Monday, July 25, 2016

मुरली 26 जुलाई 2016

26-07-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– तुम्हें बाप समान सच्चा-सच्चा पैगम्बर वा मैसेन्जर बनना है, सबको घर चलने का मैसेज देना है”   
प्रश्न:
आजकल मनुष्यों की बुद्धि सारा दिन किस तरफ भटकती है?
उत्तर:
फैशन की तरफ। मनुष्यों को कशिश करने के लिए अनेक प्रकार के फैशन करते हैं। यह फैशन चित्रों से ही सीखे हैं। समझते हैं पार्वती भी ऐसे फैशन करती थी, बाल आदि बनाती थी। बाबा कहते तुम बच्चों को इस पतित दुनिया में फैशन नहीं करना है। तुम्हें तो मैं ऐसी दुनिया में ले चलता हूँ जहाँ नेचुरल सुन्दरता रहती है। फैशन की दरकार नहीं।
गीत:-
तुम्हीं हो माता पिता......   
ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना। जब महिमा गाते हैं तो बुद्धि ऊपर चली जाती है। आत्मा ही बाप को कहती है, वही खिवैया है, पतित-पावन है अथवा सच्चा-सच्चा मैसेन्जर है। बाप आकर आत्माओं को मैसेज देते हैं और जिसको मैसेन्जर वा पैगम्बर कहते हैं, कोई छोटे वा बड़े होते हैं। वास्तव में वह मैसेज वा पैगाम देते नहीं हैं। यह तो झूठी महिमा कर दी है। बच्चे समझते हैं सिवाए एक के इस मनुष्य सृष्टि पर और किसकी महिमा नहीं है। सबसे जास्ती महिमा इन लक्ष्मी-नारायण की है क्योंकि यह हैं नई दुनिया के मालिक। सो भी भारतवासी जानते हैं। दुनिया वाले सिर्फ इतना जानते हैं कि भारत प्राचीन देश है। भारत में ही गॉड गॉडेज का राज्य था। कृष्ण को भी गॉड कह देते हैं। भारतवासी इन्हों को भगवान- भगवती कहते हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि यह भगवान-भगवती सतयुग में राज्य करते हैं। भगवान ने गॉड- गॉडेज का राज्य स्थापन किया। बुद्धि भी कहती है हम भगवान के बच्चे हैं तो हम भी भगवान-भगवती होने चाहिए। सब एक के बच्चे हैं ना। परन्तु भगवान-भगवती कह नहीं सकते। उन्हों को कहते हैं देवी-देवतायें। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। भारतवासी कहेंगे कि हम भारतवासी पहले नई दुनिया में थे। नई दुनिया को तो सब चाहते हैं। बापू जी भी नई दुनिया, नया रामराज्य चाहते थे। परन्तु रामराज्य का अर्थ बिल्कुल ही नहीं समझते। आजकल मनुष्यों को अपना अहंकार कितना है। कलियुग में हैं पत्थरबुद्धि, सतयुग में हैं पारसबुद्धि। परन्तु यह किसको समझ नहीं है। भारत ही सतयुग में पारसबुद्धि था। अब भारत कलियुग में पत्थरबुद्धि है। मनुष्य तो इनको ही स्वर्ग समझते हैं। कहेंगे स्वर्ग में विमान थे, बड़ेबड़े महल थे, वह तो सब अभी हैं। साइंस कितनी वृद्धि को पाई हुई है, कितना सुख है। फैशन आदि कितना है। बुद्धि सारा दिन फैशन पिछाड़ी ही रहती है। आर्टाफिशियल सुन्दर बनने के लिए बाल आदि कैसे बनाते हैं! कितना खर्चा करते हैं। यह सब फैशन निकला है चित्रों से। समझते हैं– पार्वती मिसल हम बाल आदि बनाते हैं। यह सब कशिश करने के लिए ही बनाते हैं। आगे पारसी लोगों की स्त्रीयां मुँह पर काली जाली पहनती थी कि कोई देखकर आशिक न हो जाए। इसको कहा जाता है पतित दुनिया। गाते हैं तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो... परन्तु यह किसको कहना चाहिए? मात-पिता कौन है– यह भी नहीं जानते। मातपिता ने जरूर वर्सा दिया होगा। बाप ने तुम बच्चों को सुख का वर्सा दिया था। कहते भी हैं बाबा हम तो आप बिगर और किसी से नहीं सुनेंगे। अभी तुम जानते हो शिवबाबा की महिमा गाई जाती है। ब्रह्मा की आत्मा भी खुद कहती है– हम सो पावन थे, अब पतित बने हैं। ब्रह्मा के बच्चे भी ऐसे कहेंगे, हम ब्रह्माकुमार कुमारियां सो देवी-देवता