18-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त-बापदादा“ रिवाइज:06-01-82 मधुबन
संगमयुगी ब्राह्मण जीवन में पवित्रता का महत्व
बापदादा आज विशेष बच्चों के प्युरिटी की रेखा देख रहे हैं। संगमयुग पर विशेष वरदाता बाप से दो वरदान सभी बच्चों को मिलते हैं। एक सहजयोगी भव:। दूसरा-पवित्र भव:। इन दोनों वरदानों को हर ब्राह्मण आत्मा पुरूषार्थ प्रमाण जीवन में धारण कर रहे हैं। ऐसे धारणा स्वरूप आत्माओं को देख रहे हैं। हर एक बच्चे के मस्तक और नयनों द्वारा पवित्रता की झलक दिखाई दे रही है। पवित्रता संगमयुगी ब्राह्मणों के महान जीवन की महानता है। पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ श्रृंगार है। जैसे स्थूल शरीर में विशेष श्वांस चलना आवश्यक है। श्वांस नहीं तो जीवन नहीं। ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस है पवित्रता। 21जन्मों की प्रालब्ध का आधार अर्थात् फाउन्डेशन पवित्रता है। आत्मा अर्थात् बच्चे और बाप से मिलन का आधार पवित्र बुद्धि है। सर्व संगमयुगी प्राप्तियों का आधार पवित्रता है। पवित्रता, पूज्य-पद पाने का आधार है। ऐसे महान वरदान को सहज प्राप्त कर लिया है? वरदान के रूप में अनुभव करते हो वा मेहनत से प्राप्त करते हो? वरदान में मेहनत नहीं होती। लेकिन वरदान को सदा जीवन में प्राप्त करने के लिए सिर्फ एक बात का अटेन्शन चाहिए कि वरदाता और वरदानी दोनों का सम्बन्ध समीप और स्नेह के आधार से निरन्तर चाहिए। वरदाता और वरदानी आत्मायें दोनों सदा कम्बाइन्ड रूप में रहें तो पवित्रता की छत्रछाया स्वत: रहेगी। जहाँ सर्वशक्तिवान बाप है वहाँ अपवित्रता स्वप्न में भी नहीं आ सकती है। सदा बाप और आप युगल रूप में रहो। सिंगल नहीं, युगल। सिंगल हो जाते हो तो पवित्रता का सुहाग चला जाता है। नहीं तो पवित्रता का सुहाग और श्रेष्ठ भाग्य सदा आपके साथ है। तो बाप को साथ रखना अर्थात् अपना सुहाग, भाग्य साथ रखना। तो सभी बाप को सदा साथ रखने में अभ्यासी हो ना। विशेष डबल विदेशी बच्चों को अकेला जीवन पसन्द नहीं हैं ना? सदा कम्पैनियन चाहिए ना! तो ऐसा कम्पैनियन और कम्पन्नी सारे कल्प में भी नहीं मिलेगी, तो बाप को कम्पैनियन बनाया अर्थात् पवित्रता को सदा के लिए अपनाया। ऐसे युगलमूर्त के लिए पवित्रता अति सहज है। पवित्रता ही नैचुरल जीवन बन जायेगी। पवित्र रहूँ, पवित्र बनूँ, यह क्वेश्चन ही नहीं। ब्राह्मणों की लाइफ ही पवित्रता है। ब्राह्मण जीवन का जीय-दान ही पवित्रता है। आदि-अनादि स्वरूप ही पवित्रता है। जब स्मृति आ गई कि मैं आदि-अनादि पवित्र आत्मा हूँ। स्मृति आना अर्थात् पवित्रता की समर्था आना। तो स्मृति स्वरूप, समर्थ स्वरूप आत्मायें तो निजी पवित्र संस्कार वाली– निजी संस्कार पवित्र हैं। संगदोष के संस्कार अपवित्रता के हैं। तो निजी संस्कारों को इमर्ज करना सहज है वा संगदोष के संस्कार इमर्ज करना सहज है? ब्राह्मण जीवन अर्थात् सहजयोगी और सदा के लिए पावन। पवित्रता ब्राह्मण जीवन के विशेष जन्म की विशेषता है। पवित्र संकल्प ब्राह्मणों की बुद्धि का भोजन है। पवित्र दृष्टि ब्राह्मणों के आंखों की रोशनी है। पवित्र कर्म ब्राह्मण जीवन का विशेष धन्धा है। पवित्र सम्बन्ध और सम्पर्क ब्राह्मण जीवन की मर्यादा है। तो सोचो कि ब्राह्मण जीवन की महानता क्या हुई? पवित्रता हुई ना! ऐसी महान चीज को अपनाने में मेहनत नहीं करो, हठ से नहीं अपनाओ। मेहनत और हठ निरन्तर नहीं हो सकता। लेकिन यह पवित्रता तो आपके जीवन का वरदान है, इसमें मेहनत और हठ क्यों? अपनी निजी वस्तु है। अपनी चीज को अपनाने में मेहनत क्यों? पराई चीज को अपनाने में मेहनत होती है। पराई चीज अपवित्रता है न कि पवित्रता। रावण पराया है, अपना नहीं है। बाप अपना है, रावण पराया है। तो बाप का वरदान पवित्रता है, रावण का श्राप अपवित्रता है। तो रावण पराये की चीज को क्यों अपनाते हो? पराई चीज अच्छी लगती है? अपनी चीज पर नशा होता है। तो सदा स्व-स्वरूप पवित्र है, स्वधर्म पवित्रता है अर्थात् आत्मा की पहली धारणा पवित्रता है। स्वदेश पवित्र देश है। स्वराज्य पवित्र राज्य है। स्व का यादगार परम पवित्र पूज्य है। कर्मेन्द्रियों का अनादि स्वभाव सुकर्म है, बस यही सदा स्मृति में रखो तो मेहनत और हठयोग से छूट जायेंगे। बापदादा बच्चों को मेहनत करते हुए नहीं देख सकते, इसलिए हो ही सब पवित्र आत्मायें। स्वमान में स्थित हो जाओ। स्वमान क्या है? “मैं परम पवित्र आत्मा हूँ।” सदा अपने इस स्वमान के आसन पर स्थित होकर हर कर्म करो। तो सहज वरदानी हो जायेंगे। यह सहज आसन है। तो सदा पवित्रता की झलक और फलक में रहो। स्वमान के आगे देह-अभिमान आ नहीं सकता। समझा। डबल विदेशी तो इसमें पास हो ना? हठयोगी तो नहीं हो? मेहनत वाले योगी तो नहीं हो? मुहब्बत में रहो तो मेहनत खत्म। लवलीन आत्मा बनो, सदा एक बाप दूसरा न कोई, यही नैचुरल प्युरिटी है। तो यह गीत गाना नहीं आता है? यही गीत गाना सहज पवित्र आत्मा बनना है। अच्छा। ऐसे सदा स्व-आसन के अधिकारी आत्मायें, सदा ब्राह्मण जीवन की महानता वा विशेषता को जीवन में धारण करने वाली आदि अनादि पवित्र आत्मायें, स्व स्वरूप, स्वधर्म, सुकर्म में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को वा परम पवित्र पूज्य आत्माओं को, पवित्रता के वरदान प्राप्त किये हुए महान आत्माओं को, बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।
फ्रास, ब्राजील तथा अन्य कुछ स्थानों से आये हुए विदेशी बच्चों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
1) सभी अपने को सदा मास्टर सर्वशक्तिवान समझते हुए हर कार्य करते हो? सदा सेवा के क्षेत्र में अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान समझकर सेवा करेंगे तो सेवा में सफलता हुई पड़ी है क्योंकि वर्तमान समय की सेवा में सफलता का विशेष साधन है– वृत्ति से वायुमण्डल बनाना। आजकल की आत्माओं को अपनी मेहनत से आगे बढ़ना मुश्किल है इसलिए अपने वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल ऐसा पावरफुल बनाओ जो आत्मायें स्वत: आकर्षित होते आ जाएं। तो सेवा की वृद्धि का फाउन्डेशन यह है। बाकी साथ-साथ जो सेवा के साधन हैं वह चारों ओर करने चाहिए। सिर्फ एक ही एरिया में ज्यादा मेहनत और समय नहीं लगाओ और चारों तरफ सेवा के साधनों द्वारा सेवा को फैलाओ तो सब तरफ निकले हुए चैतन्य फूलों का गुलदस्ता तैयार हो जायेगा। 2) बापदादा खुशनसीब बच्चों को देख अति हर्षित होते हैं। हरेक रूहे गुलाब हैं। रूहे गुलाब ग्रुप अर्थात् रूहानी बाप की याद में लवलीन रहने वाला ग्रुप। सभी के चेहरे पर खुशी की झलक चमक रही है। बापदादा एक-एक रत्न की वैल्यु को जानते हैं। एक-एक रत्न विश्व में अमूल्य रत्न है इसलिए बापदादा उसी विशेषता को देखते हुए हर रत्न की वैल्यु को देखते हैं। एक-एक रत्न अनेकों की सेवा के निमित्त बनने वाला है। सदा अपने को विजयी रत्न अनुभव करो। