Tuesday, April 26, 2016

मुरली 27 अप्रैल 2016

27-04-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाप दूरदेश से आये हैं तुम बच्चों के लिए नया राज्य स्थापन करने, तुम अभी स्वर्ग के लायक बन रहे हो''   
प्रश्न:
जिन बच्चों का शिवबाबा में अटूट निश्चय है उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह ऑख बन्द करके बाबा की श्रीमत पर चलते रहेंगे, जो आज्ञा मिले। कभी ख्याल भी नहीं आयेगा कि इसमें कुछ नुकसान न हो जाए क्योंकि ऐसे निश्चयबुद्धि बच्चों का रेसपान्सिबुल बाप है। उन्हें निश्चय का बल मिल जाता है। अवस्था अडोल और अचल हो जाती है।
गीत:-
तुम्हीं हो माता, तुम्हीं पिता हो...   
ओम् शान्ति।
यह महिमा किसकी सुनी? जिसको सिवाए तुम बच्चों के दुनिया में और कोई जानते नहीं हैं। यह है ऊंच ते ऊंच बाप की महिमा। बाकी जिसकी भी महिमा करते हैं वह फालतू हो जाती है। ऊंच ते ऊंच एक ही बाप है। लेकिन बाप की पहचान कौन देवे। खुद आकर आत्मा की और अपनी पहचान देते हैं। कोई भी मनुष्य को आत्मा की भी पहचान है नहीं। भल कहते हैं महान आत्मा, जीव आत्मा। शरीर जब छूट जाता है तो कहते - आत्मा निकल जाती है। शरीर मुर्दा हो जाता है। आत्मा अविनाशी है। वह कभी खत्म नहीं होती। आत्मा जो स्टार मिसल है, वह अति सूक्ष्म है। इन ऑखों से देखने में नहीं आती है। कर्तव्य सब आत्मा करती है। परन्तु घड़ी-घड़ी देह-अभिमान में आ जाते हैं तो कहते हैं मैं फलाना हूँ, मैं यह करता हूँ। वास्तव में करती सब आत्मा है। शरीर तो आरगन्स हैं। यह साधू आदि भी जानते हैं कि आत्मा बहुत सूक्ष्म है, जो भ्रकुटी के बीच में रहती है। परन्तु उनको यह ज्ञान नहीं है कि आत्मा में यह पार्ट बजाने के संस्कार हैं। कोई कहते - आत्मा में संस्कार होते नहीं, आत्मा निर्लेप है। कोई कहते - संस्कारों अनुसार जन्म मिलता है। मतभेद बहुत है। यह भी किसको पता नहीं कि कौन सी आत्मायें 84 जन्म लेती हैं। तुम जानते हो कि सूर्यवंशियों को ही 84 का चक्र लगाना पड़ता है। आत्मा ही 84 का चक्र लगाए पतित बनती है। उनको अब पावन कौन बनाये? पतित-पावन ऊंच ते ऊंच एक ही बाप है, उनकी महिमा सबसे ऊंच है। 84 जन्म सब तो नहीं लेते। पीछे आने वाले तो 84 जन्म ले न सकें। सब इकट्ठे तो नहीं आते हैं। जो पहले-पहले सतयुग में आयेंगे, सूर्यवंशी राजे और प्रजा, उन्हों के 84 जन्म होते हैं। पीछे तो मनुष्यों की बहुत वृद्धि होती है ना। फिर कोई के 83 कोई के 80 जन्म होते हैं। वहाँ सतयुग में तो पूरी 150 वर्ष आयु होती है। कोई जल्दी मर न सके। यह बातें बाप ही बैठ समझाते हैं। अब कोई परमपिता परमात्मा को नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं कि जैसे तुम्हारी आत्मा है, वैसे मेरी भी आत्मा है। तुम सिर्फ जन्म मरण में आते हो, मैं नहीं आता हूँ। मुझे बुलाते भी तब हैं जब पतित बनते हैं। जब बहुत दु:खी हो जाते हैं तब बुलाते हैं। इस समय तुम बच्चों को शिवबाबा पढ़ा रहे हैं।

