Sunday, December 11, 2016

मुरली 11 दिसंबर 2016

11-12-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ’अव्यक्त बापदादा“ रिवाइज:15-04-81 मधुबन

नम्बरवन तकदीरवान की विशेषतायें
आज भाग्य विधाता बाप अपनी श्रेष्ठ भाग्यशाली आत्माओं को देख रहे हैं। हरेक को अपने-अपने तदबीर द्वारा कैसे तकदीर की लकीर खींची है। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कोई ने नम्बरवन तकदीर बनाई है, कोई ने सेकेण्ड नम्बर में बनाई है। पहले नम्बर की तकदीर जिसमें सर्व प्राप्ति स्वरूप हैं। चाहे सर्वगुणों में, चाहे ज्ञान खजाने में, चाहे सर्व शक्तियों में सदा प्राप्तियों के झूले में झूलते हैं। अभी से अप्राप्त कोई नहीं वस्तु ऐसे तकदीरवान के जीवन में। हर सेकेण्ड, हर श्वाँस, हर संकल्प अखुट खजाने प्राप्त करने वाले। ऐसी आत्मा को जीवन के हर कदम में चढ़ती कला की अनुभूति होती है। चारों ओर अनेक प्रकार के खजाने ही खजाने दिखाई देते। हर आत्मा अपने अति स्नेही अनादि सम्बन्ध के स्वरूप से अपनी लगती है। हर आत्मा एक बाप की सन्तान होने के कारण भाई-भाई लगती है। हर आत्मा के प्रति यही शुभभावना, शुभ कामना इमर्ज रूप में रहती है कियह सर्व आत्मायें सदा सुखी और शान्त हो जायें। बेहद का परिवार और बेहद का स्नेह होता। हद में दु:ख होता है, बेहद में दु:ख नहीं होता। क्योंकि बेहद में आने से बेहद का सम्बन्ध, बेहद का ज्ञान, बेहद की वृत्ति, बेहद का रूहानी स्नेह दु:ख को समाप्त कर सुख स्वरूप बना देते हैं। रूहानी नालेज के कारण हर आत्मा की कर्म कहानी के पार्ट के संस्कारों की लाइट और माइट होने के कारण जो भी देखेंगे, सुनेंगे, सम्पर्क में, सम्बन्ध में आयेंगे, हर कर्म में अति न्यारे और अति प्यारे होंगे। न्यारे और प्यारे बनने की समानता होगी। किस समय प्यारा बनना है, किस समय न्यारा बनना है– यह पार्ट बजाने की विशेषता आत्मा को सदा सुखी और शान्त बना देती है। रूहानी सम्बन्ध होने के कारण बुद्धि एकाग्रता के कारण निर्णय शक्ति, समाने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, सर्व शक्तियाँ हर आत्मा के पार्ट और अपने पार्ट को अच्छी तरह से जानकर पार्ट में आते हैं इसलिए अचल और साक्षी रहते हैं। ऐसी तकदीरवान आत्मा हर संकल्प और कर्म को, हर बात को त्रिकालदर्शी की स्थिति में स्थित हो देखती है। इसलिए क्वेश्चन मार्क समाप्त हो जाता। यह क्यों यह क्या, यह क्वेश्चन मार्क है। सदा फुल स्टाप। सभी को तीन बिन्दी का तिलक लगा हुआ है ना? उसमें आश्चर्य नहीं लगता। नाथिंग न्यू। क्या हुआ। नहीं, क्या करना है। यह है नम्बरवन तकदीरवान। आप सब नम्बरवन तकदीरवान की लिस्ट में हो ना। सबको फर्स्टक्लास पसन्द है ना। सब आये ही है बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए। चन्द्रवंशी बनने