Friday, July 8, 2016

मुरली 9 जुलाई 2016

09-07-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– इस सभा में बाहरमुखी बनकर नहीं बैठना है, बाप की याद में रहना है, मित्र सम्बन्धी अथवा धन्धे आदि को याद करने से वायुमण्डल में विघ्न पड़ता है”   
प्रश्न:
तुम बच्चों के रूहानी ड्रिल की विशेषता क्या है, जिसे मनुष्य नहीं कर सकते?
उत्तर:
तुम्हारी रूहानी ड्रिल बुद्धि की है, उसकी विशेषता यही है जो तुम आशिक बन अपने माशुक को याद करते हो। इसका ही इशारा गीता में भी आया है– मनमनाभव। परन्तु मनुष्य अपने माशुक परमात्मा को जानते ही नहीं तो ड्रिल कैसे कर सकेंगे। वे तो एक दो को जिस्मानी ड्रिल सिखलाते हैं।
ओम् शान्ति।
बच्चे भी समझते हैं, बाप भी समझते हैं कि बच्चे (योग कराने वाले) यहाँ क्या कर रहे हैं! याद के यात्रा की ड्रिल करा रहे हैं। मुख से कुछ भी कहने का नहीं है। किसकी याद है? परमपिता परमात्मा शिवबाबा की। उनकी याद में रहने से हमारे जो भी विकर्म हैं, वह भस्म हो जायेंगे और विकर्माजीत बन जायेंगे, जितना जो याद की ड्रिल में रहेंगे। यह आत्मा की ड्रिल है, शरीर की नहीं। भारत में जो भी ड्रिल सिखाते हैं, वह सब हैं जिस्मानी, यह है रूहानी ड्रिल। इस रूहानी ड्रिल को तुम बच्चों के सिवाए कोई जानते ही नहीं। रूहानी ड्रिल का इशारा गीता में है जरूर। भगवानुवाच अथवा भगवान के बच्चों का भी वाच है। तुम अभी भगवान शिवबाबा के बच्चे बने हो ना। बच्चों को फरमान मिला है– मामेकम् याद करो। बाप भी ड्रिल सिखलाते हैं। बच्चे भी यही ड्रिल सिखलाते हैं। कल्प पहले भी बाप ने यही कहा था कि मुझ बाप को याद करो। इसमें घड़ी-घड़ी कहने की दरकार नहीं है, परन्तु कहना पड़ता है। यहाँ बैठे कोई अपने मित्र-सम्बन्धियों, धन्धे आदि को याद करते रहते हैं तो वायुमण्डल में विघ्न डालते हैं। बाप कहते हैं- जैसे यहाँ तुम याद में बैठे हो ऐसे ही चलते फिरते, कर्म करते हुए याद में रहना है। जैसे आशिक माशुक एक दो को याद करते हैं। उन्हों की याद है जिस्मानी। तुम्हारी है रूहानी याद। आत्मायें भक्ति मार्ग में भी आशिक होती हैं परमपिता परमात्मा माशुक की। परन्तु माशुक को जानते नहीं हैं, न अपनी आत्मा को जानते हैं। माशुक बाप आया हुआ है। भक्ति मार्ग से लेकर आत्मायें आशिक बनी हैं। यह है ही आत्माओं और परमात्मा की बात। बाप बच्चों को सम्मुख कहते हैं– तुम आशिक मुझ माशुक को याद करते हो कि बाबा आओ। हमको आकर दु:ख से लिबरेट करो और अपने साथ शान्तिधाम में ले चलो। तुम जानते हो अब इस दु:खधाम, मृत्युलोक का विनाश होना है। अमरलोक जिंदाबाद, मृत्युलोक मुर्दाबाद। तुम अभी ब्राह्मण बच्चे बने हो, तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार हैं। तुम बच्चों को पूरा निश्चय होना चाहिए कि हम अब नर्कवासी से स्वर्गवासी 21 जन्म लिए बनते हैं। