Friday, April 28, 2017

मुरली 29 अप्रैल 2017

29/04/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - अपनी अवस्था अच्छी बनानी है तो सवेरे-सवेरे उठ एकान्त में बैठ विचार करो कि हम आत्मा हैं, हमें अब वापिस जाना है, यह नाटक पूरा हुआ”
प्रश्न:
पूरा-पूरा बलि चढ़ने का अर्थ क्या है?
उत्तर:
पूरा बलि चढ़ना माना - बुद्धि का योग एक तरफ रहे। बच्चे आदि कोई देहधारी याद न आयें। देह का भान टूट जाए। ऐसा जो पूरा बलि चढ़ते हैं उन्हें 21 जन्मों का वर्सा बाप से मिलता है। जो एक दो के नाम रूप में लट्टू होते हैं वह बाप का और अपना नाम बदनाम करते हैं।
प्रश्न:
बाप सभी बच्चों पर कौन सी कृपा करते हैं?
उत्तर:
कौड़ी से हीरे जैसा बनाने की कृपा बाप करते हैं। जो बच्चे कदम-कदम पर राय लेते हैं, कुछ छिपाते नहीं, उन पर स्वत: कृपा हो जाती है।
गीत:-
किसने यह सब खेल रचाया......  
ओम् शान्ति।
जिन्होंने गीत बनाया है वह इनका अर्थ नहीं जानते हैं। तुम बच्चों को बाप ने समझाया है कि देखो तुमको कितना अच्छा वर्सा दिया था, जब तुमको रचा। स्वर्ग है नई रचना। दुनिया नहीं जानती कि स्वर्ग की रचना कैसे रची जाती है। फिर कैसे माया रूपी 5 विकार चढ़ जाते हैं। एक-एक बात नई है, नई दुनिया के लिए। सतयुग किसको कहा जाता है - यह भी नहीं जानते तो फिर यह कैसे जानेंगे। यह नॉलेज कोई भी शास्त्र में नहीं है। स्वयं परमपिता परमात्मा ही आकर नॉलेज देते हैं, जो नॉलेज फिर प्राय: लोप हो जाती है। नॉलेज से राजयोग सीख राजाई पाई, बस। इसको कहा जाता है प्रीचुअल नॉलेज। प्रीचुअल कहा जाता है प्रिट को, आत्मा को। सुप्रीम प्रिट कहेंगे बाप को। अनेक नाम दे दिया है। कहते भी हैं प्रीचुअल ज्ञान चाहिए। फिलासॉफी फिर शास्त्रों का ज्ञान हो जाता है। शास्त्र पढ़कर उनको जाना जाता है। परमपिता परमात्मा तो शास्त्र पढ़ते ही नहीं, उसको कहा जाता है नॉलेजफुल। मनुष्य समझते हैं वह अन्तर्यामी है। परन्तु ऐसे तो है नहीं। ड्रामा अनुसार जो जैसा कर्म करते हैं उनको वह फल तो मिलना ही है। बच्चों को कर्म अकर्म विकर्म की गति भी समझाते हैं। कर्म अकर्म कब होता है, फिर कर्म विकर्म कैसे बनते हैं। स्वर्ग में कोई बुरा काम होता नहीं जो विकर्म बने क्योंकि वहाँ रावणराज्य ही नहीं, इसलिए कर्म अकर्म बन जाते हैं। लेप-छेप तब लगता है जब विकर्म करते हैं। पाप कराने वाला है रावण। अब तुम बच्चों को बाप समझाते हैं। मनुष्य तो यह नहीं जानते कि सतयुग में विकार बिगर कैसे बच्चे पैदा होते हैं। बहुत लोग कहते हैं विकार होते जरूर हैं परन्तु इतने नहीं। जैसे यहाँ भी सन्यासी गुरू लोग समझाते हैं वर्ष में वा मास में एक बार विकार में जाओ। परन्तु बाप तो फट से कहते हैं बच्चे काम महाशत्रु है, उन पर पूरी जीत पानी है। सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है। वहाँ रावण ही नहीं तो विकार कहाँ से आया। सिक्ख लोग भी गाते हैं मूत पलीती कपड़ धोये.... तो सब मूत पलीती हैं। यह किसकी निंदा नहीं करते हैं। जो जैसा होगा उनको ऐसा जरूर कहेंगे। चोर को चोर कहेंगे। ग्रंथ में भी बहुत समझानी लिखी हुई है। गुरूनानक ने परमपिता परमात्मा की महिमा की है। कहते हैं जप साहेब, सुखमनी.... बाप कहते हैं मुझे याद करो। जिसको आधाकल्प याद किया