Tuesday, May 3, 2016

मुरली 4 मई 2016

04-05-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– जब तुम सम्पूर्ण पावन बनोगे तब ही बाप तुम्हारी बलिहारी स्वीकार करेंगे, अपनी दिल से पूछो हम कितना पावन बने हैं!”   
प्रश्न:
तुम बच्चे अभी खुशी-खुशी से बाप पर बलि चढ़ते हो– क्यों?
उत्तर:
क्योंकि तुम जानते हो, अभी हम बलिहार जाते हैं तो बाप 21 जन्मों के लिए बलिहार जाते हैं। तुम बच्चों को यह भी मालूम है कि अब इस अविनाशी रूद्र ज्ञान यज्ञ में सब मनुष्य-मात्र को स्वाहा होना ही है इसलिए तुम पहले ही खुशी-खुशी से अपना तन-मन-धन सब कुछ स्वाहा कर सफल कर लेते हो।
गीत:-
मुखड़ा देख ले प्राणी...   
ओम् शान्ति।
शिव भगवानुवाच। जरूर अपने बच्चों प्रति ही नॉलेज सिखाते हैं वा श्रीमत देते हैं– हे बच्चों वा हे प्राणी, शरीर से प्राण निकल जाते हैं वा आत्मा निकल जाती है, एक ही बात है। हे प्राणी अथवा हे बच्चे, तुमने देखा कि मेरे जीवन में कितना पाप था और कितना पुण्य था! हिसाब तो बता दिया है– तुम्हारे जीवन में आधाकल्प पुण्य, आधाकल्प पाप होते हैं। पुण्य का वर्सा बाप से मिलता है, जिसको राम कहते हैं। राम, निराकार को कहा जाता है, न कि सीता वाला राम। तो अब तुम बच्चे जो आकर के ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बने हो, तुम्हारी बुद्धि में आया है बरोबर आधाकल्प हम पुण्य-आत्मा ही थे फिर आधाकल्प पाप-आत्मा बने। अभी पुण्य-आत्मा बनना है। कितना पुण्य-आत्मा बने हैं, वह हर एक अपनी दिल से पूछे। पाप-आत्मा से पुण्य-आत्मा कैसे बनेंगे.... वह भी बाप ने समझाया है। यज्ञ, तप आदि से तुम पुण्य-आत्मा नहीं बनेंगे, वह है भक्ति मार्ग, इससे कोई भी मनुष्य पुण्य-आत्मा नहीं बनते हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो, हम पुण्य-आत्मा बन रहे हैं। आसुरी मत से पाप-आत्मा बनते-बनते सीढ़ी उतरते ही आये हैं। कितना समय हम पुण्य- आत्मा बनते हैं वा सुख का वर्सा लेते हैं– यह किसको पता नहीं है। उस बाप को याद तो सभी मनुष्य करते हैं, उनको ही परमपिता परमात्मा कहते हैं।

ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को परमात्मा नहीं कहेंगे और किसको परमात्मा नहीं कह सकते हैं। भल इस समय तुम प्रजापिता ब्रह्मा कहते हो परन्तु प्रजापिता को कभी भक्तिमार्ग में याद नहीं करते हैं। याद सभी फिर भी निराकार बाप को ही करते हैं– ओ गॉड फादर, ओ भगवान अक्षर ही निकलते हैं। एक को ही याद करते हैं। मनुष्य अपने को गॉड फादर कह न सकें। ना ही ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अपने को गॉड फादर कह सकते हैं। उनके शरीर का नाम तो है ना। एक ही गॉड फादर है, उनको अपना शरीर नहीं है। भक्ति मार्ग में भी शिव की बहुत पूजा करते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो– शिवबाबा इस शरीर द्वारा हमसे बात करते हैं– हे बच्चों, कितना प्यार से कहते हैं समझते हैं, मैं सर्व का पतित-पावन, सद्गति दाता हूँ। मनुष्य बाप की महिमा करते हैं ना लेकिन उनको यह पता नहीं है कि 5 हजार वर्ष बाद आते हैं। जरूर जब कलियुग का अन्त होगा तब ही तो आयेंगे। अभी कलियुग का अन्त है तो जरूर अब आया हुआ है। तुमको कृष्ण नहीं पढ़ाते हैं। श्रीमत मिलती है, श्रीमत