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। परन्तु कितने समय के लिए स्वर्गवासी हुआ... यह कोई भी नहीं जानते हैं। अब तुम पुरूषार्थ कर रहे हो– स्वर्गवासी बनने के लिए। यह कौन निश्चय कराते हैं! वह है गीता का भगवान। परन्तु वह तो एक ही निराकार होता है। मनुष्य समझते हैं– निराकार तो निराकार ही है। वह कैसे यहाँ आकर सिखायेंगे? बाप को न जानने के कारण ड्रामा अनुसार कृष्ण का नाम भूल से डाल दिया है। कृष्ण और शिव का सम्बन्ध इस समय नजदीक है। शिव जयन्ती होती है संगम पर। फिर कल होगी कृष्ण जयन्ती। शिव जयन्ती है रात में, कृष्ण जयन्ती है सवेरे, उसको प्रभात कहेंगे। जब शिवरात्रि पूरी होती है तब फिर कृष्ण जयन्ती होती है। यह बातें बच्चे ही समझ सकते हैं, कायदा है– यहाँ सभा में कोई बाहरमुखी न हो। बाप की याद में रहना है। मनुष्य पुकारते भी हैं हे पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ। परन्तु ड्रामा अनुसार पत्थरबुद्धि कुछ भी समझते नहीं। अगर जानते होते तो बताते। उनको यह भी पता नहीं है कि अभी कलियुग का अन्त है फिर जब बाप आते हैं तब आदि होती है। मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। लोग समझते हैं कलियुग में अजुन 40 हजार वर्ष पड़े हैं। बेहद का बाप समझाते हैं हद का बाप कब पतित-पावन हो न सकें। बापू नाम तो बहुतों के रख दिये हैं। बुजुर्ग को भी बापू अथवा पिताजी कहते हैं। यह रूहानी पिताश्री तो एक ही है जो पतित-पावन, ज्ञान का सागर है। बच्चों को पावन होने के लिए ज्ञान चाहिए। पानी में स्नान करने से कोई पावन थोड़ेही बनेंगे। तुम जानते हो शिवबाबा हमारे सामने इस तन में प्रत्यक्ष है। ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों को राजयोग सिखा रहे हैं। वह तो कह देते हैं भगवानुवाच अर्जुन प्रति। ब्राह्मणों का नाम निशान नहीं है। गाया जाता है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना। स्थापना तो ब्रह्मा द्वारा ही करेंगे, न कि विष्णु द्वारा, न शंकर द्वारा। तुम बच्चों को यह समझानी अब मिली है। बाप को यहाँ आना पड़ता है, वापिस तो कोई भी आत्मा जा नहीं सकती। जो भी आते हैं उनको सतो रजो तमो से पास करना ही है। कृष्ण भी पूरे 84 जन्म लेते हैं और पूरे 5 हजार वर्ष पार्ट बजाया। जब आत्मा पेट में है तो भी जन्म तो है। कृष्ण की आत्मा जब सतयुग में आती है, गर्भ में प्रवेश किया तब से लेकर 5 हजार वर्ष में 84 जन्मों का पार्ट बजाना है। जैसे शिवजयन्ती मनाते हैं तो इसमें बैठा है ना। कृष्ण की आत्मा भी गर्भ में आई चुरपुर हुई, उस समय से लेकर 5 हजार वर्ष का हिसाब शुरू होता है। अगर कम जास्ती हो तो फिर 5 हजार वर्ष में कम हो जाए। यह बड़ी सूक्ष्म समझने की बातें हैं। बच्चे जानते हैं कृष्ण की आत्मा फिर से यह ज्ञान ले रही है, फिर से श्रीकृष्ण बनने के लिए। तुम भी कंसपुरी से कृष्णपुरी में जाते हो। यह बातें बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। बाबा कहते हैं- माया बड़ी दुश्तर है। अच्छे-अच्छे महारथियों को भी हरा देती है। ज्ञान लेते-लेते कहाँ ग्रहचारी बैठ जाती है। आश्चर्यवत हमारा बनन्ती, कथन्ती... अहो माया फिर भी भागन्ती हो जाते हैं। कमाई में ग्रहचारी बैठ जाती है। राहू का ग्रहण सबको लगा हुआ है। अभी तुम्हारे पर ब्रहस्पति की दशा बैठी है फिर चलते-चलते कोई पर राहू का ग्रहण बैठ जाता है, तब कहते