Sunday, December 11, 2016

मुरली 12 दिसंबर 2016

12-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– यह सुहावना कल्याणकारी संगमयुग है, जिसमें स्वयं बाप आकर पतित भारत को पावन बनाते हैं”
प्रश्न:
संगमयुग पर जब बाप आते हैं तो उनके आने से ही कौन सा इशारा मिल जाता है?
उत्तर:
इस पुरानी दुनिया के अन्त होने का इशारा सबको मिल जाता है क्योंकि बाप आते ही हैं पतित सृष्टि का अन्त करने, इसलिए विनाश का साक्षात्कार भी होता है। अभी तुम्हें नई दुनिया के झाड़ सामने दिखाई दे रहे हैं।
गीत:–
तुम्हें पाके हमने ...   
ओम् शान्ति।
वास्तव में कहना चाहिए रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप की गुडमार्निंग क्योंकि बच्चे जानते हैं बाप आते ही हैं रात को दिन बनाने। यह भी हिसाब किया जाता है। आखरीन में भी बाबा आते किस समय है? तिथि तारीख नहीं। परन्तु किस समय में आते हैं, जरूर 12 बजकर एक मिनट हुआ होगा तब बाबा ने इस शरीर में प्रवेश किया होगा। यह है बेहद की रात और दिन। तिथि तारीख नहीं बताई जा सकती है। अपने बच्चों से ही कहते हैं हम आकर रात को दिन, नर्क को स्वर्ग बनाते हैं अथवा पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाते हैं। समझ में आता है कि बाबा का आना रात्रि को ही कहा जाता है। शिवरात्रि कहते हैं ना। आते ही हैं रात को दिन बनाने। उनकी कोई जन्मपत्री है? कृष्णजयन्ती की भी तिथि-तारीख कुछ नहीं है क्योंकि उनको बहुत दूर ले गये हैं। यह किसको पता नहीं है। कृष्ण का जन्म कब हुआ? संवत तिथि-तारीख कुछ नहीं है। बाकी सिर्फ रात को मनाते हैं। वास्तव में शिवबाबा है ही रात को आने वाला। तुम बच्चे कहेंगे शिवबाबा की रात्रि। भारत में मनाते भी हैं शिवरात्रि। शिवजयन्ती भी कहते हैं परन्तु वास्तव में शिव जयन्ती कहना नहीं चाहिए क्योंकि उनकी मरन्ती नहीं है। मनुष्य जन्मता है फिर मरता भी है। वह तो मरता ही नहीं इसलिए शिवजयन्ती कहना भी रांग है। शिवरात्रि कहना ठीक है। यह शिवबाबा बतलाते हैं। दूसरा कोई ऐसे कह न सके। भल कहते हैं शिवोहम् परन्तु बता न सकें, मैं कब आता हूँ? क्या आकर करता हूँ? शिवबाबा तो बतलाते हैं कि अब आधाकल्प की रात्रि पूरी हो दिन शुरू होता है। यह गीता का एपीसोड रिपीट हो रहा है। मौत का तूफान भी सामने खड़ा है। पतित दुनिया भी बरोबर है। कलियुग का अन्त है। मुसीबतें भी सामने हैं। समझते हैं यह वही महाभारत लड़ाई है, जिसके लिए शास्त्रों में गायन है नेचुरल कैलेमिटीज द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश होना है। तो जरूर गीता का भगवान आया होगा। आयेगा ही कलियुग के अन्त में। सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स, वह फिर द्वापर में तो हो न सके। मनुष्य को 84 शरीर मिलते हैं। हर एक जन्म में फीचर्स बदल जाते हैं– एक न मिले दूसरे से। भल अभी कृष्ण का गायन पूजन है परन्तु उनके एक्यूरेट फीचर्स तो हो न सकें। उनका फोटो भी निकल न सके। ऐसे ही मिट्टी का, कागज का बना लेते हैं। एक्यूरेट फीचर्स तो जब ध्यान में जाओ तब तुम देख सकते हो। फोटो निकाल नहीं सकते। मीरा कृष्ण से डांस करती थी, बहुत नामीग्रामी है। शिरोमणी भक्तों में गाई जाती है। कृष्ण