Thursday, March 24, 2016

मुरली 25 मार्च 2016

25-03-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन 

“मीठे बच्चे– तुम्हें आपस में बहुत-बहुत रूहानी स्नेह से रहना है, कभी भी मतभेद में नहीं आना है”   
प्रश्न:
हर एक ब्राह्मण बच्चे को अपनी दिल से कौन सी बात पूछनी चाहिए?
उत्तर:
अपनी दिल से पूछो -1– मैं ईश्वर की दिल पर चढ़ा हुआ हूँ! 2– मेरे में दैवी गुणों की धारणा कहाँ तक है? 3– मैं ब्राह्मण ईश्वरीय सर्विस में बाधा तो नहीं डालता! 4– सदा क्षीरखण्ड रहता हूँ! हमारी आपस में एकमत है? 5– मैं सदा श्रीमत का पालन करता हूँ?
गीत:–
भोलेनाथ से निराला.......  
ओम् शान्ति।
तुम बच्चे हो ईश्वरीय सम्प्रदाय। आगे थे आसुरी सम्प्रदाय। आसुरी सम्प्रदाय को यह पता नहीं है कि भोलानाथ किसको कहा जाता है। यह भी नहीं जानते कि शिव शंकर अलग-अलग हैं। वह शंकर देवता है, शिव बाप है। कुछ भी नहीं जानते हैं। अब तुम हो ईश्वरीय सम्प्रदाय अथवा ईश्वरीय फैमिली। वह है आसुरी फैमिली रावण की। कितन्ा फर्क है। अभी तुम ईश्वरीय फैमिली में ईश्वर द्वारा सीख रहे हो कि एक दो में रूहानी प्यार कैसा होना चाहिए। एक दो में ब्राह्मण कुल में यह रूहानी प्यार यहाँ से भरना है। जिनका पूरा प्यार नहीं होगा तो पूरा पद भी नहीं पायेंगे। वहाँ तो है ही एक धर्म, एक राज्य। आपस में कोई झगड़ा नहीं होता। यहाँ तो राजाई है नहीं। ब्राह्मणों में भी देह-अभिमान होने कारण मतभेद में आ जाते हैं। ऐसे मतभेद में आने वाले सजायें खाकर फिर पास होंगे। फिर वहाँ एक धर्म में रहते हैं। तो वहाँ शान्ति रहती है। अब उस तरफ है आसुरी सम्प्रदाय वा आसुरी फैमिली-टाइप। यहाँ है ईश्वरीय फैमिली टाइप। भविष्य के लिए दैवीगुण धारण कर रहे हैं। बाप सर्वगुण सम्पन्न बनाते हैं। सब तो नहीं बनते हैं। जो श्रीमत पर चलते हैं वही विजय माला का दाना बनते हैं। जो नहीं बनेंगे वह प्रजा में आ जाते हैं। वहाँ तो डीटी गवर्मेन्ट है। 100 परसेन्ट प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टा रहती है। इस ब्राह्मण कुल में अभी दैवीगुण धारण करने हैं। कोई तो अच्छी रीति दैवीगुण धारण करते, दूसरों को कराते रहते हैं। ईश्वरीय कुल का आपस में रूहानी स्नेह भी तब होगा जब देही-अभिमानी होंगे, इसलिए पुरूषार्थ करते रहते हैं। अन्त में भी सबकी अवस्था एकरस, एक जैसी तो नहीं हो सकती है। फिर सजायें खाकर पद भ्रष्ट हो पड़ेंगे। कम पद पा लेंगे। ब्राह्मणों में भी अगर कोई आपस में क्षीरखण्ड होकर नहीं रहते हैं, आपस में लूनपानी हो रहते हैं, दैवीगुण धारण नहीं करते हैं तो ऊंच पद कैसे पा सकेंगे। लूनपानी होने के कारण कहाँ ईश्वरीय सर्विस में भी बाधा डालते रहते हैं। जिसका नतीजा क्या होता है वह इतना ऊंच पद नहीं पा सकते। एक तरफ पुरूषार्थ करते हैं क्षीरखण्ड होने का। दूसरी तरफ माया लूनपानी बना देती है, जिस कारण सर्विस बदले डिससर्विस करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं तुम हो ईश्वरीय फैमिली। ईश्वर के साथ रहते भी हो। कोई साथ रहते हैं, कोई दूसरे-दूसरे गाँव में रहते हैं परन्तु हो तो इकठ्ठे ना। बाप भी भारत में आते हैं। मनुष्य यह नहीं जानते, शिवबाबा कब आते हैं, क्या आकर करते हैं? तुमको बाप द्वारा अभी परिचय मिला है। रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को अब तुम जानते हो। दुनिया को पता नहीं कि यह चक्र कैसे फिरता है, अभी कौन सा समय है, बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं। तुम बच्चों को रचता बाप ने आकर सारा समाचार सुनाया है। साथ-साथ समझाते हैं कि हे सालिग्रामों मुझे याद करो। यह शिवबाबा कहते हैं अपने बच्चों को। तुम पावन बनने चाहते हो ना। पुकारते आये हो। अभी मैं आया हूँ। शिवबाबा आते ही हैं– भारत को फिर से शिवालय बनाने, रावण ने वेश्यालय बनाया है। खुद ही गाते हैं कि हम पतित विशश हैं। भारत सतयुग में सम्पूर्ण निर्विकारी था। निर्विकारी देवताओं को विकारी मनुष्य पूजते हैं। फिर निर्विकारी ही विकारी बनते हैं। यह किसको पता नहीं है। पूज्य तो निर्विकारी थे फिर पुजारी विकारी बने हैं तब तो बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ, आकर निर्विकारी बनाओ। बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म तुम पवित्र बनो। मामेकम् याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे और तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान देवता बन जायेंगे फिर चन्द्रवंशी क्षत्रिय फैमिली-टाइप में आयेंगे। इस समय हो ईश्वरीय फैमिली– टाइप फिर दैवी फैमिली में 21जन्म रहेंगे। इस ईश्वरीय फैमिली में तुम अन्तिम जन्म पास करते हो। इसमें तुमको पुरूषार्थ कर फिर सर्वगुण सम्पन्न बनना है। तुम पूज्य थे– बरोबर राज्य करते थे फिर पुजारी बने हो। यह समझाना पड़े ना। भगवान है बाप। हम उनके बच्चे हैं तो फैमिली हुई ना। गाते भी हैं तुम मात पिता हम बालक तेरे...तो फैमिली ठहरे ना। अब बाप से सुख घनेरे मिलते हैं। बाप कहते हैं तुम हमारी फैमिली बेशक हो। परन्तु ड्रामा प्लैन अनुसार रावण राज्य में आने के बाद फिर तुम दु:ख में आते हो तो पुकारते हो। इस समय तुम एक्यूरेट फैमिली हो। फिर तुमको भविष्य 21 जन्म लिए वर्सा देता हूँ। यह वर्सा फिर दैवी फैमिली में 21 जन्म कायम रहेगा। दैवी फैमिली सतयुग त्रेता तक चलती है। फिर रावण राज्य होने से भूल जाते हैं कि हम दैवी फैमिली के हैं। वाम मार्ग में जाने से आसुरी फैमिली हो जाती है। 63 जन्म सीढ़ी गिरते आये हो। यह सारी नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है। किसको भी तुम समझा सकते हो। असुल तुम देवी देवता धर्म के हो। सतयुग के आगे था कलियुग। संगम पर तुमको मनुष्य से देवता बनाया जाता है। बीच में है यह संगम। तुमको ब्राह्मण धर्म से फिर दैवी धर्म में ले आते हैं। समझाया जाता है लक्ष्मी-नारायण ने यह राज्य कैसे लिया। उनसे पहले आसुरी राज्य था फिर दैवी राज्य कब और कैसे हुआ। बाप कहते हैं कल्प-कल्प संगम पर आकर तुमको ब्राह्मण देवता क्षत्रिय धर्म में ले आते हैं। यह है भगवान की फैमिली। सब कहते हैं गॉड फादर। परन्तु बाप को न जानने के कारण निधन के बन गये हैं इसलिए बाप आते हैं घोर अन्धियारे से सोझरा करने। अब स्वर्ग स्थापन हो रहा है। तुम बच्चे पढ़ रहे हो, दैवीगुण धारण कर रहे हो। यह भी मालूम होना चाहिए– शिव जयन्ती मनाते हैं, शिव जयन्ती के बाद फिर क्या होगा? जरूर दैवी राज्य की जयन्ती हुई होगी ना। हेविनली गॉड फादर हेविन की स्थापना करने हेविन में तो नहीं आयेंगे। कहते हैं मैं हेल और हेविन के बीच में संगम पर आता हूँ। शिवरात्रि कहते हैं ना। तो रात में मैं आता हूँ। यह तुम बच्चे समझ सकते हो। जो समझते हैं वह औरों को भी धारण कराते हैं। दिल पर भी वह चढ़ते हैं जो मन्सा-वाचा-कर्मणा सर्विस पर तत्पर रहते हैं। जैसी-जैसी सर्विस उतना दिल पर चढ़ते हैं। कोई आलराउन्ड वर्कर्स होते हैं। सब काम सीखना चाहिए। खाना पकाना, रोटी पकाना, बर्तन माँजना...