Thursday, June 29, 2017

मुरली 30 जून 2017

30-06-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– ब्राह्मण बनकर कोई ऐसी चलन नहीं चलना जो बाप का नाम बदनाम हो, धन्धाधोरी करते सिर्फ श्रीमत पर चलते रहो”
प्रश्न:
गॉडली स्टूडेन्ट के मुख से कौन से शब्द नहीं निकलने चाहिए?
उत्तर:
हमें पढ़ाई पढ़ने की फुर्सत नहीं है, यह शब्द तुम्हारे मुख से नहीं निकलने चाहिए। बाप कोई बच्चों के सिर पर आपदा (बोझ-समस्या) नहीं डालते सिर्फ कहते हैं सवेरे-सवेरे उठ एक घड़ी, आधी घड़ी मुझे याद करो और पढ़ाई पढ़ो।
प्रश्न:
मनुष्यों का प्लैन क्या है और बाप का प्लैन क्या है?
उत्तर:
मनुष्यों का प्लैन है– सब मिलकर एक हो जाएं। नर चाहत कुछ और ..बाप का प्लैन है झूठ खण्ड को सचखण्ड बनाना। तो सचखण्ड में चलने के लिए जरूर सच्चा बनना पड़े।
गीत:
आज के इंसान को...  
ओम् शान्ति।
बच्चे भी कहते हैं ओम् शान्ति। आत्मायें कह सकती हैं इस शरीर द्वारा ओम् शान्ति। अहम् आत्मा का स्वधर्म है शान्त, यह भूलना नहीं है। बाप भी आकर कहते ओम् शान्ति। जहाँ तुम बच्चे भी शान्त रहते हो, वहाँ बाप भी रहते हैं। वह है हमारा शान्तिधाम वा घर। दुनिया में कोई भी विद्वान, आचार्य इन बातों को नहीं जानते। कह देते हैं आत्मा सो परमात्मा। आत्मा का भी किसको ज्ञान नहीं है कि आत्मा क्या है। इतनी करोड़ आत्मायें स्टार मिसल हैं। हर एक आत्मा में अपना-अपना अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है, जो समय पर इमर्ज होता है। यह बाप बैठ समझाते हैं। बाप भी जीव आत्मा बनने बिगर जीव आत्माओं को समझा न सके। मुझे भी जरूर शरीर चाहिए ना। शरीर तब लेना होता है जब रचना रचनी होती है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना करते हैं, रचयिता तो है निराकार शिव। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्रह्माकुमार कुमारियों को समझा रहे हैं, शूद्रों को नहीं। अब हमारा है ब्राह्मण वर्ण। पहले शूद्र वर्ण में थे। उनके आगे वैश्य वर्ण, क्षत्रिय वर्ण। दुनिया इन बातों को नहीं जानती है। बरोबर ब्राह्मण सो देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र... ब्राह्मणों की चोटी है। आगे ब्राह्मण गऊ के खुर जितनी चोटी रखाते थे। तुम बाजोली खेलते हो। मैं तो नहीं खेलता हूँ। इन वर्णो के चक्र में तुम आते हो। कितनी सहज बात है। तुम्हारा नाम ही है स्वदर्शन चक्रधारी। बाकी शास्त्रों में तो क्या-क्या बातें लिख दी हैं। तुम समझते हो– हम ब्राह्मण ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं। परन्तु यह अलंकारों की निशानी देवताओं को दी है क्योंकि वे सम्पूर्ण हैं। उन्हों को ही शोभते हैं। इस नॉलेज को धारण करने से तुम फिर चक्रवर्ती राजा बनते हो। अभी सम्मुख बैठे हो। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। यज्ञ में ब्राह्मण जरूर चाहिए। शूद्र यज्ञ रच नहीं सकते। रूद्र शिवबाबा ने यज्ञ रचा है तो ब्राह्मण जरूर चाहिए। बाप कहते हैं मैं ब्राह्मण बच्चों से ही बात करता हूँ। कितना बड़ा यज्ञ है जब से बाप आये हैं, आते ही यज्ञ रचा है। इसको कहा जाता है अश्वमेध अर्थात् स्वराज्य स्थापना करने अर्थ। कहाँ? भारत में। सतयुगी स्वराज्य रचते हैं। यह शिव ज्ञान यज्ञ कहो वा रूद्र ज्ञान यज्ञ कहो, सोमनाथ मन्दिर भी उनका ही है। एक के बहुत ही नाम हैं। इनको यज्ञ कहा जाता है, पाठशाला नहीं कहा जाता। बाप ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है। यज्ञ को पाठशाला नहीं कहेंगे। ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ रचा जाता है। ब्राह्मणों को दक्षिणा देने वाला दाता भोलानाथ है। उसको कहते ही हैं शिव भोलानाथ भण्डारी। अब तुम सम्मुख बैठे हो। बापदादा ने बच्चों को एडाप्ट किया है। यह है बड़ी मम्मा। फिर माताओं की सम्भाल के लिए मम्मा मुकरर की जाती है, वह सबसे तीखी जाती है। इनका पार्ट है मुख्य। वह है ज्ञान ज्ञानेश्वरी जगत अम्बा। महालक्ष्मी को ज्ञान ज्ञानेश्वरी नहीं कहेगे। लक्ष्मी माना धन देवी। कहते हैं ना– इनके घर लक्ष्मी है अर्थात् सम्पत्ति बहुत है। लक्ष्मी से सम्पत्ति ही मांगते हैं। 12 मास पूरा हुआ तो आह्वान करेंगे। जगत अम्बा सबकी मनोकामनायें पूरी करती है। बच्चे जानते हैं जगत अम्बा है– प्रजापिता ब्रह्मा की बेटी, इनका नाम है सरस्वती। एक ही नाम बस है। मम्मा है तो बच्चे भी हैं। तुम शिवबाबा द्वारा नॉलेज सुन रहे हो। इनको बाप ने आकर एडाप्ट किया है, नाम रखा है ब्रह्मा। कहते भी हैं मैं पतित शरीर में आता हूँ। शास्त्रों में भी यह कोई बातें नहीं हैं। तुम जानते हो नई दुनिया के लिए हम पुरूषार्थ कर रहे हैं। कांटे से फूल बन रहे हैं। शूद्र थे तो कांटे थे। अभी ब्राह्मण फूल बने हो। ब्राह्मणों को फूल बनाते हैं बाप। वह है बागवान। तुम नम्बरवार माली हो। जो अच्छे अच्छे माली हैं वह औरों को भी आपसमान बनाते हैं। सैपलिंग लगाते रहते हैं। नम्बरवार हैं, इसको कहा जाता है स्प्रीचुअल ज्ञान। ईश्वर है ज्ञान देने वाला। शास्त्र आदि तो सब मनुष्य सुनाते हैं। यह रूहानी ज्ञान जो सुप्रीम रूह रूहों को देते हैं और कोई को रचयिता और रचना का ज्ञान मिलता ही नहीं। ऐसे ही गपोड़े मारते रहते हैं। यह है ही झूठी दुनिया। सब झूठ ही झूठ है। असल में पहले झूठे जवाहरात थे नहीं। अभी तो झूठे कितने हो गये हैं। सच्चे रखने नहीं देते। झूठ खण्ड में है रावण राज्य, सचखण्ड में है राम का स्थापना किया हुआ राज्य। यह है शिवबाबा का स्थापना किया हुआ यज्ञ। पाठशाला भी है, यज्ञ भी है, घर भी है। तुम जानते हो हम पारलौकिक बाप और फिर प्रजापिता ब्रह्मा के सम्मुख बैठे हैं। जब तक ब्राह्मण न बनें तो वर्सा कैसे मिल सके। यज्ञ को सम्भालने वाले सच्चे ब्राह्मण चाहिए। विकारों में जाने वाले को ब्राह्मण नहीं कहेंगे। एक टांग रावण की बोट में, दूसरी टांग राम की बोट में है तो नतीजा क्या होता है? चीर जायेंगे। ऐसी चलन से फिर नाम बदनाम कर देते हैं। कहलाते हैं प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान और कर्तव्य शूद्रों के। बाप कहते हैं धन्धाधोरी तो भल करो परन्तु श्रीमत पर चलने से फिर रेसपान्सिबिल्टी उन पर हो जाती है। तुम यहाँ आये ही हो ईश्वरीय मत लेने के लिए। वह है आसुरी मत। तुम श्रीमत लेते हो श्रेष्ठ बनने के लिए। ऊंच ते ऊंच बाप ऊंची मत देते हैं। तुम जानते हो हमको ऊंची मत मिलती है मनुष्य से देवता बनने की। कहते भी हैं हम तो सूर्यवंशी राजा बनेंगे। यह है ही राजस्व, प्रजा स्व नहीं। तुम राजा-रानी बनते हो तो प्रजा भी जरूर बननी है। जैसे यह मम्मा बाबा पुरूषार्थ से बनते हैं तो बच्चों को भी बनना है। तुम बच्चों को भी खुशी होनी चाहिए। