Tuesday, April 5, 2016

मुरली 06 अप्रैल 2016

06-04-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– अल्फ और बे को याद करो तो रमणीक बन जायेंगे, बाप भी रमणीक है तो उनके बच्चे भी रमणीक होने चाहिए”   
प्रश्न:
देवताओं के चित्रों की कशिश सभी को क्यों होती है? उनमें कौन सा विशेष गुण है?
उत्तर:
देवतायें बहुत रमणीक और पवित्र हैं। रमणीकता के कारण उनके चित्रों की भी कशिश होती है। देवताओं में पवित्रता का विशेष गुण है, जिस गुण के कारण ही अपवित्र मनुष्य झुकते रहते हैं। रमणीक वही बनते जिनमें सर्व दैवी गुण हैं, जो सदा खुश रहते हैं।
ओम् शान्ति।
आत्मायें और परमात्मा का मेला कितना वन्डरफुल है। ऐसे बेहद के बाप के तुम सब बच्चे हो तो बच्चे भी कितने रमणीक होने चाहिए। देवतायें भी रमणीक हैं ना। परन्तु राजधानी है बहुत बड़ी। सब एकरस रमणीक हो नहीं सकते। फिर भी कोई-कोई बच्चे बहुत रमणीक हैं जरूर। रमणीक कौन होते हैं? जो सदैव खुशी में रहते हैं, जिनमें दैवीगुण हैं। यह राधे-कृष्ण आदि रमणीक हैं ना। उन्हों में बहुत-बहुत कशिश है। कौन सी कशिश है? पवित्रता की क्योंकि इन्हों की आत्मा भी पवित्र है तो शरीर भी पवित्र है। तो पवित्र आत्मायें अपवित्र को कशिश करती हैं। उन्हों के चरणों में गिरती हैं। कितनी उनमें ताकत है। भल सन्यासी हैं, परन्तु वह देवताओं के आगे जरूर झुकते हैं। भल कोई-कोई बहुत घमण्डी होते हैं, फिर भी देवताओं के आगे अथवा शिव के आगे झुकेंगे जरूर। देवियों के चित्रों के आगे भी झुकते हैं क्योंकि बाप भी रमणीक है तो बाप के बनाये हुए देवी देवतायें भी रमणीक हैं। उनमें कशिश है पवित्रता की। वह कशिश उन्हों की अभी तक भी चल रही है। तो जितनी इनमें कशिश है उतनी तुम्हारे में भी कशिश होनी चाहिए, जो समझते हैं हम यह लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। तुम्हारी इस समय की कशिश फिर अविनाशी हो जाती है। सबकी नहीं होती। नम्बरवार तो हैं ना। भविष्य में जो ऊंच पद पाने वाले होंगे, उनमें यहाँ ही कशिश होगी क्योंकि आत्मा पवित्र बन जाती है। तुम्हारे में जास्ती कशिश उनमें है जो खास याद की यात्रा में रहते हैं। यात्रा में पवित्रता जरूर रहती है। पवित्रता में ही कशिश है। पवित्रता की कशिश फिर पढ़ाई में भी कशिश ले आती है। यह तुमको अभी पता पड़ा है। तुम उनके (लक्ष्मी नारायण के) आक्यूपेशन को जानते हो। उन्होंने भी कितना बाप को याद किया होगा। यह जो उन्होंने इतनी राजाई पाई है, वह जरूर राजयोग से ही पाई है। इस समय तुम यह पद पाने के लिए आये हो। बाप बैठ तुमको राजयोग सिखाते हैं। यह तो पक्का निश्चय कर यहाँ आये हो ना। बाप भी वही है, पढ़ाने वाला भी वही है। साथ भी वही ले जाने वाला है। तो यह गुण सदैव रहने चाहिए। सदैव हर्षित मुख रहो। सदैव हर्षित तब रहेंगे जब बाप अल्फ की याद में रहेंगे। तब बे की भी याद रहेगी और इससे रमणीक भी बहुत होंगे। तुम बच्चे जानते हो– हम यहाँ रमणीक बन फिर भविष्य में ऐसा रमणीक बनेंगे। यहाँ की पढ़ाई ही अमरपुरी में ले जाती है।