को याद करती थी तो झट उनको साक्षात्कार होता था। कृष्ण से प्रीत थी। साक्षात्कार में देखती थी, इसलिए पवित्र रहना चाहती थी। जानते हैं वहाँ विकार तो होता नहीं। कृष्ण से प्रीत लगी तो पवित्र जरूर बनना पड़े। पतित तो कृष्ण के साथ मिल न सकें। मीरा पावन रही इसलिए उनकी महिमा है। यह सब राज बाबा ही समझाते हैं। भक्ति मार्ग में तो उनकी अल्पकाल क्षणभंगुर की भावना पूरी हुई। साक्षात्कार हुआ, जो मनोकामना रखते हैं, वह अल्पकाल के लिए पूरी हो जाती है। अनेक प्रकार के देवतायें आदि हैं। उनका साक्षात्कार चाहते हैं। तो ड्रामा प्लैन अनुसार वह मनोकामना पूर्ण हो जाती है। भक्ति मार्ग की भी नूँध है। वेद शास्त्र पढ़ते, माथा मारते तो भी मुक्ति-जीवनमुक्ति में जा नहीं सकते। आगे बनारस में जाकर काशी कलवट खाते थे। समझते थे शिवपुरी अर्थात् मुक्ति में जायें परन्तु जा नहीं सकते। मुक्ति में ले जाने वाला है ही एक बाप। उनको ही मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता कहा जाता है। दूसरा कोई ले जा नहीं सकता। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो जीवनमुक्ति थी, जीवनबन्ध नहीं था। बहुत थोड़े आदमी रहते थे। इस समय कितने करोड़ों मनुष्य हैं। सतयुग में इतने थे नहीं। बाकी उस समय सब कहाँ थे? यह भी अभी तुमको पता पड़ा है। सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज अभी तुमको मिलती है। रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त को कोई जान नहीं सकते। अभी तुम जानते हो पतित सृष्टि का अन्त है। वह तो समझते हैं कलियुग अजुन 40 हजार वर्ष चलना है परन्तु तुम जानते हो अभी कलियुग का अन्त होना है तब ही बाप आकर सारी नॉलेज सुनाते हैं। ऊंचे ते ऊंच है ही भगवान। उनका जन्म भी यहाँ होता है। आते भी हैं संगम पर और अन्त होने का इशारा देते हैं। विनाश का साक्षात्कार भी कराया है। अर्जुन के लिए भी दिखाया है ना कि साक्षात्कार हुआ। तुम बच्चों में भी बहुतों ने साक्षात्कार किया है। जितना-जितना नजदीक आयेंगे तो देखने में आयेगा। मनुष्य जब घर के नजदीक आते हैं तो सब बातें याद आती हैं ना। तुमको भी बहुत साक्षात्कार होते रहेंगे। मुक्तिधाम में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है। तुम जानते हो– बरोबर भारत विश्व का मालिक था। बाप कहते हैं– मैं हर 5 हजार वर्ष के बाद आकर तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। यह स्थापना हो रही है भविष्य नई दुनिया के लिए। संगम पर स्थापना होती है। तुम ब्राह्मण हो ही संगमयुग पर। वह हैं शूद्र, तुम हो ब्राह्मण। वह देवतायें। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। मनुष्य थोड़ेही जानते हैं कि संगम किसको कहा जाता है! इनको कल्याणकारी सुहावना संगमयुग कहा जाता है। जहाँ से पतित भारत पावन बनता है। बाप भी कल्याणकारी है। आते भी भारत में हैं। बाप कहते हैं– अभी तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए, अब तुम पतित हो, एक भी पावन नहीं। सब भ्रष्टाचारी हैं। विकार से पैदा होते हैं। तुम श्रेष्ठ देवी-देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनें। अभी ब्राह्मण बने हो फिर देवता बनेंगे। फिर