Friday, August 5, 2016

मुरली 6 अगस्त 2016

06-08-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन् 

“मीठे बच्चे– तुम अपने योगबल से इस पुरानी दुनिया को परिवर्तन कर नया बनाते हो, तुम प्रकट हुए हो रूहानी सेवा के लिए”   
प्रश्न:
ईमानदार सच्चे पुरूषार्थी बच्चों की निशानियाँ क्या होंगी?
उत्तर:
ईमानदार बच्चे कभी भी अपनी भूल को छिपायेंगे नहीं। फौरन बाबा को सुनायेंगे। वह बहुत-बहुत निरहंकारी होते हैं, उनकी बुद्धि में सदा यही ख्याल रहता कि जैसा कर्म हम करेंगे....। 2- वह किसी की डिस-सर्विस का गायन नहीं करते। अपनी सर्विस में लगे रहते हैं। वह किसी का भी अवगुण देख अपना माथा खराब नहीं करते।
गीत:-
धीरज धर मनुवा...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप धीरज देते हैं। जैसे लौकिक बाप भी धैर्य देते हैं ना। कोई बीमार होता है तो उनको आथत देते हैं। तुम्हारी बीमारी के दु:ख के दिन बदलकर सुख के दिन आयेंगे। वह हद का बाप हद का धैर्य देते हैं। अब यह तो है बेहद का बाप। बच्चों को बेहद का धैर्य दे रहे हैं। बच्चे अभी तुम्हारे सुख के दिन आ रहे हैं। बाकी यह थोड़े दिन हैं। अब तुम बाप की याद में रह औरों को भी सिखलाओ। तुम भी शिव शक्तियाँ हो ना। शिवबाबा की शक्ति सेना फिर से प्रकट हुई है। यह (गोप) भी आत्मायें हैं। यह सब शिव से शक्ति लेते हैं। तुम भी शक्ति लेते हो। बाप ने समझाया है इसमें कृपा वा आशीर्वाद की कोई बात नहीं है। याद में रह शक्ति लेते जाओ। याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और तुम शक्तिवान बनते जायेंगे। शिव की शक्ति सेना इतनी सर्वशक्तिवान थी जो पुरानी दुनिया को पलट नया बना दिया। तुम जानते हो योगबल से हम इस पुरानी दुनिया को पलटाते हैं। अंगुली से भी मनुष्य ऐसा इशारा करते हैं कि अल्लाह को, गॉड को याद करो। बच्चे अभी समझते हैं– बाप की याद से यह पत्थरों के पहाड़ अर्थात् दुनिया बदल जायेगी। अभी हम परिस्तान स्थापन कर रहे हैं। बाप बच्चों को समझाते हैं– प्रदर्शनी पर खूब सर्विस करो, मेहनत करो जो समय मिले उसमें बैठकर सीखो। है बहुत सहज। बच्चों को हर प्रकार की शिक्षा मिलती रहती है। हर एक के कर्मो का हिसाब है। कन्याओं के कर्म अच्छे हैं। जिनकी शादी की हुई है वह कहती हैं– इस समय हम अगर कन्या होती तो इन सब जंजीरों से छूटी हुई, फ्री बर्ड होती। कन्यायें फ्री बर्डस हैं। परन्तु खराब संग में नुकसान हो जाता है। स्त्र को पुरूष बच्चों आदि की कितनी जंजीरें हैं, इसमें रसम-रिवाज आदि के कितने बन्धन रहते हैं। कन्याओं को कोई बन्धन आदि नहीं है। अभी बाम्बे में भी कन्यायें तैयार हो रही हैं। कहती हैं हम अपने प्रान्त को आपेही सम्भालेंगी। सभी अपने प्रान्त के लिए कितनी मेहनत करते हैं। कहते हैं हमारा गुजरात, हमारी यू.पी.... तुम अभी अपना स्वराज्य लेते हो, इसमें मैं फलाना हूँ, फलाने प्रान्त का हूँ, यह भी न रहे। तुम्हें किसी से भी ईर्ष्या नहीं रखनी चाहिए। कोई का अवगुण आदि देख माथा खराब नहीं होना चाहिए। अपने को देखना चाहिए हमने कितनी आत्माओं को, बहनों भाईयों को सुख का रास्ता बताया है! अगर रास्ता नहीं बताया तो वह कोई काम का नहीं। दिल पर चढ़ नहीं सकता। बापदादा के दिल पर नहीं चढ़ा तो तख्त पर नहीं बैठ सकता। बाबा जानते हैं– कोई-कोई बच्चे को सर्विस