Monday, February 13, 2017

मुरली 13 फरवरी 2017

13-02-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– कदम-कदम पर बाप की श्रीमत पर चलना, बाप की शिक्षाओं को धारण करना, यही अपने ऊपर कृपा करना है”
प्रश्न:
बच्चू बादशाह और पीरू वजीर दोनों इस समय हरेक के अंग-संग हैं– कैसे?
उत्तर:
बच्चू बादशाह है काम विकार और पीरू वजीर है क्रोध। दोनों का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है। सभी मनुष्य इस समय इन दो के वशीभूत हैं। अगर कोई बाप का बच्चा कहलाकर फिर काम या क्रोध के वशीभूत होता है तो बाप का निंदक बन जाता है। निंदक बच्चे अपनी तकदीर को लकीर लगाते हैं। बाबा कहते मीठे बच्चे, इन दुश्मनों को जीतो। क्रोध के लिए तो कहा जाता– जहाँ क्रोध है वहाँ पानी के मटके भी सूख जाते हैं।
गीत:
बचपन के दिन भुला न देना...   
ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कि सभा में कौन आया? बाप और दादा इकठ्ठे। अगर साकारी होता तो बाप अलग, दादा अलग होना चाहिए। यह है वन्डरफुल निशानी। कौन आया? बच्चों की बुद्धि कहती है शिवबाबा आया। स्वर्ग का रचयिता एक ही बाप होता है, दो नहीं। हाँ मददगार जरूर मिलते हैं। बाप और बच्चे– दोनों से काम चलता है। बलिहारी बाप की, सो बलिहारी बच्चों की, यह दादा भी बच्चा हो गया ना। यहाँ तुम क्लास में आते हो। सभा अक्षर भी कॉमन है। सभायें तो बहुत होती हैं, यह है भगवान की पाठशाला। सब तरफ देखा जाता है कि बरोबर यह नॉलेज सुनकर धारण कर रहे हैं, इनका मुखड़ा प्रफुल्लित हो रहा है। सुनते-सुनते खुशी का पारा चढ़ता है। हद के बाप टीचर गुरू भी होते हैं। यह है बेहद का बाप टीचर। वह आज तुमको पढ़ा रहे हैं तो कितना खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। बच्चे भी ढेर हैं। शिव भगवानुवाच वा शिवाचार्य भी कह सकते हैं। वह है ज्ञान का सागर। शिवाचार्य के बाद फिर शंकराचार्य आते हैं। सन्यास भी दो प्रकार का है। यह है सतोप्रधान देवी-देवता बनने के लिए सन्यास। सहज योग है। तुम जानते हो बाप इस दादा के तन में आया हुआ है, इसलिए बापदादा कहना पड़े। ग्रैन्ड चिल्ड्रेन होते हैं ना। वह तो साकार फादर ही गैन्ड फादर, ग्रेट ग्रैन्ड फादर बनते हैं। यहाँ है निराकार ग्रैन्ड फादर। बाबा इसमें प्रवेश कर तुमको सुनाते हैं। जो ब्राह्मण कुल के बने हैं वह ईश्वरीय सन्तान ठहरे। कहते हैं हे परमपिता परमात्मा हम आपके थे फिर 84 जन्म का पार्ट बजाया। कितनी सहज बात है। लौकिक में भी बाप को 5-7 बच्चे होते हैं तो उनमें से एक दो कपूत निकल पड़ते हैं। इस बाप को कितने बच्चे हैं, तो कितने कपूत और सपूत होंगे। कोई में काम की, कोई में क्रोध की प्रवेशता होगी। घर में किसी एक को भी क्रोध होता है तो लड़ाई हो जाती है, क्रोधी घर को बड़ा दु:खी कर देता है। यहाँ भी कोई में क्रोध का भूत है तो शिवबाबा का निंदक ठहरा ना। बाप का नाम बदनाम कर देते हैं अर्थात् अपनी तकदीर को लकीर लगा देते हैं। क्रोध बहुत बड़ा भारी दुश्मन है, जहाँ क्रोध, कलह-क्लेष होती है उनको नर्क कहा जाता है। कहते हैं क्रोध घर के मटके का पानी भी सुखा देता है। तो बाप समझाते हैं जिनमें क्रोध है उनको श्रीमत मिलती है कि क्रोध से किसको दु:खी मत करो, नहीं तो तकदीर में लकीर लग जायेगी। पद भ्रष्ट हो