Monday, February 20, 2017

मुरली 20 फरवरी 2017

20-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– अपने दिल रूपी दर्पण में देखो कि अन्दर में कोई भूत तो नहीं है, भूतों को निकालने का प्रयत्न करते रहो”
प्रश्न:
बाप और बच्चों के बीच, संगम पर दुनिया से बिल्कुल न्यारी रसम चलती है, वह कौन सी?
उत्तर:
में बच्चे बाप को नमस्ते करते हैं लेकिन यहाँ बाप बच्चों को नमस्ते करते हैं। बाप खुद कहते हैं मीठे बच्चे, मैं तुम्हारी सेवा में आकर उपस्थित हुआ हूँ, तो तुम बच्चे मेरे से भी बड़े ठहरे। दूसरा मैं निरहंकारी, निराकारी बाप हूँ तो जरूर मैं पहले नमस्ते करूँगा। यह भी संगम की न्यारी रसम है।
गीत:
जाग सजनियां जाग...  
ओम् शान्ति।
आने से पहले-पहले बाप बच्चों से नमस्ते करे या बच्चे बाप को नमस्ते करें? (बच्चे बाप को करें) नहीं। पहले बाप को नमस्ते करना पड़े। संगमयुग की रसम-रिवाज ही सबसे न्यारी है। बाप खुद कहते हैं– मैं सभी का बाप, तुम्हारी सेवा में आकर उपस्थित हुआ हूँ तो जरूर बच्चे बड़े ठहरे ना। दुनिया में तो बच्चे बाप को नमस्ते करते हैं, यहाँ बाप बच्चों को नमस्ते करते हैं। गाया भी हुआ है निराकारी, निरहंकारी तो वह भी दिखलाना पड़े ना। वो तो सन्यासियों के चरणों में झुकते हैं, चरणों को चूमते हैं समझते कुछ भी नहीं। बाप तो आते ही हैं कल्प के बाद बच्चों से मिलने। तुम बहुत सिकीलधे बच्चे हो, इसलिए कहते हैं मीठे बच्चे तुम थक गये हो। द्रोपदी के पांव दबाये तो सर्वेन्ट हुआ ना। “वन्दे मातरम्” किसने उच्चारा है? बाप ने। बच्चे समझते हैं बाप आया हुआ है, सारी सृष्टि की बेहद की सेवा पर। सृष्टि पर कितना किचड़ा है, यह है नर्क। तो बाप को आना पड़ता है नर्क को स्वर्ग बनाने। बहुत दिल से आते हैं। जानते हैं मुझे बच्चों की सेवा में आना है। कल्प-कल्प सेवा पर उपस्थित हुए हैं। यहाँ बैठे सभी की सेवा हो जाती है। ऐसे नहीं कि सभी के पास जाना होगा। सारी सृष्टि का कल्याणकारी दाता तो एक है ना। उनकी भेंट में मनुष्य कोई सेवा कर न सकें। उनकी है बेहद की सेवा।

गीत: जाग सजनियां जाग... कितना अच्छा गीत है। नवयुग पर भी समझाना चाहिए। युग भी भारतवासियों के लिए ही हैं। भारतवासियों से फिर वह सुनते हैं कि सतयुग त्रेता होकर गये हैं क्योंकि वह आते ही हैं द्वापर में। तो औरों से सुनते हैं कि भारत प्राचीन खण्ड था, उसमें देवतायें राज्य करते थे। आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, जो अभी नहीं है। गीता है– देवी-देवता धर्म का माई बाप। बाकी सब बाद में आते हैं। तो यह हुआ प्राचीन सब धर्मो के लिए। वास्तव में एक गीता ही है मुख्य, जो सबको माननी चाहिए। परन्तु मानते कहाँ हैं। वे अपने धर्म शास्त्र को ही मानते हैं। यह तो जानते नहीं कि भगवान ने गीता कब उच्चारी? गीता है बाप की उच्चारी हुई। उसमें बाप के बदले बच्चे का नाम डाल मुश्किलात कर दी है, इसलिए सिद्ध नहीं होता कि शिवरात्रि कब मनावें। शिवजयन्ती के बाद होती है कृष्ण जयन्ती। कभी भी श्रीकृष्ण यज्ञ नहीं गाया जाता। रूद्र ज्ञान यज्ञ ही गाया जाता है। उनसे ही विनाश ज्वाला प्रज्वलित हुई, सो तो बरोबर देख रहे हो। आदि सनातन देवी-देवता धर्म की फिर से स्थापना