के लिए तैयार हो? सूर्यवंशी अर्थात् फर्स्टक्लास हो गया। सदा अपनी श्रेष्ठ तकदीर को स्मृति में रख समर्थ स्वरूप मेंरहो। ऐसे ही अनुभव करते हो ना। जो बाप के गुण वह हमारे गुण। सदा अपना अनादि असली स्वरूप स्मृति में रहता है ना। माया के नकली स्वरूप के स्वाँग तो नहीं बन जाते हो। जैसे ड्रामा करते हो तो नकली फेस लगा देते हो ना। जैसा गुण जैसा कर्तव्य वैसा ही फेस लगा देते हैं। तो नकली स्वरूप पर हँसी आती है ना। ऐसे माया भी नकली गुण और कर्तव्य का स्वरूप बना देती है। किसको क्रोधी, किसको लोभी बना देती है। किसको दु:खी किसको अशान्त। लेकिन असली स्वरूप इन बातों से परे है। तो सदा उसी स्वरूप में स्थित रहो। अच्छा– जैसे भक्ति में लास्ट टुब्बी होती है ना। उसका भी महत्व होता है। तो यहाँ भी सभी सागर में टुब्बी (डुबकी) लगाने आये हैं वा समाने के लिए आये हैं। सब रीति रसम अभी से शुरू कर रहे हैं। संगम है ही मिलन युग, आज बेहद का दिन है। हरेक जोन की अपनी-अपनी महिमा है। गुजरात अर्थात् जहाँ रात गुजर गई (अर्थात् बीत गई) सदा दिन है। सदा रोशनी ही रोशनी है। अन्धकार मिट गया। यू. पी. की विशेषता वहाँ चीनी बहुत बनती है। यू. पी. में सदा चारों ओर स्थूल और सूक्ष्म मीठा ही मीठा है। राजस्थान तो है ही विश्व के नये राज्य का फाउन्डेशन डालने वाला। राजस्थान में ही महान तीर्थ है राजस्थान की विशेषता है क्योंकि राजस्थान ही बापदादा की कर्म भूमि, चरित्रभूमि है। राजस्थान की महिमा सदा सर्वश्रेष्ठ है। पंजाब वाले सदा अकाल तख्तनशीन हैं। पंजाब वालों को अकालतख्त कब भूलता नहीं। सदा अकालमूर्त बाप के साथ अकाल स्वरूप रहते हैं। दिल्ली है दिलाराम की दिल लेने वाली। नाम भी दिल्ली है– दिल ली। तो बापदादा की दिल क्या है? विश्व पर सदा के लिए सुख और शान्ति का झण्डा लहर जाए। सदा चैन की बंसुरी बजती रहे। तो देहली वालों ने इस लक्ष्य को लेकर महायज्ञ का महा कर्तव्य भी किया। सदा सर्व के सहयोग की अंगुली से कि हम सब एक हैं– यही नारा विश्व को बुलन्द आवाज से सुनाया। देहली में सभी का हक है। क्योंकि सब राज्य अधिकारी बन रहे हो ना। तो सेवा के नये-नये कार्य में दिल लेने वाले। बाम्बे को गवर्मेन्ट भी जैसे सुन्दर बना रही है, विस्तार कर रही है, ऐसे ही पाण्डवों की सेवा में भी सेवा का विस्तार अच्छा हुआ, सहयोगी और अधिकारी दोनों ही प्रकार की आत्मायें सेवा के विस्तार के लिए अच्छी निमित्त बनी हुई हैं। वरदान मिला हुआ है ना। मध्य प्रदेश में एक निराकार बाप की यादगार अच्छी है। ऐसे ही ब्राह्मण आत्माओं में भी एक बाप से लगन लगाने वाले, एक नम्बर में आने वाले इस लगन में रहने वालों की अच्छी रेस चल रही है। विधि भी है और वृद्धि भी है। अभी तो सब की विशेषतायें सुनी ना। सभी की इकठ्ठी टुब्बी हो गई ना। ज्ञान सागर