जायेगा। ईश्वरीय सन्तान के बदले आसुरी सन्तान बन जायेंगे। यहाँ तो लिखा ही जाता है डीटी सावरन्टी इज योर गॉड फादरली बर्थ राइट। तुम्हारा हक है सतयुग का पूरा वर्सा लेने का। पूरा वर्सा ले लक्ष्मी-नारायण बनना है। अगर कोई स्वर्ग में प्रजा में भी आये तो भी अहो सौभाग्य। आयेगा तो सही ना। धीरे-धीरे स्थापना होती जाती है। फिर उनसे प्रतिज्ञा कराई जाती है। कंगन बांधो। कोई छिपा तो रह नहीं सकेगा। अभी तुम ब्राह्मण हो ईश्वरीय सन्तान। बाबा पूछते हैं तुम्हारा कुल बड़ा या दैवी कुल बड़ा? ऊंचा कौन सा है? (ब्राह्मणों का) हम देवताओं को भी इतना ऊंच नहीं कहते। ब्राह्मण हैं ईश्वरीय कुल के। यह भारत को स्वर्ग बनाते हैं। ब्राह्मणों को चोटी कहेंगे। वास्तव में शिव का मन्दिर बनाना ही चाहिए ऊंची पहाड़ी पर। परन्तु आजकल कोई जा नहीं सकते तो शहर में बना देते हैं। ऊंचे ते ऊंचा है शिवबाबा तो उनका मन्दिर भी ऊंची चोटी पर होना चाहिए। अब देखो दुनिया का क्या हाल हो गया है। सबकी बरबादी हो गयी है। बाप आकर सबको आबाद करते हैं। संगमयुग पर तुम सब आबाद होते हो। पूरे 63 जन्म नर्कवासी बनें। एक्यूरेट हिसाब है। 21 जन्म तुमने स्वर्ग में राज्य किया फिर 63 जन्म गिरते आते हो। कलायें कमती होती जाती हैं। अभी कोई कला नहीं रही है। धूल में पड़े हैं। कहावत है ना– सौ सौ करे श्रृंगार... यह भी अभी के लिए कहावत है। बाबा कहते हैं मैं तुमको श्रृंगार करता हूँ कि ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनो फिर विकार मिट्टी में गिरा देते हैं। क्रोध की धूल तंग करती रहती है, क्रोधी बहुत होते हैं। हिंसा भी क्रोध है ना। क्रोध के बिगर चढ़ाई कर न सकें। प्रापर्टी का हिस्सा न मिला, गुस्सा लगा तो भाई को भी मार देते हैं। यह लड़ाई क्रोध से शुरू होती है। बाप समझाते हैं लाडले बच्चे क्रोध नहीं करो, नहीं तो तकदीर को लकीर लग जायेगी और जो साथी होंगे उनकी तकदीर को भी लकीर लग जायेगी। क्रोध में आकर कहते तुम अगर हमारे घर में आये तो मार डालूँगा। अभी बाप तुम माताओं को आगे रखते हैं। तुम जानते हो हम शिव शक्तियां कल्प-कल्प बनती हैं। शिवबाबा आकर हमको अपना बनाते हैं। तुम बच्चे न हो तो अकेला शिवबाबा भी क्या करेगा। तुम शिव शक्तियां भारत में मशहूर हो। अपना यादगार मन्दिर न देखा हो तो आबू में देखो। हूबहू तुम्हारा यादगार है। हाथी पर सवारी करने वालों का भी चित्र है। वन्डर है जो तुम्हारा भी निवास यहाँ आकर हुआ है। बाबा ने कहा है– मन्दिरों में जाकर उनसे पूछो कि तुम जानते हो यह कब होकर गये हैं? शिव जयन्ती मनाते हो तो जरूर आया होगा ना। कब और कैसे आया, मालूम है? जिसने भारत को हीरे जैसा बनाया, उनके आक्यूपेशन को नहीं जानते हो! देवता ही पहले ब्राह्मण थे जो हीरे जैसा बनते हैं, जिन ब्राह्मणों ने मदद की वह देवता बने। तुम सबका आक्यूपेशन समझा सकते हो। परन्तु समझेंगे बहुत थोड़े क्योंकि राजधानी की लिमिट है ना, इसलिए कोटों में कोई कहा जाता है। मम्मा बाबा कहकर भी फिर भूल जाते हैं। अहो माया तुम कितनी दुश्तर हो। यह तो होता ही है। बड़े-बड़े कमान्डर्स भी मर पड़ते हैं, गोली लग जाती है। सिपाही तो ढेर मरते हैं। जब बड़े-बड़े मरते हैं तो हाहाकार हो जाता है। शिव शक्ति सेना में फलाने को माया ने मार डाला। यह फिर भी होना