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ हो क्योंकि जब बाप के बन गये तो विजय तो आपका जन्म सिद्ध अधिकार है इसलिए यादगार भी विजय माला गाई और पूजी जाती है। सभी विजय माला के मणके हो ना? अभी फाइनल नहीं हुआ है इसलिए चांस है जो भी चाहे सीट ले सकते हैं। 3) सदा अपने को हर गुण, हर शक्ति के अनुभवी मूर्त अनुभव करते हो? क्योंकि संगमयुग पर ही सर्व अनुभवी मूर्त बन सकते हो। जो संगमयुग की विशेषता है उसको जरूर अनुभव करना चाहिए ना। तो सभी अपने को ऐसे अनुभवी मूर्त समझते हो? शक्तियाँ और गुण दोनों ही बड़े खजाने हैं। तो कितने खजानों के मालिक बन गये हो? बापदादा तो सर्व खजाने बच्चों को देने के लिए ही आये हैं। जितना चाहो उतना ले सकते हो? सागर है ना। तो सागर अर्थात् अथाह, खुटने वाला नहीं। तो मास्टर सागर बने हो? सबसे ज्यादा भाग्य विदेशियों का है। जो घर बैठे बाप का परिचय मिल गया है। इतना भाग्यवान अपने को समझते हो ना? बहुत लगन वाली आत्मायें हैं, स्नेही आत्मायें हैं। स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप बाप और बच्चों का मेला हो रहा है। हरेक अपने को सूर्यवंशी आत्मा समझते हो? पहले राज्य में आयेंगे वा दूसरे नम्बर के राज्य में आयेंगे? फर्स्ट राज्य में आने का एक ही पुरूषार्थ है वह कौन सा? सदा एक की याद में रहकर एकरस अवस्था बनाओ तो वन-वन और वन में आ जायेंगे। अच्छा। जापान ग्रुप से सभी बापदादा के दिलतख्तनशीन आत्माये हो। अपने को इतनी श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? वैरायटी फूलों का गुलदस्ता कितना बढि़या है। आप उस गुलदस्ते में किस स्थान पर हो? छोटा सुभान अल्ला होता है। बच्चों को कितने समय से याद करते हैं? बापदादा जापानी बच्चों को कितने समय से, बहुत समय पहले से आप बच्चों का याद किया और अभी प्रैक्टिकल में बाप की वरदान भूमि पर पहुंच गये हो। तो ऐसा भाग्यवान अपने को समझते हो? जापान की विशेष निशानी कौन-सी दिखाते हैं? एक तो फ्लैग दूसरा फैन (हवा के लिए सबको पंखा देते हैं) तो बापदादा भी बच्चों को सदैव याद दिलाते हैं उड़ते रहो, इसलिए पंखा दिखाते हैं। पहले-पहले विदेश की सेवा का फाउन्डेशन भी जापान ही है। तो महत्व हो गया ना। बापदादा के आह्वान से आप लोग यहाँ पहुंचे। बापदादा ने बुलाया तब आये हो। सभी अच्छे शोकेस के शोपीस हो। सभी ब्राह्मण परिवार भी आप गोल्डन डॉल्स को देखकर खुश होता है। ऐसा अनुभव किया है कि परिवार के भी सिकीलधे हैं और बापदादा के भी सिकीलधे हैं। अब जापान से ऐसी कोई विशेष आत्मा निकालो जो एक के आने से अनेकों को सन्देश मिल जाए। वहाँ वैरायटी प्रकार की सर्विस निकल सकती है। थोड़ी-सी मेहनत करेंगे तो फल ज्यादा निकल आयेगा। इसके लिए एक तो स्थान का वातावरण बहुत पावरफुल बनाओ। ऐसे अनुभव हो जैसे एक चैतन्य मन्दिर में जा रहे हैं। ऐसा वातावरण रूहानी खुशबू का हो जो दूर-दूर से वायुमण्डल आकर्षित करे। वातावरण बहुत ही आत्माओं को खींच सकता है। धरनी बहुत अच्छी है और फल भी बहुत निकल सकता है, सिर्फ थोड़ी-सी मेहनत और वायुमण्डल चाहिए। सेवा का संकल्प करेंगे और सफलता आपके आगे आयेगी। वायुमण्डल जब रूहानी हो जायेगा तो और सब बातें स्वत: ठीक हो जायेंगी। सब एकमत और एकरस हो जायेंगे फिर माया भी नहीं आयेगी क्योंकि वायुमण्डल शक्तिशाली होगा। वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने के लिए याद के प्रोग्राम रखो और आपस में उन्नति के लिए रूह-रूहान की क्लासेज करो। स्नेह मिलन करो। धारणा की क्लासेज रखो तो सफलता मिल जायेगी। जर्मन ग्रुप:- सभी के मस्तक पर क्या चमक रहा है? अपने मस्तक पर चमकता हुआ सितारा देख रहे हो? बापदादा