Monday, March 28, 2016

मुरली 28 मार्च 2016

28-03-16 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे-मीठे सर्विसएबुल बच्चे - ऐसा कोई भी काम नहीं करना जिससे सर्विस में कोई भी विघ्न पड़े''  
प्रश्न:
संगमयुग पर तुम बच्चों को बिल्कुल एक्यूरेट बनना है, एक्यूरेट कौन बन सकते हैं?
उत्तर:
जो सच्चे बाप के साथ सदा सच्चे रहते हैं, अन्दर एक, बाहर दूसरा - ऐसा न हो। 2- जो शिवबाबा के सिवाए और बातों में नहीं जाते हैं। 3- हर कदम श्रीमत पर चलते हैं, कोई भी गफ़लत नहीं करते, वही एक्यूरेट बनते हैं।
गीत:-
बचपन के दिन भुला न देना......   
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत के दो अक्षर सुने यह तो निश्चय करते हो - बेहद का बाप अभी बेहद सुख का वर्सा दे रहे हैं। ऐसे बाप के हम आकर बच्चे बने हैं तो बाप की श्रीमत पर भी चलना है। नहीं तो क्या होगा! अभी-अभी हंसते हो, कहते हो हम महाराजा महारानी बनेंगे और अगर हाथ छोड़ दिया तो फिर जाकर साधारण प्रजा बनेंगे। स्वर्ग में तो जरूर आयेंगे। ऐसे भी नहीं सब स्वर्ग में आने वाले हैं। जो सतयुग त्रेता में आने वाले होंगे वही आयेंगे। सतयुग और त्रेता दोनों को मिलाकर स्वर्ग कहा जाता है। फिर भी जो पहले-पहले नई दुनिया में आते हैं वह अच्छा सुख पाते हैं बाकी जो बाद में आने वाले हैं वह कोई आकर ज्ञान नहीं लेंगे। ज्ञान लेने वाले सतयुग त्रेता में आयेंगे। बाकी आते ही हैं रावण राज्य में। वह थोड़ा सा सुख पा सकेंगे। सतयुग त्रेता में तो बहुत सुख है ना इसलिए पुरूषार्थ करके बाप से बेहद सुख का वर्सा पाना चाहिए और यह महान खुशखबरी लिखो - कार्डस जो छपवाते हैं उसमें भी यह लिखना चाहिए - ऊंच ते ऊंच बेहद के बाप की खुशखबरी। प्रदर्शनी में तुम दिखाते हो नई दुनिया कैसे स्थापन होती है। तो यह क्लीयर और बड़े अक्षरों में लिखना चाहिए। बेहद का बाप ज्ञान का सागर, पतित-पावन, सद्गति दाता गीता का भगवान शिव कैसे ब्रह्माकुमार कुमारियों द्वारा फिर से कलियुगी सम्पूर्ण विकारी, भ्रष्टाचारी पतित दुनिया को सतयुगी सम्पूर्ण निर्विकारी पावन श्रेष्ठाचारी दुनिया बना रहे हैं। वह खुशखबरी आकर सुनो अथवा समझो। गवर्नमेन्ट से भी तुम्हारी यह प्रतिज्ञा है कि हम भारत में फिर से सतयुगी श्रेष्ठाचारी 100 प्रतिशत पवित्रता सुख-शान्ति का दैवी स्वराज्य कैसे स्थापन कर रहे हैं और इस विकारी दुनिया का विनाश कैसे होगा सो आकर समझो। ऐसा क्लीयर लिखना चाहिए। कार्ड में ऐसे लिखो जो मनुष्य अच्छी रीति समझ सकें। यह प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ कल्प पहले मिसल ड्रामा प्लैन अनुसार परमपिता परमात्मा शिव की श्रीमत पर सहज राजयोग और पवित्रता के बल से, अपने तन-मन-धन से भारत को ऐसा श्रेष्ठाचारी पावन कैसे बना रहे हैं, सो आकर समझो। क्लीयर करके कार्ड में छपाना चाहिए, जो कोई भी समझ जाए। यह बी.के. शिवबाबा की मत पर रामराज्य स्थापन कर रहे हैं, जो गांधी जी की चाहना थी। अखबार में भी ऐसा फुल निमन्त्रण पड़ जाए। यह जरूर समझाना है कि प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ अपने तन-मन-धन से यह कर रहे हैं। तो मनुष्य ऐसा कभी न समझें कि यह कोई भीख वा डोनेशन आदि मांगते हैं। दुनिया में तो सब डोनेशन पर ही चलते हैं। यहाँ तुम कहते हो कि हम बी.