वह चीज़ अगर मिल जाए तो कितनी खुशी होनी चाहिए। परन्तु खुशी भी उनको होती है जो घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा समझते हैं। आत्मा समझने से बाप के साथ लव रहेगा। आत्मा को इस समय पता ही नहीं है कि हमारा बाप कौन है। बाप का बन बाप के आक्यूपेशन को न जाना तो उनको बुद्धू कहेंगे। प्रहलाद की कथा सुनाते हैं, बदला लेने के लिए थम्भ से निकला.... परन्तु परमात्मा है कहाँ... एड्रेस का पता भी नहीं। अभी तुम बच्चे जानते हो। तुम हो ब्रह्माकुमार कुमारियाँ। प्रजापिता ब्रह्मा का भी नाम बाला है। स्त्री तो है नहीं जो उनसे बच्चे पैदा करें। जरूर मुख वंशावली होंगे। तुम भी यह समझा सकते हो। हम हैं ब्रह्माकुमार कुमारी, प्रजापिता ब्रह्मा का नाम सुना है। तो परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। पहले-पहले ब्रह्मा को रचा फिर ब्रह्मा द्वारा रचना रची। बाप समझाते हैं देखो, मेरी कितनी मुख वंशावली है। सबको वर्सा तो शिवबाबा से ही मिलता है, जिसको एडाप्ट किया है वह तो जरूर गरीब होंगे। पहले ब्रह्मा को एडाप्ट किया। ब्रह्मा द्वारा फिर मुख वंशावली बने। वह कुख वंशावली ब्राह्मण जिस्मानी यात्रा कराते हैं, यह ब्रह्मा मुख वंशावली रूहानी यात्रा कराते हैं। इस रूहानी यात्रा का किसको पता नहीं है। पुरुषार्थ करते हैं कि हम निवार्णधाम जावें। तो बुद्धि की यात्रा ब्रह्म तरफ होगी। वह ब्रह्म की यात्रा हो गई। समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे। तो फिर जिस्मानी यात्रा करने की दरकार क्या है। यात्रा है भी निवार्णधाम की। उनको फिर ज्योति ज्योत समाया या बुदबुदा, बुदबुदे से मिल गया - ऐसे नहीं कहेंगे। यह आत्मा यात्रा करती है। ब्रह्म तत्व में जाती है। यह है रूहानी यात्रा, बाकी सब हैं जिस्मानी यात्रा। उन्हों को तो मालूम ही नहीं है कि निर्वाणधाम कौन ले जा सकता है। अभी बेहद का बाप कहते हैं मैं ही सबको ले जाता हूँ, सर्व का पण्डा बाप ही बनते हैं। सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य हैं, बाकी सब आत्मायें वापिस जरूर जाती हैं। राइटियस बात बाप ही बताते हैं। अब तुम हो सच्ची-सच्ची यात्रा पर। हम आत्मा हैं, नाटक पूरा होता है, वापिस जाना है। यह पक्का हो जाना चाहिए। एकान्त में बैठ यह ख्याल करो कि हम आत्मा हैं, बाबा हमको लेने आया है। यह चोला छी-छी है। ऐसे अपने साथ बातें करनी होती हैं, इसको विचार सागर मंथन कहा जाता है। बाप ने कर्म करने की तो छुट्टी दी है। बाकी रात को जागकर यह अभ्यास करो तो दिन में भी अवस्था अच्छी रहेगी, मदद मिलेगी। रात का अभ्यास दिन में काम आयेगा। रात को जागना है - 2 बजे के बाद; क्योंकि 9 से 12 बजे तक का टाइम बिल्कुल डर्टी है इसलिए विचार सागर मंथन सवेरे ही किया जाता है। हम आत्मा हैं बस अब बाबा के पास ही जाना है। एक चोला छोड़ दूसरा लेंगे। यह है अपने साथ बातें करने का ढंग। 84 जन्म पूरे हुए। बाकी कुछ दिन रहे हुए हैं। यह बेहद का ड्रामा है। ऐसे बुद्धि में रहने से देह का भान टूट जायेगा। बाप और वर्सा ही याद पड़ेगा।

