Friday, April 22, 2016

मुरली 22 अप्रैल 2016

22-04-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप आये हैं - तुम बच्चों के सम्मुख ज्ञान डांस करने, तुम होशियार सर्विसएबुल बनो तो ज्ञान की डांस भी अच्छी हो''  
प्रश्न:
संगमयुग पर तुम बच्चे अपने में कौन-सी हॉबी (आदत) डालते हो?
उत्तर:
याद में रहने की। यही है रूहानी हॉबी। इस हॉबी के साथ-साथ तुम्हें दिव्य और अलौकिक कर्म भी करने हैं। तुम हो ब्राह्मण, तुम्हें सबको सच्ची-सच्ची कथा जरूर सुनानी है। सर्विस की भी तुम बच्चों में हॉबी होनी चाहिए।
गीत:-
धीरज धर मनुवा....   
ओम् शान्ति।
जैसे कोई हॉस्पिटल में बीमार होते हैं तो पेशेन्ट दु:ख से छूटने की आश रखते हैं। डॉक्टर से पूछते हैं क्या हाल है, कब यह बीमारी छूटेगी? वह तो सब हैं हद की बातें। यह है बेहद की बात। बाप आकर बच्चों को राय देते हैं। यह तो बच्चे जान चुके हैं कि बरोबर सुख और दु:ख का खेल है। यूँ तो तुम बच्चों को सतयुग में जाने से भी जास्ती फायदा यहाँ है क्योंकि जानते हो कि इस समय हम ईश्वरीय गोद में हैं, ईश्वरीय औलाद हैं। इस समय हमारी बहुत ऊंच ते ऊंच गुप्त महिमा है। मनुष्य मात्र बाप को शिव, ईश्वर, भगवान भी कहते हैं, परन्तु जानते नहीं हैं। बुलाते रहते हैं। ड्रामा अनुसार ही ऐसा हुआ है। ज्ञान और अज्ञान, दिन और रात। गाते भी आते हैं परन्तु तमोप्रधान बुद्धि ऐसे बन गये हैं जो अपने को तमोप्रधान समझते ही नहीं हैं। किसकी तकदीर में बाप का वर्सा हो तब तो बुद्धि में बैठ सके। बच्चे जानते हैं कि हम बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में थे। अब बाप आया है तो कितना सोझरा मिला है। बाप जो नॉलेज समझाते हैं वह कोई भी वेद, शास्त्री, ग्रंथ आदि में नहीं है। वह भी बाप सिद्ध कर बताते हैं। तुम बच्चों को रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की रोशनी देता हूँ, वह फिर प्राय:लोप हो जाती है। मेरे बिगर फिर किसको ज्ञान मिल न सके, फिर यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। समझ में आता है कि कलियुग पास्ट हुआ फिर 5 हजार वर्ष बाद रिपीट होगा। यह है नई बात। यह तो शास्त्रों में है नहीं।

बाप तो यह नॉलेज सभी को एक जैसी पढ़ाते हैं, परन्तु धारणा में नम्बरवार हैं। कोई अच्छे सर्विसएबुल बच्चे आते हैं तो बाबा का डांस भी ऐसा चलता है। डांसिंग गर्ल के आगे देखने वाले बहुत शौकीन होते हैं तो वह भी खुशी से बहुत अच्छा डांस करती है। थोड़े बैठे होंगे तो कॉमन रीति से थोड़ा डांस करेगी। वाह-वाह करने वाले बहुत होंगे तो उनका भी उल्लास बढ़ेगा। तो यहाँ भी ऐसे है। मुरली सब बच्चे सुनते हैं, लेकिन सम्मुख सुनने की बात और है ना। यह भी दिखाते हैं कि कृष्ण डांस करता था। डांस कोई वह नहीं। वास्तव में है ज्ञान की डांस। शिवबाबा खुद बताते हैं कि मैं ज्ञान की डांस करने आता हूँ, मैं ज्ञान का सागर हूँ। तो अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं। यह है ज्ञान की मुरली। काठ की मुरली नहीं है। पतित- पावन बाप आकर सहज राजयोग सिखायेंगे या लकड़ी की मुरली बजायेंगे? यह किसके ख्याल में नहीं होगा कि बाप आकर ऐसे राजयोग सिखाते हैं। अभी तुम जानते हो बाकी कोई भी मनुष्य मात्र को यह बुद्धि में