Sunday, May 1, 2016

मुरली 1 मई 2016

01-05-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:07-04-81 मधुबन

“मनन शक्ति द्वारा सर्वशक्तियों के स्वरूप की अनुभूति”
आज बापदादा अपने सर्व कल्प पहले वाले सिकीलधे बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। जैसे बाप अति स्नेह से बच्चों को सदा याद करते हैं वैसे ही बच्चे भी सदा बाप को याद करने वा बाप की श्रेष्ठ मत पर चलने में दिन-रात लगे हुए हैं। बापदादा बच्चों की लगन, बच्चों की दिल वा जान, सिक व प्रेम से सेवा में लगन देख सदा ऐसे बच्चों को आफरीन देते हैं। बच्चों का भाग्य के पीछे त्याग देख बापदादा सदा त्याग पर मुबारक देते हैं। सर्व बच्चों का एक ही संकल्प बाप को प्रत्यक्ष करने वा स्वयं को सम्पन्न बनाने का - यह भी देख बापदादा खुश होते हैं। क्या थे और क्या बन गये - इस अन्तर को सदा स्मृति में रखते हुए सभी इसी ईश्वरीय नशे में रहते हैं। इसको देख बापदादा भी फखुर से कहते हैं – “वाह संगमयुगी बच्चे वाह!'' इतने तकदीरवान जो अब लास्ट जन्म तक भी आपके तकदीर की तस्वीर मस्तक में महिमा द्वारा मुख में गीतों द्वारा और हाथों से चित्र द्वारा, नयनों में स्नेह द्वारा तकदीर की तस्वीर खींचते रहते हैं। अब तक भी आप श्रेष्ठ आत्माओं के शुभ घड़ी को याद कर रहे हैं कि फिर से कब आयेंगे, आह्वान की धूम मचाये हुए हैं। ऐसे तुम तकदीरवान हो जो स्वयं बाप भी आपके तकदीर के गुण गाते हैं। अन्तिम भक्त तो आपके चरणों को भी पूजते रहते हैं। सिर्फ आपसे क्या माँगतें हैं कि अपने चरणों में ले लो। इतनी महान आत्मायें हो! इसलिए बापदादा भी देख हर्षित होते हैं। सदा अपना ऐसा श्रेष्ठ स्वरूप, श्रेष्ठ तकदीर की तस्वीर स्मृति में रखो। इससे क्या होगा? समर्थ स्मृति द्वारा, सम्पन्न चित्र द्वारा चरित्र भी सदा श्रेष्ठ ही होंगे। कहा जाता है - जैसा चित्र वैसा चरित्र। जैसी स्मृति वैसी स्थिति। तो सदा समर्थ स्मृति रखो तो स्थिति स्वत: समर्थ हो जायेगी। सदा अपना सम्पूर्ण चित्र सामने रखो जिसमें सर्वगुण, सर्व शक्तियाँ सब समाई हुई हैं। ऐसा चित्र रखने से स्वत: ही चरित्र श्रेष्ठ होगा। मेहनत करने की जरूरत ही नहीं होगी। मेहनत तब करनी पड़ती है जब मनन शक्ति की कमी होती है। सारा दिन यही मनन करते रहो, अपना श्रेष्ठ चित्र सदा सामने रखो तो मनन शक्ति से मेहनत समाप्त हो जायेगी। सुना भी बहुत है, वर्णन भी बहुत करते हो फिर भी चलते-चलते कभी-कभी अपने को निर्बल क्यों अनुभव करते हो? मेहनत अनुभव क्यों करते हो? मुश्किल है - यह संकल्प क्यों आता है - इसका कारण? सुनने के बाद मनन नहीं करते। जैसे शरीर की शक्ति के लिए सबसे ज्यादा पाचन शक्ति अर्थात् हजम करने की शक्ति आवश्यक है, वैसे आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए मनन शक्ति इतनी ही आवश्यक है। मनन शक्ति से बाप द्वारा सुना हुआ ज्ञान स्व का अनुभव बन जाता है। जैसे पाचन शक्ति द्वारा भोजन शरीर की शक्ति, खून के रूप में समा जाता है। भोजन की शक्ति अपने शरीर की शक्ति बन जाती है। अलग नहीं रहता। ऐसे ज्ञान की हर प्वाइंट मनन शक्ति द्वारा स्व की शक्ति बन जाती है। जैसे आत्मा की पहली प्वाइंट सुनने के बाद मनन शक्ति द्वारा स्मृति स्वरूप बन जाने कारण, स्मृति समर्थ बना देती है – “मैं हूँ ही मालिक''। यह अनुभव समर्थ स्वरूप बना देता है। लेकिन कैसे बना? मनन शक्ति के आधार पर। तो आत्मा की पहली प्वाइंट अनुभव स्वरूप हो गई ना। इसी प्रकार ड्रामा की प्वाइंट - सिर्फ ड्रामा है यह कहने वा सुनने मात्र नहीं लेकिन चलते-फिरते अपने को हीरो एक्टर अनुभव करते हो तो मनन शक्ति द्वारा अनुभव स्वरूप हो जाना यही विशेष आत्मिक शक्ति है। सबसे बड़े ते बड़ी शक्ति अनुभव स्वरूप है।

