Saturday, December 24, 2016

मुरली 25 दिसंबर 2016

25-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:02-01-82 मधुबन

विश्व-परिवर्तन की जिम्मेवारी– संगमयुगी ब्राह्मणों पर
बापदादा अपने ब्राह्मण कुल दीपकों से मिलने के लिए आये हैं। चैतन्य दीपकों की माला को देख रहे हैं। हर एक दीपक विश्व को रोशन करने वाले चैतन्य दीपक हैं। सर्व दीपकों का सम्बन्ध एक जागती-ज्योति से है। हर दीपक की रोशनी से विश्व का अधंकार मिटता हुआ, रोशनी की झलक आ रही है। हर दीपक की किरणें फैलती हुई विश्व के ऊपर प्रकाश की छत्रछाया बनी हुई हैं। ऐसे दृश्य बापदादा दीपकों का देख रहे हैं। आप सभी भी सर्व दीपकों की मिली हुई रोशनी की छत्रछाया देख रहे हो? लाइट माइट स्वरूप अनुभव कर रहे हो? स्व-स्वरूप में भी स्थित और साथ-साथ विश्व की सेवा भी कर रहे हो। स्व-स्वरूप और सेवा स्वरूप दोनों साथ-साथ अनुभव कर रहे हो? इसी स्वरूप में स्थित रहो। कितना शक्तिशाली स्वरूप है। विश्व की आत्मायें आप जगते हुए दीपकों की तरफ कितना स्नेह से देख रही हैं। अनुभव करते रहो कि जरा-सी रोशनी के लिए भी कितनी आत्मायें अधंकार में भटकती हुई रोशनी के लिए तड़प रही हैं? वो तड़पती हुई आत्मायें नजर आती हैं? अगर आप दीपकों की रोशनी टिमटिमाती रहेगी, अभी-अभी जगी, अभी-अभी बुझी तो भटकी हुई आत्माओं का क्या हाल होगा? जैसे यहाँ भी अधंकार हो जाता है तो सबकी इच्छा होती है अभी रोशनी हो। बुझती-जगती हुई लाइट पसन्द नहीं करेंगे। ऐसे आप हर जगे हुए दीपक के ऊपर विश्व के अंधकार मिटाने की जिम्मेवारी है। इतनी बड़ी जिम्मेवारी अनुभव करते हो? ड्रामा के रहस्य अनुसार आप ब्राह्मण जगे तो सब जगे। ब्राह्मण जगे तो दिन, रोशनी हो जाती है। और ब्राह्मणों की ज्योति बुझी तो विश्व में अंधकार, रात हो जाती है। तो दिन से रात, रात से दिन बनाने वाले आप चैतन्य दीपक हो। इतनी जिम्मेवारी हर एक पर है। तो बापदादा हर एक के जिम्मेवारी समझने का चार्ट देख रहे हैं कि हर एक अपने को कितना जिम्मेवार समझते हैं? विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी का ताज धारण किया है वा नहीं? इसमें भी नम्बरवार ताजधारी बैठे हुए हैं। अपना ताज देख रहे हो? सदा पहनते हो वा कभी-कभी पहनते हो? अलबेले तो नहीं बनते? ऐसा तो नहीं समझते कि जिम्मेवारी बड़ों की है विश्व का ताज बड़ों को देंगे या आप लेंगे? जैसे विश्व के राज्य अधिकारी सभी अपने को समझते हो, अगर कोई आपको कहे आप प्रजा ही बन जाना तो आप पसन्द करेंगे? सब विश्व का महाराजन बनने आये हो ना? वा प्रजा बनना भी पसन्द है? क्या बनेंगे? प्रजा बनने के लिए तैयार है कोई? सभी हाथ उठाते हो लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए, तो जब वह राज्य का ताज पहनना है तो उस ताज का आधार सेवा की जिम्मेवारी के ताज पर है। तो क्या करना पड़ेगा? अभी से ताजधारी बनने के संस्कार धारण करने पड़ेंगे। कौन-सा ताज? जिम्मेवारी का। तो आज बापदादा सबके ताज देख रहे हैं। तो यह कौन-सी सभा हो गई? ताजधारियों की सभा देख रहे हैं। सभी ने इस ताजपोशी का दिन मनाया है? मनाया है कि अभी मनाना है? जैसे आपके यादगार चित्र श्रीकृष्ण के चित्र में बचपन से ही