Monday, May 1, 2017

मुरली 1 मई 2017

01/05/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप मनुष्य से देवता बनाने आये हैं तो उनकी दिल से शुक्रिया मानो श्रीमत पर चलते रहो, एक से सच्ची प्रीत रखो”
प्रश्न:
जिन बच्चों की बाप से प्रीत है, उनकी निशानियां क्या होंगी?
उत्तर:
बाप से सच्ची प्रीत है तो एक उन्हें ही याद करेंगे, उनकी ही मत पर चलेंगे। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देंगे। किसी के प्रति घृणा नहीं रखेंगे। अपना सच्चा-सच्चा पोतामेल बाप को देंगे। कुसंग से अपनी सम्भाल करेंगे।
गीत:-
धीरज धर मनुआ...  
ओम् शान्ति।
ब्राह्मणों को तो जरूर धीरज़ ही होगा क्योंकि ब्राह्मणों की ही परमपिता परमात्मा के साथ प्रीत है - नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। सबकी एक जैसी प्रीत नहीं है। जैसे बाबा मम्मा और बच्चे अपना-अपना अनुभव सुनाते हैं। अहम् आत्मा अपने लिए कहते हैं। बाबा फिर अहम् परमात्मा कहेंगे। अहम् आत्मा कहती है मैं परमपिता परमात्मा को बहुत याद करती हूँ क्योंकि जानती हूँ - आधाकल्प हमने रावणराज्य में बहुत दु:ख देखा है। ऐसे भी नहीं शुरू से दु:ख होता है। नहीं। रावण राज्य में धीरे-धीरे दु:ख की वृद्धि होती है। कलायें कम होती जाती हैं। अहम् आत्मा को अब परमपिता परमात्मा बतलाते हैं कि पहले तुम अव्यभिचारी भक्ति में थे सिर्फ मुझे याद करते थे। फिर व्यभिचारी रजोगुणी भक्ति में आये। अभी तो तमोगुणी भक्ति हो गई है, जो आया उनको पूजते रहते हैं, इसको कहा जाता है भूत पूजा क्योंकि शरीर 5 तत्वों का बना हुआ है। यह फलाना स्वामी है सिर्फ 5 तत्वों के शरीर को देख कहते हैं। उन्हों के चरणों में गिरते हैं। यह है तमोप्रधान भक्ति। अभी हम आत्मा जानते हैं परमपिता परमात्मा फिर से आये हैं हमको अपना वर्सा देने इसलिए जितना हो सके उनको याद करते हैं। उनका फरमान है निरन्तर मुझे याद करो। देही-अभिमानी भव अथवा आत्म-अभिमानी भव। बाबा सुनाते हैं घड़ी-घड़ी बाप का शुक्रिया करता हूँ। बाबा आपने मुझे अन्धियारे से निकाला है। बाबा के साथ हमारी प्रीत है। और सबकी है विनाश काले विपरीत बुद्धि, वह पूरा वर्सा ले न सके। लौकिक बच्चों की बाप से प्रीत होती है। बाप की मत पर चलते हैं तो बाप भी राज़ी होते हैं। अगर बच्चा मत पर नहीं चलता, तो बाप राज़ी नहीं रहता, जो मत पर न चले वह कपूत ठहरा। तो बेहद का बाप भी कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म भस्म होते जायेंगे। मेरे बने हो तो कोई भी पाप कर्म, कर्मेन्द्रियों से नहीं करना। कभी श्रीमत का उल्लंघन नहीं करना। बाप तुम्हें पुजारी से पूज्य बना रहे हैं तो बाप का कितना शुक्रिया मानना चाहिए। उनकी मत पर नहीं चलेंगे तो जन्म-जन्मान्तर के लिए पद भ्रष्ट कर देंगे। भल हम यहाँ भ्रष्ट मूत पलीती को कहते हैं। परन्तु वहाँ कम पद को भ्रष्ट पद कहते हैं। बाप कहते हैं, अच्छी रीति प्रीत लगाओ। जैसे स्त्री पति को याद करती है वैसे तुम मुझे याद करो। मेरी श्रीमत पर चलो। मन्सा, वाचा, कर्मणा किसको दु:ख न दो। मन में भी किसी के लिए घृणा नहीं रखना। हर आत्मा अपना पार्ट बजा रही है।

