Saturday, October 15, 2016

मुरली 16 अक्टूबर 2016

16-10-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:15-11-99 मधुबन 

बाप समान बनने का सहज पुरूषार्थ– “आज्ञाकारी बनो”
आज बापदादा अपने होलीहंस मण्डली को देख रहे हैं। हर एक बच्चा होलीहंस है। सदा मन में ज्ञान रत्नों का मनन करते रहते हैं। होलीहंस का काम ही है व्यर्थ के कंकड़ छोड़ना और ज्ञान रत्नों का मनन करना। एक-एक रत्न कितना अमूल्य है। हर एक बच्चा ज्ञान रत्नों की खान बन गये हैं। ज्ञान रत्नों के खजाने से सदा भरपूर रहते हैं। आज बापदादा बच्चों में एक विशेष बात चेक कर रहे थे। वह क्या थी? ज्ञान वा योग की सहज धारणा का सहज साधन है बाप और दादा के आज्ञाकारी बन चलना। बाप के रूप में भी आज्ञाकारी, शिक्षक के रूप में भी और सद्गुरू के रूप में भी। तीनों ही रूपों में आज्ञाकारी बनना अर्थात् सहज पुरूषार्थी बनना क्योंकि तीनों ही रूपों से बच्चों को आज्ञा मिली है। अमृतवेले से लेकर रात तक हर समय, हर कर्तव्य की आज्ञा मिली हुई है। आज्ञा के प्रमाण चलते रहे तो किसी भी प्रकार की मेहनत वा मुश्किल अनुभव नहीं होगी। हर समय के मन्सा संकल्प, वाणी और कर्म तीनों ही प्रकार की आज्ञा स्पष्ट मिली हुई है। सोचने की भी आवश्यकता नहीं कि यह करें या न करें। यह राईट है या रांग है। सोचने की भी मेहनत नहीं है। परमात्म आज्ञा है ही सदा श्रेष्ठ। तो सभी कुमार जो भी आये हो, बहुत अच्छा संगठन है। तो हर एक ने बाप का बनते ही बाप से वायदे किये हैं? जब बाप के बने हैं तो सबसे पहले कौन सा वायदा किया? बाबा तन-मन-धन जो भी है, कुमारों के पास धन तो ज्यादा होता नहीं फिर भी जो है, सब आपका है। यह वायदा किया है? तन भी, मन भी, धन भी और संबंध भी सब आपसे– यह भी वायदा पक्का किया है? जब तन-मन-धन, सम्बन्ध सब आपका है तो मेरा क्या रहा! फिर कुछ मेरापन है? होता ही क्या है? तन, मन, धन, जन.... सब बाप के हवाले कर लिया। प्रवृत्ति वालों ने किया है? मधुबन वालों ने किया है? पक्का है ना! जब मन भी बाप का हुआ, मेरा मन तो नहीं है ना! या मन मेरा है? मेरा समझकर यूज करना है? जब मन बाप को दे दिया तो यह भी आपके पास अमानत है। फिर युद्ध किसमें करते हो? मेरा मन परेशान है, मेरे मन में व्यर्थ संकल्प आते हैं, मेरा मन विचलित होता है...., जब मेरा है नहीं, अमानत है फिर अमानत को मेरा समझ कर यूज करना, क्या यह अमानत में ख्यानत नहीं है? माया के दरवाजे हैं– “मैं और मेरा”। तो तन भी आपका नहीं, फिर देह-अभिमान का मैं कहाँ से आया! मन भी आपका नहीं, तो मेरा-मेरा कहाँ से आया? तेरा है या मेरा है? बाप का है या सिर्फ कहना है, करना नहीं? कहना बाप का और मानना मेरा! सिर्फ पहला वायदा याद करो कि न बॉडी कान्सेस की मैं है, न मेरा। तो जो बाप की आज्ञा है, तन को भी अमानत समझो। मन को भी अमानत समझो। फिर मेहनत की जरूरत है क्या? कोई भी कमजोरी आती है तो इन दो शब्दों से आती है– “मैं और मेरा”। तो न आपका तन है, न बॉडी कान्सेस का मैं। मन में जो भी संकल्प चलते हैं अगर आज्ञाकारी हो तो बाप की आज्ञा क्या है? पॉजिटिव सोचो, शुभ भावना के संकल्प करो। फालतू संकल्प करो– यह बाप की आज्ञा है क्या? नहीं। तो जब आपका मन नहीं है फिर भी व्यर्थ संकल्प करते हो तो बाप की आज्ञा को प्रैक्टिकल में नहीं लाया ना! सिर्फ एक शब्द याद करो कि मैं परमात्म आज्ञाकारी बच्चा हूँ। बाप की यह आज्ञा है या नहीं है, वह सोचो। जो आज्ञाकारी बच्चा होता है वह सदा बाप को स्वत: ही याद होता है। स्वत: ही प्यारा होता है। स्वत: ही बाप के समीप होता है। तो चेक करो मैं बाप के समीप, बाप का आज्ञाकारी हूँ? एक शब्द तो अमृतवेले याद कर सकते हो– “मैं कौन?” आज्ञाकारी हूँ या कभी आज्ञाकारी और कभी आज्ञा से किनारा करने वाले? बापदादा सदा कहते हैं कि किसी भी रूप में अगर एक बाबा का सम्बन्ध ही याद रहे, दिल से निकले बाबा, तो समीपता का अनुभव करेंगे। मन्त्र मुआफ़िक नहीं कहो “बाबा-बाबा”, वह राम-राम कहते हैं आप बाबा-बाबा कहते, लेकिन दिल से निकले बाबा। हर कर्म करने के पहले चेक करो कि मन के लिए, तन के लिए या धन के लिए बाबा की आज्ञा क्या है? कुमारों के पास चाहे कितना भी थोड़ा सा धन है लेकिन जैसे बाप ने आज्ञा दी है कि धन का पोतामेल किस प्रकार से रखो, वैसे रखा है? या जैसे आता वैसे चलाते? हर एक कुमार को धन का भी पोतामेल रखना चाहिए। धन को कहाँ और कैसे यूज करना है, मन को भी कहाँ और कैसे यूज करना है, तन को भी कहाँ लगाना है, यह सब पोतामेल होना चाहिए। आप दादियां जब धारणा की क्लास कराती हैं तो समझाती हैं ना कि धन को कैसे यूज करो! क्या पोतामेल रखो! कुमारों को पता है पोतामेल कैसे रखना है, कहाँ लगाना है, यह मालूम है? थोड़े हाथ उठा रहे हैं, नये-नये भी हैं, इन्हों को मालूम नहीं है। इन्हों को यह जरूर बताना कि क्या क्या करना है! निश्चिंत हो जायेंगे, बोझ नहीं लगेगा क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, कुमार माना लाइट। डबल लाइट। कुमारों का लक्ष्य है ना कि हमको नम्बरवन आना है? तो लक्ष्य के साथ लक्षण भी चाहिए। लक्ष्य बहुत ऊंचा हो और लक्षण नहीं हो तो लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल है इसलिए जो बाप की आज्ञा है उसको सदा बुद्धि में रख फिर कार्य में आओ। बापदादा ने पहले भी समझाया है कि ब्राह्मण जीवन के मुख्य खजाने हैं– संकल्प, समय और श्वांस। आपके श्वांस भी बहुत अमूल्य हैं। एक श्वांस भी कामन नहीं हो, व्यर्थ नहीं हो। भक्ति में कहते हैं श्वांसों श्वांस अपने ईष्ट को याद करो। श्वांस भी व्यर्थ नहीं जाये। ज्ञान का खजाना, शक्तियों का खजाना... यह तो है ही। लेकिन मुख्य यह तीनों खजाने– संकल्प, समय और श्वांस– आज्ञा प्रमाण सफल होते हैं? व्यर्थ तो नहीं जाते? क्योंकि व्यर्थ जाने से जमा नहीं होता। और जमा का खाता इस संगम पर ही जमा करना है। चाहे सतयुग, त्रेता में श्रेष्ठ पद प्राप्त करना है, चाहे द्वापर, कलियुग में पूज्य पद पाना है लेकिन दोनों का जमा इस संगम पर करना है। इस हिसाब से सोचो कि संगम समय की जीवन के, छोटे से जन्म के संकल्प, समय, श्वांस कितने अमूल्य हैं? इसमें अलबेले नहीं बनना। जैसा आया वैसे दिन बीत गया, दिन बीता नहीं