अन्त में आकर प्रजापिता ब्रह्मा मुख द्वारा स्थापना करते हैं। किसकी? स्वर्ग की। देवी-देवता धर्म की। तुम यहाँ आये हो देवी-देवता बनने, दैवीगुण धारण करने। यह तो तुम बच्चों को मालूम है कि कोई भी विकारी को यहाँ एलाउ नहीं किया जाता है। पहले-पहले पवित्रता की प्रतिज्ञा लेनी होती है। एक बार प्रतिज्ञा कर फिर अगर तोड़ते हैं तो एकदम रसातल में चले जाते हैं, चण्डाल का जन्म पा लेते हैं। यहाँ बाबा के आगे पतित कोई आ नहीं सकते। अगर ब्राह्मणी भूल से भी ले आती है तो उन पर भी बड़ा दोष आ जाता है। दोनों चण्डाल बन पड़ते हैं। जो पावन नहीं बन सकते उनको यहाँ आने का हुक्म नहीं है। पर्सनल आकर समझ सकते हैं परन्तु बाबा की सभा में नहीं आ सकते। अगर भूल से ले आते हैं तो उनको चोट बहुत लगती है। आते तो ढेर हैं। सबको मालूम है कि बेहद बाप के पास जाते हैं, हमको पवित्र जरूर बनना है। मीरा पवित्र थी तो उनका कितना मान है। अब तुम ज्ञान अमृत पिलाते हो फिर भी वह कहते हैं हमको जहर चाहिए। अबलाओं पर कितने अत्याचार करते हैं विष के लिए। कृष्ण की तो बात नहीं। यह तो बड़ी भूल है जो भगवान के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। बाप समझाते हैं कि भक्त कहते हैं भक्ति के बाद भगवान आते हैं फल देने तो भक्ति निष्फल हुई ना परन्तु कुछ भी नहीं समझते हैं। भारत ही गोल्डन एजेड था, अब है आइरन एज। कहते भी हैं पतित-पावन आओ तो पतित ठहरे ना। परन्तु किसको कहो तुम नर्कवासी पतित हो तो समझते नहीं। बाबा ने जब समझदार बनाया था तो स्वर्ग था, अभी बेसमझ होने से कंगाल बने हैं। जब देवी-देवताओं का राज्य था तो भारत कितना ऊंच था। कहते भी हैं स्वर्ग था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर शास्त्रों में ऐसी-ऐसी बातें लिख दी हैं जो लोग समझते हैं वहाँ भी असुर थे। यह शास्त्र कोई सद्गति के लिए नहीं हैं। वह तो जब बाप आये तब सर्व की सद्गति करे। यह है रावण राज्य तब तो चाहते हैं रामराज्य हो। यह नहीं जानते कि रावणराज्य कब से शुरू हुआ है। ज्ञान सागर बाप तो सबको सद्गति में ले जाते हैं। यह समझने की बातें हैं। हर एक आत्मा को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है। आत्मा शान्तिधाम से आती है इस पृथ्वी पर पार्ट बजाने। आत्मा भी अविनाशी, ड्रामा भी अविनाशी। उसमें आत्मा अविनाशी एक्टर है। परमधाम की रहने वाली है। 84 जन्म गाये हुए हैं। वह तो 84 लाख कह देते हैं। परमात्मा को पत्थर-भित्तर में कह देते तो ग्लानी हुई ना। बाप भारत पर उपकार कर स्वर्ग बनाते हैं। रावण आकर अपकार कर नर्क बना देते हैं। यह खेल है दु:ख सुख का। यह है कांटों का जंगल। बाप आकर कांटों को फूल बनाते हैं। बड़े से बड़ा कांटा है काम विकार। अभी बाप कहते हैं– मैं पावन बनाने आया हूँ। जो पावन बनेंगे वही पावन दुनिया के मालिक बनेंगे। बाप आया है सहज योग सिखलाने। कहते हैं मुझ अपने माशूक को याद करो। सभी आत्मायें एक माशूक पर आशिक हैं। वह आकर सबको ले जाते हैं मुक्तिधाम, परन्तु बाबा कहते हैं तुम पतित चल नहीं सकेंगे। मुझे याद करो तो खाद निकल जाए। ड्रामा अनुसार जब टाइम आता है तब ही मैं आता हूँ तुम बच्चों को पावन बनाने। यह वही महाभारत लडाई