Saturday, March 12, 2016

मुरली 13 मार्च 2016

13-03-16 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज:23-03-81 मधुबन 

फर्स्ट या एयरकन्डीशन में जाने का सहज साधन
आज बापदादा सब बच्चों की सूरत में विशेष एक बात देख रहे हैं। वह कौन-सी है? हरेक के चेहरे पर प्युरिटी की ब्युटी कहाँ तक आई है अर्थात् पवित्रता के महानता की चमक कहाँ तक दिखाई देती है, जैसे शरीर की ब्युटी में मस्तक, नयन, मुख आदि सब देखते हैं वैसे प्युरिटी की ब्युटी में बापदादा, मस्तक में संकल्प की रेखायें अर्थात् स्मृति की शक्ति, नयनों में आत्मिक वृत्ति की दृष्टि, मुख पर महान आत्मा बनने की खुशी की मुस्कान, वाणी में सदा महान बन महान बनाने के बोल, सिर पर पवित्रता की निशानी लाइट का ताज – ऐसा चमकता हुआ चेहरा हरेक का बापदादा देख रहे थे। आज वतन में प्युरिटी की काम्पीटीशन थी। आज सबका नम्बर कितना होगा। यह जानते हो? फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड प्राइज होती है। आप सबको कौन-सी प्राइज मिली? फर्स्ट प्राइज के अधिकारी वह बच्चे बनते हैं जिन्हों की पाँचों ही बातें सम्पन्न होंगी। एक लाइट का ताज, उस ताज में भी जिसका ताज फुल सर्किल में है। जैसे चन्द्रमा का भी पूरा सर्किल होता है। कभी अधूरा होता है, तो किन्हों का आधा था, किसका पूरा था और किन्हों का तो लकीर मात्र था, जिसको कहेंगे नाम-मात्र। तो पहला नम्बर अर्थात् फर्स्ट प्राइज वाले फुल लाइट के ताजधारी। दूसरा – जैसे मस्तक में तिलक चमकता है वैसे भाई-भाई की स्मृति अर्थात् आत्मिक स्मृति की निशानी मस्तक बीच बिन्दी चमक रही थी। तीसरा नयनों में रूहानियत की चमक, रूहानी नजर, जिस्म को देखते हुए न देख रूहों को देखने के अभ्यास की चमक थी। रूहानी प्रेम की झलक थी। होठों पर प्रभु प्राप्ति आत्मा और परमात्मा के महान मिलन की और सर्व प्राप्तियों की मुस्कान थी। चेहरे पर मात-पिता और श्रेष्ठ परिवार से बिछुड़े हुए कल्प बाद मिलने के सुख की लाली थी। बाप भी लाल, आत्मा भी लाल, घर भी लाल और बाप के भी बने तो लाल हो गये। कितने प्रकार की लाली हो गई! ऐसी पाँचों ही रेखायें सम्पूर्ण स्वरूप वाले फर्स्ट प्राइज में हैं। अब इसके आधार पर सोचो – फर्स्ट प्राइज 100 प्रतिशत पाँचों ही रेखाओं में है। सेकेण्ड प्राइज वाले 70 परसेन्ट, थर्ड प्राइज वाले 30 परसेन्ट, अब बताओ आप कौन हो? सेकेण्ड प्राइज वाले – उसमें भी नम्बरवार मैजारिटी थे। फर्स्ट और थर्ड में कम थे। 30 से 50 के अन्दर मैजारिटी थे। कहेंगे उसको भी सेकेण्ड में, लेकिन पीछे। फर्स्ट क्लास वालों में भी दो प्रकार थे – एक जन्म से ही प्युरिटी के ब्युटी की पाँचों ही निशानियाँ जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त किये हुए थे। प्राप्त करना नहीं पड़ा लेकिन प्राप्त किये हुए थे। उन्हों के चेहरे पर अपवित्रता के नॉलेज की रेखायें नहीं हैं। निजी संस्कार नैचुरल लाइफ है। संस्कार परिवर्तन करने की मेहनत नहीं। स्वप्न में भी संकल्प मात्र अपवित्रता का वार नहीं अर्थात् प्युरिटी की ब्युटी में जरा भी महीन दाग नहीं। दूसरे जन्म से नॉलेज की लाइट और माइट के आधार पर सदा प्युरिटी की ब्युटी व्ले। अन्तर यह रहा जो पहले वाले सुनाये उन्हों के लास्ट जन्म के पिछले संस्कार का भी दाग नहीं इसलिए