तुम जानते हो अभी का यह जन्म भविष्य के जन्म से भी ऊंच हैं। यहाँ हम ईश्वरीय औलाद बने हैं। सतयुग में दैवी औलाद होंगे। यहाँ की महिमा जास्ती है। जगदम्बा से 21 जन्मों का वर्सा मिलता है। लक्ष्मी से क्या मिलता है? इन बातों को नया कोई समझ न सके। आते तो बहुत हैं परन्तु जिनको निश्चय नहीं, वह ठहर न सकें। बाबा मम्मा बच्चों के मित्र सम्बन्धी आते तो बहुत हैं अथवा आफीसर्स आदि आते हैं, तो एलाउ किया जाता है। कहाँ तीर लग जाये, बिचारों का कल्याण हो जाए। झट पता लग जाता है कि ईश्वरीय कुल का है वा आसुरी कुल का है। प्रीत लगती है वा नहीं। आते यहाँ बहुत हैं, ठीक हो जाते हैं फिर बाहर जाकर कुसंग में अथवा माया के संग में विकारी बन जाते हैं। लिखते हैं हमने हार खाई। लेकिन अगर न बतायें तो और वृद्धि होती जायेगी। तुम्हारी अब प्रीत बुद्धि है - बाप के साथ। हाँ तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार प्रीत बुद्धि हैं। शिवबाबा बच्चों को समझाते हैं, कभी भी कोई विकर्म नहीं करना, श्रीमत पर चलना। बाबा के बने हो तो तुम्हारी चलन भी ऐसी होनी चाहिए। बाबा को पूरा मालूम होना चाहिए। बाबा मुक्ति-जीवनमुक्ति, विश्व की बादशाही देते हैं और बच्चों के पास क्या है, वह बाप को पता नहीं है। बाप के पास तो पूरा पोतामेल आना चाहिए। मेरे को देने से तुम्हारा नुकसान नहीं होगा। वह तो सब पैसे आदि अपने काम में ले लेते हैं, मैं तो हूँ निराकार। तुम बच्चों के ही काम में लगाता हूँ। जैसे गाँधी जी देश के काम में लगाते थे, इसलिए उनका नाम बाला है। बरोबर गांधी ने कांग्रेस राज्य स्थापन किया। नहीं तो यहाँ राजाओं का राज्य था। अभी बाप फिर से नई राजधानी, रामराज्य स्थापन कर रहे हैं - यह बात सभी बच्चों की बुद्धि में बैठती नहीं है, अगर बैठे तो खुशी का पारा भी चढ़े। बाबा के साथ योग लगाते रहें। बाबा कहते हैं परमधाम में रहने वाले बाप को वहाँ याद करो, जहाँ जाना है। अब ड्रामा पूरा होना है। ड्रामा को कोई जानते ही नहीं। न कोई की मेरे साथ प्रीत है। कहते हैं हम परम्परा से गंगा स्नान करते आये हैं। क्या सतयुग में भी करते थे? परम्परा का भी अर्थ नहीं समझते हैं। बाबा कहते हैं अब तुम्हारे सुख के दिन आ रहे हैं। तुम्हारी बुद्धि में धीरज है। कोई तो कुछ भी समझते नहीं हैं। यहाँ से समझकर जब बाहर जाते हैं तो माया सारा ही खा जाती है। जैसे मक्खी मरती है तो चींटियाँ सारा उनको हप कर लेती हैं। यहाँ भी मरते हैं तो चीटिंयाँ लेकर सारा हप कर लेती हैं। माया भी बलवान है, कम नहीं है। बड़ी लड़ाई लगती है। यहाँ रहते भी क्लास में नहीं आते हैं तो समझा जाता है यह स्वर्ग के मालिक नहीं बन सकते। कृष्णपुरी में जा न सकें। कुछ भी वैल्यु नहीं। तुम जो हीरे जैसे बनते हो उन्हों की ही वैल्यु है। तुम जानते हो हम वर्थ पाउण्ड बन रहे हैं। एक घर में एक हंस, एक बगुला होगा तो खिटपिट जरूर चलेगी। यहाँ तो बगुले से किनारा होता है। मूत पलीती के हाथ का तुम खा भी नहीं सकते हो। परन्तु बच्चों का बाप से इतना लव तो है नहीं, इसलिए सोचते हैं कि पेट कहाँ से भरेगा। अरे भील लोग कहाँ से खाते हैं। आजकल तो कोई कफनी पहन ले तो मुफ्त में पैसे मिलते रहते हैं। सब पाँव पड़ते रहते हैं, जो आयेगा मूर्ति के आगे पैसा रखता जायेगा, बहुत इज़ी। यह दुनिया ही ऐसी है। बच्चों को ख्याल करना चाहिए। यह दुनिया जल्दी खलास हो तो स्वर्ग में जायें, परन्तु लायक भी बनें ना। पद भी पाना है ना। वहाँ भी पोजीशन का फ़र्क रहता है। पढ़ाने वाला एक ही है। कोई राजा रानी, कोई नौकर चाकर, कोई साहूकार प्रजा। राजधानी स्थापन हो रही है और धर्म स्थापक राजाई नहीं स्थापन करते हैं इसलिए बाबा कहते हैं खबरदार रहो। विनाश काले पूरी प्रीत बुद्धि चाहिए। जितनी प्रीत होगी उतना बाप से वर्सा लेंगे। याद करने का भी सिखाया जाता है। बाबा बतलाते हैं, बाबा को और चक्र को याद करो। स्वर्दशन चक्र फिराओ। हम लाइट हाउस हैं, खिवैया हमारी नईया को पार ले जाता है। एक ऑख में शान्तिधाम, एक ऑख में सुखधाम रखना है। अच्छा -