और नदियों का मिलन हो गया। मिलना अर्थात् लेना। खजाना ले लिया ना। श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींच गई ना। बापदादा का सदा एक स्लोगन याद रखना कि “सदा खुश रहना है और सर्व को सदा खुश करना है। चारों ओर अब खुशी के बाजे बजाओ क्योंकि हो ही खुशनशीब आत्मायें।” ऐसे श्रेष्ठ तकदीरवान, सदा सर्व खुशियों के खजाने से सम्पन्न सर्व को सुख का रास्ता बताने वाले, मास्टर सुख दाता, सदा सर्व के संकट मोचन, विघ्न विनाशक– ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। दीदी जी के साथ:- महावीरों की श्रेष्ठ सेवा का स्वरूप कौन सा है? जैसे और सब शक्तियाँ चित्र में भी दिखाई हुई हैं। इन सब शक्तियों में विशेष शक्ति सेवा के अर्थ कौन-सी है? सभी वाणी द्वारा, भिन्न-भिन्न साधनों द्वारा, प्लैन्स प्रोग्राम द्वारा तो सेवा कर रहे हैं। आप लोगों की विशेष सेवा, कौन-सी है? जैसे इसी पुरानी सृष्टि और हिस्ट्री में है– पहले जमाने में पंछियों द्वारा सन्देश भेजते थे। जो सन्देश देकर फिर वापिस आ जाते थे। आपकी सेवा कौन-सी है। वह पक्षियों द्वारा सन्देश भेजते थे आप संकल्प शक्ति द्वारा किसी भी आत्मा के प्रति सेवा कर सकते हो। संकल्प का बटन दबाया और वहाँ सन्देश पहुँचा। जैसे अन्त: वाहक शरीर द्वारा सहयोग दे सकते हैं वैसे संकल्प की शक्ति द्वारा अनेक आत्माओं की समस्या का हल कर सकते हैं। अपने श्रेष्ठ संकल्प के आधार से उन्हों के व्यर्थ वा कमजोर संकल्प परिवर्तन कर सकते हो। यह विशेष सेवा समय प्रमाण बढ़ती रहेगी। समस्यायें ऐसी आयेंगी जो स्थूल साधन समाप्त हो जायेंगे। फिर क्या करना पड़े? इतना ही स्वयं के संकल्पों को पावरफुल बनाना है जो उसका प्रभाव दूर तक पहुँच सके। जितनी पावर ज्यादा होती है तो दूर तक फैलती है। तो संकल्प में भी इतनी शक्ति आ जायेगी जो आप ने यहाँ संकल्प किया और वहाँ फल मिला। जैसे बाप भक्ति का फल देते हैं वैसे आप श्रेष्ठ आत्मायें परिवार में सहयोग का फल देंगी और उस फल का भिन्न-भिन्न अनुभव करेंगे, यह भी सेवा आरम्भ हो जायेगी। नये-नये को देखकर, परिवार की वृद्धि देखकर, सेवा की सिद्धि देख खुशी होती है ना। यह भी अपनी राजधानी बना रहे हो। राजधानी में तो सब प्रकार की आत्मायें चाहिए। सम्पर्क वाली भी चाहिए। सेवाधारी भी चाहिए, सम्बन्धी चाहिए और अधिकारी भी चाहिए। अब तो आवाज बुलन्द हो रहा है। अभी अजुन सब यहाँ वहाँ देखकर कोशिश कर रहे हैं कि यह कहाँ का आवाज है! सुनाई देता है लेकिन अभी क्लीयर सुनाई नहीं देता है। कहाँ से आवाज आ रहा है, किस तरफ जाना है वह नहीं समझते। क्लीयर तब होगा जब वाणी के साथ-साथ श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति उन्हों तक पहुँचे। अभी अटेन्शन शुरू हुआ है। हर सीजन का अपना-अपना रौनक का पार्ट है। बापदादा