आ न सके। आने वालों में भी नम्बरवार पद पाते हैं। जैसे कल्प पहले किया है वैसे ही पुरूषार्थ करते रहते हैं। तुम जानते हो कि कल्प पहले मुआफ़िक बाप आते हैं, आकर बच्चों को सब राज़ खोलकर बताते हैं। कहते हैं कि मैं भी बन्धन में बँधा हुआ हूँ। हर एक इस ड्रामा के बन्धन में बँधा हुआ है। जो कुछ सतयुग में हुआ था, वही फिर होगा। कितनी अनेक प्रकार की योनियाँ हैं। सतयुग में इतनी योनियाँ थोड़ेही होंगी। वहाँ तो थोड़ी वैरायटी होती है। फिर वृद्धि को पाते रहते हैं। जैसे धर्म भी बढ़ते जाते हैं ना। सतयुग में तो थे नहीं। जो सतयुग में थे वह फिर सतयुग में ही देखेंगे। सतयुग में कोई भी छी-छी गंद करने वाली चीज़ हो न सके। उन देवी-देवताओं को कहते ही हैं भगवान-भगवती। और कोई खण्ड में कभी भी किसको गॉड गॉडेज कह नहीं सकते। वह देवतायें जरूर हेविन में राज्य करते थे। उनका देखो गायन कितना है।

तुम बच्चों को अभी धीरज आ गया है। तुम जानते हो हमारा मर्तबा कितना ऊंच है वा कम है। हम इतने मार्क्स से पास होंगे। हर एक अपने को समझ तो सकते हैं ना कि फलाना अच्छी सर्विस कर रहा है। हाँ, चलते-चलते तूफान भी आ जाते हैं। बाप तो कहते हैं कि बच्चों को कोई भी ग्रहचारी, तूफान आदि न आयें। माया अच्छे-अच्छे बच्चों को भी गिरा देती है। तो बाप धीरज देते रहते हैं, बाकी थोड़ा समय है। तुमको सर्विस भी करनी है। स्थापना हो गई फिर तो जाना ही है। इसमें एक सेकण्ड भी आगे-पीछे नहीं हो सकता। यह राज़ बच्चे ही समझ सकते हैं। हम ड्रामा के एक्टर्स हैं, इसमें हमारा मुख्य पार्ट है। भारत पर ही हार और जीत का खेल बना हुआ है। भारत ही पावन था। कितनी पीस, प्योरिटी थी। यह कल की ही बात है। कल हमने ही पार्ट बजाया था। 5 हजार वर्ष का पार्ट सारा नूँधा हुआ है। हम चक्र लगाकर आये हैं। अब फिर बाबा से योग लगाते हैं, इससे ही खाद निकलती है। बाप याद आयेगा तो वर्सा भी जरूर याद आयेगा। पहले-पहले अल्फ को जानना है। बाप कहते हैं, तुम मेरे को जानने से मेरे द्वारा सब कुछ जान जायेंगे। ज्ञान तो बड़ा सहज है, एक सेकण्ड का। फिर भी समझाते रहते हैं। प्वाइंट्स देते रहते हैं। मुख्य प्वाइंट है मनमनाभव, इसमें ही विघ्न पड़ते हैं। देह-अभिमान आ जाने से फिर अनेक प्रकार के घुटके आ जाते हैं, फिर योग में रहने नहीं देते हैं। जैसे भक्ति मार्ग में कृष्ण की याद में बैठते हैं तो बुद्धि कहाँ-कहाँ भाग जाती है। भक्ति का अनुभव तो सबको है। इस जन्म की बात है। इस जन्म को जानने से कुछ न कुछ पास्ट जन्म को भी समझ सकते हैं। बच्चों को हॉबी हो गई है - बाप को याद करने की। जितना याद करते हो उतना खुशी बढ़ती है। साथ-साथ दिव्य अलौकिक कर्म भी करना है। तुम हो ब्राह्मण। तुम सत्य नारायण की कथा, अमरकथा सुनाते हो। मूल बात एक है - जिसमें सब कुछ आ जाता है। याद से ही विकर्म विनाश होते हैं। यह एक ही हॉबी, रूहानी है। बाप समझाते हैं कि नॉलेज तो बड़ी सहज है। कन्याओं का नाम भी गाया हुआ है। अधरकुमारी, कुवांरी कन्या, कुवांरी का नाम सबसे ज्यादा बाला है। उनको कोई बन्धन नहीं है। वह पति तो विकारी बना देते। यह बाप तो स्वर्ग में ले जाने के लिए श्रृंगारते हैं। स्वीट सागर में ले जाते हैं। बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया को, पुरानी देह सहित बिल्कुल भूल जाओ। आत्मा कहती है कि हमने तो 84 जन्म पूरे किये हैं। अब फिर हम बाप से पूरा वर्सा लेंगे। हिम्मत रखते हैं, फिर भी माया से लड़ाई तो है। आगे तो यह बाबा है। माया के तूफान जास्ती इनके पास आते हैं। बहुत आकर पूछते हैं कि बाबा हमको यह होता है। बाबा बताते हैं कि बच्चे - हाँ, यह तूफान तो जरूर आयेंगे। पहले तो मेरे पास आते हैं। अन्त में सब कर्मातीत अवस्था को पा लेंगे। यह कोई नई बात नहीं है। कल्प पहले भी हुआ था। ड्रामा में पार्ट बजाया, अब फिर वापस घर जाते हैं। यह चैतन्य ड्रामा है। बच्चे जानते हैं - यह पुरानी दुनिया नर्क है। कहते भी हैं कि यह लक्ष्मी-नारायण क्षीरसागर में रहते थे, इन्हों के मन्दिर कितने अच्छे-अच्छे बनाते हैं। पहले-पहले मन्दिर बनाया होगा तो क्षीर (दूध) का ही तलाब बनाकर विष्णु की मूर्ति को बिठाया होगा। बहुत अच्छे-अच्छे चित्र बनाकर पूजा करते थे। उस समय तो बहुत ही सस्ताई थी। बाबा का सब देखा हुआ है। बरोबर यह भारत कितना पवित्र, क्षीर का सागर था। दूध घी की जैसे नदियां थीं। यह तो महिमा दे दी है। स्वर्ग का नाम लेते ही मुख पानी होता है। तुम बच्चों को अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। तो बुद्धि में समझ आई है। बुद्धि चली जाती है अपने घर, फिर स्वर्ग में आयेंगे। वहाँ सब कुछ नया ही नया होगा। बाबा, श्री नारायण की मूर्ति देख बहुत खुश होता था, बहुत प्यार से रखता था। यह नहीं समझता था कि हम ही यह बनूँगा। यह ज्ञान तो अब बाबा से मिला है। तुमको ब्रह्माण्ड और सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। जानते हो कि हम कैसे चक्र लगायेंगे। बाबा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए। बाकी थोड़ा समय है। शरीर को कुछ न कुछ तो होता रहता है। अब यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है। अब तुम्हारे सुख के दिन आते हैं, ड्रामा प्लैन अनुसार। देखते हो कि विनाश सामने खड़ा है। तुमको तीसरा नेत्र मिला है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन को अच्छी रीति जानते हो। यह स्वदर्शन चक्र तुम्हारी बुद्धि में फिरता रहता है। खुशी होती है। इस समय हमको बेहद का बाप, टीचर बन पढ़ाते हैं। परन्तु नई बात होने कारण घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। नहीं तो बाबा कहने से ही खुशी का पारा चढ़ जाना चाहिए। रामतीर्थ, श्रीकृष्ण का भक्त था। तो कृष्ण के दर्शन के लिए कितना करते थे। उसको साक्षात्कार हुआ और खुशी हो गई। परन्तु उससे क्या हुआ? मिला तो कुछ भी नहीं। यहाँ तो तुम बच्चों को खुशी भी है क्योंकि जानते हो कि 21 जन्म के लिए हम इतना ऊंच पद पाते हैं। 3 हिस्सा तो तुम सुखी रहते हो। अगर आधा-आधा हो फिर तो फायदा हुआ नहीं। तुम 3 हिस्सा सुख में रहते हो। तुम्हारे जैसा सुख कोई देख न सके। तुम्हारे लिए तो सुख अपार है। महान सुख में तो दु:ख का पता नहीं चलता है। संगम पर तुम दोनों को जान सकते हो कि अभी हम दु:ख से सुख में जा रहे हैं। मुँह है दिन तरफ और लात है रात तरफ। इस दुनिया को लात मारनी है अर्थात् बुद्धि से भूलना है। आत्मा जानती है कि अब वापस घर जाना है, बहुत पार्ट बजाया। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी होती हैं। अब जितना बाप को याद करेंगे उतना ही कट निकलेगी। जितना बाप की सर्विस पर रह समान बनायेंगे, उतना ही बाप का शो करेंगे। बुद्धि में है कि अब घर जाना है। तो घर को ही याद करना चाहिए। पुराना मकान गिरता रहता है। अब कहाँ नया मकान, कहाँ पुराना मकान। रात-दिन का फ़र्क है। यह तो हूबहू विषय-वैतरणी नदी है। एक दो को मारते, झगड़ते रहते हैं। बाकी भी बाबा आया है तो बहुत लड़ाई शुरू हो गई है। अगर स्त्री विकार नहीं देती तो कितना तंग करते हैं। कितना माथा मारते हैं। कल्प पहले भी अत्याचार हुए थे। वह अभी की बात गाई जाती है। देखते हो कि कितना पुकारती है। वही ड्रामा का पार्ट बज रहा है। यह बाप जाने और बच्चे जाने और न जाने कोई। आगे चल सबको समझने का है। गाते भी हैं - पतित-पावन, सर्व का सद््गति दाता बाप है। तुम कोई को भी समझा सकते हो कि भारत स्वर्ग और नर्क कैसे बनता है आओ तो हम तुम्हें सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझायें। यह बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी ईश्वर ही जाने और ईश्वर के तुम बच्चे जानो। पवित्रता, सुख-शान्ति की कैसे स्थापना होती है, इस हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानने से तुम सब कुछ जान जायेंगे। बेहद के बाप से तुम जरूर बेहद का ही वर्सा लेंगे। यह आकर समझो। टॉपिक बहुत हैं। तुम बच्चों का तो अब दिमाग ही पुर (भरपूर) हो गया है। खुशी का कितना पारा चढ़ता है। सारी नॉलेज तुम बच्चों के पास है। नॉलेजफुल बाप से नॉलेज मिल रही है। फिर हम ही जाकर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। वहाँ फिर यह नॉलेज कुछ भी नहीं होगी। कितनी गुह्य बातें समझने की हैं। बच्चे सीढ़ी को अच्छी रीति समझ गये हैं ना। तो यह चक्र 84 का है। अब मनुष्यों को भी क्लीयर कर समझाना है। इसको अब स्वर्ग वा पावन दुनिया थोड़ेही कहेंगे। सतयुग अलग है, कलियुग अलग चीज़ है। यह चक्र कैसे फिरता है, यह समझाने में सहज है। समझानी अच्छी लगती है। परन्तु पुरूषार्थ कर याद की यात्रा में रहे, यह बहुतों से हो नहीं सकता। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस पुरानी देह और दुनिया को बुद्धि से भूल बाप और घर को याद करना है। सदा इसी खुशी में रहना है कि अभी हमारे सुख के दिन आये कि आये।
2) नॉलेजफुल बाप से जो नॉलेज मिली है उसका सिमरण कर दिमाग को पुर (भरपूर) रखना है। देह- अभिमान में आकर कभी भी किसी प्रकार का घुटका नहीं खाना है।
वरदान:
संगमयुग के श्रेष्ठ चित्र को सामने रख भविष्य का दर्शन करने वाले त्रिकालदर्शी भव!   
भविष्य के पहले सर्व प्राप्तियों का अनुभव आप संगमयुगी ब्राह्मण करते हो। अभी डबल ताज, तख्त, तिलकधारी, सर्व अधिकारी मूर्त बनते हो। भविष्य में तो गोल्डन स्पून होगा लेकिन अभी हीरे तुल्य बन जाते हो। जीवन ही हीरा बन जाता है। वहाँ सोने, हीरे के झूले में झूलेंगे यहाँ बापदादा की गोदी में, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलते हो। तो त्रिकालदर्शी बन वर्तमान और भविष्य के श्रेष्ठ चित्र को देखते हुए सर्व प्राप्तियों का अनुभव करो।
स्लोगन:
कर्म और योग का बैलेन्स ही परमात्म ब्लैसिंग का अधिकारी बना देता है।