का बहुत शौक है। जरा भी देह का अभिमान नहीं है। कोई- कोई तो बड़ा अहंकार में रहते हैं। समझते हैं अपने ऊपर नहीं, बाप पर कृपा की है। कभी भी किसके अवगुण को नहीं देखना चाहिए। फलाना ऐसा है, यह करते हैं। आजकल ऐसे भी सयाने हैं जो एक दो की डिस-सर्विस का गायन करते हैं। फलाना यह करता है, ऐसा है। अरे तुम अपनी सर्विस करो। ब्राह्मण बच्चों का काम है सर्विस में लग जाना। बाप बैठा है, बाप के पास सब समाचार आते हैं। हर एक की अवस्था को बाप जानते हैं। सर्विस देख महिमा भी करते हैं। बच्चों में सर्विस का जोश आना चाहिए। हर एक को अपना कल्याण करना है– इस रूहानी सर्विस से। वह धन्धा आदि तो जन्मजन्मान्तर करते आये। यह धन्धा कोई विरला व्यापारी करे। बाप तरीका बहुत सहज समझाते हैं सर्विस का। कभी भी दूसरे की निंदा नहीं करो। ऐसे बहुत करते हैं। अच्छे-अच्छे महारथियों को भी माया नाक से पकड़ लेती है। बाबा को याद नहीं किया तो माया पकड़ लेगी। बाप भी कहते हैं ना– मुझे साधारण तन में आया हुआ देख पहचान नहीं सकते हैं। बाबा को भी राय देते हैं ऐसे-ऐसे करना चाहिए। अवस्था ऐसी है जो बाबा थोड़ा भी ऐसे करेंगे तो ट्रेटर बन जायेंगे। बाबा को भी अपनी मत भेज देते हैं। कहावत है ना– चूहे लदी....(चूहे को हल्दी की गांठ मिली तो समझा पंसारी हूँ) यह नहीं समझते कि हम डिस-सर्विस करते हैं। भूलें तो बहुतों से होती रहती हैं। कभी अवस्था ऊंच, कभी नींच, यह चलता आया है। हर एक अपनी अवस्था का देखे। ईमानदार बच्चे अपनी अवस्था झट बतलाते हैं। कोई तो अपनी भूलें छिपा लेते हैं, इसमें बड़ा निरहंकारीपना चाहिए। सर्विस को बढ़ाने में लग जाना चाहिए। हमेशा यह ख्याल रहना चाहिए– जैसे कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे। मैं किसकी निंदा करूँगा तो और भी करने लग पड़ेंगे। बहुतों को यह ख्याल नहीं आता है। बाप समझाते हैं– तुम अपनी सर्विस में लग जाओ। नहीं तो बहुत पछतायेंगे। दुश्मन भी बहुत बनते हैं। तुम अभी शूद्र से ट्रान्सफर हो ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हो गये। जिनमें 5 विकार हैं– वह हैं आसुरी सम्प्रदाय, तुम हो दैवी सम्प्रदाय। तुम देवता बनने के लिए विकारों पर विजय पा रहे हो। देवतायें तो यहाँ हैं नहीं। देवतायें होंगे सतयुग में। तुम अभी दैवी सम्प्रदाय बन रहे हो। तुम बच्चों को अभी समझाने के लिए चांस मिलते हैं। प्रदर्शनी में समझाते रहो। प्रदर्शनी, मेले में हर एक की नब्ज का पता पड़ जाता है। प्रोजेक्टर में तो किसको समझा नहीं सकेंगे। सम्मुख समझाने से ही समझ सकेंगे। प्रदर्शनी मेला अच्छी चीज है, उसमें लिख भी सकते हैं। प्रदर्शनी मेले का शौक होना चाहिए। रेगुलर पढ़ने से ही नशा चढ़ेगा। बांधेली हो तो घर में रहते बाप को याद करती रहो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। घर में बैठे भी याद करना अच्छा है। परन्तु याद करना– यह बच्चों के लिए बड़ी मुश्किल बात हो गई है। बाप जिससे 21 जन्म का वर्सा मिलता है उनको याद नहीं करते। अच्छे-अच्छे भाषण करने वाले महारथी भी बाप को याद नहीं करते। न सवेरे उठ सकते हैं। उठते हैं तो बैठने से झुटके खाते हैं। याद करने के लिए सवेरे का ही टाइम अच्छा है। भक्ति मार्ग में भी सवेरे उठ याद में लग जाते हैं। उनकी तो उतरती कला है। यहाँ तो है ही चढ़ने की