के लिए तो सब सिकीलधे हैं, सब कार्य सहज, स्वत: ही वृद्धि को पाते रहेंगे। कितने बड़े परिवार वाले हो। सतयुग के आदि की संख्या अपनी ऑखों से देखेंगे वा नहीं! वा स्वप्न में देखेंगे वा समाचार पत्रों में सुनेंगे– क्या होगा? अभी तो एक हजार को भी रख नही सकते हो, फिर कहाँ रखेंगे! सब ब्राह्मण परिवार है, जिस दिन सब मधुबन भूमि पर इकठ्ठे हो जायेंगे फिर तो हलचल शुरू हो जायेगी। संगठन का चित्र तो दिखाया है ना कि सभी ने अंगुली दी। सूक्ष्म में तो देते ही हो लेकिन इतना बड़ा परिवार है, परिवार को देखना तो चाहिए ना। इसका प्लैन बनाया है? सतयुग में तो सिर्फ आपकी प्रजा होगी, यहाँ तो आपके भक्त भी आयेंगे। डबल वंशावली होगी। जब भक्तों को पता पड़ेगा कि हमारे इष्ट इकठ्ठे हो गये हैं तो क्या करेंगे? वह भी पूछेंगे नहीं। पहुँच जायेंगे। जैसे अभी भी कई पहुँच जाते हैं ना। भक्त तो होते ही चात्रक हैं। बापदादा शक्तियों का नाम बाला देखकर हर्षित हो रहे हैं। सर्वशक्तिवान गुप्त है और शक्तियाँ प्रत्यक्ष रूप में हैं। तो शिव, शक्तियों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा वतन से भी देखते रहते हैं, कितनी क्यू लगती है, यह भी देखते रहते हैं। हरेक चैतन्य मूर्तियों के मन्दिर के बाहर क्यू तो शुरू हो गई है ना। बच्चों की सेवा देख बापदादा भी हर्षित होते हैं। बाप से भी लाख गुणा ज्यादा प्रत्यक्ष रूप में सेवा के मैदान में आ गये हैं और भी आयेंगे। पार्टियों के साथ– (यू.पी. जोन) सदा अपने को विश्व के आगे एक यथार्थ रास्ता दिखाने वाले रूहानी पण्डे समझते हो? पण्डों का नाम क्या है? यू.पी. में पण्डे बहुत होते हैं ना। वह पण्डे क्या करते और आप क्या करते? वह कौन-सी यात्रा कराते और आप कौन-सी यात्रा कराते हो? आप ऐसी यात्रा कराते जो जन्म-जन्म के लिए यात्रा करने से छूट जायेंगे, और वह बार-बार यात्रा करते रहेंगे। तो सदा के लिए मुक्ति और जीवनमुक्ति की मंजिल पर पहुँचाने वाले पण्डे हो। आधे पर छोड़ने वाले, भटकने वाले नहीं हो। मंजिल पर पहुँचाने वाले हो। जैसे बाप का कार्य है, बाप ने रास्ता दिखाया ना। वैसे बच्चों का भी वही कार्य। रास्ता भी वह दिखा सकते जो स्वयं जानते हो। रास्ता क्या है? ज्ञान और योग, इसी रास्ते द्वारा ही मुक्ति और जीवनमुक्ति की मंजिल पर पहुँच रहे हो। रास्ते के बीच जो साइडसीन आती हैं उसमें रूक तो नहीं जाते हो? क्योंकि माया साइडसीन के रूप में रोकने की कोशिश करती है, कोई-न-कोई परिस्थिति व बात ऐसे आयेगी जो रोकने की कोशिश करेगी लेकिन पक्के यात्री रूकते नहीं, मंजिल पर पहुँचाने वाले हो ना। अगर इतने सब पण्डे तैयार हो जायेंगे तो अनेक आत्माओं को रास्ता दिखा देंगे, विश्व की कितनी आत्मायें हैं, सबको रास्ता दिखाना है ना।

अलग-अलग ग्रुप से–