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ शिवबाबा के पोत्रे-पोत्रियाँ हैं। शिव को प्रजापिता नहीं कहेंगे। वह है रचयिता। स्वर्ग में रहने वाले हैं देवी-देवतायें। बाप ही मनुष्य को देवता बनाते हैं। तुम्हारी काया कल्प वृक्ष समान बनती है, रिज्युवनेट होते हैं। तुम्हारी आत्मा जो काली हो गई है, उनको प्योर गोरा बनाते हैं। जब सम्पूर्ण पवित्र बन जाते हैं तो फिर शरीर नहीं रहता है इसलिए ही भंभोर को आग लगती है, जिसमें सबका विनाश हो जायेगा। यह हैं बेहद की बातें। यह बेहद का आइलैण्ड है, वह हैं हद के। जितनी भाषायें उतने नाम रख दिये हैं। अनेक टापू हैं। परन्तु यह सारी सृष्टि ही टापू है। सारी सृष्टि में रावण का राज्य है। गीत में भी सुना ना कि क्या हालत हो गई है। वहाँ एक दो को मारते नहीं हैं। वहाँ तो राम राजा, राम प्रजा... कहते हैं दु:ख की बात ही नहीं। किसको दु:ख देना भी पाप है। वहाँ फिर यह रावण हनूमान आदि कहाँ से आये? तुम कह सकते हो पहली मुख्य बात– गॉड फादर कहते हो तो वह सर्वव्यापी कैसे हो सकता है। फिर तो फादरहुड हो जाता है। सब फादर ही फादर तो हो न सकें। अब तुम बच्चों को यह समझाना है– आधाकल्प तुमने झूठी कमाई की है। अब सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है। वह भी शास्त्र आदि जो सुनाते हैं कमाई के लिए। शिवबाबा तो यह शास्त्र आदि कुछ भी पढ़ा हुआ नहीं है। वह है ही नॉलेजफुल, ज्ञान का सागर। वह सत् है, चैतन्य है। अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा से हम सच्ची कमाई सचखण्ड के लिए कर रहे हैं। झूठ खण्ड विनाश होता है। देह सहित यह सब विनाश होना है। तुम सब देखेंगे कि कैसे लड़ाई लगती है। वह समझते हैं सब मिल जावें, परन्तु फूट पड़ती जाती है। नर चाहत कुछ और... उनका प्लैन है सब विनाश के लिए। ईश्वर का प्लैन क्या है? सो अब तुम जानते हो। बाप आये ही हैं झूठ खण्ड को सच खण्ड बनाने के लिए, मनुष्य को देवता बनाने। सत्य बाप द्वारा तुम सच्चे बनते हो और रावण द्वारा झूठे बनते हो। बाप ही सत्य ज्ञान देते हैं। तुम ब्राह्मणों का हाथ भरतू होगा। बाकी शूद्रों का हाथ खाली रहेगा। तुम जानते हो हम सो देवी-देवता बनेंगे। अब बाप सिर्फ कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनो और मुझे याद करो। याद क्यों भूलनी चाहिए! जो बाप स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनको तुम भूल जाते हो.. यह है नई बात, इसमें आत्म-अभिमानी बनना पड़े। आत्मा तो अविनाशी है, एक शरीर छोड़कर दूसरा लेती है। बाप कहते हैं– देही-अभिमानी बनो क्योंकि वापस जाना है। देह का भान छोड़ो। यह 84 जन्मों की सड़ी हुई जुत्ती है। कपड़ा पहनते-पहनते सड़ जाता है ना। तुमको भी यह पुराना शरीर छोड़ना है। अब काम चिता से उतरकर ज्ञान चिता पर बैठो। बहुत हैं जो विकारों बिगर रह नहीं सकते। बाप कहते हैं- द्वापर से लेकर तुम इन विकारों के कारण ही महान रोगी बन पड़े हो। अब इन विकारों को जीतो। काम विकार में मत जाओ। यह शरीर तो अपवित्र, पतित है ना। पावन बनो। यहाँ सभी विकार से पैदा होते हैं। सतयुग-त्रेता में यह विकार होते नहीं। वहाँ भी यह हो तो बाकी उनको स्वर्ग, इनको नर्क क्यों कहा जाए! बाप कहते हैं शास्त्रों