ताज दिखाते हैं। बड़ा होकर तो होगा ही लेकिन बचपन से ही ताजधारी। देखा है अपना चित्र? डबल विदेशियों ने अपना चित्र देखा है? यह किसका चित्र है? एक ब्रह्मा का चित्र है या आप सबका है? तो जैसे श्रीकृष्ण के चित्र में बचपन से ही ताजधारी दिखाया है, वैसे आप श्रेष्ठ आत्मायें भी मरजीवा बनीं, ब्राह्मण बनीं और जिम्मेवारी का ताज धारण किया। तो जन्म से ताजधारी बनते हो इसलिए यादगार में भी जन्म से ताज दिखाया है। तो ब्राह्मण बनना अर्थात् ताजपोशी का दिन मनाना। तो सबने अपनी ताजपोशी मना ली है ना? अभी सिर्फ यह देखना है कि सदा इस विश्व सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी बन सेवा में लगे हुए रहते हैं? तो क्या दिखाई दे रहा है? ताजधारी तो सब दिखाई दे रहे हैं लेकिन कोई की दृढ़ संकल्प की फिटिंग ठीक है और कोई की थोड़ी लूज है। लूज होने कारण ताज कभी उतरता है, कभी धारण करते हैं। तो सदा दृढ़ संकल्प द्वारा इस ताज को सदा के लिए सेट करो। समझा-क्या करना है? ब्रह्मा बाप बच्चों को देख कितने हर्षित होते हैं? ब्रह्मा बाप भी सदा गीत गाते हैं, कौन-सा गीत गाते हैं? “वाह मेरे बच्चे, वाह”। और बच्चे क्या गीत गाते हैं? (वाह बाबा वाह) यह सहज गीत है इसीलिए गाते हैं। सबसे ज्यादा खुशी किसको होती है? सबसे ज्यादा ब्रह्मा बाप को खुशी होती है। क्यों? सभी बच्चे अपने को क्या कहलाते हो? ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी, शिव कुमार और शिव कुमारी नहीं कहते हो। तो ब्रह्मा बाप रचयिता अपनी रचना को देख हर्षित होते हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली हो ना! तो अपनी वंशावली को देख ब्रह्मा बाप हर्षित होते हैं। अव्यक्त रूपधारी होते भी मधुबन में व्यक्त रूपधारी की अर्थात् चैतन्य साकार रूप की अनुभूति कराते ही रहते हैं। मधुबन में आकर ब्राह्मण बच्चे ब्रह्मा से साकार रूप की, साकार चरित्र की अनुभूति करते हो ना! विशेष मधुबन भूमि को वरदान है– साकार रूप की अनुभूति कराने का। तो ऐसी अनुभूति करते हो ना? आकारधारी ब्रह्मा है या साकार है? क्या अनुभव करते हो? रूह-रूहान करते हो? अच्छा। आज वतन में बापदादा की यही रूह-रिहान चल रही थी कि डबल विदेशी बच्चे अपने समीप के सम्बन्ध के स्नेह में निराकार और आकार को साकार रूपधारी बनाने में बहुत होशियार हैं। बच्चों के स्नेह के जादू से आकार भी साकार बन जाता है। ऐसे स्नेह के जादूगर बच्चे हैं। स्नेह, स्वरूप को बदल लेता है। तो ब्रहमा बाप भी ऐसे ही अनुभव करते ही हैं कि हरेक स्नेही बच्चे से साकार रूपधारी बन मिलते हैं अर्थात् बच्चों के स्नेह का रेसपान्ड देते हैं। स्नेह की रस्सी से बापदादा को सदा साथ बाँध देते हैं। यह स्नेह की रस्सी ऐसी मजबूत है जो कोई तोड़ नहीं सकता। 21 जन्मों के लिए ब्रह्मा बाप के साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध में बंधे हुए ही रहेंगे। अलग नहीं हो सकते। ऐसी रस्सी बांधी है ना? इसको ही कहा जाता है अविनाशी मीठा बन्धन। 