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हर एक पार्टधारी के पार्ट को देखते हुए, किसी से भी घृणा नहीं करना है। मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख नहीं देना है।
2) बाप को अपना पूरा पोतामेल देना है। विनाश काले पूरा प्रीत बुद्धि बनना है। श्रीमत पर अपनी चलन श्रेष्ठ बनानी है। कुसंग से सम्भाल करनी है।
वरदान:
मन्सा-वाचा-कर्मणा और सम्बन्ध-सम्पर्क में पवित्रता की धारणा द्वारा परमपूज्य आत्मा भव
पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन्सा संकल्प में भी किसी के प्रति निगेटिव संकल्प नहीं हो, बोल में भी कोई ऐसे शब्द न निकलें, सम्बन्ध-सम्पर्क भी सबसे अच्छा हो, किसी में जरा भी अपवित्रता खण्डित न हो तब कहेंगे पूज्य आत्मा। तो पवित्रता के फाउण्डेशन को चेक करो। सदा स्मृति में रहे कि मैं परम पवित्र पूज्य आत्मा इस शरीर रूपी मन्दिर में विराजमान हूँ, कोई भी व्यर्थ संकल्प मन्दिर में प्रवेश कर नहीं सकता।
स्लोगन:
अपने भविष्य को स्पष्ट देखने वा जानने के लिए सम्पूर्णता की स्थिति में स्थित रहो।
साकार मुरलियों से गीता के भगवान को सिद्ध करने की प्वाइंटस)

1) भगवान ने कल्प पहले भी कहा था, अभी भी कहते हैं कि मैं इस साधारण तन में, बहुत जन्मों के अन्त में इनमें प्रवेश करता हूँ, इनका आधार लेता हूँ। यह उस गीता में भी है कि - मैं बहुत जन्मों के अन्त में साधारण वृद्ध तन में प्रवेश करता हूँ। वह तन तो यह ब्रहमा का ही है।

2) गीता के भगवान की नॉलेज पुरूषोत्तम बनने के लिए मिलती है, गीता है ही धर्म स्थापना का शास्त्र, और कोई शास्त्र धर्म स्थापन अर्थ नहीं होते हैं। सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है ही गीता। बाकी सब धर्म तो हैं ही पीछे आने वाले, उनको शिरोमणी नहीं कहेंगे।

3) वृक्षपति एक ही बाप है, वह पति भी है तो सबका पिता भी है। उनको पतियों का पति, पिताओं का पिता..... कहा जाता है। यह महिमा एक निराकार की गाई जाती है। कृष्ण की और निराकार बाप के महिमा की भेंट की जाती है। श्रीकृष्ण है नई दुनिया का प्रिन्स, वह फिर पुरानी दुनिया में संगमयुग पर राजयोग कैसे सिखलायेंगे!

