Thursday, December 22, 2016

मुरली 23 दिसंबर 2016

23-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– देह-अभिमान तुम्हें बहुत दु:खी करता है इसलिए देही-अभिमानी बनो, देही-अभिमानी बनने से ही पापों का बोझा खत्म होगा”
प्रश्न:
सतयुग में साहूकारी का पद किस आधार पर प्राप्त होता है?
उत्तर:
साहूकार बनते हैं ज्ञान की धारणा के आधार पर। जो जितना ज्ञान धन धारण करते हैं और दान करते हैं उतना वह साहूकार पद पायेंगे, एवर वेल्दी बनेंगे। पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। बाकी विश्व महाराजन बनने के लिए बहुत रॉयल सर्विस करनी है। सब खामियां निकाल देनी है। पूरा देही-अभिमानी बनना है। बड़े धैर्य और गम्भीरता से बाप को याद करना है।
गीत:-
धीरज धर मनुवा.....
ओम् शान्ति।
यह किसने कहा? बाप ने कहा बच्चों को, धीरज धरो। सारी दुनिया को नहीं कहा। भल बच्चे तो सभी हैं परन्तु सब बैठे तो नहीं हैं। बच्चे ही जानते हैं बरोबर यह दु:खधाम बदली हो रहा है। सुखधाम के लिए हम पढ़ रहे हैं वा श्रीमत पर चल रहे हैं। बच्चों को धीरज भी देते हैं। वास्तव में सारी दुनिया को गुप्त धीरज मिल रहा है। तुम समझते हो हम सम्मुख सुनते हैं। सब तो सुनते नहीं। वह बेहद का बाप है, बेहद का दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। दु:ख हरकर सुख का रास्ता बताता है। तुमको जब सुख होगा तो दु:ख का नाम नहीं हो सकता। सुख की दुनिया को सतयुग, दु:ख की दुनिया को कलियुग कहा जाता है। यह भी बच्चे ही जानते हैं। सतयुग में सम्पूर्ण सुख है, सो भी 16 कला सम्पूर्ण। जैसे चन्द्रमा भी 16 कला सम्पूर्ण होता है फिर कला कम होते-होते अमावस पर कितनी छोटी किनारी रह जाती है। प्राय: अन्धियारा हो जाता है। 16 कला सम्पूर्ण, तो सम्पूर्ण सुख भी होगा। कलियुग में है 16 कला अपूर्ण तो फिर दु:ख भी होता है। इस सारी दुनिया को माया रूपी ग्रहण लग जाता है इसलिए अब बाप कहते हैं तुम्हारे में जो देह-अभिमान है, पहले-पहले उनको छोड़ो। यह देह-अभिमान तुमको बहुत दु:ख देता है। आत्म-अभिमानी रहो तो बाप को भी याद कर सकेंगे। देह-अभिमान में रहने से बाप को याद नहीं कर सकते। यह आधाकल्प का देह-अभिमान है। इस अन्तिम जन्म में देही-अभिमानी बनने से एक तो पापों का बोझा खत्म होगा और फिर 16 कला सम्पूर्ण सतोप्रधान बनेंगे। बहुत देह-अभिमान की बात को भी समझते नहीं हैं। मनुष्य को दु:खी करता ही है देह-अभिमान। पीछे हैं और विकार। देही-अभिमानी बनने से यह सब विकार छूटते जायेंगे। नहीं तो छूटना मुश्किल है। देह-अभिमान की प्रैक्टिस पक्की हो गई है तो अपने को देही-अभिमानी (आत्मा) समझते ही नहीं। इसमें सब विकार दान देना पड़े। पहले-पहले देह-अभिमान को छोड़ना है। काम, क्रोध आदि सब पीछे आते हैं। तुम्हारा बाप वह है। देह-अभिमान के कारण लौकिक बाप को ही बाप समझते आये हैं। अब मुख्य बात है कि हम पावन कैसे बनें। पतित दुनिया में हैं ही सब पतित; पावन कोई हो नहीं सकते। एक बाप ही सबको पावन बनाकर खुशी-खुशी से वापिस ले जाते हैं। अब तुम बच्चों को तो योग का चिंतन लगा हुआ है। जीते जी मरना है। देह-अभिमान तोड़ना माना मरना। हम आत्मा बाबा को याद कर पतित से पावन बन जायें। यह पावन बनने की युक्ति बाबा ने ही समझाई थी। अब फिर से समझा रहे हैं। कल्प-कल्प फिर भी समझायेंगे। दुनिया भर में और कोई भी समझा नहीं सकते। मूल बात है शिव को याद करने की। सो भी जब यहाँ आकर बी.