Wednesday, August 24, 2016

मुरली 25 अगस्त 2016

25-08-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– बाप आये हैं तुम्हें इस पाप की दुनिया से निकाल चैन की दुनिया में ले जाने, बाप द्वारा तुम्हें सुख-शान्ति की दो सौगातें मिलती हैं”   
प्रश्न:
सारी दुनिया में सच्ची-सच्ची नन्स तुम हो, सच्ची नन्स किसे कहेंगे?
उत्तर:
सच्ची नन्स वह जिनकी बुद्धि में एक की याद हो अर्थात् नन बट वन। वे अपने को भल नन्स कहलाती हैं लेकिन उनकी बुद्धि में सिर्फ एक क्राइस्ट की याद नहीं, क्राइस्ट को भी गॉड का बच्चा कहेंगे। तो उनकी बुद्धि में दो हैं और तुम्हारी बुद्धि में एक बाप है इसलिए तुम सच्ची-सच्ची नन्स हो। तुम्हें बाप का फरमान है पवित्र रहना है।
गीत:-
इस पाप की दुनिया से...   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना। किसने सुना? आत्माओं ने। आत्मा को परमात्मा नहीं कहा जा सकता। मनुष्य को भगवान नहीं कह सकते। अच्छा अभी तुम हो ब्राह्मण। तुमको अभी देवता नहीं कहा जाता। ब्रह्मा को भी देवता नहीं कहा जा सकता। भल कहते हैं ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:.. परन्तु ब्रह्मा और विष्णु में तो बहुत फर्क है। विष्णु को देवता कहा जाता है, ब्रह्मा को देवता नहीं कह सकते क्योंकि वह है ब्राह्मणों का बाप। ब्राह्मणों को देवता नहीं कहा जा सकता। अब यह बातें कोई मनुष्य, मनुष्य को नहीं समझा सकते, भगवान ही समझाते हैं। मनुष्य तो अन्धश्रद्धा में जो आता है सो बोल देते हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो– रूहानी बाप हम बच्चों को पढ़ा रहे हैं। अपने को आत्मा समझना चाहिए। अहम् आत्मा यह शरीर लेती हैं। अहम् आत्मा ने 84 जन्म लिए हैं। जैसे-जैसे कर्म करते हैं वैसे शरीर मिलता है। शरीर से आत्मा अलग हो जाती है तो फिर शरीर से प्यार नहीं रहता। आत्मा से प्यार रहता है। आत्मा में भी प्यार तब है जबकि आत्मा शरीर में है। पित्रों को मनुष्य बुलाते हैं, शरीर तो उनका खत्म हो गया फिर भी उनकी आत्मा को याद करते हैं इसलिए ब्राह्मण में बुलाते हैं। कहते हैं फलाने की आत्मा आओ, यह भोजन आकर खाओ। गोया आत्मा में मोह रहता है। परन्तु पहले शरीर में मोह था, वह शरीर याद आता था। ऐसे नहीं समझते कि हम आत्मा को बुलाते हैं। आत्मा ही सब कुछ करती है। आत्मा में अच्छे वा बुरे संस्कार रहते हैं। पहले-पहले है देह-अभिमान फिर उसके बाद और विकार आते हैं। सबको मिलाकर कहा जाता है विकारी। जिसमें यह विकार नहीं हैं उनको कहा जाता है निर्विकारी। यह तो समझते हो बरोबर भारत में जब देवी-देवता थे तो उनमें दैवीगुण थे। इन लक्ष्मी-नारायण का है ही देवी-देवता धर्म। जैसे क्रिश्चियन धर्म में मेल अथवा फीमेल सब क्रिश्चियन हैं। यह भी कहा जाता है देवी-देवता। राजा-रानी, प्रजा सब देवी-देवता धर्म के हैं। यह बहुत ऊंच सुख देने वाला धर्म है। बच्चों ने गीत भी सुना, यह आत्मा ने कहा कि बाबा ऐसी जगह ले चलो जहाँ मुझे चैन-शान्ति हो। वह तो है सुखधाम और शान्तिधाम। यहाँ बड़े बेचैन हैं। सतयुग में बेचैनी होती नहीं। आत्मा जानती है बाबा बिगर कोई चैन की दुनिया में ले जा नहीं सकते हैं। बाप कहते हैं- मुक्ति और जीवनमुक्ति यह दो सौगातें मैं कल्प-कल्प लाता हूँ। परन्तु तुम भूल जाते हो, ड्रामा में भूलना ही है। सब भूल जाएं तब तो मैं आऊं। अभी तुम ब्राह्मण बने हो, तुमको निश्चय है हमने 