बाप ही आकर शिक्षा देते हैं। नहीं तो हम ऐसे श्रेष्ठ पवित्र बन कैसे सकते। इस समय करप्शन तो बहुत है इसलिए नाम निकलते हैं सदाचार कमेटी। आगे यह सब बातें थी नहीं। यह करप्शन आदि सब अभी हुई है। मिनिस्टर आदि बनते हैं तो कितने पैसे लूटते हैं। कितना भ्रष्टाचार करते हैं। सतयुग में होती है श्रेष्ठाचारी गवर्मेन्ट। तुम बहुत श्रेष्ठाचारी बन रहे हो। वहाँ पाप का नाम नहीं होता है। बाप आकर स्वर्ग के लायक बनाते हैं। सभी जो डर्टी हैं उनको गुल-गुल बनाते हैं, स्वर्ग स्थापन करके सर्व को सद्गति दे फिर खुद छिप जाता हूँ। मेरा पार्ट ही है सबको सद्गति देना। मैं सारी दुनिया को क्या से क्या बनाता हूँ। यह तो मनुष्य भी कहते हैं लड़ाई लगेगी। अखबारों में पड़ता है 5 वर्ष के अन्दर यह होगा, वह होगा। अच्छा विनाश होगा - भला फिर क्या होगा? यह विनाश भी क्यों होता है, कारण बतायें ना। तुम अब जानते हो बाप स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं तो नर्क का जरूर विनाश होगा। बाप आकर पुरानी दुनिया से नई दुनिया बनाते हैं। वहाँ अकाले मृत्यु होता नहीं। मरने का कभी डर नहीं रहता, आत्मा का ज्ञान रहता है। हम एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा लेते हैं। यह भी समझते हैं जो देरी से आयेंगे वह जरूर थोड़े जन्म लेंगे। हमारे 84 जन्म पूरे हुए हैं। यह दुनिया नहीं जानती है। तुम आत्माओं को परमपिता परमात्मा बैठ समझाते हैं। प्रजापिता के बच्चे तो आपस में भाई-बहिन ठहरे। तो कोई भी विकर्म कर नहीं सकते। यूँ कहते भी हैं हिन्दू चीनी भाई-भाई फिर विकार में कैसे जायेंगे। कहना तो सहज है परन्तु अर्थ नहीं समझते। भाई-भाई का अर्थ आत्मा पर चला जाता है। भाई बहिन के सम्बन्ध में विकार की दृष्टि ठहर न सके। लौकिक सम्बन्ध में भी नजदीक सम्बन्धी से अगर शादी करते हैं तो हाहाकार हो जाता है।

बाप समझाते हैं तुम सब देवी देवता सो श्रेष्ठाचारी थे फिर भ्रष्टाचारी बन गये हो। अब फिर श्रेष्ठाचारी बन रहे हो। हम सो श्रेष्ठाचारी, 16 कला थे। फिर 14 कला में आये फिर भ्रष्टाचारी बनते-बनते अब और ही तमोप्रधान भ्रष्टाचारी बन पड़े हैं। इस गोले के चित्र में भी क्लीयर लिखा हुआ है। वर्ण का रूप भी बनाते हैं। परन्तु उसमें चोटी ब्राह्मण नहीं बताते। न शिवबाबा, न ब्राह्मण ही दिखाते हैं। बाकी देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र दिखाते हैं। तुम अब जान गये हो कि हम बाजोली खेलते हैं। अभी हम ब्राह्मण सो फिर देवी देवता बनेंगे इसलिए दैवी गुण धारण करने हैं। अभी वापिस जाना है। फिर हमारे लिए सारी दुनिया स्वर्ग हो जायेगी। धरती को पानी मिल जायेगा। ऐसे-ऐसे रात को अच्छी रीति विचार सागर मंथन करो तो दिन में बहुत मदद मिलेगी। अभी हम जाते हैं स्वीट फादर के पास, जिसके लिए हमने दर-दर धक्के खाये हैं। रास्ता कहाँ से भी नहीं मिला है। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो वर्सा पाने का। परन्तु माया भी बड़ी प्रबल है। बहुत धोखा देती है। झट कान से, नाक से पकड़ लेती है। भ्रष्टाचारी बन पड़ते हैं। काम का नशा आ जाता है। किसके नाम रूप के पीछे लट्टू हो जाते हैं, जैसे आशिक माशूक। बहुत धोखा खाते हैं। लोभी भी एकदम नाम बदनाम कर देते हैं। यह सब कुछ होता ही रहता है। बाप समझाते हैं बच्चे, योग में रहना है। अच्छे जो योगी होते हैं वह 4-5 दिन भोजन न भी खावें तो भी उनको परवाह नहीं रहती है। बहुत खुशी