के. अपने तन-मन-धन से कर रहे हैं। वह खुद ही स्वराज्य लेते हैं तो जरूर अपना ही खर्चा करेंगे। जो मेहनत करते हैं उनको ही 21 जन्मों के लिए वर्सा मिलता है। भारतवासी ही 21 जन्मों के लिए श्रेष्ठाचारी डबल सिरताज बनते हैं। यह लक्ष्मी- नारायण डबल सिरताज हैं ना। अभी तो कोई ताज नहीं रहा है। तो यह अच्छी रीति समझाना पड़े। बाप समझाते हैं ऐसे-ऐसे लिखो तो बिचारों को मालूम पड़े कि बी.के. क्या कर रहे हैं। बड़ों का आवाज होगा तो फिर गरीबों का भी सुनेंगे। नहीं तो गरीब की कोई बात नहीं सुनते। साहूकार का आवाज झट होता है। तुम सिद्धकर बतलाते हो हम खास भारत को स्वर्ग बनाते हैं। बाकी सबको शान्तिधाम में भेज देंगे। समझाना भी ऐसे है। भारत 5 हजार वर्ष पहले ऐसा स्वर्ग था। अभी तो कलियुग है, वह सतयुग था। अब बताओ सतयुग में कितने आदमी थे। अभी कलियुग का अन्त है। यह वही महाभारत महाभारी लड़ाई है। और कोई समय तो ऐसी लड़ाई लगी ही नहीं है। यह भी थर्ड वार पिछाड़ी को हुई है। ट्राई करते हैं ना। अब तो एटॉमिक बॉम्बस बनाते रहते हैं। किसकी भी सुनते नहीं हैं। वह कहते हैं जो बॉम्बस बनाये हुए हैं वह सब समुद्र में डाल दो तो हम भी नहीं बनायें। तुम रखो और हम न बनायें यह कैसे हो सकता। परन्तु तुम बच्चे जानते हो यह तो भावी बनी हुई है। कितना भी उन्हों को मत दें, समझेंगे नहीं। विनाश न हो तो राज्य कैसे करेंगे। तुम बच्चों को तो निश्चय है ना। संशय बुद्धि जो हैं वह भागन्ती हो जाते हैं, ट्रेटर बन जाते हैं। बाप का बनकर फिर ट्रेटर नहीं बनना है। तुमको तो याद करना है शिवबाबा को और बातों से क्या फायदा। सच्चे बाप के साथ सच्चा बनना है। अन्दर एक बाहर में दूसरी रखेंगे तो अपना पद भ्रष्ट कर देंगे। अपना ही नुकसान करेंगे। कल्प - कल्पान्तर के लिए कभी भी ऊंच पद पा नहीं सकेंगे इसलिए इस समय बहुत एक्यूरेट बनना है। कोई गफ़लत नहीं करनी चाहिए। जितना हो सके श्रीमत पर रहना है। निरन्तर याद तो पिछाड़ी में रहेगी। सिवाए एक बाप के और कोई की याद न रहे। गाया हुआ भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे... जिसमें मोह होगा तो वह याद आ पड़ेगी। आगे चल जितना तुम नज़दीक आते जायेंगे, साक्षात्कार होता जायेगा। बाबा हर एक को दिखायेंगे तुमने ऐसा-ऐसा काम किया है। शुरू-शुरू में भी तुमने साक्षात्कार किये हैं। सज़ायें जो भोगते थे वो बहुत ही चिल्लाते थे। बाबा कहते हैं तुमको दिखलाने के लिए इनकी सौगुणी सज़ायें कटवा दी। तो ऐसा काम नहीं करना है जो बाबा की सर्विस में विघ्न पड़े। पिछाड़ी में भी सब तुमको साक्षात्कार होंगे। ऐसे-ऐसे तुमने बाप की सर्विस में विघ्न बहुत डाल नुकसान किया है। आसुरी सम्प्रदाय हैं ना। जिन्होंने विघ्न डाले हैं उनको बहुत सजा मिलती है। शिवबाबा की बहुत बड़ी दरबार है। राइटहैण्ड में धर्मराज भी है। वह हैं हद की सजायें। यहाँ तो 21 जन्म का घाटा पड़ जाता है, पद भ्रष्ट हो जाता है। हर बात में बाप समझाते रहते हैं। तो ऐसे कोई न कहे कि हमको पता नहीं था इसलिए बाबा सब सावधानी देते रहते हैं। देखते हैं हर एक सेन्टर में कितने भागन्ती होते हैं। तंग करते हैं। विकारी बन जाते हैं। स्कूल में तो पूरी