बात। माया कितने विघ्न डालती है। सवेरे उठकर बाप को याद नहीं करेंगे तो धारणा कैसे होगी, विकर्म विनाश कैसे होंगे। बाकी सिर्फ मुरली चलाना– वह तो छोटे बच्चे भी सीखकर समझाने लग पड़ते हैं। यह पढ़ाई बड़ों के लिए है। कितनी बड़ी युनिवर्सिटी है। हमको पढ़ाने वाला कौन है– यह बच्चों को नशा नहीं रहता है। माया किसी को धोखा देती है तो हम उनको न देख अपनी सर्विस में लगे रहें। बाप के पास सब समाचार आते रहते हैं। कोई देह- अभिमान में आकर समझते हैं, यह ऐसे करते हैं, यह करते हैं, औरों की ही निंदा करते टाइम वेस्ट करते हैं। तुम्हारा काम है सर्विस में रहना। कोई भी बात है इशारा बाप को दे दिया बस। परचिंतन नहीं करना चाहिए। सर्विस में बच्चों को दिन रात लगना चाहिए। तुम्हारा धन्धा ही यह है। रोज प्रदर्शनी में समझाओ कि यह शिवबाबा, यह प्रजापिता ब्रह्मा। कल्प पहले भी प्रजापिता ब्रह्मा गाया हुआ है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं। ऐसे नहीं कि मनुष्य थे ही नहीं। मनुष्य सृष्टि रचते हैं अर्थात् कांटों को फूल बनाते हैं। ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं तो ऊपर में थोड़ेही सृष्टि रचेंगे। ब्रह्मा तो यहाँ होगा ना। कितना क्लीयर समझाया जाता है। बाप कहते हैं-मैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश कर मनुष्य को देवता बनाता हूँ। तो बच्चों को सर्विस में रात दिन मेहनत करनी चाहिए। धन्धे आदि से थोड़ा टाइम निकाल इसमें लग जाना चाहिए। ऐसे नहीं कि फुर्सत नहीं मिलती। बीमार पड़ जाओ तो क्या फिर कहेंगे कि फुर्सत नहीं! पुरूषार्थ करना चाहिए। प्रेरणा से कुछ भी नहीं हो सकता है। भगवान से ही प्रेरणा द्वारा काम नहीं हो सकता तो औरों से फिर कैसे होगा। समझते हैं भगवान क्या नहीं कर सकता है। मरे हुए को जिंदा कर सकते हैं। अरे भगवान को तुम कहते हो, हे पतित-पावन आकर हमको पतित से पावन बनाओ, बस दूसरी कोई बात नहीं। ऐसे थोड़ेही कहते आकर मुर्दे को जिंदा बनाओ। वह है ही पतित-पावन। भारत पावन था ना। बाप कहते हैं- मैं कल्प-कल्प आकर पावन बनाता हूँ। माया फिर आकर पतित बनाती है। अब फिर मैं आया हूँ पावन बनाने। कितनी सहज बात बतलाते हैं। हकीम लोग बड़ी बीमारी को भी जड़ी बूटियों से ठीक कर देते हैं फिर उन्हों की महिमा भी होती है। कोई को बच्चा वा धन मिला तो कहेंगे गुरू कृपा हुई। अच्छा, बच्चा मर गया तो कहेंगे भावी। इन सब बातों को अभी तुम बच्चे समझते हो। सन्यासी लोग पवित्र बनते हैं तो उनकी मान्यता होती है। परन्तु वह हैं हठ योगी, वह राजयोग सिखला न सकें। वह सन्यासी, हम गृहस्थी, फिर हम अपने को फालोअर्स कैसे कहला सकते। बाप तो कहते हैं बच्चों को पूरा फालो करना है– मनमनाभव। मुझे याद करो तो तुम पवित्र बन जायेंगे और मेरे साथ चलेंगे। मैं तो एवर पावन हूँ। मनुष्य पतित बनाते हैं, बाप आकर पावन बनाते हैं। वह पवित्रता, शान्ति, सुख का सागर है। तुमको भी ऐसा बना रहे हैं। तुम योगबल से आत्मा को पवित्र बनाते हो। जानते हो हमको फर्स्टक्लास शरीर मिलेगा। मनुष्य को देवता प्रैक्टिकल में बनाना है। ऐसे थोड़ेही सिर्फ देवताई कपड़ा आदि पहन लिया, अपने पर पूरा ध्यान देना है। देह-अभिमान न आये। बाबा हम तो आपसे वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। तुम भी कहते हो हम भारत