में रहते हैं। अवस्था ऐसी रहनी चाहिए। देखना है मेरे में किसी चीज़ का लोभ तो नहीं है! एम रखनी चाहिए कि हम फुल पास होकर दिखावें। कल्प-कल्पान्तर की बाजी है। अपनी जांच करनी है - हम लक्ष्मी-नारायण को वरने अथवा राजाई लेने के लायक बना हूँ! अगर कोई खामियाँ हैं तो वह निकालनी पड़े, खामियाँ छिपी नहीं रह सकती। अब तुम्हारा कनेक्शन है शिवबाबा से। किसको दृष्टि देंगे उठाने के लिए। बाप बहुत मदद करते हैं। ब्रहमाकुमारियाँ कहती हैं यह हमने किया। हमने ऐसी अच्छी मुरली चलाई - यह अहंकार अवस्था को गिरा देता है। जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं, वह समझते हैं - बाबा की मदद मिलती है। कईयों में तो माया प्रवेश होने से गिर पड़ते हैं, इसमें पूरा आत्म-अभिमानी बनना चाहिए। देह में दृष्टि नहीं जानी चाहिए, बाबा शिक्षा देते रहते हैं सुधरते जाओ। माया का धोखा मत खाओ, नहीं तो पद गँवा देंगे। उस पति को तो तुम कितना याद करती हो और यह पतियों का पति जो तुम्हें अमृत पिलाते, कौड़ी से हीरा बनाते हैं उनको याद नहीं करते। ऐसे बाप को तो कितना याद करना चाहिए! श्रीमत पर पुरुषार्थ किया जाता है। कोई भी बात हो तो पूछना चाहिए बाबा मेरे में क्या अवगुण है! देह का भान तोड़ना है। जो पूरा बलि चढ़ते हैं, उनको 21 जन्मों का वर्सा मिलता है। पूरा बलि चढ़ने का मतलब है उसकी तरफ बुद्धि रहे। यह बच्चे आदि जो भी कुछ हैं, उनसे भी बुद्धि हट जानी चाहिए। बाबा कहते हैं उसके बदले में तुमको वहाँ सब कुछ नया मिलेगा। कहते हैं भगवान की कृपा से बच्चा मिला। अब भगवान खुद कहते हैं वह कृपा तो अल्पकाल की है। अब तो तुम्हारे पर बहुत कृपा करेंगे। तुमको कौड़ी से हीरे जैसा बना देंगे। गृहस्थ व्यवहार में रहते यह सब कुछ बाप का समझो। कदम-कदम पर राय लेते रहो। बाप ही राय देंगे। कोई उल्टा काम नहीं करने देंगे। विकारी को नहीं देने देंगे। अविनाशी सर्जन से कुछ भी छिपाना नहीं है। कदम-कदम पर पूछना है। बहुत बच्चे पूछते भी हैं, लिखते भी हैं बाबा यह विकार सताते हैं। कोई तो काला मुँह करके भी बताते नहीं। छिपाते रहेंगे तो और ही काले होते जायेंगे। अच्छा-

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) फुल पास होने के लिए जो भी खामियाँ हैं, विकारों का अंश है उसे समाप्त कर देना है। किसी भी बात का अहंकार नहीं रखना है।
2) दृष्टि बहुत पवित्र शुद्ध बनानी है। कभी भी किसी देहधारी के पीछे लटकना नहीं, पूरा आत्म-अभिमानी बनना है।
वरदान:
सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए सर्व प्राप्तियों में सम्पन्न और सन्तुष्ट भव
जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में समाये हुए हैं -बाप उनसे जुदा नहीं और वे बाप से जुदा नहीं। हर समय बाप के स्नेह के रिटर्न में सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न और सन्तुष्ट रहते हैं इसलिए उन्हें और किसी भी प्रकार का सहारा आकर्षित नहीं कर सकता। स्नेह में समाई हुई आत्मायें सदा सर्व प्राप्ति सम्पन्न होने के कारण सहज ही “एक बाप दूसरा न कोई” इस अनुभूति में रहती हैं। समाई हुई आत्माओं के लिए एक बाप ही संसार है।
स्लोगन:
हद के मान-शान के पीछे दौड़ लगाने के बजाए स्वमान में रहना ही श्रेष्ठ शान है।