हो रही है फिर यह और अनेक धर्म रहेंगे नहीं। कृष्ण भी तब आये जब और सब धर्म न हों। बाकी सब आत्मायें मुक्तिधाम में रहती हैं। भगवान से तो सबको मिलना होता है ना। सभी बाप को सलाम करेंगे। बाप भी फिर आकर बच्चे को सलाम करते हैं। बच्चे फिर बाप को करते हैं। इस समय बाप साकार में आया हुआ है। यहाँ तो सभी आत्मायें बाप से मिल न सकें क्योंकि कोटों में कोई ही आयेंगे। तो सभी भगत कब और कहाँ मिलेंगे? जहाँ से भगवान से बिछुड़े हैं, वहाँ ही जाकर मिलेंगे। भगवान का निवास स्थान है ही परमधाम। बाप कहते हैं सब बच्चों को दु:ख से लिबरेट कर परमधाम ले जाता हूँ। यह काम उनका ही है। बाप को आना ही है पतित सृष्टि को पावन बनाने। हेविनली गॉड फादर है तो जरूर स्वर्ग क्रियेट करेंगे ना। नर्क की स्थापना रावण, स्वर्ग की स्थापना बाप करते हैं। इनका राइट नाम है शिव, बिन्दू। आत्मा भी बिन्दू है, भ्रकुटी के बीच इतनी ही रह सकेगी। तो जैसी आत्मा है वैसा परमात्मा है। परन्तु वन्डर है जो इतनी छोटी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है, जो कभी घिसता नहीं। फार एवर चलता रहेगा। कितनी गुह्य बातें हैं। अब मनुष्य शान्ति मांगते हैं क्योंकि सब शान्ति में ही जाने वाले हैं। कहते हैं सुख काग विष्टा के समान है। अब गीता में तो है राजयोग से राजाओं का राजा बनना, तो जो सुख को काग विष्टा समान समझते हैं उन्हों को राजाई कैसे मिले। यह तो प्रवृत्ति मार्ग की बात है। गृहस्थ व्यवहार में रहते तुमको कमल फूल समान पवित्र रहना है। सन्यासियों का यह काम नहीं। नहीं तो खुद क्यों घरबार छोड़ते। तुम कहते हो चैरिटी बिगन्स एट होम। शिवबाबा भी कहते हैं मैं पहले इस (साकार ब्रह्मा) को समझाता हूँ। शिवबाबा का यह चैतन्य होम है। पहले-पहले यह (ब्रह्मा) सीखते हैं फिर उनसे एडाप्टेड चिल्ड्रेन नम्बरवार सीख रहे हैं। यह बड़ी गुह्य बातें हैं। सद्गति दाता पतित-पावन खुद आकर यह सब राज समझाते हैं। ऐसे नहीं कि वहाँ से प्रेरणा करते हैं। वह तो यहाँ आते हैं। यादगार भी है शिव के अनेक मन्दिर हैं। खुद कहते हैं मैं साधारण ब्रह्मा तन में आता हूँ। यह खुद अपने जन्मों को नहीं जानते हैं, इसमें एक की बात नहीं। सभी ब्रह्मा मुख वंशावली बैठे हो, ब्रह्मा मुख के द्वारा तुम ब्राह्मण रचे गये हो। तुम ब्राह्मणों को ही समझाते हैं। यज्ञ हमेशा ब्राह्मणों द्वारा ही चलता है। उन गीता सुनाने वालों के पास ब्राह्मण तो हैं नहीं, इसलिए वह यज्ञ भी नहीं ठहरा। यह तो बेहद के बाप का रचा हुआ बहुत बड़ा भारी यज्ञ है। कब से डेगियां (बड़े-बड़े पतीले) चढ़ते आये हैं। भण्डारा अब तक चलता ही रहता है। समाप्त कब होगा? जब सारी राजधानी स्थापन हो जायेगी। बाप कहते हैं तुमको वापिस घर ले जायेंगे फिर नम्बरवार पार्ट बजाने भेज देंगे। ऐसे और कोई कह न सके कि मैं तुम्हारा पण्डा हूँ, तुमको साथ ले जाऊंगा। पतित मनुष्यों को पावन बनाकर ले जाते हैं। फिर अपने-अपने धर्म स्थापन करने समय पार्ट बजाने आत्मायें आना शुरू करती हैं। अनेक धर्म अभी हैं, बाकी एक धर्म नहीं है। तो गीता है सभी शास्त्रों में शिरोमणी क्योंकि उनसे सबकी गति सद्गति होती है। भारतवासियों में भी ज्ञान वह लेते हैं जो अत्मायें