Sunday, July 24, 2016

मुरली 25 जुलाई 2016

25-07-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे– अब तुम्हें नई दुनिया में चलना है, यह दु:ख के दिन पूरे हो रहे हैं, इसलिए पुरानी बीती हुई बातों को भूल जाओ”   
प्रश्न:
तुम कर्मयोगी बच्चों को कौन सा अभ्यास निरन्तर करना चाहिए?
उत्तर:
अभी-अभी शरीर निर्वाह अर्थ देह में आये और अभी-अभी देही-अभिमानी। देह की स्मृति बिगर कर्म तो हो नहीं सकता इसलिए अभ्यास करना है कि कर्म किया, देह-अभिमानी बनें फिर देही-अभिमानी बन जाओ, ऐसा अभ्यास तुम बच्चों के सिवाए दुनिया में कोई कर नहीं सकता।
गीत:-
जाग सजनियां जाग...   
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप कहते हैं– मीठे-मीठे रूहों ने अथवा बच्चों ने यह गीत सुना। इसको कहा जाता है ज्ञान का गीत। यह गीत तो बहुत अच्छा है। तुम आत्मायें अब जाग गई हो। ड्रामा के राज को भी अभी तुम जान गये हो। भक्ति मार्ग का तो कौतुक देख लिया है ना– जो कुछ बीता वह तुम्हारी बुद्धि में है। तुम अपने बीते हुए 84 जन्मों की हिस्ट्री को जानते हो। बाप ने 84 जन्मों की कहानी सुनाई है। यह है नई दुनिया के लिए नई बातें। बाप द्वारा तुम नई बातें सुनते हो। बाप बच्चों को धीरज देते हैं। बच्चे अब नई दुनिया में चलना है तो पुरानी बातों को भूल जाओ। यह वेद शास्त्र जो भी भक्ति मार्ग की सामग्री है, यह सब खत्म होनी है। वहाँ भक्ति मार्ग का चिन्ह भी नहीं रहता। वहाँ तो भक्ति का फल मिल जाता है। भक्तों को बाप आकर फल देते हैं। बच्चों ने जाना बाप कैसे आकर भक्ति का फल देते हैं, जिसने सबसे जास्ती भक्ति की है, उनको जरूर जास्ती फल मिलेगा। ज्ञान का पुरूषार्थ भी वह जास्ती करेगा। तुम जानते हो हम आत्माओं ने जास्ती भक्ति की है। जरूर ज्ञान में भी वह तीखे जायेंगे तब इन लक्ष्मी-नारायण जैसा ऊंच पद पायेंगे। अब ज्ञान और योग के लिए तुम्हारा पुरूषार्थ है। देही-अभिमानी हो रहना है फिर देहधारी भी होना है। कर्म करते हुए बाप को याद करना है। देह बिगर तो हम कर्म कर न सकें। यह तो ठीक है– बाबा को याद करना है, परन्तु अपने को आत्मा समझें, देह को भुला देने से काम नहीं होगा, कर्म तो करना ही है। बाप की याद में बहुत मजा है। उठते-बैठते, चलते-फिरते बाप को याद करो परन्तु फिर भी पेट को भोजन तो चाहिए। देही-अभिमानी हो रहना है। देही-अभिमानी इस समय तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं। भल अपने को आत्मा भी समझें परन्तु परमात्मा का परिचय नहीं। भल समझें हम आत्मा अविनाशी हैं, यह शरीर विनाशी है परन्तु यह समझने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। कहते भी हैं पुण्य आत्मा, पतित आत्मा। मैं आत्मा हूँ, मेरा यह शरीर है। यह तो कॉमन बात है। मूल बात बाप समझाते हैं कि मुझे याद करो। शरीर निर्वाह अर्थ देह-अभिमान में तो आना है। देह को खिलाना भी है, देह बिगर तो कुछ कर नहीं सकते। हर जन्म में अपना शरीर निर्वाह करते आते हो, कर्म करते हुए भी अपने माशुक को याद रखना है। उस माशूक का किसी को पूरा पता