रीति पढ़ना चाहिए। नहीं तो क्या पद पायेंगे। पद का बहुत फर्क पड़ जाता है। जैसे यहाँ दु:खधाम में कोई प्रेजीडेंट है, कोई साहूकार है, कोई गरीब है वैसे वहाँ सुखधाम में भी पद तो नम्बरवार होंगे। जो रॉयल बुद्धिवान बच्चे होंगे, वह बाप से पूरा वर्सा लेने की कोशिश करेंगे। माया की बाक्सिंग है ना। माया बहुत प्रबल है हार जीत होती रहती है। कितने आते हैं फिर ट्रेटर बन चले जाते हैं। चलते-चलते फेल हो जाते हैं। बहुत कहते हैं यह हो कैसे सकता। यह तो कभी नहीं सुना कि गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रह सकते हैं। अरे भगवानुवाच है ना - काम महाशत्रु है। गीता में भी है ना। सिर्फ भगवान के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। कृष्ण को देवता भी नहीं कहेंगे। वह देवता धर्म है ना। बाकी देवतायें तो सिर्फ सूक्ष्मवतनवासी ही हैं। बाकी हैं दैवीगुण वाले मनुष्य। सतयुग में दैवीगुणों वाले, कलियुग में हैं आसुरी अवगुणों वाले। आसुरी गुणों वाले दैवी गुण वालों की महिमा गाते हैं। कितना फ़र्क है। अभी तुम समझते हो हम क्या थे, क्या बन रहे हैं। यहाँ तुमको सब गुण धारण करने हैं। खान-पान आदि भी सतोगुणी खाना है। देखना है देवताओं को क्या खिलाते हैं। श्रीनाथ द्वारे में जाकर देखो - कितने माल अथवा शुद्ध भोजन बनता है। वहाँ हैं ही वैष्णव। और वहाँ जगन्नाथ पुरी में देखो क्या मिलता है? चावल। वहाँ है वाम मार्ग के बहुत गन्दे चित्र। जब राजाई थी तो 36 प्रकार के भोजन मिलते थे। तो श्रीनाथ द्वारे में बहुत माल बनते हैं। पुरी और श्रीनाथ का अलग-अलग है। पुरी के मन्दिर में बहुत गन्दे चित्र हैं, देवताओं की ड्रेस में। तो भोग भी ऐसा अच्छा नहीं लगता है। सिर्फ चावल की हण्डी चढ़ाते हैं। घी भी नहीं डालते। यह फ़र्क दिखाते हैं। भारत क्या था फिर क्या बन गया। अभी तो देखो क्या हालत है। पूरा अन्न भी नहीं मिलता है। उन्हों के प्लैन और शिवबाबा के प्लैन में रात दिन का फ़र्क है। वह सब प्लैन मिट्टी में मिल जायेंगे। नेचुरल कैलेमिटीज होगी। अनाज आदि कुछ नहीं मिलेगा, बरसात कहाँ देखो तो बहुत पड़ती। कहाँ बिल्कुल पड़ती नहीं। कितना नुकसान कर देती है। इस समय तत्व भी तमोप्रधान हैं तो बरसात भी उल्टे सुल्टे टाईम पर पड़ती रहती है। तूफान भी तमोप्रधान, सूर्य भी तपत ऐसी करेंगे जो बात मत पूछो। यह नेचुरल कैलेमिटीज ड्रामा में नूँध हैं। उन्हों की है विनाश काले विप्रीत बुद्धि। तुम्हारी है बाप के साथ प्रीत बुद्धि। अज्ञान काल में भी सपूत बच्चों पर माँ बाप का प्यार रहता है इसलिए बाबा कहते भी हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार यादप्यार...जितना- जितना सर्विस करेंगे...खिदमत तो करनी है ना। भारत की खास और दुनिया की आम, भारत को स्वर्ग बनाना है। बाकी सबको भेज देना है शान्तिधाम। भारत को स्वर्ग का वर्सा मिलता है, बाकी सबको मुक्ति का वर्सा मिलता है। सब चले जायेंगे। हाहाकार के बाद जयजयकार हो जायेगा। कितना हाहाकार मचेगा। यह है ही खूने नाहेक खेल। नेचुरल कैलेमिटीज़ भी आयेंगी। मौत तो सबका होना ही है।