84 जन्म लिए हैं। जो पूरा ज्ञान नहीं उठायेंगे वह पहले नई दुनिया में भी नहीं आयेंगे। त्रेता वा त्रेता के अन्त में आ जाएं। सारा मदार है पुरूषार्थ पर। सतयुग में सुख था, इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। अच्छा इसके अगले जन्म में यह कौन थे, किसको पता नहीं है। अगले जन्म में यह ब्राह्मण थे। उससे पहले शूद्र थे। वर्णो पर तुम अच्छी रीति समझा सकते हो। अभी तुम समझते हो हम 21 जन्म के लिए चैन पायेंगे। बाबा हमको वह रास्ता बता रहे हैं। हम अभी पतित हैं इसलिए बेचैन हैं, दु:खी हैं। जहाँ चैन हो उसको सुख-शान्ति कहेंगे। तो अब तुम बच्चों की बुद्धि में आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। समझते हो बरोबर सतयुग में भारत कितना सुखी था। दु:ख अथवा बेचैनी का नाम नहीं था। अभी तुम पुरूषार्थ कर रहे हो स्वर्ग में जाने लिए। अभी तुम बने हो ईश्वरीय सम्प्रदाय के और वह हैं आसुरी सम्प्रदाय के। कहते हैं ना– पाप आत्मा। आत्मायें अनेक हैं, परमात्मा एक है। सब ब्रदर्स हैं, सब परमात्मा हो नहीं सकते। इतनी थोड़ी सी बात भी मनुष्यों की बुद्धि में नहीं है। बाबा ने समझाया है यह सारी दुनिया बड़ा बेहद का टापू है, वह छोटे-छोटे टापू होते हैं। इस बेहद टापू पर रावण का राज्य है। इन बातों को मनुष्य नहीं समझते हैं। वह तो सिर्फ कहानियां सुनाते रहते हैं। कहानी को ज्ञान नहीं कहा जाता। उनसे मनुष्य सद्गति को पा नहीं सकते। ज्ञान से सद्गति मिलती है। ज्ञान देने वाला है एक बाप, दूसरा न कोई। भक्तों की भगवान ही आकर रक्षा करते हैं। मनुष्य, मनुष्य की रक्षा नहीं कर सकते। शिवबाबा सभी बच्चों को वर्सा देते हैं। वह बाप भी है, शिक्षक भी है, सतगुरू भी है। वकील, बैरिस्टर भी है क्योंकि जमघटों की सजा से छुड़ाने वाला है। सतयुग में कोई भी जेल में नहीं जायेंगे। बाप सबको जेल से छुड़ाते हैं। बच्चों की सर्वश्रेष्ठ सब मनोकामनायें पूरी होती हैं। रावण द्वारा अशुद्ध कामनायें पूरी होती है। बाप द्वारा शुद्ध कामनायें पूरी होती हैं। शुद्ध कामनायें पूरी होने से तुम सदा सुखी बन जाते हो। अशुद्ध कामना है– पतित विकारी बनना। पावन रहने वाले को ब्रह्मचारी कहा जाता है। तुमको भी पवित्र रहना है। पवित्र बन और पवित्र दुनिया का मालिक बनना है। पतित से पावन एक बाप ही बनाते हैं। साधू-सन्त आदि तो विकार से पैदा होते हैं, देवताओं के लिए ऐसे थोड़ेही कहेंगे। वहाँ विकार होते ही नहीं। वह है ही पावन दुनिया। लक्ष्मी-नारायण सम्पूर्ण निर्विकारी थे, भारत पवित्र था। यह अभी तुम समझते हो। सतयुग में प्योरिटी थी तो पीस प्रासपर्टा थी, सब सुखी थे, रावण राज्य जब से हुआ है तो गिरते आये हैं। अभी तो कोई काम के नहीं रहे हैं। एकदम कौड़ी मिसल बन गये हैं। अब फिर हीरे मिसल बाप द्वारा बनते हो। भारत जब सतयुग था तो हीरे जैसा था। अब तो कौड़ी मिसल भी नहीं है। अपने धर्म का ही किसको पता नहीं पड़ता है। पाप करते रहते हैं। वहाँ तो पाप का नाम नहीं। तुम देवी-देवता धर्म के नामीग्रामी हो, देवताओं के ढेर चित्र हैं। और धर्मो में देखेंगे एक ही चित्र रहता है, क्रिश्चियन पास एक ही क्राइस्ट का चित्र होगा। बौद्धियों के पास एक ही बुद्ध का। क्रिश्चियन, क्राइस्ट को ही याद करते हैं, उनको नन्स कहा जाता है। नन्स माना सिवाए एक क्राइस्ट के और कोई नहीं इसलिए कहते हैं नन बट क्राइस्ट, ब्रह्मचारी रहते हैं। तुम भी