कोई कृष्ण की नहीं है। कृष्ण की आत्मा भी श्रीमत से सो देवता बनी थी फिर 84 जन्म लेते अब तुम आसुरी मत के बने हो। बाप कहते हैं- मैं आता ही तब हूँ जब तुम्हारा चक्र पूरा होता है। तुम जो शुरू में आये थे, अब जड़जड़ीभूत अवस्था में हो। झाड़ पुराना जड़जड़ीभूत होता है तो सारा झाड़ ऐसा हो जाता है। बाप समझाते हैं– तुम्हारे तमोप्रधान बनने से सब तमोप्रधान बन गये हैं। यह मनुष्य सृष्टि का, वैरायटी धर्मों का झाड़ है, इसको उल्टा झाड़ कहते हैं, इसका बीज ऊपर में है। उस बीज से ही सारा झाड़ निकलता है। मनुष्य कहते भी हैं “गॉड फादर”। आत्मा कहती है, आत्मा का नाम आत्मा ही है। आत्मा शरीर में आती है तो शरीर का नाम रखा जाता है, खेल चलता है। आत्माओं की दुनिया में खेल नहीं चलता। खेल की जगह ही यह है। नाटक में रोशनी आदि सब होती है। बाकी जहाँ आत्मायें रहती हैं, वहाँ सूर्य चांद नहीं हैं, ड्रामा का खेल नहीं चलता है। रात-दिन यहाँ होते हैं। सूक्ष्मवतन वा मूलवतन में रात-दिन नहीं होते, कर्मक्षेत्र यह है। इसमें मनुष्य अच्छे कर्म भी करते हैं, बुरे कर्म भी करते हैं। सतयुग-त्रेता में अच्छे कर्म होते हैं क्योंकि वहाँ 5 विकार रूपी रावण का राज्य ही नहीं। बाप बैठ कर्म, अकर्म, विकर्म का राज बताते हैं। कर्म तो करना ही है, यह कर्मक्षेत्र है। सतयुग में जो मनुष्य कर्म करते हैं वह अकर्म हो जाता है। वहाँ रावणराज्य ही नहीं, उनको हेविन कहा जाता है। इस समय हेविन है नहीं। सतयुग में एक ही भारत था और कोई खण्ड नहीं था। हेविनली गॉड फादर कहते हैं तो बाप जरूर हेविन ही रचेंगे। यह सब नेशन वाले जानते हैं कि भारत प्राचीन देश है। पहले-पहले सिर्फ भारत ही था, यह कोई नहीं जानते हैं। अभी तो नहीं है ना। यह है ही 5 हजार वर्ष की बात। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत हेविन था। रचयिता जरूर रचना रचेंगे। तमोप्रधान बुद्धि होने कारण इतना भी नहीं समझते। भारत तो सबसे ऊंच खण्ड है। पहली बिरादरी है, मनुष्य सृष्टि की। यह भी ड्रामा बना हुआ है। साहूकार गरीबों को मदद करते हैं, यह भी चला आता है। भक्ति मार्ग में भी साहूकार गरीबों को दान करते हैं। परन्तु यह है ही पतित दुनिया। तो जो, जो कुछ भी दान पुण्य करते हैं, पतित ही करते हैं, जिसको दान करते हैं वह भी पतित हैं। पतित, पतित को दान करेंगे, उनका फल क्या पायेंगे। भल कितना भी दान-पुण्य करते आये हैं, फिर भी गिरते आये हैं। भारत जैसा दानी खण्ड और कोई नहीं होता। इस समय तुम्हारा जो भी तन, मन, धन है, सब इसमें स्वाहा करते हो, इनको कहा जाता है, राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ।

आत्मा कहती है– यह जो पुराना शरीर है, इनको भी यहाँ स्वाहा करना है क्योंकि तुम जानते हो– सारी दुनिया के मनुष्य-मात्र इसमें स्वाहा होते हैं, इसलिए हम क्यों नहीं खुशी से बाबा पर बलि चढ़ जायें। आत्मा जानती है– हम बाप को याद करते हैं। कहते भी आये हैं, बाबा आप जब आयेंगे तो हम बलिहार जायेंगे क्योंकि अब हमारे बलिहार जाने से आप फिर 21 जन्म के लिए बलिहार जायेंगे। यह सौदागरी है। हम आप पर बलिहार जाते हैं तो आप भी तो 21 बार बलिहार जाते हैं। बाप कहते हैं- जब तक तुम्हारी आत्मा पवित्र नहीं बनी है तब तक हम बलिहारी स्वीकार नहीं