यह भी सर्विस है ना। बाप की याद है फर्स्ट। उनकी याद से ही विकर्म विनाश होते हैं। यहाँ का वर्सा मिला हुआ है। वहाँ सर्वगुण सम्पन्न रहते हैं। यथा राजा रानी तथा प्रजा। दु:ख की बात नहीं होती। इस समय सब नर्कवासी हैं। सबकी उतरती कला है। फिर अभी चढ़ती कला होगी। बाप सबको दु:ख से छुड़ाए सुख में ले जाते हैं, इसलिए बाप को लिबरेटर कहा जाता है। यहाँ तुमको नशा रहता है हम बाप से वर्सा ले रहे हैं, लायक बन रहे हैं। लायक तो उनको कहेंगे जो औरों को राजाई पद पाने लायक बनाते हैं। यह भी बाबा ने समझाया है पढ़ने वाले तो बहुत आयेंगे। ऐसे नहीं कि सब 84 जन्म लेंगे। जो थोड़ा पढ़ेंगे वह देरी से आयेंगे, तो जन्म भी कम होंगे ना। कोई 80, कोई 82, कौन जल्दी आते, कौन पीछे आते...सारा मदार पढ़ाई पर है। साधारण प्रजा पीछे आयेगी। उन्हों के 84 जन्म हो न सके। पीछे आते रहते हैं। जो बिल्कुल लास्ट में होगा वह त्रेता अन्त में आकर जन्म लेगा। फिर वाममार्ग में जाते हैं। उतरना शुरू हो जाता है। भारतवासियों ने कैसे 84 जन्म लिए हैं, उनकी यह सीढ़ी है। यह गोला है ड्रामा के रूप में। जो पावन थे वही अब पतित बने हैं फिर पावन देवता बनते हैं। बाप जब आते हैं तो सबका कल्याण होता है, इसलिए इसको आस्पीशियस युग कहा जाता है। बलिहारी बाप की है जो सबका कल्याण करते हैं। सतयुग में सबका कल्याण था, कोई दु:ख नहीं था, यह तो समझाना पड़े कि हम ईश्वरीय फैमिली-टाइप के हैं। ईश्वर सबका बाप है। यहाँ ही तुम मात-पिता गाते हो। वहाँ तो सिर्फ फादर कहा जाता है। यहाँ तुम बच्चों को माँ बाप मिलते हैं। यहाँ तुम बच्चों को एडाप्ट किया जाता है। फादर क्रियेटर है तो मदर भी होगी। नहीं तो क्रियेशन कैसे होगी। हेविनली गॉड फादर कैसे हेविन स्थापन करते हैं, यह न भारतवासी जानते हैं, न विलायत वाले ही जानते हैं। अभी तुम जानते हो नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश हो तो जरूर संगम पर ही होगा। अभी तुम संगम पर हो। अभी बाप समझाते हैं मामेकम् याद करो। आत्मा को याद करना है– परमपिता परमात्मा को। आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल...सुन्दर मेला कहाँ होगा! सुन्दर मेला जरूर यहाँ ही होगा। परमात्मा बाप यहाँ आते हैं, इसको कहा जाता है कल्याणकारी सुन्दर मेला। जीवनमुक्ति का वर्सा सबको देते हैं। जीवनबन्ध से छूट जाते हैं। शान्तिधाम तो सब जायेंगे– फिर जब आते हैं तो सतोप्रधान रहते हैं। धर्म स्थापन अर्थ आते हैं। नीचे जब उनकी जनसंख्या बढ़े तब राजाई के लिए पुरूषार्थ करें तब तक कोई झगड़ा आदि नहीं रहता। सतोप्रधान से रजो में जब आते हैं तब लड़ाई झगड़ा शुरू करते हैं। पहले सुख फिर दु:ख। अब बिल्कुल ही दुर्गति को पाये हुए हैं। इस कलियुगी दुनिया का विनाश फिर सतयुगी दुनिया की स्थापना होनी है। विष्णुपुरी की स्थापना कर रहे हैं ब्रह्मा द्वारा। जो जैसा पुरूषार्थ करते हैं उस अनुसार विष्णुपुरी में आकर प्रालब्ध पाते हैं। यह समझने की बहुत अच्छी-अच्छी बातें हैं। इस समय तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए कि हम ईश्वर से भविष्य 21 जन्मों का वर्सा पा रहे हैं। जितना पुरूषार्थ कर अपने को एक्यूरेट बनायेंगे...