है। मृत्युलोक में यह अन्तिम लड़ाई है। अमरलोक में लड़ाई होती नहीं। वहाँ है ही रामराज्य। वहाँ रहते हैं धर्मात्मायें। यहाँ हैं पाप आत्मायें। पाप करते रहते हैं। पुण्य आत्माओं की दुनिया को स्वर्ग कहा जाता है। बाप कहते हैं– मैं एक सेकेण्ड में तुमको चढ़ती कला में ले जाता हूँ। इसमें सिर्फ यह एक ही अन्तिम जन्म लगता है और उतरती कला में 84 जन्म लगते हैं। तो बाप कहते हैं उठते बैठते मुझे याद करो। इन साधुओं का भी उद्धार करने मुझे आना पड़ता है। तमोप्रधान बुद्धि मनुष्य जो कुछ सुनते हैं वह सत-सत करते रहते हैं। अन्धश्रद्धालु हैं ना। इसको कहा जाता है ब्लाइन्डफेथ, गुडि़यों की पूजा करते रहते हैं। बायोग्राफी को जानते नहीं। अब बाप आकर इन सबका ज्ञान देते हैं, इसको रूहानी स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है। वह है शास्त्रों की फिलासॉफी। यह भी बाप ही आकर बच्चों को समझाते हैं। दुनिया में तो एक भी मनुष्य नहीं, जो परमपिता परमात्मा को यथार्थ रीति जानते हों। मनुष्य होकर और बाप को न जाने तो जानवर से भी बदतर ठहरे। देवताओं के आगे जाकर महिमा गाते हैं– आप सर्वगुण सम्पन्न हैं... हैं तो दोनों मनुष्य ना परन्तु यह है सारा कांटों का जंगल। बाबा तुमको कांटों से फूल बनाते हैं। भारत सचखण्ड था फिर रावण आकर झूठखण्ड बनाते हैं। सचखण्ड बनाने वाला है परमपिता परमात्मा। बाप ही आकर परिचय देते हैं, सो भी ब्राह्मण बच्चों को। फिर यह ज्ञान रहेगा नहीं। तुम बच्चे योगबल से विश्व के मालिक बनते हो। बाहुबल से कब किसको विश्व की बादशाही नहीं मिल सकती है। भारत जो विश्व का मालिक था, सो अब कंगाल बना है। मनुष्यों की बुद्धि ऐसी है जो बाहर में बोर्ड देखते भी हैं, लिखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां... तो भी नहीं समझते कि यह एक ईश्वरीय फैमली है। इतने ढेर बी.के. हैं। इसमें अन्धश्रद्धा की तो बात हो न सके। यह है ईश्वरीय घर। समझते हैं यह भी कोई इन्स्टीट्युशन है। अरे यह तो फैमिली है ना। कुमार, कुमारियां... यह तो घर हुआ ना। इतनी प्रदर्शनी करते हो, समझाते हो फिर भी समझते थोड़ेही हैं। 7 दिन का जब कोर्स ले अच्छी रीति समझें तब बुद्धि में बैठे कि बाप फिर से बेहद का वर्सा देने आये हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) चढ़ती कला में जाने के लिए उठते-बैठते एक बाप की याद में रहना है। बाप समान सभी पर उपकार करना है।
2) ज्ञान अमृत पीना और पिलाना है। कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:
“मैं पन” का त्याग कर सेवा में सदा खोये रहने वाले त्यागमूर्त, सेवाधारी भव
सेवाधारी सेवा में सफलता की अनुभूति तभी कर सकते हैं जब ’मैं पन“ का त्याग हो। मैं सेवा कर रही हूँ, मैंने सेवा की-इस सेवा भाव का त्याग। मैंने नहीं की लेकिन मैं करनहार हूँ, करावनहार बाप है। ’मैं पन“ बाबा के लव में लीन हो जाए-इसको कहा जाता है सेवा में सदा खोये रहने वाले त्यागमूर्त सच्चे सेवाधारी। कराने वाला करा रहा है, हम निमित्त हैं। सेवा में “मैं पन” मिक्स होना अर्थात् मोहताज बनना। सच्चे सेवाधारी में यह संस्कार हो नहीं सकते।
स्लोगन:
व्यर्थ को समाप्त कर दो तो सेवा की ऑफर सामने आयेगी।