अनुभवी सदा अनुभव की अथॉरिटी से चलते, अनुभवी कभी धोखा नहीं खा सकते। अनुभवी किसी के डगमग करने से, सुनी सुनाई से विचलित नहीं हो सकते। अनुभवी का एक बोल हजार शब्दों से भी ज्यादा मूल्यवान होता है। अनुभवी सदा अपने अनुभवों के खजानों से सम्पन्न रहते हैं। ऐसे मनन शक्ति द्वारा हर प्वाइंट के अनुभवी सदा शक्तिशाली, मायाप्रूफ, विघ्न प्रूफ, सदा अंगद के समान हिलाने वाला न कि हिलने वाला होता। तो समझा अभी क्या करना है।

जैसे शरीर की सर्व बीमारियों का कारण कोई न कोई विटामिन की कमी होती है तो आत्मा की कमजोरी का कारण भी मनन शक्ति द्वारा हर प्वाइंट के अनुभव की विटामिन की कमी है। जैसे उसमें भी वैरायटी ए.बी.सी. विटामिन हैं ना। तो यहाँ भी किसी न किसी अनुभव के विटामिन की कमी है, कुछ भी समझ लो। ए आत्मा की विटामिन, विटामिन बी बाप की। विटामिन सी ड्रामा की, क्रियेशन वा सर्किल कहो। ऐसे कुछ भी बना लो। इसमें तो होशियार हो। तो चेक करो कौन से विटामिन की कमी है। आत्मा के अनुभूति की कमी है, परमात्म सम्बन्ध की कमी है, ड्रामा के गुह्यता के अनुभूति की कमी है। सम्पर्क में आने की विशेषताओं के अनुभूति की कमी है। सर्व शक्तियों के स्वरूप के अनुभूति की कमी है। और वही कमी मनन शक्ति द्वारा भरो। श्रोता स्वरूप वा भाषण करता स्वरूप - सिर्फ यहाँ तक आत्मा शक्तिशाली नहीं बन सकेगी। ज्ञान स्वरूप अर्थात् अनुभव स्वरूप। अनुभवों को बढ़ाओ और उसका आधार है मनन शक्ति। मनन वाला स्वत: ही मगन रहता है। मगन अवस्था में योग लगाना नहीं पड़ता लेकिन निरन्तर लगा हुआ ही अनुभव करता। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। मगन अर्थात् मुहब्बत के सागर में समाया हुआ। ऐसे समाया हुआ जो कोई अलग कर ही नहीं सकता। तो मेहनत से भी छूटो। बाहरमुखता को छोड़ो तो मेहनत से छूटो। और अनुभवों के अन्तर्मुखता स्वरूप में सदा समा जाओ। अनुभवों का भी सागर है। एक दो अनुभव नहीं अथाह हैं। एक दो अनुभव कर लिया तो अनुभव के तालाब में नहीं नहाओ। सागर के बच्चे अनुभवों के सागर में समा जाओ। तालाब के बच्चे तो नहीं हो ना। यह धर्मपितायें, महान आत्मायें कहलाने वाले - यह हैं तालाब। तालाब से तो निकल आये ना। अनेक तालाबों का पानी पी लिया। अब तो एक सागर में समा गये ना।