नन्स हो। तुम अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते नन्स बनती हो। एक ही बाप को याद करती हो। नन बट वन, एक शिवबाबा दूसरा न कोई। उन्हों की बुद्धि में फिर भी दो आ जाते हैं। क्राइस्ट के लिए भी समझेंगे वह गॉड का बच्चा था। परन्तु उनको गॉड की नॉलेज नहीं। तुम बच्चों को नॉलेज है, सारी दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसको परमात्मा की नॉलेज हो। परमात्मा कहाँ रहते हैं, कब आते हैं, उनका क्या पार्ट चलता है, यह कोई नहीं जानते। भगवान को जानी जाननहार कहते हैं। समझते हैं वह हमारे दिल की बात को जानते हैं। बाप कहते हैं- मैं नहीं जानता, हमको क्या पड़ी है– जो हर एक की दिल को बैठ रीड करूँगा, हम आये ही हैं पतितों को पावन बनाने। अगर कोई पवित्र नहीं रहते हैं, झूठ बोलते हैं तो नुकसान अपने को पहुँचायेंगे। गाया हुआ है– देवताओं की सभा में असुर जाकर बैठते थे। वहाँ अमृत बांटा जाता था, कोई विकार में जाकर फिर छिपकर आए बैठते तो वह असुर हुए ना। आपेही अपना पद भ्रष्ट कर देंगे। हर एक को अपना पुरूषार्थ करना है। नहीं तो अपनी ही सत्यानाश करते हैं। बहुत ऐसे हैं जो छिपकर बैठ जाते हैं। कहते हैं हम विकार में थोड़ेही जाते, परन्तु विकार में जाते रहते हैं। यह गोया अपने को ठगते हैं। अपनी ही सत्यानाश करते हैं। परमपिता परमात्मा, जिसका राइट हैण्ड धर्मराज है उनके आगे झूठ बोलते हैं तो खुद ही दण्ड के भागी बन पड़ते हैं। बहुत सेन्टर्स में भी ऐसे होते हैं। बाबा जब पहली बार देहली में गया था तो रोज एक आता था और विकार में जाता रहता था। पूछा जाता था जबकि पवित्र नहीं रहते हो तो आते क्यों हो? कहता था– आऊंगा नहीं तो निर्विकारी कैसे बनूँगा। पवित्रता अच्छी लगती है परन्तु रह भी नहीं सकता हूँ। आखरीन तो सुधर जाऊंगा। नहीं आऊंगा तो बेड़ा गर्क हो जायेगा। और कोई रास्ता ही नहीं है इसलिए हमको यहाँ आना पड़ता है। बाप समझाते हैं तुम वायुमण्डल खराब करते हो, कहाँ तक ऐसे आते रहेंगे। पावन जो बनते हैं उनको पतित से जैसे घृणा आती है। कहते हैं बाबा इनके हाथ का खाना भी अच्छा नहीं लगता। बाप ने युक्ति भी बताई है, खान-पान की खिटपिट होती है, ऐसे तो नहीं नौकरी छोड़ देंगे, फिर युक्ति से चलाना होता है। कोई को समझाओ तो बिगड़ पड़ते हैं, पवित्र कैसे रहेंगे। यह तो कब सुना नहीं। सन्यासी भी रह नहीं सकते। जब घरबार छोड़ जाते हैं तब पवित्र रह सकते हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं कि यहाँ पतित-पावन परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। नहीं मानते इसलिए विरोध करते हैं। शिवबाबा ब्रह्मा तन में आते हैं, कोई शास्त्र दिखाओ। यह तो गीता में लिखा हुआ है मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ। वह अपने जन्मों को नहीं जानते। यह तो लिखा हुआ है फिर तुम कैसे कहते हो कि परमात्मा कैसे मनुष्य तन में आयेंगे। पतित तन में ही आकर रास्ता बतायेंगे ना। आगे भी आये थे और कहा था– मामेकम् याद करो। वही परमधाम में रहते हैं और कहते हैं मामेकम् याद करो। कृष्ण का शरीर तो मूलवतन में नहीं होगा– जो कहे मामेकम् याद करो। एक परमपिता परमात्मा ही साधारण तन में प्रवेश कर तुम बच्चों को कहते हैं मामेकम् याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे पाप कट जायेंगे इसलिए ही मुझे पतित-पावन कहते हैं। पतित-पावन जरूर आत्माओं का होगा ना। पतित भी आत्मा ही बनती है। बाप कहते हैं- तुम पवित्र आत्मा 16 कला सम्पूर्ण थी। अभी नो कला, बिल्कुल ही पतित बन गये हो। मैं कल्प-कल्प आकर तुमको समझाता हूँ। तुम जो काम चिता पर बैठ पतित बन जाते हो फिर ज्ञान चिता पर बिठाकर तुमको पावन बनाता हूँ। भारत में पवित्र प्रवृत्तिमार्ग था, अभी अपवित्र प्रवृत्तिमार्ग है। किसको भी चैन नहीं। अब बाप कहते हैं दोनों ज्ञान चिता पर बैठो। हर आत्मा को अपने-अपने कर्मो अनुसार शरीर मिलता है। ऐसे नहीं कि दूसरे जन्म में वही पति-पत्नी आपस में मिलेंगे। नहीं, इतनी रेस कर न सके। यह तो पढ़ाई की बात है ना। अज्ञान काल में हो सकता है, आपस में बहुत प्रेम है– तो उनकी मनोकामनायें पूरी हो सकती हैं, वह तो है पतित विकारी मार्ग। पति के पीछे पत्नी चिता पर बैठती है। दूसरे जन्म में भी जाकर उनसे मिलती है। परन्तु दूसरे जन्म में उनको थोड़ेही मालूम पड़ेगा। तुम भी बाबा के साथ ज्ञान चिता पर चढ़ते हो। यह छी-छी शरीर छोड़ चले जायेंगे। तुमको यह अभी मालूम है, उनको तो नहीं रहता कि हम आगे जन्म में ऐसे साथी थे। तुमको भी बाद में वहाँ यह बातें याद नहीं रहेंगी। अभी तुम्हारी बुद्धि में एम आब्जेक्ट है। मम्मा बाबा, लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। विष्णु है देवता। प्रजापिता ब्रह्मा को देवता नहीं कह सकते। ब्रह्मा सो देवता बनते हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं– यह अभी तुमने समझ लिया है। अभी तुम जानते हो– चैन सिर्फ स्वर्ग में ही होता है। कोई मरते हैं तो कहते हैं स्वर्ग गया अर्थात् चैन में गया। बेचैनी में पतित रहते हैं। बाप फिर भी कहते हैं अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बाकी हैं डीटेल में समझने की बातें। बाप नॉलेजफुल है तो तुमको भी अपने जैसा नॉलेजफुल बनायेंगे। बाप की याद से तुम सतोप्रधान बनेंगे, यह आत्माओं की रेस है। जो जास्ती याद करेंगे वह जल्दी बनेंगे। यह है योग और पढ़ाई की रेस। स्कूल में भी रेस होती है ना। ढेर स्टूडेन्ट्स होते हैं उनमें से जो नम्बरवन निकलते हैं उनको स्कालरशिप मिलती है। एक ही पढ़ाई लाखों, करोड़ों की होती है तो इतने स्कूल भी होंगे ना। अब तुमको यह पढ़ाई पढ़नी है। सबको रास्ता बताओ, अंधों की लाठी बनो। घर-घर में पैगाम पहुँचाना है। अच्छा–

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अब अशुद्ध कामनाओं का त्याग कर शुद्ध कामनायें रखनी हैं। सबसे शुद्ध कामना है पवित्र बनकर पवित्र दुनिया का मालिक बनें...। कोई भी भूल को छिपाकर अपने आपको ठगना नहीं है। धर्मराज बाप से सदा सच्चा रहना है।
2) ज्ञान चिता पर बैठ इस पढ़ाई में रेस कर भविष्य नई दुनिया में ऊंच पद पाना है। योग अग्नि से विकर्मो के खाते को दग्ध करना है।
वरदान:
स्वमान में स्थित रह देह-अभिमान को समाप्त करने वाले सफलतामूर्त भव   
जो बच्चे स्वमान में स्थित रहते हैं वही बाप के हर फरमान का सहज ही पालन कर सकते हैं। स्वमान भिन्न-भिन्न प्रकार के देह-अभिमान को समाप्त कर देता है। लेकिन जब स्वमान से स्व शब्द भूल जाता है और मान-शान में आ जाते हो तो एक शब्द की गलती से अनेक गलतियां होने लगती हैं इसलिए मेहनत ज्यादा और प्रत्यक्षफल कम मिलता है। लेकिन सदा स्वमान में स्थित रहो तो पुरूषार्थ वा सेवा में सहज ही सफलता-मूर्त बन जायेंगे।
स्लोगन:
तपस्या करनी है तो समय को बचाओ, बहाना नहीं दो।