नहीं है। उस माशूक अथवा बाप से हमको वर्सा मिलना है और उनकी याद से विकर्म विनाश होंगे, यह कोई नहीं समझाते हैं। तुम बच्चे नई बातें सुनते हो। तुम जानते हो घर जाने का हमको रास्ता मिला है। अपने घर जाकर फिर राजधानी में आयेंगे। बाबा नया मकान बनाते हैं तो जरूर दिल होगी ना कि उसमें जाकर बैठें। अब तुमको रास्ता मिला है, जिसको और कोई नहीं जानते। कितने भी यज्ञ तप आदि करते, माथा फोड़ते रहते हैं, सद्गति को पा नहीं सकते। इस दुनिया से उस दुनिया में जा नहीं सकते। यह भी समझना चाहिए। शास्त्रों में लाखों वर्ष लिख दिया है इसलिए मनुष्यों की बुद्धि काम नहीं करती है। तुम अच्छी रीति समझ सकते हो– कल की बात है। भारत तो स्वर्ग था, हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे। देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। भारत जैसा सुख कोई भी पा नहीं सकता। स्वर्ग में तो और कोई धर्म वाला जा न सके। तुम्हारे जैसा सुख और कोई को हो न सके। कितना भी प्रयत्न करें! धन खर्च करें फिर भी स्वर्ग में जो सुख है वह मिल न सके। किसको हेल्थ होगी तो वेल्थ नहीं होगी। किसको वेल्थ होगी तो हेल्थ नहीं होगी। यह है ही दु:ख की दुनिया, तो अब बाप कहते हैं हे आत्मायें जागो... तुमको अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। कितनी जागृति आई है। तुम सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी जानते हो। बाप जानी-जाननहार है ना। इसका मतलब यह नहीं कि सबके दिलों को जानता है। यह कौन है, कितना समझाते हैं। यह कहाँ तक पवित्र रहते हैं, कहाँ तक बाबा को याद करते हैं। मैं हर एक का यह ख्याल क्यों बैठ करूँ... हम तो रास्ता बताते हैं कि तुम आत्माओं को अपने परमपिता परमात्मा को याद करना है। इस सृष्टि चक्र को बुद्धि में रखना है। देही-अभिमानी तो जरूर बनना है। देह-अभिमानी बनने के कारण तुम्हारी यह दुर्गति हुई है। अब तुमको बाप को याद करना है। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। स्वदर्शन चक्रधारी भी तुम हो, देवताओं को तो शंख आदि नहीं है। यह ज्ञान शंख आदि तुम ब्राह्मणों को है। सिक्ख लोग शंख बजाते हैं, बहुत बड़ा आवाज करते हैं। तुम भी यह ज्ञान बैठ देते हो तो बड़ी सभा में लाउड-स्पीकर लगाते हो। तुमवो यहाँ लाउड स्पीकर लगाने की दरकार नहीं। टीचर पढ़ायेंगे तो लाउड-स्पीकर लगायेंगे क्या? यहाँ तो सिर्फ शिवबाबा को याद करना है तो विकर्म विनाश होंगे। मैं सर्वशक्तिमान् हूँ ना। तुम लाउड-स्पीकर लगाते हो कि आवाज दूर-दूर तक सुनने में आये। वह भी आगे चल काम में आयेगा। तुमको सुनाना यह है कि मौत सामने है। अभी सबको वापिस जाना है। महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है। गीता में भी लिखा हुआ है कि महाभारत लड़ाई लगी, विनाश हुआ। अच्छा फिर क्या हुआ? पाण्डव भी गल मरे। बाप समझाते हैं– पहले अगर विनाश हो जाए फिर तो भारत खण्ड भी खाली हो जाए। भारत तो अविनाशी खण्ड है, खाली तो होता नहीं। तुम जानते हो प्रलय तो होती नहीं। बाबा अविनाशी है तो उनका