ऐसे सदा समर्थ आत्माओं को, सदा सर्व अनुभवों के सागर में समाई हुई आत्माओं को, सदा अपना सम्पूर्ण चित्र सामने रख श्रेष्ठ चरित्रवान बनने वाली आत्माओं को, सदा श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माओं को, सदा अन्तर्मुखी, सर्व को सुखी बनाने वाली आत्माओं को, ऐसे डबल हीरो आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से -

सदा स्वयं को बाप के समीप रत्न समझते हो? समीप रत्न की निशानी क्या होगी? समीप अर्थात् समान। समीप अर्थात् संग में रहने वाले। संग में रहने से क्या होता है? वह रंग लग जाता है ना। जो सदा बाप के समीप अर्थात् संग में रहने वाले हैं उनको बाप का रंग लगेगा, तो बाप समान बन जायेंगे। समीप अर्थात् समान ऐसे अनुभव करते हो? हर गुण को सामने रखते हुए चेक करो कि क्या-क्या बाप समान है। हर शक्ति को सामने रख चेक करो कि किस शक्ति में समान बने हैं। आपका टाइटल ही है मास्टर सर्वगुण सम्पन्न, मास्टर सर्व शक्तिमान। तो सदा यह टाइटल याद रहता है? सर्वशक्तियाँ आ गई अर्थात् विजयी हो गये फिर कभी भी हार हो नहीं सकती। जो बाप के गले का हार बन गये, उनकी कभी भी हार नहीं हो सकती। तो सदा यह स्मृति में रखो कि मैं बाप के गले का हार हूँ, इससे माया से हार खाना समाप्त हो जायेगा। हार खिलाने वाले होंगे, खाने वाले नहीं। ऐसा नशा रहता है? हनुमान को महावीर कहते हैं ना। महावीर ने क्या किया? लंका को जला दिया। खुद नहीं जला, पूंछ द्वारा लंका जलाई। तो लंका को जलाने वाले महावीर हो ना। माया अधिकार समझकर आये लेकिन आप उसके अधिकार को खत्म कर अधीन बना दो। हनुमान की विशेषता दिखाते हैं कि वह सदा सेवाधारी था। अपने को सेवक समझता था। तो यहाँ जो सदा सेवाधारी हैं वही माया के अधिकार को खत्म कर सकते हैं। जो सेवाधारी नहीं वह माया के राज्य को जला नहीं सकते। हनुमान के दिल में सदा राम बसता था ना। एक राम दूसरा न कोई। तो बाप के सिवाए और कोई भी दिल में न हो। अपने देह की स्मृति भी दिल में नहीं। सुनाया ना कि देह भी पर है, जब देह ही पर हो गई तो दूसरा दिल में कैसे आ सकता।

प्रवृत्ति में रहते भी अपने को ट्रस्टी समझो, ग्रहस्थी नहीं। गृहस्थी समझने से अगला पिछला बोझ सिर पर आ जाता। ट्रस्टी अर्थात् डबल लाइट। जब आत्मिक स्वरूप है तो ट्रस्टी, देह की स्मृति है तो ग्रहस्थी। गृहस्थी माना मोह-माया के जाल में फँसा हुआ, ट्रस्टी माना सदा हल्का बन खुशी में उड़ने वाला, ट्रस्टी अर्थात् माया का जाल खत्म।

अव्यक्त मुरली से चुने हुए महावाक्य (प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न:- समय की समीपता वा प्रत्यक्षता के बढ़ते हुए प्रभाव प्रमाण सेवा की रूपरेखा क्या होगी?