बाप बच्चों को समझाते हैं पूरा पुरूषार्थ कर लो। बाप के साथ सदैव फरमानबरदार, वफादार बनना है। सर्विसएबुल बनना है। जिन्होंने कल्प पहले जैसी सेवा की है, उनका साक्षात्कार होता रहेगा। तुम साक्षी हो देखते रहेंगे। तुम अभी स्वदर्शन चक्रधारी बने हो। सदैव बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिरता रहना चाहिए। हमने 84 जन्म ऐसे-ऐसे लिए हैं। अभी हम वापिस घर जाते हैं। बाप भी याद रहे, घर भी याद रहे। सतयुग भी याद रहे। सारा दिन बुद्धि में यही चिंतन करना है। अभी हम विश्व का महाराजकुमार बनेंगे। हम श्री लक्ष्मी वा श्री नारायण बनेंगे। नशा चढ़ना चाहिए ना। बाबा को नशा रहता है। बाबा रोज़ इस (लक्ष्मी-नारायण के) चित्र को देखते हैं, अन्दर में नशा रहता है ना। बस कल हम जाकर यह श्रीकृष्ण बनेंगे। फिर स्वयंवर बाद श्रीनारायण बनेंगे। तत्त्वम्। तुम भी तो बनेंगे ना। यह है ही राजयोग। प्रजा योग है नहीं। आत्माओं को फिर से अपना राज्य भाग्य मिलता है। बच्चों ने राज्य गँवाया था। अब फिर राज्य ले रहे हैं। बाबा यह चित्र आदि बनाते ही इसलिए हैं कि तुम बच्चों को देखकर खुशी हो। 21 जन्म के लिए हम स्वर्ग का राज्य भाग्य पा रहे हैं। कितना सहज है। यह शिवबाबा, यह प्रजापिता ब्रह्मा इन द्वारा यह राजयोग सिखलाते हैं। फिर हम यह जाकर बनेंगे। देखने से ही खुशी का पारा चढ़ जाता है। हम बाप की याद में रहने से विश्व का राजकुमार बनेंगे। कितनी खुशी रहनी चाहिए। हम भी पढ़ रहे हैं, तुम भी पढ़ रहे हो। इस पढ़ाई के बाद हम जाकर यह बनेंगे। सारा मदार पढ़ाई पर है। जितना पढ़ेंगे उतना कमाई होगी ना। बाबा ने बतलाया है कोई सर्जन तो इतने होशियार होते हैं जो लाख रूपया भी एक केस पर कमाते हैं। बैरिस्टर्स में भी ऐसे होते हैं। कोई तो बहुत कमाते हैं, कोई को देखो तो कोट भी फटा हुआ पड़ा होगा। यह भी ऐसे है इसलिए बाबा बार-बार कहते हैं बच्चे, कोई भी गफ़लत नहीं करो। सदैव श्रीमत पर चलो। श्री श्री शिवबाबा से तुम श्रेष्ठ बनते हो। तुम बच्चों ने बाप से अनेक बार वर्सा लिया है और गँवाया है। 21 जन्मों का वर्सा आधाकल्प के लिए मिलता है। आधाकल्प 2500 वर्ष सुख पाते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अन्दर बाहर सच्चा रहना है। पढ़ाई में कभी भी गफ़लत नहीं करना है। कभी भी संशय बुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। सर्विस में विघ्न रूप नहीं बनना है।
2) सबको यही खुशखबरी सुनाओ कि हम पवित्रता के बल से, श्रीमत पर अपने तन-मन-धन के सहयोग से 21 जन्मों के लिए भारत को श्रेष्ठाचारी डबल सिरताज बनाने की सेवा कर रहे हैं।
वरदान:
अपने एकाग्र स्वरूप द्वारा सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करने वाले अन्तर्मुखी भव!   
एकाग्रता का आधार अन्तर्मुखता है। जो अन्तर्मुखी हैं वे अन्दर ही अन्दर सूक्ष्म शक्ति की लीलाओं का अनुभव करते हैं। आत्माओं का आह्वान करना, आत्माओं से रूहरिहान करना, आत्माओं के संस्कार स्वभाव को परिवर्तन करना, बाप से कनेक्शन जुड़वाना-ऐसे रूहों की दुनिया में रूहानी सेवा करने के लिए एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाओ, इससे सर्व प्रकार के विघ्न स्वत: समाप्त हो जायेंगे।
स्लोगन:
सर्व प्राप्तियों को स्वयं में धारण कर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होना ही प्रत्यक्षता का आधार है।