करते हैं। बाप कहते हैं– मामेकम् याद करो तो आत्मा प्योर बन जायेगी। बाप को भूलने से तुम कितने पतित दु:खी हुए हो। मनुष्य दु:खी होते हैं तो फिर शरणागति लेते हैं। अभी तुम 63 जन्म रावण से बहुत दु:खी हुए हो। एक सीता की बात नहीं, सब सीतायें हैं, जो भी मनुष्य मात्र हैं। रामायण में तो कहानी लिख दी है। सीता को रावण ने शोक वाटिका में डाला। वास्तव में बात सारी इस समय की है। सभी रावण अर्थात् 5 विकारों की जेल में हैं इसलिए दु:खी हो पुकारते हैं– हमको इनसे छुड़ाओ। एक की बात नहीं। बाप समझाते हैं सारी दुनिया रावण की जेल में है। रावण राज्य है ना। कहते भी हैं– रामराज्य चाहिए। गांधी ने भी कहा, सन्यासी कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि रामराज्य चाहिए। भारतवासी ही कहेंगे। इस समय आदि सनातन देवी-देवता धर्म है नहीं और ब्रान्चेज हैं, सतयुग था। एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। अभी वह नाम ही बदला हुआ है। अपने धर्म को भूल फिर और-और धर्म में कनवर्ट होते जाते हैं। मुसलमान आये कितने हिन्दुओं को अपने धर्म में कनवर्ट कर लिया। क्रिश्चियन धर्म में भी बहुत कनवर्ट हुए हैं इसलिए भारतवासियों की जनसंख्या कम हो गई है। नहीं तो भारतवासियों की जनसंख्या सबसे जास्ती होनी चाहिए। अनेक धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं। बाप कहते हैं- तुम्हारा जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म है, वह सबसे ऊंच है। सतोप्रधान थे, अब वही बदलकर फिर तमोप्रधान बने हैं। अब तुम बच्चे समझते हो- ज्ञान सागर, पतित-पावन जिसको बुलाते हैं, वही सम्मुख पढ़ा रहे हैं। वह ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है। क्राइस्ट की ऐसी महिमा नहीं करेंगे। कृष्ण को ज्ञान का सागर, पतित-पावन नहीं कहा जाता है। सागर एक होता है। चारों तरफ आलराउन्ड सागर ही सागर है। दो सागर नहीं होते हैं। यह मनुष्य सृष्टि का नाटक है, इसमें सबका अलग-अलग पार्ट है।

बाप कहते हैं मेरा कर्तव्य सबसे अलग है, मैं ज्ञान का सागर हूँ। मुझे ही तुम पुकारते हो हे पतित-पावन, फिर कहते हो लिबरेटर। लिबरेट किससे करते हैं? यह भी कोई नहीं जानते। तुम जानते हो, हम सतयुग- त्रेता में बहुत सुखी थे, उसको स्वर्ग कहा जाता है। अभी तो है ही नर्क इसलिए पुकारते हैं– दु:ख से लिबरेट कर सुखधाम ले चलो। सन्यासी कभी नहीं कहेंगे कि फलाना स्वर्गवासी हुआ, वह फिर कहते हैं पार निर्वाण गया। विलायत में भी कहते हैं लेफ्ट फार हेविनली अबोड। समझते हैं, गॉड फादर पास गये। हेविनली गॉड फादर कहते हैं, बरोबर हेविन था। अब नहीं है। हेल के बाद हेविन चाहिए। गॉड फादर को यहाँ आकर हेविन स्थापन करना है। सूक्ष्मवतन, मूलवतन में कोई हेविन नहीं होता है। जरूर बाप को ही आना पड़ता है। बाप कहते हैं-मैं आकर प्रकृति का आधार लेता हूँ, मेरा जन्म मनुष्यों मुआफ़िक नहीं है। मैं गर्भ में नहीं आता हूँ, तुम सभी गर्भ में आते हो। सतयुग में गर्भ महल होता है क्योंकि वहाँ कोई विकर्म होता नहीं जो सजा भोगें इसलिए उसको गर्भ महल कहा जाता है। यहाँ विकर्म करते, जिसकी सजा भोगनी पड़ती है, इसलिये गर्भ जेल कहा जाता है। यहाँ रावण राज्य में मनुष्य पाप करते रहते हैं। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। वह है पुण्य आत्माओं की दुनिया– स्वर्ग, इसलिए कहते हैं पीपल के पत्ते पर कृष्ण आया। यह कृष्ण की महिमा दिखाते हैं। सतयुग में गर्भ में दु:ख नहीं होता है। बाप कर्म-अकर्म- विकर्म की गति समझाते हैं जिसका फिर शास्त्र गीता बनाया है। परन्तु उसमें शिव भगवानुवाच के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। अब तुम जानते हो, हम बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेते हैं। अभी भारत रावण से श्रापित है इसलिए दुर्गति हो गई है। यह बड़ा श्राप भी ड्रामा में नूँधा हुआ है। बाप आकर वर देते हैं– आयुश्वान भव, पुत्रवान भव, सम्पत्तिवान भव..... सभी सुख का वर्सा देते हैं। तुमको आकर पढ़ाते हैं, जिस पढ़ाई से तुम देवता बनते हो। यह नई रचना हो रही है। ब्रह्मा द्वारा तुमको बाप अपना बनाते हैं। गाया भी जाता है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम उनके बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ बने हो। दादे से वर्सा बाप द्वारा लेते हो। आगे भी लिया था। अब फिर बाप आया है। बाप के बच्चे तो फिर बाप के पास जाने चाहिए। परन्तु गाया हुआ है, प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि की स्थापना होती है। तो यहाँ होगी ना। आत्मा के सम्बन्ध में कहेंगे हम भाई-भाई हैं। प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान बनने से तुम भाई-बहिन बनते हो। इस समय तुम सब भाई-बहिन हो, तुमने बाप से वर्सा लिया था। अब भी बाप से वर्सा ले रहे हो। शिवबाबा कहते हैं- मुझे याद करो। तुम आत्मा को शिवबाबा को याद करना है। याद करने से ही तुम पावन बनेंगे और कोई उपाय नहीं है। पावन बनने सिवाए तुम मुक्तिधाम में जा भी नहीं सकते हो। जीवनमुक्तिधाम में पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म था फिर नम्बरवार और-और धर्म आये। बाप अन्त में आकर सबको दु:खों से मुक्त करते हैं। उनको कहा भी जाता है लिबरेटर। बाप कहते हैं– तुम सिर्फ मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे। बुलाते भी हो बाबा आओ– हमको पतित से पावन बनाओ। टीचर तो पढ़ाते हैं, इसमें चरित्र करते हैं क्या? यह भी पढ़ाई है। बाप ज्ञान का सागर ही आकर ज्ञान देते हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कर्म, अकर्म और विकर्म की गति को जान अब कोई विकर्म नहीं करना है। कर्मक्षेत्र पर कर्म करते हुए विकारों का त्याग करना ही विकर्म से बचना है।
2) ऐसा पावन बनना है जो हमारी बलिहारी बाप स्वीकार कर ले। पावन बनकर पावन दुनिया में जाना है। तन-मन-धन इस यज्ञ में स्वाहा कर सफल करना है।
वरदान:
इस लोक के लगाव से मुक्त बन अव्यक्त वतन का सैर करने वाले उड़ता पंछी भव   
बुद्धि रूपी विमान से अव्यक्त वतन व मूलवतन का सैर करने के लिए उड़ता पंछी बनो। बुद्धि द्वारा जब चाहो, जहाँ चाहो पहुंच जाओ। यह तब होगा जब बिल्कुल इस लोक के लगाव से परे रहेंगे। यह असार संसार है, इस असार संसार से जब कोई काम नहीं, कोई प्राप्ति नहीं तो बुद्धि द्वारा भी जाना बन्द करो। यह रौरव नर्क है इसमें जाने का संकल्प और स्वप्न भी न आये।
स्लोगन:
अपने चेहरे और चलन से सत्यता की सभ्यता का अनुभव कराना ही श्रेष्ठता है।