सभी के मस्तक पर चमकती हुई मणी को देख रहे हैं। अपने को सदा पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मायें समझते हो? हर समय कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकाल सकते हो? सारे कल्प के अन्दर ऐसा कोई बिजनेसमैन होगा जो इतनी कमाई करे! सदा यह खुशी की याद रहती है कि हम ही कल्प-कल्प ऐसे श्रेष्ठ आत्मा बने हैं? तो सदा यही समझो कि इतने बड़े बिजनेसमैन हैं और इतनी ही कमाई में बिजी रहो। सदा बिजी रहने से किसी भी प्रकार की माया वार नहीं करेगी क्योंकि बिजी होंगे तो माया बिजी देखकर लौट जायेगी, वार नहीं करेगी। सहज मायाजीत बनने का यही साधन है कि सदा कमाई करते और कराते रहो। जैसे-जैसे माया के अनेक प्रकारों के नॉलेजफुल होते जायेंगे तो माया किनारा करती जायेगी। दूसरी बात– एक सेकण्ड भी अकेले नहीं हो, सदा बाप के साथ रहो तो बाप के साथ को देखते हुए माया आ नहीं सकती क्योंकि माया पहले बाप से अकेला करती है तब आती है। तो जब अकेले होंगे ही नहीं फिर माया क्या करेगी? बाप अति प्रिय है, यह तो अनुभव है ना? तो प्यारी चीज भूल कैसे सकती! तो सदा यह स्मृति में रखो कि प्यारे ते प्यारा कौन? जहाँ मन होगा वहाँ तन और धन स्वत: होगा। तो मनमनाभव का मन्त्र याद है ना। जहाँ भी मन जाए तो पहले यह चेक करो कि इससे बढि़या, इससे श्रेष्ठ और कोई चीज है या जहाँ मन जाता है वही श्रेष्ठ है! उसी घड़ी चेक करो तो चेक करने से चेंज हो जायेंगे। हर कर्म, हर संकल्प करने के पहले चेक करो। करने के बाद नहीं। पहले चेकिंग पीछे प्रैक्टिकल। अच्छा। विदाई के समय-दीदी दादी से आप लोगों को भी जागना पड़ता है। सारा दिन मेहनत करते हो और रात को भी जागना पड़ता है। बापदादा तो बच्चों को सदा आफरीन देते हैं। हिम्मत और उमंग दोनों पर बलिहार जाते हैं। देख-देख हर्षित होते हैं। महिमा करें तो कितनी हो जायेगी। जैसे बाप की महिमा के लिए कहा हुआ है कि सागर को स्याही बनाओ तो बच्चों की भी कितनी महिमा करें। बाप बच्चों की महिमा देख सदा बार-बार बलिहार जाते हैं। हरेक बच्चा अपनी-अपनी स्टेज पर हीरो पार्ट बजा रहा है। एक बाप के सच्चे हीरो पार्टधारी हो तो बाप को कितना नाज होगा। सारे कल्प में ऐसा बाप भी नहीं हो सकता, तो ऐसे बच्चे भी नहीं हो सकते। एक-एक की महिमा के गीत गाने लगें तो कितनी बड़ी गीत माला हो जायेगी। ब्रह्मा और शिवबाबा भी आपस में बहुत चिटचैट करते हैं। वह कहते हैं– वाह मेरे बच्चे! और वह कहते– वाह मेरे बच्चे! (किस समय चिटचैट करते हैं) जब चाहें तब कर सकते हैं। बिजी भी हैं और सारा दिन फ्री भी हैं। स्वतन्त्र भी हैं और साथी भी हैं। जब हैं ही कम्बाइन्ड तो अलग कैसे दिखाई देंगे, अलग कर सकते हो आप? आप अलग करेंगे वह आपस में मिल जायेंगे। जैसे बापदादा का आपस में कम्बाइन्ड रूप है तो आपका भी है ना। आप भी बाप से अलग नहीं हो सकते।
वरदान:
मनन शक्ति द्वारा हर प्वाइंट के अनुभवी बनने वाले सदा शक्तिशाली मायाप्रूफ, विघ्नप्रूफ भव
जैसे शरीर की शक्ति के लिए पाचन शक्ति वा हजम करने की शक्ति आवश्यक है ऐसे आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए मनन शक्ति चाहिए। मनन शक्ति द्वारा अनुभव स्वरूप हो जाना-यही सबसे बड़े से बड़ी शक्ति है। ऐसे अनुभवी कभी धोखा नहीं खा सकते, सुनी सुनाई बातों में विचलित नहीं हो सकते। अनुभवी सदा सम्पन्न रहते हैं। वह सदा शक्तिशाली, मायाप्रूफ, विघ्न प्रूफ बन जाते हैं।
स्लोगन:
खुशी का खजाना सदा साथ रहे तो बाकी सब खजाने स्वत: आ जायेंगे।