Sunday, August 28, 2016

मुरली 29 अगस्त 2016

29-08-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– मनमनाभव की ड्रिल सदा करते रहो तो 21 जन्मों के लिए रूस्ट-पुस्ट (निरोगी) बन जायेंगे”  
प्रश्न:
सतगुरू की कौन सी श्रीमत पालन करने में ही गुप्त मेहनत है?
उत्तर:
सतगुरू की श्रीमत है– मीठे बच्चे, इस देह को भी भूल कर मुझे याद करो। अपने को अकेली आत्मा समझो। देही-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करो। सबको यही पैगाम दो कि अशरीरी बनो। देह सहित देह के सब धर्मो को भूलो तो तुम पावन बन जायेंगे। इस श्रीमत को पालन करने में बच्चों को गुप्त मेहनत करनी पड़ती है। तकदीरवान बच्चे ही यह गुप्त मेहनत कर सकते हैं।
ओम् शान्ति।
बच्चे बैठे हैं– अपने भाई और बहिनों को ड्रिल सिखलाने। यह कौनसी ड्रिल है? इसमें बच्चों को कुछ कहना नहीं होता है। वह जो जिस्मानी ड्रिल आदि करते हैं उसमें तो कहना पड़ता है। यह तो सुप्रीम टीचर है जो गीता का भगवान भी है, जो बच्चों को बैठ योग की ड्रिल भी सिखलाते हैं। यह ड्रिल भी गुप्त है। ड्रिल सिखाई इसलिए जाती है कि स्टूडेन्ट रूस्ट-पुस्ट (हेल्दी) हों। तुम बच्चे जानते हो कि इस मनमनाभव की ड्रिल से 21 जन्मों के लिए बहुत रूस्ट-पुस्ट रहेंगे। कभी बीमार नहीं होंगे। तो यह कितनी अच्छी रूहानी ड्रिल है। बाप समझाते हैं मनमनाभव, इसमें कहने की भी दरकार नहीं। सिर्फ समझाया जाता है कि अपने को आत्मा समझो। देही-अभिमानी भव। भव का अर्थ ही है कि तुम बाप को याद करो तो एवरहेल्दी बन जायेंगे। कल्प पहले भी हम इस रूहानी ड्रिल से एवरहेल्दी बने थे। रूहानी ड्रिल, रूहानी बाप परमपिता परमात्मा शिव ही सिखलाते हैं। भगवान तो उनको ही कहा जाता है, जिनकी पूजा भी होती है। शिवाए नम: भी कहते हैं ना। ब्रह्मा देवता नम: शिव परमात्माए नम: कहेंगे। यह ड्रिल कोई जिस्मानी मनुष्य नहीं सिखलाते हैं। ऐसे नहीं कि तुमको यह ड्रिल ब्रह्मा ने सिखाई है। नहीं, भल ब्रह्माकुमार कुमारियाँ कहलाते हो परन्तु... चिठ्ठी पर भी लिखते हो शिवबाबा केअरआफ ब्रह्मा। वह तो गुप्त हो गया। लेकिन मनुष्यों को कैसे पता पड़े, ब्रह्मा तो प्रजापिता है। तो सारी दुनिया उनके बच्चे हैं। प्रजापिता है ना। ड्रिल सिखलाने वाला तो निराकार बाप है। वह गुप्त है। गुप्त होने के कारण मनुष्यों को समझने में भी डिफीकल्टी होती है। ब्रह्मा को तो भगवान नहीं कहा जाता। यहाँ नाम ही दिखाते हैं– ब्रह्माकुमार कुमारियाँ अर्थात् ब्रह्मा की सन्तान। जब कोई आता है तो उनको समझाना है कि यह नई दुनिया रचने वाला ब्रह्मा नहीं है लेकिन निराकार बाप है। जो ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं। पारलौकिक परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचते हैं गोया सुप्रीम सोल की रचना हुई। तुम पत्र के ऊपर लिखते हो शिवबाबा केअरआफ ब्रह्मा। तो यह भी याद करने की युक्ति है। शिवबाबा सिखलाते हैं ब्रह्मा द्वारा। बस सिर्फ कहते हैं मनमनाभव और कोई तकलीफ नहीं दी जाती सिर्फ कहा जाता है कि तुम अपनी उन्नति चाहते हो और सचखण्ड का मालिक बनने चाहते हो तो सचखण्ड स्थापन करने वाला तो एक ही सत्य बाप है, उसे याद करो। बेहद का बाप ही आकर बच्चों को कहते हैं कि मुझे याद करो तो पापों से मुक्त होंगे। कृष्ण को पतितपावन नहीं कहा जाता है सिवाए परमपिता परमात्मा के। और कोई