के. द्वारा सुनें क्योंकि दादे का वर्सा मिलना है। तो बाप जरूर चाहिए जिस द्वारा मिलें। डायरेक्शन तो जरूर लेने हैं साकार द्वारा। बहुत बच्चे हैं जो समझते हैं हम शिवबाबा से योग लगायें, ब्रह्मा को छोड़ दें। परन्तु शिवबाबा से सुनेंगे कैसे? कहते हैं हमारा ब्रह्मा बाबा के साथ कोई कनेक्शन नहीं है। अच्छा तुम अपने को आत्मा समझो शिवबाबा को याद करो। घर जाकर बैठो। परन्तु यह जो नॉलेज मिलती है सृष्टि चक्र की, वह कैसे सुनेंगे। यह समझने बिना सिर्फ याद कैसे कर सकेंगे। ज्ञान तो इन द्वारा ही लेना पड़ेगा ना। फिर कभी भी ज्ञान तो मिल नहीं सकता। रोज नई-नई बातें बाप द्वारा ही मिलती हैं। बिना ब्रह्मा और ब्रह्माकुमारियों के कैसे समझ सकेंगे। यह सब सीखना पड़े। बाप कहते हैं जो घर बैठकर पुरूषार्थ करे कर्मातीत अवस्था को पाने का, तो हो सकता है मुक्ति में जाये। जीवनमुक्ति में जा न सकें। ज्ञान धन धारण कर और दान करेंगे तो धनवान बनेंगे। नहीं तो एवरवेल्दी कैसे बनेंगे। मुरली का भी आधार जरूर लेना पड़े। पढ़ाई तो पढ़नी है ना। ऐसे बहुत आयेंगे सिर्फ लक्ष्य लेकर जायेंगे मुक्ति में। तुम सब मनुष्य मात्र को समझाते हो कि तुम सिर्फ बाप को याद करो तो सतोप्रधान पवित्र बन जायेंगे। फिर जब ज्ञान धन लें तब सतयुग में साहूकार बनें। नहीं तो मुक्ति में जाकर फिर भक्ति मार्ग के समय आकर भक्ति करेंगे। किसका कल्याण कर नहीं सकेंगे क्योंकि मनुष्य को देवता बनने के लिए ज्ञान जरूर चाहिए। ज्ञान सुनकर फिर सुनाना भी है। प्रदर्शनी में देखो कितना माथा मारते हैं। फिर भी किसकी बुद्धि में बैठता नहीं है। आत्मा कितनी छोटी बिन्दी है। हर आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। यह तुम अभी जान गये हो। सब मनुष्य मात्र पार्टधारी हैं। यह बना बनाया खेल है। पुरानी दुनिया का विनाश भी होना है। गाया हुआ है राम गयो रावण गयो ... कोई भी जायेगा परन्तु बच्चों को दु:ख नहीं हो सकता। तुम जानते हो यह बना बनाया ड्रामा है, सबका विनाश तो होना ही है।किङ्ग क्वीन, साधू सन्त सब मरेंगे फिर कौन बैठ उनकी मिट्टी उठायेंगे। यह तो किसका नाम बाला करने के लिए करते हैं, इसमें कोई फायदा नहीं रखा है। न कोई उनकी आत्मा को सुख मिलता है। मनुष्य तो भक्ति मार्ग में जो कुछ करते हैं, सब बेसमझी से। अभी तुमको बाप कितना सेन्सीबुल बनाते हैं। घड़ी-घड़ी इन चित्रों को आकर देखना चाहिए। तो हमको बाबा पढ़ाकर क्या बना रहे हैं, परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो अमल नहीं करते। बाबा बहुत कुछ समझाते हैं, जिस पर अमल करना चाहिए। बाप का बच्चा बनकर सर्विस नहीं कर सकते। बाप तो है ही कल्याणकारी। कई बच्चे तो बहुतों का और ही अकल्याण करते रहते हैं। जिनकी कुछ भावना भी होती– यहाँ के लिए, उनकी भावना भी उड़ा देते हैं। ऐसे-ऐसे