कोई पूछते कि यह कैसे मानें कि परमात्मा आते हैं! तो उन्हों को समझाना है कि सब पुकारते हैं - हे पतित-पावन आओ। अब वह है निराकार। उनको अपना शरीर नहीं है, आना भी है पतित दुनिया में। पावन दुनिया में तो नहीं आयेंगे। ऐसे समझाना चाहिए। यह भी समझाना है कि परमात्मा इतना छोटा है जैसे आत्मा छोटी है, परन्तु वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, नॉलेजफुल। बाप कहते हैं कि तुम मुझे परमपिता परमात्मा कहते हो। पुकारते हो तो जरूर आयेंगे ना। गायन भी है कि दूरदेश का रहने वाला आया देश पराये। अभी बाप द्वारा मालूम पड़ा है कि अभी हम पराये देश अर्थात् रावण के देश में हैं। सतयुग त्रेता में हम ईश्वरीय देश अर्थात् अपने देश में थे फिर द्वापर से लेकर हम पराये देश, पराये राज्य में आ जाते हैं। वाम मार्ग में आ जाते हैं। फिर भक्ति शुरू हो जाती है। पहले-पहले शिवबाबा की भक्ति करने लग जाते हैं, वे लोग शिव का इतना बड़ा लिंग बनाते हैं, परन्तु इतना बड़ा तो वह है नहीं। अभी तुमने समझा है कि आत्मा और परमात्मा में क्या फ़र्क है। वह नॉलेजफुल सदा पावन, सुख का सागर, आनंद का सागर है। यह परम आत्मा की महिमा है ना। अब बुलाते हैं कि हे पतित-पावन आओ। वह है परमपिता जो कल्प-कल्प आते हैं। दूरदेश के रहने वाले मुसाफिर को बुलाते हैं, उनकी महिमा गाते हैं। ब्रह्मा, सरस्वती को तो बुलाते नहीं हैं। पुकारते हैं निराकार परमात्मा को। आत्मा बुलाती है कि दूरदेश के रहने वाले अब आओ देश पराये क्योंकि सब पतित बन चुके हैं। मैं भी आऊंगा तब, जब रावण राज्य खत्म होना होगा। मैं आता भी हूँ - संगम युगे। यह किसको भी पता नहीं है। कहते भी हैं कि वह परम आत्मा, बिन्दी है। आजकल फिर कहते हैं आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा। आत्मा सो परमात्मा हो न सके। आत्मा परमात्मा दोनों अलग- अलग हैं। रूप दोनों का एक जैसा है। परन्तु आत्मा पतित बनती है, 84 जन्मों का पार्ट बजाना पड़ता है। परमात्मा जन्म मरण रहित है। अगर आत्मा सो परमात्मा कहते तो क्या सतोप्रधान परमात्मा, तमोप्रधान में आते हैं। नहीं, यह तो हो न सके। बाप कहते हैं कि मैं आता हूँ, सर्व आत्माओं की सर्विस करने। मेरा जन्म भी नहीं कहा जाता। मैं आता ही हूँ नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने। पराये देश में आये हैं, अपना स्वर्ग स्थापन करने। बाप ही आकर हमको स्वर्ग का लायक बनाते हैं। यह भी समझाया है कि और आत्माओं का पार्ट अपना-अपना है। परमात्मा जन्म-मरण रहित है। आते भी जरूर हैं तब तो शिवरात्रि मनाते हैं। लेकिन वह कब आये, यह कोई नहीं जानते। ऐसे ही शिवजयन्ती मनाते आये हैं। जरूर संगम पर आये होंगे, स्वर्ग स्थापन करने। पतितों को पावन बनाने जरूर संगम पर आयेंगे ना। पावन सृष्टि है स्वर्ग। कहते हैं पतित-पावन आओ। फिर जरूर पतित दुनिया के विनाश का समय होगा, तब ही पावन दुनिया स्थापन करेंगे। युगे-युगे तो नहीं आते। बाप कहते हैं - मुझे संगम पर ही आकर पतित दुनिया को पावन बनाना है। यह पराया देश है, रावण का देश। परन्तु यह कोई मनुष्य थोड़ेही जानते कि रावण का राज्य चल रहा है। कब से यह रावण राज्य शुरू हुआ, कुछ भी पता नहीं। पहली-पहली मुख्य बात आत्मा और परमात्मा का राज़ समझाना है, फिर समझाना है कि वह कल्प के संगमयुग पर आते हैं पावन बनाने। यह काम उनका ही है, न कि श्रीकृष्ण का। श्रीकृष्ण तो खुद ही 84 जन्म ले नीचे उतरते हैं। सूर्यवंशी सब नीचे उतरते हैं। झाड़ आधा ताजा, आधा पुराना थोड़ेही होगा। जड़जड़ीभूत अवस्था सबकी होती है। कल्प की आयु