नाम नहीं लेंगे। गॉड फादर ही कहेंगे। सब उनको फादर कहते हैं फिर उनको सर्वव्यापी कैसे कह सकते। कहते हैं वह आते हैं लिबरेट करने के लिए। यह मनुष्य नहीं जानते। तो कल्प की आयु ही उल्टी लिख दी है। अब बच्चों को यह ड्रिल करनी है। ज्ञान तो मिला हुआ है। जब बैठते हो तो अपने को देही समझकर बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। टीचर सामने बैठता है गद्दी पर, तो शोभता है। कायदा है कि ड्रिल कराने के लिए टीचर जरूर चाहिए। कोई बड़ा टीचर तो कोई छोटा टीचर होता है। अब तुम्हारा इम्तहान लेने की कोई दरकार नहीं क्योंकि तुम खुद जानते हो कि हम कितना समय मोस्ट बिलवेड बाप को याद करते हैं। ब्रह्मा कोई मोस्ट बिलवेड नहीं है। बिलवेड मोस्ट वह है जो सदा पावन है। तुम बच्चे जानते हो कि सबसे प्यारा कौन है। मनुष्य परमात्मा को ही याद करते हैं हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता। उसको लिबरेटर भी कहते हैं अर्थात् दु:खों से मुक्त करने वाला। तो बच्चों को अपना पुरूषार्थ करना है। ड्रामा प्लैन अनुसार यह दुनिया पावन होनी जरूर है और पावन दुनिया बनने के लिए आग लगनी है। यह भी जानते हो आग कैसे लगेगी। विनाश होने बिगर दुनिया पावन बन नहीं सकेगी। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ.... रूद्र और शिव कोई फर्क नहीं है। परन्तु शिव नाम है मुख्य। बाकी तो अपनी-अपनी भाषा में अनेक नाम रख दिये हैं। असुल नाम है शिव। शिव जयन्ती भी मनाते हैं। भारत में ही शिवजयन्ती मशहूर है। बेहद के बाप की शिव जयन्ती है तो आते भी जरूर होंगे। शिवबाबा का नाम बाला है। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना कराने वाला है। तो उस ऊंच ते ऊंच बाप को याद करना पड़े। ब्रह्मा ऊंच ते ऊंच नहीं है। वास्तव में ब्रह्मा ऊंच से ऊंच बनते हैं। फिर नीचे भी उतरते हैं। तुम बी.के. भी नीचे थे अब ऊंच बन रहे हो। एकदम ऊंच बाप के घर चले जायेंगे। तुम इस समय त्रिकालदर्शी बन रहे हो। तुम खुद जानते हो कि हम ही स्वदर्शन चक्रधारी हैं। हम ब्रह्माण्ड और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानने वाले हैं। ब्रह्माण्ड अर्थात् ऊंच, जहाँ सभी आत्मायें निवास करती हैं। दुनिया में कोई और नहीं जो समझाये कि मूलवतन में आत्मायें रहती हैं। विश्व और ब्रह्माण्ड अलग-अलग हैं। आत्मायें रहती हैं निर्वाणधाम में, जिसको शान्तिधाम कहा जाता है। वह सबको प्यारा लगता है। उसका असली नाम निर्वाणधाम वा शान्तिधाम है। आत्मा का स्वरूप है शान्त। एक शान्तिधाम फिर है मूवीधाम और यह है टॉकी धाम। मूवीधाम में जास्ती रहने का नहीं है। शान्तिधाम में तो बहुतों को रहना होता है, और कोई स्थान नहीं है। आत्मा जब बाप को और घर को याद करती है तो ऊपर में याद करती है। बीच के धाम को तो तुम्हारे सिवाए और कोई नहीं जानते हैं। मनुष्यों को तो इतना ज्ञान है नहीं। सिर्फ कहते हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर सूक्ष्मवतन में रहते हैं। बाकी उन्हों के आक्यूपेशन का पता नहीं है। 