बर्थ प्लेस भी अविनाशी है। बच्चों को खुशी रहनी चाहिए– बाबा सर्व का सद्गति दाता, सुख-शान्ति कर्ता है। जो भी आते हैं, कहते हैं शान्ति चाहिए। आत्मा को इतनी शान्ति क्यों याद आती है! शान्तिधाम आत्माओं का घर है ना। घर किसको याद नहीं रहेगा? विलायत में कोई मरता है तो चाहते हैं इनको अपनी जन्म भूमि में ले जायें। यह अगर सबको पता होता कि भारत सर्व के सद्गति दाता, दु:ख से मुक्ति दिलाने वाले शिवबाबा का बर्थ प्लेस है तो उनका बहुत मान होता। एक ही शिव के ऊपर आकर फूल चढ़ाये। अब तो कितनों के ऊपर फूल चढ़ाते रहते हैं। जो सबको सुख-शान्ति देने वाला है, उनका नाम निशान ही गुम कर दिया है। जो बाप को अच्छी रीति जानते हैं वही वर्सा लेने का पुरूषार्थ करते हैं। मेरा नाम ही है दु:ख हर्ता सुख कर्ता। दु:ख से लिबरेट करके क्या करेंगे! तुम जानते हो शान्तिधाम में शान्त रहते हैं, सुखधाम में सुख है। शान्तिधाम की जगह अलग, सुखधाम की जगह अलग, यह तो है ही दु:खधाम। सबको इस समय दु:ख ही दु:ख है। अभी तुम जानते हो हम ऐसे सुख में जाते हैं, जहाँ 21 जन्म कोई प्रकार का दु:ख नहीं रहेगा। नाम ही है– सुखधाम। कितना मीठा नाम है। बाप कहते हैं– तुमको कोई तकलीफ नहीं देते हैं। सिर्फ बाप को और वर्से को याद करना है। अपने को आत्मा समझना है। यह ज्ञान तुमको बाबा सिखला रहे हैं। सतयुग में आत्मा का ज्ञान है, हम आत्मा यह शरीर छोड़ दूसरा जन्म लेंगे, इसको आत्म-अभिमानी कहा जाता है। यह है रूहानी नॉलेज, जो और कोई दे न सके। रूह को रूहानी बाप आकर नॉलेज देते हैं। हर 5 हजार वर्ष बाद देते हैं। मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं। अब तुमको रोशनी मिली है, तुम अज्ञान नींद से जागे हो। सभी सजनियों का साजन है– एक बाप। बाप कहते हैं- मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, साजन भी हूँ, गुरूओं का गुरू भी हूँ। सुप्रीम टीचर हूँ। सर्व गुरूओं का सद्गति दाता एक ही सतगुरू है। कहते हैं बच्चे मैं सर्व की सद्गति करता हूँ। गति के बाद सद्गति होती है। बाप ने समझाया है– हर एक की आत्मा को वापिस जाना है। आत्मा ही सतोप्रधान, सतो-रजो-तमो बनती है। कोई-कोई का बहुत थोड़ा पार्ट है। आये और गये। जैसे मच्छरों मुआिफक जन्मे और मरे। ऐसे तो बाप से वर्सा नहीं लेते हैं। बाप से वर्सा लिया जाता है पवित्रता, सुख-शान्ति का। बाप तुम आत्माओं को समझाते हैं, बाप तो है निराकार। वह भी इस मुख से आकर समझाते हैं। शिवबाबा के मन्दिर भी बहुत ऊंच-ऊंच बनाते हैं। उतना दूर-दूर जाते हैं, तीर्थों पर मेले पर। ऊपर में कोई ज्ञान अमृत पीने का रखा है क्या! कितना खर्चा करते हैं। गवर्मेन्ट को भी उन्हों के लिए कितने प्रबन्ध आदि रखने पड़ते हैं। तकलीफ होती है। यहाँ तीर्थो पर छोटे बच्चों को कैसे ले जायेंगे। बच्चों आदि को कोई न कोई को सम्भालने लिए दे जाते हैं। साथ में नहीं ले जाते हैं। दो तीन मास यात्रा करते हैं। यहाँ तुम आते हो, तुमको बैठकर सुनना है, पढ़ना है। छोटे बच्चे तो नहीं सुनेंगे। यहाँ तुम आये ही हो– योग और ज्ञान