का भी मनुष्यों को पता नहीं है। शास्त्रों में लम्बी चौड़ी आयु दे दी है। यह बाप ही बैठ समझाते हैं। इसमें और प्रश्न उठ न सके। रचता बाप सच ही बोलते हैं। हम इतने बी. के. हैं। सब मानते हैं, तो जरूर है तब तो मानते हैं। आगे चल जब निश्चय होगा तो समझ में भी आ जायेगा। पहले-पहले मनुष्यों को यह समझाना है कि परमपिता परमात्मा निराकार दूरदेश से आये हैं। परन्तु किस शरीर में आये? सूक्ष्मवतन में आकर क्या करेंगे? जरूर यहाँ आना पड़े। प्रजापिता ब्रह्मा भी यहाँ चाहिए। ब्रह्मा कौन है, यह भी बाप बैठ समझाते हैं। जिसमें प्रवेश किया है वह अपने जन्मों को नहीं जानते थे तो बच्चे भी नहीं जानते थे। बच्चे भी तब बनते जब मैं एडॉप्ट करता हूँ। मैं इन (साकार) सहित बच्चों को समझाता हूँ कि क्या तुम अपने जन्मों को भूल गये हो। अभी सृष्टि का चक्र पूरा होता है फिर रिपीट होगा। मैं आया हूँ पावन बनाने के लिए, राजयोग सिखाने। पावन बनने का और कोई रास्ता नहीं है। अगर यह राज़ मनुष्य जानते तो गंगा आदि पर स्नान करने, मेले आदि पर जाते नहीं। इन पानी की नदियों में तो सदैव स्नान करते रहते हैं। द्वापर से लेकर करते आये हैं। समझते हैं कि गंगा में डुबकी मारने से पाप नाश होंगे। परन्तु कोई के भी पाप नाश नहीं होते हैं। पहले-पहले तो आत्मा और परमात्मा का ही राज़ बताओ। आत्मायें ही परमात्मा बाप को पुकारती हैं, वह निराकार है, आत्मा भी निराकार है। इन आरगन्स द्वारा आत्मा पुकारती है। भक्ति के बाद भगवान को आना है, यह भी ड्रामा में पार्ट है।

बाप कहते हैं - मुझे नई दुनिया स्थापन करने आना पड़ता है। शास्त्रों में भी है कि भगवान को संकल्प उठा तो जरूर ड्रामा प्लैन अनुसार संकल्प उठा होगा। आगे इन बातों को थोड़ेही समझते थे। दिन-प्रतिदिन समझते जाते हैं। बाप कहते हैं - मैं तुमको नई-नई गुह्य ते गुह्य बातें सुनाता हूँ। सुनते-सुनते समझते जाते हैं। आगे ऐसे नहीं कहते थे कि शिवबाबा पढ़ाते हैं। अब तो अच्छी रीति समझ गये हैं, और भी समझने का बहुत पड़ा है। रोज़ समझाते रहते हैं कि कैसे किसको समझाना चाहिए। पहले यह निश्चय करें कि बेहद का बाप समझाते हैं तो वह जरूर सत्य बतायेंगे। इसमें मूँझने की भी बात नहीं। बच्चे कोई पक्के हैं, कोई कच्चे हैं। कच्चा है तो कोई को समझा नहीं सकते हैं। यह तो स्कूल में भी नम्बरवार होते हैं। बहुतों को यह संशय पड़ता है कि हम कैसे समझें कि परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं क्योंकि उन्हों की बुद्धि में है श्रीकृष्ण ने ज्ञान सुनाया। अब पतित दुनिया में तो कृष्ण आ नहीं सकता। यह उनको सिद्ध करो कि परमात्मा को ही आना पड़ता है, पतित दुनिया और पतित शरीर में। बाप यह भी समझते हैं कि हर एक की अपनी-अपनी बुद्धि है। कोई तो झट समझ जाते हैं। जितना हो सके समझाना है। ब्राह्मण सब एक जैसे नहीं होते हैं। परन्तु देह-अभिमान बच्चों में बहुत है। यह बाबा भी जानते हैं कि नम्बरवार हैं। डायरेक्शन पर बच्चों को चलना पड़े। बड़ा बाबा जो कहे, वह मानना चाहिए। गुरूओं आदि की तो मानते आये हो। अब बाप जो स्वर्ग में ले जाने वाला है, उनकी बात तो ऑख बंद कर माननी चाहिए। परन्तु ऐसे निश्चयबुद्धि हैं नहीं। भल उसमें नुकसान हो वा फायदा हो, मान लेना चाहिए। भल समझो