84 जन्म लेते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा है। यह है लीप युग। यह थोड़े समय का है। जैसे पुरूषोत्तम मास कहा जाता है। यह तुम्हारा हीरे जैसा उत्तम बनने का ऊंच जन्म है। शूद्र से ब्राह्मण बनना सबसे उत्तम है। ब्राह्मण बनते हो तो दादे का वर्सा लेने के हकदार बनते हो। बाप बच्चों को कहते हैं बच्चे सदैव मनमनाभव। बाप का मैसेज सबको देते रहो। बाप को कहा ही जाता है– मैसेन्जर और कोई भी मैसेन्जर अथवा पैगम्बर नहीं है। वह तो आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं। पैगम्बर सिर्फ एक है वही आकर तुमको पवित्र बनने का पैगाम देते हैं। वह आते हैं– धर्म स्थापन करने। वह कोई वापिस ले जाने वाले गाइड नहीं हैं। वह तो एक ही सतगुरू सद्गति देने वाला है। सच बोलने वाला, सच्चा रास्ता बताने वाला तो एक ही परमपिता परमात्मा शिव है। तो बहुत गुप्त मेहनत करनी है बच्चों को। अभी तुम जानते हो कि हमको यह देह भूलकर एक बाप को याद करना है। शरीर छूटा तो सारी दुनिया छूट जाती है। आत्मा अकेली बन जाती है। बाप कहते हैं- देही-अभिमानी बनो तो फिर कोई भी मित्र-सम्बन्धी याद नहीं पड़ेंगे। हम आत्मा हैं, हम चले जायेंगे बाप के पास। बाप राय देते हैं कि तुम मेरे पास कैसे आ सकते हो। यह बाबा भी नामीग्रामी है। इन द्वारा बाप सभी आत्माओं का गाइड बन मच्छरों सदृश्य वापिस ले जाते हैं। यह यथार्थ ज्ञान सिर्फ तुम बच्चों की बुद्धि में है। तुमको पाण्डव सेना भी कहते हैं। पाण्डवपति स्वयं साक्षात् परमपिता परमात्मा है, जो तुम बच्चों को ड्रिल सिखला रहे हैं। हूबहू कल्प पहले मुआिफक। जब विनाश होगा तो सब आत्मायें शरीर छोड़ चली जायेंगी। सतयुग में जब थोड़ी आत्मायें हैं तो एक राज्य है। अभी अनेक हैं फिर जरूर एक होगा। यह ज्ञान सारा दिन बुद्धि में सिमरण करना है। बच्चों को प्रदर्शनी पर भी समझाना है। जब न्यु देहली थी तो नया भारत था। एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। आदि सनातन कोई हिन्दू धर्म नहीं था। हम ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। यह और धर्म वाले मानेंगे नहीं। जो पहले आते हैं वही 84 जन्म लेते हैं। यह हैं बिल्कुल सहज समझने की बातें। अब तुम बच्चों की बुद्धि में है कि अब नाटक पूरा होता है। सभी एक्टर्स आ गये हैं। 84 जन्म पूरे किये, अब फिर घर चलना है क्योंकि बहुत थक गये हो ना। भक्ति मार्ग है ही थकने का मार्ग। बाप कहते हैं- अब मेरे को याद करो औरों को भी पैगाम दो कि देह सहित देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। अशरीरी बनो तो पावन बन जायेंगे क्योंकि अब वापिस घर चलना है। मौत सामने खड़ा है। यहाँ भी बच्चे बाप के पास सम्मुख रिफ्रेश होने आते हैं। बाप सम्मुख बच्चों को समझाते हैं कि बच्चे देह-अभिमान छोड़ मामेकम् याद करो। यह पुरानी दुनिया अब खत्म होनी है। तुम एक बाप को याद कर पवित्र बनेंगे तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। अगर मेहनत नहीं करेंगे तो फल भी नहीं मिलेगा। फिर सजा खानी पड़ेगी। बाप कहते हैं कि अपनी कमाई जमा करते रहो और दूसरों को भी निमन्त्रण दो। बाप का रास्ता भी बताओ। तुम बच्चों को भी कल्याणकारी बनना है। अपने मित्र-सम्बन्धियों का भी कल्याण करना है। यहाँ तुमको देही-अभिमानी बनाया जाता है। महामन्त्र देते हैं। प्राचीन योग बाप ने ही आकर सिखाया है, जिसके लिए ही गाया जाता है– योग अग्नि से पाप दग्ध हो जायेंगे, कल्प पहले भी यही इशारा मिला था। बाप इशारा देते हैं कि अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। रहो भल अपने गृहस्थ व्यवहार में। गाया हुआ है कि शरण पड़ी मैं तेरे। यह