1) सभी सदा साक्षी स्थिति में स्थित हो हर पार्ट बजाते हो? साक्षीपन की स्टेज कायम रहती है? कभी साक्षी के बजाए पार्ट बजाते-बजाते पार्ट में साक्षीपन की स्टेज को भूल तो नहीं जाते। जो साक्षी होगा वह कभी भी किसी पार्ट में चलायमान नहीं होगा। न्यारा होगा, प्यारा भी होगा। अच्छे में अच्छा, बुरे में बुरा ऐसे नहीं होगा। साक्षी अर्थात् सदा हर कार्य करते हुए कल्याण की वृत्ति में रहने वाले। जो कुछ हो रहा है उसमें कल्याण भरा हुआ है। अगर कोई माया का विघ्न भी आता तो उसमें भी लाभ उठाकर, शिक्षा लेकर आगे बढ़ेगें, रूकेंगे नहीं। ऐसे हो? सीट पर बैठकर खेल देखते हो। साक्षीपन है सीट। इस सीट पर बैठकर ड्रामा देखो तो बहुत मजा आयेगा। सदा अपने को साक्षी की सीट पर सेट रखो, फिर वाह ड्रामा वाह! यही गीत गाते रहेंगे।

2) सभी तीव्र पुरूषार्थी हो ना? नये सो कल्प-कल्प के पुराने, पुराने समझने से अपना अधिकार ले लेंगे। ऐसे समझते हो कि हम कल्प-कल्प के अधिकारी हैं। लास्ट आते भी फास्ट जाना है उसके लिए सहज साधन है- निरंतर याद। याद में अन्तर नहीं आना चाहिए। सदा कर्मयोगी। कर्म भी करो और याद में भी रहो। जो सदा कर्मयोगी की स्टेज पर रहते हैं वह सहज ही कर्मातीत हो सकते हैं। जब चाहें कर्म में आयें और जब चाहें न्यारे। 3) सदा सेवा के उमंग-उत्साह में रहते हुए विश्व कल्याण की वृत्ति में रहते हो? सदा विश्व-कल्याणकारी हूँ और सर्व का कल्याण करना है, यही वृत्ति रहती है? सदा यही वृत्ति रहे– इसी वृत्ति द्वारा विश्व का कल्याण कर सकते हो। चाहे वाणी द्वारा, चाहे वृत्ति द्वारा लेकिन सदा कल्याणकारी की स्मृति में रहो। जितना यह वृत्ति रहेगी उतना ही आगे बढ़ते जायेंगे। सेवा जितनी कोई करता है उतना औरों को खुशी का रिटर्न स्वयं में भी खुशी की प्राप्ति का अनुभव होता है। औरों की सेवा नहीं है। सदा चढ़ती कला की ओर जाने वाले रूकने का समय अभी नहीं है। अगर रूकते रहेंगे तो मंजिल पर कैसे पहुँचेंगे। हर घड़ी हर सेकेण्ड में चढ़ती कला। अटेन्शन को अन्डरलाइन करना तो सदा चढ़ती कला होती रहेगी। अच्छा।
वरदान:
हद की जिम्मेवारियों को बेहद में परिवर्तन करने वाले स्मृति स्वरूप नष्टोमोहा भव
नष्टोमोहा बनने के लिए सिर्फ अपने स्मृति स्वरूप को परिवर्तन करो। मोह तब आता है जब यह स्मृति रहती है कि हम गृहस्थी हैं, हमारा घर, हमारा सम्बन्ध है। अब इस हद की जिम्मेवारी को बेहद की जिम्मेवारी में परिवर्तन कर दो। बेहद की जिम्मेवारी निभायेंगे तो हद की स्वत: पूरी हो जायेगी। लेकिन यदि बेहद की जिम्मेवारी को भूल सिर्फ हद की जिम्मेवारी निभाते हो तो उसे और ही बिगाड़ते हो क्योंकि वह फर्ज, मोह का मर्ज हो जाता है। इसलिए अपने स्मृति स्वरूप को परिवर्तन कर नष्टोमोहा बनो।
स्लोगन:
ऐसी तीव्र उड़ान भरो जो बातों रूपी बादल सेकण्ड में क्रास हो जाएं।