादि ड्रामा है। जैसे भगवान के लिए कहते हैं हाजिर-नाज़िर है वैसे यह ड्रामा चक्कर लगाता ही रहता है। इस ड्रामा में सब एक्टर्स हैं ही हैं। तुम जानते हो मूलवतन और स्थूलवतन है ही है। फिर सतयुग, त्रेता चक्र लगाकर फिर रिपीट होता है। यह अविनाशी ड्रामा है। हम एक्टर्स भी ड्रामा में हैं ही हैं। शुरू से अन्त तक सबका पार्ट है ही है। वह छोटा ड्रामा होता है जो पुराना हो जाता है। यह कभी पुराना नहीं होता। यह अविनाशी ड्रामा कब पुराना होता है क्या? नहीं। बाकी हम पार्ट में आते हैं। नये से पुराने हो फिर पुराने से नये हो जाते हैं। तुम जानते हो बरोबर हम राजा रानी थे। अब रंक बने हैं। रंक से फिर राव बनते हैं। रंक माना फकीर। बाप आकर सबको राह बताते हैं। तुमको बहुत नशा होना चाहिए। यह नई नॉलेज तुमको मिलती है और मिलती भी एक ही बार है। यह समझते हो ना कि हम डायरेक्शन अनुसार इस सृष्टि पर अपनी बादशाही स्थापन कर रहे हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो और बादशाही को याद करो। हाँ, बाकी यह सितम तो होंगे ही। सितम भी कर्मभोग है। पुरुष-स्त्री को मारता है, ऐसे ही कोई मार सकता है क्या? तुमने भी उनको मारा होगा। वही हिसाब-किताब चुक्तू हो रहा है। यह सब कर्मों का हिसाब-किताब है। अब तुम श्रीमत पर श्रेष्ठ कर्म कर रहे हो। अब कोई भ्रष्ट कर्म नहीं करना। सबसे श्रेष्ठ कर्म है सबको बाप का परिचय देना। बाप का फरमान मिला है मामेकम् याद करो। सभी बाप को ही भूले हुए हैं। शिव की पूजा करते हैं। परन्तु जानते कुछ भी नहीं। अमरनाथ पर भी बड़ा लिंग बना रखा है। इतना बड़ा बाप का रूप है क्या? कुछ भी पता नहीं है। अब तुम बच्चे इन सब बातों को यथार्थ समझ गये हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर सदा श्रेष्ठ कर्म करने हैं। कोई भी भ्रष्ट कर्म न हो, इसका ध्यान रखना है। बहुतों को योगी बनाने की सेवा करनी है।
2) सच्ची दिल रखनी है, शरीर तो जैसे मुर्दा है - इसका अभिमान छोड़ देना है। पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है।
वरदान:
याद और सेवा द्वारा अपने भाग्य की रेखा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाने वाले भाग्यवान भव
ब्राह्मणों की जन्म-पत्री में तीनों ही काल अच्छे से अच्छे हैं। जो हुआ वह भी अच्छा और जो हो रहा है वो और अच्छा और जो होने वाला है वह बहुत-बहुत अच्छा। सभी के मस्तक पर श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींची हुई है, सिर्फ याद और सेवा में सदा बिजी रहो। यह दोनों ऐसे नेचुरल हों जैसे शरीर में श्वास नेचरल है। भाग्य विधाता बाप ने याद और सेवा की यह विधि ऐसी दी है जिससे जो जितना चाहे उतना अपना श्रेष्ठ भाग्य बना सकते हैं।
स्लोगन:
सन्तुष्टता की सीट पर बैठकर परिस्थितियों का खेल देखना ही सन्तुष्टमणि बनना है।