सीखने। बाप बैठ ज्ञान सुनाते हैं तो कोई आवाज आदि नहीं होना चाहिए। नहीं तो अटेन्शन जाता है। शान्ति से बैठकर अटेन्शन देकर सुनना है। योग तो बहुत सहज है। कुछ भी काम करते रहो, बुद्धि का योग वहाँ लगा रहे। बाबा की याद रहने से कमाई बहुत जबरदस्त होती है। तुम जानते हो हम एवरहेल्दी बनेंगे। अपने साथ बातें करनी होती है। बाबा की याद में रहकर भोजन भी अपने हाथ से बनाना है। हाथों से काम भी करो, बाकी याद करो अपने बाप को। तुम्हारा भी कल्याण होगा और याद में रहने से चीज भी अच्छी बनेगी। तुमको विश्व की बादशाही मिलती है। तुम यहाँ आते ही हो– लक्ष्मी-नारायण बनने। सब कहते हैं हम सूर्यवंशी बनेंगे। तुम जानते हो हमारे मम्मा-बाबा इस समय ब्रह्मा-सरस्वती हैं। दूसरे जन्म में लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। भविष्य में कोई क्या बनेंगे, ऐसे किसके जन्म का पता नहीं है। नेहरू क्या जाकर बना, क्या पता। अच्छा कुछ दान किया होगा तो यहाँ अच्छे कुल में जन्म लेंगे। अभी तुमको पूरा पता पड़ता है। अभी इनका नाम है– आदि देव ब्रह्मा, आदि देवी सरस्वती। वही फिर स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अच्छा इनके बच्चे भी साथ हैं। वह भी कहेंगे हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे। यह तो पक्का है। सूक्ष्मवतन में भी तुम देखते हो– देवियों के मन्दिर में भी बहुत मेले लगते हैं। अभी जगदम्बा तो है एक। उनके फीचर्स भी एक ही होने चाहिए। मम्म् को भी तुम देखते हो। तुम बच्चों के फीचर्स हैं फिर नाम रख दिये हैं– अधर कुमारी। तुम जानते हो यह हम ही बनते हैं। हम सब हैं ब्रह्माकुमार-कुमारी। युगल भी कहते हैं हम ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं, एक बाप के बच्चे हैं। तुम्हारा ही यादगार है। बरोबर तुम बैठ यह नॉलेज देते हो, अर्थ सहित यह देलवाड़ा मन्दिर है। परन्तु यह तुम ही समझा सकते हो। तुम जानते हो हम स्थापना कर रहे हैं, राजयोग से श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बना रहे हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान और योग पर पूरा-पूरा अटेन्शन देना है। सुनने समय बहुत शान्त, एकाग्रचित होकर बैठना है। कर्मयोगी भी बनना है।
2) बाप ने जो घर का रास्ता बताया है, वह सबको बताना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनने के साथ-साथ ज्ञान शंख भी बजाना है।
वरदान:
जिम्मेवारी सम्भालते हुए आकारी और निराकारी स्थिति के अभ्यास द्वारा साक्षात्कारमूर्त भव!   
जैसे साकार रूप में इतनी बड़ी जिम्मेवारी होते हुए भी आकारी और निराकारी स्थिति का अनुभव कराते रहे ऐसे फालो फादर करो। साकार रूप में फरिश्ते पन की अनुभूति कराओ। कोई कितना भी अशान्त वा बेचैन घबराया हुआ आपके सामने आये लेकिन आपकी एक दृष्टि, वृत्ति और स्मृति की शक्ति उनको बिल्कुल शान्त कर दे। व्यक्त भाव में आये और अव्यक्त स्थिति का अनुभव करे तब कहेंगे साक्षात्कारमूर्त।
स्लोगन:
जो सच्चे रहमदिल हैं उन्हें देह वा देह-अभिमान की आकर्षण नहीं हो सकती|