तुम्हें एक्यूरेट बनना है। घड़ी भी लीवर और सलेन्डर होती है ना। लीवर बहुत एक्यूरेट होती है। बच्चों में कई एक्यूरेट बन जाते हैं। कई अनएक्यूरेट हो जाते हैं तो कम पद हो जाता है। पुरूषार्थ करके एक्यूरेट बनना चाहिए। अभी सब एक्यूरेट नहीं चलते। तदबीर कराने वाला तो एक ही बाप है। तकदीर बनाने के पुरूषार्थ में कमी है इसलिए पद कम पाते हैं। श्रीमत पर न चलने के कारण आसुरी गुण न छोड़ने कारण, योग में न रहने कारण यह सब होता है। योग में नहीं हैं तो फिर जैसे पण्डित। योग कम है इसलिए शिवबाबा तरफ लव नहीं रहता। धारणा भी कम होती है, वह खुशी नहीं रहती। शक्ल ही जैसे मुर्दो मिसल रहती है। तुम्हारे फीचर्स तो सदैव हार्षित रहने चाहिए। जैसे देवताओं के होते हैं। बाप तुमको कितना वर्सा देते हैं। कोई गरीब का बच्चा साहूकार के पास जाये तो उनको कितनी खुशी होगी। तुम बहुत गरीब थे। अब बाप ने एडाप्ट किया है तो खुशी होनी चाहिए। हम ईश्वरीय सम्प्रदाय के बने हैं। परन्तु तकदीर में नहीं है तो क्या किया जा सकता है। पद भ्रष्ट हो जाता है। पटरानी बनते नहीं। बाप आते ही हैं पटरानी बनाने। तुम बच्चे किसको भी समझा सकते हो कि ब्रह्मा विष्णु शंकर तीनों हैं शिव के बच्चे। भारत को फिर से स्वर्ग बनाते हैं ब्रह्मा द्वारा। शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश होता है, भारत में ही बाकी थोड़े बचते हैं। प्रलय तो होती नहीं, परन्तु बहुत खलास हो जाते हैं तो जैसेकि प्रलय हो जाती है। रात दिन का फर्क पड़ जाता है। वह सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे। यह पतित-पावन बाप का ही काम है। बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो। नहीं तो पुराने संबंधी याद पड़ते रहते हैं। छोड़ा भी है फिर भी बुद्धि जाती रहती है। नष्टोमोहा हैं नहीं, इसको व्यभिचारी याद कहा जाता है। सद्गति को पा न सकें क्योंकि दुर्गति वालों को याद करते रहते हैं। अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बापदादा की दिल पर चढ़ने के लिए मन्सा-वाचा-कर्मणा सेवा करनी है। एक्यूरेट और आलराउन्डर बनना है।
2) ऐसा देही-अभिमानी बनना है जो कोई भी पुराने संबंधी याद न आयें। आपस में बहुत-बहुत रूहानी प्यार से रहना है, लूनपानी नहीं होना है।
वरदान:
सदा बाप के सम्मुख रह खुशी का अनुभव करने वाले अथक और आलस्य रहित भव   
कोई भी प्रकार के संस्कार या स्वभाव को परिवर्तन करने में दिलशिकस्त होना या अलबेलापन आना भी थकना है, इससे अथक बनो। अथक का अर्थ है जिसमें आलस्य न हो। जो बच्चे ऐसे आलस्य रहित हैं वे सदा बाप के सम्मुख रहते और खुशी का अनुभव करते हैं। उनके मन में कभी दु:ख की लहर नहीं आ सकती इसलिए सदा सम्मुख रहो और खुशी का अनुभव करो।
स्लोगन:
सिद्धि स्वरूप बनने के लिए हर संकल्प में पुण्य और बोल में दुआयें जमा करते चलो।