लेकिन एक दिन में बहुत-बहुत गंवाया। जब भी कोई फालतू संकल्प, फालतू समय जाता है तो ऐसे नहीं समझो– चलो 5 मिनट गया। बचाओ। समय अनुसार देखो प्रकृति अपने कार्य में कितनी तीव्र है। कुछ न कुछ खेल दिखाती रहती है। कहाँ न कहाँ खेल दिखाती रहती है। लेकिन प्रकृतिपति ब्राह्मण बच्चों का खेल एक ही है– उड़ती कला का। तो प्रकृति तो खेल दिखाती लेकिन ब्राह्मण अपने उड़ती कला का खेल दिखा रहे हो? (कोई ने बापदादा को उड़ीसा में आये हुए तूफान का समाचार लिखकर दिया है कि इतना नुकसान हुआ है) वह प्रकृति का खेल तो देख लिया। लेकिन बापदादा पूछते हैं कि आप लोगों ने सिर्फ प्रकृति का खेल देखा या अपने उड़ती कला के खेल में बिजी रहे? या सिर्फ समाचार सुनते रहे? समाचार तो सब सुनना भी पड़ता है, परन्तु जितना समाचार सुनने में इन्ट्रेस्ट रहता है उतना अपनी उड़ती कला की बाजी में रहने का इन्ट्रेस्ट रहा? कई बच्चे गुप्त योगी भी हैं, ऐसे गुप्त योगी बच्चों को बापदादा की मदद भी बहुत मिली है और ऐसे बच्चे स्वयं भी अचल, साक्षी रहे और वायुमण्डल में भी समय पर सहयोग दिया। जैसे स्थूल सहयोग देने वाले, चाहे गवर्मेन्ट, चाहे आस-पास के लोग सहयोग देने के लिए तैयार हो जाते हैं, ऐसे ब्राह्मण आत्माओं ने भी अपना सहयोग– शक्ति, शान्ति देने का, सुख देने का जो ईश्वरीय श्रेष्ठ कार्य है, वह किया? जैसे वह गवर्मेन्ट ने यह किया, फलाने देश ने यह किया... फौरन ही अनाउन्समेंट करने लग जाते हैं, तो बापदादा पूछते हैं– आप ब्राह्मणों ने भी अपना यह कार्य किया? आपको भी अलर्ट होना चाहिए। स्थूल सहयोग देना यह भी आवश्यक होता है, इसमें बापदादा मना नहीं करते लेकिन जो ब्राह्मण आत्माओं का विशेष कार्य है, जो और कोई सहयोग नहीं दे सकता, ऐसा सहयोग अलर्ट होके आपने दिया? देना है ना! या सिर्फ उन्हों को वस्त्र चाहिए, अनाज चाहिए? लेकिन पहले तो मन में शान्ति चाहिए, सामना करने की शक्ति चाहिए। तो स्थूल के साथ सूक्ष्म सहयोग ब्राह्मण ही दे सकते हैं और कोई नहीं दे सकता है। तो यह कुछ भी नहीं है, यह तो रिहर्सल है। रीयल तो आने वाला है। उसकी रिहर्सल आपको भी बाप या समय करा रहा है। तो जो शक्तियां, जो खजाने आपके पास हैं, उसको समय पर यूज करना आता है? कुमार क्या करेंगे? शक्तियां जमा हैं? शान्ति जमा है? यूज करना आता है? हाथ तो बहुत अच्छा उठाते हैं, अभी प्रैक्टिकल में दिखाना। साक्षी होकर देखना भी है, सुनना भी है और सहयोग देना भी है। आखरीन रीयल जब पार्ट बजेगा, उसमें साक्षी और निर्भय होकर देखें भी और पार्ट भी बजावें। कौन सा पार्ट? दाता के बच्चे, दाता बन जो आत्माओं को चाहिए वह देते रहें। तो मास्टर दाता हैं ना? स्टॉक जमा करो, जितना स्टॉक अपने पास होगा उतना ही दाता बन सकेंगे। अन्त तक अपने लिए ही जमा करते रहेंगे तो दाता नहीं बन सकेंगे। अनेक जन्म जो श्रेष्ठ पद पाना है, वह प्राप्त नहीं कर सकते हैं, इसीलिए एक बात तो अपने पास स्टॉक जमा करो। शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना का भण्डार सदा भरपूर हो। दूसरा– जो विशेष शक्तियां हैं, वह शक्तियां जिस