नुकसान भी हो जाए। फिर भी बाबा कहते हैं ना - हमेशा ऐसे समझो कि शिवबाबा ही कहते हैं, ब्रह्मा के लिए मत समझो। रेसपान्सिबुल शिवबाबा होगा। उनका यह रथ है, वह ठीक कर देंगे। कहेंगे कि मैं बैठा हूँ। हमेशा समझो कि शिवबाबा ही कहते हैं, यह कुछ नहीं जानते। ऐसे ही समझो। एक तरफ तो निश्चय रखना चाहिए, शिवबाबा कहते मेरा मानते रहो तो तुम्हारा कल्याण होता रहेगा। यह ब्रह्मा भी अगर कुछ कहते हैं, तो उनका भी रेसपान्सिबुल मैं हूँ। तुम बच्चे फिकर नहीं करो। शिवबाबा को याद करने से अवस्था और ही पक्की हो जायेगी। निश्चय में विकर्म भी विनाश होंगे, बल भी मिलेगा। जितना बाबा को याद करेंगे उतना बल जास्ती मिलेगा। जो श्रीमत पर चल सर्विस करते हैं वही ऊंच पद पायेंगे। बहुतों में देह-अभिमान बहुत रहता है। बाबा देखो सब बच्चों से कैसे प्यार से चलता है। सबसे बात करते रहते हैं। बच्चों से पूछते हैं कि ठीक बैठे हो! कोई तकलीफ तो नहीं है! लव होता है बच्चों के लिए। बेहद के बाप को बच्चों के लिए बहुत-बहुत लव है। जो जितनी श्रीमत पर सर्विस करते हैं उस अनुसार लव रहता है। सर्विस में ही फायदा है। सर्विस में हडिड्याँ देनी हैं। कोई भी काम करते रहेंगे तो वह फिर दिल पर भी रहते हैं कि यह बच्चा फर्स्टक्लास है। परन्तु चलते-चलते किसी पर ग्रहचारी भी बैठती है। माया का सामना होता है ना। ग्रहचारी के कारण फिर ज्ञान उठा नहीं सकते। कई तो फिर कर्मणा सेवा अथक होकर करते हैं।

तुम्हारा काम है सबको सुखधाम का मालिक बनाना। किसको दु:ख नहीं देना। ज्ञान नहीं है तो फिर बहुत दु:ख देते हैं। फिर कितना भी समझाओ तो समझते नहीं। पहले-पहले समझानी देनी है आत्मा और परमात्मा की। कैसे आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है, जो अविनाशी पार्ट है। कभी बदलने का नहीं है, ड्रामा में नूँधा हुआ है। यह निश्चय वाला कभी हिलेगा नहीं। बहुत हिल जाते हैं। पिछाड़ी में जब भंभोर को आग लगेगी तब अचल बन जायेंगे। अभी तो बहुत युक्ति से समझाना है। अच्छे-अच्छे बच्चे तो सर्विस पर रहते हैं। दिल पर चढ़े रहते हैं। बहुत तीखे जाते रहते हैं। बहुत मेहनत करते हैं। उनको सर्विस का बहुत शौक रहता है। जिनमें जो गुण हैं वह बाबा वर्णन करते हैं। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सर्विस में हड्डियाँ देनी हैं, किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है। सबको सर्विस से सुख देना है, दु:ख नहीं।
2) निश्चय के बल से अपनी अवस्था को अडोल बनाना है। जो श्रीमत मिलती है, उसमें कल्याण समाया हुआ है, क्योंकि रेसपान्सिबुल बाप है इसलिए फिकर नहीं करना है।
वरदान:
स्नेह के रिटर्न में समानता का अनुभव करने वाले सर्वशक्ति सम्पन्न भव!   
जो बच्चे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए रहते हैं उन्हें स्नेह के रेसपॉन्स में बाप समान बनने का वरदान प्राप्त हो जाता है। जो सदा स्नेहयुक्त और योगयुक्त हैं वह सर्व शक्तियों से सम्पन्न स्वत: बन जाते हैं। सर्व शक्तियां सदा साथ हैं तो विजय हुई पड़ी है। जिन्हें स्मृति रहती कि सर्वशक्तिमान् बाप हमारा साथी है, वह कभी किसी भी बात से विचलित नहीं हो सकते।
स्लोगन:
पुरुषार्थी जीवन में जो सदा सन्तुष्ट और खुश रहने वाले हैं वही खुशनसीब हैं।