उत्तर:- जैसे आजकल साइंस द्वारा हर चीज़ को क्वान्टिटी के बजाए क्वालिटी में ला रहे हैं, विस्तार को सार में ला रहे हैं, इसी प्रकार पाण्डव सेना अर्थात् साइलेन्स की शक्ति वाली श्रेष्ठ आत्माएं एक घन्टे के भाषण द्वारा परिचय देने के बजाए एक सेकेन्ड की पॉवरफुल दृष्टि द्वारा, पॉवरफुल स्टेज द्वारा, कल्याण की भावना द्वारा, आत्मिक भाव द्वारा स्मृति दिलाने वा अपरोक्ष साक्षात्कार कराने की सेवा करेंगी।

प्रश्न:- ऐसी सेवा करने के लिए किन दो बातों पर अटेन्शन चाहिए?

उत्तर:- ऐसी सेवा करने के लिए दो बातों पर अटेन्शन हो:- 1- कोई भी चीज़ वेस्ट मत करो और 2- वेट कम करो अर्थात् आत्मा के ऊपर जो बोझ है, जिस बोझ के कारण ऊंची स्टेज का अनुभव नहीं कर पाते उस वेट को कम करो।

प्रश्न:- आप श्रेष्ठ आत्माओं का कर्तव्य क्या है, उस कर्तव्य प्रमाण आपका फ़र्ज क्या है?

उत्तर:- आप श्रेष्ठ आत्माओं का कर्तव्य है सारे विश्व का कल्याण करना क्योंकि विश्व की सर्व आत्मायें आप श्रेष्ठ आत्माओं का परिवार है तो जितना बड़ा परिवार होता है उतना ही इकॉनामी का ख्याल रखा जाता है, इसलिए बचत की स्कीम बनाओ। अपने प्रति आवश्यक समय वा शक्तियों में से इकॉनामी का लक्ष्य रखते हुए बचत करो। अनेक आत्माओं की सेवा के प्रति स्टॉक जमा होना चाहिए। ऐसे नहीं अपने प्रति ही कमाया, खाया और कुछ गंवाया। ऐसे अलबेले नहीं रहना।

प्रश्न:- जो हर सबजेक्ट में पास विद आनर नहीं उन्हें किस अनुभव से पास होना पड़ेगा?

उत्तर:- अगर एक भी सब्जेक्ट में कमी है तो पास विद आनर नहीं बन सकते और पास विद आनर नहीं तो धर्मराज की सजाओं के अनुभव से पास करना होगा। इसलिए हर सब्जेक्ट में फुल पास होना है-तो हर खजाने की बचत करो और बजट बनाओ अर्थात् वेस्ट मत करो। अच्छा।
वरदान:
सर्व जिम्मेवारियों के बोझ बाप को देकर सदा अपनी उन्नति करने वाले सहजयोगी भव!
जो बच्चे बाप के कार्य को सम्पन्न करने की जिम्मेवारी का संकल्प लेते हैं उन्हें बाप भी इतना ही सहयोग देते हैं। सिर्फ जो भी व्यर्थ का बोझ है वह बाप के ऊपर छोड़ दो। बाप का बनकर बाप के ऊपर जिम्मेवारियों का बोझ छोड़ने से सफलता भी ज्यादा और उन्नति भी सहज होगी। क्यों और क्या के क्वेश्चन से मुक्त रहो, विशेष फुलस्टॉप की स्थिति रहे तो सहजयोगी बन अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते रहेंगे।
स्लोगन:
दिल और दिमाग में ऑनेस्टी हो तो बाप वा परिवार के विश्वास पात्र बन जायेंगे।