हैं महान कमबख्त इस दुनिया में देखना हो तो यहाँ देखो। तुम्हारी आत्मा कहती है– हम बाप से सदा सुख का वर्सा ले रहे हैं। बाबा आप से कल्प पहले भी यह वर्सा लिया था। फिर से अब बाप के पास आये हैं। बाप ने समझाया है- बाहर तुम्हारे सेन्टर्स पर बहुत आयेंगे समझने के लिए। यहाँ यह है इन्द्र सभा। इन्द्र शिवबाबा है ना, जो ज्ञान वर्षा बरसाते हैं। तो ऐसी सभा में पतित कोई आ नहीं सकता। सब्ज परी, पुखराज परी जो ब्राह्मणियां पण्डा बन आती हैं, उनको कहेंगे अपने साथ कोई भी विकार में जाने वाले को नहीं ला सकते हो। नहीं तो दोनों रेसपान्सिबुल हो जाते हैं। किसी विकारी को साथ ले आये तो उन पर बहुत दाग लग जाते हैं। फिर बहुत भारी सजा मिल जाती है। परियों के ऊपर बहुत रेसपान्सिबिलिटी है। कहते हैं– मानसरोवर पर स्नान करने से परी बन जाते हैं। वास्तव में यह है ज्ञान मानसरोवर। बाबा मनुष्य तन में आकर ज्ञान वर्षा बरसाते हैं। ज्ञान सागर है ना। तुम नदी भी हो, सरोवर भी हो, ज्ञान सागर इसमें बैठ बच्चों को लायक बनाते हैं– स्वर्ग में जाने के लिए। स्वर्ग में है श्री लक्ष्मी-नारायण का राज्य। यह है प्रवृत्ति मार्ग का एम आब्जेक्ट। कहते हैं हम दोनों ज्ञान चिता पर बैठ लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हैं। ऊंच पद पाना है ना। आधाकल्प आत्मायें तड़पती रहती हैं। बाबा आओ आकर हमको राजयोग सिखलाए पावन बनाओ। बाप इशारा देते हैं। भारतवासी जो देवी-देवताओं को मानने वाले हैं उन्होंने जरूर 84 जन्म भोगे हैं। जो देवी-देवताओं के भगत हैं, कोशिश कर उनको समझाओ। बाप कैसे आकर 3 धर्म स्थापन करते हैं। ब्राह्मण, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, तीनों धर्म बाप स्थापन करते हैं। आधाकल्प फिर और कोई धर्म स्थापन नहीं होता है। फिर आधाकल्प में कितने मठ पंथ आदि धर्म ढेर के ढेर स्थापन होते हैं। कहाँ आधाकल्प में एक धर्म सो भी संगमयुग पर भविष्य के लिए राजधानी स्थापन करते हैं। वह सब पुरानी दुनिया में ही अपना धर्म स्थापन करते हैं। यहाँ बाप आधाकल्प के लिए एक धर्म की स्थापना करते हैं। कोई और में पावर नहीं। बाप तुमको अपना बनाकर, सूर्यवंशी चन्द्रवंशी घराना स्थापन कर बाकी सबका विनाश करा देते हैं। सभी आत्मायें शान्ति में चली जाती हैं। तुम सुख में आते हो, उस समय दु:ख कोई है नहीं, जो गॉड को याद करे। यह ज्ञान भी तुम्हारी बुद्धि में है। तुम जानते हो– बाप जो ज्ञान का सागर है, वह नॉलेज दे रहे हैं। सागर तो एक ही है। तुम अपने को सागर नहीं कहलायेंगे। तुम उनके मददगार बनते हो इसलिए तुम्हारा नाम है ज्ञान गंगायें। बाकी वह हैं पानी की नदियां। बाप कहते हैं-मुझ सागर के तुम बच्चे काम चिता पर बैठ जल मरे हो अर्थात् पतित बन पड़े हो। अब फिर मुझे याद करने से ही तुम पावन बनेंगे। यह सृष्टि का चक्र 5 हजार वर्ष का है। यह भी किसको पता नहीं है। सृष्टि का चक्र पूरे 4 भाग में है। 