ही है। प्यादा मर जाये, उनका इतना ख्याल नहीं। महारथी के लिए सब कहेंगे हाय माया ने इनको मार डाला। ऐसे नहीं कि स्वर्ग में नहीं जायेगा। भल आयेगा परन्तु पद भ्रष्ट हो पड़ेगा इसलिए बाबा कहते हैं उस लाइन में नहीं जाना। कल्प पहले जो गये हैं वह तो जायेंगे ही। समाचार लिखते हैं फलाना 4 वर्ष से रेग्यूलर आता था फिर माया ने पकड़ लिया है। जैसे मक्खी मरती है तो चींटियां उसे एकदम खाकर खलास कर देती हैं। माया के 5 भूत उनकी सत्यानाश कर देते हैं। अब तुम बच्चे सबका आक्यूपेशन जानते हो। इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन कितने जन्म लेते हैं, वह भी तुम जानते हो। कितना बुद्धि का ताला खुल गया है, ज्ञान का तीसरा नेत्र जबरदस्त मिला हुआ है। बाबा कहते हैं– गीता है सबसे मुख्य। बाकी सब हैं उनके बाल बच्चे। गीता है माई बाप। माई गीता और बाप शिव। उनसे हम पैदा हो रहे हैं। वैसे ही और शास्त्र भी सब उनसे पैदा होते हैं। जैसे आत्माओं का हेड शिवबाबा सबसे ऊपर में है वैसे सब शास्त्रों से ऊपर है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी श्रीमत भगवत गीता। सिर्फ कृष्ण भगवानुवाच डालने से सारा गीता का प्रभाव उड़ा दिया है। यह भी ड्रामा में है। मूल बात है निरन्तर शिवबाबा को याद करते रहो। जो बाप की श्रीमत पर पूरी रीति चलते रहते हैं, उनकी याद भी वृद्धि को पाती रहेगी। जितना आज्ञाकारी, वफादार होकर रहेंगे, कहेंगे बाबा मैं आप पर बलिहार जाता हूँ। देह सहित सब कुछ भूल अकेला बनना है। इतना सन्यास करना पड़े। बहुत बच्चे हैं जो बिल्कुल बंधनमुक्त हैं। आते रहते हैं तो भी जैसे मोह के कीड़े। पति वा बच्चों के साथ मोह है तो शिवबाबा के साथ बुद्धियोग लगा न सकें। जब तक सच्ची दिल से साहेब पर बलिहार न जायें। गपोड़े तो भल लगावें परन्तु इसमें बलिहारी पूरी चाहिए। पूरा ट्रस्टी बनना है। कदम-कदम पर श्रीमत लेनी पड़े। बहुत बच्चे हैं जो शिवबाबा को पोतामेल भेज देते हैं। फिर पूछते हैं शादी करायें, मकान बनायें। बाबा कहेंगे भल बनाओ हर्जा नहीं। कभी ना नहीं की जाती। जब नष्टोमोहा बन जाते हैं तो पूछने की भी दरकार नहीं। ऐसे नहीं कि कोई पूछे विकार में जाऊं... तो कहेंगे हाँ भले जाओ। नहीं, यह तो फिर मुर्खता कहेंगे। बाकी कोई बात में नुकसान नहीं है तो भले करो। नष्टोमोहा हो, फिर तो जो चाहे सो करो। बाप जानते हैं तुम सर्विस में तत्पर रहेंगे, बाप को फालो करते रहेंगे। यह पुराने बच्चे सब बलि चढ़े हुए थे ना। बलिहारी की भी महिमा है। है तो सब गरीब। मातायें बड़ी अच्छी हैं– इन्हों को क्या बलि चढ़ना है। बलि चढ़ना होता है साहूकारों को। स्त्री को तो कुछ देते नहीं हैं। कोई विरले स्त्री के नाम पर सब विल कर जाते हैं। नहीं तो बच्चे आदि सब लूट लेते हैं। आजकल तो कोई भी कुछ सुनता नहीं दो पैसा दो, काम निकल जायेगा। जजमेंट भी झूठी दे देंगे फिर भल कोई का बेड़ा गर्क हो जाए। बाबा को तो कहा जाता है सुप्रीम जस्टिस, सुप्रीम टीचर, सुप्रीम सतगुरू। फिर सुप्रीम धर्मराज भी कहा जाता है। उनकी जजमेंट में नीचे ऊपर कुछ नहीं हो सकता। ड्रामा में ऐसी नूँध ही नहीं। बाकी यहाँ तो एक दो के ऊपर बहुत कोर्टें (न्यायालय) हैं। कहाँ-कहाँ तो प्रेजीडेन्ट की भी नहीं चलती। बाप कहते हैं लाडले बच्चे– अशरीरी बनना