विकर्म भी करते हैं। भूतों की प्रवेशता होती है ना इसलिए गायन भी है सतगुरू के निंदक ठौर न पायें। इसमें बापदादा दोनों आ जाते हैं। निराकार को तो कोई कुछ कर न सके। उनको क्या कहेंगे! यह तो भक्ति मार्ग में कह देते थे भगवान ही दु:ख देते हैं... सो भी अज्ञान के कारण ऐसे समझते थे। अब तो बच्चे जानते हैं अज्ञान वश कितना बाप का तिरस्कार करते हैं। ऐसा कोई नहीं जो तमोप्रधान को सतोप्रधान बनाये और ही उल्टी मत देते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी है। मनुष्य कितना मूंझ जाते हैं। तब कहते ब्रह्मा के तन में परमात्मा कैसे आ सकता है। फिर किसके तन में आये? कृष्ण के तन में आये? तो फिर ब्रह्माकुमार कुमारियां कैसे बनें? वह तो फिर दैवी कुमार, कुमारियां बन जायेंगे। ब्राह्मण तो जरूर ब्रह्माकुमार और कुमारियां होंगे। ब्राह्मणों के बिना तो बाबा कुछ कर न सके इसलिए इनका चित्र तो जरूर देना पड़े। यह ब्रह्मा भी ब्राह्मण है। प्रजापिता ब्रह्मा तो चाहिए भारत में। दिन-प्रतिदिन ब्रह्मा का साक्षात्कार घर बैठे बहुतों को होता रहता है। वृद्धि होती जायेगी। जिनका पार्ट होगा तो फिर बहुत भागेंगे। बहुत लोग समझते हैं भगवान कोई रूप में होगा जरूर। साक्षात्कार भी परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई करा नहीं सकता। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ही स्थापना करते हैं। ज्ञान देते हैं और ब्राह्मण धर्म भी रचते हैं। ब्राह्मणों का धर्म जरूर चाहिए। वह है ऊंचे ते ऊंच। प्रजापिता ब्रह्मा तो बहुत ऊंचा है ना। उनको कहेंगे नेक्स्ट गॉड। सूक्ष्मवतन में दूसरा कोई तो है नहीं। ब्रह्मा द्वारा स्थापना होगी, बस। ब्रह्मा फिर देवता बन जाते। 84 जन्मों के बाद फिर ब्रह्मा बन जाते हैं। ब्रह्मा सरस्वती सो फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। ज्ञान-ज्ञानेश्वरी फिर राजराजेश्वरी बनती है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनें– यह बड़ी फर्स्टक्लास प्वाइंट है, इस पर अच्छी तरह समझा सकते हो। यह ज्ञान एक बाप द्वारा मिलता है। प्रदर्शनी में अच्छी तरह समझाओ कि तुम ब्रह्मा पर मूँझते क्यों हो। इतने सब ब्राह्मण ब्राह्मणियां हैं– पहले जब कोई ब्राह्मण बनें तब ही विष्णुपुरी के मालिक देवता बनें। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात मशहूर है ना। अभी है रात। ऐसे-ऐसे चित्रों के सामने बैठ प्रैक्टिस करो। जिसको सर्विस करनी है उनको सर्विस के सिवाए कोई विचार नहीं आयेगा। सर्विस पर एकदम भागते रहेंगे। बुद्धि में ज्ञान टपकता हो, अच्छी रीति झोली भरी हुई हो तब तो उछल आयेगी। सर्विस पर एकदम भागते रहेंगे। ज्ञान हो और समझा न सके– यह तो हो ही नहीं सकता। तब ज्ञान किसलिए लेते हैं? लेना है तो दान करना है। दान नहीं करते, आप समान नहीं बना सकते तो ब्राह्मण ही क्या ठहरा! थर्ड ग्रेड। फर्स्ट ग्रेड ब्राह्मणों का धन्धा ही यह है। बाबा रोज बच्चों को समझाते हैं। सर्विस और डिस-सर्विस यह बच्चों से ही होता है। अगर सर्विस नहीं कर सकते तो जरूर डिस-सर्विस करते होंगे। अच्छे-अच्छे