फिर 84 जन्मों के अन्त में पतित बने हैं। जो नम्बरवन पावन, वह नम्बरवन पतित। जैसे बाप वैसे बच्चे। यह खुद भी कहते हैं, शिवबाबा भी कहते हैं मैं आता हूँ– इनके बहुत जन्मों के अन्त में। जो पहले नम्बर में पूज्य लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी में थे। अब है संगम, तुम कलियुग में थे, अब संगमयुगी बने हो। बाप संगम पर ही आते हैं, ड्रामा अनुसार बच्चे भी वृद्धि को पाते हैं। अब बच्चों को ज्ञान तो मिला है। हम सो देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने हैं। सारे चक्र को अच्छी रीति तुम जानते हो। यह तो बहुत सहज है, हमने 84 जन्म लिए। कइयों की बुद्धि में यह भी नहीं बैठता है। स्टूडेन्ट में नम्बरवार तो होते ही हैं। राइट से लेकर शुरू करते हैं फर्स्टक्लास, सेकेण्ड क्लास, थर्ड क्लास, बच्चियां खुद भी कहती हैं हमारी थर्डक्लास बुद्धि है। हम किसको समझा नहीं सकती। दिल तो बहुत होती है परन्तु बोल नहीं सकते, बाबा क्या करें? यह हुआ अपने कर्मो का हिसाब-किताब। अब बाप कहते हैं- मैं तुमको कर्म-अकर्म-विकर्म की गति का ज्ञान सुनाता हूँ। कर्म करना है, यह तो तुम बच्चे जानते हो। थर्डक्लास बुद्धि वाले इन बातों को समझ न सकें। यह है ही रावण राज्य, परन्तु यह किसको पता नहीं। रावण राज्य में मनुष्य तो विकर्म ही करेंगे तो नीचे ही गिरेंगे। गुरू किया ही जाता है दु:ख की दुनिया में। सद्गति के लिए ही गुरू करते हैं कि मुक्ति में ले जाये। वह है निर्वाणधाम– वाणी से परे स्थान, मनुष्य अपने को वानप्रस्थी कहते हैं। वह तो कहने मात्र है। वानप्रस्थियों की भी सभा होती है। सब कुछ मिलकियत आदि बच्चों को देकर गुरू के पास जाकर बैठते हैं। खान-पान आदि तो जरूर बच्चे ही देंगे। परन्तु वानप्रस्थ का अर्थ कोई भी नहीं समझते हैं। किसी की बुद्धि में यह नहीं आता कि हमको निर्वाणधाम में जाना है। अपने घर में जाना है। वह कोई घर नहीं समझते हैं। वह तो समझते हैं– ज्योति ज्योत में समा जायेंगे। निर्वाणधाम तो रहने का स्थान है। आगे 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ लेते थे, यह जैसेकि कायदा था। अभी भी ऐसे करते हैं। अब तुम समझा सकते हो कि वाणी से परे तो कोई जा नहीं सकते। इसके लिए तो बाप को ही बुलाते हैं कि हे पतित-पावन बाबा आओ, हमको पावन बनाकर घर ले चलो। मुक्तिधाम में आत्माओं का घर है। तुम बच्चों को सतयुग के लिए भी समझाया है– वहाँ कौन रहते हैं! कैसे वृद्धि होती है! आदमशुमारी का भी किसको पता नहीं है। रामराज्य में आदमशुमारी कितनी होगी! बच्चे आदि कैसे जन्म लेंगे! कुछ भी नहीं समझते हैं। कोई भी विद्वान, आचार्य, पण्डित नहीं, जो इस ड्रामा के चक्र को कोई समझा सके। 84 लाख का चक्र हो कैसे सकता! कितनी रांग बातें हैं। बिल्कुल सूत ही मूँझा हुआ है। बाप समझाते हैं अभी तुम जानते हो बाप ने कर्म-अकर्म-विकर्म का सारा राज समझाया है। सतयुग में तुम्हारे कर्म, अकर्म हो जाते हैं। वहाँ कोई बुरा कर्म होता ही नहीं, इसलिए कर्म, अकर्म हो जाते हैं। यहाँ मनुष्य जो भी कर्म करते हैं वह विकर्म हो जाते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो हम छोटे बड़े सबकी, सारी दुनिया की वानप्रस्थ अवस्था है। सब वाणी से परे जाने वाले हैं। कहते हैं हे पतित-पावन आओ, हमको आकर पतित से पावन बनाओ। परन्तु जब तक पावन नई दुनिया नहीं है, यहाँ पतित दुनिया में पावन तो कोई रह न सके। यह जो भी पतित दुनिया है, सब खत्म हो जानी है। तुम जानते हो हमको फिर नई दुनिया में जाना है। कैसे जायेंगे? यह सारी नॉलेज है। यह है नई नॉलेज, नई