में तो कोई एम आब्जेक्ट ही नहीं है। यहाँ तो एम आब्जेक्ट है। हम अभी मनुष्य से देवता बन रहे हैं। बाप कहते हैं तुमने जो कुछ पढ़ा है उसे भूलो। उसमें कोई सार नहीं है। तुम्हारी चढ़ती कला एक ही बार होती है। फिर है उतरती कला। कितना भी माथा मारो, नीचे उतरना ही है। पतित बनना ही है। यह छी-छी दुनिया है। तुम बच्चे जानते हो हमारा भारत स्वर्ग था। अभी नर्क है। पहले आदि सनातन एक ही धर्म था, जो अब नहीं है। फिर उस धर्म की स्थापना होती है। बाबा फिर से ब्रह्मा द्वारा आकर स्थापना करते हैं। तुम भी कहेंगे हम फिर से राज्य लेते हैं। राज्य लेने के बाद फिर यह नॉलेज गुम हो जायेगी। यह नॉलेज पतितों को ही मिलती है– पावन होने के लिए, फिर पावन दुनिया की नॉलेज क्यों रहेगी? लक्ष्मी-नारायण के राज्य को कितने वर्ष हुए, यह भी तुम जानते हो। कहते हो बाबा हम 5 हजार वर्ष बाद फिर से आये हैं राज्य लेने। हम आत्मा बाप के बच्चे हैं। मिसाल देते हैं एक आदमी कहने लगा मैं भैंस हूँ... तो वह निश्चय बैठ गया। कहने लगा इस खिड़की से कैसे निकलूँ... यह बात है तुम्हारे लिए। तुम निश्चय करते हो हम बाबा के बच्चे हैं, ऐसे तो नहीं मैं चतुर्भुज हूँ, यह कहने से बन जायेंगे। बनाने वाला जरूर चाहिए। यह है नर से नारायण बनाने की नॉलेज, जो अच्छी रीति धारण कर और करायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। स्टूडेन्ट्स ऐसे कह न सकें कि हमको फुर्सत नहीं है पढ़ने की। फिर तो जाकर घर बैठो। पढ़ाई बिगर वर्सा मिल न सके। गॉड फादरली स्टूडेन्टस फिर कहते हैं– फुर्सत नहीं। बाप का बनकर फिर फारकती दे देते हैं तो बाप कहेंगे तुम तो महान मूर्ख हो। एक घड़ी आधी घड़ी.... तुमको फुर्सत नहीं है, अच्छा सुबह को सवेरे बैठ बाबा को याद करो। कोई आपदा सिर पर नहीं डालते हैं। सिर्फ सवेरे उठ बाप को याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ। औरों का नहीं तो अपना कल्याण करो। रहमदिल बन जितना औरों का कल्याण करेंगे तो ऊंच पद पायेंगे। बड़ी जबरदस्त कमाई है। जिसके पास बहुत धन है वह कहते हैं फुर्सत नहीं। साहूकारों को वहाँ गरीब बनना है और गरीबों को साहूकार बनना है। सबसे जास्ती मातायें रोती हैं, उनको हँसाने वाला बनना है। निरन्तर याद की यात्रा पर रहना है। मधुबन में शान्ति है तो बहुत कमाई कर सकते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच खण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है। आत्म-अभिमानी होकर रहना है। इस सड़ी हुई जुत्ती (शरीर) का अभिमान छोड़ देना है।
2) रहमदिल बन अपना और दूसरों का कल्याण करना है। सवेरे-सवेरे उठ बाप को याद करते, स्वदर्शन चक्र फिराना है।
वरदान:
हर आत्मा के प्रति प्यार की दृष्टि, प्यार की भावना रखने वाले बाप समान भव
जैसे द्वापर से आप लोगों ने बाप को अनेक गालियां दी फिर भी बाप ने प्यार किया। तो फालो फादर कर बाप समान बनो। कैसी भी आत्मायें हों लेकिन अपनी दृष्टि, अपनी भावना प्यार की हो-इसको कहा जाता है सर्व के प्यारे। कोई इनसल्ट करे या घृणा सबके प्रति प्यार हो। चाहे संबंधी क्या भी कहें, क्या भी करें लेकिन आपकी भावना शुद्ध हो, सर्व के प्रति कल्याण की हो– इसको कहते हैं बाप समान।
स्लोगन:
विशेष आत्मा वह है जो विशेषताओं को ही देखे और उनका ही वर्णन करे।