4 युग हैं ना। यह संगमयुग है कल्याणकारी। कुम्भ कहते हैं ना। कुम्भ कहा जाता है– मेले को। नदी आकर सागर से मिलती है। आत्मा आकर परमात्मा से मिलती है, इसको कुम्भ कहते हैं। आत्मा और परमात्मा का मेला भी तुम देखते हो। तुम आपस में मिलते हो, सेमीनार करते हो, इसको कुम्भ नहीं कहेंगे। सागर तो अपनी जगह पर बैठे हैं। इस तन में हैं ना। जहाँ इनका तन वहाँ ज्ञान का सागर है। बाकी तुम आपस में ज्ञान गंगायें मिलती हो। नदियां छोटी-बड़ी तो होती हैं ना। वहाँ स्नान करने जाते हैं। गंगा जमुना सरस्वती आदि तो हैं ही। देहली जमुना का कण्ठा है– स्वर्ग। कृष्णपुरी तो होती है। देहली के लिए कहते हैंपरिस्तान था। जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। ऐसे नहीं कि कृष्ण का राज्य था। राधे कृष्ण युगल हों तब राज्य कर सकें। अब तुम बच्चे कितने खुशी में हो। माया के तूफान तो बहुत आयेंगे। बेहद की बक्सिंग हैं। हर एक की 5 विकारों के साथ युद्ध चलती है। हम चाहते हैं बाबा को निरन्तर याद करें। माया हमारा योग उड़ा देती है। एक खेल भी दिखाते हैं– परमात्मा अपनी तरफ खींचते हैं, माया अपनी तरफ। ऐसा एक नाटक बनाया है। बाइसकोप का फैशन अभी निकला है। तुमको ड्रामा अनुसार बाइसकोप पर ही समझाना था। नाटक में तो बदली-सदली होती है। यह तो अनादि अविनाशी ड्रामा बना बनाया है। बनी बनाई बन रही...... फलाना मर गया इतना ही पार्ट था, हम चिंता क्यों करें। ड्रामा है ना। शरीर छोड़ दिया फिर थोड़ेही आ सकता। रोने से फायदा ही क्या? इसका नाम ही है दु:खधाम। सतयुग में मोहजीत राजायें होते हैं। इस पर कहानी भी है। सतयुग में मोह की बात होती नहीं। यहाँ तो मनुष्यों का कितना मोह है। किसको रोना न आये तो रोकर भी उनको रूला देंगे। तो समझें कि यह अफसोस करते हैं। नहीं तो ग्लानी हो जाए। भारत में ही यह सब रिवाज है। भारत में ही सुख, भारत में ही बहुत दु:ख होता है। भारत में गॉड गॉडेज राज्य करते थे। विदेशी लोग पुराने चित्र बड़ी खुशी से लेते हैं। पुरानी चीज का मान होता है। सबसे पुराना शिव तो यहाँ आया था ना, उनकी कितनी पूजा करते हैं। अब तो शिवबाबा आया है, तुम पूजा नही करेंगे। वह होकर गया है तो उनकी पूजा करते रहते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ड्रामा के ज्ञान को बुद्धि में रख निश्चिंत बनना है। किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करनी है क्योंकि जानते हैं बनी बनाई बन रही... निर्मोही बनना है।
2) बाप द्वारा जबकि ब्रहस्पति की दशा बैठी है तो सम्भाल करनी है, राहू का ग्रहण न लग जाए। कोई भी ग्रहचारी हो तो उसे ज्ञान दान से समाप्त करना है।
वरदान:
शक्ति रूप की स्मृति द्वारा पतित संस्कारों का नाश करने वाले काली रूप भव!   
सदा अपना यह स्वरूप स्मृति में रहे कि मैं सर्व शस्त्रधारी शक्ति हूँ, मुझ पतित-पावनी पर कोई पतित आत्मा के नजर की परछाई भी नहीं पड़ सकती। पतित आत्म् के पतित संकल्प भी न चल सकें-ऐसी अपनी ब्रेक पावरफुल चाहिए। यदि किसी पतित आत्मा का प्रभाव पड़ता है-तो इसका अर्थ है कि प्रभावशाली नहीं हो। जो स्वयं संघारी हैं वह कभी किसका शिकार नहीं बन सकते। तो ऐसा काली रूप बनो जो कोई भी आपके सामने ऐसा संकल्प भी करे तो उनका संकल्प मूर्छित हो जाए।
स्लोगन:
रॉयल रूप की इच्छा का स्वरूप नाम, मान और शान है।