4) बेहद का बाप ज्ञान का सागर, पतित-पावन है, वही गीता का भगवान है। वही ज्ञान और योगबल से नई दुनिया की स्थापना का कार्य कराते हैं, इसमें योगबल का बहुत प्रभाव है। भारत का प्राचीन योग मशहूर है।

5) ज्ञान है ही एक बाप (परमात्मा) के पास। ज्ञान से तुम नया जन्म लेते हो इसलिए गीता को माता कहा जाता है, जब माता है तो पिता भी जरूर होगा। तुम शिवबाबा के बच्चे हो वह है पिता, फिर गीता है माता। गीता का ज्ञान है ही नर से नारायण बनने के लिए।

6) अब गीता का भगवान कौन? अगर कृष्ण को कहें तो उन्हें याद करना तो बहुत सहज है। वह तो साकार रूप है। निराकार बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। श्रीकृष्ण तो ऐसे कह भी नहीं सकते कि मन्मनाभव, एक मुझे याद करो। तो अब बताओ गीता का भगवान कौन?

7) सारी दुनिया में मनुष्यों की बुद्धि में कृष्ण भगवानुवाच है। परन्तु कृष्ण थोड़ेही कहेंगे - मैं जो हूँ, जैसा हूँ, मुझे कोटों में कोई, कोई में भी कोई पहचान सकते हैं। कृष्ण को तो सब जान लेंगे। यह तो निराकार बाप ही कह सकते हैं।

8) ऐसे भी नहीं कि कृष्ण के तन से भगवान कहते हैं। नहीं। कृष्ण तो होता ही है सतयुग में। वहाँ भगवान कैसे आयेंगे? भगवान तो आते ही हैं पुरुषोत्तम संगमयुग पर जबकि कलियुग को बदलकर सतयुग बनाना है।

9) तुम्हारे पास बहुतों की लिखत हो कि गीता का भगवान कौन? ऊपर में भी लिखा हुआ हो कि ऊंच ते ऊंच बाप (परमात्मा) ही है, कृष्ण तो ऊंच ते ऊंच है नहीं। वह कभी कह नहीं सकते कि देह सहित देह के सब धर्मो को भूल मामेकम् याद करो। यह महावाक्य तो एक भगवान के ही हैं।

10) अभी तुमको मिलती है ईश्वरीय मत। ईश्वरीय घराने के अथवा कुल के तुम हो। ईश्वर आकर अभी दैवी घराना स्थापन करते हैं। देवी-देवताओं का धर्म फिर से स्थापन हो रहा है। जहाँ सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजाई चलती है। गीता से ब्राह्मण कुल और सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी कुल बनता है। अगर द्वापर में गीता सुनाई होती तो उसके बाद ब्राह्मण कुल वा सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी कुल आना चाहिए।

11) मनुष्य समझते हैं बहुत बड़ी प्रलय होती है। फिर सागर में पीपल के पत्ते पर कृष्ण आते हैं। अरे पीपल के पत्ते पर और सागर में कोई मनुष्य कैसे आ सकता। यह तो गर्भ महल की बात है, गर्भ महल से पहले-पहले श्रीकृष्ण की आत्मा अवतरित होती है। उनका जन्म होता ही है योगबल से, इसलिए उनको वैकुण्ठनाथ भी कहते हैं।

12) भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखलाकर राजाओं का राजा बनाता हूँ। तो पहले जरूर प्रिन्स कृष्ण बनेंगे। बाकी कृष्ण भगवानुवाच नहीं है। कृष्ण तो इस पढ़ाई की (राजयोग की) एम ऑब्जेक्ट है, यह पाठशाला है।