यह सच्चा बाबा तुमको सच्ची कमाई करा रहे हैं। यह सच्ची कमाई ही साथ चलती है– 21 जन्म के लिए। फिर भक्ति मार्ग में जो कमाई करते हो वह तो है ही अल्पकाल सुख के लिए। वह कोई सदैव साथ नहीं देती। तो इस पढ़ाई में बच्चों को बड़ा खबरदार रहना चाहिए। तुम हो साधारण, तुमको पढ़ाने वाला भी बिल्कुल साधारण रूप में है। तो पढ़ने वाले भी साधारण ही रहेंगे। नहीं तो लज्जा आयेगी। हम ऊंचे कपड़े कैसे पहनें। हमारे मम्मा बाबा कितने साधारण हैं तो हम भी साधारण हैं। यह क्यों साधारण रहते हैं? क्योंकि वनवाह में हैं ना। अभी तुमको जाना है, यहाँ कोई शादी नहीं करनी है। वो लोग जब शादी करते हैं तो कुमारी वनवाह में रहती है। मैले कपड़े पहनती, तेल आदि लगाती है क्योंकि ससुरघर जाती है। ब्राह्मण द्वारा सगाई होती है। तुमको भी जाना है ससुरघर। रावणपुरी से रामपुरी अथवा विष्णुपुरी में जाना है। तो यह वनवाह का रिवाज इसलिए रखा है कि कोई भी अभिमान देह का वा कपड़ों आदि का न आये। किसको हल्की साड़ी है, दूसरे को देखते हैं कि इनके पास तो ऊंची साड़ी है तो ख्याल चलता है। सोचते हैं कि यह तो वनवाह में है नहीं। लेकिन तुम वनवाह में ऐसे साधारण रहते हुए कोई को इतना ऊंचा ज्ञान दो, इतना नशा चढ़ा हुआ हो तो उसे भी तीर लग जाए। भल बर्तन मांजते रहो वा कपड़ा साफ करते रहो, तुम्हारे सामने कोई आये तो तुम झट उनको अल्फ की याद दिलाओ। तुमको वह नशा चढ़ा हुआ हो और सादे कपड़ो में बैठ किसको नॉलेज देंगे तो वह भी वन्डर खायेंगे, इनमें कितना ऊंच ज्ञान है! यह ज्ञान तो गीता का है और भगवान का दिया हुआ है। राजयोग तो गीता का ज्ञान ही है। तो ऐसा नशा चढ़ता है? जैसे बाबा अपना मिसाल बताते हैं। समझो हम बच्चों के साथ कोई खेल कर रहा हूँ। कोई जिज्ञासू सामने आ जाता है तो झट उनको बाप का परिचय देता हूँ। योग की ताकत, योगबल होने के कारण वह भी वहाँ ही खड़ा हो जायेगा तो वन्डर खायेगा कि यह इतना साधारण, इसमें इतनी ताकत! फिर वह कुछ भी बोल नहीं सकेगा। मुख से कोई बात निकलेगी नहीं। जैसे तुम वाणी से परे हो वैसे वह भी वाणी से परे हो जायेंगे। यह नशा अन्दर में होना चाहिए। कोई भी भाई अथवा बहन आये तो उनको एकदम खड़ा करके विश्व का मालिक बनाने की मत दे सकते हैं। अन्दर में इतना नशा होना चाहिए। अपनी लगन में खड़ा हो जाना चाहिए।

बाबा सदैव कहते हैं– तुम्हारे पास ज्ञान तो है परन्तु योग का जौहर नहीं है। प्योरिटी और याद में रहने से ही जौहर आता है। याद की यात्रा से तुम पवित्र बनते हो। ताकत मिलती है। ज्ञान तो है धन की बात। जैसे स्कूल में पढ़कर एम.ए., बी.ए. आदि करते हैं तो इतना फिर पैसा मिलता है। यहाँ की दूसरी बात है। भारत का प्राचीन योग तो मशहूर है। यह है याद। बाप सर्वशक्तिमान् है तो बच्चों को बाप से शक्ति मिलती है। बच्चों को अन्दर में रहना चाहिए– हम आत्मायें बाबा की सन्तान हैं, परन्तु बाबा जितने हम पवित्र नहीं हैं। अब बनना है। अभी है एम-ऑबजेक्ट। योग से ही तुम पवित्र बनते हो। जो अनन्य बच्चे हैं वह सारा दिन यही ख्यालात करते रहेंगे। कोई भी आये तो उनको हम रास्ता बतायें, तरस आना चाहिए, बिचारे अन्धे हैं। अन्धे को लाठी पकड़ाकर ले जाते हैं ना। यह सब अन्धे हैं, ज्ञान चक्षु हैं नहीं। अभी तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तो सब कुछ जान गये हो। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को हम अभी जानते हैं। यह सब भक्ति मार्ग की बातें हैं। तुमको पहले भी पता था क्या कि हियर नो ईविल, सी नो ईविल... यह चित्र क्यों बना है? दुनिया में कोई भी इनका अर्थ नहीं समझते, तुम अभी जानते हो। जैसे बाप नॉलेजफुल है, तुम उनके बच्चे भी अब नॉलेजफुल बन रहे हो, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। कोई-कोई को तो बहुत नशा चढ़ता है। वाह! बाबा का बच्चा बनकर और बाबा से पूरा वर्सा नहीं लिया तो बच्चा बनकर ही क्या किया! रोज रात को अपना पोतामेल देखना है। बाबा व्यापारी है ना। व्यापारियों को पोतामेल निकालना सहज होता है। गवर्मेन्ट सर्वेन्ट को पोतामेल निकालना नहीं आता है, न वह सौदागर होते हैं। व्यापारी लोग अच्छा समझेंगे। तुम व्यापारी हो। तुम अपने नफे नुकसान को समझते हो, रोज खाता देखो। मुरादी सम्भालो। घाटा है वा फायदा है? सौदागर हो ना। गायन है ना– बाबा सौदागर, रत्नागर है। अविनाशी ज्ञान रत्नों का सौदा देते हैं। यह भी तुम जानते हो– नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। सब कोई शुरूड बुद्धि नहीं हैं, एक कान से सुनते हैं फिर दूसरे से निकल जाता है। झोली में छेद से निकल जाता है। झोली भरती नहीं है। बाप कहते हैं धन दिये धन ना खुटे। अविनाशी ज्ञान रत्न हैं ना। बाप है रूप-बसन्त। आत्मा तो है, उनमें ज्ञान है। तुम उनके बच्चे भी रूप-बसन्त हो। आत्मा में नॉलेज भरी जाती है। उनका रूप है, भल आत्मा छोटी है। रूप तो है ना। उनको जाना जाता है, परमात्मा को भी जाना जाता है। सोमनाथ की भक्ति करते हैं तो इतने छोटे स्टार की क्या पूजा करेंगे। पूजा के लिए कितने लिंग बनाते हैं। शिवालिंग छत जितना बड़ा-बड़ा भी बनाते हैं। यूँ तो है छोटा परन्तु मर्तबा तो ऊंच है ना। बाप ने कल्प पहले भी कहा था कि इन जप, तप आदि से कोई प्राप्ति नहीं होती है। यह सब करते नीचे ही गिरते जाते हैं। सीढ़ी नीचे ही उतरते हैं। तुम्हारी तो अब चढ़ती कला है। तुम ब्राह्मण पहले नम्बर के जिन्न हो। कहानी है ना– जिन्न ने कहा, हमको काम नहीं देंगे तो खा जायेंगे। तो उनको काम दिया– सीढ़ी चढ़ो और उतरो। तो उनको काम मिल गया। बाबा ने भी कहा है कि यह बेहद की सीढ़ी तुम उतरते हो फिर चढ़ते हो। तुम ही फुल सीढ़ी उतरते और चढ़ते हो। जिन्न तुम हो। दूसरे कोई फुल सीढ़ी नहीं चढ़ते हैं। फुल सीढ़ी का ज्ञान पाने से तुम कितना ऊंच पद पाते हो। फिर उतरते हो, चढ़ते हो। बाप कहते हैं– मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुम मुझे पतित-पावन कहते हो ना, मैं सर्वशक्तिमान् आलमाइटी हूँ क्योंकि मेरी आत्मा सदैव 100 परसेन्ट पवित्र रहती है। मैं बिन्दी रूप अथॉरिटी हूँ। सब शास्त्रों का राज जानता हूँ। यह कितना वन्डर है। यह सब वन्डरफुल ज्ञान है। ऐसे कभी सुना नहीं होगा कि आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट है। वह कभी घिसता नहीं है। चलता ही आता है। 