पहले-पहले परमात्मा से अलग हुई हैं। पहले-पहले वह आना शुरू करेंगी नम्बरवार फिर सबको आना है। सतो रजो तमो से तो सबको पास करना है। अब कल्प की आयु पूरी हुई है। सब आत्मायें हाजर हैं। बाप भी आ गये हैं। हर एक को अपना पार्ट बजाना है। नाटक में सब एक्टर्स स्टेज पर इकठ्ठे तो नहीं आते। अपने टाइम पर आते हैं। बाप ने समझाया है– नम्बरवार कैसे आते हैं। वर्णो का भी राज समझाया है। चोटी तो ब्राह्मणों की है परन्तु ब्राह्मणों को भी रचने वाला कौन है। शूद्र तो नहीं रचेंगे। चोटी के ऊपर फिर है ब्राह्मणों का बाप ब्रह्मा। ब्रह्मा का बाप फिर है शिवबाबा। तो तुम हो शिववंशी ब्रह्मा मुख वंशावली। तुम ब्राह्मण सो फिर देवता बनेंगे। वर्णों का हिसाब समझाना है। बच्चों को राय भी दी जाती है सभी एक जैसे होशियार तो नहीं हैं। कोई नये के आगे विद्वान, पण्डित आकर डिबेट करेंगे तो वह समझा नहीं सकेंगे। तो कहना चाहिए मैं तो नई हूँ, आप फलाने टाइम पर आना फिर हमारे से बड़ी बहन आपको समझायेंगी। मेरे से तो तीखे हैं। क्लास में नम्बरवार तो होते हैं। इसमें देह-अभिमान नहीं आना चाहिए। नहीं तो आबरू चली जाती है। कहेंगे बी.के. तो पूरा समझा नहीं सकती। देह-अभिमान को छोड़ रेफर करना चाहिए बड़ों की तरफ, बाबा भी कहते हैं ना– हम ऊपर से पूछेंगे। महारथी, घोड़ेसवार प्यादे तो हैं ना। किन्हों की शेर पर सवारी भी है। शेर सबसे तीखा होता है। जंगल में अकेला रहता है और हाथी हमेशा झुण्ड में रहता है। अकेला हो तो कोई मार भी दे। शक्तियों की भी शेर पर सवारी दिखाते हैं। बच्चों को समझाया है– गीता का भगवान कृष्ण कहना रांग है। कृष्ण के शास्त्र को सभी धर्म वाले तो नहीं मानेंगे। प्राचीन देवी-देवता धर्म किसने स्थापन किया वह सिद्ध कर बताना है। उनको गॉड गॉडेज भी कहते हैं। ईश्वर तो अलग है। लक्ष्मी-नारायण को भगवान भगवती कहते हैं, वह पालना के निमित्त हैं। अगर लक्ष्मी-नारायण को भगवान भगवती कहते तो विष्णु शंकर को पहले भगवान कहना पड़े। तुम जानते हो भगवान बिना गीता कोई बोल न सके। भगवान के मुख की गाई गीता है। श्री श्री रूद्र की गीता है, इनको कोई अपना मुख बना न सके। गीता सिवाए शिवबाबा के और किसके मुख से आ न सके। गीता माता है, उनका रचयिता शिवबाबा है, वह बैठ ओरली समझाते हैं। वह ज्ञान का सागर है ना। तो रचयिता ही रचना की नॉलेज देंगे इसलिए ऋषि मुनि भी कहते हैं बेअन्त है। ईश्वर की गत मत ईश्वर जाने। अब ईश्वर की मत सो है श्रीमत, जिससे सद्गति मिल जाती है सो तो ठीक है। गति के साथ सद्गति दोनों कहना पड़े क्योंकि भारत में जब स्वर्ग होता है तब और धर्म वाले गति में होते हैं। भारतवासी सद्गति अर्थात् जीवनमुक्ति में हैं। यह सब राज बाबा समझाते हैं जो धारण करना है। भक्ति मार्ग वाले कहते हैं वेद शास्त्र आदि सबसे ईश्वर का रास्ता मिलता है, परन्तु ऐसे तो है नहीं। यह कोई शिमला की पहाड़ी थोड़ेही है जो जहाँ से भी जाओ तो पहुंच जायेंगे। यहाँ तो साजन को सजनियों के पास आना पड़े। सजनियों का श्रंगार कराना पड़े, स्वर्ग का मलिक बनाने के लिए। सब महाराजा महारानी बनने चाहते हैं, परन्तु बाबा कहते हैं अपना मुँह तो पहले देखो। नारद की बात भी अभी की है। उनको लक्ष्मी को वरने की दिल हुई तो उसको कहा पहले अपनी शक्ल तो देखो। बाबा भी कहते हैं अपना दिल रूपी दर्पण देखो। काम का भूत तो नहीं आता? जांच करते रहो और भूतों को निकालने का प्रयत्न करते रहो। युक्तियां तो बाबा सब बतलाते रहते हैं। मन में संकल्प तो बहुत आयेंगे, कर्म में नहीं आना चाहिए। बाबा अच्छे कर्म सिखलाते हैं ना। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति का ज्ञान भी गीता में है और तो कोई नहीं जानते। विकर्म कराने वाली है माया, वह सतयुग में होती नहीं। अब श्रीमत पर चलने से ही तुम स्वर्ग में चल सकते हो। यह किसी मनुष्य की मत नहीं है। बाप की श्रीमत से स्वर्ग बन रहा है औरों की मत से स्वर्गवासी बन न सकें और भी भ्रष्ट बनते जायेंगे। तुम बच्चे जानते हो अब एक धर्म की स्थापना हो रही है। तुम योगबल से गुप्त वेष में अपनी किंगडम स्थापन कर रहे हो। हाथ में हथियार आदि तो कुछ हैं नहीं। ज्ञान के बाण वा तीर आदि हैं। उन्होंने फिर स्थूल में दिखा दिया है। यह है सब गुप्त शक्ति। शक्तियों की देखो कितनी पूजा होती है। 10-20 भुजाओं वाली तो कोई है नही। सबकी दो भुजायें होती हैं। मनुष्य सृष्टि में 8-10 भुजा वाले कोई होते नहीं। सूक्ष्मवतन में विष्णु को 4 भुजा दिखाते हैं, वह भी अर्थ सहित हैं। बीज को जानने से सारे झाड़ का ज्ञान आ जाता है। अच्छा– ज्ञान का खजाना तो बच्चों को मिलता रहता है फिर मुख मीठा कराने के लिए बच्चों को टोली खिलाते हैं। शिवबाबा खुद नहीं खाते, सब बच्चों के लिए ही है। राज्य भी बच्चों के लिए है। लक्ष्मी-नारायण भी जरूर अपने बच्चों को देंगे। सबको तो बांट नहीं देंगे, यह बाप सभी बच्चों को देते हैं। वहाँ प्रजा भी कहेगी हम स्वर्ग के मालिक हैं। सुख तो प्रजा को भी है। दु:ख का नाम भी नहीं। बाकी नम्बरवार तो होते ही हैं। वहाँ तो सोना भी अथाह होता है। यहाँ तो सब खानियां खाली हो गई हैं। गायन भी है किसकी दबी रही धूल में, किनकी राजा खाए...। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। माताओं को वन्दे मातरम्। बच्चों को यादप् यार और सबको गुडमर्निंग। अब रात पूरी होती है, गुडमार्निग आ रहा है। नया युग आ रहा है ब्रह्माकुमार कुमारियों के लिए। अच्छा। ओम् शान्ति।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) देह-अभिमान को छोड़ अपने से बड़ों को आगे रखना है। कोई डिबेट करता है तो बड़ों तरफ रेफर करना है। आबरू नहीं गँवानी है।
2) चैरिटी बिगन्स एट होम। पहले परिवार का कल्याण करना है, गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनना है।
वरदान:
ब्राह्मण जीवन में कम खर्च बालानशीन करने वाले अलौकिकता सम्पन्न भव
इस अलौकिक ब्राह्मण जीवन का विशेष स्लोगन है “कम खर्च बालानशीन”। खर्च कम हो लेकिन प्राप्ति शानदार हो अर्थात् रिजल्ट अच्छे से अच्छी हो। अलौकिकता सम्पन्न जीवन तब कहेंगे जब बोल में, कर्म में खर्च कम हो। कम समय में काम ज्यादा हो, कम बोल में स्पष्टीकरण ज्यादा हो, संकल्प कम हो लेकिन शक्तिशाली हों-इसको कहा जाता है कम खर्च बालानशीन। जो सर्व खजाने कम खर्च करते हैं उनके भण्डारे भरपूर हो जाते हैं।
स्लोगन:
बाप और सेवा से सच्चा प्यार है तो परिवार का प्यार स्वत: मिलता है।