बच्चे कहाँ भी जायेंगे तो जरूर सर्विस ही करेंगे। जब ज्ञान कम्पलीट हो जायेगा तो कोई अनन्य बच्चों से भूल नहीं होगी तब ही माला के दाने बनेंगे। मुख्य हैं 8 दानें। इम्तहान भी बड़ा भारी है ना। बड़े इम्तहान में हमेशा थोड़े पास होते हैं क्योंकि गवर्मेन्ट को फिर नौकरी देनी पड़ती है। बाबा को भी विश्व का मालिक बनाना पड़े, इसलिए थोड़े ही पास होते हैं। प्रजा तो लाखों हो जाती है इसलिए बाबा पूछते हैं महाराजा बनेंगे या प्रजा में साहूकार बनेंगे? या गरीब बनेंगे? बोलो क्या बनेंगे? महाराजाओं के पास दास-दासियां तो बहुत होती हैं, जो फिर दहेज में भी देते हैं। पुरूषार्थ कर अच्छा पद पाना चाहिए। ऐसा होशियार बनना चाहिए जो सब कोई बुलावें। अक्सर करके कइयों को बुलाते हैं। यह तो जानते हो ना। बाकी जिनमें लक्षण नहीं उनको तो कभी कोई बुलाते ही नहीं हैं। परन्तु खुद थोड़ेही जानते हैं कि हम थर्डक्लास हैं। कोई तो सर्विसएबुल हैं, जहाँ तहाँ सर्विस पर भागते हैं। नौकरी का भी ख्याल नहीं कर सर्विस पर भागते हैं। कोई तो नौकरी नहीं होते भी सर्विस नहीं करते, शौक नहीं। तकदीर में नहीं है या ग्रहचारी है। सर्विस तो बहुत है। मेहनत भी लगती है। थक भी जाते हैं। समझाते-समझाते गले भी घुट जाते हैं। ऐसे तो थर्डक्लास वालों का भी गला घुट जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि उन्होंने बहुत अच्छी सर्विस की। बाबा जानते हैं– अच्छी रॉयल सर्विस करने वाले कौन हैं। परन्तु कइयों में खामियाँ भी रहती हैं। नाम-रूप में फँसते रहते हैं। फिर शिक्षा देकर सुधारा जाता है। नाम-रूप में कभी नहीं फँसना चाहिए। देही-अभिमानी बनना है। आत्मा छोटी बिन्दी है। बाप भी बिन्दी है। अपने को छोटी बिन्दी समझ और बाबा को याद करना बहुत मेहनत है। मोटे हिसाब में तो कह देते– शिवबाबा हम आपको बहुत याद करते हैं। परन्तु एक्यूरेट बुद्धि में याद रहनी चाहिए। बड़ा धैर्य व गम्भीरता से याद करना होता है। इस रीति कोई मुश्किल याद करते हैं। इसमें बहुत मेहनत है। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी झोली ज्ञान रत्नों से भरपूर कर दान करना है। इसी धन्धे में बिजी रह फर्स्टक्लास ब्राह्मण बनना है।
2) कल्याणकारी बाप के बच्चे हैं इसलिए सबका कल्याण करना है। किसी की भावना को तोड़ना, उल्टी मत देना, यह अकल्याण का कर्तव्य कभी नहीं करना है।
वरदान:
कल्याण की वृत्ति और शुभ-चिन्तक भाव द्वारा विश्व कल्याण के निमित्त बनने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव!
तीव्र पुरूषार्थी वह हैं जो सभी के प्रति कल्याण की वृत्ति और शुभ-चिन्तक भाव रखे। भल कोई बारबार गिराने की कोशिश करे, मन को डगमग करे, विघ्न रूप बने फिर भी आपका उसके प्रति सदा शुभ-चिन्तक का अडोल भाव हो, बात के कारण भाव न बदले। हर परिस्थिति में वृत्ति और भाव यथार्थ हो तो आपके ऊपर उसका प्रभाव नहीं पड़ेगा। फिर कोई भी व्यर्थ बातें देखने में ही नहीं आयेंगी, टाइम बच जायेगा। यही है विश्व कल्याणकारी स्टेज।
स्लोगन:
सन्तुष्टता जीवन का श्रृंगार है इसलिए सन्तुष्टमणि बन सन्तुष्ट रहो और सर्व को सन्तुष्ट करो।