समय, जिसको जो चाहिए वह दे सको। अभी समय अनुसार सिर्फ अपने पुरूषार्थ में संकल्प और समय दो, साथ-साथ दाता बन विश्व को भी सहयोग दो। अपना पुरूषार्थ तो सुनाया– अमृतवेले ही यह सोचो कि मैं आज्ञाकारी बच्चा हूँ! हर कर्म के लिए आज्ञा मिली हुई है। उठने की, सोने की, खाने की, कर्मयोगी बनने की। हर कर्म की आज्ञा मिली हुई है। आज्ञाकारी बनना यही बाप समान बनना है। बस श्रीमत पर चलना, न मनमत, न परमत। एडीशन नहीं हो। कभी मनमत पर, कभी परमत पर चलेंगे तो मेहनत करनी पड़ेगी। सहज नहीं होगा क्योंकि मनमत, परमत उड़ने नहीं देगी। मनमत, परमत बोझ वाली है और बोझ उड़ने नहीं देगा। श्रीमत डबल लाइट बनाती है। श्रीमत पर चलना अर्थात् सहज बाप समान बनना। श्रीमत पर चलने वाले को कोई भी परिस्थिति नीचे नहीं ले आ सकती। तो श्रीमत पर चलना आता है? अच्छा– तो कुमार अभी क्या करेंगे? निमन्त्रण मिला। स्पेशल खातिरी हुई। देखो, कितने लाडले हो गये हो। तो अभी आगे क्या करेंगे? रेसपान्ड देंगे या वहाँ गये तो वहाँ के, यहाँ आये तो यहाँ के? ऐसे तो नहीं है ना? यहाँ तो बहुत मजे में हो। माया के वार से बचे हुए हो, ऐसा कोई है जिसको यहाँ मधुबन में भी माया आई हो? ऐसा कोई है जिसको मधुबन में भी मेहनत करनी पड़ी हो? सेफ हो, अच्छा है। बापदादा भी खुश होते हैं। समय आयेगा जब यूथ ग्रुप पर गवर्मेन्ट का भी अटेन्शन जायेगा लेकिन तब जायेगा जब आप विघ्न-विनाशक बन जाओ। विघ्न-विनाशक किसका नाम है? आप लोगों का है ना! विघ्नों की हिम्मत नहीं हो जो कोई कुमार का सामना करे, तब कहेंगे विघ्न-विनाशक। विघ्न की हार भले हो, लेकिन वार नहीं करे। विघ्न-विनाशक बनने की हिम्मत है? या वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे दादी बहुत अच्छा था लेकिन पता नहीं क्या हो गया! ऐसे तो नहीं लिखेंगे? यही खुशखबरी लिखो– ओ. के., वेरी गुड, विघ्न-विनाशक हूँ। बस एक अक्षर लिखो। ज्यादा लम्बा पत्र नहीं। ओ. के.। अच्छा।

चारों ओर के बापदादा के आज्ञाकारी बच्चों को, सदा विघ्न-विनाशक बच्चों को, सदा श्रीमत पर सहज चलने वाले, मेहनत से मुक्त रहने वाले, सदा मौज में उड़ने और उड़ाने वाले, सर्व खजानों के भण्डार से भरपूर रहने वाले ऐसे बाप के समीप और समान रहने वाले बच्चों को बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते। कुमारों को भी विशेष अथक और एवररेडी, सदा उड़ती कला में उड़ने वालों को बापदादा का विशेष यादप्यार।
वरदान:
सन्तुष्टता के त्रिमूर्ति सर्टिफिकेट द्वारा सदा सफलता प्राप्त करने वाले ऊंच पद के अधिकारी भव
सदा सफल होने के लिए बाप और परिवार से ठीक कनेक्शन चाहिए। हर एक को तीन सर्टिफिकेट लेने हैं– बाप, आप और परिवार। परिवार को सन्तुष्ट करने के लिए छोटी सी बात याद रखो कि रिगार्ड देने का रिकार्ड निरन्तर चलता रहे, इसमे निष्काम बनो। बाप को सन्तुष्ट करने के लिए सच्चे बनो और स्वयं से सन्तुष्ट रहने के लिए सदा श्रीमत की लकीर के अन्दर रहो। ये तीन सर्टिफिकेट ऊंच पद का अधिकारी बना देंगे।
स्लोगन:
जो चित्र को न देख चैतन्य और चरित्र को देखते हैं वही श्रेष्ठ चरित्रवान हैं।