84 जन्मों का चक्र फिरता आता है। 84 जन्मों का रिकार्ड भरा हुआ है। इतनी छोटी आत्मा में इतना ज्ञान है। बाबा में भी है तो तुम बच्चों में भी है। कितना पार्ट बजाते हैं। यह पार्ट कभी मिटने का नहीं है। आत्मा इन ऑखों से देखने में नहीं आती है। है बिन्दी, बाबा भी कहते हैं मैं ऐसा बिन्दी हूँ। यह भी तुम बच्चे अब समझते हो। तुम हो बेहद के त्यागी और राजऋषि। कितना नशा चढ़ना चाहिए। राजऋषि बिल्कुल पवित्र रहते हैं। राजऋषि होते हैं– सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, जो यहाँ राजाई प्राप्त करते हैं। जैसे अब तुम कर रहे हो। यह तो बच्चे समझते हैं कि हम जा रहे हैं। खिवैया के स्टीमर में बैठे हैं। और यह भी जानते हैं यह पुरूषोत्तम संगमयुग है। जाना भी जरूर है, पुरानी दुनिया से नई दुनिया में, वाया शान्तिधाम। यह सदैव बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए। जब हम सतयुग में थे तो कोई खण्ड नहीं था। हमारा ही राज्य था। अब फिर से योगबल से अपना राज्य ले रहे हैं क्योंकि समझाया है योगबल से ही विश्व की राजाई पा सकते हैं। बाहुबल से कोई नहीं पा सकते। यह बेहद का ड्रामा है। खेल बना हुआ है। इस खेल की समझानी बाप ही देते हैं। शुरू से लेकर सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं। तुम सूक्ष्मवतन, मूलवतन के राज को भी अच्छी रीति जानते हो। स्थूल वतन में इनका राज्य था अर्थात् हमारा राज्य था। तुम कैसे सीढ़ी उतरते हो, वह भी याद आ गया। सीढ़ी चढ़ना और उतरना यह खेल बच्चों की बुद्धि में बैठ गया है। अब बुद्धि में है कि कैसे यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है, इसमें हमारा हीरो, हीरोइन का पार्ट है। हम ही हार खाते हैं और फिर जीत पाते हैं इसलिए नाम रखा है हीरो, हीरोइन। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अभी हम वनवाह में हैं– इसलिए बहुत-बहुत साधारण रहना है। कोई भी अभिमान देह का वा कपड़ों आदि का नहीं रखना है। कोई भी कर्म करते बाप की याद का नशा चढ़ा रहे।
2) हम बेहद के त्यागी और राजऋषि हैं– इसी नशे में रह पवित्र बनना है। ज्ञान धन से भरपूर बन दान करना है। सच्चा-सच्चा सौदागर बन अपना पोतामेल रखना है।
वरदान:
सदा कल्याणकारी भावना द्वारा गुणग्राही बनने वाले अचल अडोल भव  
अपनी स्थिति अचल अडोल बनाने के लिए सदा गुणग्राही बनो। अगर हर बात में गुणग्राही होंगे तो हलचल में नहीं आयेंगे। गुणग्राही अर्थात् कल्याण की भावना। अवगुण में गुण देखना इसको कहते हैं गुणग्राही इसलिए अवगुण वाले से भी गुण उठाओ। जैसे वह अवगुण में दृढ़ है ऐसे आप गुण में दृढ़ रहो। गुण का ग्राहक बनो, अवगुण का नहीं।
स्लोगन:
अपना सब कुछ बाप को अर्पण कर सदा हल्के रहने वाले ही फरिश्ते हैं।