है। बाप के साथ चलना है। बाप गाइड है ना। लिबरेटर भी उनको कहते हैं। सब टाइटल उनके हैं। पीस मेकर भी वही है। आजकल यहाँ भी पीस प्राइज देते रहते हैं। पीसलेस बनाने वाली है माया। पीस होती है सतयुग में वा मुक्तिधाम में। निर्वाणधाम में तो बिल्कुल ही पीस है। सतयुग में भी 100 प्रतिशत पीस, प्योरिटी और प्रासपर्टा है। नाम ही है सुखधाम। दु:खधाम में पीस कहाँ से आई। सन्यासियों को थोड़ी बहुत शान्ति है। परन्तु वह तो है काग विष्टा समान। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। यहाँ का तो राज्य भी काग विष्टा समान है। बाबा समझाते हैं– माया बहत थप्पड़ मारेगी। अन्दर घुटका खाते रहते हैं। सच नहीं बतलाते। अविनाशी सर्जन के आगे तो बतलाना पड़े ना। नहीं तो पाप बढ़ते जायेंगे। फिर बड़ी सजा है। सच नहीं बोलते। अच्छा आगे तो पाप नहीं करें ना। बदनामी करने की सजा बहुत भारी है। बाप आये हैं स्वर्ग का मालिक बनाने। इसमें जो विघ्न डालते हैं वह सजा लायक बन पड़ते हैं। असुर विघ्न डालते हैं। तुम बच्चों को तो नहीं डालना चाहिए। इसमें ही तुम बच्चों का कल्याण है। क्रोधी का मुँह देखना भी पाप हो जाता है। हियर नो ईविल... क्रोधी का मुँह भी नहीं देखना चाहिए। लोभ मोह भी कम नहीं है। बच्चू बादशाह है काम, पीरू वजीर है क्रोध। यह दोनों बड़े डाकू हैं। क्रोध बड़ा गन्दा डाकू है। सपूत बच्चे वह हैं जो बाप से पूरा वर्सा लेकर नाम बाला करते हैं। यह बाबा कहते कि बच्चियां हमसे होशियार हैं। शिवबाबा से तो हाशियार कोई हो न सके। बाप ही बच्चों को सिर पर चढ़ाते हैं। बेहद के बापदादा को भी बच्चों के लिए रिगार्ड प्यार है। चाहते हैं हर एक बच्चा अपना राज्य भाग्य ले। सदा सुखी बनें। बाप तो कहेंगे बच्चे जीते रहो। आयुश्वान भव। बाप जो शिक्षा देते हैं वह धारण करने की अपने ऊपर कृपा करो। श्रीमत पर नहीं चलेंगे तो तकदीर को लकीर लगायेंगे। तुम जानते हो शिवबाबा परमधाम से आये हैं स्वर्ग का वर्सा देने फिर जितना जो पुरूषार्थ करेगा। जितना अपने ऊपर कृपा करेंगे उतना अपने को ऊंचा बनायेंगे। विकार में गया तो दीपक बुझ जायेगा। फिर ज्ञान घृत धारण नहीं होगा। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) दिल से साहेब पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है। पूरा ट्रस्टी बन कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। देह सहित सब कुछ भूल अकेला बन जाना है।
2) बच्चा बनने के बाद बाप के कार्य में विघ्न नहीं डालना है। कोई भी बदनामी का कार्य नहीं करना है। आज्ञाकारी, वफादार बनना है।
वरदान:
बहानेबाजी के खेल को समाप्त करने वाले मास्टर दातापन के स्वमानधारी भव !
जिन बच्चों को बहानेबाजी का खेल आता है वह कहेंगे-ऐसे नहीं होता तो वैसा नहीं होता, इसने ऐसे किया, सरकमस्टांश वा बात ही ऐसी थी....अब इस बहानेबाजी की भाषा को समाप्त कर दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि ऐसा हो या वैसा लेकिन मुझे तो बाप जैसा बनना है। दूसरा सहयोग दे तो मैं सम्पन्न बनूं, नहीं। इस लेने के बजाए मास्टर दाता बन सहयोग, स्नेह, सहानुभूति देना ही लेना है। इस भावना से मास्टर दातापन के स्वमानधारी बन जायेंगे।
स्लोगन:
जब मैं और मेरे पन के भावों से वैराग्य हो तब कहेंगे बेहद के वैरागी।