पिछले जन्म के संस्कारों को मिटाने के मेहनत की रेखा नहीं। नॉलेज है कि पिछले जन्म का बोझ आत्मा पर है लेकिन 84 वें जन्म के पास्ट का ड्रामा अनुसार अपवित्रता के संकल्प का अनुभव नहीं इसलिए यह भी लिफ्ट की गिफ्ट मिली हुई है इसलिए निजी संस्कार के रूप में सहज महान आत्मा हैं। जैसे सहज योगी वैसे सहज पवित्र आत्मा। बी होली नहीं, वह हैं ही होली। उन्हों के लिए यह स्लोगन नहीं है कि `बी होली'। वह बने बनाये हैं। फर्स्ट प्राइज में भी नम्बरवन। समझो एयरकन्डीशन ग्रुप हो गया। फिर फर्स्टक्लास, उन्हों का सिर्फ थोडा सा अन्तर है। निजी संस्कार नहीं, संस्कार बनाना पड़ता है अर्थात् मरजीवे जन्म के आदि में निमित्त मात्र नॉलेज के आधार पर अटेन्शन रखना पड़ा। जरा सा पुरूषार्थ की रेखायें जन्म के आदि में दिखाई देती हैं, अभी नहीं। पहले आदिकाल की बात है। एयरकन्डीशन अर्थात् बना बनाया था और फर्स्टक्लास वालों ने आदि में स्वयं को बनाया। उसमें भी पुरूषार्थ सहज किया है। सहज पुरूषार्थ, तीव्र पुरूषार्थ, समर्थ पुरूषार्थ। लेकिन फिर भी पुरूषार्थ की रेखा है। यह प्युरिटी की बात चल रही है। प्युरिटी की सब्जेक्ट में वह बने बनाये और वह पुरूषार्थ की रेखा वाले हैं। बाकी टोटल सब सबजेक्ट की बात अलग है। यह एक सबजेक्ट की बात है। वह 8 रत्नों की माला और वह 100 में पहले नम्बर। थर्ड क्लास तो इण्डिया गवर्मेण्ट भी कैन्सिल कर रही है। थर्ड क्लास वाले तो सतयुग की पहली नामीग्रामी प्रजा है, जो रॉयल फैमली के सम्बन्ध में सदा रहेगी। अन्दर की प्रजा होगी। बाहर की नहीं। अन्दर वाले कनेक्शन में बहुत नजदीक होंगे, लेकिन मर्तबे में पीछे होंगे। लक्ष्य तो एयरकन्डीशन का है ना। फर्स्टक्लास के अन्तर से सेकेण्ड क्लास को तो समझ गये होंगे। सेकेण्ड क्लास से फर्स्ट वा एयरकन्डीशन में जाने का बहुत सहज साधन है। सिर्फ एक संकल्प का साधन है। वह एक संकल्प है -`मैं हूँ ही ओरीजनल पवित्र आत्मा।' ओरीजनल स्वरूप अपवित्र तो नहीं था ना। अनादि और आदि दोनों काल का ओरीजनल स्वरूप पवित्र था। अपवित्रता तो आर्टाफिशल है। रीयल नहीं है। शूद्रों की देन है। शूद्रों की चीज ब्राहमण कैसे यूज कर सकते। सिर्फ यह एक संकल्प रखो – अनादि आदि रीयल रूप पवित्र आत्मा हूँ। किसी को भी देखो तो उसका भी अनादि आदि रीयल रूप देखो, स्वयं का भी और औरों का भी। रीयल को रियलाइज करो। लाल चश्मा लगाओ। स्मृति का चश्मा। वह चश्मा नहीं, मैं भी लाल, वह भी लाल, बाप भी लाल। तो लाल चश्मा हो गया ना। फिर लालकिले के ऊपर झण्डा लहरायेंगे। अभी मैदान तक कदम उठाया है। गवर्मेन्ट की नजर तक आये हो फिर नजर के बाद दिल पर आ जायेंगे। सबकी दिल से निकलेगा कि अगर हैं तो यही हैं। अभी यह आवाज फैला कि यह बड़ी संस्था है। बड़ा कार्य है। यह कोई साधारण संस्था नहीं। नामीग्रामियों की लिस्ट में है। अभी आपके मेहनत की प्रशंसा कर रहे हैं। फिर आपके परमात्म मुहब्बत की महिमा करेंगे। यह भी अच्छा किया। बापदादा खुश हैं। संगठन का स्वरूप विश्व के आगे एक वन्डरफुल चित्र में रखा है `हम सब एक है' इसका झण्डा लहराया। लोग समझते थे कि हमने तो समझा यह ब्रहमाकुमारियाँ गई कि गई, कहाँ तक चलेंगी। लेकिन संगठन के नक्शे ने अनेक साधनों द्वारा जैसे रेडियो, टी.