दुनिया, अमरलोक वा पावन दुनिया के लिए। तुम अभी संगम पर बैठे हो। यह भी जानते हो दूसरे जो भी मनुष्य हैं, ब्राह्मण नहीं हैं, वह कलियुग में हैं। हम सब संगम पर हैं। जा रहे हैं सतयुग में, बरोबर यह संगमयुग है। वह तो है ही स्वर्ग। उनको संगम नहीं कहा जाता। संगम है अभी। यह संगमयुग सबसे छोटा है। इसको लीप युग कहा जाता है, जिसमें मनुष्य पाप आत्मा से धर्म आत्मा बनते हैं इसलिए इसको धर्माऊ युग कहा जाता है। कलियुग में सभी मनुष्य अधर्मा हैं। वहाँ तो सभी धर्मात्मा होते हैं। भक्ति मार्ग का कितना बड़ा प्रभाव है। पत्थर की मूर्तियाँ बनाते हैं, जो किसकी देखने से ही दिल खुश हो जाए। यह है पत्थर पूजा। शिव के मन्दिर में कितना दूर-दूर जाते हैं, पूजा के लिए। शिव का चित्र तो घर में भी रख सकते हैं। फिर इतना दूर-दूर क्यों भटकना चाहिए। यह ज्ञान अब बुद्धि में आया है। अब तुम्हारी ऑख खुली है, बुद्धि के कपाट खुले हैं। बाप ने नॉलेज दी है। परमपिता परमात्मा इस मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल है। आत्मा भी वह नॉलेज धारण करती है। आत्मा ही प्रेजीडेन्ट आदि बनती है। मनुष्य तो देह-अभिमानी होने के कारण देह की ही महिमा करते रहते हैं। अभी तुम समझते हो आत्मा ही सब कुछ करती है। तुम आत्मा 84 जन्मों का चक्र लगाए बिल्कुल ही दुर्गति को पाई हुई हो। अभी हम आत्मा ने बाप को पहचाना है। बाप से वर्सा ले रहे हैं। आत्मा को शरीर तो जरूर धारण करना पड़े। शरीर बिगर आत्मायें कैसे बोलें! कैसे सुनें! बाप कहते हैं-मैं निराकार हूँ। मैं भी शरीर का आधार लेता हूँ। तुम जानते हो शिवबाबा इस ब्रह्मा तन से हमको सुनाते हैं। यह बातें तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां ही समझाते हो। तुमको अब ज्ञान मिला है। ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है। वही बाप राजयोग सिखा रहे हैं, इसमें मूँझने की बात ही नहीं। शिवबाबा हम्को समझाते हैं फिर हम औरों को समझाते हैं। हमको भी सुनाने वाला शिवबाबा ही है। अभी तुम कहेंगे हम पतित से पावन बन रहे हैं। बाप समझाते हैं यह है ही पतित दुनिया, रावण का राज्य है ना। रावण पाप आत्मा बनाते हैं। यह और कोई भी नहीं जानते हैं। भल रावण की एफीजी जलाते हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं हैं। सीता को रावण ले गया, यह किया..... कितनी कथायें बैठ लिखी हैं। जब बैठकर सुनते हैं तो रो लेते हैं। वह हैं सब दन्त कथायें। बाबा हमको विकर्माजीत बनाने लिए समझाते हैं। कहते हैं मामेकम् याद करो। कहाँ भी बुद्धि नहीं लगाओ। शिवबाबा ने हमको अपना परिचय दिया है। पतित-पावन बाप आकर अपना परिचय देते हैं। अब तुम समझते हो कितना मीठा बाबा है जो हमको स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1.कर्म-अकर्म और विकर्म की गति को जान श्रेष्ठ कर्म करने हैं। ज्ञान दान कर धर्मात्मा बनना है।
2.यह वानप्रस्थ अवस्था है– इन अन्तिम घडि़यों में पावन बनकर पावन दुनिया में जाना है। पावन बनने का मैसेज सबको देना है।
वरदान:
आसक्ति को अनासक्ति में परिवर्तन करने वाले शक्ति स्वरूप भव!  
शक्ति स्वरूप बनने के लिए आसक्ति को अनासक्ति में बदली करो। अपनी देह में, सम्बन्धों में, कोई भी पदार्थ में यदि कहाँ भी आसक्ति है तो माया भी आ सकती है और शक्ति रूप नहीं बन सकते इसलिए पहले अनासक्त बनो तब माया के विघ्नों का सामना कर सकेंगे। विघ्नों के आने पर चिल्लाने वा घबराने के बजाए शक्ति रूप धारण कर लो तो विघ्न-विनाशक बन जायेंगे!
स्लोगन:
रहम नि:स्वार्थ और लगावमुक्त हो-स्वार्थ वाला नहीं।