को श्रेष्ठाचारी बनाकर ही छोड़ेंगे। निश्चय वाले ही कहते हैं ना। कोई तो कहते हैं इतने थोड़े समय में कैसे होगा। वास्तव में कभी भी यह संशय नहीं लाना चाहिए। संशय में आने से फिर सर्विस में ढीले हो पड़ते हैं। टाइम बहुत थोड़ा है। जितना हो सके पुरूषार्थ खूब करना चाहिए। थोड़ा लड़ाई आदि का कहाँ हंगामा होगा तो फिर देखना कितनी मेहनत करने लग पड़ते हैं। समझते हैं ना– हम याद में पूरा नहीं रहते हैं फिर उस समय कशमकशा तो कर नहीं सकेंगे। उस समय तो बहुत आफतें आदि रहती हैं इसलिए बाप कहते हैं जितना हो सके गैलप करते जाओ। यह आत्माओं की रेस है। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। निशाने पर जाकर अर्थात् बाप के घर जाकर फिर चले आना है नई दुनिया में। बड़ी फाइन रेस है। बाप कहते हैं- मेरे को टच कर अर्थात् मूलवतन में जाकर फिर आना है। पहले-पहले वह आयेंगे जो योगयुक्त होंगे। चाहते हैं हम मुक्तिधाम में जायें। तो बाप कहते हैं मुझे याद करो तो चले जायेंगे। मुक्तिधाम तो सबको पसन्द है फिर आयेंगे पार्ट बजाने। मोक्ष किसको मिलता नहीं। ईश्वरीय हिस्ट्री-जॉग्राफी में मोक्ष का अक्षर है नहीं। एक सेकेण्ड में तुमको जीवनमुक्ति मिलती है, बाकी सब मुक्त हो जायेंगे। रावण राज्य से मुक्त होना ही है, जो पुरूषार्थ करेगा वही ऊंच पद पायेगा। बच्चों को बड़ा मीठा बनना है। स्वभाव बड़ा मीठा चाहिए। क्रोधी नहीं बनना है, दुर्वासा का नाम है ना। इन राजऋषियों में भी कोई-कोई ऐसे हैं। हमेशा अपनी दिल पर हाथ रखना चाहिए कि मैं क्या करता हूँ! इससे हमको क्या पद मिलेगा! अगर सर्विस नहीं की, आप समान नहीं बनाया तो क्या पद मिलेगा। थोड़े में राजी नहीं होना है। बाप कहते हैं- मैं आया हूँ बच्चों को फुल बादशाही देने। तो हिम्मत रख करके दिखाना चाहिए। सिर्फ कथनी से तो हो नहीं सकता। बाप की सर्विस में तो हि·याँ भी देनी हैं। करते भी हैं फिर कहाँ देह-अभिमान आ जाने से नशा आ जाता और गिर पड़ते हैं। माया भी कम पहलवान नहीं है। बाप की श्रीमत पर न चलने से माया वार करती है, तो बाप को फारकती दे देते हैं। बाप सुखधाम का मालिक बनाते हैं तो अपने पर तरस आना चाहिए। बाप राय बड़ी सिम्पल देते हैं। माया के तूफान तो बहुत आयेंगे परन्तु महावीर बनना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सर्विस का शौक रख अपना और दूसरों का कल्याण करना है। किसी की डिस-सर्विस का गायन नहीं करना है। परचिंतन में अपना समय नहीं गँवाना है।
2) ईमानदार और निरंहकारी बन सेवा को बढ़ाना है। सवेरे-सवेरे उठकर बाप को प्यार से याद करना है। कथनी और करनी समान बनानी है।
वरदान:
ज्ञान-योग की पावरफुल किरणों द्वारा पुराने संस्कार रूपी कीटाणुओं को भस्म करने वाले मास्टर ज्ञान सूर्य भव   
कैसे भी पतित वातावरण को बदलने के लिए अथवा पुराने संस्कारों रूपी कीटाणुओं को भस्म करने के लिए यही स्मृति रहे कि मैं मास्टर ज्ञान सूर्य हूँ। सूर्य का कर्तव्य है रोशनी देना और किचड़े को खत्म करना। तो ज्ञान-योग की शक्ति वा श्रेष्ठ चलन द्वारा यही कर्तव्य करते रहो। यदि पावर कम है तो ज्ञान सिर्फ रोशनी देगा परन्तु पुराने संस्कार रूपी कीटाणु खत्म नहीं होंगे इसलिए पहले योग तपस्या द्वारा पावरफुल बनो।
स्लोगन:
शुभ भावना, शुभ कामना के श्रेष्ठ संकल्प ही जमा का खाता बढ़ाते हैं।