वी. अखबारें, नेतायें इन सबके सम्पर्क द्वारा अभी यह आवाज है कि ब्रहमाकुमारियाँ चढ़ती कला में अमर हैं, जाने वाली नहीं है लेकिन सभी को ले जाने वाली हैं। जो सबने तन मन धन लगाया, विश्व के कोने-कोने के ब्राहमणों के भावनाओं की मिट्टी डालने की सेरीमनी हो गई। अपने राज्य की नींव को मजबूत किया इसलिए कुछ फल निकला, कुछ निकलेगा। सब फल इकठ्ठा नहीं निकलता है। उल्हनों से बच गये। अब कोई उल्हना नहीं दे सकेगा कि बाहर की स्टेज पर कहाँ आते हो। लाल किले तक पहुँच गये तो उल्हना समाप्त हुआ, अपनी कमजोरी रही आपका उल्हना नहीं रहा इसलिए सफलतामूर्त हैं और सदा रहेंगे। आगे और नया प्लैन बनेगा। खर्चे का नहीं सोचो। खर्चा क्या किया – 10 पैसे ही तो दिये। लोग तो मनोरंजन के लिए, संगठित प्रोग्रामस के लिए कितना खर्चा जमा करते हैं और खर्च करते हैं। आप सबका तो 10 पैसे या 10 रूपये में काम हो गया। इतना बड़ा परिवार देखना और मिलना। यह भी स्नेह का सबूत देखा। युनिटी की खुशबू, उमंग-उत्साह और इन्वेंशन की खुशबू चारों ओर अच्छी फैलाई। बापदादा के वतन तक पहुँची। अब सिर्फ एक खुशबू रह गई। कौन सी? भगवान के बच्चे हैं, यह खुशबू रह गई है। महान आत्मायें हैं, यहाँ तक पहुँचे हो। आत्मिक बाम्ब लगा है लेकिन परमात्म बाम्ब नहीं लगा है। बाप आया है, बाप के यह बच्चे वा साथी हैं, अब यह लास्ट झण्डा लहराना है। भाषणों द्वारा, झाँकियों में माइक द्वारा तो सन्देश दिया। लेकिन अब सबके ह्दय तक सन्देश पहुँच जाए। समझा अभी क्या करना है। यह भी दिन आ जायेगा। सुनाया ना विदेश से कोई ऐसे विशेष व्यक्ति लायेंगे तो यह भी हलचल मचेगी। सब फर्स्टक्लास प्युरिटी की ब्युटी में आ जायें, सेकेण्ड क्लास भी खत्म हो जाए तो यह भी दिन दूर नही होगा। सेकेण्ड क्लास वाले को ब्युटीफुल बनने के लिए मेहनत का मेकप करना पड़ता। अभी यह भी छोड़ो। नैचुरल ब्युटी में आ जाओ। जैसे देवताओं के संस्कारों में अपवित्रता की अविद्या है वही ओरीजनल संस्कार बनाओ तो विश्व के आगे प्युरिटी की ब्युटी का रूहानी आकर्षण स्वरूप हो जायेगा। समझा आज क्या काम्पीटीशन थी! फारेन ग्रुप तो बहुत जाने वाला है। एक जाना अनेकों को लाना है। एक-एक स्टार अपनी दुनिया बनायेंगे। यह चैतन्य सितारों की दुनिया है इसलिए साइन्स वाले आपके यादगार सितारों में दुनिया ढूंढ रहे हैं। अभी उन्हों को भी अपनी दुनिया में ले आओ। तो मेहनत से बच जायें। उन्हों को अनुभव कराओ कि सितारों की दुनिया कौन सी है? जो आज भारत के बच्चों के साथ-साथ विदेशियों की भी विशेष ज्ञान के पिकनिक की खातिरी कर रहे हैं। जो जाने वाला होता है उनको पिकनिक देते हैं ना। तो बापदादा भी पार्टा दे रहे हैं। यह ज्ञान की पार्टा है। ऐसे प्युरिटी की ब्युटी में नम्बरवन, इमप्युरिटी पर सदा विन करने वाले, प्युरिटी को निजी संस्कार बनाने वाले, सर्व सम्बन्ध का सुख एक बाप से सदा लेने वाले, एक में सारा संसार देखने वाले – ऐसे सदा आशिकों को माशुक बाप का याद प्यार और नमस्ते।