21 जन्मों तक निश्चित है। तो ऐसा बन्धन बॉध लिया है ना। जादूगर बच्चे हो ना? तो सुना– आज वतन में क्या रूह-रूहान चली। ब्रह्मा बाप एक-एक बच्चे की विशेषता की चमकती हुई मणी को देख रहे थे। हर बच्चे की विशेषता मणी के समान चमक रही थी। तो अपनी चमकती हुई मणी को देखा है! अच्छा। डबल विदेशी बच्चों से मिलने आते हैं, वाणी नहीं चलाते हैं। बाप की कमाल तो है लेकिन बच्चों की भी कम नहीं। आप समझते हो कि हम आपस में रूह-रूहान करते लेकिन बापदादा भी रूह-रूहान करते हैं। अच्छा। ऐसे सदा विश्व सेवा के जिम्मेवारी के ताजधारी, सदा स्नेह के बंधन में बापदादा को अपना साथी बनाने वाले, 21 जन्म के लिए अविनाशी सम्बन्ध में आने वाले, ऐसे सदा जगे हुए दीपकों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दूसरी मुरली 25-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:04-01-82 मधुबन

सतगुरू का प्रथम वरदान “मनमनाभव” आज ज्ञान सागर बाप, सागर के कण्ठे पर ज्ञान रत्न चुगने वाले होलीहंसों से मिलने आये हैं। हरेक होलीहंस कितना ज्ञान रत्नों को चुनकर खुशी में नाच रहे हैं, वह हंसों के खुशी का डांस देख रहे हैं। यह अलौकिक खुशी की रूहानी डांस कितनी प्यारी है और सारे कल्प से न्यारी है! सागर की भिन्न-भिन्न लहरों को देख हरेक हंस कितना हर्षित हो रहे हैं। तो आज बापदादा क्या देखने आये हैं? हंसों की डांस। डांस करने में तो होशियार हो ना? हरेक के मन के खुशी के गीत भी सुन रहे हैं। बिना गीत के डांस तो नहीं होती है ना। तो साज भी बज रहे हैं और डांस भी हो रहा है। आप सभी भी खुशी के गीत सुन रहे हो? यह गीत कानों से नहीं सुनेंगे। लेकिन मन के गीत मन से ही सुनेंगे। मनमनाभव हुए और गीत गाना व सुनना शुरू हुआ। “मनमनाभव” इस महामन्त्र के वरदानी तो सभी बन गये। सतगुरू के बने तो सतगुरू द्वारा पहला-पहला वरदान क्या मिला? मनमनाभव। सतगुरू के रूप में वरदानी बच्चों को देख रहे हैं। सभी महामंत्रधारी, महादानी, वरदानी, सतगुरू के बच्चे मास्टर सतगुरू हो वा यह कहो कि गुरू पोत्रे हो। पोत्रों का हक ज्यादा होता है। ब्रह्मा के बच्चे तो पोत्रे भी हुए ना। बच्चे भी हो, पोत्रे भी हो। जितने बाप के सम्बन्ध उतने आपके सम्बन्ध। सर्व सम्बन्ध में अधिकारी आत्मायें हो। भोलेनाथ बाप से कुछ लेने में होशियार हो। सौदागर भी अच्छे हो। सौदा कर लिया है ना? ऐसे कभी सोचा था कि भगवान से सौदा करेंगे? और सौदे में लिया क्या? सौदे में क्या मिला? (मुक्ति-जीवनमुक्ति) बस सिर्फ मुक्ति जीवनमुक्ति मिली? सौदागर के साथ जादूगर भी हो। सौदा किया है तो इतना बड़ा किया जो और सौदा करने की आवश्यकता ही नहीं। कोई वस्तु का सौदा नहीं किया है लेकिन वस्तु के दाता का सौदा कर लिया। उसमें तो सब आ गया ना! दाता को ही अपना बना लिया। अच्छा– डबल विदेशी बच्चों से रूह-रूहान करनी है ना।

अलग-अलग पार्टियों से मुलाकात न्यूयार्क (अमेरिका)-

अपने को कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा हम हैं– ऐसा अनुभव करते हो? ड्रामा के अन्दर हम आत्माओं का बाप के साथ डायरेक्ट सम्बन्ध और पार्ट है, इतना नशा और खुशी रहती है? सदा खुशी में रहने की कितनी बातें धारण कर ली हैं? बापदादा हर सिकीलधे बच्चे को देख हर्षित होते हैं। कितने समय के बाद मिले हो? स्मृति आती है ना? इसी स्मृति में रहो कि हम श्रेष्ठ आत्माओं का ऊंचे से ऊंचे बाप के साथ विशेष पार्ट है। तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति स्वत: बन जायेगी। जो सुनते हो उसको समाते जाओ। जितना समाते जायेंगे उतना प्रैक्टिकल स्वरूप बनते जायेंगे। हर गुण का अनुभव हो। एक-एक गुण की अनुभूति कहाँ तक है, यह सदा अपने आपको देखो। नॉलेजफुल हैं या अनुभवी मूर्त हैं? यह चेक करो, क्योंकि संगम पर ही हर गुण का अनुभव कर सकते हो। किसी भी गुण का अनुभव कम हो तो उसके ऊपर अटेन्शन देकर अनुभवी जरूर बनो। जितना अनुभवी मूर्त होंगे उतना फाउन्डेशन पक्का होगा। माया हिला नहीं सकेगी। किसी भी प्रकार का विघ्न व समस्या अभी खेल के समान अनुभव होनी चाहिए। वार नहीं है, खेल है! तो खेल समझने से खुशी-खुशी पार कर लेंगे और वार समझने से घबरायेंगे भी और हलचल में भी आ जायेंगे। ड्रामा में पार्टधारी होने के कारण कोई भी सीन सामने आती है तो ड्रामा के हिसाब से सब खेल है, यह स्मृति रहे तो एकरस रहेंगे, हलचल नहीं होगी। तो अभी से यह परिवर्तन करके जाना। हलचल यहाँ ही समाप्त करते जाना। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ अनुभव करो तो हलचल खत्म हो जायेगी। देखो, अमेरिका विश्व में ऊंचा स्थान है, तो ब्राह्मण कितने ऊंचे होंगे। जैसे देश की महिमा है उससे ज्यादा ब्राह्मण आत्माओं की महिमा है। तो आप लोगों को सेवा में नम्बरवन लेना चाहिए। हरेक अगर बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए लाइट हाउस हो जाए तो व्हाइट हाउस और लाइट हाउस कांट्रास्ट हो जायेगा। वह विनाशकारी और यह स्थापना वाले। अभी कमाल करके दिखाओ। विशेष आत्माओं को निमित्त तो बनाया है, अभी और सम्पर्क से सम्बन्ध में लाना है। ऐसा समीप सम्बन्ध में लाओ जो उन्हों के मुख द्वारा बाप की महिमा सारे विश्व में हो जाए। देखो, बापदादा ने जो बच्चे और-और धर्मो में मिक्स हो गये हैं, उन्हों को भी चुन करके निकाला है। तो विशेष भाग्यवान हुए न। आपने बाप को ढूंढा लेकिन बाप ने आपको ढूंढ लिया है। आप ढूंढते तो भी नहीं ढूंढ सकते क्योंकि परिचय ही नहीं था ना। इसीलिए बाप ने आप आत्माओं को चुनकर अपने बगीचे के पुष्प बना दिया। तो अभी आप सब अल्लाह के बगीचे के रूहानी गुलाब हो। ऐसे भाग्यवान अपने को समझते हो ना? यह भी बाप को खुशी है कि भाषा को न समझते हुए भी कैसे स्नेही आत्मायें अपना अधिकार लेने के लिए पहुंच गई हैं। अपने को अधिकारी आत्मा समझते हो ना! बहुत लगन वाली आत्मायें हैं जो फिर से अपना अधिकार लेने के लिए महान तीर्थ पर पहुंच गई हैं। अच्छा।
वरदान:
अपनी अलौकिक रूहानी वृत्ति द्वारा सर्व आत्माओं पर अपना प्रभाव डालने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव!
जैसे कोई आकर्षण करने वाली चीज आस-पास वालों को अपनी तरफ आकर्षित करती है, सभी का अटेन्शन जाता है। वैसे जब आपकी वृत्ति अलौकिक, रूहानियत वाली होगी तो आपका प्रभाव अनेक आत्माओं पर स्वत: पड़ेगा। अलौकिक वृत्ति अर्थात् न्यारे और प्यारे पन की स्थिति स्वत: अनेक आत्माओं को आकर्षित करती है। ऐसी अलौकिक शक्तिशाली आत्मायें मास्टर ज्ञान सूर्य बन अपना प्रकाश चारों ओर फैलाती हैं।
स्लोगन:
सदा स्वमान की सीट पर स्थित रहो तो सर्व शक्तियां आपका आर्डर मानती रहेंगी।