भी होता है– जब कोई दु:खी होते हैं तो ऊंच ताकत वाले की जाए शरण लेते हैं। यहाँ तो प्रैक्टिकल में हैं। जब बहुत दु:ख देखते हैं, सहन नहीं कर सकते हैं, लाचार होते हैं तो फिर भागकर आए बाप की शरण लेते हैं। सद्गति तो सिवाए बाप के कोई दे न सके। बच्चे जानते हैं कि पुरानी दुनिया विनाश होनी है। तैयारी हो रही है इस तरफ तुम्हारे स्थापना की तैयारी, उस तरफ विनाश की तैयारी है। स्थापना हो गई तो विनाश भी जरूर होना है। तुम जानते हो कि बाबा आया है स्थापना कराने, इन द्वारा वर्सा भी जरूर मिलेगा। बाकी प्रेरणा से थोड़ेही काम चलता है। टीचर को कहेंगे क्या कि हम आपकी प्रेरणा से पढ़ लेंगे। प्रेरणा से अगर सब कुछ होता तो शिव जयन्ती क्यों मनाई जात्? प्रेरणा से करने वाले की तो शिव जयन्ती मनाने की दरकार नहीं। जयन्ती तो सभी आत्माओं की होती है। आत्मायें सब जीव में आती हैं। आत्मा और शरीर जब मिलते हैं तो पार्ट बजाते हैं। आत्मा का तो स्वधर्म है शान्त, उसमें ही नॉलेज धारण होती है। आत्मा ही अच्छा-बुरा संस्कार ले जाती है। बाप तो स्वर्ग का रचयिता है। वहाँ तो पवित्रता ही है। अपवित्रता का नाम-निशान नहीं है। यह है विषय सागर। कितना क्लीयर समझाया जाता है तो भी किसकी बुद्धि में नहीं आता परन्तु तुम किसको भी दोष नहीं देते हो। ड्रामा के बन्धन में सब बांधे हुए हैं। तुम समझते हो– सीढ़ी से ऊपर से नीचे उतर आये हैं। ड्रामानुसार हमको उतरना ही है फिर बाप कहते हैं-अब चढ़ने के लिए पुरूषार्थ करना है। परन्तु जिनकी तकदीर में नहीं है वह ऐसे कहते हैं। जो ऐसे कहते हैं उनसे समझ जाते हैं कि इसकी तकदीर में नहीं है। 2-4 वर्ष चलते-चलते भी गिर पड़ते हैं। महसूस भी करते हैं कि हमने बड़ी भूल की है। बड़ी चोट खाई। यह भी आधाकल्प की बीमारी है, कम नहीं है। आधाकल्प के रोगी हैं। भोगी बनने से रोगी बन जाते हैं। तो बाप आकर पुरूषार्थ करवाते हैं। कृष्ण को योगेश्वर कहते हैं। इस समय तुम सच्चे-सच्चे योगी हो, योगेश्वर तुमको योग सिखलाते हैं। तुम ज्ञान-ज्ञानेश्वर भी हो फिर बनेंगे राज-राजेश्वर। ज्ञान से तुम धनवान बनते हो, योग से निरोगी एवरहेल्दी बनते हो। आधाकल्प के लिए तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जाते हैं तो इसके लिए कितना पुरूषार्थ करना चाहिए। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पावन बनने के लिए अशरीरी बनने का अभ्यास करना है। सबको पैगाम देना है कि एक बाप को याद करो। देह सहित सब कुछ भूल जाओ।
2) योगेश्वर बाप से योग सीखकर सच्चा-सच्चा योगी बनना है। ज्ञान से धनवान और योग से निरोगी, एवरहेल्दी बनना है।
वरदान:
हर शिक्षा को स्वरूप में लाकर सबूत देने वाले सपूत वा साक्षात्कार मूर्त भव!  
जो बच्चे शिक्षाओं को सिर्फ शिक्षा की रीति से बुद्धि में नहीं रखते, लेकिन उन्हें स्वरूप में लाते हैं वह ज्ञान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, आनंद स्वरूप स्थिति में स्थित रहते हैं। जो हर प्वाइंट को स्वरूप में लायेंगे वही प्वाइंट रूप में स्थित हो सकेंगे। प्वाइंट का मनन अथवा वर्णन करना सहज है लेकिन स्वरूप बन अन्य आत्माओं को भी स्वरूप का अनुभव कराना– यही है सबूत देना अर्थात् सपूत वा साक्षात्कार मूर्त बनना।
स्लोगन:
एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ तो मन-बुद्धि का भटकना बंद हो जायेगा।