महायज्ञ में सभी ने बहुत अच्छी मेहनत की है। मेहनत का फल मिल ही जाता है। आवाज बुलन्द करने में खर्चा तो करना ही पड़ता, कोई नई इन्वेंशन निकलने में खर्चा लगता है लेकिन उसकी सफलता पीछे भी फल देती रहती है। कहाँ नाम बाला होता, कहाँ आवाज निकलता, कहाँ ब्राहमण परिवार में वृद्धि होती। महायज्ञ के कारण गवर्मेंन्ट द्वारा जो सहयोग प्राप्त हुआ वह भी हमेशा के लिए उनके रिकार्ड में तो आ गया ना। जैसे रेलवे कन्शेसन का हुआ, तो यह भी रिकार्ड में आ गया। ऐसे गुप्त कई कार्य होते हैं। प्रेजीडेन्ट तक भी आवाज तो गया कि इतने सेवाकेन्द्रों से इतनी लगन से आये हैं। यह भी प्रत्यक्षफल है। जिन्होंने जो सेवा की, बापदादा रिजल्ट से सन्तुष्ट हैं इसलिए मेहनत की मुबारक हो। सेवाधारी भाई-बहनों से – हरेक अपने को कोटों में कोऊ, कोऊ में कोऊ, ऐसी श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? सेवा की लाटरी मिलना यह भी एक भाग्य की लकीर है। यह सेवा, सेवा नहीं है लेकिन प्रत्यक्ष मेवा है। एक होता है ताजा फ्रूट, एक होता है सूखा फ्रूट। यह कौन सा फल है? यह प्रत्यक्ष भाग्य का फल है। अभी-अभी करो, अभी-अभी खाओ। भविष्य में जमा होता ही है लेकिन भविष्य से भी पहले प्रत्यक्ष फल होता है। वायुमण्डल के सहयोग की छत्रछाया कितना सहज श्रेष्ठ बनाती है। साथ-साथ पुरानी दुनिया के आवाज और नजर से दूर हो जाते हो। नौकरी के बजाय, यज्ञ सेवा घर की सेवा हो जाती है। नौकरी की टोकरी भी तो उतर जाती है ना। सेवा का ताज धारण हो जाता है। नौकरी की टोकरी तो मजबूरी से उठा रहे हो, दिल से नहीं, डायरेक्शन है तो कर रहे हो। तो इस सेवा से कितने फायदे हो जाते? संग कितना श्रेष्ठ मिल जाता, सागर का कण्ठा और सदा ज्ञान की चर्चा, बाप और सेवा के सिवाए और कुछ नहीं। यह मदद है ना। तो कितना भाग्य है। मातायें क्या समझती हैं? बना बनाया भाग्य हथेली पर आ जाता है। जैसे कृष्ण के चित्र में स्वर्ग हथेली पर है तो संगम पर भाग्य का गोला हाथ में है। इतने भाग्यवान हो। यह सेवा अभी साधारण बात लगती लेकिन यह साधारण नहीं है। यह वन्डरफुल लकीर है। जितना समय यह लाटरी मिलती है, इसी लाटरी को अविनाशी बना सकते हो। ऐसे अभ्यासी बन जाओ जो कहाँ भी रहते यहाँ जैसी स्थिति बना सको। यहाँ सहज योगी की अनुभूति होती है ना। मेहनत समाप्त हो जाती, तो यही सहजयोग का अनुभव परम्परा चलाते रहो। संगमयुग में परम्परा। मधुबन में यह अनुभव छोड़ के नहीं जाना लेकिन साथ ले जाना। ऐसे कई कहते हैं मधुबन से नीचे उतरे तो मीटर भी नीचे उतर गया। ऐसे नहीं करना। इसी अभ्यास का लाभ लो। सेवा करते हुए भी सहजयोगी की स्थिति पर अटेन्शन रखो। ऐसे नहीं सिर्फ कर्मणा सेवा में बिजी हो जाओ। कर्मणा के साथ-साथ मंसा स्थिति भी सदा श्रेष्ठ रहे, तब सेवा का फायदा है। शक्तियाँ भी अच्छी स्नेही हैं, अथक हैं, बाहों में दर्द तो नहीं पड़ता, बापदादा स्नेह से पाँव और बाँहें दबा रहे हैं। स्नेह ही पाँव दबाना है। अच्छा –

मधुबन में सेवा का बीज डाला अर्थात् सदा के लिए श्रेष्ठ कर्मों का फल बोया। अच्छा।
वरदान:
हर कर्म करते हुए कमल आसन पर विराजमान रहने वाले सहज वा निरन्तर योगी भव   
निरन्तर योगयुक्त रहने के लिए कमल पुष्प के आसन पर सदा विराजमान रहो लेकिन कमल आसन पर वही स्थित रह सकते हैं जो लाइट हैं। किसी भी प्रकार का बोझ अर्थात् बंधन न हो। मन के संकल्पों का बोझ, संस्कारों का बोझ, दुनिया के विनाशी चीजों की आकर्षण का बोझ, लौकिक सम्बन्धियों की ममता का बोझ-जब यह सब बोझ खत्म हों तब कमल आसन पर विराजमान निरन्तर योगी बन सकेंगे।
स्लोगन:
सहनशीलता का गुण धारण कर लो तो असत्यता का सहारा नहीं लेना पड़ेगा।